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नई दिल्ली, 10 जनवरी | भारतीय पुरुष हॉकी टीम के पूर्व कप्तान बीपी गोविंदा ने कहा है कि हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले पूर्व कप्तान और मेजर ध्यान चंद एक 'महान व्यक्ति, महान इंसान और एक महान खिलाड़ी' थे और यह आश्चर्य की बात है कि उन्हें अभी तक देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान-भारत रत्न-से सम्मानित नहीं किया गया है।
गोविंदा वर्ष 1975 में हॉकी विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम और 1972 में म्यूनिख ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा रह चुके हैं।
गोविंदा ने आईएएनएस से कहा, "भारत रत्न उन लोगों को दिया जाता है, जो देश को मान और सम्मान दिलाते हैं और यह सिफारिशों और नामांकनों पर आधारित है। मैं कहता हूं कि (जब) इतने लोगों ने सिफारिश की है (इस सम्मान के लिए ध्यान चंद का नाम) तो दादा को क्यों नहीं दिया? "
उन्होंने कहा, " एक हॉकी जादूगर होने के नाते और कोई है, जिसे दुनिया अच्छी तरह से जानती है, क्यों नहीं? उन्हें क्यों नहीं मिलना चाहिए? लोगों ने ध्यान चंद की तुलना फुटबाल में पेले से की थी। मैं 'दादा' को अच्छी तरह से जानता था। मैं उनसे पटियाला में राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) में मिला था। वह दुनिया भर में जाने जाते था, लेकिन उन्होंने कभी इसे दिखाने की कोशिश नहीं की।"
2014 में दिग्गज भारतीय बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर भारत रत्न से सम्मानित होने वाले पहले और एकमात्र खिलाड़ी थे। हालांकि इससे पहले भी, ध्यान चंद को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित करने की मांग उठ चुकी है।
ध्यान चंद एम्स्टर्डम (1928), लॉस एंजेलिस (1932) और बर्लिन (जहां वे कप्तान थे) में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा थे। 1948 में अंतर्राष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने वाले ध्यान चंद ने कई मैच खेले और सैकड़ों गोल किए थे।
देश में हर साल 29 अगस्त को उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है।
सेंटर फॉरवर्ड ध्यान चंद एक निस्वार्थ व्यक्ति और खिलाड़ी थे। मैदान पर, अगर जब उन्हें लगता था कि कोई अन्य खिलाड़ी गोल करने के लिए बेहतर स्थिति में है, तो वह गेंद को अपने पास रखने के बजाय दूसरों को पास कर देते थे।
1936 के बर्लिन ओलंपिक में ब्रिटिश भारतीय सेना के एक प्रमुख ध्यान चंद को देखने के बाद एडोल्फ हिटलर ने उन्हें जर्मन नागरिकता और एक उच्चतर सेना पद देने की पेशकश की थी हालांकि ध्यान चंद ने बड़ी विनम्रता से इसे ठुकरा दिया था।
29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्में ध्यान चंद का वास्तविक नाम ध्यान सिंह था। जैसा कि सबको पता है कि ध्यान सिंह ने अपने हॉकी के कौशल पंकज गुप्ता के सामने जाहिर किया था और गुप्ता ने भविष्यवाणी की थी कि ध्यान सिंह एक दिन 'चांद' (चंद्रमा) की तरह चमकेंगे। इसी से उन्हें 'चांद' नाम मिला और उनका नाम ध्यान चंद पड़ गया।
भारत सरकार ने ध्यान चंद को 1956 में पदम भूषण से सम्मानित किया था। 1980 में दिल्ली के एम्स में उनका निधन हो गया था और अब तक उन्हें भारत रत्न सम्मान का इंतजार है।
- -आईएएनएस