विचार / लेख

स्त्री-2 और तुम्बाड का हिट होना किस ओर इशारा करता है?
19-Sep-2024 4:21 PM
स्त्री-2 और तुम्बाड का हिट होना किस ओर इशारा करता है?

-हिमांशु दुबे

एक तरफ ‘वीराना’, ‘तहखाना’, ‘बंद दरवाज़ा’ या ‘पुराना मंदिर’ जैसी पुरानी फिल्में हैं तो दूसरी तरफ ‘भूत’, ‘स्त्री’, ‘भेडिय़ा’ जैसी नए जमाने की फिल्में हैं।

लेकिन इन सभी फि़ल्मों में एक बात कॉमन है। वो है- डर से भरपूर माहौल।

इसी की तलाश में भारतीय सिनेमा की हॉरर फिल्मों का प्रशंसक थिएटर तक पहुंचता है।

70 और 80 के दशक में रामसे ब्रदर्स हॉरर फिल्मों का पर्याय बनकर उभरे थे। उन्होंने लगभग 45 फिल्में बनाईं और ज़्यादातर फिल्में कमाई के लिहाज से फायदे का सौदा साबित हुईं।

फिर एक लंबा अंतराल आया, जब बड़े परदे से हॉरर फिल्में लगभग गायब हो गईं। इस दौरान फिल्म मेकर राम गोपाल वर्मा ने कुछ फिल्में बनाईं, लेकिन वैसा माहौल नहीं बन पाया, जैसा रामसे ब्रदर्स के समय था।

राम गोपाल वर्मा ने ‘कौन’, ‘रात’, ‘भूत’, ‘फूंक’, ‘डरना मना है’, ‘भूत रिटर्न’ और ‘ये कैसी अनहोनी’ जैसी फिल्में बनाईं।

मगर, दर्शकों के बीच ‘रात’ और ‘भूत’ जैसी फि़ल्मों को ही पसंद किया गया।

इसके बाद पिछले कुछ सालों में ‘1920’, ‘स्त्री’, ‘शैतान’, ‘भेडिय़ा’, ‘मुंज्या’, ‘स्त्री-2’ और ‘तुम्बाड’ जैसी फिल्में रिलीज हुईं, जिन्हें दर्शकों ने ख़ूब पसंद किया। यह क्रम अभी भी जारी है।

ऐसे में सवाल उठा कि क्या भारतीय सिनेमा में हॉरर फिल्मों का दौर फिर लौट आया है? या इस बदलाव की वजह ओटीटी प्लेटफॉम्र्स मात्र ही हैं।

ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने के लिए बीबीसी हिंदी ने सिनेमा से जुड़े विशेषज्ञों से बात की, जिन्होंने इस ट्रेंड की कुछ खास संभावित वजहें बताई हैं।

‘अगर हॉरर के साथ कॉमेडी भी हो,

तो डबल मजा आता है’

जाने-माने फिल्म समीक्षक कोमल नाहटा कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि पहले के ज़माने में हॉरर फिल्में ‘सी’ कैटेगरी की मानी जाती थीं, तो फिल्म मेकिंग भी कमज़ोर रहती थी। फिल्म स्टार्स ऐसी फिल्में करने के लिए राजी नहीं होते थे। इसलिए, सामान्य तौर पर ऐसी फिल्मों में स्टार्स नहीं होते थे।’

‘जब से फिल्म स्टार्स ने ऐसी फिल्मों को महत्व देना शुरू किया, तब से इन फिल्मों का बजट भी बढ़ गया, क्योंकि, फिल्म स्टार्स पैसा लेते हैं।’

कोमल नाहटा मानते हैं कि भारतीय सिनेमा में हॉरर के बढ़ते क्रेज का क्रेडिट दर्शकों को भी जाता है।

वो कहते हैं, ‘ऑडियंस का मिजाज़ भी विकसित हुआ है। क्योंकि, इतने सालों तक हॉरर जॉनर आगे ही नहीं आया था।’

‘इसलिए, अचानक ऑडियंस को भी लगा कि हॉरर में भी मज़ा आता है और अगर हॉरर के साथ कॉमेडी भी हो, तो डबल मजा आता है।’

कोमल नाहटा कहते हैं, ‘इसलिए, आप देखेंगे कि फि़ल्म ‘स्त्री’ भी चली, ‘स्त्री-2’ भी चली। पहले ‘मुंज्या’ चली। कुछ साल पहले आई ‘गोलमाल अगेन’ भी चली थी, जो हॉरर कॉमेडी थी। ये एक नया पॉपुलर जॉनर ऑडियंस के बीच आ गया है।’’

तो फिल्म ‘तुम्बाड’ को थिएटर में मिल रही प्रतिक्रिया किस बात का इशारा है?

इस सवाल पर कोमल नाहटा कहते हैं, ‘जब ‘तुम्बाड’ रिलीज हुई थी, तब अच्छी नहीं गई थी। बिजनेस अच्छा नहीं हुआ था। लेकिन, इसकी चर्चा ख़ूब हुई थी। क्लास ऑडियंस को यह बहुत पसंद आई थी।’

‘मुझे लगता है कि इस बार इसका बिजनेस पहले से ज़्यादा होगा। कई बार दिमाग में होता है कि यह हमने ओटीटी पर देखी थी। चलो, अब थिएटर में देखते हैं।’

‘स्त्री-2’ और ‘तुम्बाड’ की कमाई

      बॉक्स ऑफिस पर ‘स्त्री-2’ और ‘तुम्बाड’ जैसी फिल्मों की कमाई इस बात का संकेत देती दिखती हैं कि दर्शकों की पसंद में बदलाव तो आ रहा है।

जाने-माने फिल्म क्रिटिक तरण आदर्श ने सोशल मीडिया पर लिखा- ‘फिल्म ‘स्त्री-2’ ने रिलीज होने के पांचवें हफ्ते में सोमवार (16 सितंबर 2024) को 3.17 करोड़ रुपये की कमाई की। यह फिल्म अब तक बॉक्स ऑफिस पर कऱीब 583 करोड़ रुपये की कमाई कर चुकी है और 600 करोड़ रुपये की कमाई के आंकड़े को पार कर सकती है।’

उन्होंने दूसरे ट्वीट में लिखा- ‘फिल्म ‘तुम्बाड’ साल 2018 में जब पहली बार थिएटर में रिलीज़ हुई थी, तब इस फिल्म ने दो हफ्ते में करीब नौ करोड़ रुपए कमाए थे। इसने पहले हफ़्ते में 5.85 करोड़ रुपए और दूसरे हफ़्ते में 3.14 करोड़ रुपए थे।’

‘मगर, जब फिर से इस फि़ल्म को थिएटर में रिलीज किया गया, तो अब इस फि़ल्म ने केवल 4 दिन में करीब नौ करोड़ रुपए कमा लिए हैं। फिल्म ने शुक्रवार को 1.65 करोड़ रुपए, शनिवार को 2.65 करोड़ रुपए, रविवार को 3.04 करोड़ रुपए और सोमवार को 1.69 करोड़ रुपए कमाए। इस फि़ल्म ने सोमवार को शुक्रवार से ज़्यादा कमाई की।’

वैसे बॉक्स ऑफिस पर ‘तुम्बाड’ जैसी फिल्मों के कमाई को लेकर वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज एक नया पहलू जोड़ते हैं।

वह कहते हैं, ‘फिल्म ‘तुम्बाड’ को थिएटर में मिल रहे रिस्पांस में एक मजेदार पक्ष जुड़ा है। इसे आपको केवल हॉरर फिल्म को मिल रहे रिस्पांस तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए। दरअसल, आजकल फिल्मों को फिर से थिएटर में रिलीज़ करने का मौका मिल रहा है। इसकी शुरुआत हुई थी ‘लव स्टोरी’ से। ’

उन्होंने कहा, ‘जब ऐसा होता है तो फिल्म को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बातें होती हैं। दर्शकों के बीच फिल्म को लेकर एक जुड़ाव पैदा हो जाता है, जो दर्शकों को थिएटर तक खींच लाता है। ‘तुम्बाड’ के साथ भी ऐसा ही हो रहा है।’

अजय ब्रह्मात्मज इसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की एक बड़ी भूमिका मानते हैं।

वो कहते हैं, ‘इसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने भी रोल प्ले किया है। इसके ज़रिए फि़ल्म का कनेक्शन दर्शकों के साथ पहले ही बन चुका था। अब दर्शक थिएटर में पहुंच रहे हैं।’

‘दरअसल, घर पर आपको थिएटर वाला अनुभव नहीं मिल पाता है। थिएटर में आप लोगों के साथ फि़ल्म देखते हैं। घर पर आप अकेले भी देखेंगे, तो एकाग्रता से नहीं देख पाएंगे। मगर, थिएटर में यह संभव हो जाता है।’

हॉरर फिल्मों का ट्रेंड किस ओर जा रहा है?

क्या हिंदी सिनेमा में हॉरर फिल्मों का दौर ऐसी फिल्मों से लौट पाएगा?

इस सवाल पर कोमल नाहटा कहते हैं, ‘नहीं। ‘तुम्बाड’ जैसी फिल्म से तो नहीं लौटकर आएगा। यह ट्रेंड सेट हो रहा है। ‘स्त्री-2 जैसी फिल्म से। वैसे तो ‘स्त्री’ के बाद ही यह ट्रेंड सेट हो गया था। ‘गोलमाल अगेन’ जैसी फि़ल्म भी चली थी।’

उन्होंने कहा, ‘हालांकि ऐसी फि़ल्मों की संख्या अब भी कम है। अभी भी फ़ैमिली ड्रामा और रोमांस ज़्यादा है। मगर, हां। अब ऐसी फि़ल्मों को लेकर माहौल बन रहा है।’

दक्षिण भारत से एक्टर ममूटी की ‘ब्रह्मयुगम’ जैसी फिल्में भी हैं, जिसने सिनेमाघरों में अच्छी कमाई की थी और अब ओटीटी पर काफी पसंद की जा रही हैं।

तो क्या भारतीय सिनेमा में हॉरर फि़ल्मों का ट्रेंड लौट रहा है?

इस पर वरिष्ठ पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज कहते हैं, ‘नहीं। मैं ऐसा नहीं मानता हूं। मुश्किल से एक या दो फिल्में सफल हुई हैं। एक ‘मुंज्या’ और दूसरी ‘स्त्री-2’। इसलिए, हम इसे ट्रेंड नहीं कहेंगे।’

 

वो कहते हैं, ‘तुम्बाड’ तो पुरानी फि़ल्म थी। लोगों का उससे जुड़ाव था। इसलिए उसे अच्छा रिस्पांस मिल रहा। बीच में ‘भूल भुलैया’ भी अच्छी चली है। अब ‘भूल भुलैया-3’ भी आ रही है।’

वो कहते हैं, ‘दरअसल, हॉरर और कॉमेडी का मिक्स लोगों को बहुत पसंद आ रहा है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है और बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है, यह कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि, पब्लिक का ट्रेंड समझ पाना मुश्किल काम है।’

उन्होंने ख़ुद का उदाहरण देते हुए कहा, ‘जैसे मुझे ‘स्त्री-2’ अच्छी नहीं लगी। ‘स्त्री’ ज़्यादा बेहतर फि़ल्म थी। उसमें एक विचार था, जिसका इस्तेमाल फिल्ममेकर्स ने किया था। हालांकि, ‘स्त्री-2’ को देखने दर्शक पहुंच रहे हैं। नंबर्स यह बता रहे हैं।’

अजय कहते हैं, ‘मगर, क्या यह एक ट्रेंड बन गया है। मैं ऐसा मानने के लिए तैयार नहीं हूं। अभी भी दो-तीन फिल्में और बन रही हैं। उनमें पॉपुलर स्टार्स भी काम कर रहे हैं। तो यह एक सिलसिला है।’

बॉलीवुड में कैसा रहा है फि़ल्मों का ट्रेंड?

इसके इतर, बॉलीवुड में फि़ल्मों के ट्रेंड को लेकर वरिष्ठ पत्रकार सुदीप मिश्रा कहते हैं, ‘बॉलीवुड में शुरू से ही एक ट्रेंड रहा है। वो ये कि कुछ प्रोडक्शन हाउस एक जैसी फि़ल्में बनाते रहे हैं।’

उन्होंने कहा, ‘जैसे पहले के समय में रामसे ब्रदर्स हॉरर फि़ल्में बना रहे थे। उनकी ज़्यादातर फि़ल्मों को दर्शकों ने पसंद किया। अब ‘भेडिय़ा’, ‘मुंज्या’ या ‘स्त्री-2’ जैसी फि़ल्मों की बात करें तो इन्हें मैडॉक फिल्म्स बना रहा है। अभी भी ज़्यादा प्रोडक्शन हाउस ऐसी फिल्में नहीं बना रहे हैं।’

तो क्या यह माना जाए कि हॉरर फि़ल्मों की संख्या में कोई इजाफ़ा नहीं होने वाला है?

इस पर सुदीप कहते हैं, ‘देखिए, हॉरर फि़ल्में बॉलीवुड के लिए विक्रम भट्ट ने भी ख़ूब बनाई हैं। ‘1920’, ‘1920 रिटन्र्स’, ‘राज’ फ्रेंचाइजी की फि़ल्में उसी कड़ी में आती हैं। ये सभी सफल भी रही हैं।’

‘मगर, इसमें ऐसी फिल्मों के दौर लौटने वाली कोई बात नहीं है। कुछ सफल हो जाती हैं, तो कुछ असफल होती हैं। इसलिए, यशराज या धर्मा जैसे बड़े प्रोडक्शन हाउस ने हॉरर फिल्मों में ज़्यादा रुचि कभी नहीं दिखाई।’ (www.bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news