अंतरराष्ट्रीय

लाहौर में बीवी की इजाज़त के बिना दूसरी शादी करने वाले पति को सज़ा, क्या कहता है पाकिस्तान का क़ानून
22-Mar-2024 8:49 AM
लाहौर में बीवी की इजाज़त के बिना दूसरी शादी करने वाले पति को सज़ा, क्या कहता है पाकिस्तान का क़ानून

-आज़म ख़ान

लाहौर की एक स्थानीय अदालत ने उस शख़्स को सात महीने क़ैद और पांच लाख रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई है जिसने अपनी पहली बीवी से लिखित इजाज़त और इसके लिए क़ानूनी शर्तें पूरी किए बिना दूसरी शादी की है.

अदालत ने कहा है कि अगर कसूरवार जुर्माने की रक़म अदा नहीं करता है तो उसे और एक माह क़ैद की सज़ा होगी.

फ़ैमिली कोर्ट के जज अदनान लियाक़त ने इस सज़ा को एक हफ़्ते के लिए स्थगित कर दिया ताकि अभियुक्त अगर चाहे तो संबंधित अदालत में इस सज़ा के ख़िलाफ़ अपील कर सकें.

अदालत के अनुसार, चूंकि सज़ा एक साल से कम की है, इस वजह से अभियुक्त को अपील का मौक़ा दिया गया है.

अगर अभियुक्त संबंधित अदालत नहीं जाते या उनकी अपील ख़ारिज हो जाती है तो उस स्थिति में उन्हें जेल भेज दिया जाएगा.

इस मामले की शुरुआत 4 सितंबर, 2021 को उस वक़्त हुई जब लाहौर की रहने वाली एक महिला ने अपने पति के ख़िलाफ़ स्थानीय अदालत में आवेदन देकर यह शिकायत की कि उनके शौहर ने उनकी इजाज़त के बिना दूसरी शादी कर ली है.

महिला ने दावा किया कि न केवल दूसरी शादी उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ की गई बल्कि उनके शौहर ने इससे पहले क़ानूनी तरीक़ा भी नहीं अपनाया. यह क़ानून यूनियन काउंसिल से दूसरी शादी का इजाज़तनामा लेने से संबंधित है.

महिला ने अदालत में दिए अपने आवेदन में कहा कि उनके शौहर का यह क़दम क़ानून के ख़िलाफ़ है, इसलिए अदालत क़ानून के अनुसार अपना फ़ैसला सुनाए.

सुनवाई के दौरान पति ने अदालत को बताया कि उनकी पहली शादी आवेदन देने वाली महिला के साथ 24 सितंबर, 2011 को हुई थी मगर लगातार कोशिशों के बावजूद उनकी पत्नी गर्भधारण नहीं कर पा रही थीं.

अपने दावों के सबूत में पति ने अपनी पहली बीवी की मेडिकल रिपोर्ट अदालत को सौंपी और कहा कि उन्होंने हर इलाज करवाया और ख़र्च किया मगर वह पिता न बन सके. इसलिए उन्होंने दूसरी शादी का फ़ैसला किया.

इस बारे में पति ने अदालत को बताया कि हालांकि लिखित तौर पर तो नहीं, मगर पहली बीवी के भाई और पिता की मौजूदगी में उन्होंने अपनी पत्नी से ज़बानी इजाज़त ली थी. इसके बाद उन्होंने 22 मार्च, 2021 को दूसरी शादी कर ली.

पति का दावा था कि न तो उन्होंने दूसरी बीवी से पहली शादी छिपाई और न ही पहली बीवी से दूसरी शादी की बात छिपाई. उनके अनुसार, उन्होंने अपने दूसरे निकाहनामे में भी ख़ुद को शादीशुदा बताया है.

लेकिन अदालती कार्यवाही के दौरान पहली बीवी ने पति के इन दावों को ग़लत बताया.

पत्नी के आवेदन देने के लगभग साढ़े तीन साल बाद इस हफ़्ते अदालत ने इस महिला के पक्ष में अपना फ़ैसला सुनाया है.

इस केस के विस्तृत फ़ैसले के अनुसार, पिछले साढ़े तीन साल के दौरान होने वाली सुनवाइयों में पति ने पहली बीवी की ओर से लगाए गए आरोपों को ख़ारिज कर दिया और दावा किया कि उन्होंने दूसरी शादी से पहले पहली बीवी से ज़बानी इजाज़त ली थी.

लेकिन अभियुक्त ने यह माना कि वह दूसरी शादी से पहले अपनी संबंधित यूनियन काउंसिल से औपचारिक अनुमति पत्र नहीं ले सके थे.

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद लाहौर के फ़ैमिली कोर्ट ने पति को मुस्लिम फ़ैमिली लॉज़ ऑर्डिनेंस, 1961 की धारा 6 के उल्लंघन का दोषी बताया है.

अदालत ने कहा है कि हालांकि मुस्लिम व्यक्ति को एक ही वक़्त में चार शादियां करने की इजाज़त है लेकिन इसके लिए कुछ क़ानूनी शर्तें भी पूरी करनी होती हैं.

पाकिस्तान में निकाह, तलाक़ और शादी-ब्याह के दूसरे मामलों से संबंधित क़ानून मुस्लिम फ़ैमिली लॉज़ के तहत आते हैं.

मुस्लिम फ़ैमिली लॉज़ सन 1961 में ऑर्डिनेंस के रूप में लागू किया गया था. बिना इजाज़त दूसरी शादी करने के इस मामले में अभियुक्त को इसी ऑर्डिनेंस की धारा 6 के तहत सज़ा सुनाई गई है.

ऑर्डिनेंस की धारा 6 एक से अधिक शादियों के बारे में है.

उसके अनुसार, पहली शादी रहते हुए कोई शख़्स दूसरी शादी उस वक़्त तक नहीं कर सकता जब तक कि वह आर्बिट्रेशन काउंसिल (यूनियन काउंसिल) से इसके लिए लिखित अनुमति पत्र न ले ले.

इसके लिए काउंसिल में दिए जाने वाले आवेदन के साथ आवेदन देने वाले को फ़ीस जमा करवानी होती है. इसके अलावा पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी करने की वजह लिखनी होती है.

साथ ही साथ यह भी बताना होता है कि नई शादी के लिए पहली बीवी या बीवियों से इजाज़त ले ली गई है.

यह आवेदन मिलने के बाद काउंसिल आवेदनकर्ता और उसकी पहली बीवी को अपना एक-एक प्रतिनिधि बनाने का आदेश देती है और मामला मध्यस्थता कमेटी को भेजा जाता है.

मध्यस्थता कमेटी दोनों प्रतिनिधियों की दलीलें सुनकर अगर इस बात से संतुष्ट होती है कि नई शादी करने की ठोस वजह मौजूद है तो दूसरी, तीसरी या चौथी शादी का सशर्त या बिना शर्त इजाज़तनामा जारी कर दिया जाता है.

ऑर्डिनेंस की धारा 6 के अनुसार, अगर ऊपर बताई गई क़ानूनी कार्रवाई पूरी किए बिना कोई शख़्स शादी करता है तो उसे अपनी पहली बीवी को तत्काल मेहर (निकाह के समय तय की गई राशि या सामान) अदा करना होता है. ऐसे शख़्स पर क़ानूनी कार्रवाई की जाती है जिसमें अधिक से अधिक सज़ा एक साल क़ैद और पांच लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है.

लाहौर की अदालत ने कहा कि चूंकि पति ने दूसरी शादी से पहले यह सभी क़ानूनी शर्तें पूरी नहीं कीं इसलिए उसे सात महीने क़ैद और जुर्माने की सज़ा सुनाई जाती है.

ध्यान रहे कि सन 2020 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मेहर के अधिकार से संबंधित एक आवेदन पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि दूसरी शादी से पहले पहली बीवी या मध्यस्थता काउंसिल की अनुमति लेना ज़रूरी है ताकि समाज में संतुलन बना रह सके.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में मुस्लिम फ़ैमिली लॉज़ ऑर्डिनेंस, 1961 के सेक्शन 6 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया था कि इस धारा के तहत दूसरी शादी की मनाही नहीं है.

इससे पहले सन 2013 में काउंसिल ऑफ़ इस्लामी आइडियोलॉजी (इस्लामी विचारधारा परिषद) ने पाकिस्तान सरकार को दूसरी शादी के लिए लागू क़ानूनी शर्तों को ख़त्म करने का प्रस्ताव दिया था.

काउंसिल ने कहा था कि इस्लाम में चार शादियों की इजाज़त है और अगर पहली बीवी राज़ी न भी हो तो दूसरी, तीसरी या चौथी शादी करना ग़ैर शरई (शरीयत के ख़िलाफ़) नहीं है.(bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news