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गावस्कर मानते थे गुंडप्पा विश्वनाथ को अपने से बेहतर बल्लेबाज़: विवेचना
16-Apr-2022 11:51 AM
गावस्कर मानते थे गुंडप्पा विश्वनाथ को अपने से बेहतर बल्लेबाज़: विवेचना

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-रेहान फ़ज़ल

गुंडप्पा विश्वनाथ के बारे में कहा जाता था कि उनकी कलाइयां फ़ौलाद की बनी हैं. जब वो स्क्वायर कट खेला करते थे तो बल्ले से गेंद के मिलने की आवाज़ पूरे स्टेडियम में गूंजा करती थी.

लेकिन एक ज़माना ऐसा भी था कि विश्वनाथ के लगाए शॉट बाउंड्री तक नहीं पहुंच पाते थे. तब टाइगर पटौदी ने उन्हें एक ज़बरदस्त सलाह दी थी.

विश्वनाथ अपनी आत्मकथा 'रिस्ट अश्योर्ड' में लिखते हैं, "हैदराबाद के ख़िलाफ़ रणजी मैच के बाद पटौदी मेरे पास आए और पूछा क्या तुम जिम में कुछ वक्त बिताते हो? मैंने कहा- जिम और मैं? कभी नहीं. पटौदी बोले- क्या तुम्हारे घर में बाल्टियाँ हैं? जब मैंने कहा हां, तो पटौदी ने कहा- दो बाल्टियों को पूरी तरह पानी से भर लो और उनको दोनों हाथों से पकड़कर दिन में तीन-चार बार लगातार बीस बार उठाओ. मैंने सोचा टाइगर मज़ाक कर रहे हैं लेकिन पटौदी ने कहा वो पूरी गंभीरता से ये सलाह मुझे दे रहे हैं. मैंने पटौदी की सलाह का पालन करना शुरू कर दिया. एक महीने के अंदर मुझे इसका असर दिखना शुरू हो गया और मेरी कलाइयां मज़बूत होती चली गईं."

तभी 1972 में इंग्लैंड भारत सीरीज़ कवर करने आए गार्डियन अख़बार के संवाददाता फ़्रैंक कीटिंग ने टिप्पणी की थीं कि "विश्वनाथ की बांह में लोहार जैसी ताकत है."

पटौदी ने चयनकर्ताओं से साफ़-साफ़ कह दिया कि विश्वनाथ को टीम में उसी हालत में चुना जाए जब उन्हें अंतिम एकादश में खिलाया जाए.

विश्वनाथ की ख़ास बात थी कि चाहे रणजी मैच हो या टेस्ट मैच वो मैच के दौरान नेट्स पर अभ्यास नहीं करते थे. दूसरे शब्दों में वो मैच के दौरान अभ्यास से अपनी ऊर्जा ज़ाया नहीं करना चाहते थे.

उस दिन भी ऐसा ही हुआ. अपनी पहली पारी में आस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ एलन कोनोली की पहली दो गेंदों को तो विश्वनाथ ने रक्षात्मक रूप से खेला लेकिन उनकी तीसरी गेंद एक धीमी ऑफ़ ब्रेक थी.

गेंद पहले विश्वनाथ के ग्लव में लगी और फिर पैड्स को चूमती हुई शॉर्ट लेग की तरफ़ उछल गई जहां इयान रेडपाथ ने बहुत आसान कैच लपक लिया. विश्वनाथ बिना कोई रन बनाए पवेलियन लौटे.

विश्वनाथ लिखते हैं, "अगले चार दिन मेरे जीवन के सबसे तकलीफ़देह दिन थे. लेकिन पटौदी ने मेरे पास आकर कहा था- रिलैक्स, परेशान मत हो. तुम शतक मारोगे. जब मैं दूसरी पारी में बैटिंग करने उतरा तो मेरे पैर कांप रहे थे लेकिन मैं बहादुर दिखने की कोशिश कर रहा था. दस मिनट बाद जब मैंने मेकेंज़ी की गेंद को फ़ाइन लेग की तरफ़ ग्लांस कर अपना पहला रन लिया तो मेरी जान में जान आई. मुझे सबसे बड़ा दुख है कि इस पारी की कोई वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध नहीं है."

"इस शतक को मैं अपने जीवन के बेहतरीन शतकों में से एक मानता हूं. मेरे सारे शॉट्स उन्हीं जगहों पर गए जहां मैं उन्हें मारना चाहता था. 137 रनों की पारी में मैंने 25 चौके लगाए. शायद इसी पारी की वजह से सुनील गावस्कर मुझे बाद में 'बाउंड्री मैन' कह कर पुकारने लगे थे.' "

इस पारी के साथ ही विश्वनाथ की भारतीय टीम में जगह अगले दस सालों तक के लिए पक्की हो गई.

शानदार बैटिंग से कलकत्ता टेस्ट जिताया

1971 के वेस्ट इंडीज़ दौरे में घायल होने की वजह से विश्वनाथ को बहुत अधिक खेलने का मौक़ा नहीं मिला.

जब 1972 में इंग्लैंड की टीम भारत आई तो विश्वनाथ ने पहले कानपुर में 75 नाबाद रन बनाए और फिर बंबई के आख़िरी टेस्ट में उन्होंने शतक लगाकर उस मिथक को तोड़ा कि अपने पहले टेस्ट में शतक लगाने वाला कोई भी भारतीय खिलाड़ी बाद में शतक नहीं लगा पाता. शतक लगाते ही सिली प्वाएंट पर खड़े साढ़े 6 फ़िट लंबे टोनी ग्रेग ने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया.

1975 में क्लाइव लॉयड के नेतृत्व में आई वेस्ट इंडीज़ की टीम ने बेंगलुरू और दिल्ली के पहले दो टेस्ट जीतकर ये आभास दिया कि वो भारतीय टीम को 5-0 से हरा कर ही दम लेंगे.

लेकिन कलकत्ता टेस्ट में विश्वनाथ ने शानदार 139 रन बनाकर वेस्टइंडीज़ को चौथी पारी में 310 रन बनाने की चुनौती दी. चंद्रशेखर और बेदी ने शानदार गेंदबाज़ी करते हुए वेस्ट इंडीज़ को 224 रनों पर आउट कर भारत को ऐतिहासिक विजय दिलाई.

उस टेस्ट को याद करते हुए पूर्व भारतीय विकेटकीपर सैयद किरमानी कहते हैं, "उस ज़माने में न तो हेलमेट होते थे और न ही ढंग के थाई पैड. विश्वनाथ ने वो पारी सिर्फ़ अपने कौशल और हौसले के बल पर खेली थी. ऑफ़ साइड की गेंद को लेग की तरफ़ ग्लांस करने की कला सिर्फ़ विश्वनाथ में थी."

मद्रास टेस्ट में खेली 97 रनों की नाबाद पारी
लेकिन विश्वनाथ ने अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ पारी मद्रास के अगले टेस्ट में खेली. चेपॉक की वो पिच बहुत तेज़ थी और उसमें उछाल भी बहुत था.

रॉबर्ट्स की घातक गेंदबाज़ी के सामने भारत ने 76 रनों पर 6 विकेट खो दिए थे. जब आठवें नंबर पर करसन घावरी बैटिंग करने आए तो विश्वनाथ ने चार्ज संभाल लिया.

विश्वनाथ याद करते हैं, "मैंने कुछ फ़ैंसी शॉट्स लगाने के बजाए अपने खेल के मज़बूत पक्ष पर ध्यान देने का फ़ैसला किया. आज भी जब मैं अपनी आंखे बंद करता हूं तो मेरी आंखों के सामने वो कुछ शॉट्स आ जाते हैं जैसे मैं कोई हाई डेफिनेशन रिकार्डिंग देख रहा हूं. रॉबर्ट्स की एक गेंद मुझे अभी भी याद है जब मैंने उनकी ऑफ़ स्टंप पर पिच की हुई गेंद को कलाई के बल पर मिड ऑन पर चौके के लिए मारा था."

"उसी तरह बायस की गेंद पर भी स्ट्रेट ड्राइव लगाकर मैंने चार रन बटोरे थे. मैंने इन शॉट्स में कोई ताकत नहीं लगाई थी लेकिन टाइमिंग इतनी ज़बरदस्त थी कि गेंद मेरे बल्ले से गोली की तरह निकली. ये शायद उन पानी से भरी बाल्टियों का असर था जिन्हें उठाने की सलाह टाइगर पटौदी ने मुझे दी थी. लॉयड, विव रिचर्ड्स और कालीचरण मेरी तरफ़ इस तरह देख रहे रहे थे मानो कह रहे हों, 'मैन डिड यू रिअली हिट दैट ?"

दसवें विकेट के लिए चंद्रशेखर के साथ 21 रनों की साझेदारी
जुलाई, 2001 में विज़डेन ने इस पारी को 38वीं सर्वकालिक महान पारी और दूसरी ग़ैर-शतकीय महान पारी घोषित किया. इस पारी के 47 साल बाद भी लोग विश्वनाथ की इस पारी को भूल नहीं पाए हैं.

विश्वनाथ लिखते हैं, "मैंने बेदी के साथ मिलकर नौवें विकेट के लिए 52 रन जोड़े. जब चंद्रशेखर बल्लेबाज़ी करने उतरे तो मेरे चेहरे पर मुस्कान थी. उस दोपहर उन्होंने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण एक रन लिया. उन्होंने कुल एक रन ही बनाए लेकिन 38 मिनटों तक क्रीज़ पर जमे रहे और हमारे बीच 21 रनों की साझेदारी हुई."

"इस बीच हम क़रीब एक दर्जन बार रन आउट होते-होते बचे. हमने हमेशा ओवर की चौथी और पांचवी गेंद पर सिंगल लेने की कोशिश की ताकि अगले ओवर की पहली गेंद मैं ही खेलूं. उस दिन चंद्रा इस तरह दौड़ रहे थे कि यूसेन बोल्ट भी उनके सामने शर्मा जाते."

मद्रास टेस्ट जीत भारत ने सीरीज़ 2-2 से बराबर की
विश्वनाथ आगे लिखते हैं, "जब मैं 96 पर था तो मैंने रॉबर्ट्स की गेंद पर बेहतरीन स्क्वायर कट किया. मैं तेज़ी से नहीं दौड़ा क्योंकि मुझे यकीन था कि गेंद चौके के लिए जाएगी. मैंने तीन चौथाई पिच पार की थी कि मैं क्या देखता हूं कि बॉयस ने गेंद उठाकर तेज़ी से विकेटकीपर की तरफ़ फेंक दी."

"तब तक चंद्रशेखर एक रन ले चुके थे और दूसरा रन लेने के लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार थे लेकिन मैं किसी भी हालत में अपनी क्रीज़ तक नहीं पहुंच सकता था. चंद्रशेखर गहरी-गहरी सांसे ले रहे थे. मैंने उन्हें शांत किया और कन्नड़ में उनसे कहा- अगली गेंद शॉर्ट गेंद होगी लेकिन आप उसे खेल जाएंगे. लेकिन रॉबर्ट्स की वो गेंद लेग कटर थी. चंद्रशेखर के बल्ले से निकले एज को क्लाइव लॉयड ने स्लिप में लपक लिया. पवेलियन लौटते हुए चंद्रशेखर ने मुझसे कहा- क्योंकि तुमने कहा था कि वो शॉर्ट गेंद फेंकेगा, मैं बाउंसर की उम्मीद कर रहा था. तुम्हारी वजह से मैं आउट हुआ. मुझे शतक न मार पाने का दुख था लेकिन मेरे शतक न मार पाने पर मुझसे ज़्यादा दुखी थे चंद्रशेखर. मैंने उन्हें दिलासा दिया मैं 97 नाबाद रन बनाकर भी खुश हूं. अब आप हमें अपनी गेंदबाज़ी से मैच जितवाइए."

"भारत ने 190 रन बनाए. प्रसन्ना ने 5 विकेट लिए. दूसरी पारी में अंशुमान गायकवाड़ के 80 रनों की बदौलत भारत ने वेस्ट इंडीज़ के सामने दूसरी पारी में 256 रन बनाने का लक्ष्य रखा. लेकिन वेस्ट इंडीज़ की टीम सिर्फ़ 154 रन ही बना सकी और भारत ने 2-2 से सीरीज़ बराबर कर ली."

दुनिया के हर देश के ख़िलाफ़ शतक लगाने वाले पहले भारतीय
1977 के आस्ट्रेलिया दौरे में उन्होंने तेज़ पिचों पर उस समय के सबसे तेज़ गेंदबाज़ जेफ़ टॉमसन को पूरी महारत के साथ खेला.

1978 के पाकिस्तान दौरे में जब फ़ैसलाबाद टेस्ट में विश्वनाथ ने शतक लगाया तो वो टेस्ट खेलने वाले सभी देशों के ख़िलाफ़ शतक मारने वाले पहले भारतीय बन गए.

रवि शास्त्री अपनी किताब 'प्लेयर्स इन माई लाइफ़ स्टार गेज़िंग' में लिखते हैं, "हेलमेट के पहले के समय में विश्वनाथ शायद तेज़ गेदबाज़ी को खेलने वाले दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज़ थे. उनमें तेज़ गेंदबाज़ों के ख़िलाफ़ जवाबी हमला करने की गज़ब की क्षमता थी."

"1974-75 और 1978-79 के वेस्ट इंडीज़ दौरे के दौरान उन्होंने मद्रास की तेज़ उछालदार पिच पर रन बनाए थे जहां सारे भारतीय बल्लेबाज़ असफल साबित हुए थे. विश्वनाथ न सिर्फ़ अपने समय के सबसे स्टाइलिश बल्लेबाज़ थे बल्कि ख़राब विकेट पर उस समय उनसे बेहतर भारत में कोई भी नहीं खेलता था."

सुनील गावस्कर का भी मानना था कि विश्वनाथ उनसे बेहतर बल्लेबाज़ थे क्योंकि उनके पास हर गेंद को खेलने के लिए कम से कम तीन स्ट्रोक हुआ करते थे.

गावस्कर अपनी किताब 'आइडल्स' में लिखते हैं, "हममें से अधिकतर लोग अपने शॉट लगाने के लिए ख़राब गेंदों को इंतज़ार किया करते थे लेकिन विश्वनाथ अकेले शख़्स थे जो अच्छी गेंदों पर भी स्ट्रोक लगाने के लिए जाने जाते थे. विश्वनाथ को पटौदी और बेदी के नेतृत्व में मुझसे पहले भारत का उप कप्तान बनाया जाना चाहिए था. इसकी वजह ये थी कि वो मुझसे सीनियर थे और लोकप्रियता और क्रिकेट की जानकारी में उनका सानी कोई नहीं था."

जुबिली टेस्ट में टेलर को वापस बुलाया
विश्वनाथ को जब बाद में भारत का कप्तान बनने का मौक़ा मिला तो उन्होंने खेल भावना की ऐसी मिसाल कायम की जिसे आज तक याद रखा जाता है.

बंबई में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ जुबिली टेस्ट में भारत की टीम 242 रन बना कर आउट हो गई. जवाब में इंग्लैंड ने 85 रन पर 5 विकेट खो दिए. तभी कपिल की एक गेंद ने टेलर के बल्ले का किनारा लिया और किरमानी ने गेंद को कैच कर लिया. सभी भारतीय खिलाड़ियों ने अपील की और अंपायर हनुमंत राव ने अपनी उंगली भी उठा दी.

विश्वनाथ लिखते हैं, "मैं पहली स्लिप पर फ़ील्ड कर रहा था. मैंने अपनी बाईं तरफ़ विकेटकीपर किरमानी की तरफ़ देखा. उन्होंने न में सिर हिलाया. दाहिनी तरफ़ खड़े गावस्कर ने भी अपने कंधे उचका दिए. हम तीन खिलाड़ी खड़े होकर मंत्रणा करने लगे कि हमें क्या करना चाहिए. गावस्कर ने कहा आप कप्तान हैं, आप जो भी फ़ैसला लेंगे हम उसका समर्थन करेंगे."

"टेलर धीमे-धीमे पवेलियन की तरफ़ बढ़ रहे थे. मैं अंपायर राव के पास गया और बोला- सर हम अपनी अपील वापस लेना चाहेंगे. नॉन स्ट्राइकिंग एंड पर खड़े इयान बॉथम ये सब नज़ारा देख रहे थे. जैसे ही उन्होंने मुझे अंपायर की तरफ़ जाते देखा उन्होंने चिल्लाकर टेलर से रुक जाने के लिए कहा. मैंने टेलर से वापस आने और बैटिंग जारी रखने के लिए कहा. पिच पर आते ही टेलर और बॉथम दोनों ने मुझसे कहा, 'वेल डन विश गुड शो'."

ये अलग बात है कि विश्वनाथ की ईमानदारी से भारत को नुक़सान हुआ. टेलर और बॉथम ने छठे विकेट के लिए 171 रन जोड़े और भारत वो मैच दस विकेट से हार गया.

स्क्वायर कट और लेट कट के ख़ुदा
विश्वनाथ ने भारत के लिए 91 टेस्ट खेलकर 41.93 के औसत से 6080 रन बनाए. क्रिकेट में 41.93 रन प्रति पारी के औसत को महान खिलाड़ी का औसत नहीं माना जाता.

रिकॉर्ड तो बनते और टूटते रहते हैं लेकिन जो याद रह जाता है कि वो रन आपने कहां बनाए थे, किन परिस्थतियों में और किसके ख़िलाफ़ बनाए थे.

जब क्रिकेट पंडित विश्वनाथ के क्रिकेट करियर पर नज़र दौड़ाते हैं तो वो उनके रिकॉर्ड्स के बार में बात कर अपना वक्त ज़ाया नहीं करते, क्योंकि उन्हें मालूम है कि रिकॉर्ड किसी खिलाड़ी की महानता की असली कहानी बयान नहीं करते.

विश्वनाथ स्क्वायर कट और लेट कट के खुदा थे. वो दृश्य देखने लायक होता था जब वो घुटनों के बल बैठ कर तेज़ गेंदबाज़ को स्क्वायर ड्राइव किया करते थे. मिड विकेट की तरफ़ किए गए उनके फ़्लिक भी उनको बहुत रन दिलवाते थे.

उनके साथ कई टेस्ट खेल चुके और कई दौरों पर उनके रूम मेट रह चुके मदनलाल बताते हैं कि "विश्वनाथ बहुत लेट खेलते थे. कट तो उनसे अच्छा दुनिया में कोई मारता ही नहीं था."

डेनिस लिली ने अपनी आत्मकथा 'मिनेस' में लिखा था कि "गावस्कर ज़रूर एक महान बल्लेबाज़ थे लेकिन मैं विश्वनाथ को उनसे ऊपर रेट करता हूं. वो आस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ खेलने वाले सर्वश्रेष्ठ भारतीय बल्लेबाज़ थे जिन्होंने हमारे ख़िलाफ़ एक के बाद कई बेहतरीन पारियां खेलीं."

विश्वनाथ के करियर की ख़ास बात रही कि जब-जब उन्होंने शतक लगाया भारत वो टेस्ट नहीं हारा, या तो उस टेस्ट में भारत की जीत हुई या उसके खेल की बहुत तारीफ़ की गई.

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