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शशि थरूर कांग्रेस में सचिन पायलट की तरह साइडलाइन किए जा रहे हैं?
24-Nov-2022 2:30 PM
शशि थरूर कांग्रेस में सचिन पायलट की तरह साइडलाइन किए जा रहे हैं?

-इमरान कुरैशी

नई दिल्ली, 24 नवंबर । महज दो महीने के अंदर दूसरी बार कांग्रेस पार्टी के अंदर शशि थरूर के पर कतरने की कोशिश हुई है.

तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने एक हज़ार से ज़्यादा वोट हासिल कर लोगों को चौंकाया था.

आम तौर पर कांग्रेस जैसी पार्टी के अंदर, इतने बड़े पद का चुनाव लड़ने वाले नेता को किसी दूसरे पद के साथ समायोजित किया जाता रहा है.

शशि थरूर तो मल्लिकार्जुन खड़गे को जीत की बधाई देने, उनके घर सबसे पहले पहुंचने वालों में थे. उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत को पार्टी की जीत भी बताया था.

लेकिन पार्टी के अंदर और बाहर, लोगों को तब बड़ा अचरज हुआ जब ना तो थरूर को कांग्रेस की स्टियरिंग कमेटी में शामिल किया गया और ना ही गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव के स्टार प्रचारकों की सूची में उन्हें जगह मिली.

इतना ही नहीं, केरल में भी उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.

दरअसल, युवा कांग्रेस ने शशि थरूर को कोझिकोड में आयोजित समारोह में ‘संघ परिवार और धर्मनिरपेक्षता की चुनौतियां’ पर बोलने के लिए आमंत्रित किया था.

लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के दबाव में युवा कांग्रेस के नेताओं ने कार्यक्रम रद्द कर दिया. इतना ही नहीं उन पर कांग्रेस के विरोध प्रदर्शनों में शामिल नहीं होने और गुटबाजी में शामिल होने का आरोप भी लगा है.

राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद कुमार ने बीबीसी हिंदी को बताया, “ऐसा लगता है कि दिल्ली में उपेक्षित महसूस होने के बाद उन्होंने अपनी किस्मत केरल में आजमाने की सोची. लेकिन केरल कांग्रेस के नेता उन्हें राज्य में भी नहीं देखना चाहते.

लेकिन राज्य के लोग उन्हें कांग्रेस के वैकल्पिक चेहरे के तौर पर देख रहे हैं, कुछ लोग तो चार साल दूर विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर भी देख रहे हैं.”

राज्य के कई नेताओं ने उनकी शिकायत पार्टी के आला कमान और राज्य के प्रभारी तारिक़ अनवर से भी की है.

दिल्ली में अनवर ने मीडिया को इस बारे में कहा, “कोई भी पार्टी से ऊपर नहीं है. थरूर ही नहीं, सभी पार्टी नेताओं को प्रदेश कांग्रेस समिति के निर्देशों को मानना होगा. केरल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के सुधाकरन और नेता प्रतिपक्ष वीडी सतीशन इस पर बयान दे चुके हैं, मैं उनका समर्थन करता हूं.”

तारिक़ अनवर ने यहां तक कहा है कि अगर प्रदेश कांग्रेस समिति शिकायत दर्ज करती है तो केंद्रीय नेतृत्व मामले को देखेगा.

हालांकि, सतीशन ने बीबीसी हिंदी को बताया है कि, ‘अब तक पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को कोई शिकायत नहीं भेजी गई है.’

केरल कांग्रेस के अंदर के अंदर कोई समस्या उत्पन्न हुई है क्या, यह पूछे जाने पर सतीशन ने कहा, “मैं इसे विस्तार से नहीं बताना चाहता.”

थरूर से क्या है समस्या?

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एमजी राधाकृष्णन ने बीबीसी हिंदी को बताया, “यह पार्टी के अंदर का सत्ता संघर्ष है. यह वैसा मामला नहीं है कि इसे कांग्रेस नेतृत्व से मान्यता की ज़रूरत पड़े, राजनीतिक तौर पर पार्टी के अंदर थरूर को लोकप्रियता के पैमाने पर चुनौती देने वाला कोई नेता मौजूद नहीं है.

अगर लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री पिनरई विजयन को चुनौती देना है तो उन्हें थरूर जैसा नेता चाहिए.”

वहीं राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद कुमार ने कहा, “कांग्रेस पार्टी एक कैडर आधारित पार्टी नहीं है. पार्टी के दूसरे नेता यह मानने को तैयार नहीं हैं कि पार्टी सांगठनिक तौर पर कमजोर हो गई है.

सीपीएम के ख़िलाफ़ सत्ताविरोधी लहर है लेकिन लोग उन्हें वोट देंगे क्योंकि उन्होंने ऐसी व्यवस्था विकसित की है जिसमें पार्टी कैडर हैं, साक्षरता और सांस्कृतिक गतिविधियां हैं और लोगों को रोज़गार देने का भरोसा है. इससे उनका वोट बैंक बनता है.”

दरअसल, 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान ओमान चांडी और रमेश चेन्नीताला समूह की आपसी गुटबाज़ी के चलते कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी थी.

इस चुनाव से पहले केरल में ऐसा ट्रेंड रहा था कि हर पांच साल पर सरकार बदल जाती थी.

कांग्रेस की गुटबाज़ी

लेकिन पिछले चुनाव में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट 140 सीटों वाली विधानसभा में 99 सीट हासिल कर सरकार बनाए रखने में कामयाब हुई थी.

2021 में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ को महज 41 सीटें हासिल हुईं जबकि 2016 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन को 47 सीटें मिली थीं.

2021 में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी, इससे पहले बीजेपी को एक सीट हासिल हुई थी. सीट नहीं हासिल करने के बाद भी बीजेपी को राज्य में 12.36 प्रतिशत वोट हासिल हुई थी.

जबकि एलडीएफ गठबंधन को 45.53 प्रतिशत वोट मिले थे. यूडीएफ को 39.47 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल हुआ था. 

सरकार नहीं बनाए जाने से नाराज कांग्रेस आलाकमान ने गुटबाज़ी दूर करने के उद्देश्य से चांडी और चेन्नीताला समूह के नेताओं को अहम पदों से हटा दिया.

इसके बाद गुटबाज़ी से दूर रहने वाले नेता के सुधाकरन को पार्टी की कमान दी गई जबकि विधानसभा के अंदर सतीशन को नेता बनाया गया.

लेकिन कुछ समय से कांग्रेस के अंदर यह शिकायत बढ़ रही है कि लोगों के मुद्दे पर पार्टी एलडीएफ सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन तक आयोजित नहीं कर पा रही है.

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस गठबंधन में मुख्यमंत्री पद के लिए कई चेहरे हैं और यही दोनों गठबंधनों के बीच बड़ा अंतर है. राजनीतिक विश्लेषक एनपी चेकुट्टी कहते हैं, “कांग्रेस पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री के कई चेहरे मौजूद हैं. इनमें राहुल गांधी के नज़दीकी केसी वेणुगोपाल भी शामिल हैं. लेकिन इनमें किसी की लोकप्रियता थरूर जितनी नहीं है.”

एमजी राधाकृष्णन सुधाकरन और सतीशन जैसे नेताओं को कमतर नहीं बताते हैं लेकिन कहते हैं, “इन नेताओं का कद ओमान चांडी जितना नहीं है जिनकी पकड़ पूरे राज्य में थी.

शशि थरूर में न्यूट्रल मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता है, वे बीजेपी के वोट देने वाले लोगों में भी पैठ बना सकते हैं. उन्हें सवर्णों का वोट मिल सकता है, ये लोग लंबे समय से कांग्रेस को वोट नहीं दे रहे हैं. इतना ही नहीं थरूर को सभी समुदायों का समर्थन हासिल है.”

थरूर का ध्यान उत्तरी केरल पर

थरूर ने पिछले दिनों उत्तरी केरल की यात्रा की थी, राज्य के इस इलाके में मुस्लिमों की बड़ी आबादी है. यूडीएफ को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) का समर्थन हासिल है.

इस पार्टी का मालापुरम, कोझिकोड और कन्नूर जैसे ज़िलों में काफी प्रभाव है. ऐसे में थरूर का इस इलाके पर ध्यान देना भी बेहद अहम है.

चेकुट्टी कहते हैं, “कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता ने उत्तरी केरल में उन्हें चुनौती नहीं दी है.”

केरल में अल्पसंख्यकों की आबादी 46 प्रतिशत है. इसमें मुस्लिमों की आबादी 26.56 प्रतिशत है जबकि ईसाईयों की आबादी 18.38 प्रतिशत. जबकि 0.33 प्रतिशत में जैन जैसे छोटे समुदाय आते हैं.

थरूर के उत्तरी केरल पर ध्यान केंद्रित करने की एक वजह यह भी होगी.

चेकुट्टी बताते हैं, “उत्तरी केरल में कई मुस्लिम धार्मिक नेता एलडीएफ का समर्थन करते हैं क्योंकि मुख्यमंत्री विजयन मुसलमानों के हितों वाले स्टैंड लेते रहते हैं. मुस्लिम वोटों को रिझाने के लिए कांग्रेस की ओर कोई कोशिश नहीं दिखती है.”

राधाकृष्णन कहते हैं, “राज्य में मुस्लिम वोटों के लिए कांग्रेस पूरी तरह से आईयूएमएल पर निर्भर है. इस लिहाज से देखें तो यह एक दिलचस्प डेवलपमेंट है.”

राजनीतिक विश्लेषक शशि थरूर की आईयूएमएल के शीर्ष नेताओं की मुलाकात को भी महत्वपूर्ण मान रहे हैं.

आईयूएमएल के राज्य अध्यक्ष पनक्कल सादिक अली साहिब थांगल और नेशनल सेक्रेटरी पीके कुनहलीकुट्टी से थरूर ने आईयूएमल के मुख्यालय में मुलाकात की.

यूडीएफ के सहयोगी दल एक दूसरे के आंतरिक मामले में बयान देने से बचते रहे हैं.

लेकिन इस मुलाकात से मिले संकेत भी स्पष्ट हैं. दरअसल आईयूएमएल प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के सुधाकरन के उस बयान से आहत थी जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि आईयूएमएल, राज्य में आरएसएस की शाखा लगाने में मदद कर रही है.

आईयूएमएल ने इस मामले को केंद्रीय नेतृत्व के सामने भी रखा है. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर भविष्य में थरूर राज्य के मुख्यमंत्री बनते हैं तो आईयूएमएल को आपत्ति नहीं होगी.

आईयूएमएल के नेशनल सेक्रेटरी पीके कुनहलीकुट्टी ने बीबीसी हिंदी से कहा, “जो भी नेता मालापुरम आते हैं वह हमारे अध्यक्ष से मिलते हैं. यह एक सामान्य सी बात है. हां ये भी सही है कि थरूर से हमारे अच्छे रिश्ते हैं. इसमें किसी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए.”

राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद कुमार ने आईयूएमएल, “धर्मनिरपेक्षता के चेहरे के तौर पर हिंदू चेहरा ही चाहती है. हिंदूओं की 85 प्रतिशत आबादी हिंदुत्व के बदले हिंदू धर्म को मानती है. आईयूएमएल कट्टरता को बढ़ावा देने वाली पार्टी भी नहीं है.”

राधाकृष्णन कहते हैं, “थरूर की स्वीकार्यता आईयूएमएल में है, ईसाई समुदाय के साथ साथ नायर समुदाय में है. महिलाओं में है, युवाओं में है. पिछले कई सालों में नायर सर्विस सोसायटी की ओर से आमंत्रित होने वाले वे पहले कांग्रेसी नेता है. दरअसल वे सभी सामाजिक ताक़तों से संपर्क में हैं.”

थरूर की सचिन पायलट से तुलना

राधाकृष्णन के मुताबिक थरूर सीपीएम के वरिष्ठ नेता वीएस अच्युतानंदन की रणनीति को अपना रहे हैं.

राधाकृष्णन बताते हैं, “अच्युतानंदन को पार्टी का समर्थन हासिल नहीं था. लेकिन उन्होंने बाहर निकल कर लोगों का समर्थन हासिल किया, उसके बाद पार्टी को भी समर्थन देना पड़ा था.”

लेकिन क्या थरूर को, उसी तरह से साइडलाइन किया जा रहा है, जैसे कि राजस्थान में सचिन पायलट को किया गया.

राजनीतिक विश्लेषक राधाकृष्णन और प्रमोद कुमार, दोनों का मानना है कि थरूर को पायलट की तरह साइडलाइन किया जा रहा है.

राधाकृष्णन कहते हैं, “स्थिति को संभालने के लिए कांग्रेस के पास कोई आइडिया नहीं है.” प्रमोद कुमार कहते हैं, “पायलट थरूर की तरह नहीं हैं. थरूर का व्यक्तित्व बड़ा भी है और करिश्माई भी है.”

पहचान ज़ाहिर नहीं करने की शर्त के साथ कांग्रेस के कुछ नेता कहते हैं, कि सबको उम्मीद थी कि पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव में आख़िरी समय में थरूर हट जाएंगे.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सबको चौंकाते हुए उन्होंने 1076 वोट हासिल किए, जबकि लोगों को उम्मीद थी कि वे ज़्यादा से ज़्यादा 200 से 300 वोट हासिल कर पाएंगे.

यानी थरूर के मामले में यह कहा जा सकता है, पिक्चर अभी बाक़ी है. (bbc.com/hindi)

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