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भीख मांग कर पेट भरते मजदूर पहुंचे घर
01-May-2024 2:56 PM
भीख मांग कर पेट भरते मजदूर पहुंचे घर

  भट्ठा दलालों के गुंडों से डरकर घर में दुबका परिवार  

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता 

पिथौरा, 1 मई । क्षेत्र से ईंट भट्ठा मजदूर दलालों द्वारा ले जाए गए परिवारों में कल समीप के ग्राम बरेकेल का एक परिवार भीख मांगता बगैर टिकट ट्रेन में सफर करता अपने घर पहुंच गया। अब यह परिवार  भट्ठा दलाल से भयभीत है कि उनके गुंडे आएंगे और उन्हें घर से निकाल कर उनका घर अपने नाम रजिस्टर्ड करवा कर उनकी पिटाई करेंगे। मजदूरों को प्रशासनिक कार्रवाई का भरोसा नहीं है। लिहाजा यह परिवार अभी अपने घर मे दुबका पड़ा है।

मंगलवार की दोपहर एक मजदूर परिवार स्थानीय बस स्टैंड में उतरा। बस स्टैंड के कुछ दुकानदारों ने जब इस परिवार की दास्तान सुनी तब वे उन्हें ‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता  तक ले आये। 
‘छत्तीसगढ़’ से बातचीत में इन मजदूरों के मुखिया ने अपना नाम कोमल पिता परमल सतनामी (47) बताया। इनके साथ इनके जुड़वा पुत्र योगेश एवं भरत (19) एवं एक 12 वर्षीय पुत्री रोशनी के साथ वापस आये हंै। ये परिवार 2023 के दिसम्बर माह में क्षेत्र का कोई लक्ष्मी नामक दलाल ले गया था। इस दलाल ने उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर स्थित लालसा मौर्य ईंट  भट्ठा में छोड़ दिया। 


यहां पहुंचने के बाद से ही उन्हें प्रतिदिन डांट-फटकार कर ट्रैक्टर में मजदूरी करवाते और उसके बाद वे ईंट बनाने में लग जाते। समय कम मिलने से इस परिवार की ईंट बनाने की क्षमता भी कम हो गयी थी, लिहाजा  भट्ठा मालिक इन्हें मजदूरी तो दूर खाने का रसद(खुराकी) भी आधी देने लगा, जिससे ये आधा पेट खाकर ही दिन भर काम करते रहे।

गए थे 85 हजार कर्ज उतारने आये तो भी कर्ज में

 कोमल के अनुसार उनका परिवार  भट्ठा मजदूर माफिया के कर्ज के मकडज़ाल में फंसा हुआ है। दिसम्बर में  भट्ठा सरदार द्वारा सूद सहित इस परिवार पर 85 हजार रुपये का कर्ज बता कर उसे छूटने  भट्ठा ले जाया गया था। परन्तु  भट्ठा में इन मजदूरों से ट्रैक्टर में मुफ्त मजदूरी कराई जाती रही और खाली समय में ही यह परिवार ईंट बनाता था, लिहाजा चार माह से अधिक समय में परिवार मात्र डेढ़ लाख ईंट ही बना पाया।  भट्ठा मालिक द्वारा खाना बनाने हेतु रसद देना भी बन्द कर दिया था।जिससे यह परिवार आसपास के भट्ठों में काम कर रहे क्षेत्र के मजदूरों से राशन लेकर पेट भरते रहे। इसके बाद अचानक शनिवार को  भट्ठा मालिक ने इस परिवार को भूखे प्यासे ही निकल दिया।

भीख मांग कर पहुंचे घर
कोमल के अनुसार  भट्ठा में हिसाब नही करने एवम उन्हें रुपये नहीं देने के कारण पेट भरने के लिए उन्हें भीख तक मांगनी पड़ी। इसके बाद अपने रिश्तेदारों को मोबाइल कर इन्होंने जैसे तैसे कुछ रुपये मंगवाए और सीधा रेलवे स्टेशन पहुच गए।रुपये कम होने की वजह से इन्होंने मात्र दो टिकट ही खरीदे और दो ही टिकट में चारों मजदूर डरे सहमे अपने घर पहुंचे।

कहीं कोई नहीं सुनता
मजदूरों के शोषण की क्षेत्र में प्रतिवर्ष दर्जनों घटनाएं सामने आती हैं, परन्तु प्रशासन द्वारा कभी कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर यही कहते मामला समाप्त किया कि मजदूर अपनी मर्जी से जाते हैं, इसलिए हम क्या करें?
 

पहले कर्ज फिर दुगुना ब्याज, अंतत: दीगर प्रांत जा रहे
 भट्ठा दलालों की सफलता की कहानी यह है कि वे जुलाई में पहले तो ग्रामीण क्षेत्रो में जाकर ब्याज में रुपये बांटते है।फिर सितंबर में मूल से कई गुना ज्यादा का हिसाब निकाल कर मजदूरों से रुपये वापस मांगते है जो कि मजदूरों के लिए सम्भव नही होता लिहाजा उन्हें ईंट  भट्ठा जा कर कर्ज उतारने की सलाह दी जाती है।

मजदूर द्वारा सलाह न मानने पर उन्हें थर्ड डिग्री का उपयोग कर ले जाया जाता है। थर्ड डिग्री इतनी भयावह होती है कि तालिबानी प्रताडऩा कहा जा सकता है। इतनी प्रताडऩा के बाद जब किसी अखबार में खबर प्रकाशन के बाद प्रशासन इनसे इनकी मर्जी पूछता है तब वे अपनी मर्जी से ही जाना बताते है क्योंकि वे समझ चुके होते है कि उनके नहीं बोलने का अंजाम बुरा होता है। आम तौर पर पूरा प्रशासन भी  भट्ठा सरदारों का हिमायती लगने लगता है।

600 मजदूर का 400 दलाल के
ईंट  भट्ठे में मजदूरों का सभी तरफ से शोषण होता है। चाहे इसमें उसका परिवार हो मेहनत हो या मेहनत का हिसाब। एक  भट्ठा दलाल ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि  भट्ठा में दलालों को 1000 से 1100 रुपये प्रति हजार ईंट बनाने की मजदूरी दी जाती है जिसमें से दलाल का कमीशन 400 काट कर मजदूरों का हिसाब 600 रुपये प्रति हजार ईंट के अनुसार होता है। इसमें मजदूरों के खाने के रसद के पैसे अपने अनुसार  भट्ठा मालिक मजदूर की मेहनत से काट लेता है।लिहाजा मजदूरों का कर्ज मुक्ति का सपना धरा का धरा रह जाता है और मजदूर एक बार पुन: कर्ज लेकर एवम कुछ नगद राशि लेकर वापस लौटते हैं।

 

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