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शेरनी के बाद अब कौन सा किरदार चाहती हैं विद्या बालन?
01-Jul-2021 7:47 AM
शेरनी के बाद अब कौन सा किरदार चाहती हैं विद्या बालन?

-सुप्रिया सोगले

विद्या बालन का ज़िक्र होता है तो ज़ेहन में साड़ी में सजी इस अभिनेत्री की 'परिणीता', 'कहानी', 'द डर्टी पिक्चर', 'मिशन मंगल' और 'शकुंतला देवी' जैसी तमाम महिला प्रधान फ़िल्में आती हैं जिसमें उन्होंने अपनी बेहतरीन अदाकारी से एक ऐसी गहरी छाप छोड़ी है जिसने उन्हें लीक से हटकर अभिनेत्री का दर्जा दिया. हर बार उनकी फ़िल्मों ने कामयाबी की एक नई मिसाल बनाई है.

क़रीब दो दशकों से फ़िल्मों में अलग अलग किरदार निभाने वाली विद्या बालन कहती हैं कि वे वही कहानी और किरदार का रोल निभाती हैं जो उन्हें सम्मोहक लगता है और जिसे वो ना नहीं कह सकें. उन्हें महिला प्रधान फ़िल्मों का हिस्सा बनने में कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि उन्हें फ़िल्म का 'हीरो' बनना पसंद है.

'परिणीता' से हिंदी फ़िल्मों की शुरुआत
विद्या बालन ने 90 के दशक में मशहूर कॉमेडी धारावाहिक 'हम पांच' में कान से कच्ची राधिका के किरदार से अपना अभिनय शुरू किया.

माता-पिता के कहने पर उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने अभिनय से कुछ वक़्त के लिए विराम लिया. पढ़ाई ख़त्म होते ही विद्या ने फ़िल्मों में अभिनय की तरफ़ रुख़ किया.

दक्षिण भारतीय और बंगाली सिनेमा में काम करने के बाद प्रदीप सरकार की फ़िल्म परिणीता से हिंदी फ़िल्मों का सफ़र शुरू किया.

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के परिणीता उपन्यास पर आधारित 2005 की इस फ़िल्म में विद्या बालन, संजय दत्त और सैफ़ अली खान के साथ नज़र आईं. फ़िल्म ने समीक्षकों और दर्शकों से बहुत वाह-वाही बटोरी और विद्या ने डेब्यू अवार्ड भी जीते.

'डर्टी पिक्चर' का बड़ा पड़ाव
परिणीता फ़िल्म की सफलता के बाद विद्या बालन कई बड़ी फ़िल्मों का हिस्सा रहीं. इन फ़िल्मों में 'भूल भुलैया' में भूतिया किरदार, अमिताभ बच्चन की बहुचर्चित फ़िल्म 'पा' में डॉक्टर का किरदार, विशाल भारद्वाज की फ़िल्म 'इश्क़िया' में कृष्णा का किरदार, लगे रहो मुन्ना भाई में जाह्नवी का किरदार.

2011 में विद्या बालन की दो फ़िल्में आई. 'नो वन किल्ड जेसिका', जिसमें उनके अभिनय की बहुत प्रसंशा हुई. साल के अंत में सिल्क स्मिता की ज़िन्दगी पर आधारित फ़िल्म 'डर्टी पिक्चर' आई जिसने बॉक्स ऑफिस के रिकॉर्ड तोड़े और विद्या बालन को फ़िल्म इंडस्ट्री में नया मुकाम दिया. 'डर्टी पिक्चर' ने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिलाया.

'डर्टी पिक्चर' फ़िल्म के निर्देशक मिलन लुथरिया ने इसे बनाने की वजह साझा करते हुए कहा, "मैं भावनात्मक रूप से इसकी कहानी से जुड़ा हुआ था. मैं महिला प्रधान फ़िल्म बनाना चाहता था क्योंकि मैं परेशान हो गया था कि सब मुझसे ये सवाल पूछते थे की मैं सिर्फ़ पुरुष प्रधान फ़िल्में ही बनाता हूँ."

वे कहते हैं, "कोई ये कहानी बनाना नहीं चाहता था. लोग कहते थे फ़िल्म का टाइटल बुरा है, फ़िल्म की कास्टिंग बुरी है, ये अश्लील फ़िल्म है. इस फ़िल्म के लिए किसी ने हमें प्रोत्साहित नहीं किया. सबने कहा मत बनाओ ये फ़िल्म. हमने फिर भी बनाई, जिसपर मुझे बहुत गर्व है और अंत में फ़िल्म को तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिले."

मिलन लुथरिया को ख़ुशी है कि 'डर्टी पिक्चर' फ़िल्म की वजह से विद्या बालन उनके जीवन में आई. उनका मानना है की विद्या बालन महान कलाकार हैं फिर चाहे वो बायोपिक फ़िल्मों में हों या काल्पनिक फ़िल्मों में.

'डर्टी पिक्चर' में विद्या बालन की अदाकारी पर फ़िल्म इतिहासकार एस एम एम औसजा कहते हैं, "डर्टी पिक्चर में उनका बेहतरीन अभिनय रहा.. बहुत ही मुश्किल किरदार था, इतना जटिल और निडर किरदार निभाना मुश्किल है. किसी भी शीर्ष अभिनेत्री के लिए ये किरदार निभाना आसान नहीं होता. विद्या ने जो किया वो असामान्य अदाकारी थी."

'कहानी'
'डर्टी पिक्चर' फ़िल्म के चंद महीने बाद 2012 में विद्या बालन की सुजॉय घोष निर्देशित फ़िल्म 'कहानी' आई. फ़िल्म बहुत सफल हुई. दोनों फ़िल्मों ने 70 से 80 करोड़ की कमाई की जो किसी भी महिला प्रधान फ़िल्म के लिए बहुत बड़ी कमाई थी.

फ़िल्म इतिहासकार एसएमएम औसजा का मानना है कि 'डर्टी पिक्चर' और 'कहानी' में उनका किरदार बेहद अलग रहा. दोनों फ़िल्मों का भार उन्होंने अपने कंधे पर उठाया. उनका मानना है कि ये विद्या के लिए किसी जुआ से कम नहीं था. वे असफल भी हो सकती थीं पर भाग्यशाली रहीं. वे बहुत ही प्रतिभाशाली हैं इसलिए ये काम कर गया.

तुम्हारी सुलु
'डर्टी पिक्चर' और कहानी की सफलता के बाद विद्या बालन की कई और फ़िल्में आई पर वो वैसा कमाल नहीं कर पाईं जिसकी उनसे उम्मीदें थीं.

'नो वन किल्ड जेसिका' के निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने एक बार फिर विद्या बालन के साथ 'घनचक्कर' बनाई. इस फ़िल्म से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन ये वो कमाल नहीं कर पाई.

इसके अलावा 'बॉबी जासूस', 'हमारी अधूरी कहानी', 'कहानी 2', 'बेगम जान' जैसी महिला प्रधान फ़िल्मों में भी विद्या बालन दिखीं पर दर्शक इन कहानियों से बंध नहीं पाए.

2017 में विद्या बालन की फ़िल्म 'तुम्हारी सुलु' आई जिसमें उनका किरदार मध्यम वर्गीय शादीशुदा महिला का था जिसे रेडियो जॉकी का काम मिलता है. इस सरल कहानी ने विद्या बालन को एक बार फिर दर्शकों की आंखों का तारा बनाया.

फ़िल्म समीक्षकों को भी ये बहुत पसंद आई. अपने अभिनय के लिए उन्हें फ़िल्म फेयर अवार्ड भी मिला. फ़िल्म ने क़रीब 30-35 करोड़ की कमाई की.

'मिशन मंगल' और 'शकुंतला देवी'
2019 में विद्या बालन की अक्षय कुमार के साथ फ़िल्म 'मिशन मंगल' आई जिसमें उनके काम को सराहना मिली. 2020 के कोरोना महामारी के दौर में उनकी फ़िल्म 'शकुंतला देवी' ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ हुई. इसमें भी उनके अभिनय की प्रसंशा हुई और उन्हें फ़िल्मी अवार्ड से नवाज़ा भी गया.

फ़िल्म 'न्यूटन' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके निर्देशक अमित मासूरकर की फ़िल्म शेरनी में विद्या बालन ने एक महिला वन अधिकारी विद्या विन्सेट का किरदार निभाया है.

फ़िल्म समीक्षकों का कहना का है कि विद्या बालन का ये किरदार उनकी पिछली फ़िल्मों से बहुत अलग है. इसमें वे स्त्रीपरक भेदभाव और दफ़्तर में हो रहे पक्षपात का सामना करती हैं. विद्या ने अपने अभिनय की एक नई झलक इस फ़िल्म में दिखाई है.

क्या ख़ास है विद्या बालन में?
क़रीब दो दशकों के करियर में विद्या बालन ने कई महिला प्रधान फ़िल्में की हैं और फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना सिक्का जमाया है.

फ़िल्म व्यापार विश्लेषक अतुल मोहन कहते हैं, "फ़िल्म इंडस्ट्री हमेशा से पुरुष प्रधान रही है पर कई ऐसी अभिनेत्रियां है जिन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई. इसमें रेखा, हेमा मालिनी, वैजयन्तीमाला, श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित जैसे नाम शामिल हैं. इन अभिनेत्रियों की फिल्में आती थी तो पूरे भारत की फ़िल्मी टेरिटरीज़ बुक हो जाया करती थी. वैसा ही मुक़ाम विद्या बालन ने भी बनाने की कोशिश की है."

वे कहते हैं, "परिणीता के बाद कदम दर कदम वे अच्छी अदाकारी देती गईं. 'लगे रहो मुन्ना भाई' राजकुमार हिरानी और संजय दत्त की फ़िल्म थी पर उसमें विद्या के गुड मॉर्निंग मुंबई बोलने का अंदाज़ आज भी लोगों को याद है. 'नो वन किल्ड जेसिका' में उन्होंने अपरंपरागत रूप अपनाया. गंभीर सिनेमा होते हुए भी ये फ़िल्म हिट रही."

अतुल मोहन का कहना है कि आज के दौर में ये धारणा बन गई है कि अभिनेत्री पतली होनी चाहिए, आधुनिक होनी चाहिए, अंग्रेज़ी में बोलचाल करने वाली होनी चाहिए पर नूतन से काजोल तक के ज़माने में उन अभिनेत्रियों का बोल बाला रहा हैं जिनमें भारतीयता दिखती है. विद्या बालन भी उसी श्रेणी में आती हैं. विद्या बालन जब अच्छी कहानियों का हिस्सा बनती है तो दर्शक उन्हें देखने थिएटर में ज़रूर जाते हैं. तुम्हारी सुलु इसका उदहारण है.

फ़िल्म इतिहासकार एसएमएम औसजा का मानना है कि विद्या बालन सोचने वाली अभिनेत्री हैं. वे स्क्रिप्ट को देखकर, सोच विचार कर फ़िल्म करती हैं जिसमें उनका किरदार निखर कर आए. ऐ

वे कहते हैं, "उन्होंने बुरी फ़िल्में भी की हैं उसका कारण है कि वे उस वक़्त इतनी लोकप्रिय हो गई थीं कि उन्हें कई फ़िल्में मिलीं और ऐसी स्थिति में स्टार कुछ ऐसी फ़िल्में भी कर लेता है. लेकिन साथ ही उन्होंने ऐसी भी फ़िल्में कीं जिसने उनकी रचनात्मकता को कायम रखा. जिस तरह से 70 के दशक में आम आदमी का किरदार अमोल पालेकर निभाया करते थे वैसे ही आज के दौर में इस फ़िल्म इंडस्ट्री में भारतीय महिलाओं का सर्वोत्तम किरदार निभा रही हैं विद्या बालन. उनकी भारतीयता ही उनकी पहचान है जो दर्शकों को पसंद आती है."(bbc.com)

 

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