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![चिकित्सकों के लिए मरीज को दवा के दुष्प्रभाव की जानकारी देना अनिवार्य करने संबंधी अर्जी खारिज चिकित्सकों के लिए मरीज को दवा के दुष्प्रभाव की जानकारी देना अनिवार्य करने संबंधी अर्जी खारिज](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1716225827h_n.jpg)
नयी दिल्ली, 20 मई। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें अनुरोध किया गया था कि चिकित्सा पेशेवरों को मरीज के लिए पर्चे पर लिखी गई दवा से जुड़े सभी प्रकार के संभावित जोखिम और दुष्प्रभावों के बारे में बताना अनिवार्य किया जाए।
उच्च न्यायालय ने कहा कि मरीजों के लिए पर्चे पर लिखी जाने वाली दवाओं के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में सूचित करने के लिए विधायी सुरक्षा उपाय पहले से ही मौजूद हैं।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी एस अरोड़ा की पीठ ने कहा कि चूंकि जनहित याचिका (पीआईएल) में यह स्वीकार किया गया है कि विधायी सुरक्षा उपाय पहले से मौजूद हैं, इसलिए जिस दिशा-निर्देश का अनुरोध किया गया है, उसे जारी नहीं किया जा सकता और याचिका खारिज की जाती है।
उच्च न्यायालय जैकब वडाकनचेरी की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्र और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि देश में कार्यरत सभी चिकित्सा पेशेवरों को किसी मरीज को दवा के पर्चे के साथ (क्षेत्रीय भाषा में एक अतिरिक्त पर्ची) दिया जाना अनिवार्य किया जाए, जिसमें पर्चे में लिखी गई दवा या फार्मास्युटिकल उत्पाद से जुड़े सभी प्रकार के संभावित जोखिम और दुष्प्रभाव का उल्लेख किया गया हो।
उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया है कि रोगी को लिखी जाने वाली दवाओं के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में सूचित करने के संबंध में विधायी सुरक्षा उपाय मौजूद हैं। (भाषा)
पीठ ने कहा, "चूंकि विधायिका ने अपने विवेक से निर्माता और फार्मासिस्ट के लिये यह कर्तव्य निर्धारित करने का फैसला किया है, हमें इस जनहित याचिका में किये गए अनुरोध के अनुसार निर्देश जारी करने का कोई आधार नहीं दिखता है, क्योंकि यह न्यायिक कानून के समान होगा।"