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केंद्रीय श्रम संगठनों के एक साझा मंच ने केंद्र सरकार की कई नीतियों के खिलाफ दो दिनों के भारत बंद का ऐलान किया है. इस वजह से पूरे देश में बैंक, यातायात, बिजली और टेलीकॉम जैसी सेवाएं प्रभावित रह सकती हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
श्रम संगठनों ने दावा किया है कि बंद लागू करने में संगठित और असंगठित क्षेत्र के 20 करोड़ से भी ज्यादा कर्मचारी साथ देंगे. बैंक, सड़क यातायात, रेल, स्टील, तेल, टेलीकॉम, कोयला, डाक, आय कर और बीमा जैसे क्षेत्रों के कर्मचारियों के हड़ताल भी शामिल होने की संभावना है.
बंद में आइएनटीयूसी, एआईटीयूसी, एचएमएस, सीआईटीयू जैसे कई श्रम संगठन हिस्सा ले रहे हैं. संगठनों के साझा मंच ने कहा है की उनकी प्रमुख मांगें हैं लेबर कोड को खत्म करना, सरकारी कंपनियों के निजीकरण को रोकना, नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (एनएमपी) को खत्म करना, मनरेगा के तहत मजदूरी बढ़ाना और अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों को पक्का रोजगार देना.
संयुक्त किसान मोर्चा ने भी बंद को समर्थन देने की घोषणा की है और पूरे देश में किसानों से बंद में सक्रीय रूप से हिस्सा लेने के लिए कहा है.
बंद की वजह से कई क्षेत्रों में सेवाओं पर असर पड़ सकता है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया समेत कई बैंकों ने अपने ग्राहकों से कहा है कि वो बंद के दौरान कुछ सेवाओं के प्रभावित होने के लिए तैयार रहें. ऑनलाइन बैंकिंग सेवाएं सुचारू रूप से चल सकती हैं.
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने बंद के आयोजन को देखते हुए सभी सरकारी बिजली कंपनियों से कहा है कि वो हाई अलर्ट पर रहें, बिना रुकावट बिजली की आपूर्ति और राष्ट्रीय ग्रिड की स्थिरता सुनिश्चित करें. विशेष रूप से अस्पतालों, रक्षा संस्थानों और रेल सेवाओं के लिए बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है.
पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार ने आदेश जारी कर सरकारी कर्मचारियों को बंद में शामिल नहीं होने के लिए कहा है. इसके बावजूद राज्य में बंद का असर दिख रहा है.
बंद के मुद्दों की गूंज संसद में भी पहुंच सकती है. विपक्ष के कुछ सांसदों ने बंद पर चर्चा करने के लिए कार्य स्थगन प्रस्ताव दिए हैं. (dw.com)