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सेवा शुल्क पर अंतरिम आदेश का इस्तेमाल उपभोक्ताओं को भ्रमित करने के लिए न करें: दिल्ली हाईकोर्ट
12-Apr-2023 4:16 PM
सेवा शुल्क पर अंतरिम आदेश का इस्तेमाल उपभोक्ताओं को भ्रमित करने के लिए न करें: दिल्ली हाईकोर्ट

 नई दिल्ली, 12 अप्रैल | दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि होटल और रेस्त्रां में सेवा शुल्क पर रोक लगाने वाले केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के दिशा-निर्देशों पर अदालत के अंतरिम स्थगन आदेश को होटल और रेस्टोरेंट मालिक अपने मेन्यू कार्ड या डिस्प्ले बोर्ड पर लगाकर उपभोक्ताओं को भ्रमित न करें कि सेवा शुल्क को अदालत की मान्यता मिल गई है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएश ऑफ इंडिया और नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया की सीसीपीए के दिशा-निर्देशों के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। सीसीपीए ने पिछले साल 4 जुलाई को नए दिशा-निर्देश जारी किए थे जिस पर अदालत ने पिछले महीने स्थगन आदेश दिया था।


दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने यह कहते हुए दिशा-निर्देशों पर स्थगन आदेश दिया था कि सेवा शुल्क तथा अन्य भुगतान जो ग्राहक को करने हैं उनके बारे में मेनू कार्ड या किसी अन्य स्थान पर अच्छी तरह इसे डिस्प्ले किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, यह स्पष्ट किया जाता है कि अंतरिम आदेश को डिस्प्ले बोर्ड या मेनू कार्ड पर इस तरह नहीं दिखाया जाना चाहिए कि ग्राहक भ्रमित हों कि इस अदालत ने सेवा शुल्क को मान्यता दे दी है।

सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जेनरल चेतन शर्मा ने अदालत को बताया कि कई रेस्त्रां सेवा शुल्क को वैध बताने के लिए अंतरिम आदेश की गलत व्याख्या कर रहे हैं।

याचिका दायर करने वाले दोनों एसोसिएशन से अदालत ने एक शपथपत्र देने के लिए कहा जिसमें वे यह बताएंगे कि उनके कितने सदस्यों को खाने के बिल के साथ सेवा शुल्क लगाने की जरूरत है। उनसे यह भी पूछा गया है कि यदि सेवा शुल्क की जगह कर्मचारी कल्याण कोष, कर्मचारी कल्याण योगदान या कर्मचारी शुल्क का प्रयोग किया जाता है जिससे यह न लगे कि यह शुल्क सरकार द्वारा लगाया गया है, तो क्या उनके सदस्यों को कोई आपत्ति होगी।

अदालत ने कहा, शपथपत्र में यह उल्लेख होना चाहिए कि कितने प्रतिशत सदस्य खुद ही ग्राहकों को यह बताने के लिए तैयार हैं कि सेवा शुल्क अनिवार्य नहीं बल्कि स्वैच्छिक रूप से दिया जाना वाला योगदान है।

मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी।

अदालत ने कहा, लंबे समय तक हममें से अधिकतर लोग यह सोच रहे थे कि सेवा शुल्क सरकार लगाती है। समस्या यहीं पर है कि लोग सोचते हैं कि सेवा शुल्क सेवा कर जैसा है। आम उपभोक्ता को सेवा कर, जीएसटी आदि में अंतर नहीं मालूम क्योंकि लोग सोचते हैं कि यह सरकार द्वारा लिया जाता है। मैं ऐसे कई लोगों को जानती हूं जो इस तरह सोचते हैं।

इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि ये दिशा-निर्देश उपभोक्ताओं के हित के लिए सर्वोत्तम हैं। उसने अदालत से इस बात का ध्यान रखते हुए स्थगन आदेश वापस लेने का अनुरोध किया।

उसने अदालत को यह भी बताया कि कुछ रेस्त्रां अदालत के अंतरिम आदेश का इस्तेमाल यह जताने के लिए कर रहे हैं कि उन्हें सेवा शुल्क लगाने की अनुमति मिल गई है।

न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि दोनों पक्षों को सुने बिना अंतरिम आदेश में बदलाव नहीं किया जा सकता। यदि अगली तारीख पर मुख्य याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकी तो स्थगन आदेश रद्द करने विचार किया जाएगा।

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने कहा कि सेवा शुल्क कई सालों से अस्तित्व में है। यह एक पारंपरिक शुल्क है और उन कर्मचारियों में बांटा जाता है जो उपभोक्ताओं के सामने नहीं होते हैं। रेस्त्रां अपने मेनू कार्ड और परिसर में इसके बारे में जानकारी डिस्प्ले करने के बाद यह शुल्क लगाते हैं। उन्होंने सीसीपए के आदेश को बेढ़ंगा और अव्यावहारिक बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की। (आईएएनएस)

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