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मुंबई, 12 जुलाई (वार्ता)। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और उनके पुत्र अभिषेक बच्चन के कोरोना संक्रमित होने के बाद बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने उनके आवास ‘जलसा’ को रविवार को निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर दिया।
महानायक और उनके पुत्र ने कोरोना संक्रमित होने की जानकारी खुद शनिवार देर रात अलग-अलग ट््वीट कर दी थी। दोनों को कोरोना पॉजिटिव पाये जाने के बाद उपचार के लिए नानावती अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
बीएमसी के कर्मचारी आज सुबह श्री बच्चन के आवास जलसा को सेनिटाइज करने पहुंचे।
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निगम की तरफ से जलसा को निषिद्ध क्षेत्र घोषित करने के बाद घर के बाहर पोस्टर भी चिपका दिया गया है।
नानावती अस्पताल के अनुसार, अमिताभ बच्चन को वायरस के हल्के लक्षण हैं और उनकी हालत स्थिर है। वह फिलहाल अस्पताल की आइसोलेशन इकाई में हैं। अस्पताल सूत्रों बताया कि अमिताभ की सेहत को लेकर फिलहाल चिंता की कोई बात नहीं है।
इससे पहले महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने बताया था कि दोनों की हालत स्थिर है और चिंता की कोई बात नहीं है। श्री टोपे ने कहा, अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन में हल्के लक्षण हैं। कोविड-19 के रैपिड एंटीजेन टेस्ट में दोनों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई और दोनों को नानावती अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
अमिताभ की पत्नी सांसद जया बच्चन और बहू अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन की कोरोना जांच नेगेटिव आई है।
मुंबई, 12 जुलाई (वार्ता)। अभिनेता अनुपम खेर की मां, भाई, भाभी और भतीजी कोरोना संक्रमित हैं जबकि वह संक्रमण से पीडि़त नहीं हैं।
श्री खेर ने रविवार को स्वयं ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा, मेरी मां दुलारी कोरोना पॉजिटिव हो गई हैं और उन्हें संक्रमण के हल्के लक्षण हैं। हमने उन्हें उपचार के लिये कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती कराया है।
श्री खेर ने लिखा, पूरे ऐहतियात बरतने के बावजूद मेरा भाई, भाभी और भतीजी भी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। उन्हें भी वायरस के मामूली लक्षण हैं। मैंने भी अपनी कोरोना जांच कराई जो नेगेटिव आई है।
अभिनेता ने कहा इस संबंध में बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) को सूचना दे दी गई है।
नई दिल्ली, 12 जुलाई (वार्ता)। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस देश के आठ केंद्र शासित प्रदेशों में अब तक 1,24,680 लोगों को अपनी गिरफ्त में ले चुका है, जो देश में अब तक इस संक्रमण से प्रभावित हुई देश की कुल आबादी का लगभग 14.68 प्रतिशत है।
केंद्र शासित प्रदेशों में कोविड-19 से सबसे बुरी स्थिति राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की है, यहां पर इस संक्रमण से अब तक 110921 लोग संक्रमित हुए हैं। इसके बाद इस जानलेवा विषाणु ने सबसे अधिक केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 10156 लोगों को अपनी गिरफ्त में लिया है। वहीं पुड्डुचेरी में 1337, लद्दाख में 1077, चंडीगढ़ में 555,दादर-नगर हवेली और दमन-दीव में 441 और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 163 लोग इससे संक्रमित हुए हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से रविवार को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस के 28637 नये मामले सामने आए हैं जिसके बाद कुल संक्रमितों की संख्या बढक़र 849553 हो गई है। देश में अब तक इस महामारी से 22,654 लोगों की मौत हुई है तथा 534621 लोग स्वस्थ हुए हैं। देश में इस समय कोरोना वायरस के 2,92258 सक्रिय मामले हैं।
नई दिल्ली, 12 जुलाई (वार्ता)। देश में कोरोना संक्रमण के दैनिक मामलों में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है और पिछले 24 घंटों में रिकॉर्ड साढ़े 28 हजार से अधिक मामले सामने आए हैं जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 8.50 लाख के करीब पहुंच गया है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से रविवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना संक्रमण के 28,637 नये मामले सामने आये हैं जो एक दिन में सर्वाधिक है और इससे संक्रमितों की संख्या 8,49,553 हो गई है। पिछले तीन दिन से लगातार 26 हजार से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। शनिवार को 27,114 और शुक्रवार को 26,506 नये मामले सामने आए थे।
संक्रमण के तेजी से बढ़ रहे मामलों के बीच राहत की बात यह है कि इससे स्वस्थ होने वालों कह संख्या भी लगातार बढ़ रही है। पिछले 24 घंटों के 19,235 रोगी स्वस्थ हुए हैं, जिन्हें मिलाकर अब तक कुल 5,34,621 रोगमुक्त हो चुके हैं। देश में अभी कोरोना संक्रमण के 2,92,258 सक्रिय मामले हैं। पिछले 24 घंटों के दौरान 551 लोगों की मौत से मृतकों की संख्या 22,674 हो गई है।
कोरोना महामारी से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में संंक्रमण के सर्वाधिक 8,139 नए मामले दर्ज किए गए जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 2,46,600 पर पहुंच गया है। राज्य में इस अवधि के दौरान 223 लोगों की मौत हुई है जिसके कारण मृतकों की संख्या बढक़र 10,116 हो गयी है। वहीं 1,36,985 लोग संक्रमणमुक्त हुए हैं।
संक्रमण के मामले में दूसरे स्थान पर पहुंचे तमिलनाडु में पिछले 24 घंटों के दौरान संक्रमण के मामले 33,965 बढक़र 1,34,226 पर पहुंच गये हैं और इसी अवधि में 69 लोगों की मौत से मृतकों की संख्या 1,898 हो गयी है। राज्य में 85,915 लोगों को उपचार के बाद अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोरोना महामारी की स्थिति अब कुछ नियंत्रण में है और यहां संक्रमण के मामलों में वृद्धि की रफ्तार थोड़ी कम हुई है। राजधानी में अब तक 1,10,921लोग कोरोना की चपेट में आये हैं तथा इसके कारण मरने वालों की संख्या 3,334 हो गई है। यहां 87,692 मरीज रोगमुक्त हुए हैं।
देश का पश्चिमी राज्य गुजरात कोविड-19 के संक्रमितों की संख्या मामले में चौथे स्थान पर है, लेकिन मृतकों की संख्या के मामले में यह महाराष्ट्र और दिल्ली के बाद तीसरे स्थान पर है। गुजरात में संक्रमितों का आंकड़ा 40 हजार के पार पहुंच गया है और अब तक 40,941 लोग वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 2,032 लोगों की मौत हुई है। राज्य में 28,649 लोग इस बीमारी से स्वस्थ भी हुए हैं।
दक्षिण के राज्य कर्नाटक में 36,216 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 613 लोगों की इससे मौत हुई है। राज्य में 14,761 लोग स्वस्थ भी हुए हैं। आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के अब तक 35,092 मामले सामने आए हैं तथा इस वायरस से 913 लोगों की मौत हुई है जबकि 22,689 मरीज ठीक हुए हैं।
दक्षिण के एक और राज्य तेलंगाना में भी कोरोना संक्रमण के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। तेलंगाना में संक्रमितों की संख्या 33,402 हो गयी है और 348 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 20,919 लोग अब तक इस महामारी से ठीक हो चुके है।
पश्चिम बंगाल में 28,453 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 906 लोगों की मौत हुई है और अब तक 17,959 लोग स्वस्थ हुए हैं। आंध्र प्रदेश में संक्रमितों की संख्या में तेजी से वृद्धि होने के कारण यह सर्वाधिक प्रभावित की सूची में राजस्थान से ऊपर आ गया है। राज्य में 27,235 लोग संक्रमित हुए हैं तथा मरने वालों की संख्या 309 हो गयी है। राजस्थान में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या 23,748 हो गयी है और अब तक 503 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 17,869 लोग पूरी तरह ठीक हुए है। हरियाणा में 20,582 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 297 लोगों की मौत हुई है।
इस महामारी से मध्य प्रदेश में 644, पंजाब में 195, जम्मू-कश्मीर में 169, बिहार में 131, ओडिशा में 61, उत्तराखंड में 46, असम में 35, केरल में 29, झारखंड में 23, पुड्डुचेरी में 18, छत्तीसगढ़ में 17, गोवा में 12 , हिमाचल प्रदेश में 11, चंडीगढ़ में सात, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा में दो तथा लद्दाख में एक व्यक्ति की मौत हुई है।
-महेन्द्र पांडे
हाल में ही भारत सरकार ने चीन के एप्प्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को देश की अखंडता, संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर देश में प्रतिबंधित कर दिया है। ऐसा कोई उदाहरण अब तक नहीं सामने आया है, जिससे पता चलता हो कि ये एप्प्स और सोशल मीडिया प्लेटफोर्म्स किसी भी तरह से देश की अखंडता, संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा पर धावा बोल रहे थे। दूसरी तरफ, जनता के बीच दिनभर फेक न्यूज और जहर उगलते फेसबुक और इन्स्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती।
हाल में ही रंगभेद के विरोध में चल रहे आन्दोलनों के बीच फेसबुक और इन्स्टाग्राम के बहिष्कार और इसे विज्ञापन न देने की आवाज अमेरिका से उठी है और अब भारत छोड़कर पूरी दुनिया पर इसका असर देखा जा रहा है। इस मुहीम को अमेरिका के अनेक मानवाधिकार संगठनों ने सम्मिलित तौर पर शुरू किया है और इसे “स्टॉप हेट फॉर प्रॉफिट” का नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत फेसबुक पर अपने विज्ञापन चलाने वाली कंपनियों से आग्रह किया गया है कि इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुलाई के महीने में विज्ञापन ना दें और इसके बहिष्कार की भी मांग की गई है।
स्टॉप हेट फॉर प्रॉफिट के तहत जुलाई शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 800 अमेरिकी कंपनियों ने फेसबुक को विज्ञापन देना बंद कर दिया है। इनमें फोर्ड, होंडा, लेविस स्ट्रास, टारगेट, युनिलिवर और एडीडास जैसी कंपनियां भी शामिल हैं। पेट्रोलियम कंपनी बीपी अभी इस संबंध में विचार कर रही है। यूरोप में वोक्सवैगन, हौंडा यूरोप, रोबिनसन, फोर्ड यूरोप, मार्स और ईडीएफ जैसी कंपनियों ने भी विज्ञापन देना बंद कर दिया है।
सेंटर कोउंटरिंग डिजिटल हेट के चीफ एग्जीक्यूटिव इनोरन अहमद ने यूरोपीय कंपनियों से इस मुहीम में शामिल होने का आह्वान किया है। उनके अनुसार फेसबुक को अमेरिका में राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है, पर यूरोप के अधिकतर देश तो इसे गंभीर समस्या मानते हैं, इसलिए यूरोपीय कंपनियों की इस मुहीम में व्यापक भागीदारी होनी चाहिए।
यूनाइटेड किंगडम के 37 मानवाधिकार संगठनों ने ब्रिटिश कंपनियों से भी इस मुहीम में शामिल होने का आग्रह किया है। एक आकलन के अनुसार दुनिया भर के बड़े विज्ञापनदाताओं में से एक-तिहाई से अधिक स्टॉप हेट फॉर प्रॉफिट में शामिल हो सकते हैं। यूरोप में अनेक जनमत संग्रह में जनता ने फेसबुक को सभी गलत सूचनाएं, भ्रामक प्रचार, हिंसा भड़काने और फेक न्यूज के लिए जिम्मेदार करार देने का समर्थन किया है।
न्यूजीलैंड के सबसे बड़े मीडिया हाउस- स्टफ ने भी घोषणा की है कि उन्होंने अस्थाई तौर पर फेसबुक से नाता तोड़ लिया है। हालांकि इसके फेसबुक पर दस लाख से अधिक फॉलोवर्स हैं, फिर भी स्टफ ने फैसला लिया है कि इस प्लेटफॉर्म पर अगली सूचना तक कोई भी समाचार नहीं डाला जाएगा। कंपनी के अनुसार, “हम ऐसे किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को आर्थिक लाभ नहीं पहुंचाना चाहते, जो आर्थिक लाभ का उपयोग हेट स्पीच और हिंसा भड़काने में करता हो।”
न्यूजीलैंड की मेसी यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की प्रोफेसर कैथरीन स्ट्रोंग ने इस कदम की सराहना की है। उनके अनुसार “फेसबुक और इन्स्टाग्राम अपने आर्थिक लाभ के चलते फेक न्यूज, समाज में पनपने वाली घृणा और हिंसा पर आखें बंद कर बैठे हैं। यह सब खतरनाक है। इस वैश्विक महामारी के दौर में भी ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कोविड 19 से संबंधित भ्रामक और खतरनाक समाचार फैलाने में व्यस्त हैं।”
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्देर्न ने भी स्टफ द्वारा उठाए गए कदम का स्वागत किया है, पर साथ ही यह भी कहा कि वे फिलहाल फेसबुक को नहीं छोड़ सकतीं, क्योंकि इसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से वो जनता से जुड़ी हैं। जेसिंडा अर्देर्न ने कहा कि वे फेसबुक से फेक न्यूज पर नियंत्रण रखने का अनुरोध करेंगी। पिछले वर्ष क्राइस्टचर्च में मस्जिदों पर एक ऑस्ट्रेलियन कट्टरपंथी ने स्वचालित हथियारों से गोलीबारी कर जब 50 से अधिक नमाज अदा कर रहे लोगों को मार डाला था, तब फेसबुक पर लाखों की तादात में भड़काऊ और हिंसक प्रवृत्ति के पोस्ट और वीडियो डाले गए थे, जिसकी न्यूजीलैंड ने सख्त शब्दों में भर्त्सना की थी।
फेसबुक अनेक वर्षों से अपने यूजर्स की व्यक्तिगत जानकारी भी लीक करता रहा है। साल 2018 के दौरान तो कैम्ब्रिज ऐनालीटिका मामले की खूब चर्चा की गई थी, जब करोड़ों लोगों की जानकारियां बाजार में पहुंच गई थीं। इसके बाद भी, फेसबुक के कार्य प्रणाली में कोई अंतर नहीं आया। साल 2019 में एक बार इन्स्टाग्राम ने 5 करोड़, और फेसबुक ने 42 करोड़ यूजर्स के डेटा लीक किए थे, यह मामला जब तक उजागर हुआ तब तक फेसबुक ने लगभग 27 करोड़ अन्य यूजर्स का डेटा बाजार में बेच दिया।
कैरोल कैडवलाद्र ने 5 जुलाई को द गार्डियन में फेसबुक के बारे में लिखा है, “दुनिया की कोई ताकत फेसबुक को किसी भी चीज के लिए जिम्मेदार बनाने में असमर्थ है। अमेरिकी कांग्रेस कुछ नहीं कर सकी और न ही यूरोपियन यूनियन इस पर लगाम लगा पाई। हालत यहां तक पहुंच गई है कि कैंब्रिज ऐनालीटिका मामले में जब अमेरिका के फेडरल ट्रेड कमीशन ने फेसबुक पर 5 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया तब फेसबुक के शेयरों के दाम आसमान छूने लगे।
फेसबुक के माध्यम से अमेरिका के 2016 के चुनावों में सारी विदेशी शक्तियां संलिप्त हो गयीं और इस कारण चुनाव के परिणाम प्रभावित हुए। फेसबुक ने तो अनेक बार नरसंहार के मामलों का भी सीधा प्रसारण किया है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक के माध्यम से म्यांमार में रोहिंग्या के लिए घृणा इस पैमाने पर फैलाई गई कि इसने हिंसा का स्वरुप ले लिया, सामूहिक नरसंहार किये गए और आज भी किये जा रहे हैं। इसके चलते हजारों रोहिंग्या मारे गए और लाखों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा।
हाल में फिलीपींस में जिस पत्रकार, मारिया रेसा को 7 वर्ष के कैद की सजा सुनाई गई है, उन्होंने भी समय-समय पर फेसबुक के संदिग्ध भूमिका के बारे में आगाह किया था। मानवाधिकार कार्यकर्ता मारिया रेस की सजा को फेसबुक के प्रतिकार के तौर पर ही देखते हैं। ब्रिटेन के पूर्व उप-प्रधानमंत्री फेसबुक को समाज का आइना बताते हैं, पर अनेक बुद्धिजीवी फेसबुक को आइना नहीं बल्कि हथियार बताते हैं, वह भी बिना लाइसेंस वाला हथियार, जिससे आप किसी की हत्या कर दें तब भी पकडे नहीं जाएंगे।
इस समय कुल 2.6 अरब लोग फेसबुक से जुड़े हैं, इस मामले में यह संख्या चीन की आबादी से भी अधिक है। मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इसकी तुलना चीन से नहीं की जा सकती, बल्कि इसे उत्तर कोरिया कहना ज्यादा उपयुक्त है, पर मार्क जुकरबर्ग तानाशाह किम जोंग से भी अधिक शक्तिशाली हैं। कुछ लोगों के अनुसार फेसबुक की यदि किसी हथियार से तुलना करनी हो तो वह हथियार बंदूक, राइफल, तोप या टैंक नहीं होगा, बल्कि सीधा परमाणु बम ही होगा। यह केवल एक तानाशाह, मार्क जुकरबर्ग के अधिकार वाला वैश्विक साम्राज्य है।
जुकरबर्ग का एक ही सिद्धांत है, भले ही पूरी दुनिया में हिंसा फैल जाए, नफरत फैल जाए, कितने भी आरोप लगें, पर किसी आरोप का खंडन नहीं करना, किसी पर ध्यान नहीं देना- बस अपने साम्राज्य का विस्तार करते जाना, और अधिक से अधिक धन कमाना। यही कारण है कि फेसबुक का रवैया कभी नहीं बदलता। हाल में ही जुकरबर्ग ने एक साक्षात्कार में कहा है कि चिंता की कोई बात नहीं है, जितने लोगों ने विज्ञापन बंद किया है, वे जल्दी ही फिर वापस आ जाएंगे। फेसबुक तो प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर मुख्य मीडिया को भी संचालित करता है।
फेसबुक के फेक न्यूज या हिंसा को भड़काने वाले पोस्ट केवल एक रंग, नस्ल या देश को ही प्रभावित नहीं करते, बल्कि इसका असर सार्वभौमिक है और दुनिया भर के लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। इसे केवल एक संयोग कहकर नहीं टाला जा सकता कि कोविड 19 से सबसे अधिक प्रभावित देशों में अमेरिका, ब्राजील, भारत और इंग्लैंड सम्मिलित हैं। जनवरी से अगर गौर करें तो फेसबुक और इंस्टाग्राम के पोस्ट इन देशों में इस महामारी के खिलाफ झूठे और भ्रामक प्रचार में संलग्न थे। इन चारों ही देशों की सरकारें ऐसी हैं, जो ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर प्रचार के बलबूते ही सत्ता पर काबिज हैं। फेसबुक का हाल तो ऐसा है, जो केवल चीन से ही बड़ा नहीं है बल्कि पूरे पूंजीवाद से बड़ा है। आज के पूंजीवाद को टिके रहने के लिए फेसबुक सबसे बड़ा सहारा है।(navjiwan)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 11 जुलाई। मजदूर परिवार की 11वीं की एक छात्रा ने अपने घर में फांसी पर लटककर जान दे दी।
घटना रतनपुर की है। रतनपुर थाना क्षेत्र के ग्राम कर्रा के संतोष केवट की पुत्री नीलू केंवट (19 वर्ष) शुक्रवार की रात 9 बजे खाना खाकर अपने कमरे में सोने चली गई थी। सुबह दरवाजा नहीं खुलने पर परिजनों ने खिडक़ी से देखा कि वह दुपट्टे के फंदे पर लटकी हुई है। सूचना देने पर पुलिस वहां पहुंची और शव को पोस्टमार्टम के लिये भेजा। घटनास्थल पर कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है। छात्रा के परिवार के लोग रोजी-मजदूरी करके गुजारा करते हैं। इन दिनों कोरोना संकट के अवकाश के कारण छात्रा घर पर ही रहती थी। मामले की पुलिस जांच कर रही है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर 12 जुलाई। दुर्ग जिले में आज सुबह प्राप्त रिपोर्ट में 13 कोरोना संक्रमित मरीजों की पुष्टि की गई है। जिसमें 6 बीएसएफ के जवान शामिल हैं। सभी मरीजों को ट्रेस कर जिला कोविड-19 हॉस्पिटल में दाखिल किए जाने की तैयारी की जा रही है।
जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया कि आज प्राप्त रिपोर्ट में जिले से कुल 13 पॉजिटिव मरीज की पुष्टि की गई है। जिसमें 6 जवान बीएसएफ के हैं। एक मरीज एसएसबी ट्रांजिट कैंप रिसाली का है। जबकि रहवासी क्षेत्रों में ग्रामीण अंचल से एक महिला टेकापार धमधा, दूसरी महिला सुंदर नगर दुर्ग की है। तीसरी महिला मरीज हरी नगर कातुल बोर्ड दुर्ग की रहवासी है। चौथी महिला मरीज भी दुर्ग क्षेत्र से ही है। एक पुरुष मरीज रूआबांधा सेक्टर भिलाई से है। जबकि एक अन्य पुरुष मरीज हाउसिंग बोर्ड भिलाई क्षेत्र से है। डॉ. ठाकुर ने बताया कि सभी 13 मरीजों को ट्रेस करके उनकी स्थिति को देखते हुए जुनवानी स्थित जिला कोविड-19 हॉस्पिटल एवं एम्स रायपुर में दाखिल करने की तैयारी की जा रही है।
तनाव की आग में घी डालने की तरह ?
रजनीश कुमार
बीबीसी संवाददाता
नेपाल में चीन की राजदूत होउ यांकी संकटग्रस्त केपी शर्मा ओली सरकार में कई मुलाक़ातों को लेकर निशाने पर हैं.
नेपाल में विपक्ष से लेकर मीडिया तक में सवाल उठा कि घरेलू राजनीति में किसी राजदूत की ऐसी सक्रियता ठीक नहीं है. मुलाक़ातों का यह दौर पिछले ढाई महीने से चल रहा है.
भारत में नेपाल के राजदूत रहे लोकराज बराल ने इन्हीं मुलाक़ातों को लेकर पाँच मई को नेपाल टाइम्स से कहा था कि चीन नेपाल की राजनीति में माइक्रो मैनेजमेंट की ओर बढ़ रहा है. उन्होंने यह भी कहा था कि कुछ साल पहले तक यही काम भारत नेपाल में करता था.
सात जुलाई को होउ यांकी की सत्ताधारी पार्टी के नेताओं से जारी मुलाक़ातों के ख़िलाफ़ काठमांडू में नेपाली छात्रों ने चीनी दूतावास के बाहर पोस्टर लेकर प्रदर्शन भी किया.
पोस्टरों पर लिखा था कि दूतावास सत्ताधारी नेताओं के घर से संचालित न हो. इसे लेकर कुछ विपक्षी नेताओं ने भी सवाल उठाए.
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से पार्टी के लोग ही इस्तीफ़ा मांग रहे हैं. इस्तीफ़ा मांगने वाले पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के खेमे के लोग हैं. भारत के मुख्याधारा के मीडिया में कहा जा रहा है कि चीन ओली सराकर को बचाने में लगा है क्योंकि ओली भारत विरोधी हैं.
यहां तक कि कई हिन्दी चैनलों ने प्रधानमंत्री केपी ओली और चीनी राजदूत होउ यांकी को लेकर सनसनीख़ेज़ दावे किए. कुछ चैनलों ने यह स्टोरी चलाई कि ओली को हनी ट्रैप में फंसा दिया गया है.
नेपाल ने इन रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई और केबल ऑपरेटरों से कहा कि ऐसे भारतीय न्यूज़ चैनलों को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए प्रसारण से रोके.
जब भारत-नेपाल के बीच शुरू हुआ तनाव
काठमांडू पोस्ट के मुताबिक़, नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली ने कहा कि उन्होंने भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य को भारतीय विदेश मंत्रालय के सामने कड़ी आपत्ति दर्ज कराने के लिए कहा है.
नीलांबर ने कहा कि भारतीय मीडिया नेपाल और भारत के द्विपक्षीय संबंधों को और ख़राब कर रहा है.
नेपाली मीडिया में कार्टून
नेपाल और भारत में पिछले कुछ महीनों से सीमा विवाद के कारण तनाव है. दोनों देशों के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर पहुंच गए हैं. 22 मई को नेपाल ने नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जिसमें कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को अपना हिस्सा बताया था.
इसके बाद से दोनों देशों में तनाव बढ़ता गया. हालांकि इससे पहले भारत ने पिछले साल नवंबर में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद अपना नक्शा अपडेट किया था. इस नक्शे में ये तीनों इलाक़े थे.
भारत का कहना है कि उसने किसी नए इलाक़े को नक्शे में शामिल नहीं किया है बल्कि ये तीनों इलाक़े पहले से ही हैं.
इन तमाम विवादों को भारतीय मीडिया में ख़ूब जगह मिली.
भारतीय मीडिया ने सही भूमिका निभाई?
क्या भारतीय मीडिया ने पूरे विवाद को जिस तरह से कवर किया वो दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में आए तनाव की आग में घी डालने की तरह है?
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कॉम्युनिकेशन में प्रोफ़ेसर आनंद प्रधान कहते हैं, ''इसमें कोई शक नहीं है. भारतीय मीडिया की रिपोर्टिंग में पत्रकारिता की जो बुनियादी चीज़ होती है उसका भी पालन नहीं किया गया है. आपकी रिपोर्टिंग तथ्यों के आधार पर होनी चाहिए. आप गल्प नहीं गढ़ सकते. आप अपने शो की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किसी राजनयिक को प्रधानमंत्री के साथ हनी ट्रैप की बात कैसे चला सकते हैं? ये तो बहुत ही आपत्तिजनक है.''
आनंद प्रधान कहते हैं, ''दरअसल, दिक़्क़त यह है कि भारतीय मीडिया को लगता है कि नेपाल भारत का एक्स्टेंशन है. ये आज तक स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि वो एक संप्रभु राष्ट्र है और ख़ुद फ़ैसले ले सकता है. नेपाल अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रूप से चला सकता है. भारतीय मीडिया को उपनिवेशवादी मानसिकता से बाज़ आने की ज़रूरत है. अगर इनकी रिपोर्टिंग ऐसी ही जारी रही तो दोनों देशों के संबंधों में लोगों के बीच जो गर्मजोशी है उसे भी नुक़सान होगा.''
नेपाल में नया पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार नरेश ज्ञावली कहते हैं कि अगर भारतीय मीडिया बताता है कि नेपाल चीन की गोद में बैठ गया है तो उसे इसके पक्ष में तथ्य भी देना चाहिए.
वो कहते हैं, ''भारत नेपाल की राजनीति में 2015 तक माइक्रो मैनेजमेंट करता रहा. नेपाल की राजनीति को नेपाल के लोग तय करेंगे न कि भारत. हमारा संविधान कैसा होगा ये भारत नहीं तय करेगा. ये नेपाल के लोग तय करेंगे. अगर नेपाल में मधेसी संविधान को लेकर सहमत नहीं थे तो ये नेपाली जनता का नेपाल की सरकार के ख़िलाफ़ विरोध था. भारत का मीडिया मधेसियों को भारतीय मूल का बताता है. ऐसा क्यों करता है? क्या मधेसी भारतीय मूल के हैं? मधेसी नेपाली हैं और उन्हें अपने अधिकारों को पाने के लिए भारत की ज़रूरत नहीं है. लेकिन भारत ने इसी को लेकर अघोषित नाकाबंदी लगा दी.''
भारत से दूरी के कारण चीन आया नेपाल के क़रीब?
ज्ञावली कहते हैं, ''नाकाबंदी के बाद नेपाल में ज़रूरत के सामानों की किल्लत हो गई. हम लैंड लॉक्ड देश हैं. भारत को ये बात पता है और फिर भी नाकाबंदी की. तो क्या हम भूखे रहते? चीन के अलावा विकल्प क्या था? हमें तो किसी से मदद लेनी थी. चीन के क़रीब भेजा किसने? जिस ओली को भारतीय मीडिया ने विलेन बना दिया है उसी ओली को भारत का क़रीबी कहा जाता था."
"महाकाली संधि को कराने में ओली की अहम भूमिका थी. भारत अपने क़रीबियों को भी क़रीब क्यों नहीं रख पा रहा है? ये कितनी गंदी हरकत है कि किसी महिला डिप्लोमैट का नाम बिना कोई तथ्य के प्रधानमंत्री के साथ हनी ट्रैप में घसीट दिया जाए. ये ओली और उस महिला डिप्लोमैट का नहीं बल्कि नेपाल का अपमान है. आप चाहते हैं कि अपमान भी सहें और आपके पीछे-पीछे भी चलें?''
काठमांडू पोस्ट के एक वरिष्ठ रिपोर्टर ने नाम नहीं ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, ''जो भारतीय मीडिया ये दिखा रहा है कि ओली चीन समर्थक हैं उसे तथ्यों का इल्म नहीं है. अमरीका ने नेपाल के साथ 50 करोड़ डॉलर का मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन यानी एमसीसी करार किया है. यह करार इंडो पैसिफिक स्ट्रैटिजी का हिस्सा है. ज़ाहिर है इसमें भारत भी शामिल है. चीन क़तई नहीं चाहता है कि यह क़रार ज़मीन पर उतरे."
"एमसीसी नेपाल में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए हैं. इस समझौते को प्रधानमंत्री ओली ने ही अंजाम तक पहुंचाया है. अगर ओली की कुर्सी ख़तरे में है तो इसकी एक बड़ी वजह ये भी है. नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर ही एमसीसी पर सहमति नहीं है. प्रचंड नहीं चाहते हैं कि यह करार आगे बढ़े लेकिन ओली इससे डिगना नहीं चाहते हैं. अब भारत और भारतीय मीडिया ख़ुद तय कर ले कि क्या ओली वाक़ई चीन समर्थक हैं?''
नेपाली मीडिया में कार्टून
नेपाल में एमसीसी को लेकर कहा जाता है कि यह चीन को रोकने के लिए है. अमरीका ने एक जून, 2019 को इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटिजी रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में चीन को ख़तरा बताया गया है.
दरअसल, नेपाल एमसीसी के साथ चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड का भी हिस्सा है. 2015 में भारत की तरफ़ से अघोषित नाकाबंदी हुई थी तो नेपालियों को लगा कि चीन से और क़रीब आने की ज़रूरत है. ऐसे में वन बेल्ट वन रोड को भी सकारात्मक रूप में लिया गया. चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर अमरीका ने भी नेपाल को काफ़ी तवज्जो दी है.
इसी साल जनवरी में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की स्टैंडिंग कमिटी की बैठक हुई थी तो एमसीसी का मुद्दा उठा था. पार्टी के भीतर कई नेताओं ने कहा कि यह इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटिजी का हिस्सा है और इससे चीन के साथ संबंध ख़राब होंगे.
'नेपाल के पीएम की भी मर्यादा है'
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर भी इसे भारत और अमरीका की चीन के ख़िलाफ़ रणनीति बताई जा रही है. हालांकि विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली सफ़ाई दे चुके हैं कि एमसीसी इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटिजी का हिस्सा नहीं है.
नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमरे कहते हैं कि भारत को ब्रिग ब्रदर की तरह पेश नहीं आना चाहिए.
वो कहते हैं, ''अगर नेपाल सीमा विवाद को लेकर भारत से बातचीत के लिए अनुरोध कर रहा है तो उसे स्वीकार करना चाहिए. आप चीन से बात कर सकते हैं, पाकिस्तान से कर सकते हैं तो नेपाल से करने में क्या दिक़्क़त है.''
कई भारतीय पत्रकारों को भी लगता है कि भारतीय न्यूज़ चैनलों पर नेपाल-भारत तनाव की रिपोर्टिंग किसी गॉसिप की तरह की गई है.
इंडिया टुडे के एक जाने-माने एंकर ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ''नेपाल-भारत में विवाद पर कुछ चैनलों की रिपोर्टिंग बॉलीवुड गॉसिप की तरह है. अगर आपके प्रधानमंत्री की मर्यादा है तो नेपाल के पीएम की भी उतनी ही मर्यादा है. आप पत्रकार हैं इसका मतलब ये नहीं कि किसी का मान मर्दन करें और किसी की तारीफ़ में बिछे रहें.'' (www.bbc.com)
- बाबा मायाराम
श्रम आधारित गांव की, खेती की संस्कृति की वापसी हो रही है। गांव की पारंपरिक खान-पान संस्कृति बच रही है। इस तरह की मुहिम को आंगनबाड़ी जैसी योजनाओँ से भी जोड़ा जा सकता है। बाड़ियों में सब्जियों की खेती गांवों में पारंपरिक तरीके से होती रही है। लोग अपने घर के पीछे बगीचे में व खेत में सब्जी उगाते रहे हैं। विशेषकर महिला किसानों की इसमें प्रमुख भूमिका होती है। उनमें इसे करने का स्वाभाविक कौशल भी है। बल्कि वे जहां भी रिश्तेदारी में जाती हैं, वहां से बीज लाकर लगाती हैं। बीजों का आदान-प्रदान होता रहता है।
कूकरापानी गांव की भगवंतिन बाई की बाड़ी में कई तरह की हरी सब्जियां लहलहा रही हैं। लौकी, कुम्हड़ा, तोरई, सेमी, करेला और कद्दू की बेल बागुड़ पर फैली हुई हैं। पपीता,सीताफल, मुनगा, अमरूद और आम के हरे भरे फलदार पेड़ भी हैं। भगवंतिन की आंखें चमक रही हैं, पिछले साल उसने बारह सौ रूपए की बरबटी बेच ली थी।
यह गांव कबीरधाम जिले के बोड़ला प्रखंड में है। मैकल पहाड़ की दलदली घाटी की तलहटी में बसा है। भगवंतिन बाई, अकेली महिला नहीं है, जिसने हरी सब्जियों की खेती की है। इस प्रखंड में 24 गांव के 305 परिवार उनकी बाड़ी (किचिन गार्डन) में सब्जी की खेती कर रहे हैं। इसी तरह, गरियाबंद जिले के कमार और गोंड आदिवासी भी बाड़ियों में सब्जियों की खेती कर रहे हैं। गरियाबंद के करीब 300 परिवारों ने इसे अपनाया है।
मैंने कुछ समय पहले इस इलाके का दौरा किया था। 29 अगस्त (वर्ष 2019) की शाम मैं यहां पहुंचा था, और तरेगांव में सामाजिक कार्यकर्ता अमरदास मानकर के घर ठहरा था। यह गांव दलदली घाटी के नीचे बसा है, यहां फोन संपर्क भी मुश्किल है। उस दिन रिमझिम तो कभी जोर से बारिश हो रही थी। हमने इस बीच में ही करीब आधा दर्जन गांवों का दौरा किया। पहाड़ के ऊपर बसे भुरसीपकरी, बम्हनतरा और तलहटी में बसे कूकरापानी, तरेगांव, मगरवाड़ा, कोमो गांव गए थे। कूकरापानी और कोमो गांव में आदिवासियों ने बाड़ियों में अच्छी सब्जियों की खेती की है।
ग्रामोदय केन्द्र संस्था आदिवासी गांवों में आजीविका संवर्धन का काम कर रही है। राजिम की प्रेरक संस्था इसमें सहयोग कर रही है। इस इलाके में आदिवासियों की पोषण, स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति बेहतर करने का काम किया जा रहा है।
यह इलाका आदिवासी बहुल है। बैगा और गोंड यहां के बाशिन्दे हैं। जंगल ही आदिवासियों का जीवन का आधार है। उनकी जिंदगी जंगल पर ही निर्भर थी। वर्षा आधारित खेती होती है। लेकिन मौसम बदलाव के कारण वह भी ठीक से नहीं हो रही है। इससे आदिवासियों की आजीविका प्रभावित हो रही है। बैगा तो बेंवर खेती (शिफ्टिंग कल्टीवेशन) करते थे। जिसमें कोदो, कुटकी, मड़िया, कांग, सल्हार, सांवा, कतकी जैसे पौष्टिक अनाज उगाते थे। लेकिन अब उस पर रोक है।
ग्रामोदय संस्था के उदयेश्वर धारने बताते हैं कि आदिवासियों को साल भर पोषणयुक्त भोजन मिले, यह हमारी कोशिश है। उनकी संस्था इसके लिए बाड़ी ( किचिन गार्डन) को बढ़ावा देती है। जिसमें लौकी, कुम्हड़ा,मखना ( कद्दू), बरबटी, सेमी, भिंडी, ग्वारफली, करेला, टमाटर,डोडका ( चिकनी तोरई), खट्टा भाजी, चेंच भाजी, झुरगा आदि लगाते हैं। फलदार पेड़ों में सीताफल, जाम, जामुन, मुनगा, नींबू, पपीता, करौंदा आदि का रोपण करवाते हैं।
वे आगे बताते हैं कि हमारा उद्देश्य है कि लोगों को 6 से 8 महीने बाड़ी से हरी ताजी तरकारी मिले और उसमें से कुछ बेचकर आमदनी भी हो सके। इसके अलावा, संस्था जैविक मिश्रित खेती, मछली पालन, बकरीपालन और जलसंरक्षण जैसी काम भी करती है।
यहां आदिवासियों ने 6 गांवों में बीज बैंक भी बनाए हैं। जिसमें कोमो, पड़ियाधरान,गुडली, आमानारा, कुरलूपानी, कूकरापानी शामिल हैं। यहां से लोग बीज लेते हैं और जब फसल आने पर वापस करते हैं।
प्रेरक संस्था राजिम के सामाजिक कार्यकर्ता रामगुलाम सिन्हा बताते हैं कि हमारा उद्देश्य आदिवासियों के जीवन को बेहतर करना है। इस तरह के प्रयास छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचलों में किए जा रहे हैं। उनकी संस्था धमतरी, महासमुंद, बस्तर, कवर्धा, राजनांदगांव, जांजगीर चांपा, बिलासपुर, कोरबा और रायगढ़ जिले में यह काम कर रही है। इनमें से एक गरियाबंद जिला भी है। यहां कमार आदिवासी हैं, जिन्होंने बैगा आदिवासियों की तरह ही कभी स्थाई खेती नहीं की है, लेकिन बदलते समय में आजीविका के लिए यह जरूरी हो गया है। इसके लिए मिश्रित खेती और बाड़ी को प्रोत्साहित किया जा रहा है। क्योंकि जंगलों से मिलने वाले खाद्य कंद-मूल, मशरूम और हरी पत्तीदार सब्जियों में कमी आ रही है।
वे आगे बताते हैं कि गरियाबंद में कमार आदिवासी हैं। यहां वर्ष 2014 से सब्जियों की खेती की जा रही है। कमार और गोंड के 3 सौ से ज्यादा परिवार यह काम कर रहे हैं। यह सब देसी बीजों से और पूरी तरह जैविक पद्धति से हो रहा है। इसमें हरी पत्तीदार सब्जियां, फल्लीदार सब्जियां, कंद, मसाले और औषधियुक्त पौधे शामिल हैं।
सब्जी बाड़ी में अगर कीट प्रकोप होता है तो स्थानीय स्तर पर जैव कीटनाशक तैयार किए जाते हैं। गरियाबंद में प्रेरक संस्था से जुड़े रोहिदास यादव बताते हैं कि तम्बाकू काढ़ा, नीमतेल घोल, नीला थोथा सुहागा और पंचपर्णी (ऐसे पौधों के पत्ते जिन्हें जानवर नहीं खाते- जैसे नीम,करंज, धतूरा, सीताफल आदि) जैव कीटनाशक बनाए जाते हैं। ये सभी कीटनाशक ग्रामीण खुद तैयार करते हैं। उनका छिड़काव करते हैं। ये बाजार के कीटनाशकों की तुलना में काफी सस्ते हैं और आसानी से बनाए जा सकते हैं। जैव खाद तैयार कर मिट्टी को उपजाऊ बनाया जाता है जिससे अच्छी उपज आ सके।
इसके अलावा, जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। धान की देसी किस्मों का संरक्षण किया जा रहा है। भिलाई गांव में संस्था के खेत में 350 प्रकार की देसी धान की किस्में उगाई जाती हैं। छत्तीसगढ़ की पहचान धान के कटोरे से है। यहां ही विश्व प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डा. आर.एच. रिछारिया ने 17 हजार से ज्यादा देसी धान की किस्मों का संग्रह किया था। मिश्रित खेती में कोदो, मड़िया, अमाड़ी, अरहर , झुरगा, मक्का, ज्वार औऱ बाजरा की खेती की जा रही है।
बाड़ियों में सब्जियों की खेती गांवों में पारंपरिक तरीके से होती रही है। लोग अपने घर के पीछे बगीचे में व खेत में सब्जी उगाते रहे हैं। विशेषकर महिला किसानों की इसमें प्रमुख भूमिका होती है। उनमें इसे करने का स्वाभाविक कौशल भी है। बल्कि वे जहां भी रिश्तेदारी में जाती हैं, वहां से बीज लाकर लगाती हैं। बीजों का आदान-प्रदान होता रहता है। लेकिन समय के साथ इसमें कई कारणों से कमी आ रही है।
कुल मिलाकर, इस पूरी पहल का कई तरह से असर देखा जा रहा है। देसी बीजों का संरक्षण हो रहा है। हरी ताजी, पोषणयुक्त सब्जियों, कंद और फल भोजन में शामिल हो रहे हैं। पोषण और स्वास्थ्य अच्छा हुआ है। क्योंकि इस इलाके में पहले लोग सब्जियों का इस्तेमाल कम करते थे। दाल तो बहुत कम ही होती थी। अब उन्हें सब्जियां मिल रही हैं। स्वादिष्ट व मसालेदार भोजन मिलता है। परिवार की आय बढ़ी है।
भूमिहीन परिवार और कम जमीन वाले आदिवासी परिवार भी इससे लाभांवित हो रहे हैं। वनाधिकार कानून ( अनुसूचित जनजाति औऱ अन्य परंपरागत वन निवासी ( वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के तहत यहां वन भूमि लेने के लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं। इसके लिए निजी व सामुदायिक दावे किए जा रहे हैं। महिला सशक्तीकरण भी हुआ है। घर के इस्तेमाल किए हुए पानी का उपयोग हो रहा है। श्रम आधारित गांव की, खेती की संस्कृति की वापसी हो रही है। गांव की पारंपरिक खान-पान संस्कृति बच रही है। इस तरह की मुहिम को आंगनबाड़ी जैसी योजनाओँ से भी जोड़ा जा सकता है। यह बहुत ही उपयोगी, सराहनीय और अनुकरणीय पहल है।(sapress)
कुछ राज्यों ने विरोध किया था
यूजीसी ने छह जुलाई को सभी संस्थानों को सितंबर के अंत तक टर्मिनल सेमेस्टर या अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित कराने की सलाह दी थी. पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र और पंजाब ने यूजीसी के इसका विरोध करते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है.
नई दिल्लीः बीते छह जुलाई को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सभी संस्थानों को सितंबर के अंत तक टर्मिनल सेमेस्टर या अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित कराने की सलाह दी थी, जिसका कुछ राज्यों ने विरोध किया था.
मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को लेकर यूजीसी के दिशानिर्देश राज्यों के लिए बाध्यकारी हैं. हालांकि चार राज्यों ने इसके विरोध में केंद्र सरकार को पत्र लिखा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र और पंजाब इन चार राज्यों ने यूजीसी के इन दिशानिर्देशों का विरोध करते हुए इनका पालन नहीं करने में असमर्थता जताई है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार को इसका विरोध जताते हुए कहा था कि परीक्षाएं रद्द की जानी चाहिए और छात्रों को उनके पहले के प्रदर्शन के आधार पर प्रमोट किया जाना चाहिए.
एचआरडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘बिना परीक्षा के डिग्री का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा और इससे इस बैच की रोजगार क्षमता प्रभावित होगी. क्या हम एक लोकलुभावन दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और सभी को प्रमोट कर देना चाहिए या इन छात्रों का भविष्य ध्यान में रखना चाहिए.’
अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकारें परीक्षाओं पर फैसला नहीं ले सकती हैं, क्योंकि परीक्षाएं आयोजित कराने को लेकर दिशानिर्देश जारी करने का अधिकार यूजीसी का है.
यूजीसी के एक अधिकारी ने कहा, ‘यूजीसी एक्ट 1956 की धारा 12 में साफतौर पर लिखा है कि यूजीसी इस तरह के सभी कदम उठा सकती है, जो विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रसार और समन्वय के लिए जरूरी हो और यूनिवर्सिटी में शिक्षण, परीक्षा और शोध के मानकों को बनाए रखने के लिहाज से सही हो.’
अधिकारी ने कहा, 2003 के यूजीसी रेगुलेशन के तहत विश्वविद्यालयों को आयोग द्वारा जारी किए गए परीक्षा संबंधित दिशानिर्देश समय-समय पर अपनाने पड़ेंगे.
यूजीसी और एचआरडी मंत्रालय ने अभी तक राज्यों द्वारा लिखे गए पत्रों का जवाब नहीं दिया है.
यह पूछने पर कि विश्वविद्यालयों की इमारतों को क्वारंटीन के तौर पर इस्तेमाल में लाए जाने पर विश्वविद्यालय किस तरह परीक्षाएं कराएंगे?
इस पर यूजीसी के एक अधिकारी ने कहा, ‘विश्वविद्यालयों के पास परीक्षाएं आयोजित कराने के लिए सितंबर तक का समय है और उनके पास निर्णय लेने की पूरी स्वायत्तता है कि वे कैसे परीक्षाएं कराएंगे. सभी शैक्षणिक संस्थानों की इमारतों को क्वारंटीन के तौर पर इस्तेमाल में नहीं लाया जा रहा.’
मालूम हो कि कांग्रेस ने शुक्रवार को कई शीर्ष नेताओं के साथ मिलकर एक सोशल मीडिया अभियान शुरू किया, जिसके तहत वीडियो संदेशों के जरिये यूजीसी की आलोचना कर परीक्षाएं आयोजित कराने के उनके फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा गया. (thewirehindi.com)
नीतीश से खफा हैं चिराग पासवान
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के प्रमुख घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के प्रमुख चिराग पासवान के राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव के सुर में सुर में मिलाने के बाद बिहार में कयासों का बाजार गर्म हो गया।
-मनोज पाठक
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रमुख घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान के राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के सुर में सुर में मिलाने के बाद बिहार में कयासों का बाजार गर्म हो गया।
जनता दल (युनाइटेड) से नाराज चल रहे चिराग ने कोरोना काल में बिहार विधानसभा चुनाव नहीं कराने की बात कहकर तेजस्वी का समर्थन किया है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या चिराग की नजदीकी महागठबंधन के नेताओं से बढ़ रही है। हाल के दिनों में चिराग की जेडी(यू) से नाराजगी किसी से छिपी नहीं है।
चिराग कई बार बिहार सरकार की सार्वजनिक मंचों से आलोचना कर चुके हैं। चिराग ने एलजेपी के मुंगेर जिला अध्यक्ष को केवल इसलिए पद से हटा दिया कि उसने 'एनडीए के एकजुट' होने की बात मीडिया में कही थी।
सूत्रों के मुताबिक, चिराग पासवान एनडीए में सीट शेयरिंग की बातचीत से नाराज हैं। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चिराग पासवान से काफी नाराज चल रहे हैं और बिहार विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी को केवल 25 से 30 सीट देने के पक्ष में हैं, वही चिराग पासवान की मांग है कि चुनाव में उनकी पार्टी को कम से कम 42 सीटें दी जाए।
चिराग हालांकि एक दिन पहले ट्वीट कर बीजेपी और जेडीयू को यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि उसे सम्मानजनक सीटें नहीं मिली तो वह कोई भी फैसला ले सकते हैं। चिराग ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए एलजेपी की पूरी तैयारी है। 94 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए पार्टी ने तैयारी कर ली है। पार्टी 149 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
चिराग पासवान की इसी नाराजगी का फायदा तेजस्वी यादव उठाना चाहते हैं। कुछ दिन पूर्व जब तेजस्वी यादव से इसे लेकर सवाल पूछा गया था, तब उन्होंने कहा कि अगर ऐसी कोई बात होगी तो उस पर जरूर विचार किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि तेजस्वी भी कोरोना काल में चुनाव नहीं कराने की मांग कर चुके हैं।
आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी भी कहते हैं कि राजनीति में कोई ना दुश्मन होता है और ना ही दोस्त। उन्होंने कहा, "चिराग जी को लगता है कि नीतीश कुमार ने बिहार को ठगा है और वे महागठबंधन में आते हैं, तो उनका स्वागत है।" इधर, जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव ने भी चिराग के बहाने बिहार में दलित मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर चुके हैं।
इधर, बीजेपी ऐसे किसी बयानों का समर्थन करती नजर नहीं आ रही है। बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं, बीजेपी संगठन और विचारधारा की बुनियाद पर लगातार काम करने वाली पार्टी है जिसने कोरोना के त्रासदी के दौर में राष्ट्रव्यापी जनसेवा की एक मिसाल कायम की है। बीजेपी सिर्फ चुनाव की चिंता वाली राजनीति नहीं करती है लेकिन संगठन और विचारधारा की ताकत की बदौलत हर समय चुनाव के लिए तैयार रहती हैं।
उन्होंने कहा, हर राजनीतिक दल चुनाव के बारे में अपना विचार प्रकट करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन चुनाव से संबंधित हर विषय चुनाव आयोग के दायरे और निर्णय की बात होती है। बीजेपी, चुनाव आयोग जैसी महत्वपूर्ण संस्था का दिल से सम्मान करती है और अक्टूबर-नवम्बर 2020 में आसन्न विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग के हर निर्णय का स्वागत करेगी। (IANS)
-एम सोमशेखर
भारत और दुनिया भर के लिए कोविड-19 पर नियंत्रण करने वाला वैक्सीन बनाने की बड़ी चुनौती है। इस दिशा में काफी काम हो रहा है। हजारों लोग कोविड-19 के शिकार हो रहे हैं और इस वायरस से सुरक्षा वाले वैक्सीन को लेकर सकारात्मक सूचना सुनने की प्रतीक्षा लाखों लोग कर रहे हैं। लेकिेन इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने जिस तरह घरेलू भागीदारी से ‘मेड इन इंडिया’ वैक्सीन बनाने के लिए 15 अगस्त की डेडलाइन तय की है, उससे हंगामा खड़ा हो गया है।
इसे बनाने और इस पर मानव ट्रायल करने में लगे संबद्ध भागीदार और 12 अस्पतालों को सरकारी, आंतरिक पत्र के जरिये आईसीएमआर प्रमुख डॉ. बलराम भार्गव के ‘निर्देश’ का संदेश वैज्ञानिक समुदाय के बीच अच्छा नहीं गया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह सत्ता की उच्चस्थ शक्तियों के इशारे पर किया गया है।
विपक्ष के आरोपों को इस बात से भी बल मिला है कि मई के पहले सप्ताह में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कहा था कि कोविड19 के खिलाफ वैक्सीन जुलाई-अगस्त में हैदराबाद से आएगा। लॉकडाउन से संबंधित मामलों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत के दौरान राव ने कथित तौर पर यह बात कही थी और यह बात चर्चा में भी रही थी। इस घरेलू वैक्सीन को हैदराबाद के भारत बायोटेक ने पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) और आईसीएमआर के साथ मिलकर तैयार किया है।
लेकिेन आईसीएमआर की चिट्ठी की स्याही सूखती, इससे पहले ही कई वैज्ञानिकों और इंडियन नेशनल साइंस अकादमी (आईएनएसए), इंडियन एकेडमी ऑफ साइसेंज (आईएएससी)- जैसे वैज्ञानिक संगठन इसके खिलाफ खुलकर आगे आए और यह बात रेखांकित किया कि डेडलाइन किस तरह अव्यावहारिक है और अगर इस पर जोर दिया गया, तो यह कैसे भारतीय विज्ञान की छवि को नुकसान पहुंचाएगा।
अकादमी ने एक बयान जारी किया और कहा कि ऐसा वह सार्वजनिक हित में कर रही है। इसमें वैक्सीन तैयार करने के लिए 42 दिनों का लक्ष्य तय करने पर उसने आईसीएमआर की आलोचना की और कहा कि कठोर वैज्ञानिक प्रक्रियाओं और स्तरों के साथ समझौता कर जल्दबाजी में किए गए समाधान का भारत के नागरिकों पर अनदेखे स्तर के दीर्घजीवी विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है।
इस तरह की प्रतिक्रियाओं के बाद केंद्र सरकार ने अपने रुख में थोड़ा बदलाव किया। पहले तो आईसीएमआर ने खुद ही कहा कि 15 अगस्त की डेडलाइन कोविड-19 की अप्रत्याशित प्रकृति के मद्देनजर और वैश्विक रुख के तहत ट्रायल की गति बढ़ाने के लिए तय की गई थी। इसका उद्देश्य वैधानिक अनिवार्यताओं की अनदेखी किए बिना अनावश्यक लालफीताशाही को खत्म करना था। इसका लक्ष्य ह्यूमन ट्रायल के दो चरणों को यथाशीघ्र पूरा करना और आबादी को लेकर अध्ययनों को बिना देर किए करना था।
लेकिेन प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. गगनदीप कांग ने गत 6 जुलाई को जिस तरह फरीदाबाद स्थित ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक-पद से इस्तीफा दिया, उससे यह विवाद गहरा ही गया लगता है। डॉ. कांग ने हालांकि इसका कारण व्यक्तिगत बताया है, पर यह बात ध्यान में रखनी है कि अभी उनका एक साल का कार्यकाल बचा हुआ था। वह न सिर्फ कोविड-19 की टेस्टिंग से संबद्ध काम में लगी हुई थीं, बल्कि वह ऐसी राष्ट्रीय समिति की प्रमुख भी थीं जो देसी दवाओं और वैक्सीन के विकास को दिशा दे रही थी। इस समिति का काम दो माह पहले बंद कर दिया गया।
इस बीच 7 जुलाई से जिन एक दर्जन अस्पतालों को ह्यूमन ट्रायल करना है, उनमें हैदराबाद स्थित निजाम्स इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (निम्स) भी है। यह रिपोर्ट फाइल किए जाते समय इसने इस ट्रायल के फेज 1 के लिए लोगों के नाम शामिल करना शुरू कर दिया है। निदेशक डॉ. के. मनोहर ने पत्रकारों को बताया है कि 375 विषयों से संबंधित ट्रायल 28 दिनों में पूरे कर लिए जाएंगे।
लगेंगे कम-से-कम एक साल
कई प्रमुख वैज्ञानिकों ने खुलकर यह बात कही है कि ‘विश्वसनीय और पूरी तरह परीक्षित’ वैक्सीन बनाने में छह माह से लेकर एक साल तक लगेंगे। ऐसा मानने वालों में डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामिनाथन, सीएसआईआर-सेंटर फॉर सेललुर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के निदेशक डॉ. राकेश मिश्र, आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक डॉ. एन.के. गांगुली आदि हैं।
एक प्रमुख समाचार एजेंसी ने डॉ. मिश्र को यह कहते हुए उद्धृत किया कि अगर सबकुछ पूरी तरह किताबी योजना के तहत हुआ, तो हमें 6-8 महीने इस तरह की सोच को कहने की हालत में लगेंगे कि अब अपने पास कोई वैक्सीन है। उन्होंने कहा कि आईसीएमआर का पत्र आंतरिक स्तर का हो सकता है और इसका उद्देश्य मानव ट्रायल के लिए तैयार करने के खयाल से अस्पतालों पर दबाव बनाने का हो सकता है।
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रही भारत बायोटेक ने 29 जून को घोषणा की कि उसके, एनआईवी और आईसीएमआर द्वारा विकसित किए जा रहे संभावित वैक्सीन- कोवैक्सीन, को ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया से ह्यूनम ट्रायल के लिए आगे बढ़ने की अनुमति मिल गई है और वह इसकी शुरुआत जुलाई में करेगी। भारत बायोटेक ने पिछले पाचं वर्षों में बाजार में किफायती रोटावायरस और एक संयुक्त टायफायड वैक्सीन को स्वदेशी तरीके से विकसित किया है और इसके पास वैश्वि स्तर की उत्पादन सुविधाएं हैं। इसी वजह से इस पर सबकी उम्मीदें टिक गईं।
वैसे, विवाद शुरू होने के बाद से इसने अपने को लो प्रोफाइल रखा हुआ है। वैसे, ध्यान रहे कि इसके चेयरमन डॉ. कृष्णा एल्ला ने उस वक्त यही कहा था कि वे लोग काम की गति बढ़ा रहे हैं और इसे 12-18 महीने में पूरा करने की उम्मीद करते हैं।
बता दें कि इस समय वैक्सीन बनाने की कोशिशें दुनिया भर में हो रही हैं। कम-से-कम छह भारतीय कंपनियां इसमें लगी हुई हैं। इनमें से दो- कोवैक्सीन और जिकोव-डी, में काम की स्थिति काफी आगे बढ़ चुकी है। लेकिेन जैसा कि विशषेज्ञ कह रहे हैं, इनके 2021 में ही बाजार में उपलब्ध होने की संभावना है। हालांकि कुछ कॉरपोरेट जरूर आशा जता रहे हैं कि यह 2020 के अंत तक आ जाएगा।(navjiwan)
वॉट्सऐप पर दो ब्लूटिक का मतलब नोटिस या समन देख लिया
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सभी जरूरी समन और नोटिस डिजिटल माध्यमों से भेजे जाने को मंजूरी दी.
कोरोना वायरस की वजह से नोटिस या समन के लिए पोस्ट ऑफिस जाने में सक्षम न होने की वजह से अदालत ने यह फैसला लिया है.
लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने ईमेल, फैक्स और वॉट्सऐप सहित विभिन्न डिजिटल माध्यमों से समन और नोटिस भेजने को मंजूरी दी है.
चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा, ‘वॉट्सऐप पर दो ब्लूटिक दिखने पर एविडेंस एक्ट के तहत यह माना जाएगा कि रिसीवर ने नोटिस या समन देख लिया है. लेकिन अगर व्यक्ति ने यह विकल्प बंद कर दिया है तो इसे सिद्ध नहीं किया जा सकता. हालांकि, वॉट्सऐप को समन भेजने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.’
इस पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना और सुभाष रेड्डी भी रहे.
सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च को एक आदेश पारित किया था, जिसमें उसने हाईकोर्ट या किसी अन्य अदालत के आदेशों के खिलाफ अपील करने के लिए सीमा अवधि को अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया था.
अदालत के किसी फैसले के खिलाफ अपील करने की सीमा अवधि वह अवधि है, जिसमें कोई भी पक्ष विवाद के दिन से कुछ निश्चित दिनों के भीतर याचिका दर्ज कर सकता है या निचली न्यायिक संस्था के फैसले के खिलाफ उच्च संस्था में अपील कर सकता है.
पीठ ने कहा, ‘नोटिस और समन ईमेल के जरिए उसी दिन भेजे जाएं और साथ ही वॉट्सऐप या दूसरे फोन मैसेंजर सर्विस के जरिए इंस्टेट मैसेज भी भेजा जाए.’
अदालत में सोमवार को हुई पिछले सुनवाई में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए नोटिस और समन को ईमेल या फैक्स के जरिए भेजा जाना चाहिए न कि वॉट्सऐप के जरिए क्योंकि वॉट्सऐप सरकार को डेटा तक पहुंच बनाने नहीं देता, यहां तक कि आतंकवाद और पोर्नोग्राफी जैसे मामलों में भी नहीं.
वेणुगोपाल ने पीठ को बताया था, ‘केंद्र सरकार को वॉट्सऐप को लेकर आपत्ति है. वॉट्सऐप सरकार को आतंकवाद या पोर्नोग्राफी सहित किसी भी मामले में डेटा उपलब्ध नहीं कराता है.’
मालूम हो कि अदालत का यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट मार्च महीने से ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामलों की सुनवाई कर रहा है और यह सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है.
कोरोनाग्रस्त अमिताभ-अभिषेक अस्पताल में..
बीती रात अमिताभ बच्चन के साथ उनके बेटे अभिषेक बच्चन भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। दोनों को हल्का संक्रमण है। एंटीजन टेस्ट से दोनों के संक्रमित होने का पता चला था, जिसके बाद उन्हें नानावटी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। परिवार के अन्य सदस्यों के साथ स्टाफ के सदस्यों का भी टेस्ट कराया गया था, जिसमें जया बच्चन, ऐश्वर्या और आराध्या की रिपोर्ट निगेटिव आई है। स्टाफ के सदस्यों की जांच रिपोर्ट का इंतजार है।
रेखा का बंगला सील
दूसरी तरफ एक अलग समाचार में कोरोना की बढ़ती महामारी के बीच मशहूर एक्ट्रेस रेखा का बंगला सील कर दिया गया है. दरअसल उनके बंगले का सिक्योरिटी गार्ड कोरोना पॉजिटिव पाया गया है. लिहाजा बांद्रा बैंडस्टैंड स्थित उनके बंगले पर बीएमसी ने कंटेनमेंट जोन का नोटिस लगा दिया है.
अभिषेक बच्चन ने ट्वीट करके बताया कि वह और उनके पिता दोनों कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। दोनों में कोरोना के माइल्ड (हल्के) लक्षण मिले हैं। हमने सभी संबंधित अधिकारियों को सूचित कर दिया है। हम आप सभी से शांत रहने की अपील करते हैं। हम बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) के संपर्क में हैं।
इससे पहले अमिताभ ने अपने कोरोना पॉजिटिव होने की खबर खुद ट्वीट करके दी। उन्होंने दस दिन के भीतर उनसे मुलाकात करने वालों से भी अपना परीक्षण कराने का आग्रह किया।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा कि अमिताभ और अभिषेक को हल्का बुखार था जिसके बाद उन्होंने कोरोना का टेस्ट कराया था। उनमें कोरोना के कोई लक्षण नजर नहीं आए थे।
Amitabh Bachchan ने Nanavati Hospital से दिया Video संदेश, हाथ जोड़कर किया डॉक्टरों का शुक्रिया
अस्पताल से जुड़े सूत्रों ने भी बताया कि 77 वर्षीय अमिताभ बच्चन की तबीयत ठीक है। उन्हें वीवीआइपी वार्ड में रखा गया है। डॉ. अंसारी की देखरेख में उनका इलाज किया जा रहा है।अमिताभ का घर जलसा जिस वार्ड में आता है वहां साढ़े तीन हजार से ज्यादा संक्रमित पाए गए हैं और कई लोगों की जान भी जा चुकी है। अभिषेक बच्चन अपनी आगामी फिल्मों की डबिंग के लिए बाहर निकल रहे थे। लेकिन अमिताभ घर से ही केबीसी 12 के प्रोमो और सवालों की लिए शूटिंग कर रहे थे।
अमिताभ ने कहा- मुझसे पिछले 10 दिनों में मिलने वाले कराएं कोरोना टेस्ट
अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन ने कोरोना पॉजिटिव होने के बाद खुद ट्वीट में लिखा- 'मेरी कोरोना वायरस संक्रमण जांच की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। मुझे अस्पताल में शिफ्ट कर रहे हैं। अस्पताल प्रशासन को सूचित कर रहा हूं। परिवार और बाकी स्टाफ टेस्ट करवा रहे हैं। जांच के नतीजों का इंतजार है। पिछले 10 दिनों में जो भी मेरे काफी करीब रहे हैं, उन सभी से निवेदन है कि अपना टेस्ट करवा लें।' वहीं, अभिषेक ने अपने ट्वीट में लिखा- 'मुझे और मेरे पिता को आज कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। हम दोनों में ही बहुत हल्के लक्षण पाए गए थे। हमें अस्पताल में भर्ती कर लिया गया है। हमने सभी जरूरी प्रशासन को इसकी जानकारी दे दी है। हमारे परिवार व बाकी स्टाफ का टेस्ट किया जा रहा है। मैं सभी से निवेदन करता हूं कि धैर्य बनाए रखें और डरें नहीं, शुक्रिया।'
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोरबा, 11 जुलाई। पाली थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत पटपरा के उपसरपंच धनसिंह यादव की खेत में फांसी के फंदे पर लटकी हुई मिली लाश का मामला पुलिस ने 24 घंटे के भीतर सुलझा लिया। अवैध संबंध उसकी हत्या की वजह बनी। पुलिस ने गांव के ही एक व्यक्ति, उसकी पत्नी और प्रेमिका को गिरफ्तार कर जेल दाखिल कराया है।
शुक्रवार को ग्राम पटपरा के ग्रामीणों ने उप सरपंच धन सिंह यादव पिता शिवरण यादव 40 वर्ष की लाश गांव के खम्हारझोरखी के पलाश पेड़ की डाल पर नायलोन की रस्सी के सहारे बने फांसी के फंदे में अर्धनग्न हालत में लटकी हुई देखी थी।
पाली टीआई लीलाधर राठौर ने बताया कि घटनास्थल का मुआयना उपरांत प्रथम दृष्टया मामला संदिग्ध प्रतीत हो रहा था। एफएसएल की टीम व डॉग स्क्वाड ने भी मौका मुआयना किया था। मामले की कडिय़ां जोड़ते हुए गांव के गुलाब सिंह कंवर, उसकी पत्नी लक्ष्मीन बाई कंवर तथा महिला मित्र उर्मिला बाई कंवर को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई। तीनों ने योजनाबद्ध तरीके से धन सिंह यादव को शारीरिक संबंध बनाने के नाम पर घटनास्थल पर बुलाया था।
गुलाब सिंह की पत्नी लक्ष्मीन बाई के साथ मृतक के पूर्व से शारीरिक संबंध थे और घटना दिनांक को भी स्वयं गुलाब ने प्रेमिका उर्मिला के माध्यम से लक्ष्मीन के साथ संबंध बनाने के लिए धन सिंह को बुलवाया था। इसके पश्चात शारीरिक संबंध बनाते समय उर्मिला व अन्य ने धन सिंह की हत्या कर दी। पूछताछ में गुलाब सिंह ने बताया कि वह जब सरपंच था, तब मृतक की पत्नी से उसका भी संबंध था और इस बात की जानकारी होने के बाद गुलाब व धनसिंह के बीच रंजिश चली आ रही थी। तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजने की कार्यवाही की गई।
सर्वाधिक मामले रायपुर जिले के सुलझे, सुलह की दर हाईकोर्ट व दुर्ग जिले में सबसे अधिक रही
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
बिलासपुर, 11 जुलाई। हाईकोर्ट व जिला न्यायालयों में आज रखी गई देश की पहली ई लोक अदालत में दो हजार 255 मामलों का निपटारा आपसी समझौते से हुआ और इन पर 43 करोड़ 38 लाख 87 हजार 273 रुपये के अवार्ड पारित किये गये।
छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की पहल पर आज देश की पहली ई लोक अदालत रखी गई थी, जिनके लिये 195 खंडपीठों में मोटर दुर्घटना दावा, बैंक रिकवरी, बिजली बिल विवाद, इंश्योरेंस, वैवाहिक विवाद, चेक बाउन्स आदि के मामलों की सुनवाई की गई। पक्षकार और वकील अपने-अपने घरों से ऑनलाइन जुड़े और न्यायालयों में प्रकरणों की पैरवी की।
प्रदेश के 23 जिलों में यह ई लोक अदालत रखी गई थी। इसके अलावा हाईकोर्ट में भी दो पीठ गठित की गई थी। आज सभी न्यायालयों में विचार के लिये 4820 प्रकरण रखे गये जिनमें से 2250 मामलों का ऑनलाइन सुनवाई के जरिये निराकरण हो गया। सर्वाधिक मामले रायपुर के सुलझे हैं। यहां 848 मामले रखे गये थे जिनमें से 549 में समझौता हो गया। इन मामलों में 19 करोड़ 94 लाख 660 रुपये का अवार्ड पारित किया गया। दुर्ग में 300 प्रकरण सुलह के लिये आये जिनमें से 293 प्रकरणों का निराकरण हो गया। दुर्ग में काफी अच्छी सफलता मिली। यहां सिर्फ सात मामलों में समझौता नहीं हो पाया। यहां से कुल अवार्ड पांच करोड़ 39 लाख 97 हजार 329 रुपये का पारित किया गया। बिलासपुर में 488 प्रकरण राजीनामा के लिये रखे गये जिनमें से 195 में समझौता हो गया। यहां कुल दो करोड़ 62 लाख 38 हजार 693 रुपये का अवार्ड पारित किया गया। हाईकोर्ट की दो खंडपीठों में 156 में 155 मामलों का निराकरण हो गया, केवल एक में समझौता नहीं हो पाया। यहां तीन करोड़ 73 लाख 35 हजार 200 रुपये का अवार्ड पारित किया गया है। बस्तर संभाग का बीजापुर ही एक ऐसा जिला रहा जहां सुनवाई के लिये 12 मामले आये थे लेकिन इनमें से किसी का भी निराकरण नहीं हो पाया। हालांकि बस्तर जिले में 112 में 15 मामलों पर समझौता हो गया जिन पर एक करोड़ 22 लाख 8 हजार रुपये का अवार्ड पारित हुआ है।
राज्य स्तरीय पहली लोक ई अदालत का उद्घाटन आज सुबह हाईकोर्ट ऑडिटोरियम में चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन ने किया था।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 11 जुलाई। आज रात 8 बजे तक 65 नए कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पहचान हुई है। 42 मरीज स्वस्थ होकर डिस्चार्ज हुए। राज्य में कुल पॉजिटिव मरीजों की संख्या 3897 है और एक्टिव मरीज 810 हैं।
65 पॉजिटिव मरीजों में रायपुर 36, बस्तर 9, बिलासपुर 6, कोरिया 4, सरगुजा 3, कोरबा और नारायणपुर से 2-2, कांकेर, धमतरी, व दुर्ग से 1-1 मरीजों की पुष्टि हुई है।
नई दिल्ली, 11 जुलाई (वार्ता)। दिल्ली सरकार ने कोरोना महामारी को देखते हुए शनिवार को बड़ा फैसला करते हुए उसके अधीन किसी राज्य विश्वविद्यालय में फिलहाल वार्षिक परीक्षा समेत सभी परीक्षाओं को रद्द कर दिया है।
उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जिनके पास शिक्षा मंत्रालय का प्रभार है, ने आज इसकी घोषणा करते हुए कहा कि छात्रों को डिग्री विश्वविद्यालय के तय मूल्यांकन मापदंडों के आधार पर दी जाएगी।
सरकार के फैसले से इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (डीटीयू) और अन्य संस्थानों में परीक्षाएं नहीं होंगी किंतु दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से जुड़े दिल्ली सरकार के कॉलेजों के बारे में निर्णय केंद्र सरकार को करना होगा।
श्री सिसोदिया ने कहा दिल्ली सरकार का यह मानना है कि ऐसे में जिस सेमेस्टर में पढ़ाई नहीं हुई है,उसकी परीक्षा कराना मुश्किल है। शिक्षा मंत्री ने कहा, दिल्ली राज्य के जितने भी विश्वविद्यालय है, उनकी आगामी परीक्षा रद्द कर दी जाएगी और सभी बच्चों को अगले सेमेस्टर में प्रोन्नत कर दिया जाएगा।
उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी ने केंद्र सरकार को भी पत्र लिखकर उसके सभी विश्वविद्यालयों में परीक्षा रद्द करने का निवेदन किया है।
नई दिल्ली, 11 जुलाई। भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण ने तूफानी रफ्तार पकड़ ली है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक बीते 24 घंटे के दौरान इस महामारी के 27 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं जो एक नया रिकॉर्ड है. इसके साथ ही कोरोना वायरस के मामलों का कुल आंकड़ा आठ लाख को पार कर गया है.
इस लिहाज से देखें तो कोरोना वायरस के मामलों की संख्या सात लाख से आठ लाख तक पहुंचने में सिर्फ चार दिन लगे हैं. पूरे जून में इस महामारी के करीब चार लाख मामले सामने आए थे. लेकिन जुलाई के पहले 10 दिनों में ही यह आंकड़ा दो लाख 36 हजार से ज्यादा हो चुका है.
बीते 24 घंटे के दौरान कोरोना वायरस संक्रमण से 520 लोगों की मौत भी हुई है. इसे मिलाकर अब तक इस बीमारी से मरने वालों का कुल आंकड़ा 22 हजार को पार कर चुका है. यह भारत में एक दिन में कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वालों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है. इससे पहले चार जुलाई को इस बीमारी से 608 लोगों के मरने की खबर आई थी. हालांकि थोड़ी राहत की बात यह है कि कोरोना वायरस से उबरने वालों का आंकड़ा भी अब तेजी से बढ़ रहा है. अब तक देश में पांच लाख 15 हजार से ज्यादा लोग इस महामारी से उबर चुके हैं. यानी रिकवरी रेट 61 फीसदी से ज्यादा हो चुका है.(satyagrah)
नई दिल्ली, 11 जुलाई। "कोरोना से जंग में मैं कैसे मदद कर सकता हूं. इस सवाल का जवाब ढूंढने में मेरा दिमाग़ काम नहीं कर रहा था. तो एक दिन बैठे-बैठे यूँ ही ख्याल आया क्यों ना दिमाग़ की जगह शरीर से ही मदद करूँ. मेरे दोस्त ने बताया था कि ऑक्सफ़ोर्ड में ट्रायल चल रहे हैं, उसके लिए वॉलंटियर की ज़रूरत है. और मैंने इस ट्रायल के लिए अप्लाइ कर दिया"
लंदन से बीबीसी को वीडियो इंटरव्यू देते हुए दीपक पालीवाल ने अपनी ये बात साझा की.
जयपुर में जन्मे और फिलहाल लंदन में रह रहे दीपक पालीवाल, उन चंद लोगों में से एक हैं, जिन्होंने ख़ुद ही वैक्सीन ट्रायल के लिए वॉलेंटियर किया है. कोरोना वैक्सीन जल्द से जल्द बने, ये पूरी दुनिया चाहती है. इसके प्रयास अमरीका, ब्रिटेन, चीन, भारत जैसे तमाम बड़े देश में चल रहे हैं. ये कोई नहीं जानता कि किस देश में सबसे पहले ये वैक्सीन तैयार होगा. पर हर वैक्सीन के बनने के पहले उसका ह्यूमन ट्रायल जरूरी होता है.
लेकिन इस वैक्सीन के ट्रायल के लिए आप आगे आएँगे? शायद इसका जवाब हम में से ज्यादातर लोग 'ना' में देंगे.
ऐसे लोगों को ढूंढने में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को दिक्कतें भी आती है.
दीपक जैसे लोगों की वजह से कोरोना के वैक्सीन खोजने की राह में थोड़ी तेज़ी ज़रूर आ जाती है.
फैसला लेना कितना मुश्किल था?
अक्सर लोग एक कमज़ोर पल में लिए इस तरह के फ़ैसले पर टिके नहीं रह सकते. दीपक अपने इस फैसले पर अडिग कैसे रह सके?
इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, "ये बात अप्रैल के महीने की है. 16 अप्रैल को मुझे पहली बार पता चला था कि मैं इस वैक्सीन ट्रायल में वॉलेंटियर कर सकता हूं. जब पत्नी को ये बात बताई तो वो मेरे फ़ैसले के बिलकुल ख़िलाफ थी. भारत में अपने परिवार वालों को मैंने कुछ नहीं बताया था. ज़ाहिर है वो इस फैसले का विरोध ही करते. इसलिए मैंने अपने नज़दीकी दोस्तों से ही केवल ये बात शेयर की थी."
ऑक्सफ़ोर्ड ट्रायल सेंटर से मुझे पहली बार फ़ोन पर बताया गया कि आपको आगे की चेक-अप के लिए हमारे सेंटर आना होगा. लंदन में इसके लिए पाँच सेंटर बनाए गए हैं. मैं उनमें से एक सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में गया. 26 अप्रैल को मैं वहाँ पहुँचा. मेरे सभी पैरामीटर्स चेक किए गए और सब कुछ सही निकला.
इस वैक्सीन ट्रायल के लिए ऑक्सफ़ोर्ड को एक हज़ार लोगों की आवश्यकता थी, जिसमें हर मूल के लोगों की ज़रूरत थी - अमरीकी, अफ्रीकी, भारतीय मूल सभी के.
ये इसलिए भी ज़रूरी होता है ताकि वैक्सीन अगर सफल होता है तो विश्व भर के हर देश में इस्तेमाल किया जा सके.
दीपक ने आगे बताया कि जिस दिन मुझे वैक्सीन का पहला शॉट लेने जाना था, उस दिन व्हॉटसेप पर मेरे पास मैसेज आया कि ट्रायल के दौरान एक वॉलंटियर की मौत हो गई है.
"फिर मेरे दिमाग़ में बस वही एक बात घूमती रही. ये मैं क्या करने जा रहा हूं. मैं तय नहीं कर पा रहा था कि ये फ़ेक न्यूज़ है या फ़िर सच है. बड़ी दुविधा में था, क्या मैं सही कर रहा हूं. लेकिन मैंने अंत में अस्पताल जाने का निश्चय किया. अस्पताल में पहुँचते ही उन्होंने मुझे कई वीडियो दिखाए और इस पूरी प्रक्रिया से जुड़े रिस्क फै़क्टर भी बताए. अस्पताल वालों ने बताया की वैक्सीन असल में एक केमिकल कंपाउड ही है."
"मुझे बताया गया कि इस वैक्सीन में 85 फीसदी कंपाउड मेनिंनजाइटिस वैक्सीन से मिलता जुलता है. डॉक्टरों ने बताया कि मैं कोलैप्स भी कर सकता हूं, आर्गन फेलियर का ख़तरा भी रहता है, जान भी जा सकती है. बुख़ार, कपकपी जैसे दिक्कतें भी हो सकती है. लेकिन इस प्रक्रिया में डॉक्टर और कई नर्स भी वॉलेटियर कर रहे थे. उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया. "
दीपक ने आगे बताया कि एक वक़्त उनके मन में भी थोड़ा सा संदेह पैदा हुआ था. जिसके बाद उन्होंने अपनी एक डॉक्टर दोस्त से इस विषय में ईमेल पर सम्पर्क किया. दीपक के मुताबिक़ उनकी दोस्त ने उन्हें इस काम को करने के लिए राज़ी करने में बड़ी भूमिका निभाई.
कौन हो सकता है वॉलेंटियर ?
किसी भी वैक्सीन के ट्रायल के कई फेज़ होते हैं.
सबसे अंत में ह्यूमन ट्रायल किया जाता है. इसके लिए जरूरी है कि वो व्यक्ति जिस बीमारी का वैक्सीन ट्रायल किया जा रहा हो उससे संक्रमित ना हो. यानी अगर कोरोना के वैक्सीन का ट्रायल हो रहा है तो वॉलेंटियर कोरोना संक्रमित नहीं हो सकते है.
कोरोना के एंटीबॉडी भी शरीर में नहीं होने चाहिए. इसका मतलब ये कि अगर वॉलेंटियर कोरोना संक्रमित रहा हो, और ठीक हो गया हो तो भी वैक्सीन ट्रायल के लिए वॉलेंटियर नहीं कर सकता है.
वॉलेंटियर 18 से 55 साल की उम्र के हो सकते हैं. और उनका पूरी तरह स्वस्थ्य होना जरूरी है.
ट्रायल के दौरान इस बात का ख्याल रखा जाता है कि केवल एक उम्र के लोग और एक मूल के लोग ही ना हों. महिला और पुरूष दोनों ट्रायल की प्रक्रिया में शामिल हो.
ऑक्सफ़ोर्ड ट्रायल में हिस्सा लेने वालों के लिए सार्वजनिक परिवहन से कहीं भी आने - जाने की मनाही थी.
दीपक के मुताबिक इस ट्रायल के भाग लेने के लिए किसी तरह के पैसे नहीं दिए गए. हाँ, इश्योरेंस की व्यवस्था ज़रूर होती है.
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान किसी और को वॉलेंटियर अपना ख़ून नहीं दे सकते.
तो क्या इतने रिस्क के बाद इसके लिए आगे बढ़कर आना आसान था?
इस सवाल के जवाब में दीपक कहते हैं, "मैं नहीं जानता कि ये ट्रायल सफल भी होगा या नहीं, लेकिन मैं समाज के लिए कुछ करना चाहता था. बस इसलिए ये कर रहा हूं"
ह्यूमन ट्रायल की प्रक्रिया कैसी होती है?
दीपक बताते हैं कि पहले दिन मुझे बाज़ू में इंजेक्शन दिया गया. उस दिन थोड़ा बुख़ार आया और कंपकंपी हुई.
वो कहते हैं,"इंजेक्शन वाली जगह पर थोड़ी सूजन भी थी, जो डॉक्टरों के मुताबिक़ नॉर्मल बात थी. इसके अलावा मुझे हर दिन अस्पताल के साथ आधे घंटे का समय बिताना पड़ता है."
"मुझे एक ई-डायरी रोज़ भरनी पड़ती है, जिसमें रोज़ शरीर का तापमान, पल्स, वजन, बीपी, इंजेक्शन की जगह जो दाग हुआ उसको मापने की प्रक्रिया पूरी कर, फॉर्म भरना पड़ता था. इसके लिए ज़रूरी सारा सामान अस्पताल से दिया जाता है."
"इसमें ये भी बताना पड़ता है कि आप बाहर गए, किस किस से मिले, मास्क पहन रहे हैं या नहीं, खाना क्या खा रहे हैं. 28 दिनों तक इसका पूरा ब्यौरा हमें ई-डायरी में भरना पड़ता है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान डाक्टर लगातार आपसे फोन पर सम्पर्क में रहते हैं, रेगुलर फॉलोअप किया जाता है. 7 जुलाई को भी फॉलो-अप हुआ है. यानी अप्रैल से शुरू हुई प्रकिया जुलाई तक चल रही है."
इस दौरान दीपक को तीन बार बुख़ार भी आया और थोड़ा डर भी लगा.
डर अपनी ज़िंदगी गँवाने का नहीं, बल्कि अपनों को आगे नहीं देख पाने का था.
दीपक के पिता, तीन साल पहले चल बसे थे. लेकिन विदेश में होने के कारण दीपक अपने पिता के अंतिम दर्शन नहीं कर पाए थे.
ट्रायल के दौरान उन्हें इसी बात का डर था कि क्या वो अपनी माँ और भाई-बहन से मिल पाएँगे या नहीं.
हालाँकि अस्पताल से किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए एक इमरजेंसी कॉन्टेक्ट नंबर भी दिया जाता है. लेकिन डर उनको तब भी लगा था. और आज भी है.
वो कहते हैं कि 90 दिन तक मैं कहीं बाहर आ-जा नहीं सकता हूं. वैक्सीन डोज़ केवल दो बार ही लगा है. पर फॉलोअप के लिए अस्पताल समय समय पर जाना पड़ता है.
कोरोना वैक्सीन के लिए अपनी जान दांव पर लगाने वाला शख़्स
कौन हैं दीपक पालीवाल?
42 साल के दीपक लंदन में एक फ़ार्मा कंपनी में कंसल्टेंट के तौर पर काम करते हैं.
वो भारत में जन्मे और पले बढ़े हैं. उनका परिवार अब भी जयपुर में रहता है. और वो ख़ुद अपनी पत्नी के लंदन में रहते हैं. पत्नी भी फार्मा कंपनी में काम करती है.
वो अपने परिवार में सबसे छोटे हैं. वैक्सीन का डोज़ लेने के बाद ही उन्होंने भारत में अपने परिवार को इस बारे में सूचित किया था. माँ और भाई ने तो फैसले का स्वागत किया, पर बड़ी बहन उनसे बहुत नाराज़ हो गई.
दीपक की पत्नी पर्ल डिसूज़ा ने बीबीसी से बातचीत में बताया कि वो दीपक के फैसले से बिल्कुल खुश नहीं थी. उनको दीपक के लिए 'हीरो' का टैग नहीं चाहिए था. एक बार के लिए तो वो मान गई, लेकिन दोबारा वो पति को ऐसा नहीं करने देंगी.
दीपक का ट्रायल पार्ट पूरा हो गया है, लेकिन ऑक्सफोर्ड के ट्रायल में अभी 10,000 लोगों पर और ट्रायल किया जा रहा है.
पूरी दुनिया की तरह ही दीपक को भी वैक्सीन के सफल होने का इंतजार है. (bbc)
नई दिल्ली, 11 जुलाई। देश के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता शरद पवार ने ‘सामना’ को धमाकेदार ‘मैराथन’ साक्षात्कार दिया। शरद पवार राजनीति में कौन-सी नीति अपनाते हैं, क्या बोलते हैं, इसे हमेशा ही महत्व रहा है। इस बार शरद पवार ‘सामना’ के माध्यम से बोले। वे जितने मार्गदर्शक हैं, उतने ही खलबली मचानेवाले भी हैं। महाराष्ट्र की ‘ठाकरे सरकार’ को बिल्कुल भी खतरा नहीं! ऐसा उन्होंने विश्वासपूर्वक कहा है। देवेंद्र फडणवीस द्वारा किए गए सभी आरोपों का पवार ने रोकठोक जवाब दिया। सरकार बनाने के संदर्भ में भाजपा से कभी भी चर्चा नहीं हुई। फडणवीस राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय प्रक्रिया में कभी भी नहीं थे। उन्हें कुछ पता नहीं, ऐसा ‘विस्फोट’ शरद पवार ने किया।
लॉकडाउन, कोरोना, चीन का संकट, डगमगाती अर्थव्यवस्था, ऐसे सभी सवालों पर शरद पवार ने दिल खोलकर बोला है।
शरद पवार ने एक भी सवाल को टाला नहीं। ढाई घंटे का यह साक्षात्कार राजनीतिक इतिहास का दस्तावेज साबित होगा!
‘लॉकडाउन’ की बेड़ियों से बाहर आए देश के वरिष्ठ नेता से पूछा, ‘फिलहाल निश्चित तौर पर क्या चल रहा है?’
इस पर उन्होंने कहा, खास कुछ नहीं चल रहा। क्या चलेगा? एक तो देश में और राज्य में क्या चल रहा है इस पर नजर रखना और अलग-अलग लोगों से संवाद करना, राजनीति के बाहर के लोगों से मैं बात करता हूं और कुछ अच्छा पढ़ने मिले तो पढ़ता हूं, इसके अलावा कुछ खास नहीं चल रहा है।
लॉकडाउन के ये फायदे भी हैं।
– संकट तो है ही लेकिन उसमें जो अच्छा किया जा सके, सकारात्मक दृष्टिकोण रखा जा सके वह करना जरूरी है। इसके महत्व की वजह यह कि अभी कोरोना का जो संकट विश्व पर आया है, उसके चलते लॉकडाउन हुआ है। सभी चीजें बंद हैं। दुर्भाग्यवश लॉकडाउन जैसा जो निर्णय सभी को लेना पड़ा उसका यह परिणाम है। समझो यह लॉकडाउन काल नहीं होता, यह संकट नहीं होता तो शायद मेरे बारे में कुछ अलग दृश्य देखने को मिला होता यह निश्चित!
लेकिन लॉकडाउन अभी समाप्त नहीं हुआ है। जीने पर बंदिशें लगी हैं। इंसान को एक तरह से बेड़ियां ही लग गई हैं। मनुष्य जकड़ गया है। राजनीति जकड़ गई है, उद्योग जकड़ गया है। आप कई वर्षों से समाजसेवा और राजनीति में हैं। आपने कई बार भविष्य का वेध लिया। आपको सपने में भी कभी ऐसा लगा था क्या कि इस तरह के संकटों का सामना इंसानों को करना पड़ेगा?
– कभी भी नहीं लगा। मेरे पठन में कुछ पुराने संदर्भ हैं। खासकर कांग्रेस पार्टी का इतिहास पढ़ने में। कांग्रेस पार्टी की स्थापना जो हुई, उसका एक इतिहास है। वर्ष १८८५ में कांग्रेस की स्थापना पुणे में होनी थी और वहां अधिवेशन भी तय हुआ था। लेकिन प्लेग की बीमारी उसी समय बड़े पैमाने पर फैली। इंसान मरने लगे इसलिए पुणे की जगह मुंबई में अधिवेशन हुआ। आज जिस जगह को अगस्त क्रांति मैदान या ग्वालिया टैंक कहा जाता है, वहां कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। उस समय के प्लेग संक्रमण का पूरा इतिहास लिखा गया है। उस समय ऐसा दृश्य था कि राज्य के कई भागों में इंसान प्लेग के कारण मर रहे थे। सभी व्यवहार थम गए थे। लेकिन यह पढ़ी हुई बातें है क्योंकि उस समय मेरा जन्म नहीं हुआ था। और आज कभी अपेक्षा की नहीं, कभी विचार किया नहीं इस तरह का दृश्य है। यह दृश्य सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं बल्कि पूरे विश्व में है। कभी ऐसा अनुभव होगा, ऐसा नहीं सोचा था। लेकिन परिस्थिति का सामना करना ही पड़ेगा।
आज इंसान, इंसान से घबरा रहा है। ऐसा दृश्य है…
– हां, घर-घर में यही दृश्य है। डॉक्टरों का भी सुझाव है कि एक-दूसरे से जितना दूर रह सकें, उतना दूर रहें। तुम सावधानी बरतो नहीं तो उसका दुष्परिणाम सहन करना पड़ेगा। इसलिए पूरा विश्व चिंतित है। इस कालखंड में एक ही चीज बड़े पैमाने में देखने को मिल रही है कि समाज के सभी घटकों में एक तरह की घबराहट है। अब धीरे-धीरे वह कम होने लगी है, यह सही है। लेकिन इस घबराहट के चलते इंसान घर के बाहर नहीं निकलेगा ऐसा कभी लगा नहीं था, वह हमें देखने को मिला है।
अलग तरह का कर्फ्यू लगा है कई बार…
– मुझे याद है कि पहले चीन व पाकिस्तान का युध्द हुआ तब एक-दो दिन का कर्फ्यू रहता था। दुश्मन देश हवाई जहाज से हमला करेगा, ऐसी खबरें आती थीं। तब इस तरह का कर्फ्यू रहता था। लोग घरों में ही रहते थे लेकिन वह भी एक दिन के लिए, आधे दिन के लिए या फिर एक रात के लिए यह कर्फ्यू हुआ करता था। लेकिन अब कोरोना के चलते लोग महीना-महीना, दो-दो महीना, ढाई महीना घर के बाहर नहीं निकले। यह दृश्य कभी देखने को मिलेगा, ऐसा नहीं सोचा था। अब एक अलग ही स्थिति कोरोना के चलते हमें देखने को मिली।
लॉकडाउन का शुरुआती काल सभी ने बिल्कुल सख्ती से पालन किया। चाहे वह कलाकार हो, हमारी तरह राजनीतिज्ञ हो या उद्योजक हो।
– दूसरा क्या विकल्प था? घर पर रहना ही सबसे सुरक्षित उपाय था।
आप तो निरंतर घूमनेवाले नेता हैं। हमेशा लोगों के बीच रहनेवाले नेता हैं। इस लॉकडाउन का शुरुआती काल आपने कैसे व्यतीत किया?
– शुरुआती महीने-डेढ़ महीने मैं अपने घर की चौखट से बाहर तक नहीं गया। प्रांगण में भी नहीं गया। चौखट के अंदर ही रहा। उसकी कुछ वजहें थीं। एक तो घर से प्रेशर था। इसके अलावा सभी विशेषज्ञों ने कहा था कि ७० से ८० आयु वर्ग के लोगों को बिल्कुल सावधानी बरतने की जरूरत है या यह आयु वर्ग बिल्कुल व्हलनरेबल है। मैं भी इसी आयु वर्ग में आता हूं इसलिए अधिक ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा घर के लोगों का आग्रह था और न कहें तो मन में उत्पीड़न। इसलिए मैं उस चौखट के बाहर कहीं गया नहीं। ज्यादा समय टेलीविजन, पढ़ाई के अलावा कुछ दूसरा नहीं किया।
हमने आपका एक वीडियो देखा, जो सुप्रियाताई ने डाला था। उसमें आप बरामदे में घूम रहे हैं और गीत-रामायण सुन रहे हैं।
– हां, इस काल में खूब गीत सुने। भीमसेन जोशी के सभी अभंग सुने। ये सभी अभंग दो-तीन-चार बार नहीं बल्कि कई बार सुना। पुराने दौर में हिंदी में ‘बिनाका गीतमाला’ होती थी। अब वह नए कलेवर में उपलब्ध है। उसे भी बार-बार सुनने का मौका इस काल में मिला। संपूर्ण गीत-रामायण दोबारा सुना। ग. दि. माडगुलकर ने क्या जबरदस्त कलाकृति इस देश, विशेष रूप से महाराष्ट्र की और मराठी लोगों की सांस्कृतिक विश्व में निर्माण करके रखी इसका दोबारा अनुभव हुआ।
आपका राममंदिर के आंदोलन से कभी संबंध नहीं रहा लेकिन गीत-रामायण से आता है…
– नहीं, उस आंदोलन से कभी संबंध नहीं रहा।
पर रामायण से संबंध आया…
– वह गीत-रामायण के माध्यम से!
कोरोना का संकट तो रहेगा ही, ऐसा विश्व के विशेषज्ञों का मानना है। यह संकट इतनी जल्दी दूर नहीं होगा। ये ऐसे ही रहेगा, लेकिन लॉकडाउन का संकट कब तक रहेगा, आपको क्या लगता है?
– एक बात तो इस काल में स्पष्ट हो गई है कि यहां से आगे आपको, मुझे, हम सभी को कोरोना के साथ जीने की तैयारी रखनी होगी। कोरोना हमारी दैनिक जिंदगी का एक हिस्सा बन रहा है, इस प्रकार की बात विशेषज्ञों द्वारा कही गई है। इसलिए अब हमें भी इसे स्वीकारना ही होगा। इस परिस्थिति को ध्यान में रखकर ही आगे जाने की तैयारी करनी होगी। सवाल है लॉकडाउन का। चिंताजनक परिस्थिति निर्माण करती है लॉकडाउन।
मतलब लॉकडाउन के साथ भी जीना होगा क्या?
– नहीं। हर्गिज नहीं। लॉकडाउन के साथ हमेशा जीना होगा ऐसा मुझे नहीं लगता। हाल ही में मैंने कुछ विशेषज्ञों से बात की। उन्होंने कहा कि लगभग जुलाई महीने के तीसरे सप्ताह से यह ट्रेंड नीचे आएगा। अगस्त और सितंबर में पूरा खाली जाएगा और दोबारा नॉर्मलसी आएगी। लेकिन इसका मतलब कोरोना हमेशा के लिए समाप्त हो गया, ऐसा नहीं मान लेना है। कभी भी रिवर्स हो सकता है। इसलिए आगे से हमें कोरोना को लेकर ध्यान देना होगा और अपने सभी व्यवहारों में सावधानी लेने की जरूरत है। लेकिन ऐसी कोरोना जैसी परिस्थिति दोबारा आई तो लॉकडाउन करने की नौबत आती है और लॉकडाउन करने से जो परिणाम हुए, उदाहरणार्थ वित्तीय व्यवस्था पर हुआ, परिवार में हुआ, व्यापार पर हुआ, यात्रा पर हुआ। यह सब हमने अभी देखा है। इसके आगे ऐसी परिस्थिति दोबारा न आए ऐसी हमारी प्रार्थना है, लेकिन वित्तीय संकट आ ही गया तो उसके लिए हम सबकी तैयारी होनी चाहिए।
इसके लिए समाज में जागरूकता लाने की जरूरत है, ऐसा क्यों लगता है?
– हां, निश्चित ही। मेरा तो साफ मानना है कि, यहां से आगे अब अपने पाठ्यपुस्तक में यह दो-ढाई महीने के कालखंड का जो हमने अनुभव लिया है, इस संबंध में जो देखभाल और सावधानी लेने की जरूरत है, उस पर आधारित एक दूसरा पाठ पाठ्यपुस्तक में होना जरूरी है।
पिछले कुछ दिनों से जो खबरें आ रही हैं उसके आधार पर पूछ रहा हूं कि लॉकडाउन के संदर्भ में आपकी भूमिका और राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की भूमिका अलग है। मतभेद है।
– बिल्कुल नहीं। वैâसा मतभेद? मतभेद किस लिए? इस पूरे काल में मेरा मुख्यमंत्री के साथ उत्तम संवाद था। आज भी है।
पर लॉकडाउन शिथिल करें, आपका ऐसा मानना था और उस संदर्भ में मतभेद था, ऐसा मीडिया में आया।
– मीडिया में क्या आ रहा है, उसे आने दो। एक बात ध्यान देनी चाहिए। अखबारों की भी कुछ समस्या होती है। जैसे लॉकडाउन के चलते हमें घर से बाहर निकलते नहीं बन रहा। हमारे बहुत से काम करते नहीं बन रहे। बहुत सी एक्टिविटीज रुक गई। इसका परिणाम जैसे बहुत से घटकों पर हुआ है वैसे अखबारों पर भी हुआ है। मुख्य परिणाम यानी उन्हें जो खबर चाहिए, वह खबर देनेवाले जो उद्योग हैं, कार्यक्रम हैं, वो कम हुए और इसलिए जगह भरने संबंधित जिम्मेदारी उन्हें टालते नहीं बन रही। फिर इनमें और उनमें नाराजगी है, ऐसी खबरें दी जा रही हैं। दो-तीन दिन से मैं पढ़ रहा हूं कि हमारे यानी कांग्रेस, राष्ट्रवादी और शिवसेना में मतभेद है। उसमें रत्तीभर भी सच्चाई नहीं, लेकिन ऐसी खबरें आ रही हैं। आने दो!
मेरा सवाल ऐसा था कि लॉकडाउन धीरे-धीरे हटाएं, ऐसी आपकी भूमिका है। लोगों को छूट देनी चाहिए, ऐसा आपका कहना है।
– देखिए, इसमें मेरा साफ कहना है कि शुरुआती काल में कड़ाई से लॉकडाउन करने की आवश्यकता थी। उसका पालन मुख्यमंत्री ठाकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र में हुआ। यहां वैसी ही आवश्यकता थी। इतनी कठोरता नहीं की गई होती तो शायद न्यूयॉर्क जैसा हाल यहां हुआ होता। हम न्यूयॉर्क के बारे में खबरें पढ़ते हैं कि हजारों लोगों को इस संकट के चलते मौत के मुंह में जाना पड़ा। वही स्थिति यहां आ गई होती। यहां सख्ती से लॉकडाउन लागू हुआ और विशेष रूप से लोगों ने सहयोग भी किया। इसलिए यहां की परिस्थिति सुधारने में मदद मिली, नहीं तो अनर्थ हो गया होता। पहले दो-ढाई महीने इसकी आवश्यकता थी। इस बारे में मुख्यमंत्री ठाकरे और राज्य सरकार का दृष्टिकोण सौ प्रतिशत सही था। हम सबका इसे मन से समर्थन था।
लॉकडाउन का सबसे बड़ा फटका मजदूरों और उद्योगपतियों को लगा इसलिए शिथिलता लाएं ऐसा आपका मत था…
– इस काल में मैंने कइयों से चर्चा की, उसमें उद्योगपति भी थे। मजदूर संगठनों के लोग भी थे। उनसे चर्चा करने के बाद मेरी एक राय बनी, वो मैंने मुख्यमंत्री के कानों पर जरूर डाली। इसे मतभेद नहीं कहते। स्पष्ट कहें तो कुछ जगह, उदाहरणार्थ दिल्ली। दिल्ली में रिलेक्शेसन किया गया। क्या हुआ वहां? उसका नुकसान हुआ। लेकिन व्यवहार धीरे-धीरे शुरू हुआ। कर्नाटक के सरकार ने भी रिलेक्शेसन किया। वहां भी कुछ परिणाम हुआ, नहीं ऐसा नहीं, लेकिन कर्नाटक में भी व्यवहार शुरू हुआ। यह महत्वपूर्ण है। इस तरीके से कदम रखना होगा क्योंकि समाज की, राज्य की, देश की वित्त व्यवस्था पूरी तरह उध्वस्त हुई तो कोरोना से ज्यादा उसका दुष्परिणाम आगे की कुछ पीढ़ियों को सहना पड़ेगा। इसलिए ही वित्त व्यवस्था को दोबारा कैसे संवारा जा सकता है, इस दृष्टि से ध्यान देते हुए हम आगे कैसे जाएं, इसका विचार करना होगा। तब तक का निर्णय लेना होगा। इसका मतलब सब खोल दो, ऐसा नहीं है लेकिन थोड़ी-बहुत तो अब धीरे-धीरे ढील लेने की जरूरत है, वैसे वो दी गई है। उदाहरणार्थ परसों मुख्यमंत्री ठाकरे ने सलून शुरू करने के बारे में निर्णय लिया। उसकी आवश्यकता थी क्योंकि हमारे कई मित्र जब मिलते थे, उन्हें देखकर उनके सिर पर इतने बाल हैं, ये पहली बार पता लगा। कोरोना का परिणाम! दूसरी बात ऐसी कि इस व्यवसाय में आए लोगों की पारिवारिक समस्या काफी बढ़ने लगी थी, उस दृष्टि से सलून शुरू करने का निर्णय मुख्यमंत्री ने लिया और वो मेरी राय से योग्य निर्णय था।
मतलब मुख्यमंत्री ने अपने ढंग से लॉकडाउन शिथिल करने का निर्णय लिया…
– निश्चित ही मुख्यमंत्री ठाकरे द्वारा लिया गया निर्णय कुछ लोगों को थोड़ी देर से लिया गया लगता होगा, लेकिन उन्होंने यह निर्णय सही समय पर लिया है। मुख्यमंत्री का जो स्वभाव है, यह निर्णय उस स्वभाव के अनुकूल ही है। अर्थात निर्णय लेना ही है परंतु बेहद सतर्कता के साथ। निर्णय लेने के बाद कुछ दुष्परिणाम न हो, यह जितना ज्यादा सुनिश्चित किया जा सके, उतना करने के बाद लेना चाहिए और फिर कदम आगे बढ़ाना चाहिए। एक बार कदम बढ़ाने के बाद पीछे नहीं लेना है, यह उनकी कार्यशैली है।
बालासाहेब ठाकरे और उद्धव ठाकरे की कार्यशैली में यह अंतर है तो…
– सही है… यह अंतर है। वैसे यह रहेगा ही।
बालासाहेब ठाकरे फटाफट निर्णय लेकर फैसला सुना देते थे। लेकिन बालासाहेब कभी भी सत्ता में नहीं थे और उद्धव ठाकरे प्रत्यक्ष मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर हैं…
– यह अंतर भी है ही ना। बालासाहेब प्रत्यक्ष सत्ता में नहीं थे, फिर भी सत्ता के पीछे एक मुख्य घटक थे। उनके विचारों से महाराष्ट्र में सत्ता आई, महाराष्ट्र और देश ने देखा। आज विचारों से सत्ता नहीं आई लेकिन सत्ता प्रत्यक्ष कृति से लाने में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आज के मुख्यमंत्री ठाकरे की है। यह फर्क महत्वपूर्ण है।
इन तमाम परिस्थितियों में क्या कभी आपको बालासाहेब ठाकरे की याद आती है?
– आती है ना। कोरोना और लॉकडाउन के कारण पहले दो महीने इत्मीनान से घर में बैठा था। बालासाहेब के काम का तरीका मुझसे ज्यादा तुम जानते हो। वह क्या दिन भर घर के बाहर निकल कर कहीं जाते थे, ऐसा नहीं है। कई बार कई दिन वे घर में ही बिताते थे। परंतु घर में रहते हुए भी सहयोगियों को साथ लेकर उन्हें प्रोत्साहित करके सामने आई चुनौतियों का सामना करना बालासाहेब ने सिखाया था, ऐसा मुझे लगता है। मेरे जैसे को इन दो महीनों में बालासाहेब की याद इन्हीं वजहों से आती थी कि हमें घर से तो बाहर निकलना नहीं है लेकिन बाकी के काम, जिस दिशा में हमें जाना है, उस दिशा में जाने के लिए सफर की तैयारी हमें करनी चाहिए। ये जिस तरह से बालासाहेब करते थे उसकी याद मुझे इस दौरान आई।
कोरोना के कारण पूरी दुनिया बदल गई। इस बदली हुई दुनिया का परिणाम हिंदुस्थान पर भी हो रहा है, विदेश में जो नौकरीपेशा वर्ग पूरी दुनिया में फैला था, जो कि हमारा था, वह हमारे देश में लौट आया है। अभी आपने न्यूयॉर्क का उल्लेख किया। वहां से भी हजारों लोग यहां वापस आए। इस बदली हुई दुनिया को आप किस तरह से देखते हैं?
– मेरे अनुसार हमें इन हालातों को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए। इस संकट के कारण पहली बार हमें ज्ञात हुआ कि दुनिया के कोने-कोने में हिंदुस्थानी कहां-कहां तक पहुंचे हैं। विशेषत: लॉकडाउन के पहले दो महीनों में मुंबई में रहकर यह काम बहुत ज्यादा करना पड़ा। वह काम यह था कि कई देशों से टेलीफोन आते थे कि हमारे देश में इतने-इतने हिंदुस्थानी हैं, उन्हें वापस लौटना है। उन्हें वापस लौटने के लिए विमान की व्यवस्था करने में सहयोग दें। मुझे आश्चर्यजनक झटका कब लगा? जब फिलीपींस में मेडिकल की पढ़ाई करने गए ४०० बच्चों के लौटने की व्यवस्था मुझे करनी पड़ी। ताशकंद से ३००-३५० विद्यार्थियों को लाने की व्यवस्था मुझे करनी पड़ी। इंग्लैंड-अमेरिका ठीक है लेकिन जो ये देश हैं, इन देशों में इतनी बड़ी संख्या में हमारे विद्यार्थी गए हैं, यह पता ही नहीं था। दुनिया के कोने-कोने में हिंदुस्थानी और मराठी, ये दोनों ही देखने को मिले। यह कोरोना के कारण हुआ।
इस पूरे प्रकरण से देश और राज्य की राजनीति ही बदल गई है। अब तक आप जैसे बड़े नेता सार्वजनिक सभा करते थे। हजारों लाखों लोगों की सभा को संबोधित करते थे। प्रधानमंत्री मोदी होंगे। आप होंगे, अन्य नेता होंगे। अब यह सब बंद हो जाएगा। क्या यह राजनीति का ही लॉकडाउन हो गया है?
– आप जो कहते हो, सही है। आज तो हालात ऐसे ही नजर आ रहे हैं। नए ढंग की राजनीति अब स्वीकार करनी होगी।
मूलत: भीड़ भारतीय राजनीति की आत्मा है। भीड़ नहीं होगी तो हमारी राजनीति इंच भर भी आगे नहीं बढ़ेगी। आपका संदेश आगे नहीं जाएगा। लाखों की भीड़ जो जमा करता है। वह बड़ा नेता है यह अब तक हमारे देश की अवस्था थी।
– यह स्थिति एकदम से बदल जाएगी ऐसा मुझे नहीं लगता। धीरे-धीरे हालात होते जाएंगे लेकिन हमारे लिए इस स्थिति को नजरअंदाज करना संभव नहीं है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव देखते हैं। उन चुनावों में दृश्य एकदम अलग होते हैं। हमारे यहां दृश्य अलग होते हैं। हम हिंदुस्थान को देखते हैं। बालासाहेब की लाखों की सभा होती थी। अटल जी की लाखों की सभा होती थी। इंदिरा गांधी की होती थी, यशवंतराव चव्हाण की होती थी। यह दृश्य अमेरिका एवं पश्चिमी देशों में देखने को नहीं मिलता है लेकिन टेलीविजन और रेडियो के माध्यम से पूरे देश का ध्यान उस दिन चर्चा की ओर होता था। मान लो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और प्रतिस्पर्धी उम्मीदवार इन दोनों के बीच डिस्कशन, चर्चा, सवाल-जवाब होते थे। उसको लगा होता था। पूरा देश देखता रहता है। लेकिन यह देखने के लिए और व्यक्त करने के लिए माध्यम अलग होता है। हमारा माध्यम अलग है।
हमारे यहां ये डिजिटल सभा का प्रकरण सफल होगा?
– हमारे यहां ऐसा है, यहां नेताओं वक्ताओं के सामने भीड़ नहीं होगी तो उनकी बातों में धार नहीं आती। मैं जो बोल रहा हूं, सामनेवाले को कितना जंच रहा है, कितना डायजेस्ट हो रहा है, ये उनके चेहरे से समझ आता है और मान लो वह स्तब्ध रह गया… भीड़ से बिलकुल भी प्रतिसाद नहीं मिल रहा होगा तो इसका भी प्रभाव वक्ता पर होता रहता है। इन सबसे हम गुजर चुके हैं। परंतु अब धीरे-धीरे ये तमाम पुराने तरीके हमें बदलने होंगे। मतलब ये सब शत-प्रतिशत समाप्त हो जाएंगे, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। परंतु ये धीरे-धीरे कम होगा ही। कम्युनिकेशन की आधुनिक तकनीक आत्मसात करने के बारे में सोचना होगा।
परंतु ग्रामीण भागों में ये कैसे सफल होगा? विधानसभा चुनाव में जैसा माहौल खुद आपने तैयार किया, जिसके कारण आगे परिवर्तन हो सका। खासकर भरी बरसात में आपकी सातारा जैसी सभा नए तंत्र में कैसे होगी? लोगों को दिल से लगता है कि मैं अपने नेता को देखूं, सामने से सुनूं। इसके आगे ये सब रुक जाएगा ऐसा लगता नहीं है?
– निश्चित ही ये रुक जाएगा। मेरे जैसे इंसान के लिए, मेरी पीढ़ी के इंसान के लिए यह रुक गया तो अच्छा नहीं है। लोगों के बीच जाना ही होगा। चुनावी सभाओं में न जाना, ऐसे भी हालात आएंगे क्या, इसकी चिंता है। लेकिन ये ज्यादा दिन चलेगा, ऐसा लगता नहीं है। चलना नहीं चाहिए, ऐसी प्रार्थना है।
एक साल पहले इस देश में लोकसभा चुनाव हुए थे। सामान्यत: देश की अवस्था और राजनीति ‘जैसे थे’ रही। अर्थात जो व्यवस्था थी व व्यवस्था बरकरार रही। प्रधानमंत्री मोदी हैं। उनकी सरकार बरकरार रही। केंद्र की राजनैतिक व्यवस्था बदलेगी, ऐसी संभावना नहीं थी। लोकसभा चुनाव का परिणाम जैसा अपेक्षित था वैसा ही आया, परंतु कुछ राज्यों में बदलाव हुआ। खासकर हम महाराष्ट्र के बारे में बात करें तो महाराष्ट्र की राजनीति ६ महीने पहले ही पूरी तरह से बदल गई। इस तरह से बदली कि पूरा देश इस महाराष्ट्र की घटनाओं के भविष्य की ओर एक अलग नजरिए से देखने लगा। कइयों के मन में एक सवाल है कि महाराष्ट्र में यह जो बदलाव है, ये एक हादसा था। उस समय हुआ? अथवा ये बदलाव सभी ने मिलकर किया।
– मुझे हादसा बिलकुल भी नहीं लगता। दो बातें हैं। महाराष्ट्र के लोकसभा के चुनाव। देश के लोकसभा के चुनाव में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की मराठी जनतों ने भी देश में जो दृश्य था, उससे सुसंगत महत्वपूर्ण भूमिका अपनाई। परंतु राज्य का सवाल आया, उस समय हमें महाराष्ट्र का नजारा और ही दिखने लगा। ये केवल महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी दिख रहा था। कहीं कांग्रेस आई… कहीं अन्य गठबंधन सत्तासीन हुए। अब मध्यप्रदेश का उदाहरण लें या राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़.. इन सभी राज्यों में तस्वीर बदली। लोकसभा के लिए वहां सीटें थीं। पीछे केंद्र सरकार थी। परंतु विधानसभा में भाजपा मुकरती दिखी। मेरे अनुसार महाराष्ट्र में तस्वीर बदलने का मूड जनता का था।
ऐसा आप कैसे कहते हैं?
– उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के पहले का दौर देखें। इन पांच वर्षों में शिवसेना और भाजपा की सरकार थी। लेकिन शिवसेना के विचारोंवाले जो मतदाता हैं और जो शिवसेना कार्यकर्ता हैं उन सभी में उस सरकार के प्रति एक तरह की व्याकुलता साफ दिखाई दे रही थी।
आपको ऐसा क्या महसूस हुआ?
– शिवसेना के काम करने की विशिष्ट शैली है। कोई काम हाथ में लेने के बाद उसे दृढ़तापूर्वक पूरा करना। उसके लिए कितना भी परिश्रम एवं पैसा देने की तैयारी रखनी चाहिए। भाजपा के साथ सहभाग के उस कालखंड में शिवसेना ने भारी कीमत चुकाई। साधारणत: शिवसेना को शांत वैâसे रखा जा सकता है, रोका वैâसे जा सकता है, उन्हें हाशिए पर कैसे रखा जा सकता है? यह नीति भाजपा ने हमेशा अपनाई। इसलिए शिवसेना को माननेवाला यह वर्ग उद्विग्न था। दूसरी बात, वो जो पांच साल महाराष्ट्र की जनता ने देखे वे वास्तविक अर्थों में भाजपा की ही सरकार होनी चाहिए, ऐसी ही थी। इसके पहले युति की सरकार थी। वर्ष १९९५ में मनोहर जोशी मुख्यमंत्री थे। उस दौरान ऐसा माहौल कभी नहीं था। इसकी वजह, उसका नेतृत्व शिवसेना के पास था और बालासाहेब के पास था। इस सरकार के पीछे उनकी सशक्त भूमिका थी। अभी जो इन दोनों की सरकार थी, उसमें भाजपा ने शिवसेना को करीब-करीब किनारे कर दिया और भाजपा ही असली शासक तथा इसके आगे के कालखंड में राज्य भाजपा के नेतृत्व के विचारों से ही चलेगा, यह भूमिका दृढ़ता से अपनाकर उन्होंने कदम बढ़ाए। महाराष्ट्र की जनता को यह जंचा नहीं।
मतलब इस महाराष्ट्र में हम ही राजनीति करेंगे, अन्य कोई नहीं करेगा…
– हां, कर ही नहीं सकता है। अन्य कोई यहां राजनीति कर ही नहीं सकता है। ऐसी सोच दिख रही थी।
फिर इसके विरोध में लोगों की बगावत उबलकर मतपेटी से निकली, ऐसा लगता है क्या?
– एकदम, सीधे-सीधे ऐसी ही अवस्था है और थोड़ा बहुत ये उपहास का विषय भी बन गया कि ‘मैं फिर आउंगा… मैं फिर आउंगा…’
मैं फिर आऊंंगा…
– हां, मैं फिर आऊंंगा… इस सबके कारण एक तो ऐसा है कि किसी भी शासक, राजनीतिज्ञ नेता को मैं ही आऊंंगा, इस सोच के साथ जनता को जागीर नहीं समझना चाहिए। इस तरह की सोच में थोड़ा दंभ झलकता है। ऐसी भावना लोगोें में हो गई और इन्हें सबक सिखाना चाहिए। यह विचार लोगों में फैल गया।
पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि मेरी सरकार चली गई अथवा मैं मुख्यमंत्री पद पर नहीं हूं, यह पचाने में बड़ी परेशानी हुई। इसे स्वीकार करने में ही दो दिन लगे। इसका अर्थ यह है कि हमारी सत्ता कभी नहीं जाएगी। इस सोच… अमरपट्टा ही बांधकर आए हैं।
– देखो, किसी भी लोकतंत्र में नेता हम अमरत्व लेकर आए हैं, ऐसा नहीं सोच सकता है। इस देश के मतदाताओं के प्रति गलतफहमी पाली तो वह कभी सहन नहीं करता। इंदिरा गांधी जैसी जनमानस में प्रचंड समर्थन प्राप्त महिला को भी पराजय देखने को मिली। इसका अर्थ यह है कि इस देश का सामान्य इंसान लोकतांत्रिक अधिकारों के संदर्भ में हम राजनीतिज्ञों से ज्यादा सयाना है और हमारे कदम चौखट के बाहर निकल रहे हैं, ऐसा दिखा तो वह हमें भी सबक सिखाता है। इसलिए कोई भी भूमिका लेकर बैठे कि हम ही! हम ही आएंगे…तो लोगों को यह पसंद नहीं आता है।
१०५ विधायकों का समर्थन होने के बावजूद प्रमुख पार्टी सत्ता स्थापित नहीं कर सकी। सत्ता में नहीं आ सकी। यह भी एक अजीब कला है अथवा महाराष्ट्र में चमत्कार हुआ। इसे आप क्या कहेंगे?
– ऐसा है कि तुम जिसे प्रमुख पार्टी कहते हो, वह प्रमुख पार्टी वैâसे बनी? इसकी भी गहराई में जाना चाहिए। मेरा स्पष्ट मत है कि विधानसभा में उनके विधायकों का जो १०५ फिगर हुआ, उसमें शिवसेना का योगदान बहुत बड़ा था। उसमें से तुमने शिवसेना को मायनस कर दिया होता, उसमें शामिल नहीं होती तो इस बार १०५ का आंकड़ा तुम्हें कहीं तो ४०-५० के करीब दिखा होता। भाजपा के लोग जो कहते हैं कि हमारे १०५ होने के बावजूद हमें हमारी सहयोगी यानी शिवसेना ने नजरअंदाज किया अथवा सत्ता से दूर रखा। उन्हें १०५ तक पहुंचाने का काम जिन्होंने किया, यदि उन्हीं के प्रति गलतफहमी भरी भूमिका अपनाई तो मुझे नहीं लगता कि औरों को कुछ अलग करने की आवश्यकता है।
परंतु उनके लिए जो संभव नहीं हुआ, वह शरद पवार ने संभव कर दिखाया। और शिवसेना को भाजपा के बगैर मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचा दिया।
– ऐसा कहना पूरी तरह सच नहीं है। मैं जिन बालासाहेब ठाकरे को जानता हूं। मेरी तुलना में आप लोगों को शायद अधिक जानकारी होगी। परंतु बालासाहेब की पूरी विचारधारा, काम करने की शैली भारतीय जनता पार्टी के अनुरूप थी, ऐसा मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ।
क्यों…? आपको ऐसा क्यों लगा?
– बताता हूं ना। सबकी वजह ये है कि बालासाहेब की भूमिका और भाजपा की विचारधारा में अंतर था। खासकर काम की शैली में जमीन आसमान का अंतर है। बालासाहेब ने कुछ व्यक्तियों का आदर किया। उन्होंने अटलबिहारी वाजपेयी का? आदर किया। उन्होंने आडवाणी का किया। उन्होंने प्रमोद महाजन का आदर किया। उन सभी को सम्मान देकर उन्होंने एक साथ आने का विचार किया और आगे सत्ता आने में सहयोग दिया। दूसरी बात ऐसी थी कि कांग्रेस से उनका संघर्ष था, ऐसा मुझे नहीं लगता। शिवसेना हमेशा कांग्रेस के विरोध में ही थी, ऐसा नहीं है।
बालासाहेब अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा मुंह पर ही कहनेवाले नेता थे। इसलिए ये अब हुआ होगा।
– हां, बालासाहेब वैसे ही थे। जितने बिंदास उतने ही दिलदार। राजनीति में वैसी दिलदारी मुश्किल है। शायद बालासाहेब ठाकरे और शिवसेना देश का पहला ऐसा दल है कि किसी राष्ट्रीय मुद्दे पर सत्ताधारी दल के प्रमुख लोगों का खुद के दल के भविष्य की चिंता न करते हुए समर्थन करते थे। आपातकाल में भी पूरा देश इंदिरा गांधी के विरोध में था। उस समय अनुशासित नेतृत्व के लिए बालासाहेब इंदिरा गांधी के साथ खड़े थे। सिर्फ खड़े ही नहीं हुए बल्कि हम लोगों के लिए चैंकानेवाली बात तो ये भी थी कि उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के चुनाव में वे अपने उम्मीदवार भी नहीं उतारेंगे! किसी राजनीतिक दल द्वारा हम उम्मीदवार नहीं उतारेंगे बोलकर राजनीतिक दल को चलाना मामूली बात नहीं है। लेकिन ऐसा बालासाहेब ही कर सकते थे और उन्होंने करके भी दिखाया। उसका कारण ये है कि उनके मन में कांग्रेस को लेकर कोई द्वेष नहीं था। कुछ नीतियों को लेकर उनकी स्पष्ट सोच थी। इसलिए उस समय कुछ अलग देखने को मिला और आज लगभग उसी रास्ते पर उद्धव ठाकरे चल रहे हैं, ऐसा कहने में कोई हर्ज नहीं है।
आपका शिवसेना से कभी वैचारिक नाता था, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता…लेकिन आज आप महाराष्ट्र में एक हैं..
– वैचारिक मतभेद थे। कुछ मामलों में रहे होंगे। लेकिन ऐसा नहीं था कि सुसंवाद नहीं था। बालासाहेब से सुसंवाद था। शिवसेना के वर्तमान नेतृत्व से ज्यादा सुसंवाद था। मिलना-जुलना, चर्चा, एक-दूसरे के यहां आना-जाना, ये सारी बातें थीं। ऐसा मैं कई बार घोषित तौर पर बोल चुका हूं। बालासाहेब ने अगर किसी व्यक्ति, परिवार या दल से संबंधित व्यक्तिगत सुसंवाद रखा या व्यक्तिगत ऋणानुबंध रखा, तो उन्होंने कभी किसी की फिक्र नहीं की। वे ओपनली सबकी मदद करते थे। इसलिए मैं अपने घर का घोषित तौर पर उदाहरण देता हूं कि सुप्रिया के समय सिर्फ बालासाहेब ही उसे निर्विरोध चुनकर लाए। यह सिर्फ बालासाहेब ही कर सकते थे।
आपने राज्य में महाविकास आघाड़ी का प्रयोग किया, आपने उसका नेतृत्व किया। उसे ६ महीने पूरे हो चुके हैं। यह प्रयोग कामयाब हो रहा है, ऐसा आपको लगता है क्या?
– बिल्कुल हो रहा है। यह प्रयोग, और भी कामयाब होगा, इस प्रयोग का फल महाराष्ट्र की जनता और महाराष्ट्र के विभिन्न विभागों को मिलेगा, ऐसी स्थिति हमें अवश्य देखने को मिलेगी। लेकिन अचानक कोरोना संकट आ गया। यह महाराष्ट्र का दुर्भाग्य है। गत कुछ महीनों से राज्य प्रशासन, सत्ताधीश तथा राज्य की पूरी यंत्रणा सिर्फ एक काम में ही जुटी हुई है, वह है कोरोना से लड़ाई। इसलिए बाकी मुद्दे एक तरफ रह गए हैं। एक और बात बताता हूं अगर फिलहाल का सेटअप ना होता तो तो कोरोना संकट से इतने प्रभावीपूर्ण ढंग से नहीं निपटा जा सकता था। ध्यान रहे, कोरोना जितना बड़ा संकट और तीन विचारों की पार्टी, लेकिन सब लोग एक विचार से मुख्यमंत्री ठाकरे के साथ खड़े हैं। उनकी नीतियों के साथ खड़े हैं और परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। लोगों के साथ मजबूती से खड़े हैं। यह कामयाबी है, इसका मुझे पूरा विश्वास है। सब लोग एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं इसलिए यह संभव हुआ है। तीनों दलों में जरा-सी भी नाराजगी नहीं है।
और श्रेय लेने की जल्दबाजी भी नहीं।
– बिल्कुल नहीं।
आपने पुलोद का प्रयोग देश में पहली बार किया। कई पार्टियों को मिलाकर राज किया। पुलोद की सरकार और वर्तमान महा विकास आघाड़ी सरकार में क्या फर्क है?
– फर्क ऐसा है कि पुलोद सरकार का नेतृत्व मेरे पास था। उस सरकार में सभी लोग थे। आज की भाजपा उस समय जनसंघ के रूप में थी, वे भी हमारे साथ थे, वे भी उसमें थे। मंत्रिमंडल एक विचार से काम करने वाला था। उसमें किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं थी। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि केंद्र सरकार उसे पूरा साथ देती थी। पुलोद की सरकार आई, उस समय देश का नेतृत्व मोरारजी भाई देसाई के पास था। वह प्रधानमंत्री के रूप में महाराष्ट्र की पुलोद सरकार को पूरी ताकत से मदद करते थे। आज थोड़ा फर्क यह है कि यहां आइडियोलॉजी अलग होगी, फिर भी एक विचार से काम करनेवाले लोग साथ आए हैं। दिशा कौन सी है, यह स्पष्ट है और उस दिशा में जाने की यात्रा भी अच्छी रहेगी तथा लोगों के हित में रहेगी, इसका ध्यान रखा गया है। लेकिन पुलोद के समय जैसे केंद्र मजबूती से साथ देता था, वैसा इस समय नहीं दिखता।
इस सरकार के आप हेडमास्टर हैं या रिमोट कंट्रोल?
– दोनों में से कोई नहीं। हेडमास्टर तो स्कूल में होना चाहिए। लोकतंत्र में सरकार या प्रशासन कभी रिमोट से नहीं चलता। रिमोट कहां चलता है? जहां लोकतंत्र नहीं है वहां। हमने रशिया का उदाहरण देखा है। पुतिन वहां २०३६ तक अध्यक्ष रहेंगे। वो एकतरफा सत्ता है, लोकतंत्र आदि एक तरफ रख दिया है। इसलिए यह कहना कि हम जैसे कहेंगे वैसे सरकार चलेगी, यह एक प्रकार की जिद है। यहां लोकतंत्र की सरकार है और लोकतंत्र की सरकार रिमोट कंट्रोल से कभी नहीं चल सकती। मुझे यह स्वीकार नहीं। सरकार मुख्यमंत्री और उनके मंत्री चला रहे हैं।(hindisaamana)
राशनकार्ड से नहीं कटेगा किसी का नाम- सरकार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 11 जुलाई। प्रदेश में 18 लाख लोग ऐसे हैं, जिनके पास पांच एकड़ से ज्यादा जमीन है और बीपीएल कार्डधारी हैं। सरकार ऐसे अपात्र राशन कार्डधारियों का कार्ड निरस्त करने पर विचार कर रही है। यह जानकारी खाद्यमंत्री अमरजीत भगत ने मीडिया से चर्चा में दी।
उन्होंने बताया कि सरकार ने राशन कार्ड को लेकर सर्वेक्षण कराया था। इसमें यह खुलासा हुआ है कि प्रदेश में करीब 18 लाख लोग ऐसे हंै जिनका बीपीएल राशन कार्ड बना है और जो अपात्र पाए गए हैं। उन्होंने बताया कि जिन व्यक्तियों के पास 5 एकड़ से ज्यादा जमीन है उनका भी बीपीएल कार्ड बना है।
गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोग भूमिहीन माने जाते हैं और उन्हें ही अलग राशन कार्ड दिया जाता है। बीपीएल कार्डधारियों को कई तरह की सुविधाएं हैं। राज्य शासन के एक अधिकारी ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि पूरे राशन कार्ड की जांच होगी। इसके बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।
राशनकार्ड से नहीं कटेगा किसी का नाम- सरकार
दूसरी तरफ शासन ने आज शाम यह स्पष्ट किया है कि भूमिहीन श्रमिक और छोटे सीमांत किसान छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत प्राथमिकता श्रेणी के राशनकार्ड हेतु पात्र हैं। उन्हें राशन कार्ड से हटाने से संबंधित कोई प्रस्ताव नहीं है।
खास बात यह है कि खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के हवाले से कुछ टीवी चैनलों में यह खबर आई थी कि प्रदेश में 18 लाख बीपीएल राशन कार्ड अपात्र हैं। इन लोगों के पास 5 एकड़ या अधिक जमीन है। इसके बाद से अटकलें लगाई जा रही थी कि इन कार्डधारियों के कार्ड निरस्त किए जा सकते हैं। इस पर सरकारी प्रेस नोट में खाद्य विभाग के अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया है कि यदि इस संबंध में कोई भ्रमित समाचार प्रसारित हो रहा है तो उस पर ध्यान न दिया जाए। छत्तीसगढ़ में यूनिवर्सल पीडीएस अंतर्गत सभी परिवारों को पात्रतानुसार खाद्यान्न सामग्री उपलब्ध करायी जा रही है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ शासन की अन्य योजनाओं से भूमिहीन कृषक मजदूरों को लाभान्वित करने के लिए उनका सर्वे किया जा रहा है। राजस्व अभिलेख से मिलान कर भूमिहीन कृषक मजदूरों की सूची तैयार की जाएगी। इस कार्य से किसी भी राशनकार्डधारी परिवार का राशनकार्ड निरस्त नही किया जाएगा और न ही वेबसाईट से राशनकार्ड धारी का नाम विलोपित किया जाएगा। राशनकार्डधारी परिवारों को पहले की तरह ही पात्रतानुसार खाद्यान्न मुहैया होता रहेगा।
2017 से अब तक 74 मामलों में मिली क्लीन चिट
लखनऊ, 11 जुलाई। उत्तर प्रदेश पुलिस के एनकाउंटर में पिछले 8 दिन से फरार विकास दुबे शुक्रवार को भागने की कोशिश में मारा गया. 2014 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार यूपी सरकार गैंगस्टर के इस एनकाउंटर की जांच करेगी.
61 मामलों में क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट ने की स्वीकार
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक साल 2017 के बाद विकास दुबे 119वां आरोपी था जो क्रॉस फायरिंग में मारा गया. कुल 74 एनकाउंटर मामलों में इंक्वॉयरी पूरी हो चुकी है, जिसमें से सभी में पुलिस को क्लीन चिट मिली है. इनमें से 61 मामलों में पुलिस द्वारा दी गई क्लोज़र रिपोर्ट को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है.
13 पुलिसकर्मियों ने एनकाउंटर्स में जान गंवाई
रिकॉर्ड्स की बात करें तो इस दौरान करीब 6145 ऑपरेशन्स को अंजाम दिया गया है, जिसमें से 119 की एनकाउंटर के दौरान मौत हुई है. वहीं इन ऑपरेशन्स में करीब 2258 आरोपी घायल हुए हैं. इन ऑपरेशन्स में 13 पुलिसकर्मियों ने अपनी जान गंवाई जिसमें पिछले हफ्ते कानपुर में शहीद हुए 8 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. इन ऑपरेशन्स में कुल 885 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं. कई सवालों के बावजूद पुलिस एनकाउंटर्स लगातार जारी हैं.
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद में 26 साल की पशु चिकित्सक से रेप के मामले के 4 आरोपियों के एनकाउंटर को लेकर पूर्व जज वीएन सिरपुरकर के नेतृत्व में एक स्वतंत्र जांच दल का गठन किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर्स को बताया था गंभीर मुद्दा
ऐसा करके एससी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और तेलंगान उच्च न्यायालय की समक्ष मामलों की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी. इस मामले में भी तेलंगाना पुलिस ने कहा था कि आरोपियों ने पुलिस से हथियार छुड़ाकर भागने की कोशिश की जिसके बाद उन्हें गोली मारी गई. इस मामले की लगभग सात महीने के बाद भी जांच जारी है.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस में हुई मुठभेड़ों के मामलों में भी हस्तक्षेप किया है, जनवरी 2019 में शीर्ष अदालत की तरफ से इसे गंभीर मुद्दा बताया गया था. एनएचआरसी ने उत्तर प्रदेश सरकार को मुठभेड़ के बाद होने वाली मौतों के मामलों में 2017 के बीच कम से कम तीन नोटिस जारी किए हैं. हालांकि राज्य ने अपना बचाव करने वाले नोटिसों के लिए एक सामान्य प्रतिक्रिया दर्ज की है.(bharatvarsh)
जयपुर, 11 जुलाई। राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत की सरकार को कथित रूप से गिराने की कोशिशों के मामले में बीजेपी नेताओं का नाम सामने आया है. राजस्थान पुलिस ने इस मामले में दो बीजेपी नेताओं को देर रात हिरासत में लिया था। पूछताछ के बाद राजस्थान स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया है।
कॉल रिकॉर्डिंग के आधार पर एक्शन
रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान में विधायकों की खरीद फरोख्त मामले में ब्यावर के दो भाजपा नेताओं का नाम सामने आया है। इन नेताओं के नाम हैं भरत मालानी और अशोक सिंह। इन्हें ब्यावर उदयपुर से स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने गिरफ्तार किया है। राजस्थान एसओजी के मुताबिक मालानी की कॉल रिकॉर्डिंग से पता चला है कि विधायकों को खरीदने की कोशिश जा रही है।
बीजेपी नेता भरत मालानी गिरफ्तार
इस खुलासे के बाद एसओजी ने भरत मालानी को हिरासत में ले लिया है, बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। फिलहाल जयपुर में उनसे पूछताछ हो रही है। भरत मालानी राजस्थान बीजेपी में कई पदों पर जिम्मेदारी निभा चुके हैं।
राजस्थान में सरकार गिराने की कोशिशों को लेकर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने केस दर्ज किया है। एफआईआर के मुताबिक स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप को कुछ फोन नंबरों की रिकॉर्डिंग के दौरान पता चला कि अशोक गहलोत सरकार को गिराने की साजिश चल रही है।
बीजेपी पर धन देकर खरीदने का आरोप
एफआईआर के अनुसार, ऐसी बात फैलाई जा रही है कि राजस्थान में सीएम और डिप्टी सीएम में झगड़ा चल रहा है। ऐसी स्थिति में कुछ ताकतें निर्दलीय और कांग्रेस के विधायकों को तोडक़र इस सरकार को गिराना चाहते हैं।
एफआईआर में आरोप है कि बीजेपी नेता विधायकों को धन का प्रलोभन देकर अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं। राजस्थान का स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप इस मामले की जांच कर रहा है।