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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 31 जुलाई। हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा काट रहे एक कैदी की आज संभागीय कोविड अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। कोविड अस्पताल में किसी कोरोना पीडि़त की यह पहली मौत है।
मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रमोद महाजन ने बताया कि मरीज कोरोना संक्रमित अवश्य था लेकिन उसकी मौत हार्ट अटैक से हुई है। वृद्ध कैदी को कोरोना की पुष्टि होने पर 28 जुलाई को संभागीय कोविड अस्पताल में दाखिल कराया गया था। आज सुबह उनसे दम तोड़ दिया।
कोविड अस्पताल में किसी मरीज की इलाज के दौरान हुई यह पहली मौत है। इससे पहले सिम्स में झारखंड के एक युवक को उपचार के लिये लाये जाने पर उसकी मौत के बाद उसके कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। मस्तूरी क्षेत्र की एक 13 वर्षीय बीमार बालिका को उसके परिजन बेहतर इलाज के कारण सिम्स से ले गये थे, जिसकी बाद में मौत हो गई थी।
रायपुर 31 जुलाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज यहां छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण के नव-नियुक्त अध्यक्ष श्री मिथिलेश स्वर्णकार के कार्यभार ग्रहण कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने श्री स्वर्णकार को नया दायित्व मिलने पर बधाई और शुभकामनाएं दीं।
श्री स्वर्णकार ने वीआईपी रोड स्थित छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण के कार्यालय में कार्यभार ग्रहण किया। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा है कि आज सौर ऊर्जा की आवश्यकता भी है और इसकी बड़ी मांग भी है। उन्होंने क्रेडा के नव-नियुक्त अध्यक्ष श्री स्वर्णकार को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि श्री स्वर्णकार शासन की नीतियों के अनुरूप जनता के हित में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का काम करेंगे।
इस अवसर पर उद्योग मंत्री कवासी लखमा, छत्तीसगढ़ राज्य खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन, राज्य खाद्य एवं आपूर्ति निगम के अध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल, मुख्यमंत्री के सलाहकार विनोद वर्मा, मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू और नगर निगम जगदलपुर की महापौर श्रीमती सफीरा साहू भी उपस्थित थीं।
नई दिल्ली, 31 जुलाई (वार्ता)। कोरोना महामारी ने दुनिया को जितना बड़ा संकट दिया है उसके गंभीर परिणाम तो आने वाले दिनों में सबको देखने को मिलेंगे लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस कोरोना काल ने हमें सोचने का नया मौका भी दिया है।
यह विचार ग्रामीण बैंक के संस्थापक और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बातचीत में व्यक्त किये। इस बातचीत का वीडियो श्री गांधी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है जिसमें प्रो. यूनुस ने कहा कोरोना ने हमें सोचने का अवसर दिया है कि हम उस भयानक दुनिया में जाएं जो अपने आप को तबाह कर रही है या हम एक नई दुनिया के निर्माण की तरफ जाएं जहां पर ग्लोबल वार्मिंग, केवल पूंजी आधारित समाज, बेरोजगारी नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि अगर आप लोगों के हित के लिए कुछ कर रहे हैं तो कोई भी उसे नष्ट नहीं कर सकता। अच्छे काम में अवरोध आते हैं और ये सब अवरोध अस्थायी अव्यवस्था का हिस्सा होते है। आपके किये अच्छे काम वापस आ जाएंगे क्योंकि यह काम लोगों के लिए हुआ है क्योंकि अच्छे विचार अटूट होते हैं।
प्रोफेसर यूनुस ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के साथ उस दुनिया में क्यों वापस जाना है, जहां कृत्रिम बुद्धिमत्ता हर किसी से रोजगार छीन रही है। अगले कुछ दशकों में व्यापक बेरोजगारी पैदा होने वाली है। कोरोना ने हमें सोचने का नया मौका दिया है।
उन्होंने कहा हमें प्रवासी मजदूरों को पहचानना होगा। अर्थव्यवस्था इन लोगों को नहीं पहचानती है। वह इसे अनौपचारिक क्षेत्र कहते हैं, जिसका मतलब है कि हमारा उनसे कोई लेना-देना नहीं है, वह अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं। हम औपचारिक क्षेत्र के साथ व्यस्त हैं। हम इसके बजाय एक अलग समानांतर अर्थव्यवस्था, स्वायत्त अर्थव्यवस्था के रूप में ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का निर्माण क्यों नहीं कर सकते। प्रौद्योगिकी ने हमें वह सुविधा दी है जो पहले कभी नहीं थी।
वेतन काटने, फफूंद-कीड़े लगे खाना देने का आरोप
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। अंबेडकर अस्पताल की दर्जनों ठेका सफाई कर्मी घटिया खाना देने का आरोप लगाते हुए बीती रात से हड़ताल पर चली गई हैं। आज भी उनका काम बंद रहा। दूसरी तरफ हड़ताल से कोरोना वार्ड समेत पूरे अस्पताल की सफाई प्रभावित रही। अस्पताल प्रबंधन और सफाई कर्मियों के बीच चर्चा जारी है, लेकिन उनकी काम पर वापसी नहीं हो पाई है।
सफाई कर्मी संघ की अध्यक्ष रूपमाला मेश्राम व अन्य पदाधिकारियों का आरोप लगाते हुए कहना है कि कोरोना के चलते वे सभी छुट्टी के दिन भी काम पर आ रही हैं, लेकिन उनका वेतन काट दिया जा रहा है। दूसरी तरफ उन्हें घटिया किस्म का खाना लगातार दिया जा रहा है। कई बार उसमें कीड़े-अंडे मिल रहे हैं, तो कई बार नाखून, फफूंद लगे चावल दिए जा रहे हैं। इसकी शिकायत अस्पताल प्रबंधन से की जा चुकी है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। ऐसे में वे सभी बेमियादी हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर हैं।
पीआरओ अंबेडकर अस्पताल शुभ्रासिंह ठाकुर का कहना है कि ठेका सफाई कर्मी हड़ताल पर हैं। उन्हें सुबह-शाम चाय-नाश्ता और दोपहर-रात में खाना दिया जा रहा है। इसके बाद भी वे लोग असंतुष्ट हैं। उनके हड़ताल पर जाने से यहां सफाई का काम नियमित कर्मी कर रहे हैं। दूसरी तरफ उनकी वापसी को लेकर अस्पताल प्रबंधन से चर्चा जारी है, लेकिन अभी तक उनकी वापसी नहीं हो पाई है।
उल्लेखनीय है कि अस्पताल में करीब 70-80 ठेका सफाई कर्मी हैं और वे सभी 2012-13 से काम कर रहे हैं। इस दौरान वे सभी नियमित करने की मांग भी करते रहे।
नई दिल्ली, 31 जुलाई (वार्ता)। रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अंबानी के 2024 तक के पचास करोड़ उपभोक्ताओं के लक्ष्य की दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए 2020-21 की पहली तिमाही में वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के बावजूद जियो एक करोड़ ग्राहक जोडक़र 40 करोड़ के निकट पहुंच गई है।
अप्रैल-जून तिमाही के दौरान जियो के विशुद्ध रुप से 99 लाख नये ग्राहक बने और कुल उपभोक्ता 39 करोड़ 83 लाख पर पहुंच गए। महज चार साल पहले मोबाइल क्षेत्र में कदम रखने वाली जियो इस क्षेत्र की दिग्गजों भारती एयरटेल और वोडा-आइडिया को पछाडक़र पहले नंबर पर है और अब उसका अगला लक्ष्य 2024 तक अपने उपभोक्ताओं का आंकड़ा 50 करोड़ करना है।
जियो का आकलन औसतन रोजाना पौने तीन लाख ग्राहक जोडक़र चार साल से कम समय में 40 करोड़ उपभोक्ता अपने साथ जोड़े। श्री अंबानी ने कंपनी की इस सफलता पर कहा, Þभारतीय स्टार्ट-अप्स और दुनिया की प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी कर जियो प्लेटफॉम्र्स अब डिजिटल बिजनेस के अगले हाइपर ग्रोथ के लिए तैयार है। हमारी विकास रणनीति सभी 130 करोड़ भारतीयों की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से बनी है। हमारा सारा ध्यान भारत को एक डिजिटल समाज में बदलने पर केंद्रित है।Þ
मुकेश अंबानी ने 15 जुलाई को रिलायंस की 43वीं आम बैठक में ऐलान किया है कि भारतीय बाजार में कंपनी सस्ते स्मार्टफोन लायेगी और उसका मकसद 35 करोड़ जी ग्राहकों को 4जी और 5जी सेवाओं के तहत लाना है। कंपनी का इरादा अगले साल देश में 5जी सेवाएं शुरु करने का है और इसके लिए सभी तैयारियां करीब करीब पूरी कर ली गई हैं और सरकार की हरी झंडी का इंतजार है।
यही नहीं, जहां सस्ती और बेहतर सेवाओं को उपलब्ध कराने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच अन्य कंपनियों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है, रिलायंस जियो का मुनाफा छलांगें लगा रहा है । गुरुवार को वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में रिलायंस जियो का शुद्ध मुनाफ़ा पिछले साल की इसी अवधि के 891 करोड़ रुपये की तुलना में 182.8 प्रतिशत की बड़ी छलांग लगाकर 2,520 करोड़ रुपये पहुंच गया। जियो का मुनाफा लगातार 11वीं तिमाही में बढ़ा और इसका मुख्य आधार नये ग्राहकों की संख्या में लगातार बड़ी बढ़ोतरी और कर्ज मुक्ति के बाद वित्त लागत कम होना है।
मॉस्को, 31 जुलाई (स्पूतनिक)। नाइजीरिया के उत्तर-पूर्वी शहर मैदुगुरी में बोको हराम के आतंकवादियों ने मोर्टार से गोले दागे जिससे दो लोगों की मौत हो गयी और 16 अन्य घायल हो गये।
पीआर नाइजीरिया समाचार आउटलेट ने बताया कि हमला गुरुवार देर रात को हुआ जब लोग ईद उल अजहा के जश्न की तैयारी कर रहे थे। शहर के तीन जिलों में मोर्टार के गोले गिरे जिससे निवासियों में दहशत फैल गयी। घटना की जांच के लिए पुलिस विस्फोटक ऑर्डिनेंस डिटेक्शन (ईओडी) के अधिकारियों को शहर में भेजा गया है।
गौरतलब है कि बोको हराम पर पश्चिमी अफ्रीकी क्षेत्र में कई हमलों और अपहरणों का आरोप है। नाइजीरिया आतंकवादियों से निपटने के लिए नाइजर, कैमरून और चाड के साथ सैन्य अभियान चला रहा है।
डोंगरगांव पुलिस ने 12 घंटे में सुलझाई गुत्थी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 31 जुलाई। डोंगरगांव से सटे कोहका में एक व्यक्ति की हत्या की गुत्थी पुलिस ने सुलझाते हुए एक नाबालिग समेत दो युवकों को गिरफ्तार किया है। हत्या महज मोबाइल रिचार्ज की रकम मांगने के नाम पर हुई। डोंगरगांव पुलिस ने 12 घंटे के भीतर वारदात की गुत्थी को सुलझा लिया।
मिली जानकारी के मुताबिक कोहका के रहने वाले प्रेमलाल मेश्राम का शव नाला के पास लावारिश हालत में मिला। प्रथम दृष्टया मामला हत्या से जुडे होने की आशंका के आधार पर पुलिस ने मामले की तफ्तीश शुरू की। बताया गया है कि कल दोपहर लगभग 3.30 बजे मृतक का शव मिलने की खबर के बाद वहां भीड़ जुट गई। घटनास्थल पर पुलिस को एक दो पहिया वाहन भी मिला। वहीं मृतक के शरीर के पास चप्पल और बियर की बोतलें मिली। उक्त बोतलें छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलने के आधार पर पुलिस ने मामले को हत्या से जोडक़र देखा।
मिली जानकारी के मुताबिक मृतक प्रेमलाल का आरोपी मुकेश वैष्णव तथा एक नाबालिग से मोबाइल रिचार्ज की दो सौ रुपए की रकम को लेकर विवाद हुआ। मृतक ने आरोपी के मोबाइल में रिचार्ज कर दिया और वह पैसे की मांग कर रहा था। इसी बात को लेकर आरोपी और नाबालिग का मृतक से विवाद हुआ और पास में रखे एक पत्थर से वारकर दोनों फरार हो गए। पुलिस को आरोपियों के घटना से पहले मृतक के साथ घूमते पाए जाने की खबर मिली। आरोपियों के मोबाइल लोकेशन के आधार पर पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया। आरोपियों को न्यायालय में पेश कर ज्यूडिशियल रिमांड पर भेजने की तैयारी है।
राहुल गाँधी की नोबेल विजेता और ग्रामीण बैंक संस्थापक प्रो. मोहम्मद यूनुस से विशेष बात-चीत:
RG MY |
आप कैसे हैं प्रोफेसर? बहुत दिन बाद आपको देखकर अच्छा लगा! मैं ठीक हूँ। मुझे भी अच्छा लग रहा है। |
RG |
एक महत्वपूर्ण कारण जिसके चलते मैं आपसे बात करना चाहता था, क्योंकि आप गरीब लोगों की आमदनी और महिलाओं पर गरीबी के प्रभाव को समझते हैं। इसलिए मैं आपसे जानना चाहता हूं कि कोविड और आर्थिक संकट गरीबों, उनकी ऋण उपलब्धता और गरीब महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है। आपके क्या विचार हैं और हमें इस बारे में कैसे सोचना चाहिए? |
MY |
यह वही पुरानी कहानी है, मैं कोई नई बात नहीं कह रहा हूँ। वित्तीय प्रणाली को बहुत ही गलत तरीके से तैयार किया गया है। तो कोरोनोवायरस ने समाज की कमजोरियों को बहुत ही कुरूप तरीके से प्रकट किया है, जिसे आप अभी देख सकते हैं। ये उस समाज से दूर हैं, जहां हमें इनकी जरूरत पड़ती है। गरीब लोग हैं, शहर में प्रवासी मजदूर हैं। हमारे लिए काम करने वाले लोग, खाना बनाने वाले, सुरक्षाकर्मी, हमारे दरबान जो हमारे बच्चों की देखभाल कर रहे हैं। हम उन्हें जानते थे। लेकिन अचानक से हम उनमें से लाखों को घर जाने की कोशिश में हाइवे पर देखते हैं। अचानक शहर के सभी प्रवासी मजदूर बड़ी भीड़ में शहर से बाहर आ रहे हैं और बाहर जा रहे हैं। साधारण सा कारण है कि उनके पास यहाँ कुछ भी नहीं है, यहाँ कोई जीवन नहीं है, कोई पैसा नहीं बचा है। अंततः वे अपने घर ही वापस जा सकते हैं। इसलिए वे हताश होकर घर जा रहे हैं। हजारों मील पैदल चलकर। यह सबसे दुखद हिस्सा है, जो कोरोनोवायरस की वजह से बाहर आया है।
इसलिए हमें इन लोगों को पहचानना होगा। अर्थव्यवस्था इन लोगों को नहीं पहचानती है। वह इसे अनौपचारिक क्षेत्र कहते हैं। जिसका मतलब है कि हमारा उनसे कोई लेना-देना नहीं है, वह अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं। अर्थव्यवस्था औपचारिक क्षेत्र से शुरू होती है, इसलिए हम औपचारिक क्षेत्र के साथ व्यस्त हैं.
यदि हम केवल उन्हें वित्तीय सहायता दें , तो हम उनकी देखभाल कर सकते हैं, उन पर ध्यान दे सकते हैं, वे आगे की तरफ बढ़ रहे हैं। क्योंकि उनके पास कुछ आधारभूत चीज़ें ही हैं और वे जानते हैं कि अपने जीवन के लिए कैसे लड़ना है। लेकिन हम उनकी अनदेखी करते हैं।
इसके बाद आती हैं महिलाएं, जो सबसे अलग कर दी गई हैं। उनकी संरचना को देखिए, वो सबसे निचले पायदान पर हैं। इनकी कोई आवाज नहीं है, समाज में कुछ भी नहीं है, परंपराएं इन्हें पूरी तरह से अलग बनाती हैं। वे समाज की मूल ताकत हैं। उद्यमशील क्षमता के साथ, जब माइक्रो क्रेडिट आया और महिलाओं के पास गया, तो उन्होंने दिखाया कि उनके पास कितनी उद्यमी क्षमता है। यही कारण है कि माइक्रो क्रेडिट को न केवल बांग्लादेश, बल्कि पूरी दुनिया ने जाना, क्योंकि उन्होंने अपना महत्व दिखाया। वे लड़ सकती हैं, उनके पास कौशल है, कारीगरी और सभी प्रकार के सुंदर कौशल इनके पास है। इनको भुला दिया गया, क्योंकि ये 'अनौपचारिक' क्षेत्र से हैं। |
RG |
मेरा मतलब भारत, बांग्लादेश जैसे देशों की यही मूल समस्या है। यह सबसे बड़ी संपत्ति हैं। ये सूक्ष्म उद्यमी, हमारे भविष्य हैं। यह वह जगह है जहाँ पैसा लगाया जाना चाहिए, जहाँ विकास होने वाला है। लेकिन किसी कारण से व्यवस्था उनमें दिलचस्पी नहीं लेती है। हमारी व्यवस्था के लिए उनका महत्व ही नहीं है। |
MY |
बिलकुल, हमने आर्थिक, वित्तीय प्रणाली में पश्चिमी तरीके का अनुसरण किया। इसलिए हमने इस क्षेत्र में भारत, बांग्लादेश जैसे लोगों की जीवंत क्षमता के बारे में नहीं सोचा। चीजों को करने के लिए उनके पास जबरदस्त दृढ़ता है। बहुत रचनात्मक तरीका है। उस रचनात्मकता की प्रशंसा और समर्थन करना होगा। लेकिन सरकार इससे दूर है, यह अनौपचारिक क्षेत्र है, आपके पास कुछ करने को नहीं है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था शहरी अर्थव्यवस्था के लिए एक परिशिष्ट बन गई है। पश्चिम का पारंपरिक तरीका शहरी अर्थव्यवस्था को गतिविधियों के केंद्र के रूप में देखता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था श्रम आपूर्तिकर्ता है, यह श्रम उत्पादक कारखाना है। और वे अपने लोगों को नौकरी खोजने के लिए शहरों में भेजेंगे, अगर आपको नौकरी नहीं मिली, तो यह आपकी बुरी किस्मत है और आप उस शहर में बंद हो जाएंगे। हम इसके बजाय एक अलग समानांतर अर्थव्यवस्था, स्वायत्त अर्थव्यवस्था के रूप में ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का निर्माण क्यों नहीं कर सकते। आज की स्थिति 100 साल पहले से बदल गई है। प्रौद्योगिकी ने हमें वह सुविधा दी है, जो पहले कभी नहीं थी। शहरवासी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनके पास बुनियादी ढांचा था। ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना ही नहीं थी।
आज, बुनियादी ढांचा सिर्फ शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। आपके पास दूरसंचार है, सड़क है, परिवहन है, संचार है। सब कुछ तो है। तो ऐसा क्या है कि आपको शहर जाना है? हम एक ऐसी अर्थव्यवस्था क्यों नहीं बना सकते, जहाँ लोग मूल स्थान पर रहकर बुनियादी आजीविका प्राप्त कर सकें? |
RG |
लेकिन अगर आप देखें कि तकनीक किस तरह जा रही है, विकेंद्रीकरण, मोबाइल फोन, मूल रूप से कंप्यूटर जो पूरी दुनिया में फैल रहा है, जो अलग-अलग हिस्सों में प्रवेश कर रहा है। संभवतः आप एक ऐसे भविष्य को देख रहे हैं जो आपको बहुत पसंद है। क्योंकि 20 साल पहले, आप ग्रामीण अर्थव्यवस्था का उपयोग कुछ अलग तरह के काम करने के लिए कर सकते थे, जो कि आज की आवश्यकता है। जबकि प्रौद्योगिकी के साथ असहमति का कोई कारण नहीं है, विकेन्द्रीकृत विनिर्माण ग्रामीण परिवेश में नहीं हो सकता है। हालाँकि, आपको शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से पुनर्गठित करना होगा। आपको स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्थाओं के पूरी तरह से पुनर्गठन की आवश्यकता होगी। आपको मूल रूप से सभी चीजों का पुनर्गठन करना होगा, यदि आप उस दिशा में बढ़ना चाहते हैं। मुझे नहीं लगता कि आप वैसा सोचकर जो चाहते हैं, उसे हासिल कर सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि यह संभव है। यह पूरी तरह से एक नयी बात है, जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं। मुझे नहीं लगता यह एक वृद्धिशील बात है। |
MY |
यह एक और बिंदु है, मैं अपनी बात को कोरोना महामारी की तरफ मोड़ना चाहता हूं। मैंने कहा कि कोरोना महामारी ने अचानक पूरी प्रक्रिया, पूरी आर्थिक प्रक्रिया को बंद कर दिया। अब पूरा जोर इस बात पर है कि कितनी जल्दी हम वापस उस स्थिति में आ सकते हैं। मैंने कहा, वापस जाने की क्या जल्दी है? क्या हम सबको वापस जाना चाहिए? क्योंकि वह दुनिया बहुत भयानक दुनिया थी। ग्लोबल वार्मिंग के साथ दुनिया का निर्माण हो रहा था और कुछ ही वर्षों में दुनिया की समाप्ति का काउंटडाउन चालू था, जहाँ दो-तीन दशकों में दुनिया एक ऐसे मुकाम पर होगी, जहां कोई नहीं बच सकता।
हमें उस दुनिया में वापस क्यों जाना है और केवल पूंजी आधारित और ग्लोबल वार्मिंग के साथ उस दुनिया में क्यों वापस जाना है। उस दुनिया में धन बहुत कम लोगों के पास रहा है, अधिकांश लोगों को उस धन से कोई लेना-देना नहीं रहा है। तो हमें केवल पूंजी आधारित उस व्यवस्था में वापस क्यों जाना है? आपको उस दुनिया में वापस क्यों जाना है, जहां कृत्रिम बुद्धिमत्ता हर किसी से रोजगार छीन रही है। अगले कुछ दशकों में व्यापक बेरोजगारी पैदा होने वाली है, क्या हमें वापस जाना है? पीछे जाना आत्मघाती होगा। इसलिए इस कोरोनावायरस ने हमें सोचने का नया मौका दिया है। आपदा में अवसर की तरह। तो यहाँ मुद्दा यह है कि जो बिंदु आपने उठाया, हम इसके बारे में नहीं सोच रहे हैं। हमें इसकी आदत हो गई है। अचानक हमने कहा, ओह, हमें मौका मिला। चलो अब,अलग तरीके से चलते हैं। और ये अलग-अलग तरीके इस प्रकार हैं। जब तक हम उन साहसिक निर्णयों को नहीं लेते, अभी यही समय है जब हम सख़्त निर्णय ले सकते हैं। यह समय चुपचाप बैठने और घर, दुकानें खुलने का जश्न मनाने का नहीं है।
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RG |
यह मॉडल भारतीय या बांग्लादेशी मॉडल नहीं है। यह पूरी तरह से पश्चिमी मॉडल है कि हमने लॉक स्टॉक और बैरल को अपनाया है। वास्तव में हमने इस मॉडल को अपनाया है और महसूस किया है कि यह मॉडल ऐसा नहीं है। इस मॉडल में गंभीर समस्याएं हैं। गंभीर विरोधाभास है, जो पर्यावरण को नष्ट करता है, समाज को नष्ट करता है? और अगर मैं महात्मा गांधी के बारे में सोचता हूं, जो उन्होंने 78 साल पहले कहा था कि हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बारे में सोचने की जरूरत है। हमें अपनी पारंपरिक संरचनाओं के बारे में सोचने की जरूरत है। निश्चित रूप से, हमारी एक यात्रा रही है और यह एक महत्वपूर्ण यात्रा है, लेकिन मुझे लगता है कि इनमें से कुछ तरीकों पर पुनर्विचार करना चाहिए, आप जानते हैं, एक भारतीय संरचना, बांग्लादेशी संरचना और एशियाई संरचना काफी शक्तिशाली होगी। इसलिए मुझे लगता है कि मैं आपसे सहमत हूं कि इन सबमें ग्रामीण लोगों के लिए बराबरी की जरूरत है और कोरोना में हमें एक नई कल्पना का अवसर मिला है, जो बाहर के बजाय हमारे भीतर से पैदा होती है। |
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इसके मूल आधार पर बिलकुल सहमत होते हुए बस एक छोटा सा संशोधन है। यह एशिया, भारत या बांग्लादेश तक सीमित नहीं है। यह पूर्ण रूप से वैश्विक घटना है। इसका प्रमाण है, जब हमने बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक को पैसा उधार देना शुरू किया। उन्होंने सोचा कि यह बांग्लादेशी घटना है, कि यह एक दीवाना देश है, क्रेजी चीजें करते हैं। अचानक यह एशियाई हो गई। अब, यह वैश्विक है। क्योंकि यह अकेले बांग्लादेश की समस्या नहीं है। |
RG |
लेकिन यूनुस जी वहाँ इसकी प्रकृति स्थानीय है। उदाहरण के लिए मैं आप में बांग्लादेश और वहां की प्रकृति देखता हूँ। मैं मानता हूं कि केंद्रीय समस्या समान है लेकिन उसकी प्रकृति और समाधान उस जगह की संस्कृति के आधार पर थोड़ा अलग है। उदाहरण के लिए, हमारे पास जाति-आधारित समाज है। हमारे पास संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में पूरी तरह से अलग प्रकार की संरचना है जिसमें जाति-आधारित समाज नहीं है। इसलिए हमारी संरचनाएं जो उभरती हैं, वे थोड़ी अलग हैं, हालांकि समस्या समान है। |
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मैं सहमत हूँ कि बुनियादी बातें समान है, आपके पास जाति व्यवस्था है, संयुक्त राज्य अमेरिका में जाति व्यवस्था से भी बदतर एक नस्लीय व्यवस्था है। आप एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। यह अलग आकार, आकृति और रंगों में है। मानव संस्कृति मूल संस्कृति है। हमें मानव संस्कृति में वापस जाना होगा। हम सभी जुड़े हुए हैं और यह तब हुआ जब गरीब महिलाएँ ग्रामीण बैंक समूह में शामिल होने लगी हैं। वे नहीं सोच रही हैं कि वह इस धर्म से संबंधित है या उस धर्म से। वे इस बात की परवाह नहीं करती कि वे किस धर्म में हैं। वे एक ही समूह में हैं और अलग-अलग धर्म की पांच महिलाएं, एक साथ मिल कर, एक साथ काम करके, बहुत करीबी दोस्त बन जाती हैं।
तो दोष माहौल की उस बनावट में है, जो आपने उसके चारों ओर बनाया है। तो यही समय है जब कोरोनोवायरस ने उन सभी को पीछे छोड़ दिया है। इसलिए उन्हें मत जगाओ, नई व्यवस्था बनाओ। नई व्यवस्थाएँ लाएँ और नई व्यवस्थाओं की शुरुआत करें। हजारों-मील की यात्रा पहले कदम के साथ शुरू होती है। चलिए कोरोनावायरस के दौरान पहला कदम उठाते हैं। एक बहुत ही निर्धारित पहला कदम। |
RG |
तो आप जो कह रहे हैं उसका मतलब है कि आपको लोगों पर विश्वास करना होगा। यही नींव है, आप उन पर विश्वास करके, उस विश्वास को सशक्त बनाने वाली संस्थाओं का निर्माण शुरू करते हैं। हम आप पर भरोसा नहीं करते हैं। आप गरीब हैं, इसलिए आपको कुछ भी समझ में नहीं आता है। इसके बजाय आप गरीब हैं, हम जानते हैं कि जरूरत के अनुसार आप सब कुछ समझते हैं। हम आपको केवल सपोर्ट देने जा रहे हैं जो आपको कामयाब और विकसित होने के अवसर देने वाला है। |
MY |
बिल्कुल, और फिर ग्रामीण बैंक में मेरा अनुभव, यदि आपको याद हो तो आपने 2008 में हमसे मुलाकात की थी। और आप सिर्फ एक दिन नहीं, चार-पांच दिनों के लिए आए थे। हम यह कैसे करे? उसका आधार क्या था? लोग हैरान थे कि हम उनके हाथ में इतना पैसा दे रहे हैं। उनके लिए 1000 रुपये एक बड़ी रकम है। 2,000 और 10,000 उनके लिए एक बड़ी रकम है। जिन्होंने केवल 10, 20 रुपये ही देखें हों और अब आप उन्हें 1000 दे रहे हैं।
खैर जैसा मैंने कहा, हमें उन पर विश्वास है, उनकी क्षमता पर विश्वास है और वे हम पर विश्वास करते हैं। यह आपसी विश्वास है। हमें किसी कागजात की आवश्यकता नहीं है। पूरे ग्रामीण तंत्र में, कोई कागजात नहीं है। कोई जमानत नहीं है और यह मैं सिर्फ यूं ही नहीं कह रहा हूं। मैं कहता हूं कि ग्रामीण बैंक दुनिया का एकमात्र बैंक है, जो वकील मुक्त है। हमारे पास कोई कानूनी कागजात या कुछ भी नहीं है। अगर बैंक विश्वास पर काम कर सकता है, तो इसने लोगों की बुनियादी ताकत को दिखाया है। जब हर साल अरबों डॉलर लोन के रूप में दिए जाते हैं और ब्याज के साथ वापस आते हैं, तो आप एक मजबूत संगठन बन जाते हैं। बाढ़ आती है, चक्रवात आता है, सब कुछ धुल जाता है, लेकिन ग्रामीण बैंक मजबूत हो जाता है। |
RG |
लेकिन देखिए मुझे इसका एक व्यक्तिगत अनुभव है और मुझे लगता है कि आप बिलकुल ठीक हो और आप समझ जाओगे कि मैं क्या कह रहा हूँ। मैं आपसे मिलने आया था और आप जानते हैं कि हमने उत्तर प्रदेश में लाखों महिलाओं को शामिल करने वाली एक बड़ी संस्था बनाई है। और तब मुझे एक अत्यंत शक्तिशाली संगठन मिला, लाखों महिलाऐं सशक्त बनी; लाखों महिलाओं ने गरीबी को दूर किया। तब मैंने खुद को एक सरकार के साथ पाया, जिसने इस पर हमला करने का फैसला किया। इसलिए मैं आपसे सहमत हूं लेकिन आप जो कह रहे हैं, उसमें एक टुकड़ा गायब है, जो राजनीतिक वास्तविकता है, वह यह है कि इन व्यवस्थाओं को आपने बनाया है, जैसे कि मैंने उत्तरप्रदेश में बनाया है। इससे कुछ लोगों को परेशानी होती है और फिर वे इसे नष्ट करने के लिए आते हैं और आप जानते हैं, आप समझ जाएंगे कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ। इसलिए मैं आपको चुनौती दूंगा और मुझे यकीन है कि आप मुझे जवाब जरूर देंगे। इस माहौल में, जहां अन्य संस्थान अन्य राजनीतिक उपकरण उस संस्था के प्रकार पर हमला कर रहे हैं, जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं। आप इसका बचाव कैसे करते हैं? और आप इसे कैसे बनाते हैं? ऐसे कौन से तत्व हैं जिनकी आपको इसमें आवश्यकता होती है, जो या तो इन अन्य संस्थानों के साथ काम कर सकते हैं या सह-विकल्प हो सकते हैं या एक समझदार प्रतियोगी के रूप में हो सकते हैं। |
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इसी तरह सरकार जैसी कुछ संस्थाओं में चीजों को नष्ट करने और चीजों को कार्रवाई से दूर करने की जबरदस्त शक्ति होती है। लेकिन मेरी स्थिति यह है कि अगर आप लोगों के लिए कुछ कर रहे हैं और लोगों ने इसे पसंद किया और लोग इसका आनंद भी लेते हैं। तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो कितने शक्तिशाली हैं, यह एक अस्थायी अव्यवस्था है। यह वापस आ जाएगा। आप इसे रोक नहीं सकते क्योंकि यह लोगों के लिए काम करता है और अगर इसने विस्तार पा लिया और यदि आप इसे उत्तरप्रदेश में रोकते हैं, तो ये अन्य राज्य या क्षेत्र में अपनी जगह बना लेगा। जितना आपने प्रयास किया है, उससे अधिक ताकत के साथ वापस आएगा और फिर से जीवित होगा। क्योंकि यह लोगों के लिए काम करता है। यह अटूट है। अच्छे विचार अटूट होते हैं। |
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लेकिन आप बेहतर स्थिति में जाने के बारे में कैसा महसूस करते हैं? क्या आप बेलआउट पैकेज लाने और सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सभी बड़े उद्योग फिर से दिशा-निर्देश प्राप्त करें, यह थोड़ा सोचने का समय है। |
RG |
मुझे लगता है कि भारत में बड़े पैमाने पर प्रवासियों का मुद्दा था। आप जानते हैं, जिसे आप सूक्ष्म उद्यमी कहते हैं, अचानक उन्होने खुद को फंसे हुए पाया और मैंने उनमें से काफी लोगों से बात की और बार देखा कि वे क्या कर रहे थे, सचमुच उनकी दुनिया बिखर गई थी और वे अपने गाँव वापस जाने के लिए मजबूर हो गए थे। तो इसका पहला पहलू उन लोगों की तुरंत देखभाल करने की कोशिश करने का था और हमारा उद्देश्य उन्हें भोजन देना था। उन्हें बचाए रखने के लिए सीधे नकद पैसे दें। सरकार का एक अलग दृष्टिकोण था। वो वास्तव में ऐसा नहीं करते थे। वो इसे आवश्यक भी नहीं समझते थे। फिर लाखों लोग हजारों मील पैदल चलकर घर जाने का संकट झेल रहे थे। मुझे संदेह है कि बांग्लादेश में भी ऐसा था, लेकिन मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं। मुझे लगता है कि अगर आप कोरोना काल में नई कल्पना के साथ बाहर नहीं आते हैं, तो आपने एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के रूप में एक बड़ा अवसर गंवा दिया है। मुझे लगता है कि कोरोना आपको जो बता रहा है, वह यह है कि जो आप अभी तक कर रहे थे वह समस्याग्रस्त है और आप उसे फिर से करने की कोशिश कर रहे हैं। एक नया दिन और नई कल्पना के साथ शुरू करें, निश्चित रूप से आप शासन में उस तरह से एक छलांग नहीं लगा सकते हैं, लेकिन कम से कम दिमाग वहाँ जाना चाहिए और फिर बाकी संस्थानों और अन्य चीजों का पालन करना चाहिए। इसलिए मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं कि कल्पना में बदलाव का समय आया है। मुझे लगता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने अपनी कल्पना को बदल दिया, आखिरी बार वास्तविक बड़ी कल्पना उसी वक़्त बदली थी और मुझे लगता है कि कोरोना एक ऐसा अवसर है कि हम चीजों को फिर से जोड़ सकते हैं और उनका पुनर्निर्माण कर सकते हैं। और मुझे भी लगता है कि हमारे जैसे देशों में अन्य देशों की तुलना में बड़ा अवसर है। सिर्फ इसलिए कि हमारे पास खेलने के लिए बहुत अधिक जगह है, इतने अधिक युवा लोग हैं और हमारे पास निर्माण करने के लिए बहुत कुछ है। पश्चिमी दुनिया जो पहले से ही अपने बुनियादी ढांचे का निर्माण कर चुकी है। |
MY |
एक और सवाल फिर से आपसे पूछना चाहता था क्योंकि आपके पास एक विशाल देश और विशाल राष्ट्र का संदर्भ है। आप भारत की अगली पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी में क्या देखेंगे, हम दुनिया के सपने के उस हिस्से में हैं जो आप भारत की दूसरी पीढ़ी और तीसरी पीढ़ी को देना चाहते हैं। क्या यह वह रास्ता है जिसका आप अनुसरण कर रहे हैं? एक कारण की तरह, मैं यह पूछ रहा हूँ, पूरे विश्व में युवा सड़क पर "Friday’s for Future" मार्च करते हुए अपने माता-पिता पर आरोप लगा रहे हैं कि आपने हमारे जीवन को नष्ट कर दिया, आप ग्लोबल वार्मिंग की दुनिया बनाने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं और आप इस बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं कि क्या हम जीवित रहेंगे या नहीं, हमारे जीवन के हित में क्या है। क्या आप वही महसूस करते हैं जो युवा लोग महसूस कर रहे हैं या… |
RG |
अगर भारत में देखें, तो लोगों में एक स्पष्ट भावना है कि कुछ बहुत गलत हो गया है और विशेष रूप से युवा लोगों में यह भावना है कि कुछ गलत हो गया है। कुछ काम नहीं हो रहा है और वे भी इस बात को देख सकते हैं, कि भारत में अमीर और गरीब के बीच का अंतर बहुत विशाल है, लेकिन यह गरीब लोगों के चेहरों पर हर दिन नजर आता है। तो बस यही सब है, जो लोगों को परेशान करता है। और इसलिए एक अर्थ यह है कि कुछ नया होना जरूरी है। एक नई कल्पना की आवश्यकता है। एक विपक्ष के रूप में हम उस पर काम कर रहे हैं, ताकि उसमें नयापन दिखे। |
MY |
वही समस्या है, यहां अरबपति बढ़ रहे हैं,आप जानते हैं कि अरबपतियों की संख्या किस कदर बढ़ रही है और बांग्लादेश या भारत जैसे देश में अरबपतियों की संख्या में वृद्धि दर बहुत तेजी से बढ़ रही है। तो इसका मतलब है कि पैसा एक ही दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। यदि आप लोगों के बीच राजनीतिक समझ का उपयोग करें कि हम एक साथ यह प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इससे पैदा हुए क्रोध के कारण यह गायब हो जाता है। मैं कड़ी मेहनत करता हूँ। मैं कुछ नहीं सुनता। मुझे अपनी आजीविका का पता लगाने के लिए मीलों दूर जाना होता है और मैं अपने परिवार को या अपने बच्चों को खाना नहीं खिला सकता, मुझे अपने बच्चों से दूर रहना होता है, अपने परिवार के लिए, घर के लिए अपने परिवार से दूर रहना होता है। तो, गुस्से ने पूरे समाज को अपने आगोश में ले लिया है। |
RG |
आप लालच की अवधारणा पर सवाल उठा रहे हैं? |
MY |
हमने लालच को हवा देने के लिए सब कुछ किया और फिर हमने पूरी दुनिया को नष्ट कर दिया। तो जैसा मैंने कहा यह वही मौका है, जब कोरोना ने हमें विचार करने का मौका दिया है, यह देखने के लिए कि बड़े साहसिक निर्णय कैसे लिए जा सकते हैं, ये वही साहसिक निर्णय हैं। एक सामान्य स्थिति में इन सब चीजों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। हम पैसा कमाने में इतने व्यस्त हैं। तो जैसा मैंने कहा कि कोरोनोवायरस ने हमें राहत दी है, हमें सोचने का अवसर दिया है और हमारे पास अब एक विकल्प है कि क्या हम उस भयानक दुनिया में जाएँ जो अपने आप को तबाह कर रही है, या हम एक नई दुनिया के निर्माण की तरफ जाएं, जहां पर कोई ग्लोबल वार्मिंग, केवल पूंजी आधारित समाज, कोई बेरोजगारी नहीं होगी। यह संभव है। |
RG |
बिलकुल, आपके समय के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और अब ज्यादा समय नही लेंगे, लेकिन यह हमेशा हमारे लिए खुशी की बात है। यहाँ आने का कोई अवसर?
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MY |
बिलकुल, कोरोना के जाने के बाद। |
RG |
जब यह सब ठीक हो जाएगा तो हम आपसे मिलने के लिए उत्सुक हैं। परिवार और संगठन में सभी को मेरा प्यार। |
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 31 जुलाई। आज सीएमएचओ दफ्तर के सामने स्थित कुएं की सफाई के दौरान टुकड़ों में मानव कंकाल मिला। जिससे क्षेत्र में सनसनी फैल गई। पुलिस मौके पर पहुंच जांच कर रही है।
कोतवाली टीआई राजेश बागड़े ने बताया कि कंकाल की फॉरेंसिक जांच के लिए रायपुर भेजा जाएगा। रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
दुर्ग शहर में शासकीय और निजी मिलाकर लगभग 130 कुएं थे। स्थानीय लोगों की उदासीनता से बहुत से कुओं को लोगों ने पाट दिया। ज्ञात हो कि विधायक अरुण वोरा एवं महापौर धीरज बाकलीवाल के निर्देश पर शहर के धरोहर को संरक्षित करने कार्य प्रारंभ किया गया है। इसके तहत दुर्ग नगर निगम ने शहर में कुओं की सफाई कल से इंदिरा मार्केट के कुएं की सफाई के साथ शुरू की है।
आज सुबह सीएमएचओ दफ्तर के सामने स्थित कुएं की सफाई शुरू की गई। तभी सफाई कर्मियों को पहले मानव कंकाल का सिर मिला, इसके बाद कंकाल के टुकड़े निकाले गए। कंकाल देखने पर बच्चे का होने की आशंका जताई जा रही है। कंकाल के साथ टीशर्ट भी बंधा मिला। इसकी खबर फैलते ही लोगों की भीड़ जुट गई। लोगों में कई तरह की चर्चाएं होने लगी। कोई हत्या या कोई नरबलि की आशंका कर रहे थे। समाचार लिखे जाने तक कुएं में मिले मानव कंकाल के टुकड़ों का पता लगाने में पुलिस जुटी हुई है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बंगले के सात और कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव प्रकरण आने के बाद स्वास्थ्य मंत्री का बंगला सील कर दिया गया है।
बताया गया कि सबसे पहले कैंसर पीडि़त महिला के कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। महिला अंबिकापुर की रहने वाली है और यहां रायपुर में उनके इलाज की व्यवस्था स्वास्थ्य मंत्री के स्टाफ के लोगों ने की थी। महिला के संपर्क में आने से सबसे पहले बंगले की कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव हो गई।
बाद में बंगले के कई और लोगों का टेस्ट कराया गया। आज रिपोर्ट आई है जिसमें स्वास्थ्य मंत्री के बंगले के सात और स्टाफ के लोगों के कोरोना पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई है। इन सभी को अस्पताल में भर्ती कराया जा रहा है। हालांकि स्वास्थ्य मंत्री पिछले कई दिनों से बंगले नहीं आ रहे थे। वे आरकेसी गेस्ट हाउस से ही काम निपटा रहे थे। आज बंगला सील कर दिया गया।
मौतें-51, एक्टिव-2884, डिस्चार्ज-5921
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। प्रदेश में कोरोना मरीज 9 हजार आसपास पहुंचने लगे हैं। बीती रात मिले 256 नए पॉजिटिव के साथ इनकी संख्या बढक़र 8 हजार 8 सौ 56 हो गई है। इसमें 51 की मौत हो गई हैं। 28 सौ 84 एक्टिव हैं और इन सभी का इलाज जारी है। 5 हजार 9 सौ 21 मरीज ठीक होकर अपने घर लौट गए हैं। सैंपलों की जांच जारी है।
प्रदेश में कोरोना मरीज रोज सामने आ रहे हैं और इनकी संख्या तेजी के साथ बढ़ती चली जा रही है। खासकर राजधानी रायपुर और आसपास दर्जनों पॉजिटिव निकल रहे हैं। बुलेटिन के मुताबिक बीती रात करीब 8 बजे 175 नए पॉजिटिव की पहचान की गई। इसमें रायपुर जिले से 93, राजनांदगांव से 21, दुुर्ग से 13, कोंडागांव से 9, बिलासपुर से 8, जांजगीर-चांपा व बलौदाबाजार से 4-4, कांकेर व नारायणपुर से 3-3, मुंगेली, कोरिया, सूरजपुर, बस्तर व दंतेवाड़ा से 2-2 एवं बेमेतरा, कबीरधाम, गरियाबंद, कोरबा, सरगुजा, बलरामपुर व जशपुर से 1-1 मरीज शामिल रहे।
इसके बाद रात 11 बजे 81 और नए पॉजिटीव की पहचान की गई, जिसमें जांजगीर-चांपा जिले से 17, कवर्धा से 16, कोरिया व रायपुर से 11-11, सरगुजा से 7, रायगढ़ से 5, बिलासपुर व सूरजपुर से 4-4, दुर्ग व महासमुंद से 2-2 एवं कोरबा व जशपुर से 1-1 मरीज शामिल रहे। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में दाखिल किए जा रहे हैं। वहीं उनके संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है। दूसरी तरफ टिकरापारा, रायपुर के 45 वर्षीय व्यक्ति की कल मौत हो गई। वह डायबीटिज तथा कनवल्सिव डिसआर्डर से पीडि़त था और जांच में कोरोना पॉजिटिव भी पाया गया था। उसे 28 जुलाई को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया था और 29 जुलाई की देर रात उसने दम तोड़ दिया।
स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि प्रदेश में नए कोरोना मरीजों के साथ भर्ती मरीज भी जल्द ठीक होकर अपने घर लौट रहे हैं। बीती रात जितने मरीज सामने आए, उससे अधिक 285 मरीज ठीक होकर अपने घर लौटे। लापरवाही कम होने और मास्क लगाकर सामाजिक दूरी बनाए रखने से नए मरीजों के आंकड़े कम होंगे और हम जल्द कोरोना को हराने में सफल होंगे। उनका कहना है कि प्रदेश में 3 लाख से अधिक सैंपलों की जांच पूरी हो चुकी है और आगे सैंपल जांच और ज्यादा बढ़ाने की तैयारी है।
-कनक तिवारी
भीमा कोरेगांव के मामले में अनावश्यक रूप से गिरफ्तार मानव अधिकार कार्यकर्ताओं में एक सुधा भारद्वाज के बारे में मैं शुरू से बता दूं सुधा और मेरा बहुत पुराना परिचय है। दुर्ग जिले में राजहरा में श्रमिक आंदोलन के बहुत बड़े नेता शंकर गुहा नियोगी आपातकाल के पहले ही मेरे बहुत करीब आए। मैं लगातार उनकी मदद करता रहा और उनकी यूनियन की, उनकी सहकारी समितियों की। नियोगी से तो घरोबा जैसा हो गया था। उनकी हत्या कर दी गई। इसका दुख और क्रोध आज तक हम लोगों को है। उन्हीं दिनों उनके सहयोगी सुधा भारद्वाज, अनूप सिंह, विनायक सेन, जनकलाल ठाकुर तथा कई और मित्र वहां हुए। सबसे आत्मीय रिश्ता परिवार की तरह होता गया। वह अनौपचारिकता आज तक कायम है।
सुधा मेरे साथ वकालत में भी मेरे ऑफिस में जूनियर रहीं। हमने कई मुकदमे साथ में किए। मेरे एक और जूनियर रहे गालिब द्विवेदी बंटी ने एक दिलचस्प टिप्पणी की ‘जैसे हम लोग आपकी डांट से डरते थे वैसे ही सुधा दीदी भी डरती थीं। बहुत सी फाइलों के बीच में काम करते करते थककर सोफे पर कुछ देर सो जाती थीं और कहती थीं देखना सर आएंगे तो डांट पड़ेगी कि यह काम नहीं किया। वह काम नहीं किया। वी लव यू सर हम सबका सौभाग्य है कि हमें आपका साथ एवं आपका सानिध्य प्राप्त हुआ है।’
बस्तर में टाटा और एस्सार स्टील के लगने वाले कारखानों को चुनौती देने वाली हमने जनहित याचिका दायर कीं। कई जनहित के मामले भी बस्त के आदिवासियों के पक्ष में हिमांशु कुमार की पहल पर किए। जस्टिस राजेंद्र सच्चर और वकील कन्नाबिरन, राजेंद्र सायल, विनायक सेन और सुधा भारद्वाज के कारण मैं कई बार पीयूसीएल के कार्यक्रमों में गया हूं। मैं विनायक सेन का वकील रहा हूं। उन्हें नक्सलवादी कहा गया। बहुत मुश्किल से उनकी सुप्रीम कोर्ट में जमानत हुई। कुछ और वकील, पत्रकार, छात्र पिछले वर्ष आंध्रप्रदेश से तेलंगाना से छत्तीसगढ़ में गिरफ्तार किए गए। उनके मामले की भी मैंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में पैरवी की।
जिसे नक्सलवादी साहित्य कहते हैं उसमें से बहुत सा तो सरकारी अधिनियमों के तहत ही छपता है। उसे कोई जप्त नहीं कर सकता। मामलों में पुलिस उल्टा ही कहती रहती है। छत्तीसगढ़़ जनसुरक्षा विशेष अधिनियम में डॉक्टरों, कलाकारों, लेखकों, दर्जियों को पकड़ लिया जाता रहा है। छत्तीसगढ़ में सरकार के प्रोत्साहन से तथाकथित सलवा जुडूम नाम का कांग्रेस द्वारा समर्थित वितंडावाद हुआ था। उसकी हम सब ने मुखालफत की थी। अदालत तक गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने उस सलवा जुडूम के पूरे सरंजाम को ध्वस्त कर दिया। नंदिनी सुंदर ने इस संबंध में महत्वपूर्ण काम किया है । मेधा पाटकर ने भी, अरुंधती राय ने, सुधा भारद्वाज ने, बहुत लोगों ने। अब ब्रह्मदेव शर्मा से कई मामलों में इसी तरह के मामलों में सक्रिय संबंध हम लोगों का रहा है।
सुधा चाहती तो बहुत ऐशोआराम का जीवन व्यतीत कर सकती थी। चाहती तो बहुत से शहरी लोगों की तरह आंदोलन करतीं। शोहरत भी पाती, दौलत भी पाती। फिर भी गरीबों की नेता बनी रहती। लेकिन उसने वैभव और शहरी ठाटबाट की जिंदगी छोड़ दी। उसने गरीबी से अपनी जिंदगी, जो तारीफ के काबिल है, चलाई है। छत्तीसगढ़ से दिल्ली चली गईं अपने निजी कारणों से। कुछ पारिवारिक कारण भी थे। उन्होंने एक बच्ची को गोद लिया है। उसका जीवन संवार रही हैं। उसके पहले से बहुत बीमार चल रहा था। बहुत भावुक होकर मैंने फोन भी किया था। लिखा था। मेरी छोटी बहन की तरह काश छत्तीसगढ़ से नहीं जाती। सुधा भारद्वाज की तरह के उदाहरण हिंदुस्तान में उंगलियों पर गिने जाएंगे। इससे ज्यादा मैं क्या कहूं।
सुधा भारद्वाज की अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक गोदी मीडिया द्वारा या ट्रोल आर्मी के द्वारा कोई चरित्र हत्या की कोशिश की जाती रही है। कुछ बातें और बताऊंगा। कुछ वर्षों पहले छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस और कुछ जजों ने सुधा को लेकर मुझसे बात की थी। वे चाहते थे कि सुधा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जज बनने के लिए अपनी स्वीकृति दे दें। सुधा ने विनम्रतापूर्वक इंकार किया। मैंने सुधा से पूछा भी था तो हंसकर टाल गई। उसने कहा आप जानते हैं यह काम मैं नहीं कर पाऊंगी। मुझे जो काम करना है। वह मैं ठीक से कर रही हूं। मैं भी जानता था। वह इस काम के लिए नहीं बनी है। फिर भी उनकी योग्यता और क्षमता को देखकर मैंने सिफारिश करने की कोशिश जरूर की थी।
सुधा एक आडंबररहित सीधा सादा जीवन जीती है। उनमें दुख और कष्ट सहने की बहुत ताकत है। यूनियन में संगठन में मतभेद भी होते थे। बहुत से मामलों को सुलझाने में मैं खुद भी शरीक रहा हूं। बहुत अंतरंग बातें मुझे बहुत सी कई मित्रों के बारे में मालूम है। कुल मिलाकर सब एक परिधि के अंदर रहते थे। उसके बाहर नहीं जाते थे। जैसे बर्तन आपस में रसोई घर में टकरा जाते होंगे। लेकिन एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते। ऐसे बहुत से साथियों के बारे में भ्रम फैलाया जाता रहा है। अफवाह फैलाने वाले खराब किस्म के घटिया लोग हैं। मैं तो कांग्रेस पार्टी का पदाधिकारी रहकर भी कांग्रेस की सत्ता के जमाने में नियोगी के कंधे से कंधा मिलाकर सरकारी आदेशों और व्यवस्था के विरोध करने सहयोग करता था। मुझे किसी का भय नहीं था। कांग्रेस पार्टी ने भी कभी मुझे काम करने से नहीं रोका। यह ईमानदार मजदूर लोगों का एक संगठन है, पारदर्शी लोगों का। जब से यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बिकाऊ हो गया है, घटिया हो गया है, सड़ा हो गया है। तब से इस तरह की हरकतें वह कर रहा है। न्याय व्यवस्था भी सड़ गई है। जस्टिस कृष्ण अय्यर ने तो न्यायपालिका नामक संस्था को ही अस्तित्वहीन कह दिया है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। छत्तीसगढ़ विधानसभा का मानसून सत्र 25 अगस्त से शुरू हो रहा है। यह सत्र 28 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान कुल 4 बैठकें होंगी। इस आशय की अधिसूचना जारी कर दी गई है। सत्र के पहले दिन दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को श्रद्धांजलि दी जाएगी। इस सत्र में वित्तीय कार्य के साथ-साथ अन्य कार्य संपादित किए जाएंगे।
-तामेश्वर सिन्हा
सुकमा जिले के एक गांव की 20 वर्षीय युवती से सीआरपीएफ 150वीं वाहनी के जवान पर बलात्कार करने का आरोप है। आरोपी जवान के खिलाफ दोरनापाल थाना में युवती ने रिपोर्ट दर्ज कराई है। इसके बाद पुलिस ने सीआरपीएफ जवान को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। आरोपी जवान को छुटटी से लौटने के बाद दुब्बाटोटा स्थित हाईस्कूल भवन में 21 दिनों के लिए क्वारंटीन किया गया था।
पीडि़ता समेत एक दर्जन से ज्यादा ग्रामीण दोरनापाल थाने पहुंचे। पीडि़ता ने दुब्बाटोटा स्थित सीआरपीएफ 150वीं वाहिनी के क्वारंटीन सेंटर में रखे जवान पर बलात्कार की रिर्पोट दर्ज कराई है। पीडि़त युवती के मुताबिक सोमवार 27 जुलाई की दोपहर को युवती और उसकी बहन रोज की तरह जानवर चराने हाईस्कूल भवन के पीछे नदी के पास गए थे। इस दौरान क्वॉरंटीन सेंटर में रह रहे जवान दुलीचंद पांचे पहुंचा और जबरन हाथ पकडऩे लगा। जवान की हरकत को देखकर छोटी बहन मौके से भाग गई। जवान पीडि़ता का मुंह दबाकर उसे पास के जंगल में ले गया और दुष्कर्म किया।
सीआरपीएफ जवान पर आदिवासी युवती के साथ बलात्कार की रिर्पोट दर्ज होने के बाद ही पुलिस हरकत में आ गई। पुलिस अधीक्षक शलभ सिन्हा ने एएसपी सुनील शर्मा को दोरनापाल रवाना किया। दोरनापाल पहुंचने के बाद एएसपी ने पीडि़ता और ग्रामीणों की शिकायत सुनी। इसके बाद सीआरपीएफ जवान की पहचान पीडि़ता से कराई गई।
पीडि़ता की पहचान के बाद जवान को गिरफ्तार कर लिया गया। गुरुवार को पीडि़ता और आरोपी जवान का मुलाहिजा कराया गया। दोपहर को पीडि़ता को सुकमा न्यायालय के समक्ष पेश कर धारा 164 के तहत बयान दर्ज कर आरोपी जवान को जेल भेज दिया गया।
युवती को प्रलोभन देने का भी प्रयास
ग्रामीणों ने बताया कि जवान ने युवती के साथ बलात्कार करने के बाद मामले को दबाने के लिए पैसों का प्रलोभन भी दिया। 27 तारीख को युवती के साथ बलात्कार की घटना के बाद जवान ने दोबारा 29 जुलाई को भी एक दूसरी युवती के साथ दुष्कर्म का प्रयास किया। युवती द्वारा मना करने पर पैसों का प्रलोभन दिया गया। युवती मौके से भागने में कामयाब हो गई। इसके बाद उसने पूरी जानकारी परिजनों को दी।
कैंप प्रभारी पर भी हो कार्रवाई
पूर्व विधायक और आदिवासी नेता मनीष कुंजाम ने मामले की निंदा करते हुए जवान के साथ कैंप प्रभारी पर भी कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि जवानों के महिलाओं के साथ दुष्कर्म और छेड़छाड़ के मामले लंबे समय से सामने आ रहे हैं। महिलाएं लोकलाज के डर से थाने तक नहीं पहुंचती हैं। बलात्कार के आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन छेड़छाड़ करने वाले अन्य जवानों पर कार्रवाई नहीं की गई है। आदिवासी महासभा उक्त दोषी जवानों की गिरफ्तारी की मांग करती है।
मनीष कुंजाम ने कहा कि यह गांव राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। इसके बावजूद सीआरपीएफ जवानों द्वारा महिलाओं और युवतियों के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म की घटनाएं होती रहती हैं। अंदरूनी इलाकों में क्या होता होगा इसे सहज ही समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि दोषी जवानों पर कार्रवाई नहीं होने की दिशा में आदिवासी महासभा उग्र प्रदर्शन करेगी।
सुकमा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुनील शर्मा ने बताया कि पीडि़ता ने सीआरपीएफ जवान के खिलाफ बलात्कार करने की रिर्पोट दर्ज कराई है। युवती की शिकायत के बाद मामले की पड़ताल की गई और आरोपी जवान को गिरफ्तार कर लिया गया है। आरोपी ने युवती के साथ बलात्कार करना कबूल कर लिया है। आईपीसी की धारा 376 के तहत मामला पंजीबद्ध कर उसे जेल भेज दिया गया है। (janchowk.com)
(बस्तर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)
विवेक त्रिपाठी
गोण्डा, 31 जुलाई (आईएएनएस)| रक्षाबंधन के त्योहार को भाई-बहनों के प्रेम और सुरक्षा की कसमें खाने के पर्व के रूप में जाना जाता है लेकिन गोंडा जिले के वजीरगंज विकासखंड के ग्राम पंचायत डुमरियाडीह के भीखमपुर जगतपुरवा में पर्व मनाना तो दूर कोई इसका जिक्र करना भी पसंद नहीं करता है। ऐसा करने पर सभी लोगों की आंखों के सामने पूर्व घटित हुई घटनाएं जैसे नाचने लगतीं हैं और उन्हें इस पर्व से दूरी बनाए रखने को आगाह करती हैं।
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के जगतपुरवा में 20 ऐसे घर हैं, जिनमें करीब 200 बच्चे, बूढ़े व नौजवान भाई रक्षासूत्र का नाम सुनकर ही सिहर उठते हैं। ग्राम पंचायत डुमरियाडीह की राजस्व गांव भीखमपुर जगतपुरवा घरों में आजादी के 8 सालों के बाद करीब पांच दशक से अधिक बीत जाने के बाद बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र नहीं बांधा है।
यहां तक कि आसपास के गांव पहुंचे, यहां के बाशिंदे रक्षाबंधन के दिन जब सिर्फ अपने गांव का नाम बताते हैं और वहां की बहनें उन्हें रखी बांधने से खुद माना कर देतीं हैं।
इधर, जगतपुरवा के नौजवानों के मन मे इस त्योहार को लेकर उल्लास तो रहता है लेकिन पूर्वजों की बनाई परंपरा को न तोडना ही ही इनका मकसद बन चुका है।
जगतपुरवा निवासी डुमरियाडीह ग्राम पंचायत की मुखिया ऊषा मिश्रा के पति सूर्यनारायण मिश्र के अलावा ग्रामीण सत्यनारायण मिश्र, सिद्घनारायन मिश्र, अयोध्या प्रसाद, दीप नारायण मिश्र, बाल गोविंद मिश्र, संतोष मिश्र, देवनारायण मिश्र, धुव्र नारायण मिश्रा और स्वामीनाथ मिश्र ने बताया कि बहनों ने जब कभी हमारे घरों में अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधे, तब-तब इस गांव में अनहोनी हुई।
बकौल सूर्यनारायण मिश्रा वर्ष ने बताया कि आजादी के आठ साल बाद करीब 5 दशक पहले (1955) में रक्षाबंधन के दिन सुबह हमारे परिवार के पूर्वज में एक नौजवान की मौत हो गई थी। तब से इस गांव में बहनें अपने भाईयों की कलाई पर रक्षासूत्र नहीं बांधतीं हैं। एक दशक पूर्व रक्षाबंधन के दिन बहनों के आग्रह पर रक्षासूत्र बंधवाने का निर्णय लिया गया था, लेकर उस दिन भी कुछ अनहोनी हुई थी। इसके बाद ऐसा करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। आज भी यही भय, बहनों को अपने भाइयों को कलाई पर रक्षासूत्र बांधने से रोकती है।
सूर्य नारायण ने बताया कि रक्षा बंधन वाले दिन अगर इस कुल में कोई बच्चा जन्म लेगा, तभी त्यौहार मनाया जाएगा। इसका इंतजार करीब तीन पीढ़ियों से चल रहा है। अभी तक यह अवसर आया नहीं है।
उन्होंने बताया कि जगतपुरवा गांव में भले ही रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है, लेकिन आसपास के गांवों की बहनें अपने भाईयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं। बावजूद इसके जगतपुरवा गांव के भाई-बहनों में जरा भी निराशा नहीं है। कहते हैं कि जो बड़ो ने बताया, उसी पर अमल करते हैं। अपने पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा को नहीं तोड़ेंगे। परंपरा को निभाते रहेंगे।
सूर्यनरायण मिश्रा ने बताया कि रक्षा सूत्र के बंधन सिर्फ सुनते हैं, लेकिन उसका आनन्द नहीं उठा पाते हैं। रक्षाबंधन के दिन अगर यह 20 घर के लोग आसपास के किसी दूसरे गांव में जाते हैं तो सिर्फ जगतपुरवा निवासी कहने पर बहनें रक्षासूत्र नहीं बांधती।
दूसरे को देखकर रक्षा सूत्र में बंधे रहने का मन हर किसी को करता है। लेकिन, गांव की परंपरा की जब याद आती है तो लोग स्वत: ही रक्षा सूत्र नहीं बंधवाते।
ग्रामीणों ने बताया कि रक्षा सूत्र के दिन इस गांव के अधिकांश लोग गांव से बाहर नहीं जाते। जगतपुरवा गांव रक्षा सूत्र के दिन सन्नाटा रहता है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 31 जुलाई। कोरोना संक्रमण से जूझ रहे एडीजी आरके विज का प्रभार एडीजी हिमांशु गुप्ता को सौंपा गया है। विज के पास योजना प्रबंध और तकनीकी सेवा का प्रभार था। इसी तरह डीआईजी आरपी साय को लेखा व कल्याण शाखा का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।
भापुसे के 88 बैच के अफसर आरके विज कोरोना से पीडि़त हैं और वे क्वारंटीन पर हैं। इस अवधि में एडीजी (प्रशासन) श्री गुप्ता अपने कार्यों के साथ-साथ विज का भी प्रभार देखेंगे।
वाशिंगटन, 31 जुलाई (आईएएनएस)| अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को स्थगित करने का सुझाव दिया है। उनका कहना है कि मतदान के लिए पोस्टल प्रक्रिया से धोखाधड़ी बढ़ सकती है और परिणाम में ऊंच-नीच हो सकती है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने चुनाव को तब तक स्थगित करने की बात कही, जब तक लोग 'ठीक से, सुरक्षित रूप से' वोट देने की हालत में नहीं आ जाते।
हालांकि ट्रंप के दावों का समर्थन करने के लिए बहुत कम सबूत हैं, लेकिन वह लंबे समय से मेल के माध्यम से वोटिंग करने के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उनका मानना है कि इसमें धोखाधड़ी होने की संभावना है और यह अतिसंवेदनशील प्रक्रिया है।
अमेरिकी राज्य कोरोनोवायरस महामारी के दौरान लोगों के स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण पोस्टल वोटिंग की प्रक्रिया अपनाना चाहते हैं, जिससे लोगों को मतदान करने में आसानी होगी।
हालांकि अमेरिकी संविधान के तहत ट्रंप के पास चुनाव स्थगित करने का अधिकार नहीं है। किसी भी तरह का स्थगन या विलंब के लिए कांग्रेस की अनुमति आवश्यक है। राष्ट्रपति के पास कांग्रेस के दो सदनों से परे प्रत्यक्ष शक्ति नहीं है।
कई ट्वीट्स में ट्रंप ने कहा, यूनिवर्सल मेल-इन वोटिंग 'नवंबर के मतदान को' इतिहास का सबसे गलत और फर्जी चुनाव और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक बड़ी शमिर्ंदगी की वजह बनेगी।
उन्होंने सुझाव देते हुए कहा, "बिना सबूत उपलब्ध कराए, अमेरिका में मेल-इन वोटिंग विदेशी हस्तक्षेप के लिए अतिसंवेदनशील होगा।"
उन्होंने कहा, "मतदान में विदेशी प्रभाव की बात की जाती हैं, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि मेल-इन वोटिंग के माध्यमस से विदेशी देश इस दौड़ में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं।"
नई दिल्ली, 31 जुलाई (आईएएनएस)| कोरोना महामारी के संकट काल में गांवों में दिहाड़ी मजदूरों के लिए मनरेगा एक बड़ा सहारा बन गया है। केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि जुलाई में मनरेगा के तहत लोगों को पिछले साल के मुकाबले 114 फीसदी ज्यादा काम मिला है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगाद्ध) के तहत गांवों में लोगों को मिल रहे काम के इस आंकड़े में मई से लगातार इजाफा हो रहा है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत संचालित रोजगार की इस स्कीम के तहत बीते महीने मई में पिछले साल के मुकाबले लोगों को 73 फीसदी ज्यादा काम मिला जबकि जून में 92 फीसदी और जुलाई में 114 फीसदी ज्यादा काम मिला है।
दरअसल, कोरोना काल में महानगरों से प्रवासी मजदूरों के पलायन के बाद गांवों में उनके लिए रोजी-रोटी का साधन मुहैया करवाने के मकसद से सरकार ने भी मनरेगा पर विशेष जोर दिया और पहले इस योजना के तहत दिहाड़ी मजदूरी की दर 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये रोजाना कर दी और बाद में इसका बजट भी 40,000 करोड़ रुपये बढ़ा दिया।
चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मनरेगा का बजटीय आवंटन 61,500 करोड़ रुपये था और कोरोना काल में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सरकार द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज में मनरेगा के लिए 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान किया गया।
मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसारए मनरेगा के तहत चालू महीने जुलाई में देशभर में औसतन 2.26 करोड़ लोगों को काम मिला जोकि पिछले साल के मुकाबले 114 फीसदी अधिक है जबकि इसी महीने में औसतन 1.05 करोड़ लोगों को रोजाना काम मिला था।
इससे पहले जून में औसतन 3.35 करोड़ लोगों को रोजाना काम मिला जोकि पिछले साल जून के 1.74 करोड़ के मुकाबले 92 फीसदी अधिक है। वहीं, इस साल मई में औसतन 2.51 करोड़ लोगों को मनरेगा के तहत रोजाना काम मिला जोकि पिछले साल जून के आंकड़े 1.45 करोड़ से 73 फीसदी अधिक है।
आंकड़ों के अनुसार, मनरेगा के तहत 1.86 लाख ग्राम पंचायतों में 30 जुलाई तक लोगों को काम मिला है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, मनरेगा के तहत 30 जुलाई तक 9.24 करोड़ लोगों को रोजगार के अवसर मिले हैं और 29 जुलाई तक इस स्कीम के तहत कुल 50,780 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है।
मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में 30 जुलाई तक 157.89 करोड़ मानव दिवस यानी पर्सन डेज सृजित हुए हैं जबकि बीते वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान 265.35 पर्सन डेज सृजित हुए थे।
मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्र में काम करने के इच्छुक लोगों को साल में 100 दिन रोजगार की गारंटी दी जाती है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (नरेगा) नाम से 2006 में कांग्रेस के शासन काल में शुरू हुई इस योजना का नाम 2009 में बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) कर दिया गया।
-शुभनीत कौशिक
वर्ष 1932 में भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर गई. पोरबंदर के महाराजा की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने इस दौरे में कुल 37 मैच खेले. इनमें से 26 प्रथम श्रेणी के मैच थे. प्रथम श्रेणी के नौ मैचों में भारतीय क्रिकेट टीम ने जीत हासिल की. उसकी इस सफलता का श्रेय दिग्गज बल्लेबाज सी.के. नायडू और दो तेज गेंदबाजों अमर सिंह और मोहम्मद निसार को दिया गया. इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने क्रिकेट के इतिहास पर लिखी गई अपनी चर्चित किताब ‘अ कॉर्नर ऑफ अ फॉरेन फ़ील्ड’ में भारतीय क्रिकेट टीम के इस इंग्लैंड दौरे के बारे में विस्तार से लिखा है. साथ ही, रामचंद्र गुहा ने सी.के. नायडू को ‘पहला महान भारतीय क्रिकेटर’ भी कहा है.
इसी संदर्भ में, उल्लेखनीय है कि प्रेमचंद ने भी 12 अक्तूबर 1932 को ‘जागरण’ में छपे एक संपादकीय में भारतीय क्रिकेट टीम के इंग्लैंड दौरे का विवरण लिखा था. प्रेमचंद ने इसमें लिखा कि भारतीय क्रिकेट टीम को भारतीय हॉकी टीम जितनी सफलता भले ही न मिली हो, लेकिन फिर भी उसकी सफलता महत्त्वपूर्ण है. भारतीय क्रिकेट टीम की सफलता पर ख़ुशी जाहिर करते हुए प्रेमचंद ने लिखा था : ‘भारतीय क्रिकेट टीम दिग्विजय करके लौट आयी. यद्यपि उसे उतनी शानदार कामयाबी हासिल नहीं हुई, फिर भी इसने इंग्लैंड को दिखा दिया कि भारत खेल के मैदान में भी नगण्य नहीं है. सच तो यह है कि अवसर मिलने पर भारत वाले दुनिया को मात दे सकते हैं, जीवन के हरेक क्षेत्र में. क्रिकेट में इंग्लैंड वालों को गर्व है. इस गर्व को अबकी बड़ा धक्का लगा होगा. हर्ष की बात है कि वाइसराय ने टीम को स्वागत का तार देकर सज्जनता का परिचय दिया.’
जैसे आज भारत में आईपीएल का क्रेज बना हुआ है, बीसवीं सदी के तीसरे दशक में मार्लेबन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) के क्रिकेट मैचों की धूम थी. उस समय एक ओर भारत की ब्रितानी हुकूमत द्वारा आर्थिक मंदी का रोना रोया जा रहा था, वहीं दूसरी ओर एमसीसी के मैचों का पूरे धूम-धाम से आयोजन हो रहा था. इस पर टिप्पणी करते हुए प्रेमचंद ने ‘जागरण’ में लिखा था कि क्रिकेट मैचों के लिए ‘रेल ने कन्सेशन दे दिए, एक्सप्रेस गाड़ियां दौड़ रही हैं, तमाशाई लोग थैलियां लिए कलकत्ता भागे जा रहे हैं. और इधर गुल मचाया जा रहा है कि मंदी है और सुस्ती है. मंदी और सुस्ती है मजदूरी घटाने के लिए, नौकरों का वेतन काटने के लिए, ऐसे मुआमिलों में हमेशा तेजी रहती है.’
प्रेमचंद ने 15 जनवरी 1934 को ‘जागरण’ में ही लिखे एक संपादकीय में इस भयावह स्थिति की तुलना फ्रेंच क्रांति के समय के फ्रांस से की. उन्होंने लिखा : ‘कहते हैं कि फ्रेंच क्रांति के पहले जनता तो भूखों मरती थी और उनके शासक और जमींदार और महाजन नाटक और नृत्य में रत रहते थे, वही दृश्य आज हम भारत में देख रहे हैं. देहातों में हाहाकार मचा हुआ है. शहरों में गुलछर्रे उड़ रहे हैं. कहीं एमसीसी की धूम है, कहीं हवाई जहाज़ों के मेले की. बड़ी बेदर्दी से रुपए उड़ रहे हैं.’
क्रिकेट खिलाड़ियों के चयन में आज भारत में चयनकर्ताओं द्वारा जो मनमानी की जाती है, ठीक वैसी ही स्थिति तब भी थी. प्रेमचंद ने ‘जागरण’ में 1 जनवरी 1934 को लिखे संपादकीय में खिलाड़ियों के चयन पर टिप्पणी करते हुए लिखा : ‘यहां जिस पर अधिकारियों की कृपा है, वह इलेविन में लिया जाता है. यहां तो पक्का खिलाड़ी वह है, जिसे अधिकारी लोग नामजद करें. भारत की ओर से वाइसराय बधाई देते हैं, भारत का प्रतिनिधित्व अधिकारियों ही के हाथ में है. फिर क्रिकेट के क्षेत्र में क्यों न निर्वाचन अधिकार उनके हाथ में रहे.’
संपत्तिशाली वर्ग, राजे-महाराजों द्वारा क्रिकेट में दिखाई जा रही रुचि का कारण भी प्रेमचंद बख़ूबी समझते थे. वे लिखते हैं : ‘सुना है वाइसराय साहब को क्रिकेट से बड़ा प्रेम है. जवानी में अच्छे क्रिकेटर थे. अब खेल तो नहीं सकते मगर आंखों से देख तो सकते हैं. और जिस चीज में हुज़ूर वाइसराय को दिलचस्पी हो उसमें हमारे राजों, महाराजों, नवाबों और धनवानों को नशा हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं.’ उसी दौरान बनारस में हुए एक क्रिकेट मैच में पांच हजार दर्शक जमा हुए थे, जिनसे टिकट के रूप में पच्चीस हजार रुपए वसूले गए थे. इस पर टिप्पणी करते हुए प्रेमचंद ने लिखा कि ‘कम-से-कम पच्चीस हजार रुपए केवल टिकटों से वसूल हुए और दिया किसने, उन्हीं बाबुओं और अमीरों ने जिनसे शायद किसी राष्ट्रीय काम के लिए कौड़ी न मिल सके.’
उल्लेखनीय है कि प्रेमचंद ने अपनी साहित्यिक कृतियों में भी क्रिकेट के बारे में लिखा है. उपन्यास ‘वरदान’ में प्रेमचंद ने अलीगढ़ और प्रयाग के छात्रों के बीच हुए क्रिकेट मैच का जीवंत वर्णन किया है. ‘वरदान’ का एक अहम किरदार प्रतापचंद्र हरफ़नमौला क्रिकेटर है. अलीगढ़ की टीम द्वारा रनों का अंबार खड़ा किए जाने के बाद प्रयाग की टीम प्रतापचंद्र की बल्लेबाजी पर पूरी तरह निर्भर हो जाती है.
प्रेमचंद ने ‘वरदान’ में उल्लिखित इस मैच में प्रतापचंद्र की बल्लेबाजी का जो रोमांचक वर्णन किया है, उसे पढ़ें : ‘तीसरा गेंद आया. एक पड़ाके की ध्वनि हुई और गेंद लू की भांति गगन भेदन करता हुआ हिट पर खड़े होने वाले खिलाड़ी से सौ गज आगे गिरा. लोगों ने तालियां बजाईं. सूखे धान में पानी पड़ा. जाने वाले ठिठक गए. निराशों को आशा बंधी. चौथा गेंद आया और पहिले गेंद से 10 गज आगे गिरा. फील्डर चौंके, हिट पर मदद पहुंचाई. पांचवां गेंद आया और कट पर गया. इतने में ओवर हुआ. बॉलर बदले, नए बॉलर पूरे वधिक थे. घातक गेंद फेंकते थे. पर उनके पहिले ही गेंद को प्रताप ने आकाश में भेजकर सूर्य से स्पर्श करा दिया. फिर तो गेंद और उसकी थापी में मैत्री-सी हो गई. गेंद आता और थापी से पार्श्व ग्रहण करके कभी पूर्व का मार्ग लेता, कभी पश्चिम का, कभी उत्तर का और कभी दक्षिण का. दौड़ते-दौड़ते फील्डरों की सांसें फूल गईं.’
इसी तरह प्रेमचंद ने क्रिकेट पर एक कहानी भी लिखी थी, जिसका शीर्षक ही है ‘क्रिकेट मैच’. यह कहानी प्रेमचंद के निधन के बाद कानपुर से छपने वाले उर्दू पत्र ‘ज़माना’ में जुलाई 1937 में छपी थी. डायरी शैली में लिखी गई यह कहानी जनवरी 1935 से शुरू होती है. इस कहानी के मुख्य पात्र हैं भारतीय क्रिकेटर जफर और इंग्लैंड से डॉक्टरी की पढ़ाई कर भारत लौटी हेलेन मुखर्जी. जफर को भारतीय टीम के मैच हारने का दुख है और वह इसका कारण भी जानता है – चयनकर्ताओं की मनमानी. जफर अपनी डायरी में दर्ज करता है ‘हमारी टीम दुश्मनों से कहीं ज़्यादा मजबूत थी मगर हमें हार हुई और वे लोग जीत का डंका बजाते हुए ट्रॉफी उड़ा ले गए. क्यों? सिर्फ़ इसलिए कि हमारे यहां नेतृत्व के लिए योग्यता शर्त नहीं. हम नेतृत्व के लिए धन-दौलत ज़रूरी समझते हैं. हिज़ हाइनेस कप्तान चुने गए, क्रिकेट बोर्ड का फैसला सबको मानना पड़ा.’
इस कहानी में प्रेमचंद ने औपनिवेशिक काल में भारतीय क्रिकेट की दशा को बिलकुल स्पष्टता से अभिव्यक्त कर दिया है. यह वह समय था, जब योग्य क्रिकेटरों की उपेक्षा होती थी और राजा-महाराजा अपनी अयोग्यता के बावजूद क्रिकेट टीम का नेतृत्व करते थे. ऐसी ही हालत में जफर की मुलाक़ात हेलेन मुखर्जी से होती है, जो योग्यता और कौशल के आधार पर हिंदुस्तानी क्रिकेटरों की एक टीम बनाना चाहती है. जफर के साथ मिलकर हेलेन लखनऊ, अलीगढ़, दिल्ली, लाहौर और अजमेर से खिलाड़ियों को चुनती है और एक क्रिकेट टीम तैयार करती है. कहानी में यह क्रिकेट टीम जफर के नेतृत्व में बंबई में आस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम से एक मैच खेलती है और उसे पराजित भी करती है.(satyagrah)
भारत में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 55,079 मामले सामने आए हैं और 779 मौतें हुई हैं। कुल पॉजिटिव मामलों की संख्या 16,38,871 हो गई है, जिसमें 5,45,318 सक्रिय मामले, 10,57,806 ठीक / डिस्चार्ज और 35,747 मौतें शामिल हैं: स्वास्थ्य मंत्रालय
इटली पीछे
कैच ब्यूरो
भारत में अब तक के सबसे ज्यादा 54,900 नए कोरोना वायरस मामले दर्ज किये गए हैं. देश में अब कुल मामलों की संख्या 1,639,350 तक पहुंच गई है. 48 घंटों में भारत में 100,000 से अधिक मामले दर्ज किये गए हैं. देश में अब मरने वालों की कुल संख्या अब 35,786 हो गई है. कोरोना वायरस मौतों के मामले में भारत ने इटली को भी पीछे छोड़ दिया है. भारत के सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में 11,147 नए दिवसीय मामलों के बाद कुल संख्या अब 4,11,798 हो गई है.
दुनियाभर में पिछले 24 घंटों में 277,972 नए मामले दर्ज किए गए हैं. दुनिया भर में कुल 17,454,129 लोगों कोरोना वायरस पॉजिटिव पाया गया है जबकि 675,764 की मौत हो चुकी है. भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में हर्ड इम्युनिटी एक रणनीतिक विकल्प नहीं हो सकता है. एक रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा ''टीकाकरण के माध्यम से ही प्रतिरक्षा हासिल की जा सकती है और तब हमें बचाव के माध्यमों का सहारा लेना चाहिए.
गुरुवार को 786 मौतें दर्ज होने के साथ भारत में मरने वालों की संख्या 35,800 तक पहुंच गई. गुरुवार को महाराष्ट्र (266 मौतें), तमिलनाडु (100), कर्नाटक (83), आंध्र प्रदेश (68) और उत्तर प्रदेश (57) मौतें दर्ज की गई.स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा ''24 घंटे में 6 लाख से ज़्यादा टेस्ट किए गए. स्वास्थ्य मंत्रालय ने महामारी से निपटने के लिए व्यापक परीक्षण, ट्रैकिंग और उपचार की रणनीति को लागू करना जारी रखा है. इसका उद्देश्य मध्यम अवधि में प्रति दिन 10 लाख टेस्ट करना है.''
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जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार अमेरिका में दुनिया की सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं, जहां 4,634,985 मामलों के साथ 155,285 मौतें हुई हैं. भारत अब दुनिया में पांचवां सबसे ज्यादा मौतों वाला देश है. भारत ने इटली को पीछे छोड़ दिया है, जहां 35,132 मौतें हैं. ब्राज़ील में 2,613,789 मामले और 91,377 मौतें हुई हैं. भारत में वर्तमान में मृत्यु दर 2.18 फीसदी है, जो दुनिया में सबसे कम है. गुरुवार को देश भर में 54,660 पुष्ट मामले दर्ज किए गए.(catch)
कोरोना से उपजे आर्थिक संकट में बदहाली
आईएएनएस
कोरोना महामारी में मौजूदा संकट के दौरान आर्थिक तंगी की वजह से 21 फीसदी परिवार अपने बच्चों को बाल मजदूरी में झोंकने को मजबूर हैं। यह बात नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट में लॉकडाउन के बाद बच्चों की तस्करी बढ़ने की भी आशंका जताई गई है।
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन (केएससीएफ) की एक स्टडी रिपोर्ट में कहा गया कि कोरोना महामारी की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान कुछ राज्यों में श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने की समीक्षा की जानी चाहिए और उन्हें तत्काल रद्द कर दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट में तर्क पेश किया गया है कि श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने से बच्चों की सुरक्षा प्रभावित होगी, जिससे बाल श्रम में वृद्धि हो सकती है।
रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि कोरोना महामारी की वजह से उपजे आर्थिक संकट की वजह से 21 फीसदी परिवार आर्थिक तंगी में आकर अपने बच्चों को बाल श्रम करवाने को मजबूर हैं। केएससीएफ की यह स्टडी रिपोर्ट भारत के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना महामारी से उपजे आर्थिक संकट और मजदूरों के पलायन आदि से बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कर तैयार की गई है।
'स्टडी ऑन इम्पैक्ट ऑफ लॉकडाउन एंड इकोनॉमिक डिस्रप्शन ऑन लो-इनकम हाउसहोल्डस विद स्पेशल रेफरेंस टू चिल्ड्रेन' के नाम से केएससीएफ की यह स्टडी रिपोर्ट र्दुव्यापार (ट्रैफिकिंग) प्रभावित राज्यों के 50 से अधिक स्वयंसेवी संस्थाओं और 250 परिवारों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई है।
रिपोर्ट में 89 फीसदी से अधिक स्वयंसेवी संस्थाओं ने सर्वे में यह आशंका जाहिर की है कि लॉकडाउन के बाद श्रम के उद्देश्य से वयस्कों और बच्चों, दोनों के र्दुव्यापार की अधिक संभावना है। जबकि 76 प्रतिशत से अधिक स्वयंसेवी संस्थाओं ने लॉकडाउन के बाद वेश्यावृत्ति आदि की आशंका से मानव तस्करी बढ़ने की आशंका जाहिर की है और यौन शोषण की आशंका से बाल तस्करी बढ़ने की आशंका जताई गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष रूप से झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे र्दुव्यापार यानी तस्करी के स्रोत क्षेत्रों में दलालों के खतरों और उनके तौर-तरीकों से लोगों को जागरुक करने के लिए सघन अभियान चलाने की जरूरत है।
गौरतलब है कि केएससीएफ द्वारा बच्चों को शोषण मुक्त बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानव र्दुव्यापार विरोधी दिवस 30 जुलाई को राष्ट्रीय स्तर पर 'जस्टिस फॉर एवरी चाइल्ड'अभियान की शुरुआत की जा रही है। इस दिन '100 मिलियन फॉर 100 मिलियन' नामक कैम्पेन के माध्यम से तस्करी के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने और भारत में सभी बच्चों को 12वीं तक मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की मांग की जाएगी।(navjivan)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आगे देखने का समय
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां अब्दुल कयूम की नजरबंदी मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने उनकी सशर्त रिहाई पर सहमति जताई है। वरिष्ठ अधिवक्ता अब्दुल कयूम की रिहाई के लिए शर्त रखी गई है कि वह छूटने के बाद धारा 370 पर कोई विवादास्पद बयान नहीं देंगे, दिल्ली में ही रहेंगे और सात अगस्त तक कश्मीर नहीं जाएंगे।
मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने इस दौरान कहा कि सरकार को जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह से सामान्य स्थिति लाने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए। अपने आदेश में पीठ ने कहा कि यह भविष्य के लिए रास्ता बनाने का समय है। यह भविष्य की ओर देखने का समय है। अतीत में न रहें, आगे देखें। न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि इस क्षेत्र में पर्यटन की बहुत बड़ी संभावना है, जो अप्रयुक्त है।
इसस पहले केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह कयूम की नजरबंदी को आगे नहीं बढ़ाने के लिए सहमत हैं। मेहता ने पीठ के समक्ष कहा कि उन्हें तुरंत रिहा कर दिया जाएगा। मेहता ने शीर्ष अदालत के सुझावों को स्वीकार कर लिया कि कयूम दिल्ली में ही रहेंगे और सात अगस्त तक कश्मीर नहीं जाएंगे। साथ ही वह धारा 370 पर कोई बयान भी नहीं देंगे।
बता दें कि पिछले साल पांच अगस्त को धारा 370 को निरस्त कर दिया गया था। उसके फौरन बाद अगस्त 2019 में ही कयूम को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में ले लिया गया था। तब से वह नजरबंदी में हैं। पिछले दिनों हाईकोर्ट ने उनकी कथित अलगाववादी विचारधारा का हवाला देते हुए उनकी नजरबंदी को बरकरार रखा था।
अब्दुल कयूम का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने गुरुवार को उनकी रिहाई के लिए शीर्ष अदालत से आग्रह किया था, ताकि वह अपने परिवार के पास जा सकें। दवे की दलील थी कि वह 70 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और हृदय की बीमारियों से पीड़ित हैं। दवे ने सरकार के इस शर्त को भी स्वीकार कर लिया कि उनके मुवक्किल रिहाई के बाद धारा 370 पर कोई विवादास्पद बयान नहीं देंगे।
दोनों पक्षों में सहमति के बाद कयूम की रिहाई का रास्ता साफ हो गया और पीठ ने इसके बाद मेहता और दवे दोनों के प्रयासों की सराहना की, जो बिना किसी प्रतिकूल स्थिति के इस मामले को हल करने में सक्षम रहे।(navjivan)
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
-प्रशांत चाहल
बीबीसी संवाददाता
प्राइवेट सेक्टर के यस बैंक ने दो हज़ार 892 करोड़ रुपये का बकाया कर्ज़ नहीं चुकाने पर अनिल अंबानी समूह के मुख्यालय को अपने कब्ज़े में ले लिया है.
साथ ही बैंक ने अख़बार में नोटिस जारी कर यह बताया कि अनिल अंबानी की कंपनी 'रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर' के कर्ज़ का भुगतान नहीं करने के कारण दक्षिण मुंबई स्थित उनके दो फ्लैट भी कब्ज़े में लिए गए हैं.
अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) की लगभग सभी कंपनियाँ मुंबई के सांताक्रूज़ कार्यालय 'रिलायंस सेंटर' से चलती हैं. हालांकि, पिछले कुछ साल के दौरान समूह की कंपनियों की वित्तीय स्थिति काफ़ी ख़राब हो गई है. कुछ कंपनियाँ दिवालिया हो गई हैं, जबकि कुछ को अपनी हिस्सेदारी बेचनी पड़ी है.
यस बैंक के अनुसार अनिल अंबानी को 6 मई 2020 को नोटिस दिया गया था, लेकिन 60 दिन के नोटिस के बावजूद समूह बकाया नहीं चुका पाया जिसके बाद 22 जुलाई को उसने तीनों संपत्तियों को कब्ज़े में ले लिया.
बैंक ने आम जनता को भी आगाह किया है कि वो इन संपत्तियों को लेकर किसी तरह का लेनदेन ना करे.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, अनिल अंबानी की कंपनी 21,432 वर्ग मीटर में बने अपने इस मुख्यालय को पिछले साल पट्टे पर देना चाहती थी ताकि वो कर्ज़ चुकाने के लिए संसाधन जुटा सके.
सोशल मीडिया पर बहुत से लोग इस ख़बर को भारत के रफ़ाल सौदे और इसमें अनिल अंबानी की कंपनी की भूमिका से जोड़कर देख रहे हैं.
पारिवारिक बँटवारे के बाद अनिल अंबानी का कोई भी धंधा पनप नहीं पाया, उनके ऊपर भारी कर्ज़ है, अब वे कुछ नया शुरू करने की हालत में नहीं हैं, वे अपने ज़्यादातर कारोबार या तो बेच रहे हैं या फिर समेट रहे हैं, रफ़ाल के रूप में उन्हें जो नया ठेका मिला, वो भी कई वजहों से विवादों में घिरा रहा और अब यस बैंक के रूप में ये नई समस्या आई.
ग़ौरतलब है कि रफ़ाल को बनाने वाली फ़्रांसीसी कंपनी डसॉ एविएशन ने अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को अपना ऑफ़सेट पार्टनर बनाया है जिसे लेकर सवाल उठते रहे हैं. विपक्ष सवाल उठाता रहा है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की जगह पर अंबानी की दिवालिया कंपनी के साथ 30,000 करोड़ रुपए का क़रार क्यों किया गया.
ऐसे में इस 'डिफ़ेंस डील से जुड़े वायदे' निभा पाना अनिल अंबानी के लिए कितना आसान होगा?
इस पर आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी कहते हैं कि 'ये सवाल पहले भी उठा है जो अब और गंभीर होता जा रहा है.'
उन्होंने कहा, "लंदन की एक अदालत में अनिल अंबानी का ये कहना कि उनके पास देने को अब कुछ नहीं है, अपने आप में यह सवाल उठाने के लिए पर्याप्त है कि अनिल को भारत के इस महत्वपूर्ण रक्षा सौदे में साझेदार क्यों होना चाहिए? वैसे भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, दिवालिया हो चुके लोगों के कई तरह की गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाई जाती है."
डिफ़ेंस क्षेत्र में लगभग ना के बराबर अनुभव वाली अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफ़ेंस के इस रक्षा सौदे में शामिल होने पर भी काफ़ी हंगामा हुआ था. विपक्ष की ओर से यह भी कहा गया कि 'ये भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला सौदा है.'
आलोक जोशी कहते हैं, "पहले बात सिर्फ़ अंबानी की कंपनी के तजुर्बे तक थी, जिस पर भारत सरकार ने कहा कि फ़्रांसीसी डिफ़ेंस कंपनी 'डसॉ एविएशन' ने सिर्फ़ अंबानी को नहीं चुना, बल्कि उसने भारत की कई और कंपनियों को भी पार्टनर बनाया है. जबकि अंबानी की कंपनी यह दावा करती है कि 'वो इस सौदे में असली निर्णायक साझेदार है.' इस पूरे बिज़नेस में भारत सरकार की क्या भूमिका है, इस पर टीम-मोदी कुछ नहीं बोलती. सवाल पूछे जाने पर इसे 'एक पवित्र मुद्दा' बताया जाता है और कहा जाता है कि 'देश की रक्षा से जुड़े मामले पर कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया जायेगा.' फिर सवाल उठता है कि 'अगर ये वाक़ई इतना महत्वपूर्ण मुद्दा है' तो क्यों ऐसी डूबती हुए कंपनी को साथ लिया जा रहा है."
भारत के लिए रफ़ाल क्यों है इतना ज़रूरी?
आलोक जोशी इस बात पर हैरानी व्यक्त करते हैं कि जब पीएम मोदी सफ़र करते हैं तो कुछ व्यापारी उनके साथ जाते हैं, वो वहाँ होने वाले इवेंट्स में दिखते हैं, उनमें जिंदल, अडानी और अंबानी भी होते हैं, फिर सरकार यह भी कहती है कि ऐसे सौदों में उनका कोई मत नहीं रहा.
पिछले दो वर्षों में विपक्ष ने इस बात को भी ख़ूब उठाया कि 'डिफ़ेंस के मामले में अंबानी की 'अनाड़ी कंपनी' को एचएएल से ज़्यादा तरजीह क्यों दी गई?'
आलोक जोशी बताते हैं, "अंबानी की जिस बिल्डिंग को यस बैंक ने कब्ज़े में लिया है, वो जगह असल में बिजली सप्लायर बीएसईएस की थी. अंबानी ने इस जगह को उनसे ख़रीदा था. मुंबई में बेस्ट और टाटा के अलावा रिलायंस पावर बिजली सप्लाई करते थे जिसे अब अडानी ख़रीद चुके हैं. ये उद्योगपति वही हैं जो सरकार के साथ दिखाई पड़ते हैं. इन्हीं के बीच सौदे होते रहते हैं. तो ये कह पाना कि अंदर-खाने क्या हो रहा है, थोड़ा मुश्किल है. पर रफ़ाल के मामले में कल को सरकार के सामने दोबारा सवाल उठते हैं तो वो कह सकती है कि अंबानी मुसीबत में हैं तो डसॉ एविएशन इसकी चिंता करे या अंबानी वो सौदा किसी अन्य को बेच दें."
कभी अनिल अंबानी की मुकेश से ज़्यादा शोहरत थी
मुकेश और अनिल अंबानी में बँटवारे के दो साल बाद तक, यानी वर्ष 2007 की फ़ोर्ब्स लिस्ट में भी दोनों भाई 'मालदारों की लिस्ट' में काफ़ी ऊपर थे.
बड़े भाई मुकेश, अनिल अंबानी से थोड़े ज़्यादा अमीर थे. उस साल की सूची के मुताबिक़ अनिल अंबानी 45 अरब डॉलर के मालिक थे, और मुकेश 49 अरब डॉलर के.
साल 2008 में कई लोगों का मानना था कि 'छोटा भाई अपने बड़े भाई से आगे निकल जाएगा', ख़ासतौर पर रिलायंस पावर के पब्लिक इश्यू के आने से पहले.
माना जा रहा था कि 'उनकी महत्वाकांक्षी परियोजना के एक शेयर की क़ीमत एक हज़ार रुपये तक पहुँच सकती है.' अगर ऐसा हुआ होता तो अनिल वाक़ई मुकेश से आगे निकल जाते.
एक दशक पहले अनिल अंबानी सबसे अमीर भारतीय बनने के कगार पर थे. उनके तब के कारोबार और नए वेंचरों (उद्यमों) के बारे में कहा जा रहा था कि 'वे सारे धंधे आगे बढ़ा रहे हैं और अनिल उनका पूरा फ़ायदा उठाने के लिए तैयार हैं.'
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ मानते रहे कि 'अनिल के पास दूरदर्शिता और जोश है, वे 21वीं सदी के उद्यमी हैं और उनके नेतृत्व में भारत से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी उभरेगी.' ज़्यादातर लोगों को ऐसा लगता था कि अनिल अपने आलोचकों और बड़े भाई को ग़लत साबित करने जा रहे हैं. मगर ऐसा नहीं हो सका.
जब धीरूभाई जीवित थे तो अनिल अंबानी को वित्त बाज़ार का स्मार्ट खिलाड़ी माना जाता था, उन्हें मार्केट वैल्यूएशन की आर्ट और साइंस दोनों का माहिर माना जाता था. उस दौर में बड़े भाई के मुकाबले उनकी शोहरत ज़्यादा थी.
क़र्ज़ का बढ़ता बोझ
साल 2002 में अनिल अंबानी के पिता, धीरू भाई अंबानी का निधन हुआ. उनके वक़्त में कंपनी के तेज़ गति से बढ़ने के चार अहम कारण थे- बड़ी परियोजनाओं का सफल प्रबंधन, सरकारों के साथ अच्छा तालमेल, मीडिया का प्रबंधन और निवेशकों की उम्मीदों को पूरा करना.
इन चार चीज़ों पर पूरा नियंत्रण करके कंपनी धीरू भाई के ज़माने में और उसके कुछ समय बाद भी तेज़ी से आगे बढ़ती रही. मुकेश अंबानी ने इन चारों बातों को ध्यान में रखा, लेकिन किसी ना किसी वजह से अनिल फिसलते चले गए.
1980 और 1990 के बीच धीरू भाई रिलायंस ग्रुप के लिए बाज़ार से लगातार पैसा उठाते रहे, उनके शेयर की कीमतें हमेशा अच्छी रही और निवेशकों का भरोसा लगातार बना रहा.
मुकेश अंबानी ने मुनाफ़े से पिछले दशक में धुंधाधार तरीक़े से विस्तार किया. दूसरी ओर, साल 2010 में गैस वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला अनिल अंबानी के पक्ष में ना आने और रिलायंस पावर के शेयर्स के भाव गिरने से अनिल की राह मुश्किल होती गई.
ऐसी हालत में अनिल अंबानी के पास देसी और विदेशी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से कर्ज़ लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह गया.
बीते एक दशक में जहाँ बड़ा भाई कारोबार में आगे बढ़ता गया, छोटे भाई की कंपनियों पर कर्ज़ चढ़ता गया. फ़ोर्ब्स के अनुसार बीते क़रीब दस वर्षों से मुकेश अंबानी भारत के सबसे अमीर आदमी हैं.
'अनिल अंबानी का डूबना कोई मामूली दुर्घटना नहीं'
आज हालत ये है कि उनकी कुछ कंपनियों ने दिवालिया घोषित किये जाने की अर्ज़ी लगा रखी है.
कभी 'दुनिया के छठे सबसे अमीर आदमी' रहे 61 वर्षीय अनिल अंबानी ने इसी साल फ़रवरी में कहा कि 'उनका नेट वर्थ शून्य हो गया है.'
आर्थिक मामलों के विश्लेषक मानते हैं कि कुछ समय पहले तक शक्तिशाली और राजनीतिक दलों से संबंध रखने वाले कॉर्पोरेट घराने भारी कर्ज़ होने पर भी भुगतान के लिए थोड़े मोहलत ले लेते थे, लेकिन एनपीए अब एक राजनीतिक मामला बन चुका है. बैंकों की हालत वाक़ई बुरी है. साथ ही कानूनों में भी बदलाव आया है.
अब देनदार नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के ज़रिए कंपनियों को इन्सॉल्वेंट घोषित कराके लेनदार को रकम चुकता करने के लिए अदालत में घसीट सकते हैं. यही वजह है कि अनिल अंबानी के पास अपनी कंपनियों को बेचने या दिवालिया घोषित करने के सिवा कोई और विकल्प नहीं रह गया है.
रिलायंस घराने पर मशहूर क़िताब 'अंबानी वर्सेज़ अंबानी: स्टॉर्म्स इन द सी विंड' लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार आलम श्रीनिवास कहते हैं, "एक दौर था जब दोनों भाइयों में ये साबित करने की होड़ थी कि धीरूभाई के सच्चे वारिस वही हैं. पर अब ये होड़ ख़त्म हो गई है और अनिल अपने बड़े भाई मुकेश से बहुत पीछे रह गए हैं. अनिल अंबानी अगर चमत्कारिक ढंग से नहीं उबरे तो दुर्भाग्यवश उन्हें भारत के कारोबारी इतिहास के सबसे नाकाम लोगों में गिना जाएगा क्योंकि सिर्फ़ एक दशक में 45 अरब डॉलर की दौलत का डूब जाना कोई मामूली दुर्घटना नहीं है."
वे कहते हैं, "बँटवारे की लड़ाई में दोनों भाइयों ने एक-दूसरे पर हर तरह के हमले किए, सरकार और मीडिया में कुछ समय तक दो खेमे हो गए, लेकिन धीरे-धीरे मुकेश अंबानी ने मीडिया शासन तंत्र से जुड़े लोगों को अपने पक्ष में कर लिया. इस लड़ाई में अनिल अंबानी ने कुछ नए दोस्त बनाए और कुछ दुश्मन भी. कुल मिलाकर, ज़्यादातर प्रभावशाली नेताओं, अफ़सरों और संपादकों ने अनिल के मुक़ाबले ज़्यादा सौम्य और शांत मुकेश का साथ देने का फ़ैसला किया और 'एक्सटर्नल एलीमेंट' यानी अपने नियंत्रण से बाहर की चीज़ों को प्रभावित करने का जो काम बँटवारे से पहले अनिल किया करते थे, वे उसमें कुछ ख़ास कामयाब साबित नहीं हुए."(bbc)
अमेरिकी रोग नियंत्रण केंद्र अध्यक्ष पहली बार स्वीकार किया
बीजिंग, 30 जुलाई (आईएएनएस)| अमेरिकी रोग नियंत्रण केंद्र के अध्यक्ष रॉबर्ट रेडफील्ड ने एबीसी के साथ इंटरव्यू में पहली बार यह स्वीकार किया कि ट्रम्प सरकार यूरोप से नए कोरोना वायरस के खतरे को पहचानने में धीमी रही है, जिससे अमेरिका में व्यापक प्रकोप फैला। उन्होंने कहा कि अमेरिका की समस्या का एहसास होने से पहले ही यूरोप में नया कोरोनोवायरस अमेरिका में फैल गया था। यह स्थिति अमेरिका में कोविड-19 महामारी फैलने का मुख्य कारक है।
अमेरिकी रोग नियंत्रण केंद्र द्वारा हाल ही में जारी एक विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने इस साल 13 मार्च को यूरोपीय देशों में यात्रा प्रतिबंधों को लागू करना शुरू कर दिया था, लेकिन 8 मार्च तक न्यूयॉर्क राज्य में कई समुदायों में नया कोरोना वायरस फैल गया था। 15 मार्च तक, वाशिंगटन राज्य सहित अमेरिका भर में कई समुदायों में नया कोरोना वायरस फैलना शुरू हो गया था।
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अप्रैल की शुरूआत में, सीएनएन ने कहा था कि दो स्वतंत्र अनुसंधान रिपोर्टों के अनुसार, न्यूयॉर्क में पहली बार फैलने वाला नया कोरोना वायरस यूरोप या अमेरिका के अन्य हिस्सों से आया हो, एशिया से नहीं। लेकिन इस स्थिति में, ट्रम्प सरकार यूरोपीय देशों के यात्रियों पर यात्रा प्रतिबंध लगाने के लिए प्रारंभिक उपाय करने में विफल रहा।
इटंरव्यू में रॉबर्ट रेडफील्ड ने यह भी स्वीकार किया कि संघीय सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा महामारी का मुकाबला किये जाने के दौरान कई समस्याएं हुईं और उन्होंने कई गलतियां की हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति में संक्रमण से बचाव के लिए मास्क पहनना सबसे अच्छा तरीका है।