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![यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िताओं को शर्मिंदा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती: उच्च न्यायालय यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िताओं को शर्मिंदा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती: उच्च न्यायालय](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1720153384h_n.jpg)
नयी दिल्ली, 4 जुलाई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों में पीड़िता और उसके परिवार को शर्मिंदा करने को कानूनी रणनीति के उपकरण के रूप में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह उन्हें अधिकारियों को ऐसे अपराधों की सूचना देने से रोकता है।
मोबाइल फोन पर अपने नियोक्ता की नाबालिग बेटी के गुप्त रूप से आपत्तिजनक वीडियो बनाने के मामले में एक घरेलू सहायक को दी गई तीन साल कैद की सजा को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि ऐसे मामलों में नरम रुख अपनाने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा कि न्यायिक घोषणाएं ऐसे उत्पीड़न और हमले के पीड़ितों के घावों पर "मरहम लगाने" का काम करती हैं।
घरेलू सहायक ने निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को उच्च न्यायालय में अपील दायर कर कई आधारों पर चुनौती दी, जिनमें यह भी शामिल था कि वीडियो पीड़िता के पिता द्वारा बनाए गए क्योंकि वह उसका वेतन नहीं देना चाहता था।
न्यायमूर्ति शर्मा ने इस बात को "असंवेदनशील" और "अकल्पनीय" बताते हुए कहा कि अदालत को न केवल पीड़ित बच्चों, बल्कि उनके परिवारों की भी गरिमा और अधिकारों को बरकरार रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली का सर्वोपरि कर्तव्य है कि वह सबसे कमजोर लोगों, विशेषकर बच्चों को अन्यायपूर्ण आरोपों या अपमानजनक आख्यानों के कारण होने वाले किसी भी प्रकार के द्वितीयक आघात से बचाए।
न्यायाधीश ने एक जुलाई को पारित आदेश में कहा, ‘‘इसलिए, अदालतों को कानूनी रणनीति के उपकरण के रूप में पीड़ित बच्चों के चरित्र हनन या पीड़ित परिवार को शर्मिंदा करने वाले किसी भी प्रयास के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहिए। पीड़ित और पीड़ित परिवार को शर्मिंदा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि ऐसा होने पर पीड़ित लोग अधिकारियों को ऐसे अपराधों की सूचना नहीं देंगे।’’ (भाषा)