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दिल्ली हाईकोर्ट ने सहारा समूह की नौ कंपनियों की जांच के सरकार के आदेश पर रोक लगाई
28-Jan-2022 5:55 PM
दिल्ली हाईकोर्ट ने सहारा समूह की नौ कंपनियों की जांच के सरकार के आदेश पर रोक लगाई

नई दिल्ली, 28 जनवरी | दिल्ली उच्च न्यायालय ने सहारा समूह की नौ कंपनियों की जांच करने के सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है। सरकार ने जांच एजेंसियों के अधिकारियों को जांच रिपोर्ट एक निश्चित समय सीमा में दिए जाने के निर्देश दिए थे।

दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने अपने एक आदेश में कहा हम इस मामले में प्रतिवादियों द्वारा पारित 31 अक्टूबर, 2018, और 27 अक्टूबर, 2020 के आदेशों के संचालन, कार्यान्वयन और निष्पादन पर रोक लगाते हैं। इसके साथ ही उसके बाद शुरू की गई कार्रवाई और कार्यवाही, जिसमें कड़े उपाय और लुक-आउट नोटिस शामिल हैं, पर सुनवाई की अगली तारीख तक रोक रहेगी।

गौरतलब है कि रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी), मुंबई द्वारा पारित 31 अक्टूबर, 2018 के आदेश के अनुसार, तीन कंपनियों - सहारा क्यू शॉप यूनिक प्रोडक्ट्स रेंज लिमिटेड, सहारा क्यू गोल्ड मार्ट लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के मामलों की जांच का निर्देश दिया गया था।

इनके अलावा छह और कंपनियों - एंबी वैली लिमिटेड, किंग एंबी सिटी डेवलपर्स कॉपोर्रेशन लिमिटेड, सहारा इंडिया कमर्शियल कॉपोर्रेशन लिमिटेड, सहारा प्राइम सिटी लिमिटेड, सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉपोर्रेशन लिमिटेड, सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉपोर्रेशन लिमिटेड की भी जांच के आदेश दिए गए थे।

इस मामले में सहारा समूह ने तर्क दिया कि ऐसा कोई कारण नहीं है जिसे सरकारी आदेश में शामिल किया गया है कि कंपनियों के खिलाफ जांच क्यों आवश्यक है।

सहारा समूह ने तर्क दिया कि उस आदेश में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि निरीक्षकों द्वारा जांच रिपोर्ट तीन महीने की अवधि के भीतर केंद्र सरकार को प्रस्तुत की जाएगी। हालांकि तीन महीने में ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं दी गई और आज , तीन साल से अधिक समय बीतने के बावजूद, जांच अभी भी जारी है।

कंपनी का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता ने कहाकंपनी अधिनियम की धारा 212(3) में कहा गया है कि जहां किसी कंपनी के मामलों की जांच केंद्र सरकार द्वारा एसएफआईओ को सौंपी गई है, वह अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को उस अवधि के भीतर प्रस्तुत करेगी जो आदेश में तय है। वर्तमान मामले में आदेश तीन महीने का था। इस प्रकार, वर्तमान मामले में प्रतिवादियों द्वारा तीन महीने की अवधि के बाद जांच जारी रखना वैधानिक आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है।

उन्होंने आगे कहा, यहां तक कि धारा 219 (ए) से (डी) के प्रावधानों में स्पष्ट है कि इस समय के दौरान जांच के तहत कंपनी और अन्य कॉरपोरेट बॉडी के बीच कुछ संबद्धता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन छह कंपनियों की जांच की जानी है और पिछली तीन कंपनियों की जांच की जा रही है, उनके बीच संबद्धता पर यह पूरी तरह से अस्पष्ट और मौन है।

याचिकाकर्ताओं ने इस रिट याचिका का स्पष्ट रूप से विरोध किया है कि छह कंपनियां किसी भी प्रासंगिक समय पर पहले से ही जांच के दायरे में आने वाली तीन कंपनियों की सहायक कंपनियां या होल्डिंग कंपनियां नहीं रही हैं। इस प्रकार से जांच का यह आदेश अवैध और वैधानिक मानकों के खिलाफ है। (आईएएनएस)

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