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जेएनयू कभी भी ‘राष्ट्र-विरोधी’ या ‘टुकड़े-टुकड़े’ गिरोह का हिस्सा नहीं था : कुलपति शांतिश्री
18-Apr-2024 9:10 PM
जेएनयू कभी भी ‘राष्ट्र-विरोधी’ या ‘टुकड़े-टुकड़े’ गिरोह का हिस्सा नहीं था : कुलपति शांतिश्री

नयी दिल्ली, 18 अप्रैल। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने बृहस्पतिवार को कहा कि जेएनयू कभी भी ‘‘राष्ट्र-विरोधी’’ या ‘‘टुकड़े-टुकड़े’’ गिरोह का हिस्सा नहीं था। उन्होंने कहा कि जेएनयू हमेशा असहमति, बहस और लोकतंत्र को बढ़ावा देता रहेगा।

‘पीटीआई’ मुख्यालय में एजेंसी के संपादकों के साथ बातचीत में जेएनयू की पहली महिला कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने कहा कि जेएनयू का ‘‘भगवाकरण नहीं हुआ है’’ और इसके दिन-प्रतिदिन के कामकाज में केंद्र सरकार का कोई दबाव नहीं है।

जेएनयू की छात्रा रहीं पंडित ने स्वीकार किया कि जब उन्होंने कुलपति का कार्यभार संभाला तो परिसर में ध्रुवीकरण हो गया था और उन्होंने इस दौर को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ बताया। कुलपति ने दावा किया कि दोनों पक्षों (छात्रों और प्रशासन) से गलतियां हुईं और नेतृत्व ने हालात को संभालने में गलती की।

पंडित ने यह भी कहा कि न तो उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े होने पर कोई अफसोस है और न ही वह इसे छिपाती हैं।

पंडित ने रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में अपने जन्म से लेकर चेन्नई में एक मध्यम वर्गीय दक्षिण भारतीय परिवार में पलने-बढ़ने तक के अपने जीवन के बारे में विस्तार से बात की। पंडित ने कहा कि विश्वविद्यालय को क्यूएस रैंकिंग में शीर्ष स्थान दिलाने वाली ‘‘संघी कुलपति’’ होने पर उन्हें गर्व है।

उन्होंने कहा, ‘‘एक विश्वविद्यालय के रूप में हमें इस सब (भगवाकरण) से ऊपर उठना चाहिए। जेएनयू राष्ट्र के लिए है, किसी विशेष पहचान के लिए नहीं। जेएनयू समावेशिता और विकास के लिए है और मैं हमेशा कहती हूं कि यह सात डी- डेवलपमेंट (विकास), डेमोक्रसी (लोकतंत्र), डिसेन्ट (असहमति), डायवर्सिटी (विविधता), डिबेट (बहस) और डिस्कशन (चर्चा), डिफरेन्स (मतभेद) तथा डेलिबरेशन (विचार-विमर्श) के लिए है।’’

पंडित ने 2022 में कुलपति का पद संभाला था जब परिसर छात्रों के आंदोलन से जूझ रहा था और एक कार्यक्रम के दौरान परिसर में कथित राष्ट्र-विरोधी नारे लगाए जाने पर 2016 के विवाद में घिर गया था। नारेबाजी में शामिल छात्रों पर ‘‘टुकड़े-टुकड़े’’ गिरोह का सदस्य होने का आरोप लगाया गया।

विश्वविद्यालय की राष्ट्र-विरोधी छवि के बारे में एक सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘वह ऐसा दौर था जब दोनों पक्षों ने गलतियां कीं। मुझे लगता है कि नेतृत्व ने इसे संभालने में गलती की। किसी भी विश्वविद्यालय में 10 प्रतिशत शरारती तत्व होते हैं। ऐसा केवल जेएनयू में नहीं है। यह नेतृत्व पर निर्भर करता है कि हम उग्र विचार वाले लोगों से कैसे निपटते हैं...लेकिन मुझे नहीं लगता कि हम राष्ट्र-विरोधी या टुकड़े-टुकड़े गिरोह का हिस्सा हैं।’’

पंडित ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि वह दौर बुरा था और दोनों तरफ से गलतियां हुई थीं। ध्रुवीकरण और नेतृत्व द्वारा स्थिति समझ नहीं पाने के कारण ऐसा हुआ...आपको यह समझना होगा कि अलग-अलग विचार के लोग होते हैं और बहस करते हैं। विश्वविद्यालय कभी भी राष्ट्र-विरोधी नहीं था। जब मैंने (जेएनयू में) पढ़ाई की यह वाम वर्चस्व का चरम था, तब भी कोई राष्ट्र-विरोधी नहीं था।’’

कुलपति ने कहा, ‘‘वे (छात्र) आलोचनात्मक हैं। आलोचनात्मक होना और असहमत होना राष्ट्र-विरोधी नहीं कहा जाएगा। मुझे लगता है कि प्रशासन ने जेएनयू को नहीं समझा और वह एक दुर्भाग्यपूर्ण दौर था।’’

उन्होंने कहा कि भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए), नौसैन्य अकादमी जैसी सैन्य अकादमियों के स्नातकों को डिग्रियां जेएनयू से दी जाती हैं। पंडित ने कहा, ‘‘उस तर्क के अनुसार भारतीय सेना को भी राष्ट्र-विरोधी माना जाएगा।’’

पंडित का जन्म 1962 में एक शिक्षाविद मां के घर हुआ था, जो उस समय रूस के लेनिनग्राद में भाषा विज्ञान पढ़ाती थीं। प्रसव के तुरंत बाद पंडित की मां की मृत्यु हो गई और उनका पालन-पोषण लगभग दो वर्षों तक रूसी देखभाल करने वालों ने किया, जो नवंबर 1963 में उन्हें भारत ले आए और चेन्नई में उनके पत्रकार पिता को सौंप दिया।

स्कूल में टॉपर रहने के साथ पंडित ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की और नयी दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में दाखिला लिया, लेकिन तीन महीने बाद छोड़ दिया क्योंकि उन्हें बताया गया था कि वह स्त्री रोग या बाल चिकित्सा में विशेषज्ञता ले सकती हैं न कि न्यूरोलॉजी में। इसके बाद उन्होंने इतिहास का अध्ययन किया और अकादमिक क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए पुणे विश्वविद्यालय में डीन बनीं।

पंडित चेन्नई में पली-बढ़ी हैं। पंडित के पिता उन्हें आरएसएस से संबद्ध समूह सेविका समिति द्वारा आयोजित ग्रीष्मकालीन शिविरों में भेजते थे।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘इस तरह मैं आरएसएस के प्रभाव में पली बढ़ी।’’ कुलपति ने कहा कि संघ ने उन्हें कभी नफरत नहीं सिखाई बल्कि उनके जीवन पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं इसे (जुड़ाव को) छिपाना नहीं चाहती। जो नक्सली हैं वे इसे नहीं छिपाते हैं तो मैं इसे क्यों छिपाऊं। मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जो राष्ट्रविरोधी हो और मुझे लगता है कि दक्षिण में आरएसएस का उतना राजनीतिकरण नहीं हुआ है जितना कि यहां किया जा रहा है। मेरा संघ से गहरा जुड़ाव है...।’’

कुलपति ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हर किसी की अलग-अलग संबद्धताएं हैं। मेरे लिए संघ का बहुत ही सकारात्मक प्रभाव रहा है।’’

जेएनयू परिसर के भगवाकरण के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘कम से कम जेएनयू में हमारा भगवाकरण नहीं हुआ है।’’ (भाषा)

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