विचार / लेख
-डॉ. आर.के. पालीवाल
अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव को यूं तो पूरा विश्व ध्यान से देखता है इधर पिछले कुछ वर्षों से भारत के लोग भी अमेरिकी चुनाव में काफी रुचि लेने लगे हैं क्योंकि भारत के उच्च मध्यम वर्ग के बहुत सारे युवाओं के लिए अमेरिका पहली पसन्द बन गया है। वैसे इधर सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र में काफी समानताएं भी दिखाई दे रही हैं।
विशेष रूप से रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बातें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों से काफी मेल खाती हैं। भास्कर अखबार ने भी हाल में शायद इसी दृष्टि से ट्रंप का इंटरव्यू लिया है क्योंकि एन आर आई सहित काफी भारतीय अमेरिका के चुनाव पर नजर रखते हैं। भास्कर मे प्रकाशित इस इंटरव्यू के कुछ खास तथ्य ध्यान देने योग्य हैं, मसलन यदि कमला हैरिस जीत गई तो वे अमेरिकियों की जेब से धन निकालेंगी और मैं जीता तो सबकी जेब में डॉलर आएंगे। याद आता है हमारे प्रधानमंत्री का वह बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस के राज में स्विस बैंकों में भारत से अकूत काला धन विदेशों में गया था हम उसे वापस लाकर सबके खाते में पंद्रह लाख रूपये डालेंगे। दूसरे, ट्रंप कहते हैं कमला हैरिस यहूदियों से नफरत करती हैं और वे हमास समर्थक हैं, वे जीत गई तो यहूदियों का खात्मा तय है। हमारे प्रधानमंत्री और उनका दल भी ऐसी कई बात हिंदुओं और मुस्लिमों के संदर्भ में कहते रहे हैं। ट्रंप यह भी कहते हैं कि डेमोक्रेट्स के राज में अपराधी किस्म के घुसपैठियों ने अमेरिका में आफत मचा दी, हम जीतते ही उन्हें बाहर भगा देंगे। भारत में यह बात रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के लिए कही जाती रही है।
ट्रंप ने इस इंटरव्यू में भारत और भारतवंशी समुदाय के लिए भी स्पष्ट संदेश दिया है कि व्हाइट हाउस में भारत के लिए उनसे बेहतर कोई उम्मीदवार नहीं हो सकता।
ट्रंप के चुनाव अभियान में धर्म और राष्ट्रीयता का जबरदस्त छौंक लगा है। उन्होंने अपने ऊपर हुए हालिया हमलों को भी चुनावी मुद्दा बनाया है।उनकी तुलना में कमला हैरिस के बयानों में उस तरह का बड़बोलापन नहीं है जिसके लिए ट्रंप जाने जाते हैं। डेमोक्रेट्स के चुनाव अभियान की तुलना अपने यहां कांग्रेस से की जा सकती है। हम भारतीय और अमेरिका में बसे भारतवंशी इस बात के लिए खुश या दुखी हो सकते हैं कि अमेरिका के लोकतंत्र में भी भारतीय लोकतंत्र की कई विकृतियों का प्रवेश हो गया है। कम से कम यही संतोष किया जा सकता है कि एक हम ही खराब नहीं हैं दुनिया के बड़े मुल्क भी खराब हो रहे हैं। बहरहाल अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव का असर केवल अमेरिका ही नहीं कम या अधिक, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूरी दुनिया पर पड़ता है।जो देश शक्ति और संपन्नता में जितना बड़ा है उस पर अमेरिका का उतना ही ज्यादा असर होता है क्योंकि वर्तमान भौतिकतावादी दुनियां में संपन्नता ही शक्ति का सबसे बड़ा प्रतीक बन गई है। यही कारण है कि चाहे रूस यूक्रेन युद्ध हो या इजराइल फिलिस्तीन युद्ध या फिर पड़ोसी बांग्लादेश की ताजा अस्थिरता, अमेरिका के चुनाव के बाद जो भी राष्ट्रपति बनेगा वह इन सब मुद्दों को अगले कुछ साल तक अपने हिसाब से निबटाने की कोशिश करेगा। जहां तक भारत का प्रश्न है उसके बारे में रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ने जहां खुलेआम भारत के पक्ष की घोषणा की है वहीं इस मामले में भारतीय मूल से जुड़ी डेमोक्रेट प्रत्याशी कमला हैरिस अभी खुलकर भारत अमेरिका संबंधों पर बोलने से बचती दिख रही हैं। अमेरिकी चुनाव में जीत हार चाहे जिसकी हो शायद अमेरिकी भारत वंशियों के लिए इस बार के चुनाव बड़ी दुविधा में डालने वाले हैं। एक तरफ भारवंशी का टैग लगी कमला हैरिश मे उन्हें अपनापन लग रहा है और दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रंप की खुलेआम भारत समर्थन की घोषणा उन्हें उनके पक्ष में आकर्षित कर रही होगी। इसके पहले अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में भारतीय अमेरिकियों के लिए ऐसी दुविधा कभी नहीं रही। देखते हैं कांटे की टक्कर दिखते इस चुनाव में अमेरिकी जनमत किसे अपनी कमान सौंपता है!