विचार / लेख
- डॉ. आर.के. पालीवाल
अंतत: अरविंद केजरीवाल को लगभग छह महीने जेल में रहने के बाद जमानत मिल गई और उन्होंने मुख्यमंत्री पद भी छोड़ दिया। प्रवर्तन निदेशालय के मामले में कड़े कानून के बावजूद उन्हें जमानत मिलने से यह तो स्पष्ट हो गया था कि उसी मामले में सी बी आई के केस में भी उन्हें जमानत मिल जाएगी। वैसे भी एक मामले में अलग अलग एजेंसियों द्वारा बार बार किसी व्यक्ति को जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है। और जब मामला काफ़ी पुराना है तो उसमें यह भी तर्क नहीं दिया जा सकता कि अभियुक्त बाहर रहकर सबूत नष्ट कर सकता है क्योंकि कोई चतुर व्यक्ति सालों तक अपने खिलाफ सबूत सुरक्षित नहीं रखेगा।
बहरहाल उसी शर्त पर दस लाख के मुचलके पर केजरीवाल जेल से बाहर आए थे जो शर्त प्रवर्तन निदेशालय के केस में थी, मसलन वे सी एम दफ्तर नहीं जाएंगे , फाइलों पर दस्तखत नहीं करेंगे आदि। न्यायालय ने सी बी आई की गिरफ़्तारी के समय को लेकर भी प्रतिकूल टिप्पणी की है और माना है कि जांच शुरू होने के सालों बाद गिरफ्तारी का औचित्य नहीं है। दूसरे क्योंकि अभी कोर्ट में सुनवाई शुरू नही हुई है और मामला काफ़ी लम्बा चलने की उम्मीद है इसलिए इतने लंबे समय तक उन्हें जेल में रखना उचित नहीं है। तीसरे उन्हें प्रवर्तन निदेशालय के मामले में ज्यादा कड़े प्रावधान के चलते भी जमानत मिल चुकी है इसलिए सी बी आई के मामले में जमानत स्वीकार्य है। न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने पूर्व न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा की उस टिप्पणी, जिसमें सी बी आई को पिंजरे का तोता कहा गया था, को आगे बढ़ाते हुए उम्मीद जताई है कि सी बी आई अपनी पिंजरे के तोते की छवि तोडक़र स्वतंत्र जांच करेगी। यह टिप्पणी जांच एजेंसी से ज्यादा केंद्र सरकार के खिलाफ है।
जहां तक अरविंद केजरीवाल का प्रश्न है उनके लिए अभूतपूर्व स्थिती है। केजरीवाल ने चौतरफा दबाव से अंतत: भारी मन से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडऩा ही उचित समझा। हालांकि वे बिहार में जीतनराम मांझी को नीतीश द्वारा सौंपी गई कुर्सी और हेमंत सोरेन द्वारा अपने साथी चंपई सोरेन को अपनी कुर्सी पर बैठाने की फजीहत देख चुके हैं।
मुख्यमंत्री पद पर तो केजरीवाल ने अपनी पसंदीदा मंत्री आतिशी मार्लेना को बिठा दिया लेकिन अब अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री आवास और उससे जुड़ी तमाम सुविधाएं भी छोडऩी होंगी । मुख्यमंत्री की हैसियत से वे अन्य प्रदेशों में घूमते रहते थे अब उन्हें उन सब सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ेगा। वे भले ही राजनिति में खुद को सादगी पसंद व्यक्ति घोषित करते रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद मुख्यमंत्री के भव्य आवास को और भव्य बनाने में उन्होंने भी जनता का खूब धन खर्च किया था।यदि वे अभी भी पद पर बने रहने की जिद पर अड़े रहते तो उनके साथ पद लोलुपता हमेशा के लिए बुरी तरह चिपक जाती। उनके पद पर बने रहने से जन कल्याण के वे सब मामले भी अटक जाते जिन पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर जरुरी हैं। चुनावी वर्ष में इतना रिस्क लेना संभव नहीं था।
यदि अरविंद केजरीवाल दिल्ली की जनता की सही अर्थ में सेवा करना चाहते हैं तो उन्हें जनता से सीधा संवाद स्थापित करना चाहिए । सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें केवल जमानत दी है दोषमुक्त नहीं किया। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से भी यह सिफारिश करनी चाहिए कि उनके मामले को तय समय सीमा में त्वरित जांच और प्रतिदिन सुनवाई कर शीघ्र निबटाया जाए। यदि वे कथित शराब घौटाले में दोषमुक्त हो जाते हैं तब वे फिर से जोशो खरोस से मुख्यमंत्री पद संभाल सकते हैं।फिलहाल मुख्यमंत्री पद आतिशी मार्लेना को सौंपकर केजरीवाल का कद अपनी पार्टी और राजनीतिक जमात में थोडा तो बढ़ ही गया। अब वे भार मुक्त होकर आगामी विधानसभा चुनावों में अपने दल और गठबंधन दोनों को मज़बूत करने में बेहतर भूमिका निभा सकते हैं।