मनोरंजन
यशिका माथुर
नई दिल्ली, 27 जून| ओटीटी पर कहानीकारों ने एंथोलॉजी फिल्मों और शो के साथ कमाल की लोकप्रियता हासिल की है। हालांकि यह शैली पूरी तरह से नई नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि इसे एक से ज्यादा कारणों से पसंद किया जा रहा है।
एक, यह ओटीटी शो और फिल्मों के निर्माताओं को अभिनेताओं के संदर्भ में अधिक परोसने देता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि दर्शकों को कहानी कहने के लिए एक से ज्यादा तरीके मिलते है, जो कि विभिन्न निर्देशकों द्वारा निर्देशित की जाने वाली कहानियों की भीड़ के लिए अच्छा है, इसलिए विभिन्न शैलियों में पेश किया जाता है।
पिछले कुछ सालों में, हमारे पास हिंदी में 'लूडो', 'अनपॉज्ड', 'अजीब दास्तान' और 'रे' जैसे संकलन हैं। इस तथ्य के लिए धन्यवाद कि ओटीटी देश और दुनिया भर में सभी दर्शकों को अप्रतिबंधित ²श्य प्रदान करता है, क्षेत्रीय संकलन फिल्में जैसे 'पुथम पुडु कलई' और 'पावा कढईगल' (दोनों तमिल) ने भी गृह राज्य से परे ध्यान आकर्षित करने में कामयाबी हासिल की है।
व्यापार विश्लेषक अतुल मोहन ने आईएएनएस को बताया "हर कोई एक सामान्य रूटीन फिल्म बनाता है लेकिन एंथोलॉजी कठिन और चुनौतीपूर्ण है। दर्शकों का टेस्ट विकसित हुआ है और वे अंतरराष्ट्रीय शो के लिए सामने आए हैं। पहले इसे 'दस कहानियां' के साथ आजमाया गया था, लेकिन दर्शकों को तब अवधारणा समझ में नहीं आई थी। अब सिनेमा बनाने और सिनेमा की खपत बदल गई है। हर पीढ़ी की अपनी दिलचस्पी है। पहले सामाजिक, एक्शन और रोमांटिक फिल्में काम करती थीं। यह एक नया प्रारूप है जिसे दर्शक पसंद कर रहे हैं।"
एक फिल्म निर्माता के ²ष्टिकोण से, जहां कोई यह महसूस कर सकता है कि कई रचनात्मक कहानीकारों को लाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, वहीं श्रीजीत मुखर्जी का अपना विचार है। मुखर्जी ने 'रे' में चार में से दो कहानियों का निर्देशन किया है, कहते हैं कि क्या एक फिल्म निर्माता का व्यक्तिगत उपचार प्रभावित होता है, यह जानते हुए कि उनकी फिल्म के साथ दो और कहानियां हैं, जिन्हें दो अन्य द्वारा निर्देशित किया गया है।
उनके मुताबिक, "यह (प्रभावित) होता अगर मुझे पता होता कि दूसरे उनकी फिल्मों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं। सौभाग्य से, यहां, 'रे' के शो रनर सायंतन मुखर्जी ने किसी को यह नहीं बताया कि दूसरा निर्देशक क्या बना रहा है । मुखर्जी के पास इस बात की पूरी तस्वीर थी कि चार फिल्में कैसे आकार ले रही हैं। ऐसा कोई तरीका नहीं था जिससे एक आदमी की फिल्म दूसरे की फिल्म को प्रभावित कर सके।"
अभिनेता चंदन रॉय सान्याल, जो एंथोलॉजी 'रे' में वासन बाला के सेगमेंट 'स्पॉटलाइट' में प्रभावशाली थे, बताते हैं कि एक अभिनेता के रूप में एंथोलॉजी का प्रारूप उन्हें क्यों आकर्षित करता है।
चंदन कहते हैं "एक एंथोलॉजी में जो चीज मुझे आकर्षित करती है, वह यह है कि आप एक विषय पर चार अलग-अलग कहानियां बता सकते हैं और हर अभिनेता और निर्देशक की एक अलग व्याख्या होती है। आप प्यार, वासना या हॉरर पर एक ही चीज देख रहे हैं और इस पर हर किसी की अपनी राय है। यह देखकर अच्छा लगता है कि हर किसी का अपना संस्करण होता है। आत्मा एक ही है लेकिन कहानी और उपचार अलग हैं।"
इस तैयार स्वीकृति के साथ हाल के संकलनों ने देखा है, निश्चित रूप से अगले महीनों में बहुत से लोग लाइन में होंगे। छह निर्देशकों द्वारा अभिनीत एक नई फिल्म 'फील्स लाइक इश्क' की घोषणा कुछ दिन पहले की गई थी। फिल्म में राधिका मदान, अमोल पाराशर, नीरज माधव, तान्या मानिकतला, काजोल चुग, मिहिर आहूजा, सिमरन जहानी, रोहित सराफ, सबा आजाद, संजीता भट्टाचार्य, जैन खान और स्कंद ठाकुर मुख्य भूमिका में होंगे। (आईएएनएस)
मुंबई, 26 जून| गायिका असीस कौर ने ए.आर. रहमान के साथ नए ट्रैक 'मेरी पुकार सुनो' के लिए काम करने को याद करते हुए कहा कि हालांकि ऑस्कर विजेता संगीतकार के साथ काम करना हमेशा एक सपना सच होने जैसा है, लेकिन महामारी के कारण पूरी टीम को अपने-अपने घरों में बैठकर गाने का निर्माण करना पड़ा। रहमान द्वारा रचित और गुलजार के गीतों के साथ 'मेरी पुकार सुनो' में असीस के साथ अरमान मलिक, अलका याज्ञनिक, श्रेया घोषाल, के. एस. चित्रा, साधना सरगम और शशा तिरुपति जैसे शीर्ष गायकों ने अपनी आवाज दी है।
कौर ने कहा, "आम तौर पर वह गाने को रिकॉर्ड करने के लिए सभी को चेन्नई बुलाते हैं, लेकिन महामारी की स्थिति को देखते हुए, हमने गाना रिकॉर्ड किया और अपने-अपने घरों और स्टूडियो में इसकी शूटिंग की। मुझे उनसे निर्देश मिला था कि वह किस तरह चाहते हैं कि मेरा हिस्सा गाने में किस प्रकार से साउंड करे। जब आप मेरी पुकार सुनो को सुनते हैं तो आप यह नहीं कह पाएंगे कि हम सभी ने देश के अलग-अलग हिस्सों में बैठकर ट्रैक रिकॉर्ड किया है! यह एआर रहमान की प्रतिभा है।"
गायिका ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, "ए.आर. रहमान ने पहली बार रियलिटी शो इंडियन प्रो म्यूजिक लीग में मेरी आवाज सुनी थी, जहां वह एक अतिथि के रूप में दिखाई दिए थे। उन्होंने मेरी आवाज की प्रशंसा की थी। कुछ हफ्ते बाद, मुझे उनके स्टूडियो से फोन आया कि क्या मैं गाने का हिस्सा बनना चाहूंगी। इसके लिए मैंने तुरंत हां कही थी! ए. आर. रहमान के साथ काम करने के अवसर को भला कौन मना करेगा?"
असीस को उनके गाने वे माही और बोल ना के लिए जाना जाता है। उनका नया ट्रैक शुक्रवार को रिलीज हुआ। (आईएएनएस)
मुंबई, 23 जून | तेलुगू फिल्मों में अपने काम के लिए पहचानी जाने वाली अभिनेत्री सीरत कपूर भी एक प्रशिक्षित शास्त्रीय गायिका हैं। उन्हें उम्मीद है कि किसी दिन उन्हें संगीत उस्ताद एआर रहमान के साथ काम करने का मौका मिलेगा। सीरत ने आईएएनएस से कहा "जब मैं एक सहायक कोरियोग्राफर के रूप में 'रॉकस्टार' के प्रचार के लिए रणबीर कपूर और नरगिस फाखरी को तैयार कर रही थी, तो मुझे एआर रहमान को लाइव देखने का सौभाग्य मिला। यह सबसे असली अनुभव था, मैंने पलक नहीं झपकाई! मुझे याद है, अंत तक, उनके प्रदर्शन से मेरी आंखें नम हो गईं। एआर रहमान, उनके संगीत के माध्यम से आपकी आत्मा को छू सकते हैं। पहली पंक्ति में उन्होंने गाया, मैं उनकी दुनिया में लीन हो गई। मुझे उम्मीद है कि किसी दिन मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिलेगा।"
तेलुगू फिल्म 'कृष्णा एंड हिज लीला' में अभिनय करने के बाद लोकप्रिय हुई अभिनेत्री का कहना है कि नृत्य और गायन सीखने से उन्हें प्रदर्शन कला के क्षेत्र को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिली।
वह कहती हैं "मैं 12 साल की उम्र से भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित हूं। उस समय, मेरा ध्यान नृत्य और संगीत दोनों पर था। नृत्य और संगीत के साथ-साथ प्रदर्शन कला के क्षेत्र में खुद को शिक्षित करने से मुझे एक गहरी अंतर्²ष्टि विकसित करने में मदद मिली।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 जून| किम कार्दशियन अपने बोल्ड अंदाज के लिए जानी जाती हैं। वह जब भी सोशल मीडिया पर कोई तस्वीर पोस्ट करती हैं तो लाखों फैंस उनके दीवाने हो जाते हैं। रियलिटी टीवी स्टार और उद्यमी का हालिया इंस्टाग्राम पोस्ट काफी अट्रैेक्टिव है। किम ने टेनिस खेलते हुए बिकिनी पहने अपनी कुछ तस्वीरें साझा कीं।
फोटो में किम बिकनी लुक के साथ काफी बोल्ड अवतार में नजर आ रही है।
किम फोटो के साथ कैप्शन दिया, "टेनिस एनीवन ?"
इस बीच, हाल ही में एक साक्षात्कार में किम ने कहा था कि जब उनके बच्चे थोड़े बड़े हो जाएंगे तो वह सेक्सी सेल्फी लेना बंद कर देंगी। किम ने कहा, "मैं अपने बच्चों को शमिंर्दा नहीं करना चाहती या उन्हें ऐसा महसूस नहीं कराना चाहती कि मैं शेमलैस मां हूं। सेल्फी लेने की सीमाएं होंगी।" (आईएएनएस)
"क्या लेखिका भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के बारे में नहीं जानती थी? क्या हीरो पाकिस्तानी लड़का नहीं हो सकता था?"
ऐसे और बहुत से सवाल हैं जो पाकिस्तान के सोशल मीडिया यूज़र्स भारतीय वेब स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर पाकिस्तान की मशहूर नाटककार उमैरा अहमद की लिखी गई वेब सिरीज़ 'धूप की दीवार' का ट्रेलर रिलीज़ होने के बाद से पूछ रहे हैं.
कुछ लोगों ने तो लेखिका पर देशद्रोह और राष्ट्र-विरोधी होने का भी आरोप लगा दिया है. क्योंकि यह नाटक पाकिस्तान में नहीं बल्कि भारत के वेब स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म 'ज़ी फाइव' पर प्रसारित किया जाना है.
सोशल मीडिया पर इसे लेकर इतनी सख़्त प्रतिक्रिया थी कि नाटक की लेखिका को इस बारे में एक लंबा-चौड़ा स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा, जिसमें उन्होंने उन सभी सवालों के जवाब दिए जो लोगों ने नाटक के बारे में उठाए थे.
नाटक की कहानी क्या है?
बड़ी संख्या में सोशल मीडिया यूज़र्स ने नाटक की कहानी पर भी आपत्ति जताई.
जारी किए गए टीज़र में दिखाया गया है कि एक भारतीय हिंदू लड़के की एक पाकिस्तानी मुस्लिम लड़की के साथ नफ़रत और लड़ाई कैसे प्यार भरे रिश्ते में बदल जाती है.
दोनों के पिता भारत और पाकिस्तान की सेना में शामिल हैं और दोनों भारत-पाकिस्तान सीमा पर जारी तनाव के दौरान मारे जाते हैं.
शुरुआत में दोनों अपने-अपने पिता की बहादुरी की कहानियां सुनाते हैं और एक दूसरे के ख़िलाफ़ मीडिया और सोशल मीडिया पर बयान देकर लोगों से प्रशंसा बटोरते दिखाई देते हैं. लेकिन धीरे-धीरे उनकी लड़ाई दोस्ती में बदल जाती है और उन्हें लगने लगता है कि देशों के बीच का तनाव लोगों की आपसी लड़ाई बिलकुल नहीं है.
दोनों जिस दर्द से गुज़रते हैं उसे 'यूनाइटेड ग्रीफ़' कहा गया है. हालांकि, उन्हें अपने परिवार से कड़े विरोध का सामना करना पड़ता है.
टीज़र के अंत में, नाटक में मुख्य भूमिका निभा रहे अहद रज़ा मीर, पाकिस्तानी लड़की सारा की भूमिका निभा रही अभिनेत्री सज्जल अली के लिए अंग्रेज़ी में गाना गा रहे हैं, जिसका अर्थ है 'सारा ग़ुस्सा मत करो, नहीं तो पूरा भारत और पाकिस्तान उदास हो जाएगा.'
चूंकि यह एक ड्रामा है, इसलिए टीज़र से पूरी कहानी का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है. इसलिए हमें नाटक के रिलीज़ होने तक इंतजार करना होगा.
देशद्रोह का आरोप और लेखिका का बयान
उमैरा अहमद आज के दौर में पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय उपन्यासकारों और लेखकों में से एक हैं. उनके लिखे गए कई नाटक हिट हो चुके हैं.
भारतीय वेब स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के लिए वेब सिरीज़ लिखने पर 'देशद्रोही' और 'देश की दुश्मन' कहे जाने पर अपने स्पष्टीकरण में लेखिका उमैरा अहमद ने कहा कि उन्होंने जनवरी 2019 में 'धूप की दीवार' नामक वेब सिरीज़ पर काम करना शुरू किया था.
उनके मुताबिक़, इसकी पूरी कहानी पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग आईएसपीआर को भेजी गई थी ताकि अगर कोई आपत्तिजनक सामग्री हो तो उसे हटाया जा सके.
लेखिका का दावा है कि "इस विषय को आईएसपीआर ने ओके कर दिया था" और साथ ही उन्हें रावलपिंडी बुलाकर उनसे एक मीटिंग भी की गई थी और कहा गया था कि "भारत-पाकिस्तान संबंधों पर सेना का भी यही रुख़ है."
कहानी के अप्रूवल से संबंधित जानकारी के लिए बीबीसी ने आईएसपीआर से संपर्क किया जिस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई.
"नाटक किसी भारतीय चैनल के लिए नहीं लिखा गया था"
इस ड्रामे को लेकर सोशल मीडिया यूज़र्स को एक और आपत्ति है कि लेखिका ने पाकिस्तानी चैनलों के होते हुए भारत के लिए ड्रामा क्यों लिखा है.
इसका जवाब देते हुए उमैरा अहमद ने साफ़तौर पर कहा है कि ''ये नाटक किसी भारतीय चैनल के लिए नहीं लिखा गया था.''
उन्होंने बताया कि उन्होंने 'धूप की दीवार' समेत तीन नाटक ग्रुप एम नाम की प्रोडक्शन कंपनी के साथ 2018 में साइन किये थे, जो एक पाकिस्तानी कंटेंट कंपनी है.
उमैरा अहमद ने कहा कि ग्रुप एम ने इनमें से दो प्रोजेक्ट 'अलिफ़' और 'लाल' पाकिस्तान के एक निजी चैनल को बेचे और दो प्रोजेक्ट्स अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर बेचने की कोशिश की, जिसमें ज़ी फाइव, नेटफ्लिक्स और कुछ अन्य प्लेटफॉर्म शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि उनके कई नाटक जल्द ही पाकिस्तानी चैनलों पर भी रिलीज़ होने वाले हैं और अगर किसी पाकिस्तानी लेखक के काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा जाता है, तो यह उनकी नज़र में अच्छी बात है.
उन्होंने कहा कि "लेखक की लिखी हुई चीज़ कहां चलेगी इसका फ़ैसला लेखक नहीं करता है, बल्कि निर्माता और चैनल करता है. उम्मीद है, अब यह बात स्पष्ट हो गई होगी कि यह एक स्थानीय कंपनी के लिए लिखा गया है, किसी भारतीय कंपनी के लिए नहीं लिखा गया था. और यह प्रोजेक्ट उस समय लिखा गया था, जब पाकिस्तान और भारत के बीच संबंध इतने ख़राब नहीं थे और कश्मीर में जो हालिया संवैधानिक बदलाव किया गया है वो भी नहीं किया गया था."
बीबीसी ने इस मामले पर बात करने के लिए 'धूप की दीवार' सिरीज़ की प्रोडक्शन कंपनी ग्रुप एम से संपर्क किया, लेकिन कंपनी ने इसका जवाब नहीं दिया.
क्या पाकिस्तानी लेखक भारत के लिए नहीं लिख सकता?
पाकिस्तान में स्क्रीनप्ले राइटर्स के अधिकारों के लिए बनाई गई एसोसिएशन के सदस्य और नाटककार इनाम हसन ने बीबीसी उर्दू की ताबिंदा कोकब से बात करते हुए कहा कि "मुझे लगता है कि अगर किसी लेखक के पास कोई कहानी है, तो उन्हें यह कहानी सुनानी चाहिए और अगर यह कहानी प्यार की है, तो क्यों नहीं सुनाई जाए. हमें कहानी में सिर्फ नफ़रत बोने की जरूरत नहीं है."
उन्होंने कहा, "किसी को देशद्रोही कहने में भी मुझे कोई देशभक्ति दिखाई नहीं देती."
इनाम हसन ने कहा कि अगर कोई लेखक भारत के बारे में बात करता है, तो कहानी को देखे बिना इस तरह की राय बनाना, मुझे लगता है कि ये लेखक के अधिकारों का उल्लंघन है.
इनाम हसन ने कहा कि हालांकि भारत और पाकिस्तान दोनों के कलाकारों का सीमा पार काम करने या न करने का फ़ैसला राज्य की नीति के तहत होता है, लेकिन उमैरा अहमद के संदर्भ में यह कहा जा सकता है, कि उन्होंने तो पाकिस्तान के प्रोडक्शन हाउस के लिए ही काम किया है.
उनका कहना था कि, "अगर भारत से आने वाला हर काम देशद्रोह का सर्टिफिकेट लेकर आता है, तो पूरे पाकिस्तान में भारतीय गीतों और मनोरंजन के कंटेंट को बंद कर देना चाहिए."
सोशल मीडिया यूज़र्स की प्रतिक्रिया
उमैरा अहमद के अनुसार, जहां सोशल मीडिया यूज़र्स ने उनके भारतीय वेब स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के लिए नाटक लिखने को नापसंद किया, वहीं कुछ लोगों ने कहा कि अगर पाकिस्तानी लेखक अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर काम करते हैं, तो यह अच्छी बात है.
एक अन्य फेसबुक यूज़र हादिया जव्वाद ने कहा, "वैसे, वे भारतीय फिल्में देखते हैं और उनके गानों पर डांस करते हैं. उस समय उन्हें याद नहीं आता है कि भारत हमारा दुश्मन है."
ऐसे सोशल मीडिया यूज़र भी थे, जिन्होंने नाटक के बारे में समय से पहले निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी बताया.
उन्हीं में से एक जुवैरिया का कहना था कि "मैं लोगों से कहना चाहती हूँ की थोड़ा सब्र करें अपनी भविष्यवाणियों के आधार पर निष्कर्ष न निकालें. इस स्क्रिप्ट को उमैरा अहमद ने लिखा है. उन्होंने एक आध्यात्मिक नाटक, 'अलिफ़', नौसेना की तरफ से बनाई गई टेलीफ़िल्म, लाल और पीर-ए-कामिल और आब-ए-हयात जैसे उपन्यास लिखे हैं."
कई यूज़र्स ने इस बात पर आपत्ति जताई कि नाटक में युद्ध के दौरान मारे गए पाकिस्तानी और भारतीय दोनों सैनिकों को 'शहीद' कहा गया, जो मुसलमानों की धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप नहीं है.
इस पर इब्तिसाम समीर नाम के फ़ेसबुक यूज़र ने कमेंट किया, कि "इस श्रृंखला को देखे बिना भी, मुझे विश्वास है कि एक ऐसा इंसान जो पीर-ए-कामिल और आब-ए-हयात जैसा मास्टरपीस लिख सकता है, वह कभी भी देश और धर्म के खिलाफ नहीं लिखेगा."
नाटक की लेखिका ने अपने बयान में यह भी कहा कि उनकी कहानी में लव स्टोरी नहीं बल्कि दोस्ती दिखाई गई है.
इसी तरह वज़ीहा आसिम सुल्तान नामक एक यूज़र ने कहा, कि "यह गर्व की बात है कि हमारे नाटकों को दुनिया भर में चुना, देखा और पसंद किया जाता है. अतीत में भी, भारत में हमारे धूप किनारे और तनहाइयां जैसे नाटकों की प्रशंसा की गई है और इन कहानियों की कॉपी करने की भी कोशिश की गई है. इसलिए आप उन लोगों को परेशान न करें जो अच्छा काम कर रहे हैं."
आमना नाम की एक यूज़र ने कहा, कि "मुझे अच्छा लगा, कि इस नाटक के ट्रेलर ने कुछ बुनियादी समस्याओं की निशानदेही की है और मुझे नफ़रत है इस बात से कि लोग किताब के बारे में इसके कवर से ही राय बनाने लगते हैं. बेहतर होगा कि उन कारकों के बारे में बात की जाए, जिनके ज़रिये से एक खूबसूरत विचार और प्लॉट को उजागर किया गया और आख़िरकार ये उमैरा अहमद ने लिखा है." (bbc.com)
नई दिल्ली, 20 जून | आज फादर्स डे है, लेकिन यह महामारी रंग में भंग डालने का काम कर रही है। आप उन्हें बाहर, मूवी या डिनर पर नहीं ले जा सकते हैं। आप निश्चित रूप से उनके दिन को खास बनाने के लिए घर पर ही ओटीटी पर कुछ खास फिल्में देख सकते हैं।
तो, पॉपकॉर्न के साथ हो जाए तैया क्योंकि आईएएनएस द्वारा कुछ खास फिल्मों का जिक्र किया जा रहा है, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध है।
मिसिज डाउटफायर
दिवंगत अभिनेता रॉबिन विलियम्स अभिनीत 1993 की कॉमेडी एक उपयुक्त विकल्प है। यह एक ऐसे पिता के बारे में है जो अपने बच्चों के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, उन्हें खुश और उस समय की याद दिलाने और तैयार करने के लिए और इससे भी बढ़कर, उन दिनों की याद दिलाता है जब पिताजी छोटे थे। ये फील-गुड एंटरटेनर, तलाक, अलगाव और परिवार पर उनके प्रभाव के बारे में है।
फादर ऑफ द ब्राइड
स्टीव मार्टिन, डायने कीटन, किम्बर्ली विलियम्स, जॉर्ज न्यूबर्न और मार्टिन शॉर्ट अभिनीत, 1991 की फिल्म इसी नाम की 1950 की फिल्म की रीमेक है। फिल्म में, मार्टिन ने जॉर्ज बैंक्स की भूमिका निभाई है, जो एक व्यापारी और एक एथलेटिक जूता कंपनी का मालिक है, जिसे पता चलता है कि उसकी बेटी की शादी हो रही है, लेकिन वह उसे दूर नहीं जाने देना चाहता है।
पीकू
2015 की बॉलीवुड फिल्म शूजीत सरकार द्वारा निर्देशित है। यह फिल्म अमिताभ बच्चन (एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता भूमिका में) द्वारा निभाई गई उम्रदराज, चिड़चिड़े पिता और दीपिका पादुकोण द्वारा निबंधित उनकी चिड़चिड़ी बेटी पीकू के बीच संबंधों के बारे में एक अनोखी कॉमेडी है। दोनों को संघर्षों के टकराव से जूझते देखा जाता है और फिर भी वे जानते हैं कि वे एक-दूसरे का एकमात्र सहारा हैं।
शिट्स क्रीक
एमी पुरस्कार विजेता शो 'शिट्स क्रीक' एक अमीर परिवार की कहानी है जो एक शहर को छोड़कर अपना सब कुछ खो देता है। परिवार के कुलपति, जॉनी रोज, यूजीन लेवी द्वारा चित्रित, एक पिता है जिससे सभी संबंधित हो सकते हैं। थोड़ा अजीब, बेहद मुखर लेकिन दिन के अंत में, प्यार और देखभाल करने वाला। वह हमेशा ऐसा व्यक्ति होता है जो सभी को हंसा सकता है।
राजमा चावला
फिल्म एक अपरंपरागत पिता-पुत्र के रिश्ते की कहानी को कवर करती है। राज को पता चलता है कि उसका बेटा कबीर उससे दूर होता जा रहा है और यह बात उसे परेशान करती है। फिल्म एक तरह से इस बात की पड़ताल करती है कि कैसे सोशल मीडिया की उभरती दुनिया पीढ़ी के अंतर के कारण मौजूद तनावपूर्ण संबंधों को स्थिर करना और भी मुश्किल बनाती है।
दृश्यं
ये फिल्म अजय देवगन-तब्बू-स्टारर 2015 में रिलीज हुई। फिल्म एक पिता की कहानी का अनुसरण करती है, जो एक आकस्मिक अपराध होने के बाद अपने परिवार को बचाने के लिए किसी भी हद तक चला जाता है, जो उन्हें और उनके रहस्य को एक भयंकर पुलिस अधिकारी से बचाने के लिए छोड़ देता है, जो उन पर हत्या का शक करता है।
द फैमली मैन
कहानी मनोज बाजपेयी के श्रीकांत तिवारी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति होता है, लेकिन एक विश्व स्तरीय जासूस के रूप में कार्य करता है। वह अत्यधिक गोपनीय विशेष नौकरी की मांगों के साथ अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को संतुलित करने का प्रयास करता है। वह अपने परिवार के सदस्यों से उन्हें जमीन पर आने वाले खतरों से सुरक्षित रखने के लिए गुप्त रखता है।
द परस्युट ऑफ हैपिनेस
विल स्मिथ और उनके बेटे जेडन स्मिथ 2006 की कहानी में अभिनय करते हैं, जो एक संघर्षरत एकल पिता के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने लड़के के लिए बेहतर जीवन का सपना देखता है। खुद के बेघर होने के बाद, विल का चरित्र क्रिस सब कुछ जोखिम में डालता है जब वह एक स्टॉक ब्रोकर के साथ एक अवैतनिक इंटर्नशिप प्राप्त करता है।
दो दूनी चार
कॉमेडी ड्रामा फिल्म में वास्तविक जीवन के जोड़े ऋषि कपूर और नीतू सिंह पति और पत्नी के रूप में हैं, अदिति वासुदेव और अर्चित कृष्णा उनके बच्चों के रूप में हैं। फिल्म एक मध्यमवर्गीय स्कूल परिवार और एक नई कार खरीदने के उसके संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमती है।(आईएएनएस)
-इमरान कुरैशी
कन्नड़ अभिनेता और एक्टिविस्ट चेतन कुमार से बेंगलुरू पुलिस शुक्रवार को फिर से पूछताछ करने वाली है. मामला उनके ब्राह्मणवाद पर बयान का है.
चेतन कुमार के ब्राह्मणवाद पर बयान देने के बाद विवाद खड़ा हो गया है और उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई गई है.
चेतन कुमार को अन्य पिछड़े समुदायों से समर्थन मिल रहा है. हालाँकि, फ़िल्म उद्योग से जुड़ी हस्तियाँ इस मामले पर चुप्पी साधे हुई हैं.
चेतन अहिंसा के नाम से मशहूर चेतन कुमार सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल होने के बाद पिछले दो हफ़्तों से चर्चा में हैं.
इस वीडियो के बाद उनके ख़िलाफ़ ब्राह्मण डेवलपमेंट बोर्ड के अध्यक्ष और एक अन्य संस्था ने शिकायत दर्ज कराई थी.
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय में भी शिकायत दर्ज करते हुए कहा है कि अभिनेता को अमेरिका वापस भेजा जाए क्योंकि उन्होंने ओवरसीज सिटिजन ऑफ़ इंडिया का कार्ड धारक होने के मानदंडों का उल्लंघन किया है.
एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी हिंदी को बताया, ''हमने उनसे पूछने के लिए कुछ सवाल तैयार किए थे, जिसके उन्होंने काफ़ी लंबे-लंबे जवाब दिए. उन्हें रिकॉर्ड करना भी ज़रूरी है. इसलिए, हमने उन्हें बचे हुए सवालों के जवाब देने के लिए कहा है.''
पुलिस इस बात को लेकर जाँच कर रही है कि चेतन कुमार ने आईपीसी की धारा 153ए और 295ए का उल्लंघन किया है या नहीं.
इन धाराओं का मतलब है कि चेतन पर धर्म या नस्ल के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता पैदा करने और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए जानबूझकर और दुर्भावना के साथ कोई काम करने का आरोप है.
चेतन कुमार ने क्या कहा था
चेतन ने सोशल मीडिया पर डाले गए अपने वीडियो में कहा था, ''हज़ारों सालों से ब्राह्मणवाद ने बासव और बुद्ध के विचारों को मार डाला है. 2500 साल पहले बुद्ध ने ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी. बुद्ध विष्णु के अवतार नहीं हैं और ये एक झूठ है और ऐसा कहना पागलपन है.''
इसके बाद उन्होंने एक ट्वीट किया, ''ब्राह्मणवाद स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना को अस्वीकार करता है. हमें ब्राह्मणवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए- #आंबेडकर. सभी समान रूप से पैदा होते हैं, ऐसे में यह कहना कि सिर्फ़ ब्राह्मण ही सर्वोच्च हैं और बाक़ी सब अछूत हैं, बिल्कुल बकवास है. यह एक बड़ा धोखा है- #पेरियार.''
उन्होंने ये प्रतिक्रिया कन्नड़ फ़िल्म अभिनेता उपेंद्र के उस कार्यक्रम को लेकर दी थी, जो आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की कोरोना में मदद के लिए आयोजित किया गया था.
चेतन कुमार का कहना था कि इस आयोजना में सिर्फ़ पुरोहित वर्ग के लोगों को बुलाया गया था. इसके लिए उन्होंने उपेंद्र की आलोचना की.
वहीं, उपेंद्र का कहना है कि केवल जातियों के बारे में बात करते रहने से जातिवाद बना रहेगा. जबकि चेतन का कहना है कि ब्राह्मणवाद असमानता की मूल जड़ है.
दोनों अभिनेताओं की बहस के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई और दोनों के समर्थक भी आपस में लड़ने लगे.
चेतन ने कहा कि वो ब्राह्मणों की नहीं, बल्कि ब्राह्मणवाद की आलोचन करते हैं. जैसे कि कन्नड़ दुनिया में कई ब्राह्मण ख़ुद ब्राह्मणवाद का विरोध करते रहे हैं.
इस बयान के बाद ब्राह्मण डेवलपमेंट बोर्ड और विप्र युवा वेदिका ने पुलिस में उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई.
सामाजिक कार्यकर्ता गिरीश भारद्वाज ने बीबीसी हिंदी से कहा, ''हम नहीं जानते थे कि वो अमेरिकी नागरिक हैं और ओसीआई कार्ड धारक हैं. ओसीआई कार्ड धारक इस तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकते.''
कौन हैं चेतन कुमार
37 साल के चेतन कुमार का जन्म अमेरिका में हुआ है. उनके माता-पिता डॉक्टर हैं.
''आ दिनागलु'' फ़िल्म के निर्देशक केएम चेतन्य ने बीबीसी हिंदी को बताया, ''जब चेतन येल यूनिवर्सिटी से पढ़कर वापस भारत आए थे, तो उनकी फ़िल्म के लिए वो एक नया चेहरा थे.''
2007 में आई ये फ़िल्म एक कल्ट फ़िल्म मानी गई थी.
इसके साथ ही चेतन ने कुछ और फ़िल्मों में भी काम किया, लेकिन वो ख़ास सफल नहीं हो पाईं. लेकिन, 2013 में आई उनकी फ़िल्म 'मायना' को काफ़ी सराहा गया था.
महेश बाबू के निर्देशन में बनी उनकी अगली फ़िल्म 'अथीरथा' सभी मसाले होने के बावजूद भी बॉक्स ऑफ़िस पर कोई कमाल नहीं दिखा पाई. इसकी वजह चेतन कुमार के राजनीतिक विचारों को माना जाता है.
एक तरफ चेतन की छवि एक एक्टिविस्ट के तौर पर मज़बूत होती गई है, तो दूसरी तरफ़ फ़िल्मों में उनकी भागीदारी घटती चली गई.
निर्देशक और स्टोरी राइटर मंजुनाथ रेड्डी उर्फ़ मंसोरे कहते हैं, ''वो एक समर्पित अभिनेता हैं लेकिन सफल नहीं हैं. वो अभी 'आ दिनागलु' चेतन के तौर पर जाने जाते हैं. लेकिन अब वो सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर आगे बढ़ रहे हैं. वो एक ऐसे अभिनेता के तौर पर सामने आए हैं, जिनके लिए सामाजिक मुद्दे ज़्यादा मायने रखते हैं.''
फ़िल्म जगत और सामाजिक मुद्दे
ये सभी जानते हैं कि कन्नड़ फ़िल्म उद्योग में जानमानी हस्तियाँ सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार नहीं रखतीं. वो सिर्फ़ कावेरी जल विवाद जैसे मामलों पर ही विरोध करने के लिए आगे आती हैं और वो भी इसलिए क्योंकि तमिलनाडु का फ़िल्म उद्योग भी कावेरी के भावनात्मक मसले पर विरोध करता है.
ऐसे हालात में अभिनेता से सामाजिक कार्यकर्ता बने चेतन कुमार आदिवासियों को जंगल से हटाए जाने पर कोडगु ज़िले में धरने पर बैठे. उन्होंने विस्थापित होने वालों को रहने की वैकल्पिक जगह दिलाए जाने की मांग का समर्थन किया.
दूसरे मामलों की तरह चेतन के मामले पर भी फ़िल्म उद्योग के जानेमाने चेहरे कुछ नहीं कहना चाहते हैं.
एक ने कहा, ''मैं इस मसले पर बात नहीं करना चाहता.'' दूसरे ने कहा, ''उस लड़के के बारे में बोलने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है.'' तीसरे ने कहा, ''इस तरह के विवादों में पड़कर वो अपनी मौजूदगी दिखाना चाहता है.''
मंसोरे कहते हैं, ''हमारे उद्योग में लोग विवादों में पड़ना पसंद नहीं करते. कोई भी एक्टर आदिवासियों को निकाले जाने पर या Me Too अभियान में उनकी तरह पक्ष नहीं लेगा. Me Too मामले में श्रुति हरिहरन का साथ देने पर लोगों ने उन्हें विलन ही बना दिया.''
मंसोरे को कोडगु में धरने के दौरान चेतन के सामाजिक कार्यकर्ता होने का पता चला था. वह कहते हैं कि मुद्दों को लेकर उनकी चिंताएँ वास्तविक होती हैं.
श्रुति हरिहरन कई भाषाओं में काम करने वालीं दक्षिण भारतीय अभिनेत्री हैं. उन्होंने Me Too अभियान के दौरान फ़िल्म जगत की जानीमानी हस्ती अर्जुन सरजा के ख़िलाफ़ 'अनुचित' व्यवहार का आरोप लगाया था.
तब चेतन ने 'फ़िल्म इंडस्ट्री फॉर राइट्स एंड इक्वेलिटी' (एफआईआरई) नाम से एक मंच बनाया था, जो फ़िल्मों में काम करने वाले लोगों के आर्थिक और शारीरिक उत्पीड़न जैसे मसलों पर काम करता है.
लेकिन, मंसोरे बताते हैं, ''तब से फ़िल्म जगत के लोगों ने उन्हें गंभीरता से देखना बंद कर दिया.''
श्रुति हरिहरण कहती हैं, ''चेतन ऐसे शख़्स हैं, जिन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है कि वो जो कर रहे हैं उससे उन्हें कितना नाम या प्रसिद्धि मिलेगी. फ़िल्म उद्योग में जो लोग अधिकारों से वंचित हैं वो उनकी मदद करने में विश्वास रखते हैं. वो सिर्फ़ कहते नहीं हैं, बल्कि करके भी दिखाते हैं.''
मंसोरे कहते हैं, ''उन्होंने ब्राह्मणों के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहा है. उन्होंने ब्राह्मणवादी संस्कृति की बात की है, जो फ़िल्म जगत में अपनी जड़ जमाए हुए हैं. उन्होंने सिर्फ़ ब्राह्मणवादी मानसिकता की बात की है.''
श्रुति ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह एक ब्राह्मण परिवार से हैं, लेकिन ऐसी कुछ धार्मिक प्रथाएँ थीं, जिनका उन्होंने पालन नहीं किया.
वह कहती हैं, ''मैं चेतन से सहमत हूँ कि ब्राह्मणवाद समानता को स्वीकार नहीं करता. माहवारी जैसे मसलों पर ये बेहद पितृसत्तात्मक है. मुझे नहीं लगता कि उन्होंने किसी को ठेस पहुँचाई है.''
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कविता लंकेश कहती हैं, ''वो बस गर्म दिमाग़ वाले युवा हैं, जिनकी कूटनीतिक क्षमता कम है.'' (bbc.com)
-प्रणीता सुतार
नई दिल्ली: बॉलीवुड हो या फिर हॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने सभी जगह नाम कमाया है. एक बार फिर वो इंटरनेशनल प्रोजेक्ट को लेकर काफी चर्चाओं में बनी हुई हैं. प्रियंका चोपड़ा अब लॉन्जरी ब्रांड विक्टोरिया सीक्रेट के साथ काम करने वाली हैं. खबर है कि अमेरिकी लॉन्जरी कंपनी विक्टोरिया सीक्रेट ने पॉपुलर एंजल्स सुपरमॉडल्स को अब गुडबॉय कह दिया है. अब वह अपने इस नए ब्रांड के लिए नए चेहरे की खोज कर रहे हैं. जिसमें बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा का नाम सामने आया है.
द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, विक्टोरिया सीक्रेट में अब प्रियंका चोपड़ा नजर आने वाली हैं. विक्टोरिया सीक्रेट ने सोशल मीडिया पर इस कैंपेन से जुड़ा एक पोस्ट शेयर किया है. जिसमें उन्होंने बताया है कि, ये पार्टनर अपनी यूनिक बैकग्राऊंड, रुचियों और जुनून के साथ क्रांतिकारी प्रोडक्ट कलेक्शन, सम्मोहक और प्ररेक कॉन्टेंट को लेकर कार्यक्रमों में हमारा सपॉर्ट करेंगे. विक्टोरिया सीक्रेट ने 2022 में अपने फैशन शो को फिर से शुरू करने की योजना बनाई है, लेकिन यह एक बहुत ही अलग रूप में किया जाएगा.
प्रियंका चोपड़ा के काम की बात करे तो, फिलहाल वो रुसो ब्रदर्स के डायरेक्शन में बनी फिल्म 'सिटाडेल' में काम कर रही हैं. इसी के साथ वो 'मैट्रिक्स 4', 'टेक्स्ट फॉर यू' जैसी फिल्मों में भी काम करेंगी. प्रियंका चोपड़ा को आखिरी बार फिल्म 'द व्हाइट टाइगर' में देखा गया है.
-याशिका माथुर
मुंबई, 18 जून | फिल्मों के साथ-साथ ओटीटी में भी काम कर चुके अभिनेता मनोज बाजपेयी का कहना है कि जब बात अपने काम को दिखाने की आती है तो वह कभी भी फेवरेट माध्यम नहीं चुनते।
अभिनेता ने आईएएनएस से कहा, "रचनात्मक लोगों के निण् फेवरेट नहीं होना चाहिए, क्योंकि आप जिस भी माध्यम के लिए काम कर रहे हैं, उस पर आपको काम करना चाहिए। आपको केवल अच्छे काम की तलाश करनी है जो आपको उत्साहित और चुनौती दे।"
वह उन हालिया परियोजनाओं के उदाहरण देते हैं जिनमें उन्होंने काम किया और जो डिजिटल रूप से सामने आई हैं।
उन्होंने कहा, "ओटीटी पर आने वाली कई फिल्मों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। 'भोंसले' और 'साइलेंस' थिएटर रिलीज के लिए थी। ओटीटी एक आशीर्वाद के रूप में आया और हम इन फिल्मों को लोगों के देखने के लिए ओटीटी पर रख सकते हैं। थिएटर फिर से खुलेंगे। ज्यादा रास्ते, हम सभी के लिए बेहतर अवसर हो सकते हैं। ज्यादा प्रतिभा का उपभोग किया जाएगा और इससे फायदा होगा।"
अभिनेता का कहना है कि स्क्रिप्ट चुनने के लिए उनका मानदंड हमेशा एक जैसा रहा है।
उन्होंने कहा, "एक अच्छी पटकथा, अच्छा चरित्र और अच्छा निर्देशक, एक ईमानदार इरादा और एक ऐसा चरित्र जो मुझे लगता है कि मैं अलग तरह से निभा सकता हूं, कहीं न कहीं मैं इसे चुनौती दे सकता हूं और इसे अलग तरह से कर सकता हूं। ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें मैं अपने 26 साल के करियर के बाद भी देखता हूं।" (आईएएनएस)
-मधु पाल
साल 2001 में आई निर्देशक आशुतोष गोवारिकर की फ़िल्म 'लगान' को बॉलीवुड की सबसे बेहतरीन फ़िल्मों में से एक माना जाता है. आमिर ख़ान का 'भुवन' का किरदार आज भी लोगों के ज़ेहन में ज़िंदा है.
इस फ़िल्म को रिलीज़ हुए 20 साल हो चुके हैं.
इतना ही नहीं कम ही लोगों को पता होगा कि आमिर ख़ान फ़िल्म निर्माता कभी नहीं बनते, अगर आशुतोष गोवारिकर ने फ़िल्म 'लगान' की कहानी नहीं लिखी होती.
आशुतोष गोवारिकर ने जब पहली बार आमिर ख़ान को इस फ़िल्म का आइडिया सुनाया था, तब आमिर को यह आइडिया बेहद ख़राब लगा था और उन्होंने आशुतोष को इस पर काम करने से मना कर दिया था.
लेकिन जब फ़िल्म रिलीज़ हुई, तो 'लगान' ने ना सिर्फ़ बॉक्स ऑफ़िस पर कमाई की, बल्कि इसे 'ऑस्कर अवॉर्ड' के लिए नॉमिनेट भी किया गया. हालाँकि फ़िल्म को ऑस्कर नहीं मिल सका.
"इस स्क्रिप्ट के लिए तुमने अपने तीन महीने बर्बाद कर दिए"
फ़िल्म 'लगान' की रिलीज़ के 20 साल बाद बीबीसी को दिए साक्षात्कार में आमिर ख़ान ने इस फिल्म को एक यादगार और ख़ूबसूरत सफ़र बताया.
उन्होंने कहा, "जब 'लगान' की कहानी आशुतोष ने पहली बार सुनाई थी, तब उन्होंने अपनी बात दो मिनट में कुछ यूँ कही कि एक गाँव है, जहाँ बारिश नहीं हो रही है. जिसके चलते गाँव के लोग लगान नहीं दे पा रहे हैं और अपना लगान माफ़ करवाने के लिए वो लोग शर्त लगाते हैं और क्रिकेट खेलते हैं. बस. ये आइडिया जब मैंने सुना, तो मुझे बहुत बुरा लगा. ये क्या आइडिया है 1893 में क्रिकेट खेल रहे हैं और लगान माफ़ करवाना चाहते हैं. मैंने आशुतोष को कहा कि ये बात मुझे समझ नहीं आई."
आमिर कहते हैं, "मैंने आशुतोष को समझाते हुए कहा कि तुम्हारी इससे पहले दो फ़िल्में नहीं चली है. तुम थोड़ा ठीक काम कर लो. मेरी ये बाते सुनने के बाद आशुतोष थोड़ा मायूस हुए और कहा अच्छा ठीक है. उसके बाद वो तीन महीने के लिए ग़ायब हो गए."
उनके अनुसार, "तीन महीने बाद उसने (आशुतोष गोवारिकर) मुझे फ़ोन किया और कहा कि एक स्क्रिप्ट है जो सुनाना चाहता हूँ. जब मैंने सुनाने को कहा तो उन्होंने साफ़ कहा कि मिलकर सुनाऊँगा. मुझे शक हुआ कि ये फिर से वही क्रिकेट वाली कहानी सुनाएगा. मैंने उसको पूछा तो उसने जवाब नहीं दिया. मैंने उससे कहा कि मुझे नहीं सुननी है. मैंने कहा था कि इतनी बुरी कहानी है, फिर भी तुमने इस कहानी के पीछे अपने तीन महीने बर्बाद कर दिए लेकिन आशुतोष अपनी ज़िद पर अड़े रहे."
आमिर कहते हैं क्योंकि आशुतोष दोस्त हैं, इसलिए उन्होंने उनकी ज़िद के कारण फ़िल्म की स्क्रिप्ट सुन ली.
आमिर बताते हैं, "इस बार जब उसने पूरी डिटेल्स के साथ स्क्रिप्ट सुनाई, तो मेरी हवाइयाँ उड़ गईं. मैं कहानी सुनते वक़्त रो रहा था, हँस रहा था. मैंने उससे कहा कि ये बहुत महंगी फ़िल्म लग रही है. इसे कौन बनाएगा? मैं तो एक्टर हूँ प्रोड्यूसर नहीं. तुम्हारी फ़िल्म 'बाज़ी' चली नहीं, तो इस फ़िल्म के लिए पैसा कौन लगाएगा. पहले प्रोड्यूसर ले आओ, जो इस पर पैसा लगाने को तैयार हो तभी मैं इस फ़िल्म में काम करूँगा. लेकिन प्रोड्यूसर को ये मत बताना कि मैं इस फ़िल्म में हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से कोई हाँ कहे, मैं चाहता हूँ कहानी की वजह से जो भी हो, वो हाँ कहे."
आमिर बताते हैं कि उन्होंने आशुतोष गोवारिकर से ये भी कह दिया था कि वो उनका इंतज़ार ना करें. अगर कोई और तैयार हो इस फ़िल्म के लिए, तो वो उसके साथ ही यह फ़िल्म कर लें.
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वो कहते हैं, "इसके बाद आशुतोष ने पूरी इंडस्ट्री में एक्टर्स और प्रोड्यूसर्स को यह कहानी सुनाई, लेकिन किसी को भी कहानी समझ नहीं आई. मुझे कहानी पसंद आ गई थी, तो मैं अक्सर अपडेट ले लिया करता था. इस दौरान हर छह महीने में मैं इस कहानी को सुनता था और इस तरह मैंने तीन बार इस फ़िल्म की कहानी सुनी. हर बार तारीफ़ की, लेकिन इसे बनाने की हिम्मत नहीं हुई. फिर एक दिन मैंने सोचा कि आख़िर मैं इस फ़िम को बनाने से डर क्यों रहा हूँ? गुरुदत्त, वी शांताराम जी, के आसिफ़, विमल रॉय...क्या वे इसे बनाने से डरते?"
आमिर कहते हैं, "ये सवाल मैंने अपने आप से पूछा कि मैं उनकी तरह बनना चाहता हूँ और वो मेरे हीरो हैं तो उनकी तरह हिम्मत भी दिखाऊँ. उनकी ज़िंदगी में भी मुसीबतें आई होंगी लेकिन उन्होंने कर दिखाया. वहीं से मुझे हिम्मत मिली, तभी मैंने सोचा कि अगर मुझे इसमें एक्टिंग करनी है तो प्रोड्यूस भी मुझे ख़ुद ही करना होगा.'
कभी प्रोड्यूसर नहीं बनना चाहता था
आमिर ख़ान के पिता ताहिर हुसैन एक लेखक और प्रोड्यूसर थे और आमिर ने पिता के संषर्ष को बहुत क़रीब से देखा है.
वो कहते हैं, "मैं हमेशा से प्रोड्यूसर बनने से कतराता था क्योंकि मैंने अपने पिता की हालत देख रखी थी."
वो आगे कहते हैं, "लेकिन मैं ये बात जानता था कि अगर इस फ़िल्म में मुझे काम करना है तो प्रोड्यूस भी ख़ुद ही करना होगा. तब मैंने अपनी अम्मी-अब्बा और पहली पत्नी रीना को स्क्रिप्ट सुनाई. इससे पहले मैंने ऐसा कभी नहीं किया था. जब उन्होंने सुनी, तो उन्हें बहुत अच्छी लगी, लेकिन अब्बा समझ गए कि ये बहुत महंगी फ़िल्म है. लेकिन उन्होंने कहा कि अगर कहानी अच्छी लगी तो फ़िल्म ज़रूर करनी चाहिए."
आमिर को इस फ़िल्म के लिए हाँ कहने में दो साल का समय लगा.
आमिर कहते हैं, "लगान मेरे लिए एक सफर है. इस फिल्म से मेरा जो रिश्ता है, वो बेहद ख़ास है. हम शूटिंग के लिए छह महीने कच्छ में रहे और वहाँ हम सभी एक ही बिल्डिंग में रहते थे. क़रीब 300 लोग थे. शूटिंग के लिए रोज़ सुबह 4 बजे जग जाया करते थे. उसके बाद शूटिंग पर जाने के लिए बस में सवार हो जाया करते थे. एक दिन किसी ने बस में गायत्री मंत्र चला दिया और तब से लेकर फ़िल्म की शूटिंग ख़त्म होने तक हम हर रोज़ 45 मिनट तक गायत्री मंत्र सुनते थे. हम ही नहीं बस में जो अंग्रेज़ थे, वे भी हमारे साथ रोज़ गायत्री मंत्र सुनते थे.'
फ़िल्म अवार्ड्स का ज़िक्र करते हुए आमिर ख़ान कहते हैं, "ये बात आप सब जानते ही हो कि मैं अवॉर्ड को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेता हूँ फिर वो कोई भी अवार्ड हो, यहाँ तक कि ऑस्कर्स को भी नहीं. इसकी वजह यह है कि अगर आज की तारीख़ में मैं आपसे पूछूँ कि 'लगान', 'दंगल',' थ्री इडियट्स ' और 'तारे ज़मीन पर' में से कौन सी फ़िल्म ज़्यादा अच्छी है तो तुलना करना बहुत मुश्किल है. ये तीनो ही फ़िल्में एक साथ, एक ही साल में आतीं तो अवॉर्ड शोज़ में 10 लोग लगान को पसंद करते तो 10 लोग तारे ज़मीन पर को और कुछ दंगल को."
आमिर कहते हैं कि अवॉर्ड्स को इतनी गंभीरता से नहीं लेना चाहिए क्योंकि ये स्पोर्ट्स की तरह नहीं है, जिसने 100 मीटर की रेस सबसे पहले पूरी की, वो जीता. स्पोर्ट्स में स्पष्टता होती है फिल्मों में ऐसा नहीं है. हर किसी के जज़्बात अलग-अलग होते हैं.
देश में होने वाले अवार्ड्स शोज़ पर आमिर कहते हैं, "हमें अवार्ड्स को गंभीरता से लेने के बजाय इसका जश्न मनाना चाहिए. एक दूसरे के काम की सराहना करनी चाहिए."
आमिर कहते हैं कि उनके बारे में कहा जाता है कि वो किसी अवॉर्ड शो में नहीं जाते, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है.
वो कहते हैं, "मैं हिन्दुस्तान के दो अवॉर्ड्स में जाता हूँ. एक है लता जी का दीनानाथ मंगेशकर अवॉर्ड और दूसरा साउथ का गोल्लापुड़ी अवॉर्ड. ये दो अवॉर्ड हैं,जहाँ मैं ख़ुद शामिल होता हूँ. जहाँ मुझे लगता है कि ये अवॉर्ड सही हैं तो मैं वहाँ जाता हूँ. ऑस्कर के लिए तो मैं इसलिए गया था, ताकि मैं अपनी फ़िल्म की मार्केटिंग कर सकूँ. भारत में तो सबने देखी, लेकिन विदेश में भी इसे पहचाना जाए. मेरी फ़िल्म ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई ये ही बहुत है और ये मेरे लिए अवॉर्ड से कम नहीं है."
फ़िल्म 'लगान' ब्रिटिश राज के दौर की पृष्ठभूमि पर आधारित है. आमिर फिल्म में एक युवा किसान भुवन की भूमिका में नज़र आए थे.
इस फ़िल्म में आमिर ख़ान के साथ अभिनेत्री ग्रेसी सिंह, रघुवीर यादव, रैचेल शैली, कुलभूषण खरबंदा, यशपाल सिंह, राजेंद्र गुप्ता और सुहासिनी मुले ने मुख्य भूमिका अदा की थी.(bbc.com)
मुंबई, 15 जून | अभिनेत्री अदिति राव हैदरी ने तीन साल पहले आज के दिन रिलीज हुई फिल्म 'सम्मोहनम' से तेलुगु फिल्मों में डेब्यू किया था। अदिति ने फिल्म में समीरा की भूमिका निभाई थी, जो एक कामकाजी महिला के संघर्ष को दैनिक आधार को दर्शाती है।
'सम्मोहनम' के तीन साल पूरे करने के बारे में बात करते हुए, अदिति ने कहा, "पहला काम हमेशा खास होता है। मैंने (निर्देशक) मोहन कृष्ण इंद्रगंती से एक फोन कॉल पर यह कहानी सुनी थी। मुझे कहानी पसंद आई और मैंने तुरंत हां कर दी।"
उन्होंने आगे कहा, "बहुत सारे अच्छे लोग थे जिन्होंने मुझे मेरी पहली तेलुगु फिल्म करने के लिए कहा था। मुझे 'सम्मोहनम' पसंद थी। मैं अपने दिल की सुनी और मैं बहुत खुश हूं कि मैं इस फिल्म का हिस्सा थी।"
अदिति की आने वाली परियोजनाओं में दलकर सलमान के साथ 'हे सिनामिका' और शारवानंद और सिद्धार्थ अभिनीत 'महा समुद्रम' शामिल हैं।(आईएएनएस)
मुंबई, 15 जून | छह मैचों की सीमित ओवरों की सीरीज के लिए श्रीलंका जाने वाले भारतीय क्रिकेटरों ने यहां दो सप्ताह का क्वारंटीन पीरियड शुरू कर दिया है। इन खिलाड़ियों का 28 जून को कोलंबो रवाना होने से पहले नियमित रूप से कोरोना टेस्ट किया जाएगा। इस दौरे के लिए शिखर धवन को 20 सदस्यीय टीम का कप्तान और भुवनेवर कुमार को उपकप्तान बनाया गया है। पांच नेट गेंदबाज भी इस दौरे पर टीम के साथ जाएंगे।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने ट्वीट कर कहा, "श्रीलंका दौरे पर जाने वाली टीम इंडिया मुंबई में एकत्रित हुई है। टीम में कुछ नए चेहरों को देखना सुखद है।"
बीसीसीआई ने धवन, भुवनेश्वर, हार्दिक पांड्या, क्रुणाल पांड्या और नीतीश राणा के फोटो शेयर किए।
बीसीसीआई की सीनियर चयन समिति ने 10 जून को श्रीलंका के खिलाफ होने वाले तीन वनडे और तीन टी20 मैचों की सीरीज के लिए टीम का चयन किया था। यह सीरीज 13 से 25 जुलाई तक खेली जाएगी।
टीम के साथ मुख्य कोच राहुल द्रविड़ भी मुंबई में क्वारंटीन हो गए हैं। भारतीय टीम कोलंबो पहुंचने के बाद तीन दिनों तक क्वारंटीन में रहेगी जिसके बाद उसे श्रीलंका क्रिकेट के दिशानिर्देशों के अनुसार ट्रेनिंग की इजाजत दी जाएगी।(आईएएनएस)
मुंबई, 14 जून | बॉलीवुड अभिनेत्री विद्या बालन अपनी अगली फिल्म 'शेरनी' की रिलीज की तैयारियों में जुटी हुई हैं। उनका कहना है कि उनका कहना है कि वह ऐसे काम करना चाहती हैं, जिनसे उनके यकीनों का विस्तार हो। विद्या कहती हैं, "सच कहूं, तो ऐसा नहीं है कि इसे करने का मेरा कोई प्लान था, लेकिन मेरी ख्वाहिश हमेशा ऐसे काम की रही है, जो मेरे लिए मायने रखे, जिनसे मेरे यकीनों का विस्तार हो, जिन्हें करने में मेरे अंदर उत्साह पैदा हो, जो मुझे पूरा करे। इसलिए मैं आगे बढ़ी और उन्हें चुना जिनसे मैं आज बनी हूं।"
उन्होंने आगे कहा, "मैं सही समय पर सही जगह पर रही हूं और न ऐसा सिर्फ खुद के लिए किया, बल्कि यह कुछ ऐसा रहा है, जिनसे हिंदी सिनेमा में भी बदलाव की शुरूआत हुई, लेकिन मैं इनमें से किसी का भी श्रेय नहीं लेना चाहती। लेकिन हां, अब तक का यह सफर काफी रोमांचक और परिपूर्ण करने वाला रहा और मैं उम्मीद करती हूं कि आगे भी यह बेहतर रहे।"
'शेरनी' में विद्या एक फॉरेस्ट अफसर का रोल निभा रही हैं, जिन्हें एक आदमखोर शेरनी की तलाश रहती है।
पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता अमित मसूरकर द्वारा निर्देशित शेरनी में शरत सक्सेना, मुकुल चड्ढा, विजय राज, ईला अरुण, बृजेंद्र काला और नीरज काबी जैसे कलाकार महत्वपूर्ण किरदारों में हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 13 जून| अभिनेता और गोरखपुर के लोकसभा सांसद रवि किशन शुक्ला ने भोजपुरी फिल्मों और गानों के माध्यम से समाज में फैलाई जा रही अश्लीलता पर रोक लगाए जाने की मांग उठाई है। इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश और बिहार के मुख्यमंत्रियों के साथ देश के सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर और केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल को पत्र लिखा है और कठोर कानून बनाए जाने की मांग की है। गोरखपुर के सांसद रवि किशन ने पूर्व में बन चुकीं ऐसी फिल्मों और अश्लील गानों पर भी प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की है। भोजपुरी फिल्म जगत में पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से जुड़े रहे रवि किशन सांसद बनने के बाद भोजपुरी के उत्थान के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। वह लोकसभा में इकलौते सांसद हैं, जिनकी ओर से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने के लिए एक गैर-सरकारी सदस्य का विधेयक भी संसद में पेश किया है।
रवि किशन ने पत्र में उल्लेख किया है कि भोजपुरी भाषा में अनेक फिल्में बनी हैं, मगर पिछले कुछ दशकों में भोजपुरी फिल्म और विशेषकर उसके गानों के स्तर में काफी गिरावट आई है। आज के भोजपुरी फिल्म और गाने अश्लीलता का पर्याय बन गए हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। इससे युवा पीढ़ी के कोमल मन-मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, इसलिए भोजपुरी फिल्म और गानों की अश्लीलता पर लगाम लगाने की अविलंब आवश्यकता है। (आईएएनएस)
मुंबई, 12 जून | मशहूर बिजनेसमैन और बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा ने अपने दिए एक इंटरव्यू में दावा किया है कि उनकी पहली पत्नी कविता का उनकी बहन के पति यानि कि जीजा के साथ अफेयर था और इसी को उन्होंने दोनों के अलग होने और तलाक का कारण बताया। कुंद्रा ने पिंकविला को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "मैं, मेरे पापा, मेरी मां और बहन हम सभी एक घर में रह रहे थे। मेरे जीजा भी उसी घर में रहते थे, जो भारत से यूके में पांव जमाने के लिए आए थे। वह (उनकी पहली पत्नी) मेरे जीजा के काफी करीब आ गई थी और जब भी मैं बिजनेस के सिलसिले में बाहर जाता था, वह उसके साथ अधिक से अधिक समय बिताती थी। मेरे परिवार के कई सदस्यों और यहां तक कि मेरे ड्राइवर को भी लगा कि दोनों के बीच कुछ चल रहा है, लेकिन मैंने कभी यकीन नहीं किया। मैंने कभी उस पर शक नहीं किया।"
वह आगे कहते हैं, "मेरी पत्नी और मेरे जीजा वंश दोनों अक्सर बाहर जाते थे, एक ही कमरे में बैठे रहते थे वगैरह। मुझे लगता है कि इन्हीं सबसे मेरी बहन को शक हुआ होगा।"
कुंद्रा की तरफ से ये आरोप कविता का एक पुराना इंटरव्यू वायरल होने के बाद आया है, जहां वह शिल्पा शेट्टी पर उनकी शादी तोड़ने का आरोप लगाते हुए नजर आ रही हैं। (आईएएनएस)
मुंबई, 11 जून | तापसी पन्नू ने खुलासा किया है कि वह आने वाली मिस्ट्री थ्रिलर 'हसीन दिलरुबा' की पहली पसंद नहीं थीं। अभिनेत्री का दावा है कि सभी विकल्प समाप्त होने के बाद फिल्म उनके पास आई।
तापसी ने कहा, '' हसीन दिलरुबा' जिस दिन मैंने (लेखक) कनिका (ढिल्लों) से मूल विचार सुना, उसी दिन मुझे ये बहुत अच्छा लगा था। दुर्भाग्य से, मैं फिल्म के लिए पहली पसंद नहीं थी और आखिरकार यह मेरे पास आई। क्योंकि उनके विकल्प समाप्त हो गए थे।''
तापसी फिल्म को एक एक्टर के हाथ में कैंडी कहती हैं। तापसी ने कहा, "पुरानी कहावत है कि, अगर यह आपके लिए है तो यह आपके पास ही आएगी। यह इस फिल्म पर बिल्कुल फिट बैठती है। यह सिर्फ एक खूबसूरती से लिखित एक कहानी है, इसमें ऐसे अद्भुत पात्र हैं, जो एक एक्टर के हाथों में कैंडी के सामान है।"
तापसी ने आगे कहा, "मुझे खुशी है कि मुझे इस के साथ अपने लुक और प्रदर्शन के साथ प्रयोग करने का मौका मिला क्योंकि मैं निश्चित रूप से इस तरह के चरित्र के लिए फिट नहीं हूं, और हम सभी को रिस्क लेना पसंद है।"
फिल्म, जिसमें विक्रांत मैसी और हर्षवर्धन राणे भी हैं, एक ऐसी महिला के बारे में है, जिसका दिल कैद शब्दों की तरह जीने के लिए तरसता है, लेकिन जो खुद को अपने पति की हत्या में उलझा हुआ पाती है।
विक्रांत ने फिल्म को हास्य, विचित्रता, बदला और रोमांस का एक आदर्श मिश्रण बताया है। उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि यह दर्शकों को उतना ही आश्चर्यचकित करेगी, जितना कि पहली बार सुनकर मुझे हैरानी हुई थी। इसकी शूटिंग का एक रोमांचक अनुभव था।"
हर्षवर्धन "देश की बेहतरीन प्रतिभाओं" के साथ एक ही फ्रेम में होने के लिए सम्मानित महसूस करते हैं।
उन्होंने कहा, "तापसी और विक्रांत में एक बात समान है कि आप कभी नहीं समझ सकता है कि वे कब मजाक कर रहे है, कब गंभीर है। मुझे उनके मजाक और बहाने को समझने के लिए हमेशा छोटी छोटी बारीकियों की तलाश करनी पड़ती थी।"
'हंसी तो फंसी' के निर्देशक विनिल मैथ्यू द्वारा डायरेक्टिड फिल्म 'हसीन दिलरुबा' नेटफ्लिक्स पर रिलीज होगी।(आईएएनएस)
मुंबई, 9 जून| अभिनेत्री और 'बिग बॉस' स्टार अर्शी खान को लगता है कि रियलिटी शो में भाग लेने के लिए मशहूर हस्तियां अनावश्यक विवाद पैदा करती हैं। अर्शी ने आईएएनएस को बताया, "सेलिब्रिटीज के बीच हमेशा एक गलत धारणा होती है कि अगर वे सस्ते विवादास्पद कृत्यों में शामिल होते हैं, तो यह उन्हें बिग बॉस के घर में आसानी से प्रवेश करने के योग्य बनाता है। जब शो पास होता है, तो हमें बहुत सारी विवादास्पद खबरें पढ़ने को मिलती हैं। खुशी के बीच झगड़े के बारे में, विवाहित जोड़े, बलात्कार के मामले और बेवकूफी भरे सोशल मीडिया के बयान। यह देखना मजेदार होता है कि लोग किस तरह गिर सकते हैं।"
खान को लगता है कि 'बिग बॉस' एक बड़ा अवसर है, लेकिन दर्शक इतने स्मार्ट हैं कि वे शो में लोगों के व्यक्तित्व को समझ सकते हैं।
वह कहती हैं "ऐसे कई प्रतियोगी हैं जिन्होंने शो में भाग लिया है, लेकिन आज कहीं नहीं हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें दर्शक 'बीबी वाले' के रूप में संदर्भित करते हैं। यह जीवन भर का अवसर है और भाग लेते समय बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। दर्शकों को बेवकूफ बनाना वास्तव में आसान नहीं है।" (आईएएनएस)
मुंबई, 9 जून (आईएएनएस)| अभिनेता-कॉमेडियन सुनील ग्रोवर फिलहाल क्राइम कॉमेडी वेब सीरीज 'सनफ्लावर' की रिलीज का इंतजार कर रहे हैं। वे कहते हैं, "यह शैली बिल्कुल उच्च ड्रामा है। हम सभी को एक अच्छी मनोवैज्ञानिक थ्रिलर पसंद है। हम किनारे पर रहना पसंद करते हैं और 'सनफ्लावर' आपको अनुमान लगाने का मौका देगा कि आगे क्या हो रहा है।"
ग्रोवर कहते हैं, "यह आपको अंत तक बांधे रखेगा और यह पौष्टिक मनोरंजन है। यह एक (आवास) समाज और पागल कलाकारों के साथ एक मर्डर मिस्ट्री के बारे में है।"
उन्होंने महामारी के बीच सुरक्षा के संदेश में कहा, "चलो टीकाकरण करें और प्रोटोकॉल का पालन करें। हमें सुरक्षित रहना होगा और अपने प्रियजनों की देखभाल करनी होगी।"
'विकास बहल द्वारा निर्मित सनफ्लावर, 11 जून को रिलीज होगा।'
चेन्नई, 9 जून| तमिलनाडु में एमडीएमके नेता और सांसद वाइको के नेतृत्व में वेब सीरीज 'द फैमिली मैन 2' को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी है। इसमें मनोज बाजपेयी, प्रियामणि और सामंथा की प्रमुख भूमिका है। वाइको ने अमेजॅन प्राइम पर वेब सीरीज की स्क्रीनिंग को रोकने की मांग की है। एमडीएमके नेता ने कहा कि सीरीज के कई दृश्य तमिलों की छवि खराब करने वाली है, इसलिए इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की जरूरत है।
तमिलनाडु के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री मनो थंगराज ने 24 मई को केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर ओटीटी प्लेटफॉर्म से इस वेब सीरीज पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। हालांकि वेब सीरीज के निर्माता अमेजन प्राइम ने 4 जून से इसकी स्ट्रीमिंग शुरू कर दी है।
पत्र में, तमिलनाडु के मंत्री मनो थंगराज ने कहा था, सीरीज ने ईलम तमिलों को अत्यधिक आपत्तिजनक तरीके से चित्रित किया है और अगर इसे स्ट्रीम करने की अनुमति दी गई तो यह राज्य में सद्भाव बनाए रखने के लिए प्रतिकूल होगा।
तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय फिल्म निर्माताओं में से एक, भारती राजा ने सोमवार को एक ट्वीट में वेब सीरीज 'द फैमिली मैन 2' के निर्माताओं से इसे प्रतिबंधित करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, सीरीज के दृश्यों से पता चलता है कि इसे उन लोगों द्वारा बनाई गई है जो तमिल ईलम सेनानियों के इतिहास को नहीं जानते। मैं उस शो की निंदा करता हूं जो विद्रोह का अपमान करता है। इस समुदाय को अच्छे इरादों, वीरता से भरा हुआ और बलिदानी के रूप में जाना जाता है।
भारती राजा ने केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से भी आग्रह किया है कि वे तुरंत शो की स्ट्रीमिंग बंद कर दें।
उन्होंने अमेजॅन को यह भी चेतावनी दी थी कि यदि वे सीरीज की स्ट्रीमिंग जारी रखते हैं, तो दुनियाभर में तमिलों को अमेजॅन का समर्थन बंद करने और इससे जुड़े अन्य व्यवसायों और सेवाओं को बंद करने के लिए मजबूर किया जाएगा।
इससे पहले नाम तमिल काची (एनटीके) के नेता और अभिनेता सीमान ने सीरीज की स्ट्रीमिंग रोकने के लिए अमेजॅन प्राइम वीडियो की इंडिया ओरिजिनल्स की प्रमुख अपर्णा पुरोहित को एक पत्र जारी किया था। उन्होंने कहा, फैमिली मैन 2 वेब सीरीज को स्ट्रीम करना बंद करें, जो तमिझ बहादुर ईलम मुक्ति संघर्ष को गलत तरीके से प्रस्तुत करती है। (आईएएनएस)
मुंबई, 8 जून| अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी कुंद्रा मंगलवार को अपना बर्थडे सेलिब्रेट कर रही हैं। उन्हें उस वक्त हैरानी हुई, जब डांस रिएलिटी शो 'सुपर डांसर : चैप्टर 4' के कास्ट और क्रू ने मिलकर उन्हें सरप्राइज दिया। शिल्पा इस शो में जज हैं। शिल्पा ने आईएएनएस को बताया, "सेट पर सभी के इस प्यार को देखकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। सुपर डांसर मेरी एक्सटेंडेड फैमिली है और हमारे बीच एक अनदेखा सा बंधन है, जो हमें एक—दूसरे से जोड़कर रखता है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं पूरी टीम के साथ अपना बर्थडे सेलिब्रेट कर सकी।"
सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले इस शो पर अपने अनुभव के बारे में वह आगे कहती हैं, यही छोटे—छोटे पल हमारी जिंदगी को खास बनाती है और मैं हर दिन इनके प्रति आभार जताती हूं। (आईएएनएस)
-प्रदीप कुमार
बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार को साँस लेने में कुछ तकलीफ़ के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी तबीयत बिगड़ने की अफ़वाहें चलने लगी थीं.
लेकिन रविवार को दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानो ने एक ट्वीट के ज़रिये स्थिति स्पष्ट की. उन्होंने लिखा, "व्हॉट्सऐप पर शेयर हो रहीं अफ़वाहों पर विश्वास ना करें. साहब (दिलीप कुमार) ठीक हैं, उनकी तबीयत स्थिर है. दुआओं के लिए सभी का शुक्रिया. डॉक्टरों के मुताबिक़, वे 2-3 दिन में घर आ जायेंगे."
इससे पहले उन्होंने लिखा था कि दिलीप साहब को रुटीन चेकअप के लिए एक ग़ैर-कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया है. पिछले कई दिनों से उन्हें साँस लेने में तकलीफ़ थी. डॉक्टर उनकी देखभाल कर रहे हैं. उनके लिए प्रार्थना करिए.
दुनिया जिन्हें दिलीप कुमार के नाम से जानती है, जिनके अभिनय की मिसालें दी जाती हैं, उनकी ना तो फ़िल्मों में काम करने की दिलचस्पी थी और ना ही उन्होंने कभी सोचा था कि दुनिया कभी उनके असली नाम के बजाए किसी दूसरे नाम से याद करेगी.
दिलीप कुमार के पिता मुंबई में फलों के बड़े कारोबारी थे, लिहाजा शुरुआती दिनों से ही दिलीप कुमार को अपने पारिवारिक कारोबार में शामिल होना पड़ा. तब दिलीप कुमार कारोबारी मोहम्मद सरवर ख़ान के बेटे यूसुफ़ सरवन ख़ान हुआ करते थे.
एक दिन किसी बात पर पिता से कहा सुनी हो गई तो दिलीप कुमार पुणे चले गए, अपने पांव पर खड़े होने के लिए. अंग्रेजी जानने के चलते उन्हें पुणे के ब्रिटिश आर्मी के कैंटीन में असिस्टेंट की नौकरी मिल गई.
वहीं, उन्होंने अपना सैंडविच काउंटर खोला जो अंग्रेज सैनिकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हो गया था, लेकिन इसी कैंटीन में एक दिन एक आयोजन में भारत की आज़ादी की लड़ाई का समर्थन करने के चलते उन्हें गिरफ़्तार होना पड़ा और उनका काम बंद हो गया.
अपने इन अनुभवों का जिक्र दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा 'द सबस्टैंस एंड द शैडो' में बखूबी किया है.
यूसुफ़ ख़ान फिर से बंबई (अब मुंबई) लौट आए और पिता के काम में हाथ बटाने लगे. उन्होंने तकिए बेचने का काम भी शुरू किया लेकिन जो कामयाब नहीं हुआ.
पिता ने नैनीताल जाकर सेव का बगीचा ख़रीदने का काम सौंपा तो यूसुफ़ महज एक रुपये की अग्रिम भुगतान पर समझौता कर आए. हालांकि इसमें बगीचे के मालिक की भूमिका ज़्यादा थी लेकिन यूसुफ़ को पिता की शाबाशी ख़ूब मिली.
ऐसे ही कारोबारी दिनों में आमदनी बढ़ाने के लिए ब्रिटिश आर्मी कैंट में लकड़ी से बनी कॉट सप्लाई करने का काम पाने के लिए यूसुफ़ ख़ान को एक दिन दादर जाना था.
वे चर्चगेट स्टेशन पर लोकल ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे तब उन्हें वहां जान पहचान वाले साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर मसानी मिल गए. डॉक्टर मसानी 'बॉम्बे टॉकीज' की मालकिन देविका रानी से मिलने जा रहे थे.
उन्होंने यूसुफ़ ख़ान से कहा कि चलो क्या पता, तुम्हें वहां कोई काम मिल जाए. पहले तो यूसुफ़ ख़ान ने मना कर दिया लेकिन किसी मूवी स्टुडियो में पहली बार जाने के आकर्षण के चलते वह तैयार हो गए.
देविका रानी ने दिखाया था भरोसा
उन्हें क्या मालूम था कि उनकी किस्मत बदलने वाली है. बॉम्बे टॉकीज़ उस दौर की सबसे कामयाब फ़िल्म प्रॉडक्शन हाउस थी. उसकी मालकिन देविका रानी फ़िल्म स्टार होने के साथ साथ अत्याधुनिक और दूरदर्शी महिला थीं.
दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा 'द सबस्टैंस एंड द शैडो' में लिखा है कि जब वे लोग उनके केबिन में पहुंचे तब उन्हें देविका रानी गरिमामयी महिला लगीं. डॉक्टर मसानी ने दिलीप कुमार का परिचय कराते हुए देविका रानी से उनके लिए काम की बात की.
देविका रानी ने दिलीप कुमार से पूछा कि क्या उन्हें उर्दू आती है? दिलीप कुमार हां में जवाब देते उससे पहले ही डॉक्टर मसानी देविका रानी को पेशावर से मुंबई पहुंचे उनके परिवार और फलों के कारोबार के बारे में बताने लगे.
इसके बाद देविका रानी ने दिलीप कुमार से पूछा कि क्या तुम एक्टर बनोगे? इस सवाल के साथ साथ देविका रानी ने उन्हें 1250 रुपये मासिक की नौकरी ऑफ़र कर दी. डॉक्टरी मसानी ने दिलीप कुमार को इसे स्वीकार कर लेने का इशारा किया.
तब देविका रानी ने दिलीप कुमार से पूछा था कि तुम फलों के कारोबार के बारे में कितना जानते हो, दिलीप कुमार का जवाब था, "जी, मैं सीख रहा हूं."
देविका रानी ने तब दिलीप कुमार को कहा कि जब तुम फलों के कारोबार और फलों को खेती के बारे में सीख रहे हो तो फ़िल्म मेकिंग और अभिनय भी सीख लोगे.
साथ ही उन्होंने यह भी कहा, "मुझे एक युवा, गुड लुकिंग और पढ़े लिखे एक्टर की ज़रूरत है. मुझे तुममें एक अच्छा एक्टर बनने की योग्यता दिख रही है."
साल 1943 में 1250 रूपये की रकम कितनी बड़ी होती थी, इसका अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि दिलीप कुमार को यह सालाना ऑफ़र लगा, उन्होंने डॉक्टर मसानी से इसे दोबारा कंफर्म करने को कहा और जब मसानी ने उन्हें देविका रानी से कंफर्म करके बताया कि यह 1250 रुपये मासिक ही है तब जाकर दिलीप कुमार को यक़ीन हुआ और वे इस ऑफ़र को स्वीकार करके बॉम्बे टॉकीज़ के अभिनेता बन गए.
बॉम्बे टॉकीज़ में शशिधर मुखर्जी और अशोक कुमार के अलावा दूसरे नामचीन लोगों के अभिनय की बारीकियां सीखने लगे. इसके लिए उन्हें प्रतिदिन दस बजे सुबह से छह बजे तक स्टुडियो में होना होता था.
एक सुबह जब वे स्टुडियो पहुंचे तो उन्हें संदेशा मिला कि देविका रानी ने उन्हें अपने केबिन में बुलाया है.
इस मुलाकात के बारे में दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, "उन्होंने अपनी शानदार अंग्रेजी में कहा- यूसुफ़ मैं तुम्हें जल्द से जल्द एक्टर के तौर पर लॉन्च करना चाहती हूं. ऐसे में यह विचार बुरा नहीं है कि तुम्हारा एक स्क्रीन नेम हो."
"ऐसा नाम जिससे दुनिया तुम्हें जानेगी और ऑडियंस तुम्हारी रोमांटिक इमेज को उससे जोड़कर देखेगी. मेरे ख़याल से दिलीप कुमार एक अच्छा नाम है. जब मैं तुम्हारे नाम के बारे में सोच रही थी तो ये नाम अचानक मेरे दिमाग़ में आया. तुम्हें यह नाम कैसा लग रहा है?"
नाम दिलीप कुमार रखने का प्रस्ताव
दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि यह सुनकर उनकी बोलती बंद हो गई थी और वे नई पहचान के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. फिर भी उन्होंने देविका रानी को कहा कि ये नाम तो बहुत अच्छा है लेकिन क्या ऐसा करना वाक़ई ज़रूरी है?
देविका रानी ने मुस्कुराते हुए दिलीप कुमार से कहा कि ऐसा करना बुद्धिमानी भरा होगा. देविका रानी ने दिलीप कुमार से कहा, "काफ़ी सोच विचारकर इस नतीजे पर पहुंची हूं कि तुम्हारा स्क्रीन नेम होना चाहिए."
दिलीप कुमार ने यह भी लिखा है कि देविका रानी ने कहा कि वह फ़िल्मों में मेरा लंबा और कामयाब करियर देख पा रही हैं, ऐसे में स्क्रीन नेम अच्छा रहेगा और इसमें एक सेक्युलर अपील भी होगी.
हालांकि ये भारत की आज़ादी से पहले का दौर था और उस वक्त हिंदू और मुस्लिम को लेकर समाज में बहुत कटुता की स्थिति नहीं थी, हालांकि कुछ सालों के भीतर ही भारत और पाकिस्तान के बीच हिंदू और मुसलमान के नाम पर बंटवारा हो गया.
लेकिन देविका रानी को बाज़ार की समझ थी, उन्हें मालूम था कि किसी ब्रैंड के लिए दोनों समाज के लोगों की बीच स्वीकार्यता की स्थिति ही आदर्श स्थिति होगी. हालांकि ऐसा नहीं था केवल मुस्लिम कलाकारों को अपना नाम बदलना पड़ा रहा था और स्क्रीन नेम रखना पड़ रहा था.
दिलीप कुमार से पहले देविका रानी अपने पति हिमांशु राय के साथ मिलकर कुमुदलाल गांगुली को 1936 में 'अछूत कन्या' फ़िल्म से अशोक कुमार के तौर पर स्थापित कर चुकी थीं.
भारतीय सिनेमा के पहले कुमार थे अशोक कुमार
साल 1943 में अशोक कुमार की फ़िल्म 'किस्मत' सुपर डुपर हिट हुई थी. इस फ़िल्म की कामयाबी ने अशोक कुमार को देखते ही देखते सुपरस्टार बना दिया था. अशोक कुमार भारतीय सिनेमा के पहले कुमार थे.
ऐसे में बहुत संभव है कि 'किस्मत' फ़िल्म से होने वाली कमाई को देखते हुए यूसुफ़ के लिए स्क्रीन नेम का ध्यान आते वक्त देविका रानी के दिमाग़ में कुमार सरनेम रजिस्टर हुआ हो.
हालांकि ये बात तब दिलीप कुमार को मालूम नहीं थी, ये बात और थी कि वे हर दिन अशोक कुमार के साथ घंटों बिता रहे थे और उन्हें अशोक भैया कह कर बुलाते थे.
यूसुफ़ ख़ान के तौर पर वे देविका रानी के तर्कों से सहमत तो हो गए लेकिन उन्होंने इस पर विचार करने का वक़्त मांगा. देविका रानी ने कहा कि ठीक है, विचार करके बताओ, लेकिन जल्दी बताना.
देविका रानी के केबिन से निकल कर वे स्टूडियो में काम करने लगे लेकिन उनके दिमाग़ पर दिलीप कुमार का नाम चल रहा था. ऐसे में शशिधर मुखर्जी ने उनसे पूछ लिया कि किस सोच विचार में डूबे हो.
तब दिलीप कुमार ने देविका रानी से हुई बातचीत के बारे में उन्हें बताया. एक मिनट के लिए ठहर कर शशिधर मुखर्जी जो उनसे कहा, उसका जिक्र दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में किया है.
उन्होंने कहा, "मेरे ख़्याल से देविका ठीक कह रही है. उन्होंने जो नाम सुझाया है उसे स्वीकार करना तुम्हारे फ़ायदे की बात है. यह बहुत ही अच्छा नाम है. ये बात दूसरी है कि मैं तुम्हें युसूफ़ के नाम ही जानता रहूंगा."
इस सलाह के बाद यूसुफ़ ख़ान ने दिलीप कुमार के स्क्रीननेम को स्वीकार कर लिया और अमिय चक्रवर्ती के निर्देशन में 'ज्वार भाटा' की शूटिंग शुरू हो गई.
'ज्वार भाटा' से हुई शुरुआत
साल 1944 में प्रदर्शित इस फ़िल्म के साथ ही भारतीय फ़िल्म इतिहास को दिलीप कुमार मिले. पहली फ़िल्म नहीं चली.
पेंगुइन प्रकाशन से प्रकाशित बॉलीवुड टॉप 20 सुपरस्टार ऑफ़ इंडियन सिनेमा किताब के लिए दिलीप कुमार पर लिखे लेख में वरिष्ठ फ़िल्म पत्रकार रऊफ़ अहमद ने लिखा है कि ज्वार भाटा की रिलीज़ पर उस वक्त हिंदी फ़िल्मों पर नज़र रखने वाली प्रमुख पत्रिका 'फ़िल्म इंडिया' के संपादक बाबूराव पटेल ने लिखा, "फ़िल्म में लगता है किसी मरियल और भूखे दिखने वाले शख़्स को हीरो बना दिया गया है."
लेकिन लाहौर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका सिने हेराल्ड में पत्रिका के संपादक बीआर चोपड़ा (जो बाद में मशहूर फ़िल्मकार बने) ने दिलीप कुमार की अभिनय क्षमता को भांप लिया था.
उन्होंने अपनी पत्रिका में इस फ़िल्म के बारे में लिखा कि दिलीप कुमार ने जिस तरह से इस फ़िल्म में डॉयलॉग डिलेवरी की है, वह उन्हें दूसरे अभिनेताओं से अलग करता है.
पहली फ़िल्म भले नहीं चली लेकिन देविका रानी के अनुमान के मुताबिक ही दिलीप कुमार का सितारा बुलंदियों पर पहुंचकर रोशन होता रहा और कुमार सरनेम का ऐसा जादू चला कि देखते देखते भारतीय फ़िल्म जगत में कई कुमार सामने आ गए.
दिलीप कुमार को लेकर जो सेक्युलर भाव का सपना देविका रानी ने देखा था, वह कितना वास्तविक था और दिलीप कुमार अपने अभिनय से किस तरह से सेक्युलर भाव का चेहरा बने इसे 'गोपी' फिल्म में मोहम्मद रफी के गाए भजन 'सुख के सब साथी, दुख में ना कोई, मेरे राम, मेरे राम, तेरा नाम एक सांचा दूजा ना कोई' में अभिनय करते हुए उन्हें देखकर बखूबी होता है.
दिलीप कुमार ने जिन 60 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया उसमें महज 'मुगल-ए-आज़म' में वे मुस्लिम क़िरदार में नज़र आए.
वैसे फ़िल्म दुनिया का सच यह रहा है कि बहुत सारे अभिनेताओं ने स्क्रीन नेम अपना कर कामयाबी हासिल की है. इसमें मुसलमान और हिंदू दोनों कलाकार शामिल हैं और इसकी सूची बेहद लंबी है.
स्क्रीननेम का लंबा इतिहास
ऋषि कपूर ने अपनी किताब 'खुल्लम खुल्ला' में बताया है कि उनके पिता राज कपूर का असली नाम सृष्टि नाथ कपूर था. हालांकि बाद में वह बदलकर रणबीर राज कपूर हो गया और सिनेमाई स्क्रीन पर वह राजकूपर के तौर पर नज़र आए.
उनके अलावा उनके छोटे भाइयों शम्मी कपूर (असली नाम शमेशर राज कपूर) और शशि कपूर (असली नाम बलबीर राज कपूर) स्क्रीननेम के साथ सुपर हिट हुए.
दिलीप-राज-देव की त्रिमूर्ति में शामिल देव आनंद का असली नाम धर्मदेव पिशोरीमल आनंद था. वहीं गुरुदत्त का असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोणे था.
अशोक कुमार के अलावा उनके छोटे भाई किशोर कुमार (असली नाम आभाष कुमार गांगुली), सुनील दत्त (असली नाम बलराज दत्त), राज कुमार (असली नाम कुलभूषण पंडित), राजेद्र कुमार (असली नाम राजेंद्र तुली), मनोज कुमार (असली नाम हरेकृष्ण गोस्वामी), धर्मेंद्र (असली नाम धरम सिंह देओल), जीतेंद्र (असली नाम रवि कपूर), संजीव कुमार (असली नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला) और राजेश खन्ना (असली नाम जतिन खन्ना) जैसे नामचीन स्टारों में भी स्क्रीननेम का चलन दिखा.
इसके बाद मिथुन चक्रवर्ती (असली नाम गोरांगो चक्रवर्ती), डैनी (असली नाम तेशरिंग फिन्सतो डेंजोंग्पा), नाना पाटेकर (असली नाम विश्वनाथ पाटेकर), सन्नी देओल (असली नाम अजय सिंह देओल), बॉबी देओल (असली नाम विशाल सिंह देओल), अजय देवगण (असली नाम विशाल देवगण) और अक्षय कुमार (असली नाम राजीव भाटिया) जैसे स्टार भी स्क्रीननेम से मशहूर हुए हैं.
हालांकि इस दौरान कुछ मुस्लिम कलाकारों ने भी हिंदू नाम अपनाए हैं. दिलीप कुमार इनमें सबसे मशहूर रहे हैं. मीना कुमारी का वास्तविक नाम महजबीं बानो था जबकि मधुबाला का वास्तविक नाम मुमताज जहां देहलवी था.
विलेन की भूमिका के लिए मशहूर रहे अजीत का असली नाम हामिद अली ख़ान हुआ करते था, उन्होंने इसी नाम से फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत बतौर नायक की थी, हालांकि बाद में उन्होंने स्क्रीन नेम अजीत रखा. मशहूर कॉमेडियन जॉनी वाकर का नाम बदरुद्दीन जमाल काज़ी था जबकि जगदीप का सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफ़री था.
रजनीकांत का वास्तविक नाम भी शिवाजी राव गायकवाड़ है, तो ऐसा नहीं है कि केवल मुस्लिम कलाकारों ने हिंदु नामों को अपनाया है. स्क्रीन नेम रखने का चलन फ़िल्मी दुनिया में हमेशा से रहा है. कुछ स्टारडम और कुछ नामों को स्टाइलिश और आधुनिक बनाने की चाहत से यह होता रहा है. (bbc.com)
मुंबई, 7 जून | बॉलीवुड स्टार अजय देवगन ने 19 साल पहले अपनी फिल्म 'द लीजेंड ऑफ भगत सिंह' की रिलीज का जश्न मनाने के लिए सोमवार को एक इंस्टाग्राम नोट पोस्ट किया। फिल्म 7 जून 2002 को सिनेमाघरों में आई।
अजय ने एक तस्वीर जिसमें उन्हें शहीद भगत सिंह के रूप में दिखाया गया है, उसके साथ लिखा, "अपने जीवनकाल और करियर में एक बार भगत सिंहजी जैसे क्रांतिकारी की भूमिका निभाना पर्याप्त नहीं है। आपको उन्हें लगातार वहां रखने की आवश्यकता है .. आखिरकार, ये वही हैं जिन्होंने अपने (खून) से इतिहास लिखा है। हैशटैग 19इयर्सऑफदलीजेंडऑफभगतसिंह हैशटैग राजकुमारसंतोष। "
अजय ने अपनी अभिनीत भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, जबकि राजकुमार संतोषी निर्देशित फिल्म को हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के रूप में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
ऐतिहासिक नाटक में सुशांत सिंह को सुखदेव के रूप में, डी. संतोष को राजगुरु के रूप में और अखिलेंद्र मिश्रा को चंद्रशेखर आजाद के रूप में, राज बब्बर और अमृता राव को भी दिखाया गया था।
अजय की आगामी परियोजनाएं 'मैदान', 'भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया', 'आरआरआर' और उनकी निर्देशित फिल्म 'मेयडे' हैं, और वह 'सूर्यवंशी' और 'गंगूबाई काठियावाड़ी' में भी दिखाई देंगे।(आईएएनएस)
-वंदना
बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार को साँस लेने में कुछ तकलीफ़ के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी तबीयत बिगड़ने की अफ़वाहें चलने लगी थीं.
लेकिन रविवार को दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानो ने एक ट्वीट के ज़रिये स्थिति स्पष्ट की. उन्होंने लिखा, "व्हॉट्सऐप पर शेयर हो रहीं अफ़वाहों पर विश्वास ना करें. साहब (दिलीप कुमार) ठीक हैं, उनकी तबीयत स्थिर है. दुआओं के लिए सभी का शुक्रिया. डॉक्टरों के मुताबिक़, वे 2-3 दिन में घर आ जायेंगे."
इससे पहले उन्होंने लिखा था कि दिलीप साहब को रुटीन चेकअप के लिए एक ग़ैर-कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया है. पिछले कई दिनों से उन्हें साँस लेने में तकलीफ़ थी. डॉक्टर उनकी देखभाल कर रहे हैं. उनके लिए प्रार्थना करिये.
बतौर अभिनेता तो दिलीप कुमार से जुड़े क़िस्सों और घटनाओं की भरमार है, लेकिन एक्टिंग से परे भी उनकी ज़िंदगी से जुड़े कई दिलचस्प क़िस्से हैं.
40 के दशक में फ़िल्मों में आने से पहले दिलीप कुमार पैसा कमाने का ज़रिया ढूँढ रहे थे.
एक बार वो घर पर झगड़ा कर बॉम्बे से भागकर पुणे चले गए और ब्रिटिश आर्मी कैंटिन में काम करने लगे. कैंटिन में उनके बनाये सैंडविच काफ़ी मशहूर थे.
ये आज़ादी से पहले का दौर था और देश में अंग्रेज़ों का राज था. दिलीप कुमार ने पुणे में एक दिन स्पीच दे डाली कि आज़ादी के लिए भारत की लड़ाई एकदम जायज़ है और ब्रितानी शासक ग़लत हैं.
अपनी क़िताब 'दिलीप कुमार - द सब्सटांस एंड द शैडो' में दिलीप कुमार लिखते हैं, "फिर क्या था, ब्रिटेन विरोधी भाषण के लिए मुझे येरवाड़ा जेल भेज दिया गया जहाँ कई सत्याग्रही बंद थे."
"तब सत्याग्रहियों को गांधीवाले कहा जाता था. दूसरे क़ैदियों के समर्थन में मैं भी भूख हड़ताल पर बैठ गया. सुबह मेरे पहचान के एक मेजर आये तो मैं जेल से छूटा. मैं भी गांधीवाला बन गया था."
जब हेलेन के गाने पर करते थे डांस
वैसे तो दिलीप कुमार को ट्रैजेडी किंग कहा जाता है, लेकिन असली ज़िंदगी में वो अच्छे ख़ासे प्रैंक्सटर (शरारती इंसान) रहे हैं.
उनकी ऑटोबायोग्राफ़ी के फ़ॉरवर्ड में सायरा बानो लिखती हैं, "साहब कभी-कभी हेलेन के गाने 'मोनिका ओ माई डार्लिंग' पर उनकी हूबहू नकल करके डांस करते हैं... वैसे ही कपड़े पहनकर, वैसी ही अदाएँ, मैं तो हैरान रह गई थी."
"वो कथक डांसर गोपी कृष्ण की भी नकल किया करते थे- वही मुश्किल नृत्य. एक बार तो सितारा देवी और गोपी जी भी उस समय मौजूद थे और वो लोग ख़ूब हँसे थे."
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सिट्टी पिट्टी ग़ुम
वैसे अपने लड़कपन में दिलीप कुमार ख़ासे शर्मीले थे. उन दिनों दिलीप कुमार और राज कपूर, दोनों बॉम्बे में खालसा कॉलेज में पढ़ते थे.
दिलीप कुमार लिखते हैं कि राज कपूर दिखने में ख़ूबसूरत थे, कॉलेज में काफ़ी मशहूर थे, ख़ासकर लड़कियों में जबकि ख़ुद को वो औसत और शर्मीला मानते थे.
एक किस्से का ज़िक्र दिलीप कुमार ने यूँ किया है कि "राज कपूर ने ठान ली थी कि वो मेरा शर्मीलापन दूर करके रहेंगे. एक बार वो मुझे कोलाबा में सैर करने के बहाने ले गए. हमने टाँगे की सवारी की. अचानक राज ने टाँगेवाले को रोका. वहाँ दो पारसी लड़कियाँ खडी थी."
"राज ने उनसे गुजराती में बातें की और कहा कि क्या हम आपको कहीं छोड़ सकते हैं. वो लड़कियाँ टाँगे पर चढ़ गईं. मेरी तो साँसे थमीं हुई थीं."
"राज और वो लड़कियाँ हँस-हँसकर बातें कर रहे थे. एक लड़की मेरे बगल में बैठ गई. मेरी तो सिट्टी पिट्टी ग़ुम थी. दरअसल ये राज का तरीका था कि कैसे मैं औरतों के सामने असहज महसूस करना बंद करूं. ऐसे और भी कई किस्से हैं, लेकिन राज कभी अभद्रता नहीं करते थे. वो बस शैतान थे."
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सूट, टाई और किताबों के शौकीन
फ़िल्मी दुनिया से अलग दिलीप कुमार को किताबों का बहुत शौक रहा है. उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी साहित्य से उनकी लाइब्रेरी भरी पड़ी है. क़ुरान और गीता, दोनों से वे वाकिफ़ हैं.
यूँ तो वे सूती के सादे कुर्ते में रहते है, लेकिन वे बेहतरीन टाई, सूट और स्टाइलिश जूतों के भी शौकीन रहे हैं.
कपड़ों को लेकर उनका पंसदीदा जुमला है- 'वाइट इज़ वाइट' और 'ऑफ़ वाइट इज़ ऑफ वाइट'.
उनके कपड़ों को रंगों के हिसाब से अलग-अलग बहुत करीने से संभाल कर रखना होता था.
जब शादी में घुटनों के बल पहुँचे राज
राज कपूर अकसर मीडिया इंटरव्यू में कहा करते थे कि अगर कभी दिलीप शादी करेंगे तो वो घुटनों के बल उनके घर जाएँगे.
जब असल में दिलीप कुमार का निकाह हुआ तो अपना वादा निभाते हुए राज कपूर वाकई घुटनों के बल दिलीप कुमार के घर गए थे.
शादी में घोड़ी लेकर आने वालों में थे पृथ्वीराज कपूर, शशि कपूर और नासिर (दिलीप कुमार के भाई).
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नेहरू और दिलीप
पंडित जवाहरलाल नेहरू को दिलीप कुमार अपना आर्दश मानते हैं.
1962 में नेहरू के कहने पर उन्होंने नॉर्थ बॉम्बे से वीके कृष्णा मेनन के लिए चुनाव अभियान भी में हिस्सा लिया था.
1979 में वे बॉम्बे के शेरिफ़ बने और 2000 से 2006 के बीच राज्य सभा सदस्य भी. (bbc.com)
पटना/मुंबई, 7 जून | मिनरल वाटर के कंसेप्ट पर बना म्यूजिक वीडियो लोगों को खूब भा रहा है। लीक से हटकर गीत बनाने वाले गायक, गीतकार जैस टाक की 'मिनरल वाटर' गाने को अब तक 1.5 करोड से अधिक लोग देख चुके हैं।
वी म्यूजिक के ऑफिशियल यूट्यूब चैनल पर रिलीज हुए इस शानदार म्यूजिक वीडियो एक प्रेम कहानी है। इस गाने में यह बताने की कोशिश की गई है कि एक प्यार करने वाला लड़का अपनी मोहब्बत के बारे में क्या महसूस करता है।
गाने में यह कहने की कोशिश की गई है कि प्रेमी यह सोचता है कि उसकी प्रेमिका मिनरल वाटर जैसी है।
जैस ने इसे अपनी विशेष शैली में गाया है जो युवकों को बहुत ही पसन्द आ रहा है। गाने को एक स्टोरी लाइन की तरह शूट किया गया है जिसमें डांस और कैमरे का कमाल स्पष्ट रूप से नजर आता है।
जैस कहते हैं, '' आम आदमी जब प्यार में होते हैं, तो उनकी भावनाएं क्या होती हैं, इन्हीं जज्बात और एहसास को मैं पेश किया हूं। मिनरल वाटर सांग उसी एहसास को दर्शा रहा है और यही वजह है कि लोग इस गाने से तुरन्त कनेक्ट कर पा रहे हैं।''
गाने के संगीतकार पीयूष रंजन का कहना है कि '' यह समझना सबसे महत्वपूर्ण होता है कि युवा पीढ़ी क्या पसंद करती है, शार्ट वीडियो प्लेटफॉर्म के इस दौर में अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कराना बहुत ही अहम है।'' (आईएएनएस)
मुंबई, 7 जून| यहां के हिंदुजा अस्पताल में रविवार सुबह भर्ती कराए गए बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार की हालत स्थिर है। उनके आधिकारिक ट्विटर पेज पर एक पोस्ट में कहा गया है कि दिग्गज अभिनेता दो से तीन दिनों में घर चले जाएंगे।
एक ट्वीट में लिखा है, व्हाट्सएप फॉरवर्ड पर विश्वास न करें। साब की तहत स्थिर है। दिल से दुआओं और प्रार्थनाओं के लिए धन्यवाद। डॉक्टरों के अनुसार, उन्हें 2-3 दिनों में घर चले जाना चाहिए। इंशाअल्लाह। .
अभिनेता को सांस फूलने की शिकायत के बाद ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है।
रविवार को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर पहले किए गए एक ट्वीट में कहा गया था : दिलीप साहब को नियमित जांच और जांच के लिए गैर-कोविड पीडी हिंदुजा अस्पताल खार में भर्ती कराया गया है। उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई है। डॉ. नितिन के नेतृत्व में स्वास्थ्यकर्मियों की एक टीम गोखले उनकी देखभाल कर रहे हैं। कृपया साहब को अपनी प्रार्थनाओं में रखें और कृपया सुरक्षित रहें।
98 वर्षीय अभिनेता को पिछले महीने भी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि, उन्हें दो दिनों के बाद चार्ज कर दिया गया था। (आईएएनएस)