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जलवायु परिवर्तन के चलते 269 हवाई अड्डों पर मंडरा रहा है डूब जाने का खतरा
23-Jan-2021 1:54 PM
जलवायु परिवर्तन के चलते 269 हवाई अड्डों पर मंडरा रहा है डूब जाने का खतरा

2018 में बाढ़ का शिकार जापान का कंसाई एयरपोर्ट; फोटो: न्यूकैसल विश्वविद्यालय

-ललित मौर्य 

वहीं यदि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने की दिशा में उचित कदम न उठाए गए तो सदी के अंत तक 572 हवाई अड्डे पानी में डूब जाएंगे

जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया भर के करीब 269 हवाई अड्डों पर डूब जाने का खतरा मंडरा रहा है| वहीं यदि जलवायु परिवर्तन की रोकथाम पर ध्यान न दिया गया तो सदी के अंत तक यह खतरा बढ़कर 572 हवाई अड्डों को अपनी गिरफ्त में ले लेगा| यह जानकारी न्यूकैसल विश्वविद्यालय द्वारा किए एक शोध में सामने आई है| इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जलस्तर में होने वाली वृद्धि और उसके जहाजों के उड़ान मार्गों पर पड़ने वाले असर को समझने का प्रयास किया है|

इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने 14,000 से ज्यादा हवाई अड्डों सम्बन्धी आंकड़ों, जलवायु परिवर्तन और समुद्र के बढ़ते जल स्तर के प्रभाव का विश्लेषण किया है| यह शोध जर्नल क्लाइमेट रिस्क मैनेजमेंट में प्रकाशित हुआ है| पता चला है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगी तो 100 से भी ज्यादा हवाई अड्डे औसत समुद्र तल से नीचे होंगे|

तापमान में इतनी वृद्धि से 364 हवाई अड्डे पानी में डूब जाएंगे| यदि इसके बाद भी तापमान में वृद्धि जारी रहती है तो सदी के अंत तक 572 हवाई अड्डे बाढ़ का शिकार बन जाएंगे|

शोधकर्ताओं ने बढ़ते समुद्री जल स्तर और उसके हवाई अड्डों पर पड़ने वाले असर के आधार पर एक वैश्विक रैंकिंग भी तैयार की है जिसमें बताया गया है कि किन हवाई अड्डों पर सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा है| इस रैंकिंग के अनुसार यदि तापमान में वृद्धि वर्तमान दर पर जारी रहती है तो बैंकाक का सुवर्णभूमि हवाई अड्डे पर सबसे ज्यादा खतरा है जबकि यदि आरसीपी 8.5+ की बात करने तो शंघाई पुडोंग हवाई अड्डा सबसे ज्यादा खतरे में है|


खतरे में हैं यूरोप, उत्तरी अमेरिका और ओशिनिया के सबसे ज्यादा हवाई अड्डे 

शोध के अनुसार यूरोप, उत्तरी अमेरिका और ओशिनिया के सबसे ज्यादा हवाई अड्डों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा है| वहीं यदी खतरे में पड़े 20 प्रमुख हवाई अड्डों की बात करें तो उनमें पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया के हवाई अड्डों पर खतरा कहीं ज्यादा है| इनमें चीन प्रमुख है|

इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता रिचर्ड डॉसन की मानें तो तटीय क्षेत्रों के यह हवाई अड्डे एयरलाइन नेटवर्क के लिए बहुत मायने रखते हैं| जिनके पानी में डूबने से सदी के अंत तक 10 से 20 फीसदी हवाई मार्गों पर इसका असर पड़ेगा| ऐसे में दुनिया भर में यात्रियों और सामान की आवाजाही पर असर होगा| उनके अनुसार इन हवाई अड्डों के महत्त्व और इसके निर्माण की लागत को देखें तो जलवायु परिवर्तन से निपटने पर किया खर्च काफी कम है| ऐसे में जलवायु परिवर्तन को रोकने की दिशा में सकारात्मक कदम जरुरी हैं| इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाईमेट चेंज (आईपीसीसी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, समुद्र का जलस्तर 3.6 मिमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है| सदी के अंत तक इसके 1.1 मीटर तक बढ़ने का अनुमान है|

हाल ही में नासा ने 2020 को भी दुनिया के सबसे गर्म वर्ष के रूप में मान्यता दी है, जो 2016 के साथ संयुक्त रूप से पहले स्थान पर पहुंच गया है। यह स्पष्ट तौर पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे की ओर इशारा करता है| इससे भी चिंता की बात यह है कि सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर जाएगी। ऐसे में क्या है इसका समाधान। आज पैरिस समझौते पर अमल करने की जरुरत है जिससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित किया जा सके और तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोका जा सके। (downtoearth.org.in)

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