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नई दिल्ली, 8 जुलाई (वार्ता)। देश में दुर्लभ प्रजाति के ‘दोहरे नारियल’ वाले एकमात्र पेड़ को बचाने के हरसंभव प्रयास तेज कर दिए गए हैं। लंबे समय से लुप्तप्राय इस प्रजाति के दूसरे पौधे तैयार करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अब तक इनमें सफलता नहीं मिली है।
पश्चिम बंगाल में हावड़ा के आचार्य जगदीश चंद्र बोस भारतीय वनस्पति उद्यान में स्थित इस नारियल के पेड़ का शीर्ष दो-तीन साल पहले एक फफूंद की चपेट में आ गया था जिसके बाद इसका विकास बाधित हो गया था। पिछले एक साल से इसमें एक भी नया पत्ता नहीं निकला है और इसके अन्य पत्ते पीले पड़ते जा रहे हैं जिसने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है ।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की पत्रिका फल-फूल में हाल में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार अंग्रेजों ने 1894 में दोहरे नारियल वाला इस नारियल पेड़ को लगाया था। करीब 125 साल पुराना यह मादा पेड़ अब मरने के कगार पर पहुंच गया है जिसके कारण इसे बचाने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं।
नारियल की इस प्रजाति के पेड़ करीब 1200 साल तक जीवित रह सकते हैं लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार यह पेड़ अलग इलाके और जलवायु में है जिसके कारण यह अपना जीवन काल पूरा नहीं कर सकता। यह पेड़ लगभग 30 मीटर लंबा होता है । मादा पेड़ पर हरे रंग के फल लगते हैं और हृदय के अकार के होते हैं। फल का भार 15 से 20 किलो का होता है और पांच से आठ साल में परिपक्व होता है।
संस्थान के क्यूरेटर एस एस हामिद के अनुसार इस पेड़ के मरने से पहले कोई परिपक्व फल तैयार हो जाता है तो दूसरा पेड़ तैयार किया जा सकता है। अंग्रेजों ने भारत, श्रीलंका और थाईलैंड में दोहरे नारियल के पेड़ लगाए थे। ऐसे नारियल के पेड़ सेशेल्स द्वीप पर पाए जाते हैं।