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राधिका और भूपेश फिर आमने-सामने?
भाजपा अब कांग्रेस की पूर्व प्रवक्ता राधिका खेड़ा को यूपी, और अन्य जगहों पर प्रचार के लिए भेजने की रणनीति बना रही है। चर्चा है कि यूपी में राधिका रायबरेली में रहकर भाजपा प्रत्याशी का प्रचार करेंगी।
कांग्रेस ने राहुल गांधी को रायबरेली से प्रत्याशी बनाया है। साथ ही पार्टी ने पूर्व सीएम भूपेश बघेल को रायबरेली का पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। भूपेश वहां चुनाव प्रचार करेंगे। ऐसे में भाजपा राहुल और भूपेश के खिलाफ राधिका खेड़ा को प्रचार में उतारने की तैयारी कर रही है।
राधिका खेड़ा ने पिछले दिनों राजीव भवन में कांग्रेस के संचार विभाग के चेयरमैन सुशील आनंद शुक्ला से विवाद के बाद पार्टी छोड़ दी थी। उन्होंने सुशील पर बदसलूकी करने और राहुल गांधी की न्याय यात्रा के दौरान उन्हें (राधिका) शराब का ऑफर करने सहित कई गंभीर आरोप लगाए थे। राधिका ने भूपेश बघेल पर भी आरोपों की झड़ी लगाई थी। सुशील ने उन्हें मानहानि की नोटिस भी भेजा है लेकिन अब राजीव भवन का विवाद रायबरेली में भी गूंजने के आसार दिख रहे हैं।
पुराना बयान, नया बवाल
महादेव सट्टा केस में ईओडब्ल्यू-एसीबी ने हवलदार विजय पांडे के चारामा स्थित घर में छापेमारी की, और उसे सील कर दिया। चर्चा है कि पांडे पिछली सरकार के ताकतवर पुलिस अफसरों के करीबी रहे हैं। एक प्रकरण में तो उन्होंने एक पुलिस अफसर के खिलाफ शिकायत भी की थी। इसके बाद में पुलिस अफसर के खिलाफ कार्रवाई भी हो गई।
अब महादेव सट्टा केस में नाम आने से पहले हवलदार ने अपने पुराने बयान से पल्ला झाड़ लिया था, और इसकी सूचना वकील के माध्यम से विभाग को भेज दी थी। बावजूद इसके वो बच नहीं पाए। चर्चा है कि आने वाले दिनों में कई और प्रभावशाली लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।
अकेले काम की आदत
कोई भी काम किसी एक से नहीं हो सकता। इसीलिए तो कहा गया है कि अकेला चना...! और सरकारी दफ्तरों में तो संभव ही नहीं है। एक पूरी टीम काम करती है तो फाइल आगे बढ़ती है। लेकिन हम यहां दो दफ्तरों की बात बता रहे हैं जहां साहब लोग अकेले काम करना चाहते हैं, लेकिन हो नहीं पा रहा। इसे साहब लोगों की मातहतों से अस्पृश्यता नहीं कहा जा सकता । राजघराने जैसे सरनेम वाले एक साहब मरीजों का इलाज का काम करते हैं। उन्हें मातहत क्लर्क, अनुभाग अधिकारी, आदि-आदि पसंद नहीं हैं । अपने रूम में एक तरह से उनके आने पर रोक लगा दी है। उनके कमरे में केवल डिप्टी डायरेक्टर ही आ सकते हैं।
दूसरे साहब जंगल दफ्तर वाले हैं। इनका तरीका ही अलग है। दैनिक वेतन भोगी और छोटे कर्मचारियों से बचने साहब ने अपना पूरा दफ्तर ही नए शहर में शिफ्ट कर दिया। साहब ने काफी कोशिश की कि अरण्य भवन में एक कमरा मिल जाए,लेकिन वहां के पीठासीनों ने नहीं होने दिया । अब साहब जंगल सफारी मेंं दफ्तर बना लिया है। हालांकि ये उसी के साहब भी है।
बाबा की भक्ति ने संकट में डाला
धार्मिक आयोजनों का मोह राजनीतिक व्यक्ति नहीं छोड़ पाता। कथा-पुराण, प्रवचन हो तो बिना मेहनत भीड़ मिल आती है। मगर जब आचार संहिता लगी हो तो उम्मीदवार कुछ सतर्क रहता है। ऐसे कार्यक्रमों के कर्ता-धर्ता के रूप में अपना नाम सामने लाने से बचता है, ताकि खर्च उनके खाते में न जुड़े। कोरबा संसदीय सीट के चिरमिरी में बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र शास्त्री की हनुमान कथा हुई। कांग्रेस की शिकायत के बाद भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडेय के खिलाफ जांच हुई। मनेंद्रगढ़ के सहायक रिटर्निंग ऑफिसर ने जब भाजपा प्रत्याशी से जवाब मांगा तो उन्होंने सफाई दी है कि कार्यक्रम उन्होंने नहीं बसंत अग्रवाल ने किया था। जबकि शिकायत के साथ जमा की गई प्रचार सामग्री के मुताबिक आयोजकों में बसंत अग्रवाल के अलावा सरोज पांडेय व स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का भी नाम है। निगरानी दल की वीडियोग्राफी से भी इस बात की पुष्टि हो गई है। चुनाव खर्च में इस आयोजन के खर्च को जोड़ा जाए या नहीं इसका फैसला जिला निर्वाचन अधिकारी करेंगे। एआरओ ने अपनी रिपोर्ट उन्हें भेज दी है। प्रत्याशी के किस इंतजाम का कितना खर्च जोडऩा है, इसकी पूरी लिस्ट निर्वाचन विभाग में बनी रहती है। धीरेंद्र शास्त्री हेलीकॉप्टर से उतरे थे। विशाल पंडाल था। सारा खर्च निर्वाचन विभाग की चेक लिस्ट के हिसाब से जोड़ा जाएगा तो व्यय लाखों रुपये में पहुंचेगा। दूसरे चुनाव खर्चो का हिसाब अलग से है ही। प्रावधान यह भी है कि यदि सीमा से अधिक खर्च की पुष्टि हुई तो उक्त प्रत्याशी का निर्वाचन, यदि हुआ तो वह शून्य हो जाएगा।
टेम्पो फिर सडक़ पर...
ताजा राजनीतिक बयानबाजी ने लोगों को टेम्पो की याद दिला दी है। नई पीढ़ी को तो ठीक तरह से टेंपो के बारे में पता भी नहीं है। कुछ बरस पहले तक प्रदेश की सडक़ों पर डीजल से चलने वाली पों-पों करती, काला धुआं छोड़ती, ये किफायती सवारी गाड़ी दिख जाती थी, लेकिन अब गायब हो चुकी है। उसकी जगह पेट्रोल डीजल से चलने वाले ऑटो रिक्शा ने ले ली। और अब तो ई रिक्शा का दौर चल निकला है।
जिस कंपनी ने शुरुआत में भारत में टेंपो ब्रांड के वाहन पेश किए थे उसका नाम टेंपो लिमिटेड था। इसकी स्थापना 1949 में जर्मनी में हुई थी और 1951 में भारत पहुंच गया। टेम्पो ब्रांड से ही भारत में हल्के वाणिज्यिक वाहन बनाने के लिए भारत की प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स लिमिटेड के साथ भागीदारी हुई। 1971 में टेम्पो लिमिटेड ने अपना नाम बदलकर फोर्स मोटर्स लिमिटेड कर लिया। अब भी यह कंपनी फोर्स मोटर वैन, मिनी बस और कमर्शियल गाडिय़ां बनाती है। पर भारत में सवारी टेंपो का निर्माण सन् 2000 तक होता रहा। छत्तीसगढ़ में सवारी ढोने वाली टेंपो नजर नहीं आती, पंजाब और दूसरे राज्यों के कुछ हिस्सों में अब भी चल रही हैं। यदि भूले-भटके दिख जाए तो हो सकता है वह अडानी-अंबानी की हो। ([email protected])