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‘छत्तीसगढ़’ संवादाता
बिलासपुर, 30 अप्रैल। पत्नी की हत्या के एक मामले में ट्रायल कोर्ट से मिली सजा को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि अन्य परिस्थितियां और साक्ष्य पर्याप्त हों तो अपराध में प्रत्यक्षदर्शी का होना जरूरी नहीं है।
अभियोजन के मुताबिक दल्ली राजहरा के दिनेश तारम ने अपने साले दुष्यंत भास्कर को 12 अप्रैल 2019 को फोन किया। उसने बताया कि उसने अपनी पत्नी साधना भास्कर की कुदाल मारकर हत्या कर दी है। उसका एक अन्य व्यक्ति के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था जिससे नाराज होकर उसने यह कदम उठाया। दुष्यंत अपने एक साथी को लेकर आरोपी के घर ग्राम झापारा पहुंचा। वहां उसकी बहन साधना आंगन में मृत अवस्था में पड़ी थी। उस पर धारदार औजार से हमला हुआ था, जिससे खून बिखरा पड़ा था। सूचना मिलने पर सुकमा पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। जांच के बाद पति दिनेश को गिरफ्तार किया गया और विवेचना कर केस डायरी ट्रायल कोर्ट में पेश की गई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
फैसले के खिलाफ आरोपी दिनेश तारम ने हाईकोर्ट में अपने अधिवक्ता के माध्यम से अपील की। इसमें कहा गया कि घटना में कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर उसे सजा दी गई है। अपील की सुनवाई हाईकोर्ट में जस्टिस रजनी दुबे की बेंच ने की। कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में परिस्थितिजन्य सबूतों की प्रचुरता है। आरोपी की बेगुनाही का निष्कर्ष निकालने का उचित आधार नहीं है। स्पष्ट हुआ है कि सभी मानवीय संभावनाओं में यह कार्य आरोपी ने किया होगा। साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 का उपयोग कानून के उस सुस्थापित नियम को कमजोर करने के लिए नहीं किया जा सकता कि साबित करने का बोझ अभियोजन पर है। असाधारण श्रेणी के मामलों को छोड़कर इसे कभी भी स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 उन मामलों पर लागू होगी जहां अभियोजन पक्ष तथ्यों को स्थापित करने में सफल रहा है।