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वाशिंगटन, 17 सितंबर (आईएएनएस)| वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 2.97 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है, जबकि इससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़कर 939,000 हो गई हैं। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने गुरुवार को दी। विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि गुरुवार की सुबह तक कुल मामलों की संख्या 29,760,579 हो गई, वहीं इससे होने वाली मृत्यु की संख्या बढ़कर 939,427 हो गई।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका 6,629,702 मामलों के साथ प्रभावित देशों की सूची में शीर्ष पर बना हुआ है। यहां अब तक 196,752 लोगों की कोविज-19 से मौत हो चुकी है।
कोविड-19 के मामलों की ²ष्टि से भारत इस समय 5,020,359 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि देश में मौत का आंकड़ा 82,066 है।
सीएसएसई के अनुसार, मामलों की ²ष्टि से ब्राजील तीसरे (4,419,083) स्थान पर है और इसके बाद रूस (1,075,485), पेरू (738,020), कोलंबिया (736,377), मैक्सिको (680,931), दक्षिण अफ्रीका (653,444), स्पेन (614,360), अर्जेंटीना (589,012), चिली (439,287), फ्रांस (443,869), ईरान (410,334), ब्रिटेन (380,668), बांग्लादेश (342,671), सऊदी अरब (327,551), पाकिस्तान (303,634), इराक (303,059), तुर्की (296,391), इटली (291,442), फिलिपींस (272,934), जर्मनी (266,869), इंडोनेशिया (228,993), इजरायल (170,465), यूक्रेन (166,694), कनाडा (141,852), बोलिविया (128,872), कतर (122,449), इक्वाडोर (121,525), रोमानिया (107,011), कजाकिस्तान (106,984), डोमिनिकन गणराज्य (105,521), पनामा (103,466) और मिस्र (101,500) हैं।
वहीं 10,000 से अधिक मौतों वाले अन्य देश ब्राजील (134,106), मैक्सिको (71,978), ब्रिटेन (41,773), इटली (35,645), फ्रांस (31,056), पेरू (30,927), स्पेन (30,243), ईरान (23,632), कोलंबिया (23,478), रूस (18,853), दक्षिण अफ्रीका (15,705), चिली (12,058), अर्जेंटीना (12,116) और इक्वाडोर (10,996) है।
ढाका, 17 सितंबर (आईएएनएस)| बांग्लादेश में हजारों छात्रों ने मदरसा के प्रमुख (अमीर) और हिफाजत-ए-इस्लामी के प्रमुख अहमद शफी के बेटे अनस मदानी को चटगांव के हथजरी दारुल उलूम मुईनुल इस्लाम मदरसा से निष्कासित करने की मांग को लेकर धरना दिया। छात्रों ने शफी को मदरसे के प्रमुख के तौर पर हटाने की भी मांग की।
विभिन्न बीमारियों से पीड़ित शफी (103) को लेकर विरोध बुधवार को जौहर की नमाज के बाद शुरू हुआ। छात्रों ने उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने मौलाना अनस मदानी के कारण 11 शिक्षकों और अधिकारियों को बिना किसी कारण के बर्खास्त कर दिया। पता चला है कि शफी अपने बुढ़ापे के कारण लंबे समय से मदरसे की देखरेख करने में असमर्थ हैं।
हथजरी पुलिस थाना प्रभारी और उपजिला निर्बही अधिकारी की टिप्पणियां इस मामले में नहीं मिल सकीं।
विरोध के दौरान अनस मदानी पर हथजरी मदरसा, हेफजात-ए-इस्लाम और कौमी मदरसा बोर्ड (बीईएफएसी) को प्रभावित करने का भी आरोप लगाया गया।
हिफाजत-ए-इस्लाम प्रमुख शफी जनवरी 2019 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में नजर आए थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि लड़कियों को पढ़ाई करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने वहां मौजूद लोगों से कहा था कि वे वादा करें कि वे रोजाना नमाज पढ़ेंगे और लड़कियों को हिजाब पहनाएंगे।
एक ऑडियो में हिफाजत प्रमुख ने कहा था कि माता-पिता अपनी बेटियों को पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ाएं ताकि वे अपने पति के पैसे पर नजर रख सकें और उन्हें चिट्ठी लिख सकें।
बता दें कि शफी को उनकी आलोचनात्मक टिप्पणियों के लिए उन्हें 'टेंटुल हुजूर' (इमली मुल्ला) कहा जाता है क्योंकि उन्होंने एक बार 'टेंटुल' (इमली) की तुलना महिलाओं से करते हुए कहा था कि वे भी पुरुषों के मुंह में पानी ला देती हैं।
सैन फ्रांसिस्को, 17 सितंबर (आईएएनएस)| अमेरिका के कैलिफोर्निया को 7 हजार से अधिक जंगली आग का सामना करना पड़ा है। राज्य के गवर्नर गेविन न्यूजोम ने कहा है कि इस साल लगीं 7,860 जंगली आग के कारण 34 लाख एकड़ (लगभग 13,759 वर्ग किमी) से अधिक जमीन जल गई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की खबर के मुताबिक, कैलिफोर्निया के फॉरेस्ट्री एंड फायर प्रोटेक्शन (कैल फायर) और यूएस फॉरेस्ट सर्विस मोंटाना, उटा, टेक्सस और न्यूजर्सी के कर्मचारियों की मदद से इस आग से लगातार लड़ रही हैं।
न्यूजोम ने कहा है कि राज्य में 17,000 से अधिक अग्निशामक और 2,200 इंजन हैं।
मेंडोकिनो काउंटी में राज्य की सबसे बड़ी अगस्त कॉम्प्लेक्स फायर बुधवार को भी बढ़ती रही। यहां अब तक 7,96,651 एकड़ (लगभग 3,224 वर्ग किमी) जमीन जल चुकी है।
फ्रेस्नो और मादेरा काउंटी में लगी क्रीक फायर के कारण 2,20,025 एकड़ (लगभग 890 वर्ग किमी) जमीन जल चुकी है, जो इन काउंटी का 18 प्रतिशत हिस्सा है।
बटल, प्लमस और यूबा काउंटियों में नॉर्थ कॉम्प्लेक्स फायर से 2,73,335 एकड़ (लगभग 1,106 वर्ग किमी) जमीन जल चुकी है।
सैन फ्रांसिस्को क्रोनिकल ने बुधवार को बताया कि यूरोपियन कमीशन साइंस एजेंसी कोपर्निकस एटमॉस्फियर मॉनीटरिंग सर्विस के अनुसार, अमेरिका के पश्चिमी तटीय कैलिफोर्निया, ओरेगन और वाशिंगटन की घातक जंगली आग से निकला धुआं इस सप्ताहांत तक अटलांटिक महासागर के ऊपर चला जाएगा और यूरोप के वातावरण को भी प्रभावित करेगा।
विलमिंगटन: डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन ने कहा कि कोरोनावायरस के संभावित टीके को लेकर उन्हें वैज्ञानिकों की बात पर तो विश्वास है, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर नहीं.
अमेरिका में 3 नवम्बर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले इन दिनों टीके का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है.
बाइडेन ने कोरोनावायरस के संभावित टीके पर जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों से चर्चा करने के बाद डेलावेयर के विलमिंगटन में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण के वितरण और कोरोनावायरस परीक्षण को लेकर ट्रंप की ‘अक्षमता और बेईमानी’ का जिक्र किया.
उन्होंने कहा कि अमेरिका ‘टीके को लेकर उन विफलताओं को दोहरा नहीं सकता.’
बाइडेन ने कहा, ‘मुझे टीके पर भरोसा है, मुझे वैज्ञानिकों पर भरोसा है लेकिन मुझे डोनाल्ड ट्रंप पर भरोसा नहीं है, और इस समय अमेरिकी लोगों को भी (ट्रंप पर भरोसा) नहीं है.’
ट्रंप ने बुधवार को दावा किया कि कोरोनावायरस का टीका मध्य अक्टूबर तक आ जाएगा. जबकि इससे पहले रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केन्द्र के निदेशक रॉबर्ट रेडफील्ड ने कांग्रेस की सुनवाई के दौरान कहा था कि अमेरिका के अधिकतर लोगों तक 2021 ग्रीष्मकाल से पहले टीका नहीं पहुंच पाएगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बाइडेन ओर ट्रंप आमने-सामने हैं.(theprint)
- अंकुर जैन
भारतीय राजनीति में रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती. लेकिन अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 70 बरस के हो गए हैं तो सभी निगाहें इस पर होंगी कि वो यहां से आगे क्या रुख़ लेंगे और उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
अगले कुछ वर्ष पीएम मोदी की विरासत के लिए बेहद महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने अपने नेताओं के लिए स्वैच्छिक सेनानिवृति की उम्र 75 वर्ष तय की है. इसका मतलब ये है कि प्रधानमंत्री मोदी के पास अभी पाँच वर्ष और हैं. पीएम मोदी के पास साल 2024 के आम चुनाव के पहले भी चार साल हैं.
लेकिन 70 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री के सपनों के समक्ष तीन महत्वपूर्ण चीज़ें हैं: अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और उनकी राजनीतिक शैली.
नरेंद्र मोदी शासन के बीते छह सालों के दौरान उनके विरोधियों में उनके प्रति असंतोष और बढ़ा है, भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है, सत्ता का ध्रुवीकरण और केंद्रीकरण हुआ है.
हालांकि बहुत से लोग पीएम मोदी शासन करने की शैली का समर्थन करते हुए ये मानते हैं कि उन्होंने भ्रष्टाचार को काबू में करने की कोशिश की है, जिसकी वजह से सरकारी मदद का लाभ ग़रीबों और असहाय लोगों तक पहुंच रहा है.
अमरीकी चुनाव पर निगाहें
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सैनिकों के जमावड़े के मद्देनज़र पीएम मोदी की असली परीक्षा उनकी विदेश नीति होगी.
साल 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी और शी ज़िनपिंग 18 बार मिले चुके हैं लेकिन ऐसा लगता है कि यह रिश्ता 'हैंडशेक' से आगे नहीं बढ़ पाया.
बीजेपी की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के सदस्य शेषाद्री चारी कहते हैं कि प्रधानमंत्री को 'ऑउट ऑफ़ द बॉक्स' (लीक से हटकर) सोचना होगा, विदेशी व्यापार पर फिर से बातचीत करनी होगी, उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था के साथ संतुलन के लिए नई रणनीति बनानी होगी और उन्हें ये सब भारत की सामरिक स्वायत्तता को प्रभावित किए बगैर करना होगा.
विदेश नीति के विशेषज्ञ और संघ प्रचारक चारी का मानना है कि कोरोना वायरस महामारी के बाद प्रधानमंत्री के सामने विदेश नीति को लेकर कई चुनौतियां हैं.
वो कहते हैं, "2014 से ही प्रधानमंत्री ने 'नेबरहुड फर्स्ट' की विदेश नीति को तरजीह दी है. लेकिन छह साल बाद बदलती हुई ' जियो पॉलिटिक्स' से नई चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं. अमरीकी चुनाव के नतीजे, चीन के साथ अमरीका के व्यापार, भारत के ईरान के साथ रिश्ते और रूस से हमारा रक्षा आयात तय करेंगे. इन सब से ऊपर चीन के साथ प्रतिस्पर्धा और आर्थिक विषमता को कम करने के लिए इस क्षेत्र के देशों के साथ हमारा व्यापार भी अमरीकी चुनाव से ही जुड़ा है."
इन चुनौतियों के लिए तैयार रहें प्रधानमंत्री
अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिंदू' में राष्ट्रीय और कूटनीतिक मामलों की संपादक सुहासिनी हैदर का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी के सामने एलएसी पर चीनी सैनिकों की मौजूदगी तात्कालिक चुनौती है और इसके अलावा कोरोना संकट से उपजी अन्य चुनौतियाँ भी हैं.
वो कहती हैं, "कोरोना संकट के बाद पूरी दुनिया में वैश्वीकरण विरोधी और संरक्षणवादी विचारधारा उफ़ान पर है. ऐसे हालात में प्रवासी भारतीयों के लिए रोज़गार के मौक़े तेज़ी से कम हो रहे हैं. आने वाले वक़्त में अमरीका अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को हटा सकता है. भारत को इसके लिए और पड़ोस में तालिबान के मुख्यधारा में आने की संभावित स्थिति के लिए तैयार रहना होगा."
नरेंद्र मोदी को आज दुनिया जैसे देखती है, उसके लिए उनकी टीम यानी बीजेपी सदस्यों और पीआर एजेंसियों ने बरसों तक काम किया है.
हाँलाकि 2002 के गुजरात दंगों के बाद नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए), नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजन्स (एनआरसी) और जम्मू-कश्मीर को ख़ास दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने से पीएम मोदी की वैश्विक छवि को धक्का लगा है.
सुहासिनी कहती हैं, "मोदी सरकार के सामने इसकी घरेलू नीतियों से उपजी चुनौतियाँ अब भी मुंह बाए खड़ी हैं. मसलन, जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद पड़ोसी देशों की प्रतिक्रियाएँ, सीएए और एनआरसी जैसे फ़ैसले."
पैसा बोलता है
नरेंद्र मोदी जब सत्ता में आए तब भारत में यूपीए विरोधी लहर थी और उसी लहर की सवारी कर उन्हें जीत हासिल हुए.
उन्होंने चुनावों से आर्थिक मोर्चे पर पहले यूपीए सरकार की नाकामियाँ गिनाई थीं. लेकिन ख़ुद पीएम मोदी ने जिन 'अच्छे दिनों' का वादा किया था, वो काफ़ी दूर मालूम पड़ते हैं.
विपक्षी दल पीएम मोदी और उनकी नीतियों को रोज़गार-विरोधी बताते हैं. प्रधानमंत्री के लिए निढाल होती अर्थव्यवस्था और लगातार उछाल मारती बेरोज़गारी जैसी बीमारियों के लिए वैक्सीन ढूँढना सबसे पहली ज़रूरत है.
हाँलाकि राज्यसभा सांसद, लेखक और अर्थशास्त्री स्वपन दासगुप्ता को लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब रहे हैं और वो सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
वो कहते हैं, "अभी जैसी स्थिति है, वैसी पहले कभी नहीं रही और हमारी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा अभी सामान्य हालत में नहीं है. नरेंद्र मोदी बाज़ार में पैसा डालने में कामयाब रहे हैं. जनता के बीच यह मत है कि प्रधानमंत्री ने अच्छा काम किया है.''
''उन्होंने लोगों को यक़ीन दिलाया है कि कोरोना संकट के दौरान भी 'आपदा में अवसर' है. लेकिन किसी के पास कोरोना संकट से निबटने का पक्का उपाय नहीं है. न तो किसी के पास इसका प्रभावी चिकित्सकीय निदान है और न ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का उपाय."
दासगुप्ता मानते हैं कि पीएम मोदी की 'आत्मनिर्भर भारत' जैसी नीतियाँ, वैश्विक बाज़ार का रास्ता बंद किए बिना देश को सही दिशा में रोशनी दिखाती हैं.
हाँलाकि वो इस बात से भी सहमत हैं कि प्रधानमंत्री के लिए लोगों का सरकार में भरोसा बनाए रखना और उन पर रोजी-रोटी की चिंता हावी न होने देना, एक चुनौती साबित होगी.
लोकप्रियता के सहारे कब तक?
आर्थिक पत्रकार और 'द लॉस्ट डिकेड' किताब की लेखिका पूजा मेहरा का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने बढ़ती आर्थिक कठिनाइयों की ज़िम्मेदारी लेने से मुँह मोड़ लिया है.
वो कहती हैं, "सरकार के लिए आय के रास्ते बंद हो गए हैं और इसकी वजह से जनवादी नीतियों के लिए आने वाला उसका ख़र्च भी सीमित हो गया है. मोदी सरकार के लिए यह प्राथमिक चुनौती होगी.''
''सरकार समय पर भुगतान करने और कर्ज़ चुकाने में असफल हो रही है. इस वजह से भी अर्थव्यवस्था का बोझ कम नहीं हो पा रहा है. सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाला डीए रोका जा चुका है. क्या एक ऐसा वक़्त आएगा जब सरकार अपने कर्मचारियों को वेतन और पेंशन भी नहीं दे पाएगी?"
लेकिन क्या आगामी बिहार और पश्चिम बंगाल चुनाव में मतदाताओं के लिए अर्थव्यवस्था मुद्दा बन पाएगी?
इसका जवाब पूजा मेहरा 'हाँ' में देती हैं. वो कहती हैं, "नौकरियों और रोज़गार के पर्याप्त अवसर न मिलने के बावजूद वोटरों का भरोसा पीएम मोदी में बना रहा है. लेकिन अब सवाल है कि प्रधानमंत्री अपनी लोकप्रियता का सहारा कब तक ले सकते हैं."
प्रधानमंत्री को करीब से जानने वालों का दावा है कि कूटनीति और राजनीति में वो माहिर हैं लेकिन अर्थव्यवस्था से जुड़े फ़ैसलों के लिए वो अपने सलाहकारों पर भरोसा करते हैं. पूजा मेहरा जैसे अन्य कई विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री के यही सलाहकार समस्या की जड़ हैं.
वो कहती हैं, "पीएम मोदी पेशेवर अर्थशास्त्रियों में कम भरोसा रखते हैं. उन्होंने अपने ऐसे सलाहकारों की सुनी जिन्होंने उन्हें नोटबंदी जैसे असामान्य प्रयोग करने को कहा. इन प्रयोगों से अर्थव्यवस्था को फ़ायदा कम, नुक़सान ज़्यादा हुआ है."
राजनीति की पिच
नरेंद्र मोदी ने 1980 के आख़िर में सक्रिय राजनीति में कदम रखा था. ऐसा लगता है कि तब से लेकर अब तक उन्होंने अपने लिए जो योजनाएँ बनाईं, वो उनके पक्ष में साबित होती रहीं. 70 वर्षीय नरेंद्र मोदी 50 वर्षीय राहुल गाँधी की तुलना में राजनीतिक रूप से कई कहीं ज़्यादा मज़बूत हैं. लेकिन उनका भविष्य कैसा होगा?
अंग्रेज़ी अख़बार 'इंडियन एक्सप्रेस' में डेप्युटी एडिटर रहीं सीमा चिश्ती कहती हैं, "लोकतंत्र में लोकप्रिय नेताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती तब आती है जब वो किसी शख़्स या संगठन को चुनौती नहीं मानते. ये स्थिति उन्हें हरा देती है. मुखर विपक्ष न सिर्फ़ लोकतंत्र के लिए अच्छा होता है बल्कि उनके लिए भी फ़ायदेमंद होता है जो सत्ता में काबिज हैं. इससे वो नियंत्रण में रहते हैं."
प्रधानमंत्री मोदी आने वाले कुछ वर्षों में अपनी विरासत बनाने के काम में जुटे रहेंगे.
शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने हाल ही में कहा था कि दिल्ली के राजपथ का पुनर्निमाण पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. इस प्रोजेक्ट के डिज़ाइन का जिम्मा अहमदाबाद के आर्किटेक्ट बिमल पटेल को दिया गया है. बिमल पटेल उस वक़्त से प्रधानमंत्री के करीबी रहे हैं जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
लेकिन पीएम मोदी रिटायर होने के बाद भारत और दुनिया की यादों में किस रूप में रहना चाहते हैं? उनके सामने कौन सी राजनीतिक चुनौतियाँ हैं?
इस बारे में सीमा चिश्ती कहती हैं, "मोदी हिंदुत्व की विचारधारा में पूरा भरोसा रखते हैं. लेकिन एक वैश्विक नेता के तौर पर वो महात्मा गाँधी को याद करते हैं और समावेशी भारत की बात करते हैं. इन दोनों में घोर विरोधाभास है. देश में वो सबको एक विचारधारा के भीतर लाना चाहते हैं लेकिन विदेश में संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का दावा करते हैं."
'प्रधानमंत्री के सामने कोई चुनौती नहीं'
वहीं, 'इंडिया टुडे' के उप संपादक उदय महुरकर का मानना है कि जब तक कांग्रेस की छवि नहीं बदलती, प्रधानमंत्री मोदी के सामने कोई चुनौती नहीं होगी.
वो कहते हैं, "जब तक कांग्रेस अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण में जुटी रहेगी, पीएम मोदी के सामने कोई चुनौती नहीं होगा. आम जनता के मन में मोदी की छवि एक ईमानदार और मज़बूत नेता की है."
महुरकर के मुताबिक़, "मोदी सरकार ने जिस गति से अपने वादे पूरे किए हैं, वो प्रभावशाली हैं. ज़्यादातर लोगों को, ख़ासकर ग्रामीण लोगों को उनकी योजनाओं का फ़ायदा मिला है. मोदी के आलोचका ऐसा दिखाते हैं कि उनके सामने कड़ी चुनौतियाँ हैं लेकिन असल में उनके सामने कोई चुनौती नहीं है. कोरोना संकट के बाद पीएम मोदी ज़्यादा मज़बूत होकर उभरेंगे."
लेकिन अपने 70वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री क्या चाहेंगे? ज़्यादा मज़बूत मोदी, वैश्विक मोदी, ज़्यादा हिंदूवादी मोदी, ज़्यादा स्वीकार्य मोदी या फिर ये सभी?(bbc)
- Shweta Chauhan
सभी देश विकास की होड़ में इस कदर मसरूफ़ है कि उन्हें पर्यावरण और जैव विवधता के सरंक्षण में कोई दिलचस्पी नहीं रही है। भारत में विवादित पर्यावरण प्रभाव आंकलन 2020 का मसौदा भी इन्हीं उदाहरणों में से एक है जिससे पर्यावरण के प्रति हमारी चिंता साफ़ ज़ाहिर होती है। अपने आप को विकसित देशों की कतार में लाने के लिए जैव विविधता को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया गया है। इसकी वजह से पशु पक्षियों की कई प्रजातियां या तो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने की कगार पर आ गई हैं। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 में ये चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।
दरअसल, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के द्विवार्षिक प्रकाशन के तेरहवें संस्करण में लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (एलपीआई) के माध्यम से प्राकृतिक स्थिति का आंकलन किया गया है। लीविंग प्लैनेट इंडेक्स के मुताबिक 1970-2016 के बीच धरती पर रहने वाले जीव जंतुओं की आबादी में करीब 68 फीसद की गिरावट देखी गई है। इनमें हवा, पानी और ज़मीन पर रहने वाले सभी छोटे और बड़े जीव शामिल हैं। इन आंकड़ों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इंसान प्रकृति पर किस तरह के ज़ुल्म ढा रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक बीते पांच दशकों की विकास की लड़ाई में करीब 10 में से 7 जैव विविधता की प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं। वहीं, ताज़े पानी में रहने वाली करीब 84 फीसद प्रजातियों में कमी आई है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के मुताबिक जंगली जानवरों की संख्या तेज़ी से घट रही है क्योंकि प्रकृति के प्रति इंसानों की कठोरता समय के साथ बढ़ती जा रही है।
बात अगर हम भारत में इन हालातों की बात करें तो डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की प्रोग्राम डायरेक्टर सेजल वोराह के मुताबिक इस बारे में भारत की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं है। लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 के मुताबिक भारत में 12 फीसद स्तनधारी जीव और 3 फीसद पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस बड़े बदलाव की वजह से ही कोविड-19 जैसे जानलेवा वायरस पैदा हो रहे हैं।
वन्यजीवों की आबादी में गिरावट का सीधा मतलब यह है कि हमारी धरती हमें चेतावनी दे रही है कि हमारा तंत्र पूरी तरह से फेल हो रहा है।
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 के मुताबिक दक्षिण अमेरिका और केरेबियन क्षेत्र में करीब 94 फीसद तक जैव विविधता में कमी आई है। वहीं एशिया प्रशांत क्षेत्र में करीब 45 फीसद तक इसमें गिरावट दर्ज की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार ताज़े पानी में रहने वाली तीन प्रजातियों में से एक प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। भारत के संदर्भ में भी यह स्थिति भयंकर है। सेजल वोराह के मुताबिक देश में वर्ष 2030 तक पानी की मांग उसकी पूर्ति के हिसाब से दोगुनी हो जाएगी। 20 में से 14 नदियों के तट सिकुड़ रहे हैं। उनके मुताबिक भारत के एक तिहाई नम भूमि वाले क्षेत्र बीते चार दशकों के दौरान खत्म हो चुके हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि साल 2018 में आए चक्रवाती तूफानों की वजह से दक्षिणी अरब प्रायद्वीप में जबरदस्त बारिश देखने को मिली थी और यही बाद में टिड्डी दलों के प्रजनन स्थल बने। उसी साल गर्मियों में जबरदस्त लू चली और भारत, पाकिस्तान के कुछ इलाकों को सूखे की मार भी झेलनी पड़ी थी। अभी हाल में ही भारत के कई राज्यों में टिड्डी दलों के आक्रमण की खबर भी बेहद चर्चा में रही थी जिससे किसानों की फसल को खासा नुकसान पहुंचा है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के महानिदेशक मैक्रो लैम्बरतिनी के मुताबिक यह रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करती है कि इंसान ने प्रकृति से खिलवाड़ कर खुद पर और इस धरती पर रहने वाले असख्ंय जीव-जंतुओं के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। उन्होंने कहा कि हम सामने आए दिन इन सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। वन्यजीवों की आबादी में गिरावट का सीधा मतलब यह है कि हमारी धरती हमें चेतावनी दे रही है कि हमारा तंत्र पूरी तरह से फेल हो रहा है। समुद्रों और नदियों की मछलियों से लेकर, मधुमक्खियों तक जो हमारी फसलों के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं, वे अब नष्ट हो रही हैं। वन्यजीवों में कमी होना सीधे तौर पर मानव के पोषण, खाद्यान्न सुरक्षा और करोड़ों लोगों की आजीविका पर घातक प्रभाव डालता है।
जैव विविधता और पानी के संकट को जलपुरुष डॉक्टर राजेंद्र सिंह इससे कहीं अधिक बड़ी समस्या मानते हैं। उनके मुताबिक भारत के लगभग 365 जिलों में पेयजल उपलब्ध नहीं है। 190 जिले बाढ़ की समस्या से जूझ रहे है। उनका कहना है कि यदि यही हालात रहे तो आने वाले सालों में यूरोप, अफ्रीका और सेंट्रल एशिया में पानी को लेकर चिंता बढ़ती जाएगी। उनके मुताबिक यूरोप की तरफ रुख करने वाली अफ्रीकी या एशियाई लोगों को वहां के लोग ‘क्लाइमेटिक रिफ्यूजी’ कहने लगे हैं। जिसका मतलब है कि जहां से ये लोग आए हैं वहां पर कई तरह का प्राकृतिक संकट है। इस पलायन की वजह से यूरोप का परिदृश्य बदल रहा है। वहीं, पहले अमेज़न और अब कैलिफ़ोर्निया के जंगलों में लगी आग, अम्फान, निसर्ग, क्रिस्टबॉल चक्रवात, आए दिन भूकंप की घटनाएं कई जगहों पर भारी तबाही मचा चुकी हैं लेकिन ये सारी तबाही इंसानों की विकास की होड़ के कारण ही है जिसका खामियाज़ा आज पूरी दुनिया भुगत रही है।
हालांकि, इस बुरे दौर में कुछ अच्छी ख़बरें भी सुनने को मिली क्योंकि कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन से हमारी प्रकृति इंसानों के घरों में कैद होने के बाद अपनी मरम्मत में जुट गई। पंजाब के जालंधर से ऐसी तस्वीरें साझा की जिनमें वहां से लोगों को हिमाचल प्रदेश में स्थित धौलाधार पर्वत श्रृंखला की चोटियां दिख रही हैं। प्रदूषण कम होने की वजह से लगभग पूरा देश इस तरह का नीला आसमान देख पा रहा था। दिल्ली से होकर बहने वाली यमुना नदी को इतना साफ देख कर लोग काफी हैरान थे। इस नदी को साफ करने की कोशिश में सालों से सरकारों ने कितनी ही योजनाएं और समितियां बनाईं और कितना ही धन खर्च किया लेकिन ऐसे नतीजे कभी नहीं दिखे जो लॉकडाउन के दौरान सामने आए हैं। इसी के साथ कई जानवर भी बिना डर के सड़कों पर भ्रमण करते नज़र आए। लेकिन अब डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की यह नयी रिपोर्ट इशारा करती है कि हम इंसानों के कारण प्रकृति का कितना दोहन हो रहा है। इस रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि अगर इस संबंध में तुरंत कदम उठाए जाए तो जंगल का इलाका बढ़ सकता है। साथ ही अगर प्रकृति का संरक्षण करना है तो हमें उर्जा पैदा करने के तरीकों को भी बदलना होगा और समुद्र को प्रदूषण से बचाना होगा।
(यह लेख पहले फेमिनिज्म इन इंडिया की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ है.)
- Eesha
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले पर अभिनेत्री कंगना रनौत शुरू से ही काफ़ी मुखर रही हैं। मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर बेहद आपत्तिजनक और विवादित बयान देने के साथ-साथ उन्होंने बॉलीवुड के कई अभिनेता और अभिनेत्रियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। साथ ही उन्होंने यह दावा किया है कि वह फ़िल्मी दुनिया के कई बड़े राज़ जानती हैं। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कंगना ने कई वीडियो जारी किए जहां उन्होंने कई आपत्तिजनक बयान दिए। अपने एक ट्वीट में उन्होंने यह तक कहा था कि उन्हें मुंबई और ‘पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर’ में कोई फ़र्क नज़र नहीं आ रहा।
कंगना रनौत के इस बयान की कठोर निंदा हुई। कई लोगों का कहना रहा कि इस तरह उन्होंने मुंबई शहर का अपमान किया है। महाराष्ट्र सरकार के प्रवक्ता संजय राउत ने भी कंगना की बातों पर आपत्ति जताई और उनके लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। कंगना ने ट्विटर पर यह कहा कि उन्हें खास सुरक्षा की ज़रूरत है क्योंकि वे मुंबई पुलिस और सरकार पर भरोसा नहीं कर सकतीं, जिसके बाद केंद्र सरकार ने उनके लिए ‘वाई-प्लस’ सुरक्षा के प्रबंध के लिए अनुमति दी। ट्विटर पर कंगना ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद दिया है और यह कहा है कि अब कोई ‘फ़ासीवादी’ किसी देशभक्त की आवाज़ नहीं दबा पाएगा।
हाल ही में मुंबई की सड़कों पर एक कलाकार ने ‘वॉक ऑफ़ शेम’ नाम की ‘स्ट्रीट आर्ट’ पेंटिंग भी बनाई थी, जिसमें उन सभी लोगों के नाम दिए गए जो सुशांत की मौत को सनसनीखेज बनाकर सुर्खियां बटोर रहे हैं। कई राजनेताओं और पत्रकारों के साथ इसमें कंगना का भी नाम था। कंगना रनौत ने इस पर यह प्रतिक्रिया दी कि उनका चरित्र हनन किया जा रहा है, जिसकी वजह से वे अब मुंबई में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहीं। कला, ख़ासकर स्ट्रीट आर्ट या ग्रैफिटी, समकालीन परिस्थितियों के बारे में कलाकार के विचार व्यक्त करने और विरोध प्रकट करने का एक साधन मात्र है। ‘वॉक ऑफ़ शेम’ चित्रकला के निर्माता ने भी इसके माध्यम से कंगना रनौत जैसे लोगों द्वारा सुशांत की मृत्यु पर पब्लिसिटी लूटने पर आपत्ति जताई है। इसमें कोई अश्लीलता नहीं थी, न ही किसी तरह की हिंसात्मक भाषा का प्रयोग किया गया। कंगना को किसी धमकी या शारीरिक और मानसिक हमले का भी सामना नहीं करना पड़ा है। सिर्फ़ निंदा और आलोचना से बचने के लिए एक व्यक्ति को सरकार से सुरक्षा की मांग करनी पड़ी यह सोचकर आश्चचर्य होता है। ऐसे में यह सवाल पूछना लाज़मी है कि कंगना को इतने ऊंचे दर्जे की सिक्योरिटी क्यों दी जा रही है?
‘वाई-प्लस’ सिक्योरिटी फोर्स 11 से 22 सुरक्षा कर्मियों से बना होता है, जिनमें से एक या दो कमांडो भी होते हैं। कंगना रनौत की सुरक्षा के लिए जिन्हें तैनात किया गया है, वे सब सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स यानी सीआरपीएफ़ के जवान हैं। इससे पहले कभी किसी बॉलीवुड कलाकार की निजी सुरक्षा के लिए अर्धसैनिक बलों की ज़रूरत नहीं पड़ी है। आमतौर पर इस तरह की सुरक्षा मंत्रियों और विदेशी अतिथियों को दी जाती है। वह भी यह तय करने के बाद कि उन्हें किस तरह का खतरा होने की संभावना है।
देशभर में ऐसी हज़ारों औरतें हैं जिनके पास कंगना रनौत की तरह विशेषाधिकार नहीं हैं और न वे संभ्रांत हैं, जिनके लिए उनकी रोज़ की ज़िंदगी एक संघर्ष से कम नहीं है।
जहां लगभग हर सेलेब्रिटी के पास उसके निजी बॉडीगार्ड्स होते हैं, क्या सचमुच एक अभिनेत्री की सुरक्षा के लिए कमांडो और सीआरपीएफ तैनात करने की ज़रूरत है? इससे भी ज़रूरी सवाल यह है कि क्या देश की बाकी औरतों को इसकी आधी सिक्योरिटी भी मिलती है? कंगना रनौत को वह सिक्योरिटी दी गई है जो पूरे देश में सिर्फ़ 15 लोगों के पास है। देशभर में ऐसी लाखों औरतें हैं जिनके पास कंगना रनौत की तरह विशेषाधिकार नहीं हैं और न वे सभ्रांत हैं, जिनके लिए उनकी रोज़ की ज़िंदगी एक संघर्ष से कम नहीं है। ‘वाई-प्लस’ तो छोड़ो, क्या सरकार उन्हें न्यूनतम सुरक्षा और संसाधन दिलाने में सक्षम रही है?
हमारे देश में औरतों की एक बड़ी संख्या अपने ही घरों में सुरक्षित नहीं हैं। इन औरतों के लिए शोषण, बलात्कार, हिंसा हर रोज़ की बात है और कई क्षेत्रों में सारी ज़िंदगी अपने उत्पीड़कों के साथ गुज़ारनी पड़ती है क्योंकि कहीं और जाने का विकल्प उनके पास नहीं रहता। कानून व्यवस्था भी उनका साथ नहीं देती और कई बार उन्हें अपने ही शोषण के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। ऐसे में एक संभ्रांत सेलेब्रिटी को अगर ‘वाई-प्लस’ सिक्योरिटी सिर्फ़ आहत भावनाओं के आधार पर दी जाए तो यह हर उस औरत के साथ नाइंसाफी है जिसे हिंसा और उत्पीड़न से न्यूनतम सुरक्षा भी नहीं मिलती। यहां इस बात पर गौर करना भी ज़रूरी है कि कंगना वर्तमान केंद्र सरकार की समर्थक हैं और उनका प्रचार करने में काफ़ी सक्रिय रही हैं। यह कहना ज़रूरी इसलिए है क्योंकि पिछले छह सालों में हर महिला, जिसने सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई हो, मानसिक उत्पीड़न, यौन शोषण, और कई क्षेत्रों में हत्या की शिकार हुई हैं।
पिछले ही हफ़्ते 5 सितंबर में पत्रकार गौरी लंकेश की पुण्यतिथि मनाई गई। आज से तीन साल पहले साल 2017 में गौरी लंकेश की आवाज़ दबाने के लिए उनकी हत्या कर दी गई थी। उनकी तरह ऐसी कई महिला पत्रकार और हैं जिन्हें वर्तमान सरकार की निष्पक्ष आलोचना के लिए भद्दी भाषा में धमकियां दी गई हैं और सोशल मीडिया के जरिए जिन पर रोज़ आक्रमण किया जाता है। पत्रकारों के अलावा तमाम महिला छात्र नेताओं, कलाकारों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं इत्यादि ने भी खुलेआम सरकार का विरोध किया है जिनके लिए उन पर हर तरह का हमला किया गया है।
क्यों इन सबके बावजूद भी इन महिलाओं को सरकार की तरफ़ से कोई सुरक्षा या आश्वासन नहीं मिलता, बल्कि अक्सर सरकार उन पर बेबुनियाद आरोप लगाकर उनके ही खिलाफ़ कार्रवाई करती है? क्यों कुछ मामूली टिप्पणियों की वजह से सरकार समर्थक कंगना की सुरक्षा के लिए कमांडो रखे जाते हैं? इसके पीछे सिर्फ़ राजनीति के अलावा और कुछ नहीं है। सुरक्षा इस देश के हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। किसी एक व्यक्ति को सिर्फ़ सेलेब्रिटी होने और सरकार के पक्ष में बोलने के लिए तथाकथित रूप से विशेष सुरक्षा और सुविधाएं दी जाएं तो यह एक तरह से असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक है।
(यह लेख पहले फेमिनिज्म इन इंडिया की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ है.)
- Ritika Srivastava
कोरोना काल में हम सभी को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लाखों लोग गरीबी, भुखमारी, बेरोजगारी, बीमारी की चपेट में हैं अथवा धकेल दिए गए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में लोगों ने ऑनलाइन पढ़ना-पढ़ाना शुरू कर दिया है। मैंने कुछ शिक्षक, शिक्षिकाओं और छात्र, छात्राओं से ऑनलाइन शिक्षा की चुनौतियों के विषय में बात की। कई छात्रों और शिक्षकों ने यह साझा किया कि ऑनलाइन टीचिंग-लर्निंग, इंटरनेट और टेक्नोलॉजी के संसाधन ना होने की वजह से गरीब और वंचित बच्चों के लिए शिक्षा पाना एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। इतना ही नहीं संसाधन संपन्न छात्र भी ऑनलाइन शिक्षा से अब उकता गए हैं। छात्रों और शिक्षकों का एक तबका है जिनके घर में आए दिन परिवार का कोई ना कोई सदस्य कोविड-19 से संक्रमित हो रहा है या अवसाद और दूसरी बीमारियों से ग्रसित है। ऐसी स्थिति में भी शिक्षकों और बच्चों से उम्मीद की जा रही है कि वे ऑनलाइन कक्षाओं में मौजूद रहें। कुछ प्राइवेट स्कूल में बच्चों को ऑनलाइन क्लास में स्कूल ड्रेस पहनकर स्कूल के समय पर ऑनलाइन कक्षा के लिए मौजूद होना अनिवार्य है।
स्कूल और उच्च शिक्षा के संस्थान में पढ़ने वाले छात्र किसी ना किसी प्रकार से कोशिश कर रहे हैं कि वे शिक्षा से वंचित ना रह जाए। कई छात्र ऐसे भी हैं जिनके घर में एक ही कमरा है और पूरा परिवार उसी एक कमरे में रहता है। ऐसे में छात्र ऑनलाइन कक्षा में ना ही ध्यान से बैठ कर पढ़ पा रहे हैं, ना ही कुछ सवाल कर पा रहे हैं। जिनके घर में एक ही मोबाइल है या घर में उपयुक्त जगह नहीं है वे ऑनलाइन शिक्षा में सक्रिय नहीं हैं। मोबाइल नेटवर्क लगभग सभी छात्रों के लिए एक बड़ी समस्या है। छात्रों के परिवार मोबाइल इंटरनेट का रिचार्ज बार-बार कर सकें इसके लिए उनके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं है।
लड़कियों के लिए दोगुनी चुनौती
महिला अध्यापकों और छात्राओं से बात करने पर ऑनलाइन शिक्षा की स्थिति और भी विकराल समस्या को उजागर कर देती है। दलित, बहुजन और आदिवासी छात्राएं घर में आर्थिक तंगी और पारिवारिक स्थिति बिगड़ने के कारण पढ़ाई छोड़ने की स्थिति में हैं। कई ऐसी छात्राएं हैं जो ऑनलाइन कक्षा में शामिल तो हो जाती हैं पर घर में परिवार का कोई ना कोई सदस्य उन्हें पढ़ाई के दौरान कुछ ना कुछ घर का काम करने को कहता रहता है। अब स्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि लड़कियों को कहा जाने लगा है कि उनका खुद ही पढ़ने में मन ही नहीं लगता। घर का काम करके लड़कियां इतना थक जाती हैं कि पढ़ाई के दौरान उन्हें थकावट महसूस होना स्वाभाविक है। कुछ लड़कियां तो कक्षा के बीच में ही थकान के कारण सो भी जाती हैं।
कोरोना काल में लड़कियों को घर में स्पेस ना देना, उनकी पढ़ाई को महत्व ना देना और उनको शादी के लिए बाध्य करना ये समस्याएं खुलकर सामने आ रही हैं। यह लड़कियों की हमारे परिवार और समाज में स्थिति को दर्शाता है।
लड़कियां लड़कों के मुकाबले ऑनलाइन कक्षाओं में उतनी सक्रिय नहीं रह पाती। कई यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़कियों ने बताया कि उनकी शिक्षा को लेकर घर के सदस्य अब चिंतित नज़र नहीं आते हैं। अब तो घर के सदस्य कहने लगे हैं कि पढ़ाई करने का कोई मतलब ही नहीं है क्योंकी आने वाले समय में नौकरी मिलना असंभव है। ऑनलाइन पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं ने अपने शिक्षण अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि ऑनलाइन पढ़ाना उनके लिए बेहद मुश्किल हो रहा है क्योंकी घर में रहकर घर के काम ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेते। घर के काम में उनकी मदद करने के लिए कोई नहीं है। अधिकतर शिक्षिकाएं छात्रों या उनके माता पिता के फ़ोन और बेवक्त वॉट्सऐप मैसेज से परेशान हैं। कई महिला शिक्षिकाएं जो प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी अब अपनी नौकरी छोड़ चुकी हैं और कुछ शिक्षिकाएं नौकरी छोड़ने की सोच रही हैं।
यूनिवर्सिटीज में पढ़ रही लड़कियां घर में लैपटॉप न होने के कारण मोबाइल से पढ़ने के लिए मजबूर हैं। अधिक समय तक फ़ोन पर व्यस्त होने की वजह से घर के सदस्य यूनिवर्सिटी की लड़कियों के व्यक्तित्व को मात्र युवा होने की वजह से शक की निगाह से देखने लगे हैं। कई युवा लड़कियों को घर में रोज़ मोबाइल की वजह से ही डांट, गालियां और कभी- कभी तो शारीरिक हिंसा का भी सामना करना पड़ रहा है। कोरोना काल के चलते यूनिवर्सिटीज में पढ़ने वाली लड़कियां उन्हीं के परिवार द्वारा की जाने वाली मौखिक, भावनात्मक और शारीरिक हिंसा की शिकार हो रही हैं। यह लड़कियां ऐसी स्थिति में हैं कि उनको किसी अन्य प्रकार से मदद मिलना भी मुश्किल हो गया है। कोरोना के चलते घरेलू हिंसा का दायरा इतना बड़ा हो गया है कि आंकड़े भी मौजूदा स्थिति बताने में असमर्थ हैं।
परिवार के सभी सदस्य लड़कियों को जल्द से जल्द लैपटॉप या मोबाइल बंद करने के लिए कहते हैं। कुछ यूनिवर्सिटीज की लड़कियों ने साझा किया कि जब वे मोबाइल पर नहीं पढ़ रही होती तो उनकी गैर-मौजूदगी में परिवार के सदस्य पूरा फ़ोन ठीक से चेक करते हैं। परिवार वाले मोरल पोलिसिंग करते हैं। वे देखते हैं कि लड़की कब, किससे और क्यों बात करती है। युवा लड़कियों ने कहा महामारी से पहले जब वो कभी-कभी हॉस्टल से घर आती थी तो उनको घर पर आना अच्छा लगता था। पर अब उनको घर में रहना अच्छा नहीं लगता, उनको एहसास होता है कि कोई हर समय उन पर नज़र रख रहा हैं। वे खुद को आज़ाद महसूस नहीं करती। युवा लड़कियों ने यह भी कहा कि लड़की होने की वजह से उनको घर में कोई स्पेस नहीं दिया जाता है, ना ही उनकी पढ़ाई के समय की कोई कद्र करता है। कई लड़कियों को शादी के लिए विवश किया जा रहा है। ना चाहते हुए भी परिवार वाले लड़कियों को शादी के लिए लड़का देखने या कम से कम लड़के से बात करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। युवा लड़कियों को लगने लगा है कि परिवार जब भी चाहे उनसे उनका शिक्षा का अधिकार छीन सकते हैं। जो लड़कियां हॉस्टल में रहती थी वे अब आपस में और शिक्षिकाओं से पूछने लगी हैं कि हॉस्टल कब खुलेगा, कब वे घर से यूनिवर्सिटी या अपने संस्थान जा सकेंगी।
कोरोना काल में लड़कियों को घर में स्पेस ना देना, उनकी पढ़ाई को महत्व ना देना और उनको शादी के लिए बाध्य करना ये समस्याएं खुलकर सामने आ रही हैं। यह लड़कियों की हमारे परिवार और समाज में स्थिति को दर्शाता है। कोरोना काल में परिवारों ने यह बता दिया है कि लड़कियों की शिक्षा परिवार लिए अधिक महत्व नहीं रखती। साथ ही यह दर्शाता है कि युवा लड़कियों पर परिवार का विश्वास बेहद जर्जर और ना के बराबर है, जो हम सब के लिए बहुत ही शर्मनाक बात है। लड़कियों की यह स्थिति समाज का एक आईना है जो दर्शाता है कि हम लड़कियों की शिक्षा या अपनी प्रगति के कितने भी गुण गाएं, पितृसत्ता के आगे हमारी सब बातें और हमारे सब वादे खोखले हैं।
(यह लेख पहले फेमिनिज्म इन इंडिया की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ है.)
न्यूयॉर्क, 17 सितंबर (आईएएनएस)| सोशल मीडिया के जरिए नफरत फैलाने जैसे कार्यों के विरोध में रियलिटी टीवी स्टार किम कार्दशियां वेस्ट ने अपने सोशल अकाउंट्स को फ्रीज करने का फैसला किया है। सोशल मीडिया के जरिए कई बार गलत सूचनाओं का आदान-प्रदान भी होता है और नफरत फैलाने जैसे कृत्य भी सामने आते रहते हैं। इसे देखते हुए ही किम ने मंच से दूरी बनाने का फैसला किया है।
किम दुनिया की ऐसी हस्तियों में शामिल हैं, जिनके इंस्टाग्राम फॉलोअर्स सबसे अधिक हैं। किम को इंस्टाग्राम पर 18.88 करोड़ लोग फॉलो करते हैं।
दरअसल, कई बड़ी हस्तियां 'हैश टैग स्टॉप हेट फॉर प्रोफिट' अभियान को समर्थन कर रही हैं।
लियोनाडरे डिकैप्रियो, जेनिफर लॉरेंस, ऑरलैंडो ब्लूम, केरी वाशिंगटन और साचा बैरन कोहेन भी इस तरह के विरोध में शामिल हो रहे हैं।
सेलिब्रिटीज बुधवार को 24 घंटे के लिए अपने अकाउंट्स को फ्रीज करेंगे।
किम ने ट्वीटर पर लिखा, "मुझे अच्छा लगता है कि मैं इंस्टाग्राम और फेसबुक के माध्यम से आपसे सीधे जुड़ सकती हूं। लेकिन मैं तब चुप नहीं बैठ सकती, जब ये मंच नफरत फैलाने, दुष्प्रचार और गलत जानकारी फैलाने की इजाजत दे रहे हों।"
किम ने कहा कि गलत सूचना चुनावों पर गंभीर प्रभाव डालती हैं और लोकतंत्र को कमजोर करने वाली होती हैं। इसलिए वह इनका समर्थन नहीं करती हैं।
इसके साथ ही उन्होंने 'हैश टैग स्टॉप हेट फॉर प्रोफिट' अभियान में अपने प्रशंसकों को भी शामिल होने और इसका समर्थन करने की अपील भी की।
इसके अलावा अभिनेता एश्टन कचर, जिनके लाखों फॉलोअर्स हैं, वह भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बहिष्कार में शामिल होने जा रहे हैं। उन्होंने कहा, "ये डिवाइस नफरत और हिंसा फैलाने के लिए नहीं बनाए गए थे।"
बता दें कि किम ने भ्रामक तथ्य और गलत सूचनाओं के खिलाफ अस्थायी तौर पर सोशल मीडिया अकांउट्स का उपयोग नहीं करने का फैसला किया है।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने जोधपुर स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में तृतीय वर्ष के छात्र की रहस्यमय मौत के करीब तीन साल बाद बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने बुधवार को दो महीने के भीतर नए सिरे से मामले की जांच करने के निर्देश जारी किए हैं। राज्य पुलिस से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली याचिका पर आदेश सुनाते हुए पुलिस को नए सिरे से मामले की जांच करने के निर्देश दिए गए हैं।
पीड़ित विक्रांत नगाइच की मां नीतू कुमार नगाइच ने वकील सुनील फर्नांडिस के माध्यम से याचिका दायर की है। मामले की तीन साल बाद भी इसकी जांच में कोई प्रगति नहीं हो रही थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
जुलाई में शीर्ष अदालत ने कहा था कि जांच दो महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए और इसके पहले एक अंतिम रिपोर्ट दायर की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने राजस्थान पुलिस द्वारा दाखिल क्लोजर रिपोर्ट को रद्द कर दिया है।
पीठ ने कहा कि इस मामले में काफी समय बीत चुका है और निस्संदेह अब इस मामले को तत्काल निपटाया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि नए सिरे से जांच आज (बुधवार) से अधिकतम दो महीने के भीतर समाप्त हो जानी चाहिए।
पीठ ने क्लोजर रिपोर्ट में लापरवाही बरतने और तय समय पर रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर राजस्थान पुलिस को फटकार भी लगाई।
पीठ ने कहा कि उनके सामने अचानक एक बहुत लंबी जांच रिपोर्ट तो दर्ज कर दी गई, मगर इसमें मौत को लेकर कोई सुराग नहीं है।
पीड़ित 13 अगस्त, 2017 की शाम को अपने दोस्तों के साथ विश्वविद्यालय परिसर से लगभग 300 मीटर दूर एक रेस्तरां में गया था। उसका शव अगली सुबह एक रेलवे ट्रैक के पास मिला। पीड़िता की मां ने दलील दी है कि पुलिस की ओर से घटना की रात उनके बेटे के ठिकाने का पता लगाने के लिए उसके मोबाइल फोन का डेटा हासिल करना बाकी है।
याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि वह अपने बेटे की मौत की जांच से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वह अपने एकमात्र बच्चे की मौत के बाद पूरी तरह से टूट गई हैं।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| देश में झूठ और नफरत फैलाने वाले 7819 वेबसाइट लिंक और सोशल मीडिया अकाउंट पर केंद्र सरकार ने कार्रवाई की है। लोकसभा में उठाए गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने पिछले तीन वर्षो में ब्लॉक कराए गए अकाउंट्स के बारे में जानकारी दी है।
दरअसल, कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह ने सूचना प्रौद्यौगिकी मंत्री से पूछा था कि फेसबुक आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म समाज में हिंसा और घृणा को बढ़ावा दे रहे हैं, पिछले तीन वर्षों में ऐसे सोशल मीडिया अकाउंट के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है? इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्यौगिकी राज्यमंत्री संजय धोत्रे ने इस सवाल के लिखित जवाब में बताया कि इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग के साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंसा भड़काने वाली सूचनाओं की रिपोर्टिग बढ़ी है। इस कारण कार्रवाई भी तेज हुई है।
मंत्री ने बताया कि आईटी अधिनियम-2000 की धारा 69 क के फ्रेमवर्क के तहत एक प्रणाली मौजूद है। अधिनियम की धारा 69क सरकार को देश की संप्रभुता, राष्ट्र की सुरक्षा, विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध से संबंधित किसी अपराध को करने के लिए भड़काने से रोकने के लिए संबंधित सूचना को ब्लॉक करने का अधिकार देती है।
उन्होंने बताया कि पिछले तीन वर्षों में कई वेबसाइट, वेबपेज और सोशल मीडिया अकाउंट्स को ब्लॉक किए गए। केंद्रीय राज्यमंत्री ने बताया कि 2017 में 1385, 2018 में 2799 और 2019 में 3635 वेबसाइट, वेबपेज और सोशल मीडिया अकाउंट्स को बंद कराया गया। इस प्रकार पिछले तीन साल में 7819 अकाउंट और वेबसाइट लिंक के खिलाफ कार्रवाई हुई।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को पुलिस थानों में लगे सीसीटीवी कैमरों पर सही सूचना उपलब्ध कराना चाहिए, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सही सूचना पाना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा, "2017 के एसएलपी (सीआरएल) 2302 मामले में 3 अप्रैल, 2018 को पारित हमारे आदेश के आलोक में हम थानों में लगे सीसीटीवी कैमरों और निगरानी समितियों की वास्तविक स्थिति जानना चाहते हैं।"
राज्य में आज 23 कोरोना मौतें
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 16 सितंबर। राज्य में आज रात 10.50 बजे तक 3189 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इनमें सबसे अधिक 717 रायपुर जिले से हैं।
राज्य में आज 23 कोरोना मौतें हुई हैं.
राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक दुर्ग 282, राजनांदगांव 398, बालोद 78, बेमेतरा 37, कबीरधाम 96, रायपुर 717, धमतरी 46, बलौदाबाजार 106, महासमुंद 75, गरियाबंद 50, बिलासपुर 293, रायगढ़ 294, कोरबा 88, जांजगीर-चांपा 208, मुंगेली 1, जीपीएम 21, सरगुजा 79, कोरिया 26, सूरजपुर 68, बलरामपुर 26, जशपुर 16, बस्तर 0, कोंडागांव 53, दंतेवाड़ा 0, सुकमा 28, कांकेर 80, नारायणपुर 23, बीजापुर 0, अन्य राज्य 0 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं।
नई दिल्ली, 16 सितंबर। केंद्रीय सडक़ यातायात और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं।
गडकरी ने स्वयं ट्वीट कर अपने कोरोना पॉजि़टिव होने की जानकारी दी है।
उन्होंने लिखा, कल मुझे थोड़ी कमज़ोरी लग रही थी और मैंने डॉक्टर से परामर्श लिया। चेक अप के दौरान, मैं कोविड19 पॉजि़टिव पाया गया। मैं सब लोगों के
आशीर्वाद और दुआओं से अभी ठीक हूँ। मैंने ख़ुद को आइसोलेट कर लिया है। उन्होंने अपने संपर्क में आए सभी लोगों से सतर्क रहने का आग्रह भी किया।
भारत में बुधवार को बीते एक दिन में संक्रमण के रिकॉर्ड 90,123 नए मामले दर्ज किए गए। इस दौरान 1,290 लोगों की मौत हुई। (bbc.com/hindi)
हिंदुस्थान का सिनेजगत पवित्र गंगा की तरह निर्मल है, ऐसा दावा कोई नहीं करेगा। लेकिन जैसा कि कुछ टीनपाट कलाकार दावा करते हैं कि सिनेजगत ‘गटर’ है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। श्रीमती जया बच्चन ने संसद में इसी पीड़ा को व्यक्त किया है। ‘जिन लोगों ने सिनेमा जगत से नाम-पैसा सब कुछ कमाया। वे अब इस क्षेत्र को गटर की उपमा दे रहे हैं। मैं इससे सहमत नहीं हूं।’ श्रीमती जया बच्चन के ये विचार जितने महत्वपूर्ण हैं, उतने ही बेबाक भी हैं। ये लोग जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं। ऐसे लोगों पर जया बच्चन ने हमला किया है। श्रीमती बच्चन सच बोलने और अपनी बेबाकी के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक और सामाजिक विचारों को कभी छुपाकर नहीं रखा। महिलाओं पर अत्याचार के संदर्भ में उन्होंने संसद में बहुत भावुक होकर आवाज उठाई है। ऐसे वक्त जब सिनेजगत की बदनामी और धुलाई शुरू है, अक्सर तांडव करनेवाले अच्छे-खासे पांडव भी जुबान बंद किए बैठे हुए हैं। मानो वे किसी अज्ञात आतंकवाद के साए में जी रहे हैं और कोई उन्हें उनके व्यवहार और बोलने के लिए परदे के पीछे से नियंत्रित कर रहा है। परदे पर वीरता और लड़ाकू भूमिका निभाकर वाहवाही प्राप्त करनेवाले हर तरह के कलाकार मन और विचारों पर ताला लगाकर पड़े हुए हैं। ऐसे में श्रीमती बच्चन की बिजली कड़कड़ाई है। मनोरंजन उद्योग रोज पांच लाख लोगों को रोजगार देता है। फिलहाल अर्थव्यवस्था उद्ध्वस्त हो चुकी है और जब ‘लाइट, कैमरा, एक्शन’ बंद है, लोगों का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटाने के लिए हमें (मतलब बॉलीवुड को) सोशल मीडिया पर बदनाम किया जा रहा है। ऐसा जया बच्चन ने कहा है। कुछ अभिनेता-अभिनेत्रियां ही पूरा बॉलीवुड नहीं है। लेकिन उनमें से कुछ लोग जो अनियंत्रित वक्तव्य दे रहे हैं, यह सब घृणास्पद है। सिनेजगत के छोटे-बड़े हर कलाकार या तकनीशियन मानो ‘ड्रग्स’ के जाल में अटके हुए हैं, २४ घंटे वे गांजा और चिलम पीते हुए दिन बिता रहे हैं, ऐसा बयान देनेवालों की ‘डोपिंग’ टेस्ट होनी चाहिए, क्योंकि इनमें से बहुतों के खाने के और तथा दिखाने के और दांत हैं। हिंदुस्थानी सिनेजगत की एक परंपरा और इतिहास है। यह मायानगरी होगी लेकिन इस मायानगरी में जैसे ‘मायावी’ लोग आए और चले गए, उसी प्रकार कई संत-सज्जन भी थे ही। जिन दादासाहेब फाल्के ने हिंदुस्थानी सिनेजगत की नींव रखी, वह महाराष्ट्र के ही हैं। दादासाहेब फाल्के ने बहुत मेहनत करके इस साम्राज्य को मूर्त रूप दिया। ‘राजा हरिश्चंद्र’ और ‘मंदाकिनी’ जैसी ‘मूक फिल्मों’ से हुई हिंदी सिनेजगत की शुरुआत आज जिस शिखर तक पहुंची है, वो कई लोगों की मेहनत के कारण ही। जो अपनी प्रतिभा और कला दिखाएगा, वही यहां टिकेगा। एक जमाना सहगल और देविका रानी का था। आज भी अमिताभ बच्चन महानायक पद पर विराजमान हैं। कभी उस जगह पर राजेश खन्ना थे। धर्मेंद्र, जीतेंद्र, देव आनंद, पूरा कपूर खानदान, मा. भगवान, वैजयंती माला से लेकर हेमा मालिनी और माधुरी दीक्षित से लेकर ऐश्वर्या राय तक, एक से एक बढ़िया कलाकारों ने यहां योगदान दिया है। बॉक्स ऑफिस को हमेशा चलायमान रखने के लिए आमिर, शाहरुख और सलमान जैसे ‘खान’ लोगों की भी मदद हुई ही है। ये सारे लोग सिर्फ गटर में लेटते थे और ड्रग्स लेते थे, ऐसा दावा कोई कर रहा होगा तो ऐसी बकवास करनेवालों का मुंह पहले सूंघना चाहिए। खुद गंदगी खाकर दूसरों के मुंह को गंदा बताने का काम चल रहा है। इस विकृति पर ही जया बच्चन ने हमला किया है। हमारे सिनेमा के कलाकार सामाजिक दायित्व को भी पूरा करते रहते हैं। युद्ध के दौरान सुनील दत्त और उनके सहयोगी सीमा पर जाकर सैनिकों का मनोरंजन करते थे। मनोज कुमार ने हमेशा ‘राष्ट्रीय’ भावना से ही फिल्में बनार्इं। कई कलाकार संकट के समय अपनी जेब से मदद करते रहते हैं। राज कपूर की हर फिल्म में सामाजिक दृष्टिकोण और समाजवाद की चिंगारी दिखती थी। आमिर खान की फिल्में भी उसी तरह की हैं। ये सारे लोग नशे में धुत्त होकर यह राष्ट्रीय कार्य कर रहे हैं। ऐसे गरारे करना देश का ही अपमान है। कई कलाकारों ने आपातकाल के दौरान की मनमानी के विरोध में आवाज उठाई और उन्हें उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। आज भी सिनेजगत में एक हलचल साफ दिख रही है। आज कई कलाकार सत्तापक्ष के मंत्री और सांसद हुए दिख रहे हैं। इसलिए उनकी मजबूरी समझनी चाहिए। सत्ता और सत्य के बीच में एक खाई होती है। सिनेजगत से ईमान रखना होगा तो सत्ताधारियों की ओर से टपली मारी जाएगी। इसलिए सूर्य पश्चिम से उगता है, ऐसा प्रचार करना ही उनका धर्म बन जाता है। फिल्म जगत ‘गटर’ बन चुका है, ऐसा बोलनेवालों ने अपनी लाज बेच दी। लेकिन उनके साथ सत्ताधारियों की ‘झांज’ होने के कारण इन लोगों को भी करताल बजानी पड़ती है। फिर ये सिनेजगत से बेईमानी हो तो भी चलेगा। हिंदी सिनेमा जगत वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध हो चुका है। हॉलीवुड के बराबर तुम्हारे बॉलीवुड का नाम लिया जाता है। लेकिन उद्योग क्षेत्र में जैसे टाटा, बिरला, नारायणमूर्ति और अजीम प्रेमजी हैं, वैसे ही नीरव मोदी और माल्या भी हैं। सिनेजगत के बारे में भी ऐसा ही कहना होगा। सब के सब गए गुजरे हैं, ऐसा कहना सच्चे कलाकारों का अपमान साबित होता है। जया बच्चन ने इसी आवाज को उठाकर सिनेमाजगत की नींद तोड़ी है। इससे कितने लोगों का कंठ फूटेगा, देखते हैं। (hindisaamana.com)
रायपुर, 16 सितम्बर। राज्य शासन ने निजी पैथोलॉजी लैबों और अस्पतालों में कोविड-19 की जांच के लिए आरटीपीसीआर तथा एंटीजन रैपिड टेस्ट की दर तय कर दी है। छत्तीसगढ़ में स्थापित लैबों में आरटीपीसीआर जांच के लिए 1600 रूपए की दर निर्धारित की गई है। जांच के लिए संभावित मरीज के घर से सैंपल संकलित किए जाने पर 1800 रूपए लिए जाएंगे। प्रदेश के बाहर स्थित लैबों के लिए आरटीपीसीआर जांच की दर दो हजार रूपए निर्धारित की गई है। घर से सैंपल कलेक्शन किए जाने पर 2200 रूपए लिए जाएंगे। इन शुल्कों में सैंपल कलेक्शन, परिवहन, जांच, कन्जुमेबल्स, पीपीई किट इत्यादि शुल्क शामिल हैं।
निजी लैबों और अस्पतालों में रैपिड एंटीजन टेस्ट के लिए 900 रूपए का शुल्क तय किया गया है। इसमें जांच, कन्जुमेबल्स, पीपीई किट इत्यादि शुल्क शामिल हैं। राज्य शासन के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा आज मंत्रालय से इस संबंध में आदेश जारी कर दिए गए हैं। शासन द्वारा निर्धारित ये दरें तत्काल प्रभाव से लागू हो गई हैं।
नई दिल्ली, 16 सितम्बर | दिल्ली में अगस्त के पहले हफ्ते में किए गए सेरोलॉजिकल सर्वेक्षण से पता चला कि कोरोना से ठीक हो चुके 257 लोगों में से 79 लोगों के शरीर में एंटीबॉडी नहीं मिली.
राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से कराए गए दूसरे दौर के सर्वे की रिपोर्ट से इसका पता चला है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली के कंटेनमेंट जोन में रह रहे या रह चुके लोगों में कंटेनमेंट जोन में नहीं रहने वाले लोगों की तुलना में कहीं अधिक सीरो प्रेवीलेंस था.
दरअसल सीरो सर्वेक्षण अध्ययन में लोगों के ब्लड सीरम की जांच करके किसी आबादी या समुदाय में ऐसे लोगों की पहचान की जाती है, जिनमें किसी संक्रामक रोग के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो जाती हैं.
रिपोर्ट में कहा गया कि दूसरे दौर का यह सर्वेक्षण लगभग 15,000 लोगों पर किया गया.
सूत्रों का कहना है कि पहले कोरोना संक्रमित पाए गए और कोरोना से ठीक हो चुके 257 लोगों के खून के सैंपल को भी यह जानने के लिए सर्वे में शामिल किया कि उनके शरीर में एंटीबॉडी था या नहीं.
विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग कोरोना से ठीक हो चुके हैं, लेकिन उनके शरीर में कोरोना से लड़ने के लिए एंटीबॉडी नहीं हैं, वे शायद कई महीने पहले महामारी के शुरुआती चरण में ही इससे ग्रसित हो गए हो, इसलिए उनके शरीर में एंटीबॉडी खत्म हो गए हों.
स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘लेकिन अधिकतर मामलों में शरीर के मेमोरी सेल वायरस को याद रखेंगे और कोरोना से उबर चुका कोई शख्स दोबारा इसकी चपेट में आएगा तो वे प्रतिरोधक क्षमता को दोबारा सक्रिय कर देंगे.’
बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री सत्येंद्र जैन ने पिछले महीने सीरो सर्वेक्षण के पहले दौर के नतीजों का ऐलान करते हुए कहा था कि अगस्त के सीरो सर्वेक्षण में 29.1 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाई गई थी. (thewire)
मुंबई, 16 सितम्बर (आईएएनएस)| बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान ने अपने आगामी वेब शो 'तांडव' की डबिंग शुरू कर दी है। वेब शो के निर्देशक अली अब्बास जफर ने अभिनेता के वर्क मोमेंट को साझा किया है।
उन्होंने लिखा, "कोरोना काल में सैफ अली खान के साथ डबिंग। साउंड डिजाइनर दिलीप सुब्रमण्यम। काम करने का नया तरीका।"
अब्बास जफर द्वारा साझा किए गए तस्वीर में अभिनेता सैफ अली खान घर से काम करते नजर आ रहे हैं। तस्वीर में सैफ अली खान डायलॉग सीट पढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं, जबकि एक व्यक्ति ने माइक पकड़ा हुआ है, जिससे संकेत मिलता है कि डबिंग की जा रही है।
वेब शो 'तांडव' में भारतीय राजनीति का डार्क साइड दिखाया गया है, जिसमें सुनील ग्रोवर, मोहम्मद जीशान अयूब और सारा जेन डायस ने भी अभिनय किया है।
नई दिल्ली, 16 सितंबर ( आईएएनएस)। राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी चार साल बाद फिर अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलते नजर आ रहे हैं। पिछले कुछ समय से चीन सीमा विवाद सहित कई संवेदनशील मुद्दों पर जब-जब स्वामी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधने की कोशिश की तो उन्हें बीजेपी समर्थकों ने ट्रोल किया। जिससे नाराज हुए स्वामी ने बीते दिनों बीजेपी आईटी सेल हेड के पद से अमित मालवीय को 24 घंटे के अंदर हटाने की मांग राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने रख दी। उनकी मांग को पार्टी ने संज्ञान में ही नहीं लिया। इससे पहले 2016 में भी स्वामी के तेवर इसी तरह तल्ख थे।
सूत्रों का कहना है कि स्वामी के पार्टी लाइन से हटकर किए जा रहे हमलों को बीजेपी में पसंद नहीं किया जा रहा। पार्टी ने अब स्वामी की बातों को गंभीरता से लेना बंद कर दिया है। पार्टी उनकी बातों को नजरअंदाज करने के फॉर्मूले पर चल रही है। सूत्रों का यह भी कहना है कि पार्टी लाइन से हटकर बयानबाजी के करना राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने पर फिर स्वामी को आगे मौका देने से पार्टी बच सकती है।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से कहा, "स्वामी जी पार्टी लाइन के अनुरूप चलना नहीं चाहते। ऐसे में उनकी बातों को नजरअंदाज करने के सिवा किया ही क्या जा सकता है?"
दरअसल, हाल में चीन से विवाद, जेईई-नीट परीक्षा और उत्तराखंड के एक मामले को लेकर सुब्रमण्यम स्वामी भाजपा और केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर रहे हैं। नीट और जेईई परीक्षा टालने के लिए स्वामी ने लगातार मुहिम चलाई, लेकिन सरकार ने मांग अनसुनी कर दी।
जीडीपी को लेकर भी हाल में सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी सरकार पर तंज कसा था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कोरोना वायरस संकट को 'एक्ट ऑफ गॉड' बताने पर स्वामी ने कटाक्ष करते हुए पूछा था कि कोरोना के पहले ही जीडीपी गिरकर 3.1 प्रतिशत पर आ चुकी थी, क्या वो भी 'एक्ट ऑफ गॉड' था?
स्वामी के पार्टी विरोधी तेवर भाजपा के समर्थकों को रास नहीं आए। जिस पर उन्हें ट्रोल होना पड़ा। ट्रोल होने से नाराज स्वामी ने बीते सात सितंबर को कहा , "बीजेपी आईटी सेल दुष्ट हो गया है। इसके कुछ सदस्य फर्जी आईडी से मुझ पर निजी हमले कर रहे हैं। यदि नाराज हुए मेरे समर्थकों ने व्यक्तिगत हमले किए तो ठीक उसी तरह से मैं जिम्मेदार नहीं रहूंगा जैसे आईटी सेल की करतूत पर भाजपा जिम्मेदार नहीं होती।"
उन्होंने 9 सितंबर को किए अपने ट्वीट में कहा, "कल तक अगर मालवीय को बीजेपी आईटी सेल से नहीं हटाया जाता है, तो इसका मतलब है कि पार्टी मेरा बचाव नहीं करना चाहती। चूंकि पार्टी में कोई मंच नहीं है, जहां मैं राय रख सकता हूं, इसलिए मुझे अपना बचाव करना होगा।"
भाजपा ने अमित मालवीय को हटाने की स्वामी की मांग अनसुनी कर दी। इस बीच भाजपा के कुछ समर्थकों ने एक विशेष हैशटैग के साथ सुब्रमण्यम स्वामी के खिलाफ ट्रेंडिंग शुरू कर दी। इसमें 1999 में सोनिया गांधी के साथ मिलकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिराने की कोशिश और संघ और बीजेपी के खिलाफ उनके कुछ बयानों से जुड़े ट्वीट किए जाने लगे। इससे पूर्व जुलाई में स्वामी ने ट्वीट कर भाजपा के नैतिक पतन की बातें कहीं थी। उन्होंने कहा था, "वास्तव में भाजपा के नैतिक पतन को देखकर बहुत दुख होता है। कुछ लोगों ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में मेरे मंदिर मामले के खिलाफ तर्क दायर करने के लिए एक बैपटिस्ट ईसाई संगठन से वित्तीय मदद ली है।"
2016 में पीएम मोदी ने दी थी स्वामी को नसीहत
यह पहला मौका नहीं है, जब स्वामी बागी दिख रहे हैं। वर्ष 2016 में सुब्रमण्यम स्वामी के पार्टी के खिलाफ तेवर तल्ख हो चले थे। वह तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली के बहाने केंद्र सरकार पर तीखे हमले करने लगे थे। उस वक्त के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रह्मण्यम पर हमले के बाद जब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्वामी को अनुशासन में रहने और सोच-समझकर बयान देने की सलाह दी थी तो उन्होंने पलटवार किया था। कहा था कि 'बिना मांगे मुझे अनुशासन और नियंत्रण की सलाह देने वाले लोग यह नहीं समझ रहे कि यदि मैंने अनुशासन की उपेक्षा की तो तूफान आ जाएगा।'
मामला बढ़ता देख तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले में दखल देना पड़ा था। प्रधानमंत्री मोदी ने बगैर नाम लिए सुब्रमण्यम स्वामी को संदेश देते हुए कहा था-अगर कोई पब्लिसिटी के लिए बयान दे रहा है तो ये गलत है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि कोई भी पार्टी से बड़ा नहीं हो सकता। पार्टी सूत्रों का कहना है कि मौजूदा घटनाओं पर भी पार्टी या सरकार की स्तर से उन्हें नसीहत दी जा सकती है।
न्यूयॉर्क, 16 सितंबर (आईएएनएस)| अमेरिका में जैसे-जैसे राष्ट्रपति चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद की छवि एक 'शांतिदूत' के रूप में पेश करने में जुट गए हैं।
ट्रंप ने मध्यस्थता कर इजरायल और दो अरब देशों के बीच मध्य-पूर्व में राजनयिक डील कराया, जबकि तालिबान के बीच शांति समझौते का प्रयास किया। साथ ही कतर में अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति समझौता वार्ता में भी अमेरिका की अहम भूमिका है।
उन्होंने मंगलवार को यह कहते हुए कि यह 'इतिहास के पाठ्यक्रम' में बदलाव है, राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए इजरायल और दो अरब देशों संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच समझौतों पर हस्ताक्षर कराएं।
जहां तालिबान और अमेरिका समर्थित अफगान सरकार के प्रतिनिधि कतर की राजधानी दोहा में शांति के लिए वार्ता कर रहे हैं, जिसे लेकर ट्रंप को उम्मीद है कि इससे अफगानिस्तान में संघर्ष खत्म होगा।
तालिबान डील से उन्हें यह घोषणा करने का मौका मिलेगा कि 19 साल बाद अमेरिका उनके नेतृत्व में अफगान से अपनी सेना को निकाल सकेगा और यह 2016 के चुनाव से पहले किए गए उनके वादे को पूरा करेगा।
ट्रंप ने डेमोक्रेटिक पार्टी के अपने प्रतिद्वंद्वी जोसेफ बाइडन पर इराक में विनाशकारी आक्रमण के लिए समर्थन करने और 40 साल के उनके (बाइडन) राजनीतिक कैरियर में कई अन्य विदेशी संघर्षो, उलझनों को लेकर उन पर निशाना साधा है और खुद के बारे में एक शांतिदूत और ऐसा नेता होने का दावा किया है जो सैनिकों को और ज्यादा देशों में तैनाती पर भेजने के बजाय उन्हें स्वदेश लाता है।
अमेरिकी सेना ने घोषणा की है कि वह नवंबर से पहले अफगानिस्तान और इराक से कई हजार सैनिकों को वापस बुला लेगी, जिससे वहां नाम मात्र के सैनिक रह जाएंगे।
ट्रंप प्रशासन के तहत, यूरोप में अपने निकटतम सहयोगियों के साथ वाशिंगटन के संबंध थोड़े कमजोर हुए हैं। ट्रंप द्वारा यूरोपीय देशों की लागतार आलोचना करने, उनसे रक्षा खर्च में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने और जर्मनी से अमेरिकी सैनिकों वापस बुलाने के निर्णय को लेकर यूरोप के साथ रिश्ते प्रभावित हुए हैं।
उनकी विदेश नीति की डेमोक्रेट नेताओं के साथ ही कुछ रिपब्लिकन नेताओं द्वारा भी आलोचना की गई ।
उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों पर लगाम लगाने के लिए देश के सर्वोच्च नेता किम जोंग उन के साथ ट्रंप ने बैठकें भी की, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला।
चीन ने एशिया में अपना आक्रामक रूप दिखाया और ट्रंप कुछ नहीं कर सके, तो मध्यपूर्व और अफगानिस्तान ही हैं, जहां वह चुनावों से पहले शांतिदूत के रूप में छवि पेशकर परिणाम दिखा सकते हैं।
ट्रंप इजरायली और फिलिस्तीनियों के बीच एक शांति समझौता नहीं करा सके। इसलिए इजरायल और दोनों देशों के बीच समझौता एक सांत्वना पुरस्कार है - लेकिन यह और अधिक अरब देशों के लिए फिलिस्तीनियों के साथ संबंधों को ज्यादा अहमयित नहीं देने और इजरायल को ज्यादा अहमियत देने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि मालूम पड़ता है कि इसे सऊदी अरब की स्वीकृति प्राप्त है।
यह फिलीस्तीन को इजराइल के साथ वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए भी मजबूर कर सकता है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन डुजारिक ने मंगलवार को कहा, "मुझे लगता है कि यह बहुत स्पष्ट है कि उन्हें इन समझौतों से उम्मीद है कि फिलिस्तीनियों और इजरायलियों के बीच नए सिरे से बातचीत होगी। उन्हें यह भी उम्मीद है कि खाड़ी में क्षेत्रीय स्थिरता विकसित होने का यह एक नया अवसर होगा।"
मंगलवार को ट्रंप की मध्यस्थता के बीच बहरीन के विदेश मंत्री अब्दुल्लातिफ बिन राशिद अल-जायन और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए।
नई दिल्ली, 16 सितंबर (भाषा)| केन्द्र ने पूर्व और वर्तमान सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों के तेजी से निस्तारण पर जोर देते हुये बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि इन मामलों को एक निश्चित समय के भीतर उनके नतीजों तक पहुंचाना जरूरी है.
न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय की पीठ के समक्ष केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इन मामलों के तेजी से निस्तारण के बारे में न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया के सुझावों पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है.
मेहता ने कहा कि अगर विधि निर्माताओं के खिलाफ लंबित मामलों में उच्च न्यायालय ने कार्यवाही पर रोक लगाई है तो शीर्ष अदालत को ऐसे मामले पर एक निश्चित समय के भीतर निर्णय करने का उसे निर्देश देना चाहिए.
उन्होंने पीठ से कहा कि ये मुकदमे समयबद्ध तरीके से अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचने चाहिए और अगर कोई केन्द्रीय एजेन्सी (सीबीआई या ईडी) स्थगन आदेश नहीं होने के बावजूद आगे कार्यवाही नहीं कर रही हैं तो वह इसे दूसरे स्तर पर उठायेंगे.
मेहता ने कहा, ‘शीर्ष अदालत जो भी निर्देश देगी, भारत सरकार उसका स्वागत करेगी.’ उन्होंने कहा कि अगर विशेष अदालतों में बुनियादी सुविधाओं से संबंधित कोई मसला है तो शीर्ष अदालत संबंधित राज्य सरकार को ऐसे मामले में ज्यादा से ज्यादा एक महीने के भीतर आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दे सकती है.
इससे पहले, वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई शुरू होते ही न्याय मित्र हंसारिया और अधिवक्ता स्नेहा कलिता ने अपनी रिपोर्ट से सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों के विवरण की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया.
पीठ ने हंसारिया से सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की तफ्तीश वाले मामलों की स्थिति के बारे में पूछा और कहा कि इनमें से कुछ मामले कई सालों से लंबित हैं.
हंसारिया ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत अनेक मामलों पर कर्नाटक जैसे उच्च न्यायालयों ने रोक लगा रखी है और निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून तथा धन शोधन रोकथाम कानून के तहत अनेक मामलों में तेलंगाना उच्च न्यायालय ने रोक लगा रखी है.
उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ मामलों में मुकदमों की सुनवाई तेज नहीं हुयी है और अधिकांश मामले आरोप निर्धारित करने के चरण में लंबित हैं.
पीठ ने कहा कि ऐसे भी मामले हो सकते हैं जिनमें केन्द्रीय एजेन्सियों ने प्राथमिकी दर्ज की हो, लेकिन बाद इनमें बहुत कुछ नहीं हुआ हो.
हंसारिया ने कहा कि ऐसे भी कई मामले हैं जिनमें आरोप भी निर्धारित नहीं हुये हैं.
पीठ ने इस पर टिप्पणी की कि लोक अभियोजक की नियुक्ति नहीं होना, आरोप पत्र दाखिल नहीं होना और गवाहों को नहीं बुलाने जैसे कई मुद्दे हैं.
न्यायालय ने कहा कि अगर राज्य में सिर्फ एक ही विशेष अदालत होगी तो समयबद्ध तरीके से सारे मुकदमों का निस्तारण संभव नहीं हो सकता है।
इस पर मेहता ने कहा कि न्यायालय एक विशेष अदालत में एक निश्चित संख्या में मुकदमें रखने पर विचार कर सकती है. उन्होंने राज्य विशेष के भौगोलिक पहलू का भी जिक्र किया ओर कहा कि उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश विशेष अदालतों के लिये मुकदमों की संख्या निर्धारित कर सकते हैं.
हंसारिया ने कहा कि कुछ राज्य बड़े हैं और उनमें गवाहों के लिये एक जगह से दूसरे स्थान जाना मुश्किल है.
मेहता ने कहा कि केन्द्र ने विशेष अदालतों के लिये राज्यों को धन मुहैया करा दिया है और कई राज्यों ने अभी तक धन के इस्तेमाल का प्रमाण पत्र केन्द्र को नहीं दिया है.
पीठ ने कहा कि वह सालिसीटर जनरल के सुझावों पर विचार करेगी और रिपोर्ट में उठाये गये मुद्दों पर भी आदेश पारित करेगी.
सुनवाई के अंतिम क्षणों मे मेहता ने पीठ से अनुरोध किया कि धन के मुद्दे पर अभी निर्देश नहीं दिया जाये क्योंकि उन्हें इस पहलू पर निर्देश लेने होंगे. मेहता ने इस सुझाव से सहमति व्यक्त की कि उम्र कैद की सजा वाले अपराधों और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
हंसारिया ने सुझाव दिया था कि मौत या उम्र कैद की सजा के अपराध वाले मामलों के बाद विशेष अदालत को एससी-एसटी (अत्याचारों की रोकथाम) कानून और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून जैसे कानूनों के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई करनी चाहिए. शीर्ष अदालत को न्याय मित्र ने सूचित किया था कि 4,442 मामलों में देश के नेता पर मुकदमे चल रहे हैं। इनमें से 2,556 आरोपी तो वर्तमान सांसद-विधायक हैं.
उन्होंने अपनी पूरक रिपोर्ट में कहा कि सांसदों और विधायकेां के खिलाफ दो सौ से ज्यादा मामले भ्रष्टाचार निरोधक कानून, धनशोधन रोकथाम कानून और पोक्सो कानून के तहत विभिन्न राज्यों में लंबित हैं.
इसी तरह एक दर्जन से ज्यादा सांसदों और विधायकों (पूर्व और वर्तमान) के खिलाफ आयकर कानून, कंपनी कानून, एनडीपीएस कानून, आबकारी कानून तथा शस्त्र कानून के तहत मामले लंबित हैं.
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 16 सितंबर। रायगढ़ के कोतरा रोड में सामने आए जमीन के नामांतरण व बंटवारे के फर्जीवाड़े के मामले की गूंज राजस्व मंडल तक पंहुच गयी है। मंडल ने मामले की जांच शुरु कर दी है। फर्जीवाड़े की जांच के लिए राजस्व मंडल के अध्यक्ष सीके खेतान बुधवार को रायगढ़ पहुंचे। छत्तीसगढ़ को मिली जानकारी के अनुसार इस दौरान एसडीएम कार्यालय में डेढ़ घंटे से भी अधिक समय तक दस्तावेजों की जांच की। हालांकि इस दौरान मीडिया को से दूर रखा गया।
छत्तीसगढ़ को सूत्रों ने बताया कि कोतरारोड इलाके में प्राइम लोकेशन में स्थित एक जमीन के नामांतरण को लेकर मनीराम विरुद्ध नटवर बेरीवाल के एक मामले की सुनवाई तहसील कोर्ट में हुई थी। वहीं तहसील न्यायालय के फैसले के विरुद्ध दूसरे पक्ष ने एसडीएम न्यायालय में अपील की थी। इस दौरान पीडि़त पक्ष ने आरोप लगाया था कि तहसील कोर्ट के फैसले को नजर अंदाज कर एसडीएम युगल किशोर उर्वषा ने बदलते हुए एकपक्षीय फैसला सुनाया है। इतना ही नहीं ये भी शिकायत की गई थी कि एक ही दिन में कई आदेश एसडीएम ने जारी किया है। इसकी शिकायत पीडित नटवर बेरीवाल ने राजस्व मंडल से की थी।
इस मामले में पुलिस ने भी शहर के कुछ बिल्डर सहित 14 लोगों के खिलाफ 420 का मामला दर्ज किया था। वहीं मामले में राजस्व मंडल ने पीडि़त के शिकायत को प्रथम दृष्टया सही पाते हुए जांच शुरु की है। 4 दिन पूर्व राजस्व मंडल के सचिव जांच के लिए पहुंचे थे। आज राजस्व मंडल के अध्यक्ष सी के खेतान ने इस संबंध में विस्तृत जांच की। जांच पूरी होते तक राजस्व मंडल ने एसडीएम वाय के उर्वषा को पद से पृथक करने का निर्देश जिला कलेक्टर को दिया है।
हालांकि उन्होंने इस संबंध में मीडिया से बात करने से इंकार कर दिया। इस मामले में कलेक्टर भीम सिंह का कहना है कि नामांतरण के एक प्रकरण की जांच की जा रही है। चूंकि एसडीएम के द्वारा एक ही दिन में कई आदेश पारित किए गए हैं जिसमें जल्दबाजी दिख रही है ऐसे में मामला संदिग्ध मानते हुए जांच की जा रही है।
-रजनीश सिंह
नई दिल्ली, 16 सितम्बर (आईएएनएस)| सुन्नी जिहादियों के समूह इस्लामिक स्टेट ने हाल के वर्षों में 12 भारतीय राज्यों में अपना आधार स्थापित किया है।
ईरान और सीरिया स्थित आतंकवादी संगठन केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और जम्मू कश्मीर में सबसे ज्यादा सक्रिय है।
इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) ने 2014 के बाद से सीरिया और इराक के अधिकांश हिस्सों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है और बांग्लादेश, माली, सोमालिया और मिस्र जैसे देशों में उसकी शाखाएं हैं। लश्कर-ए-तैयबा और अल-कायदा जैसे अन्य आतंकी संगठनों के साथ उसके संबंध हैं। भारत में अपनी विचारधारा को फैलाने के लिए आईएस इंटरनेट आधारित विभिन्न सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल कर रहा है।
समूह में शामिल होने वाले विभिन्न राज्यों के व्यक्तियों के कई उदाहरण केंद्रीय और राज्य सुरक्षा एजेंसियों की नजर में आए हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद विनय पी. सहस्रबुद्धे के प्रश्न के लिखित उत्तर में गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने राज्य सभा में भारत के विभिन्न राज्यों में आईएस के बढ़ते आधार पर जानकारी प्रदान की है।
रेड्डी ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा जांच में पता चला है कि आईएस केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर में सबसे अधिक सक्रिय है।
उन्होंने बताया कि भारत की आतंकवाद-रोधी एजेंसी एनआईए ने दक्षिणी राज्यों तेलंगाना, केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में आतंकी गुट की मौजूदगी के संबंध में 17 मामले दर्ज किए और 122 लोगों को गिरफ्तार किया है।
उन्होंने बताया, "इस्लामिक स्टेट, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवांत, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया, दाएश, इस्लामिक स्टेट इन खोरासान प्रॉविन्स (आईएसकेपी), आईएसआईएस विलायत खोरासान, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक और शाम-खोरासान को केंद्र सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून, 1967 के तहत प्रथम अनुसूची में शामिल कर उन्हें आतंकी संगठन घोषित किया है।"
मंत्री ने बताया कि अपनी विचारधारा को फैलाने के लिए आईएस इंटरनेट आधारित विभिन्न सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल कर रहा है। इसे देखते हुए संबद्ध एजेंसियां साइबर स्पेस की सतत निगरानी कर रही हैं और कानून के अनुसार कार्रवाई की जाती है।
मंत्री ने बताया, "सरकार के पास सूचना है कि इन लोगों को वित्त कैसे मुहैया कराया जा रहा है और अपनी आतंकी गतिविधियों को संचालित करने के लिए उन्हें विदेशों से कैसे मदद मिल रही है।"
मुंबई, 16 सितम्बर (आईएएनएस)| मशहूर कॉमेडियन कुणाल कामरा द्वारा अभिनेत्री कंगना रनौत की तुलना भारतीय योगी सदगुरू संग किए जाने के बाद अब ट्विटर पर दोनों के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। इससे पहले कंगना ने सोशल मीडिया पर अपने एक पोस्ट के जरिए शोबिज को 'जहरीला' करार दिया था।
कंगना ने कहा था, "मनोरंजन जगत कुछ ऐसा है, जहां लोग आसानी से बहक जाते हैं। एक दूसरी सत्ता पर लोगों का यकीन होने लगता है, लोग अपनी एक छोटी सी दुनिया बना लेते हैं। इस मोह जाल से बचने के लिए ²ढ़ आध्यात्मिक आधार की जरूरत है।"
कंगना के इस बयान के बाद कामरा ने उनकी तुलना सदगुरू संग कर दी।
जिस पर कंगना ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "ये कुछ मूर्ख लोग मेरे संघर्ष, बौद्धिकता, आध्यात्मिक गहराई, साहस, सफलता और उपलब्धियों का श्रेय किसी ताकतवर इंसान को देने के लिए बेकरार हैं। इस बात को स्वीकारने में इनके कमजोर अहंकार को कितना चोट पहुंच रहा है कि मैं अपने बलबूते सफल हुई हूं और जिंदगी अपनी शर्तो पर जी रही हूं।"
इसके जवाब में कामरा ने लिखा, "मैं सोच रहा हूं कि आप जैसी किसी सशक्त महिला को वाई-सुरक्षा की जरूरत कैसे पड़ सकती है, जहां पुरूष जिंदगी को अपनी शर्तो पर जीने के लिए आपकी सुरक्षा कर रहे हैं।"
इसके जवाब में कंगना ने लिखा, "लोकतंत्र में किसी क्रांतिकारी आवाज की रक्षा करना संविधान का कर्तव्य है। इस मामले में आपको गौरवशाली लोकतंत्र के दो पहलू देखने को मिलते हैं 'द प्रोटेक्टेड ' और 'द प्रोटेक्टर।' आप इनमें से एक भी नहीं बन पाएंगे। कुछ ऐसा बनिए जो देश के लिए मायने रखें।"