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सीएए मतुआ समुदाय की कानूनी नागरिकता सुनिश्चित करता है: केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर
06-Apr-2024 2:29 PM
सीएए मतुआ समुदाय की कानूनी नागरिकता सुनिश्चित करता है: केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर

कोलकाता, 6 अप्रैल केंद्रीय मंत्री एवं मतुआ नेता शांतनु ठाकुर का मानना है कि नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) मतुआ समुदाय के लोगों को ‘‘कानूनी रूप से नागरिकता’’ प्रदान करके उनकी रक्षा करेगा और उन्हें ‘‘आगामी 100 साल में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजी) की संभावित प्रक्रिया’’ के दौरान विदेशी करार दिए जाने से बचाएगा।

ठाकुर ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन जमा करने के संबंध में मतुआ समुदाय के बीच भ्रम की स्थिति को दूर करने की कोशिश की।

उन्होंने मतुआ समुदाय के पास बांग्लादेश में उनके पिछले आवासीय पते की पुष्टि करने वाले पर्याप्त दस्तावेज नहीं होने के कारण नागरिकता आवेदनों को लेकर उनके बीच भ्रम की स्थिति को स्वीकार करते हुए कहा कि इस ‘‘मामले पर ध्यान दिया गया है।’’

उन्होंने कहा कि ‘‘बांग्लादेश में पिछले आवासीय पते को साबित करने वाला कोई दस्तावेज अनिवार्य नहीं है और सामुदायिक संगठनों के प्रमाण पत्र पर्याप्त हैं।’’

ठाकुर पश्चिम बंगाल की बनगांव लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू किए के बिना ममता बनर्जी सहित विपक्ष का कोई भी नेता अब से एक सदी में एनआरसी की प्रक्रिया किए जाने की स्थिति में मतुआ समुदाय की रक्षा नहीं कर पाएगा।

ठाकुर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह नागरिकता संशोधन अधिनियम मतुआ समुदायों को कानूनी और संवैधानिक नागरिकता प्रदान करेगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि अगले 100 साल में एनआरसी प्रक्रिया होने की स्थिति में उन्हें घुसपैठियों की तरह देश से निर्वासित नहीं किया जाए। नया नागरिकता अधिनियम मतुआ समुदाय को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करेगा।’’

मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान से संबंध रखने वाले मतुआ हिंदुओं का एक कमजोर वर्ग है जो विभाजन के दौरान और बांग्लादेश के निर्माण के बाद धार्मिक उत्पीड़न के बाद भारत आ गया था।

ठाकुर ने चिंता व्यक्त की कि सीएए द्वारा दी गई सुरक्षा के बिना मतुआ समुदाय के लोगों को निष्कासित किया जा सकता है और उनकी स्थिति म्यांमा के रोहिंग्या समुदाय की तरह हो सकती है जिन्हें सदियों से नागरिकता से वंचित रखा गया है।

जब ठाकुर से इस बारे में सवाल किया गया कि कुछ विपक्षी दल निकट भविष्य में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की प्रक्रिया होने की संभावना जता रहे हैं तो उन्होंने कहा कि उन्हें जल्द ‘‘ऐसा कोई कदम उठाए जाने की जानकारी नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं अगले 100-200 वर्ष में एनआरसी की संभावना के बारे में बात कर रहा हूं, तो हमें संवैधानिक रूप से सुरक्षित क्यों नहीं किया जाना चाहिए।’’

ठाकुर ने 1947 में हुए विभाजन के इतिहास और 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश के गठन का जिक्र करते हुए कहा कि 1971 के बाद से बांग्लादेश से आए हिंदुओं या धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत के कानूनी नागरिक के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।

उन्होंने कहा, ‘‘मुक्ति संग्राम से पहले भारत और पाकिस्तान के बीच एक संधि के कारण पाकिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों को कानूनी शरणार्थी माना जाता था और नागरिकता दी जाती थी। लेकिन बांग्लादेश के गठन के बाद यह व्यवस्था समाप्त हो गई जिसके बाद धार्मिक उत्पीड़न के कारण बांग्लादेश से आने वाले लोग कानूनी या संवैधानिक रूप से इस देश के नागरिक नहीं हैं।’’

अखिल भारतीय मतुआ महासंघ के अध्यक्ष ठाकुर ने दावा किया कि आधार कार्ड मतुआ समुदायों को संवैधानिक नागरिकता प्रदान नहीं करता, लेकिन सीएए ऐसा करेगा।

उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सीएए के खिलाफ रुख के लिए उनकी आलोचना की और उन पर ‘‘दोहरे मानदंड’’ अपनाने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री कह रही हैं कि मतदाता पहचान पत्र या आधार कार्ड होने से मतुआ इस देश के नागरिक बन जाते हैं। अगर ऐसा है तो पश्चिम बंगाल पुलिस के अधीन जिला खुफिया ब्यूरो (डीआईबी) पासपोर्ट सत्यापन के दौरान मतुआ समुदाय के लोगों से 1971 से पहले के जमीन के दस्तावेज क्यों मांग रहा है? वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि संघीय ढांचे में यह पता करने का नियम है कि कौन वैध नागरिक है और कौन नहीं।’’

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के कार्यान्वयन के नियमों को इस साल मार्च में अधिसूचित किया गया था। इसके तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान है।  (भाषा) 

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