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पश्चिम बंगाल : ना मरीज़ को इलाज, ना मुर्दे को श्मशान
30-Jul-2020 6:42 PM
पश्चिम बंगाल : ना मरीज़ को इलाज, ना मुर्दे को श्मशान

संजय दास

कोलकाता, 30 जुलाई| उत्तर 24-परगना ज़िले के बनगाँव में 62 साल के कोरोना संक्रमित एक व्यक्ति को स्थानीय सरकारी अस्पताल से कोलकाता के बड़े अस्पताल में भेजने के दौरान किसी ने एंबुलेंस पर चढ़ने में मदद नहीं की.

पीपीई किट पहन कर ड्राइवर दूर से खड़ा तमाशा देखता रहा. मरीज़ की पत्नी सहायता की गुहार लगाती रही. लेकिन कोई भी मदद के लिए सामने नहीं आया. नतीजतन मौक़े पर ही उस व्यक्ति की मौत हो गई. अब तीन-सदस्यीय टीम मामले की जाँच कर रही है.

कोलकाता के बेहला इलाक़े में एक वयस्क व्यक्ति की मौत के बाद 15 घंटे तक शव घर में पड़ा रहा. बार-बार सूचना देने के बावजूद न तो पुलिस मौक़े पर पहुँची और न ही स्वास्थ्य विभाग के लोग.

सरकार की नाक के नीचे राजधानी कोलकाता से लगभग रोज़ाना सामने आने वाली ऐसी खबरें अब शायद कहीं किसी को परेशान नहीं करतीं. जब राजधानी का यह हाल है तो राज्य के बाकी ज़िलों की हालत का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल नहीं है.

राज्य में तेज़ी से बढ़ते कोरोना संक्रमण ने स्वास्थ्य विभाग के आधारभूत ढाँचे, इस महामारी से निपटने की सरकारी तैयारियों और दावों की पोल खोल दी है.

आलम यह है कि निजी और सरकारी अस्पतालों में भर्ती नहीं हो पाने की वजह से हर सप्ताह कई मरीज़ असमय ही दम तोड़ रहे हैं. इनमें आम लोग ही नहीं, डिप्टी मजिस्ट्रेट जैसे सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं.

संक्रमण पर काबू पाने के लिए सरकार ने अब हर सप्ताह दो दिनों के सख़्त लॉकडाउन का एलान किया है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अब पानी सिर के ऊपर से बहने लगा है. ऐसे में दो अलग-अलग दिन के लॉकडाउन का कोई ख़ास फ़ायदा नहीं होगा. अब सरकार ने भी मान लिया है कि राज्य के कुछ इलाक़ों में कोरोना का कम्यूनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो गया है.

धराशायी होते नए-नए दावे

कोरोना से निपटने के लिए सरकार रोज़ाना नए-नए दावे कर रही है. वह अस्पतालों में बेड की तादाद बढ़ाने पर भी ज़ोर दे रही है. लेकिन एक महीने में अगर बेड की संख्या एक हज़ार बढ़ती है, तो रोज़ाना औसतन 2400 मरीज़ आ रहे हैं.

बेड की क़िल्लत की वजह से सरकार अब हल्के या बिना लक्षण वाले मरीज़ों को होम आइसोलेशन की सलाह दे रही है. लेकिन अव्यवस्था और बेक़ाबू होती परिस्थिति की एक कड़वी मिसाल यह है कि कोरोना के मरीज़ों को महज पाँच छह किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए भी नौ हज़ार रुपए से ज़्यादा का भुगतान करना पड़ रहा है.

इसी तरह कुछ निजी अस्पताल पीपीई किट के लिए ही एक लाख या इससे ज़्यादा की रक़म वसूल रहे हैं. बीते सप्ताह एक मामले में तो हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप कर एक निजी अस्पताल को पीपीई के मद में वसूली गई डेढ़ लाख रुपए की रक़म लौटाने का निर्देश दिया था.

कई निजी और सरकारी अस्पतालों में तो कोरोना के मरीज़ के बगल वाले बेड पर सामान्य मरीज़ या फिर किसी के शव को पूरी रात रखने की शिकायतें, तस्वीरें और वीडियो अक्सर सामने आ रहे हैं.

आइसोलेशन वार्ड में रख रहे शव

बीते सप्ताह नदिया ज़िले में कल्‍याणी स्थित मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती एक मरीज़ के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर उन्हें जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल (जेएनएम) अस्‍पताल के एक आइसोलेशन वार्ड में शिफ़्ट किया गया था. लेकिन, वहाँ उस मरीज़ के बेड के सामने वाले बेड पर एक शव पड़ा था.

लगभग चौबीस घंटे तक शव वहीं पड़ा रहा. अस्पताल के अधीक्षक डॉक्‍टर अभिजीत मुखर्जी का कहना है कि संसाधनों की कमी की वजह से शवों को मुर्दाघर पहुँचाने में देरी हो रही है. इसी वजह से शव को आइसोलेशन वार्ड में रखना पड़ा. फ़िलहाल इस मामले की भी जाँच हो रही है.

कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों के बाद अब कई सरकारी और निजी अस्पताल भी बेड ख़ाली नहीं होने की बात कर ऐसे मरीज़ों से कन्नी काटने लगे हैं.

इसे देखते हुए सरकार ने चेतावनी दी है कि अगर किसी ने ऐसा किया, तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा. सरकारी अस्पतालों के मामले में सख़्त कार्रवाई करने की भी बात कही गई है. लेकिन बावजूद इसके ऐसी घटनाएँ थमने का नाम नहीं ले रही हैं.

स्वास्थ्य विभाग के आँकड़ों के मुताबिक़, पूरे राज्य में 80 कोविड-19 अस्पतालों में 10,862 बेड हैं. इनमें से कोलकाता में 2,062 बेड हैं. महानगर के निजी अस्पतालों में 1,414 बेड हैं. इसके अलावा उत्तर 24-परगना ज़िले के तमाम अस्पतालों में 336 बेड हैं.

बावजूद इसके रोज़ाना कई मरीज़ों को बेड की कमी की वजह से अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. कलकत्ता मेडिकल कॉलेज अस्पताल, केपीसी मेडिकल कॉलेज और बेलेघाटा स्थित संक्रामक बीमारियों के अस्पताल जैसे कोविड अस्पतालों में कभी कोई बेड ख़ाली नहीं रहता.

दिलचस्प बात यह है कि ऑनलाइन अपडेट में कई अस्पतालों में ख़ाली बेड की तादाद तो नज़र आती है, लेकिन वहाँ पहुँचने पर बेड ख़ाली नहीं होने की बात कह कर मरीज़ों को टरका दिया जाता है.

स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, "राज्य के सरकारी अस्पतालों में कोरोना के मरीज़ों के लिए 10 हजार बेड हैं. लेकिन निजी अस्पतालों में दो हज़ार से भी कम बेड हैं. तेज़ी से बढ़ते संक्रमण की वजह से बेड तुरंत भर जाते हैं. सरकार अब बेड की संख्या बढ़ाने का प्रयास कर रही है."

उस अधिकारी ने बताया कि सरकार ने हल्के या कम लक्षण वाले मरीज़ों को होम क्वारंटीन सुविधा के लिए 106 सेफ़ हाउस बनाए हैं. उनमें छह हज़ार बेड हैं.

सरकारी अस्पतालों से उठा भरोसा

वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फ़ोरम के डॉ. कौशिक लाहिड़ी कहते हैं, "सरकारी अस्पतालों से लोगों का भरोसा ख़त्म हो चुका है. यही वजह है कि लोग निजी अस्पतालों की शरण में जा रहे हैं. वहाँ उनसे मनमानी रक़म वसूली जाती है. लेकिन सरकार सब देखते हुए भी चुप्पी साधे बैठी है."

वह बताते हैं कि राज्य में आईसीयू में महज 948 बेड और 395 वेटिंलेटर हैं. बार-बार कहने के बावजूद सरकार इनकी संख्या बढ़ाने में नाकाम रही है.

मरीज़ों की लगातार बढ़ती तादाद को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार अब स्टेडियम, लॉज, स्कूलों और ज़िलों में बने नाइट शेल्टर को भी अस्थायी अस्पताल बना रही है.

हाल में ईडेन गार्डेन में पुलिस वालों के लिए ऐसा ही एक अस्थायी अस्पताल बनाया गया है. लेकिन डॉ. लाहिड़ी कहते हैं कि इन अस्पतालों में काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों, आईसीयू और वेटिंलेटरों की व्यवस्था नहीं होने तक इनसे कोई फ़ायदा नहीं होगा.

सरकार ने जिन निजी अस्पतालों में कोविड-19 वार्ड बनाए हैं, उनमें ऑक्सीजन और दूसरी ज़रूरी सुविधाओं का अभाव है. नतीजतन कोरोना के मरीज़ वहाँ नहीं जा रहे हैं. मरीज़ों के स्वस्थ होने में अब पहले के मुक़ाबले ज़्यादा समय लग रहा है. इस वजह से बेड लंबे समय तक ख़ाली नहीं हो पाते. इससे स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंतित है.

सरकार की ओर से गठित विशेषज्ञ समिति लगातार इन अस्पतालों के दौरे कर रही है. लेकिन समस्या जस की तस है. समिति को कोरोना मरीज़ों के इलाज के प्रोटोकॉल में गड़बड़ी की भी शिकायतें मिली हैं. इससे ऐसे मरीज़ों की मौत के मामले बढ़े हैं, जो कोमार्बिडिटी यानी दूसरी गंभीर बीमारियों के शिकार नहीं थे.

बढ़ानी होगी टेस्ट

सरकार की विशेषज्ञ समिति के सदस्य डॉ. अभिजीत मित्र कहते हैं, "कोरोना के मरीज़ों की रिकवरी रेट बेहतर बनाने के लिए हम समय-समय पर ज़रूरी दिशा-निर्देश जारी करने के साथ ही नई रणनीति भी बना रहे हैं. रिकवरी रेट में गिरावट के बारे में मरीज़ों का इलाज करने वाले डॉक्टरों से बातचीत की जा रही है."

एक स्वास्थ्य अधिकारी बताते हैं, "राज्य में कोरोना के तेज़ी से बढ़ते मामले चिंता का विषय बन गए हैं. इस पर अंकुश लगाने का सबसे बढ़िया तरीक़ा जाँच की संख्या बढ़ाना और आधारभूत ढाँचे को दुरुस्त करना है. हमने बंगाल के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में कोविड-19 यूनिट स्थापित करने की योजना बनाई है."

सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, जुलाई के दौरान संक्रमण के 82 प्रतिशत और मौतों के 90 प्रतिशत मामले सिर्फ़ दक्षिण बंगाल के पाँच ज़िलों से ही आए हैं. इनमें भी कोलकाता, उत्तर 24-परगना और हावड़ा ज़िले कोरोना का केंद्र बन गए हैं.

स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, "फ़िलहाल बिना लक्षण या हल्के लक्षण वाले कई मरीज़ होम क्वारंटीन में रह रहे हैं. लेकिन आने वाले दिनों में किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए दक्षिण बंगाल में बेड की संख्या जितनी संभव हो, बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है."

मशहूर चिकित्सक कुणाल सरकार कहते हैं, "फ़िलहाल अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाना सबसे ज़रूरी है. अगर हम संक्रमण के नए मामलों पर अंकुश नहीं लगा सकते, तो बेड की संख्या तो जल्दी बढ़ा ही सकते हैं. बिना इसके मौतों पर क़ाबू पाना मुश्किल होगा."

वह कहते हैं कि जाँच के मामले में बंगाल अब भी ज़्यादातर राज्यों से बहुत पीछे है. इसे तेज़ी से बढ़ाना होगा. सरकार अब रोज़ाना 25 हजार मामलों की जाँच की बात कह रही है. लेकिन इसके लिए आधारभूत सुविधाओं की कमी है.

एक अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर श्यामाशीष बनर्जी कहते हैं, "आम लोगों की लापरवाही की वजह से इस महीने संक्रमण तेज़ी से बढ़ा है."

लोगों में बढ़ रहा डर

निजी अस्पतालों के संगठन एसोसिएशन आफ हॉस्पीटल्स आफ ईस्टर्न इंडिया के अध्यक्ष रूपक बरूआ का कहना है कि कई लोग आतंकित होकर कोरोना की जाँच कराने के लिए आ रहे हैं. इससे जांच केंद्रों पर दबाव बढ़ रहा है. डॉक्टरों की सलाह के बिना जाँच कराने की ज़रूरत नहीं है. ऐसे लोगों की वजह से असली मरीज़ों को परेशानी हो रही है.

गृह सचिव आलापन बनर्जी ने बीते सप्ताह स्वीकार किया था कि राज्य के कई इलाक़ों में कोरोना का कम्यूनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो गया है. उनके मुताबिक़, सप्ताह में दो दिन के लॉकडाउन से प्रशासन को कुछ हद तक हालात पर क़ाबू पाने में सहायता मिलेगी.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को आधारभूत ढाँचे को दुरुस्त करने के साथ ही मरीज़ों और उनके परिजनों की दुर्दशा पर भी ध्यान देना चाहिए. जिससे की न तो किसी व्यक्ति को इलाज के लिए अस्पतालों का चक्कर नहीं लगाना पड़े और न ही किसी का शव अंतिम संस्कार के लिए घंटों इंतज़ार करता रहे.

इसके लिए संबंधित सरकारी कर्मचारियों को मानवीय व्यवहार भी अपनाना होगा. स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सुकांत चक्रवर्ती कहते हैं, "कहीं किसी को इसकी चिंता नहीं नज़र आ रही है. सरकार रोज़ाना आँकड़े जारी कर और स्वस्थ होने वाले मरीज़ों की संख्या बढ़ने का दावा कर अपनी पीठ थपथपाने में ही जुटी है. लेकिन परिस्थिति धीरे-धीरे गंभीर होती जा रही है."

वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फ़ोरम के सचिव कौशिक चाकी कहते हैं, "सरकार के लिए अकेले इस महामारी से लड़ना संभव नहीं है. आम लोगों में और जागरुकता बढ़ानी होगा. अब भी लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं. लॉकडाउन के अगले दिन बाज़ारों और सार्वजनिक स्थानों पर उमड़ने वाली भीड़ इसका सबूत है."(bbc)

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