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नई दिल्ली, 14 अप्रैल । उमेश पाल हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त और बाहुबली नेता अतीक़ अहमद के बेटे असद अहमद और उनके साथी ग़ुलाम मोहम्मद को झांसी के पास गुरुवार को पुलिस ने एक एनकाउंटर में मार दिया है.
क़ानून का पालन करने वाली एजेंसियां एनकाउंटर का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में न कर सकें, इसलिए इस तरह की एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग्स को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत दिशानिर्देश दिए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस ने इस दिशानिर्देश से जुड़ी कुछ बातें अपनी रिपोर्ट में छापी हैं.
अख़बार लिखता है कि 2014 में पीयूसीएल (पीपल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़) बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा और रोहिंगटन फ़ली नरीमन की बेंच ने पुलिस एनकाउंटर से जुड़ा 16 सूत्री दिशार्निदेश दिया था.
कोर्ट का कहना था कि ऐसे मामले जिनमें पुलिस कार्रवाई में व्यक्ति की मौत हुई हो या फिर उसे गंभीर चोट आई हो, उनमें एफ़आई दर्ज करना बाध्यकारी है, साथ ही मामले की मजिस्ट्रेट से जांच कराना, लिखित दस्तावेज़ रखना और सीआईडी जैसी एजेंसियों से स्वतंत्र जांच की बात भी शामिल है.
कोर्ट ने कहा था, "पुलिस कार्रवाई के दौरान हुई इस तरह की सभी मौतों की मजिस्ट्रेट जांच ज़रूरी है. जांच में मृतक के परिवार को शामिल किया जाना चाहिए. पुलिस को आईपीसी की उपयुक्त धारा के तहत एफ़आईआर दर्ज करनी चाहिए और इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि ताक़त का इस्तेमाल करना जायज़ था या नहीं. इसकी रिपोर्ट ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के पास भेजी जानी चाहिए."
दिशानिर्देशों में कहा गया है कि "पुलिस को मामले से जुड़ी जो ख़ुफ़िया जानकारी मिलती है उसे या तो केस डायरी में या फिर किसी और तरीके से लिखा जाना ज़रूरी है. अगर जानकारी के आधार पर की गई कार्रवाई में किसी व्यक्ति की मौत हुई तो एफ़आईआर दर्ज कर तुरंत कोर्ट में पेश किया जाना चाहिए."
कोर्ट का कहना था कि इस मामले में अगर जांच की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को लेकर गंभीर शक़ न हों तो एनएचआरसी को इसकी रिपोर्ट देना ज़रूरी नहीं है, हालांकि एनएचआरसी और राज्य मानवाधिकार कमीशन को इसकी जानकारी ज़रूर दी जानी चाहिए.