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विधायिका को कानूनों पर फिर से विचार कर अनुकूल बनाने की जरूरत : सीजेआई
25-Sep-2021 9:09 PM
विधायिका को कानूनों पर फिर से विचार कर अनुकूल बनाने की जरूरत : सीजेआई

कटक, 25 सितंबर | भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने शनिवार को कहा कि विधायिका को कानूनों पर फिर से विचार करने और समय और लोगों की जरूरतों के अनुरूप उनमें सुधार करने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यदि कार्यपालिका और विधायिका संवैधानिक आकांक्षाओं को साकार करने के लिए एक साथ काम करती हैं, तो न्यायपालिका को कानून-निर्माता के रूप में कदम उठाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।

कटक में ओडिशा राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के एक नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर रमना ने कहा कि विधायिका को कानूनों पर फिर से विचार करने और समय और लोगों की जरूरतों के अनुरूप उनमें सुधार करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, "कानूनों को हमारी व्यावहारिक वास्तविकताओं से मेल खाना चाहिए और कार्यकारी को संबंधित नियमों को सरल बनाकर इन प्रयासों का मिलान करना होगा।"

इस बात पर जोर देते हुए कि कार्यपालिका और विधायिका को एक साथ काम करना चाहिए, सीजेआई ने कहा, "यह तभी होगा, जब न्यायपालिका को कानून-निर्माता के रूप में कदम उठाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा और केवल इसे लागू करने और व्याख्या करने के कर्तव्य के साथ छोड़ दिया जाएगा। आखरिकार यह राज्य के तीनों अंगों का सामंजस्यपूर्ण कामकाज है और वे ही न्याय के लिए प्रक्रियात्मक बाधाओं को दूर कर सकते हैं।"

उन्होंने कहा कि आजादी के 74 साल बाद भी पारंपरिक और कृषि प्रधान समाज, जो परंपरागत जीवन शैली का पालन कर रहे हैं, अभी भी अदालतों का दरवाजा खटखटाने में झिझक महसूस करते हैं।

रमना ने कहा, "हमारी अदालतों की प्रथाएं, प्रक्रियाएं, भाषा और सब कुछ उनके लिए विदेशी जैसा दिखता है। कृत्यों की जटिल भाषा और न्याय वितरण की प्रक्रिया के बीच, आम आदमी अपनी शिकायत के भाग्य पर नियंत्रण खो देता है। इस पथ में न्याय-साधक व्यवस्था के लिए अक्सर एक बाहरी व्यक्ति की तरह महसूस करता है।"

न्याय वितरण प्रणाली के भारतीयकरण को भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए एक प्राथमिक चुनौती के रूप में विस्तार से बताते हुए उन्होंने पहले कहा था, "एक कठोर वास्तविकता यह है कि अक्सर हमारी कानूनी प्रणाली सामाजिक वास्तविकताओं और निहितार्थो को ध्यान में रखने में विफल रहती है।"

उन्होंने कहा कि यह लोगों की सामान्य समझ है कि कानून बनाना अदालत की जिम्मेदारी है।

रमना ने कहा, "इस धारणा को दूर करना होगा। यहीं पर राज्य के अन्य अंगों, यानी विधायिका और कार्यपालिका की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।"

उन्होंने कहा कि यह लोगों की सामान्य समझ है कि कानून बनाना अदालत की जिम्मेदारी है।

रमना ने कहा, "इस धारणा को दूर करना होगा। यहीं पर राज्य के अन्य अंगों, यानी विधायिका और कार्यपालिका की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।"

सीजेआई ने दूसरी चुनौती का जिक्र करते हुए कहा कि कानूनी सेवाएं न्यायिक प्रशासन का एक अभिन्न अंग बन गई हैं और उचित बुनियादी ढांचे और धन की कमी के परिणामस्वरूप गतिविधियों में कमी आई है। ऐसे में इन संस्थानों की सेवाओं का लाभ उठाने वाले लाभार्थियों की संख्या कम हो जाती है और अंतत: सभी के लिए न्याय तक पहुंच का लक्ष्य बाधित हो जाता है। "अगर हम अपने लोगों के विश्वास को बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें न केवल न्यायिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है, बल्कि अपने आउटरीच कार्यक्रमों को भी बढ़ावा देने की जरूरत है।"

रमना ने कहा, "चुनौती की गंभीरता को देखते हुए हमने आगामी सप्ताह में एक देशव्यापी मजबूत कानूनी जागरूकता मिशन शुरू करने का फैसला किया है।"

सीजेआई ने अपने भाषण का समापन करते हुए कहा, "किसी भी न्याय-वितरण प्रणाली की शक्ति और ताकत उसमें लोगों के विश्वास से प्राप्त होती है। बार और बेंच को एक नागरिक के न्याय में विश्वास की पुष्टि करने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है। हम केवल संरक्षक हैं। मुझे यकीन है कि आप लोगों की सेवा के लिए इस भव्य भवन का बेहतर उपयोग किया जाएगा।"(आईएएनएस)

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