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यूक्रेन के राष्ट्रपति का यह बयान क्या पुतिन के सामने नरम पड़ना है?
09-Mar-2022 1:14 PM
यूक्रेन के राष्ट्रपति का यह बयान क्या पुतिन के सामने नरम पड़ना है?

देश पर हमले के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की रूस के आगे घुटने नहीं टेक रहे हैं लेकिन अब उन्होंने संकेत दिए हैं कि वो 'समझौते' के लिए तैयार हैं.

लगातार बातचीत की बात कह रहे ज़ेलेंस्की ने दोनेत्स्क, लुहांस्क और नेटो में यूक्रेन के शामिल होने पर खुलकर बात की है.

उन्होंने अमेरिकी टीवी चैनल एबीसी को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में कहा है कि वो यूक्रेन के लिए नेटो की सदस्यता के लिए ज़ोर नहीं लगा रहे हैं.

नेटो ही वो बड़ा मुद्दा है, जिसको लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बेहद असहज रहे हैं और कहा जाता है कि यही यूक्रेन पर रूसी हमले की एक बड़ी वजह है. पुतिन नहीं चाहते हैं कि नेटो उनके किसी पड़ोसी देश तक पहुँच बना सके.

इसके साथ ही ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन के दो रूस समर्थित क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहांस्क पर भी अपनी बात रखी है.

नेटो क्या है?
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था. इसे बनाने वाले अमेरिका, कनाडा और अन्य पश्चिमी देश थे. इसे इन्होंने सोवियत यूनियन से सुरक्षा के लिए बनाया था. तब दुनिया दो ध्रुवीय थी. एक महाशक्ति अमेरिका था और दूसरी सोवियत यूनियन.

शुरुआत में नेटो के 12 सदस्य देश थे जो अब बढ़कर 30 हो गए हैं. नेटो ने बनने के बाद घोषणा की थी कि उत्तरी अमेरिका या यूरोप के इन देशों में से किसी एक पर हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे. नेटो में शामिल हर देश एक दूसरे की मदद करेगा.

लेकिन दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद कई चीज़ें बदलीं. नेटो जिस मक़सद से बना था, उसकी एक बड़ी वजह सोवियत यूनियन बिखर चुका था. दुनिया एक ध्रुवीय हो चुकी थी. अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बचा था. सोवियत यूनियन के बिखरने के बाद रूस बना और रूस आर्थिक रूप से टूट चुका था.

रूस एक महाशक्ति के तौर पर बिखरने के ग़म और ग़ुस्से से ख़ुद को संभाल रहा था. कहा जाता है कि अमेरिका चाहता तो रूस को भी अपने खेमे में ले सकता था लेकिन वो शीत युद्ध वाली मानसिकता से मुक्त नहीं हुआ और रूस को भी यूएसएसआर की तरह ही देखता रहा.

नेटो के विस्तार को लेकर पुतिन नाराज़ रहे हैं. मध्य और पूर्वी यूरोप में रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लातविया, इस्टोनिया और लिथुआनिया भी 2004 में नेटो में शामिल हो गए थे. क्रोएशिया और अल्बानिया भी 2009 में शामिल हो गए. जॉर्जिया और यूक्रेन को भी 2008 में सदस्यता मिलने वाली थी लेकिन दोनों अब भी बाहर हैं.

नेटो पर क्या बोले ज़ेलेंस्की
एबीसी के इंटरव्यू में ज़ेलेंस्की से पूछा गया कि रूस की नेटो में न शामिल होने की मांग पर वो क्या कहते हैं? इस पर ज़ेलेंस्की ने कहा, "मैं बातचीत के लिए तैयार हूँ. जब हमें समझ आ गया कि नेटो हमें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, इसके बाद मैं काफ़ी पहले ही इस सवाल को पीछे छोड़ चुका था."

ज़ेलेंस्की ने कहा कि 'नेटो विवादित चीज़ों और रूस के साथ टकराव को लेकर काफ़ी डरता रहा है.

नेटो की सदस्यता पाने का हवाला देते हुए ज़ेलेंस्की ने कहा कि वो ऐसे देश के राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैं जो घुटनों के बल गिरकर किसी चीज़ की भीख मांग रहा हो.

दो अलगाववादी क्षेत्रों पर क्या बोले
यूक्रेन पर 24 फ़रवरी को हमला करने से एक दिन पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के दो अलगाववादी रूस समर्थित क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र घोषित कर दिया था.

ज़ेलेंस्की से इंटरव्यू के दौरान पूछा गया कि रूस यूक्रेन पर हमला बंद करने के लिए तीन मांगें कर रहा है, जिनमें पहली नेटो में न शामिल होना, दूसरी क्राइमिया को रूसी क्षेत्र मानना और तीसरी दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र घोषित करना शामिल है.

इस सवाल पर ज़ेलेंस्की ने कहा कि उनके दरवाज़े बातचीत के लिए पूरी तरह खुले हुए हैं.

उन्होंने कहा, "मैं सुरक्षा गारंटी की बात कर रहा हूँ. मुझे लगता है कि अस्थायी तौर पर क़ब्ज़ा किए गए क्षेत्र को रूस को छोड़कर किसी ने भी मान्यता नहीं दी है और ये छद्म राष्ट्र हैं. लेकिन हम इस पर बात कर सकते हैं और इस पर समझौता कर सकते हैं कि कैसे ये क्षेत्र आगे चल सकते हैं."

"मेरे लिए यह ज़रूरी है कि इन क्षेत्रों में रह रहे लोग कैसे ज़िंदगी जीने वाले हैं और यूक्रेन का हिस्सा बनना चाहते हैं, जो भी यूक्रेन में हैं वो कहेंगे कि वो उन्हें चाहते हैं. इसलिए यह सवाल उनको मान्यता दे देने से अधिक कठिन है."

इसके बाद ज़ेलेंस्की ने सीधे रूसी राष्ट्रपति पुतिन पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि पुतिन को 'इन्फ़ॉर्मेशन बबल' से निकलकर बातचीत करने की ज़रूरत है.

उन्होंने कहा, "ये फिर से अतिंम चेतावनी है और हम अंतिम चेतावनियों के लिए तैयार नहीं हैं. राष्ट्रपति पुतिन को यह करने की ज़रूरत है कि वो बातचीत शुरू करें. बिना ऑक्सीजन के इन्फ़ॉर्मेशन बबल में रहने की जगह वो बातचीत शुरू करें. वो उस बबल में रह रहे हैं, जहाँ पर उन्हें हक़ीक़त का पता नहीं चल रहा है."

उन्होंने कहा कि अगर वो यूक्रेन छोड़ देंगे तो वो ज़िंदा ज़रूर रहेंगे लेकिन वो कभी एक इंसान नहीं रह पाएंगे.

वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति के रूसी तेल और गैस के आयात को रद्द करने के फ़ैसले का ज़ेलेंस्की ने स्वागत किया है. उन्होंने ट्वीट करके राष्ट्रपति जो बाइडन को शुक्रिया कहा है.

ज़ेलेंस्की ने कहा है कि दुनिया के दूसरे नेताओं को भी ऐसे ही क़दम उठाने की ज़रूरत है ताकि 'पुतिन की युद्ध की मशीन के सीधे दिल' पर हमला हो.

इसके अलावा ज़ेलेंस्की ने मंगलवार को ब्रिटिश संसद को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने पश्चिमी देशों से रूस पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.

ज़ेलेंस्की ने ब्रिटिश संसद को संबोधित करते हुए कहा कि यूक्रेनी लड़ते रहेंगे. उन्होंने पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का हवाला देते हुए कहा कि 'हम लड़ेंगे.. हम लड़ेंगे जंगलों में, मैदानों में, तटों पर और सड़कों पर.'

रूस की क्या है मांग
रूसी सरकार के प्रवक्ता ने सोमवार को कहा था कि अगर उसकी शर्तों को मान लिया जाता है तो वो यूक्रेन के ख़िलाफ़ 'बिना देरी किए तुरंत' सैन्य अभियान रोकने के लिए तैयार हैं.

प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोफ़ ने कहा था कि मॉस्को की मांग है कि यूक्रेन अपनी सैन्य कार्रवाई को बंद करे, अपने संविधान में बदलाव करते हुए तटस्थता स्थापित करे, क्राइमिया को रूसी क्षेत्र के रूप में मान्यता दे और अलगाववादी क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहांस्क को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे.

यूक्रेन पर हमले के बाद रूस का यह बेहद स्पष्ट बयान है. पेस्कोफ़ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ इंटरव्यू के दौरान कहा कि यूक्रेन को इन शर्तों के बारे में मालूम है और 'उनसे कहा जा चुका है कि सब कुछ एक लम्हे में रोका जा सकता है.'

इंटरव्यू के दौरान रूसी सरकार के प्रवक्ता ने साफ़ किया था कि रूस यूक्रेन में किसी ज़मीन पर दावा नहीं कर रहा है और न वो किसी क्षेत्र को क़ब्ज़ा करना चाहता है. साथ ही उन्होंने कहा कि राजधानी कीएव को रूस को सौंप देने की मांग 'सच नहीं' है.

"हम वास्तव में यूक्रेन के सैन्यीकरण को समाप्त कर रहे हैं. हम इसे ख़त्म करेंगे. लेकिन मुख्य चीज़ यह है कि यूक्रेन अपनी सैन्य कार्रवाई को रोके. उन्हें अपनी सैन्य कार्रवाई को रोकना चाहिए और फिर कोई भी गोली नहीं चलाएगा."

संविधान में बदलाव और तटस्थ रहने पर रूस का कहना है कि यूक्रेन को अपने संविधान में ऐसे बदलाव करने चाहिए ताकि वो किसी भी गठबंधन को अपने देश में घुसने से रोक सके.(bbc.com)

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