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नयी दिल्ली, 30 सितंबर। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपना एक आदेश वापस लेने से इनकार कर दिया है, जिसमें केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह डीएमडी, गौचर रोग और एमपीएस जैसे दुर्लभ रोगों से पीड़ित 18 व्यक्तियों के इलाज के लिए यहां स्थित एम्स को 10 करोड़ रुपये जारी करे।
अदालत ने कहा कि 18 रोगियों का इलाज पहले ही शुरू किया जा चुका है और उपचार बंद होने से उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
अदालत ने कहा कि धनराशि तीन कार्यदिवस में जारी की जानी चाहिए और ऐसा नहीं करने पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव को अगली सुनवाई के दौरान अदालत में पेश होना होगा।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने मामले की सुनवाई तीन अक्टूबर तक के लिए स्थगित करते हुए कहा, “ऐसी परिस्थितियों में, इन 18 रोगियों का उपचार रोकना पूरी तरह से अन्यायपूर्ण और कानून के विरुद्ध होगा, क्योंकि इससे उनके सामान्य जीवन और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।”
उन्होंने कहा, “चूंकि इन बच्चों का उपचार पहले ही शुरू हो चुका है, इसलिए तीन कार्य दिवसों में निर्देशानुसार राशि जारी की जाए, ऐसा नहीं होने पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की संयुक्त सचिव लता गणपति सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहें।”
अदालत ने केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी, जिसमें 13 सितंबर के आदेश को वापस लेने की मांग की गई थी। अदालत ने 13 सितंबर के आदेश में सरकार को 18 मरीजों का इलाज जारी रखने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली को 10 करोड़ रुपये जारी करने का निर्देश दिया गया था।
इन बच्चों का पहले ही दुर्लभ रोगों के लिए राष्ट्रीय नीति (एनपीआरडी), 2021 के तहत दवा दी जा चुकी है।
अदालत ने कहा कि चूंकि खर्च की गई पूरी धनराशि के लिए एम्स पूरी तरह जवाबदेह है, इसलिए केंद्र को यह धनराशि एम्स को देने का निर्देश दिया जा रहा है।
अपने आवेदन में केंद्र सरकार ने कहा था कि एम्स को दी जाने वाली बजटीय राशि पहले ही समाप्त हो चुकी है तथा अन्य उत्कृष्ट स्वास्थ्य केंद्र भी हैं, जिन्होंने धनराशि जारी करने का अनुरोध किया है। इस पर न्यायालय ने कहा कि समय-समय पर उसने माना है कि एम्स, दिल्ली प्रमुख उत्कृष्टता केंद्रों में से एक है, जो दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों का सक्रिय रूप से उपचार कर रहा है।
केन्द्र के वकील ने कहा कि आवंटित 34 करोड़ रुपये की राशि में से एम्स ने अब तक केवल 9 करोड़ रुपये ही खर्च किए हैं।
डिजिटल माध्यम से अदालत में पेश हुईं एम्स की डॉ. मधुलिका काबरा ने स्पष्ट किया कि दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए दवाओं की खरीद पर खर्च की जाने वाली कुल राशि दवाओं की खरीद के बाद ही पता चल पाएगी। (भाषा)