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370 हटने के बाद उमर अब्दुल्ला पहली बार खुलकर बोले, याद की मोदी से मुलाकात
28-Jul-2020 2:50 PM
370 हटने के बाद उमर अब्दुल्ला पहली बार खुलकर बोले, याद की मोदी से मुलाकात

नई दिल्ली, 28 जुलाई। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कहा है कि जब तक जम्मू-कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता है, वो विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। अमर अब्दुल्लाह ने अंग्रेजी के अखबार इंडियन एक्सप्रेस में सोमवार (27 जुलाई) को एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने कई अहम बातों का जिक्र किया है।

उमर ने लिखा, जहां तक मेरा सवाल है, मैं बिल्कुल स्पष्ट हूं कि जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश रहेगा, मैं विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ूँगा। इस धरती के सबसे शक्तिशाली विधानसभा का छह सालों तक सदस्य रहने और वो भी उसके नेता रहने के बाद मैं उस सदन का सदस्य नहीं रह सकता जिसके अधिकारों को इस तरह से छीन लिया गया हो।

पिछले साल (2019) पांच अगस्त को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने न केवल जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35्र को हटा दिया था, बल्कि जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था।
केंद्र सरकार के इस फैसले के कुछ ही घंटे पहले उमर अब्दुल्लाह, उनके पिता और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्लाह, राज्य की एक और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती समेत सैकड़ों नेताओं को नजरबंद या गिरफ्तार कर लिया गया था।

पहले बिना किसी आरोप के उन लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन फरवरी 2020 में उमर अब्दुल्लाह, महबूबा मुफ्ती समेत कुछ और नेताओं पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगा दिया गया था। लेकिन सात महीनों के बाद 24 मार्च को उमर अब्दुल्लाह को रिहा कर दिया गया था। उसके एक हफ्ते पहले उनके पिता और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्लाह को भी रिहा कर दिया गया था। लेकिन महबूबा मुफ्ती अब तक हिरासत में हैं और मई में उन पर दोबारा पीएसए लगाया गया था।

मार्च में रिहा होने के बाद उमर अब्दुल्लाह ट्विटर पर तो सक्रिय रहे हैं लेकिन पहली बार उन्होंने किसी अखबार में इतना लंबा लेख लिखा है। उमर के अनुसार 2019 में नरेंद्र मोदी के दोबारा जीत कर सत्ता में आने के बाद उन्हें और उनकी पार्टी को इस बात का तो अंदाजा था कि केंद्र सरकार अनुच्छेद 370 और 35 को खत्म कर सकती है लेकिन उन्हें इसका कत्तई अंदेशा नहीं था कि राज्य को विभाजित कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया जाएगा।
इस बारे में उमर लिखते हैं, मैंने अपनी पार्टी के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ पांच अगस्त से कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी। उस मीटिंग को मैं इतनी जल्दी नहीं भूलूंगा। एक दिन मैं उसके बारे में लिखूँगा। फिलहाल मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि उस बैठक के बाद हमें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं हुआ था कि अगले 72 घंटों में क्या होने वाला है।

उमर आगे लिखते हैं, जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा जो कि जम्मू-कश्मीर के भारत के संघ में शामिल होने का सबसे महत्वपूर्ण और शायद अनिवार्य हिस्सा था, उसे खत्म कर दिया गया। सच कहूं तो, बीजेपी ऐसा करेगी, ये शायद उतना अचंभित करने वाला नहीं था, ये दशकों से बीजेपी का चुनावी एजेंडा था। जिसने हमलोगों को चकित किया, वो था, राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटकर हम लोगों को अपमानित किया जाना। पिछले सात दशकों में केंद्र शासित प्रदेशों को बढ़ाकर राज्य का दर्जा दिया गया है, लेकिन यह पहली बार हुआ था कि एक राज्य का दर्जा घटाकर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।

उमर ने लिखा है कि वह आज तक यह बात नहीं समझ सके हैं कि आखिर इसकी जरूरत क्या थी, सिवाए जम्मू-कश्मीर के लोगों को सजा देने और अपमानित करने के। वो लिखते हैं, अगर लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के पीछे ये तर्क था कि वहां की बौद्ध आबादी लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग कर रही थी, तो जम्मू के लोगों के लिए एक अलग राज्य की माँग तो बहुत पुरानी थी। अगर ये धर्म पर आधारित था तो इसने इस तथ्य को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया कि लद्दाख के दो जिले लेह और कारगिल मुस्लिम बहुल हैं और कारगिल के लोग जम्मू-कश्मीर से अलग होने के विचार के बिल्कुल खिलाफ हैं।

उमर ने लिखा है कि जब भारतीय संसद में अनुच्छेद 370 हटाने के लिए मंजरी दी जा रही थी तो इसे खत्म करने के कई कारण बताए गए थे लेकिन कोई भी तर्क बुनियादी कसौटी पर भी खरा नहीं उतरता।

उमर के अनुसार ये आरोप लगाया गया था कि 370 के कारण राज्य में अलगाववादी सोच और चरमपंथी हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है और इसे हटा देने से राज्य में आतंकवाद खत्म हो जाएगा।

उमर सवाल करते हैं, अगर ऐसी बात है तो फिर 370 हटाने के करीब एक साल बाद उसी केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में क्यों कहने पर विवश होना पड़ा कि राज्य में हिंसा बढ़ रही है।

उन्होंने कहा कि राज्य में गरीबी और निवेश की बात भी बेबुनियाद है। उन्होंने कहा कि देश के कई राज्यों की तुलना में जम्मू-कश्मीर में गरीबी बहुत कम है। उन्होंने कहा कि मानव विकास सूचकांक के मामले में भी जम्मू-कश्मीर गुजरात से बहुत बेहतर है। (bbc.com/hindi)

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