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सचिन बाग़ी, संकट में गहलोत सरकार
13-Jul-2020 8:47 AM
सचिन बाग़ी, संकट में गहलोत सरकार

कांग्रेस का कहना है कि 109 विधायकों का साथ है.  

जयपुर, 13 जुलाई। राजस्थान में कांग्रेस की मौजूदा सरकार संकट में है. शनिवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि वो उनकी सरकार गिराने में लगी हुई है.

उन्होंने कहा था कि एक तरफ़ वो कोरोना से लड़ने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं तो दूसरी ओर बीजेपी ऐसे वक़्त में भी सरकार को अस्थिर करने में लगी हुई है. उन्होंने बीजेपी पर विधायकों की सौदेबाज़ी का आरोप लगाया था.

कथित ख़रीद-फ़रोख़्त को लेकर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप यानी एसओजी जांच में भी लगी हुई है. पुलिस के एसओजी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उपमुख्यमंत्री सीएम सचिन पायलट और सरकार के मुख्य सचेतक महेश जोशी को पूछताछ के लिए बुलाया भी था. लेकिन

अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट हो गई है. जैसे कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया हो गई थी और वहां की सरकार से कांग्रेस को हाथ धोना पड़ा था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सचिन पायलट सोमवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं होंगे. सचिन ने कहा है कि उनके साथ कांग्रेस के 30 विधायक हैं और अशोक गहलोत की सरकार अल्पमत में है. सचिन पायलट अभी दिल्ली में हैं और राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होने जा रही है. कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर सकती है. कांग्रेस का कहना है कि अशोक गहलोत के साथ 109 विधायकों का समर्थन है.

सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली आ गए हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने हालांकि किसी संदर्भ का उल्लेख नहीं किया है लेकिन उन्होंने ट्वीट किया है, "अपनी पार्टी को लेकर चिंतित हूँ. क्या हम तब जागेंगे जब हमारे अस्तबल से घोड़े निकाल लिए जाएंगे."

राजस्थान में दिसंबर, 2018 में चुनाव जीतने के साथ ही कांग्रेस में खींचतान शुरू हो गई थी. मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट आमने-सामने आ गए थे.

हालांकि तब अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था. इसके बाद दोनों के बीच कुर्सी को लेकर खींचतान समाप्त हो गई थी लेकिन अब क़रीब डेढ़ साल बाद एक बार फिर से राजस्थान कांग्रेस में इन दोनों शीर्ष नेताओं की बीच तनाव बढ़ता हुआ दिख रहा है.

तो क्या अब राजस्थान में भी वहीं होने जा रहा है जो मध्य प्रदेश में मार्च के महीने में हुआ था. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री की कुर्सी और दूसरे मसलों को लेकर खींचतान चल रहा था.

आख़िरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लिया और मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिर गई थी.

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजस्थान के घटनाक्रम पर ट्वीट कर सचिन पायलट के प्रति अपना समर्थन जताया है. उन्होंने ट्वीट कह कहा, "अपने पुराने सहयोगी सचिन पायलट को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से दरकिनार और सताए जाने को लेकर दु:खी हूँ. यह दिखाता है कि कांग्रेस में प्रतिभा और क़ाबिलियत के लिए बहुत कम जगह है."

कांग्रेस छोड़ेंगे सचिन पायलट?

क्या वाक़ई सचिन पायलट ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर चलने वाले हैं?

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखती हैं. वो कहती हैं, "नहीं लगता कि सचिन पायलट पार्टी छोड़ेंगे. हालांकि वो पार्टी में घुटन होने की बात कहते रहे हैं और साथ में पार्टी के पुनरुत्थान की भी बात करते रहे हैं."

उन्होंने कहा, "अभी यह साफ़ नहीं है कि क्या होने वाला है. सचिन पायलट दिल्ली में हैं और हाईकमान से मुलाक़ात होने की बात हो रही है. लेकिन राजस्थान पुलिस ने जिस तरह से अपने उपमुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ नोटिस दिया गया है, उससे साफ़ संकेत गया है कि ये हद हो गई है और पानी सिर से गुजर गया है. यह तनाव तो काफ़ी लंबे समय से चल रहा है."

वरिष्ठ पत्रकार विवेक कुमार इस पर कहते हैं, "सचिन पायलट पार्टी में रहेंगे या नहीं यह विधायक दल की बैठक में उनकी मौजूदगी पर निर्भर करता है. अगर वो बैठक में पहुँचते हैं तो यह माना जाएगा कि वो पार्टी में रहने वाले हैं और समझौता करने की स्थिति में है लेकिन अगर वो बैठक में नहीं आते हैं तब यह कहा जा सकता है कि वो उस स्थिति तक पहुँच गए हैं जहाँ से अब उनकी वापसी नहीं होने वाली है."

नीरजा चौधरी कहती हैं, ''सचिन पायलट चाहते थे कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए. राहुल गांधी ने सचिन पायलट को यही कह कर भेजा था कि राजस्थान जीत कर आओ फिर मुख्यमंत्री बनाऊंगा लेकिन जब मौक़ा आया तो अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया.''

''गहलोत की अच्छी छवि है और अनुभवी भी हैं लेकिन इस बार सचिन पायलट ने काफ़ी मेहनत की थी. कहीं न कहीं सचिन पायलट को एक कोने में तो धकेला ही जा रहा है. ऐसे हालात में मुख्यमंत्री को बड़प्पन दिखाने की ज़रूरत है.''

विवेक कुमार कहते हैं कि जैसी राजनीति करते हुए सचिन पायलट ने राजस्थान में अपनी ज़मीन बनाई है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि वापस समझौता करेंगे. वो कांग्रेस में रहेंगे तो फिर मुख्यमंत्री पद से नीचे नहीं मानेंगे नहीं तो फिर बीजेपी या थर्ड फ्रंट के बारे में सोचेंगे.

थर्ड फ्रंट से उनका मतलब जाट-गुर्जर गठबंधन से हैं. वो कहते हैं कि सचिन को ज़्यादातर जाट नेता समर्थन कर रहे हैं. हालांकि ये समीकरण अभी थोड़ी दूर की कौड़ी है और थोड़ा मुश्किल है लेकिन जाट-गुर्जर गठबंधन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

वो सचिन पायलट की तुलना वसुंधरा राजे से करते हुए कहते हैं कि जैसे वसुंधरा ने अपनी जगह बनाई है, वैसे ही सचिन पायलट ने भी अपनी जगह बनाई है.

सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया की शख़्सियत में बुनियादी फर्क

सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक वक़्त कांग्रेस में नई पीढ़ी के उभरते हुए नेताओं के तौर पर देखा जाता था. दोनों के पिता राजेश पायलट और माधवराव सिंधिया भी राजनीति में समकालीन थे और अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के प्रमुख चेहरे थे.

लेकिन मध्य प्रदेश में पार्टी में हुई खींचतान के बाद आख़िरकार कभी राहुल गांधी के क़रीबी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का रुख़ कर लिया.

नीरजा चौधरी इन दोनों ही युवा नेताओं की तुलना पर कहती हैं, "ज्योतिरादित्य सिंधिया राजघराने से आते हैं लेकिन सचिन पायलट को उनकी पिता की मौत के बाद ज़रूर पार्टी में एंट्री मिली थी लेकिन उसके बाद जो भी उन्होंने हासिल किया है, वो अपने दम पर किया है.''

''दोनों की शख्सियत में यह अंतर है कि सचिन पायलट की छवि एक ज़मीनी काम करने वाले नेता की है जो गाँव में जाकर किसी खाट पर भी सो जाएगा. सिंधिया काफ़ी होशियार और क़ाबिल हैं लेकिन उनकी पृष्ठभूमि राजघाने की है और साथ में बीजेपी की भी पृष्ठभूमि उनके परिवार की रही है. उनके परिवार का जुड़ाव बीजेपी से ज़्यादा है लेकिन फिर भी वो राहुल गांधी के काफ़ी क़रीबी रहे हैं. हालांकि उन्होंने अपने क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में काफ़ी घूमा है."

मौजूदा समय में राजस्थान और मध्य प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों में क्या असमानता और समानता है? क्या राजस्थान में मध्य प्रदेश जैसे हालात बन सकते हैं?

नीरजा चौधरी कहती हैं, "राजस्थान में कांग्रेस के पास स्पष्ट बहुमत है. कांग्रेस के लिए राजस्थान में गुडविल भी है. दूसरी तरफ़ मध्य प्रदेश में सीटों का अंतर काफ़ी कम था और शिवराज सिंह चौहान के लिए गुडविल था. सबसे अहम बात यह कि वहाँ कांग्रेस के अंदर में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सालों से घमासान था. वहाँ पार्टी के अंदर में गुटबाजी पुरानी थी. लेकिन राजस्थान में ऐसा सालों से नहीं है बल्कि अभी 2018 से ही यह टकराव शुरू हुआ है."

कांग्रेस में असंतोष क्यों?

कांग्रेस के अंदर युवा नेतृत्व और पुराने क्षेत्रिय नेताओं के बीच तालमेल नहीं होने के सवाल पर वो कहती हैं, "ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हाई कमान अब हाई कमान नहीं रहा. मध्य प्रदेश में लंबे समय से यह दिख रहा था कि क्या होने जा रहा है और राजस्थान में भी दिख रहा है कि क्या हो रहा है लेकिन हाई कमान इसमें अपनी भूमिका नहीं निभा पाया है.''

''सोनिया गांधी ने पिछले साल से फिर से कमान संभाला है और उन्होंने अपनी पुरानी टीम पर भरोसा जताया हुआ है. उनकी पुरानी टीम नए लोगों के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही है. उन्हें साथ लेकर नहीं चल पा रही है और जो नए लोग हैं वो पुरानी किस्म की राजनीति नहीं चाहते हैं."

विवेक कुमार भी मानते हैं कि ऐसा केंद्रिय नेतृत्व के प्रभावी नहीं होने की वजह से हो रहा है. क्षेत्रीय नेताओं को लगता है कि राज्यों में उनके नाम पर वोट आ रहा है. अब जैसे राजस्थान में सचिन पायलट को लगता है कि यहाँ की जीत उनकी पाँच साल की मेहनत का नतीजा है और उनके साथ न्याय नहीं हो रहा. वैसे ही मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को लगता रहा. मुख्य कारण कांग्रेस में अंसतोष का यही है. वहीं दूसरी तरफ़ बीजेपी में किसी भी क्षेत्रीय नेता को इस बात की ग़लतफ़हमी नहीं है कि उनके नाम पर वोट आ रहे हैं."(bbc)

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