विचार / लेख
-कनुप्रिया
बाबाओं द्वारा अंधविश्वास फैलाने वाले वीडियोज/रील्स तो बहुत देखी होंगी, जिसमें वो तर्क ही नहीं सहज-बुद्धि की भी धज्जियाँ उड़ा देते हैं, और अपने जीवन से परेशान धर्म में अपनी तकलीफों का उपाय ढूँढने वाले लोग इन बाबाओं की उल्टी सीधी जाहिलियत भरी बातें भी भक्ति भाव से सुनते हैं क्योंकि उन्होंने उस धर्म का चोला पहन रखा है जिसके प्रति लोग सम्मान से भरे हैं, जो उनके अस्तित्व का आधार बन चुका है, इसलिये भले उस चोले के पीछे कितना ही बड़ा मूर्ख, मक्कार, ढोंगी, धोखेबाज, ठग ही क्यों न छुपा है, वो उसे सर माथे बिठाएँगे।
मगर इसी बीच जब ऐसे वीडियोज/रील्स दिखाई देती हैं जहाँ फि़जि़क्स को बहुत ही छोटे छोटे प्रयोग के साथ सिखाया जा रहा हो तो सुकून मिलता है। विज्ञान भी चमत्कार से भरा है बस उसके नियम पता होने की देर है। हम लोगों ने फिजिक्स को महज किताबों से जाना, उसकी प्रयोगशालाओं में गिने-चुने निर्धारित प्रयोग होते थे, विज्ञान नम्बर लाने की चीज़ होता था। मगर यहाँ रोजमर्रा की छोटी-छोटी चीजें क्यों और किस तरह काम करती हैं, जऱा सा दबाव बदल कर, जरा से पृष्ठ तनाव से, जऱा सा तापमान ऊपर नीचे करके, द्घह्म्द्बष्ह्लद्बशठ्ठ और ड्डठ्ठद्दह्वद्यड्डह्म् द्वश1द्वद्गठ्ठह्ल को काम मे लेकर, शिक्षक बच्चों की कक्षाओं में उन्हें छोटे छोटे प्रयोगों से सिखा रहे हैं, और विज्ञान मानो जादू जैसा लगता है, कठिन लगकर उसके प्रति भीतर दुराव नही पैदा होता।
टीवी, पर मीडिया पर दूसरे ग्रह के प्राणियों की झूठी कहानियाँ, जादुई गुफा, भूतों वाली हवेलियाँ , नागलोक की सीढिय़ों, बर्फानी बाबा जैसी चीजें दिखाने की जगह प्राकृतिक चमत्कारों के पीछे की फिजिक्स, केमिस्ट्री और गणित दिखाई जाती तो बेहतर होता।
मगर नहीं, लोगों को तार्किक सोच वाला जागरूक व्यक्ति बनाने की जगह अंधविश्वासी मूर्ख और महज पैसे कमाने वाली मशीन में बदला जा रहा है। जब विज्ञान और तकनीक नित नई ऊँचाइयाँ छू रहे हैं तो कौन हैं वो लोग जो नहीं चाहते कि आम लोगों में सामान्य बुद्धि भी बची रहे?
जब हम लगातार दकियानूसी समाज बनते जा रहे हों तो ऐसी पहल करने वाले जो नई पीढ़ी को दिलचस्प तरीकों से विज्ञान से अवगत करा रहे हों, देखकर ख़ुशी होती है।