रायपुर

मानसिक खुशहाली से बढक़र कोई दौलत नहीं-राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी
22-Sep-2022 1:07 PM
मानसिक खुशहाली से बढक़र कोई दौलत नहीं-राष्ट्रसंत श्री ललितप्रभ जी

रायपुर, 22 सितंबर। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ जी महाराज ने कहा कि मानसिक खुशहाली से बढक़र जीवन की कोई दौलत नहीं होती है। मन की शांति से ही स्वर्ग के रास्ते खुलते हैं। मन में शांति है तो थोड़े से साधन भी सुख दे देते हैं, नहीं तो ढेर सारे साधन भी इकठ्ठे कर लो पर उससे कुछ होने वाला नहीं है।

उन्होंने कहा कि जिसका मन शांत है उसे एक या दो घंटे की नहीं पूरे 24 घंटे की सामायिक का लाभ मिल जाता है क्योंकि शांति में जहाँ एक तरफ बह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवों का वास होता है वहीं दूसरी तरफ महावीर का मौन और मीरा की मस्ती भी छिपी रहती है।

उन्होंने कहा कि कुछ लोग शांति पाने के लिए तीर्थ जाते हैं तो कुछ लोग गुटखा, शराब और तंबाकू जैसे नशे में डूब जाते हैं। इससे कुछ घंटे तो शांति मिल सकती है, पर सदाबहार शांति पाने के लिए व्यक्ति को हर हाल में खुश रहना सीखना होगा।

संत प्रवर मंगलवार को धर्म शांति सेवा ट्रस्ट द्वारा आम्रपाली स्थित शांति विजय गुरु मंदिर में आयोजित प्रवचन सभा के समापन पर श्रद्धालु भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति आज शरीर से कम दिमाग से ज्यादा बीमार है । चिंता और तनाव आज की सबसे बड़ी बीमारियाँ है।

बाहर से मुस्कुराता हुआ दिखाई देेने वाला इंसान भीतर में हजारों तरह की चिंताएँ पाले बैठा है। मकड़ी के जाले से भी ज्यादा उलझने इंसान के दिमाग में है। अगर पूजा-प्रार्थना-इबादत और धर्म-आराधना करते हुए व्यक्ति के दिमाग का ई.सी.जी. किया जाए तो पता चलेगा कि वह अंदर ही अंदर कहाँ भटक रहा है।

शांति के दो दुश्मन:गुस्सा और चिंता-गुस्से और चिंता को मानसिक शांति के दुश्मन बताते हुए संतश्री ने कहा कि गुस्से से दिमाग में स्क्रेच आ जाते हैं।
सोचने, बोलने और निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है, व्यक्ति सांड सरीखा बन जाता है। एक बार गुस्सा करने से व्यक्ति की दस हजार ज्ञान कोशिकाएं जलकर नष्ट हो जाती है, मेमोरी पॉवर कमजोर हो जाता है और बी.पी. व हार्ट अटैक की संभावना बीस गुना बढ़ जाती है। इसलिए व्यक्ति गुस्सा, चिंता और तनाव करना बंद करे ऐसा करने से उसकी सारी दवाईयाँ अपने आप बंद हो जाएगी। हम गुस्सा करने की बजाय अपनी बात प्रेम से कहें। अगर घर के दादा दादागिरी करना छोड़ दे तो वे कुलदेवता की तरह पूज्य बन जाएंगे।

चिंता है आत्मघातक रोग-चिंता को आत्मघातक रोग बताते हुए संतश्री ने कहा कि चिंता करना तो खुद पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा है। व्यक्ति बचपन से लेकर पचपन तक या तो अतीत की चिंता करता है या फिर आने वाले कल की। उन्होंने कहा कि बीत गई सो बात गई तकदीर का शिकवा कौन करे जो तीर कमां से निकल गया उस तीर का पीछा कौन करे। व्यक्ति चिंता करने की बजाय कल का इंतजाम और आज का चिंतन करे।

हर होनी का स्वागत करें- चिंतामुक्त जीवन जाीने का पहला मंत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि जीवन में जो भी हो, जैसा भी हो हर होनी का स्वागत करें। चाहे राजा का अंगूठा कट जाए या मंत्री को जेल में जाने पड़े विश्वास रखें, इसमें भी प्रभु की ओर से कोई न कोई भलाई छिपी होती है। जब वह चोंच के साथ चुग्गा देता है और बच्चे को जन्म देने से पहले माँ के आँचल को दूध से भर देता है फि र  हम किस बात की चिंता करें। व्यक्ति चिंता की चिता जलाए और चेतना को जगाए।

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