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नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)| देशभर में कोरोना महामारी को देखते हुए मोहर्रम पर ताजिये के जुलूस नहीं निकाले जाएंगे और न ही सड़कों पर ढोल-नगाड़े बजेंगे। धर्मगुरुओं और प्रशासन ने भी लोगों से मुहर्रम का त्योहार घर पर ही कोरोना की गाइडलाइन का पालन करते हुए मनाए जाने की भी अपील की है।
कोरोना के चलते मोहर्रम, ईद, बकरीद, रक्षाबंधन, गणेश चतुर्थी, जन्माष्टमी गुरुगोविंद जयंती सभी त्योहारों पर बंदिशें रहीं, सभी त्योहारों में होने वाले रिवाजों में भी बदलाव दिखा। वहीं कोरोना काल की वजह से त्योहारों में कई सौ सालों की परंपराएं भी टूटीं। इस मसले पर आईएएनएस से कई बड़े मौलानाओं ने अपनी बात रखी।
ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के मुखिया इमाम उमर अहमद इलयासी ने आईएएनएस से कहा, "सरकार ने जो फैसला लिया है वो कोरोना को देखते हुए लिया है ये एक मजबूरी है। सरकार जब फैसला लेती है तो वो एक धर्म विशेष के लिए नहीं लेती। सभी का ख्याल करते हुए लिया जाता है।"
उन्होंने कहा कि जन्माष्टमी पर भी परंपरा टूटी है। जन्माष्टमी पर इस्कॉन मंदिर को बंद कर दिया गया। मंदिर बंद होने की वजह से पूजा नहीं हो पाई। रमजान के महीने में भी परंपरा टूटी, हिंदुस्तान क्या पूरी दुनिया मे एक ऐसे परंपरा टूटी की मस्जिदें बंद हो गईं, नमाज नहीं हो सकी।
इलयासी ने कहा कि इसी तरह नवरात्रों पर भी मंदिरों को बंद कर दिया गया। ईसाइयों में कभी चर्च बंद नहीं होते थे, लेकिन ये एक परंपरा टूटी। वहीं गुरुद्वारे 24 घंटे खुले रहते थे, लेकिन वे भी इस महामारी में बंद रहे। सभी धर्मों में मनाए जाने वाले त्योहारों पर होने वाले रिवाजों में बदलवाव हुआ, सभी त्योहारों की परंपरा टूटी।
उन्होंने कहा, "जहां मजबूरी हो, जब महामारी फैली हो, वहां पर सरकार सबको देखते हुए फैसला लेती है। हम बचेंगे तभी तो सारी चीजें बचेंगी। परंपराओं को देखें या अपनी जान? पहले जान को बचाना जरूरी होता है। सरकार के फैसलों का विरोध नहीं करना चाहिए, बल्कि सहयोग करना चाहिए।"
रिनाउंड इस्लामिक स्कॉलर एंड सोशल रिफॉर्मर डॉ. सयैद कल्बे रुशेद रिजवी ने आईएएनएस से कहा, "ताजिया जब निकलेगा, वो अपने साथ भीड़ लेकर निकलेगा और कोरोना बीमारी से रोजाना रिकॉर्ड टूट रहे हैं। कहीं भीड़ से ये बीमारी ऐसे व्यक्ति में न चले जाएं, जो पहले से किसी बीमारी से जूझ रहा हो। उसकी मौत का जिम्मेदार कौन होगा? इसे इस नजरिए से देखा जाना चाहिए। 700 800 सालों में जो परंपरा टूटी, इन्हें इस नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि ताजिया, अजादारी और जुलूस ये हमारे दिल में रहता है।"
उन्होंने कहा कि अजादारी एक ऐसी ताकत है, जिससे इंसानियत को बचाया जाएगा, न कि ऐसी अजादारी, जिससे दुनिया में ये बीमारी फैले।
रिजवी ने कहा कि चीजों को डिजिटलाइज करें, भीड़ बाहर नहीं निकलनी चाहिए, चाहे वो किसी भी धर्म की हो। क्या अभी तक कोई भीड़ निकली है जिसमें 10 हजार लोग शामिल हुए हों? क्या किसी को इजाजत दी गई है? इस महामारी में आप नहीं निकल सकते।
उन्होंने कहा, "मेरी गुजारिश हिंदुस्तान की सरकार से ये है कि अगर गांव का मुसलमान या हिंदू अपने सिर पर एक फीट का ताजिया लेकर अपने गांव की कर्बला में दफ्न करना चाहता है तो पुलिस उसका इंतजाम करे। डंडे का इस्तेमाल न करे, उसे ये काम करने दिया जाए, एक या दो आदमी के जाने से आपकी धारा 144 का उल्लंघन भी नहीं होगा।"
रिजवी ने कहा कि ताजिया रस्म नहीं है, त्योहार और ईद नहीं है। ताजिये का खुशी से कोई लेना-देना नहीं है। जब मुर्दे के लिए आपने 20 आदमी जाने की इजाजत है तो ये भी एक शोकसभा है, आप ऐसा कदम उठाएं जिससे धारा 144 बनी रहे।
लखनऊ में मौलाना कल्बे जवाद ने मुहर्रम के महीने में मातम, मजलिसें और ताजियों के जुलूस पर सरकार की ओर से रोक लगाए जाने पर नाराजगी जाहिर की थी और लखनऊ के इमामबाड़ा में धरने पर बैठ गए थे। वहीं, अब योगी सरकार ने घरों में ताजिए रखने की इजाजत दे दी है, जबकि सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मजलिसों का आयोजन भी हो सकेगा।
इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के चेयरमैन मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने आईएएनएस से कहा, "जबसे दुनिया बनी है, तबसे लेकर अब तक पहली बार हुआ है कि रमजान में और ईद में नमाजें नहीं हुईं। वो बड़ी परंपरा है या जुलूस की बड़ी परंपरा है?"
उन्होंने कहा, "कोरोना बीमारी किसी के कंट्रोल में नहीं है, दुनिया में कहीं पर भी, ईद बकरीद, रक्षाबंधन गणेश चतुर्थी, गुरुगोविंद जयंती सभी त्यौहारों पर बंदिशें लगीं। कोरोना का प्रोटोकॉल का ध्यान रखना चाहिए। मुसलमानों में रमजान और ईद से बढ़ कर कोई चीज नहीं। लिहाजा, इस मौके पर भी अपने घरों में करें या डिजिटल प्रोग्राम करे।"
हालांकि जब आईएएनएस ने फिरंगी महली से सवाल किया कि जो हाल ही में धरना-प्रदर्शन किया गया क्या वो सही था? इस सवाल के जवाब में मौलाना महली ने कहा, "वो कदम बिल्कुल गलत था। जब नमाज के लिए हमने कोई धरना-प्रदर्शन नहीं किया। जहां भी भीड़ जमा होगी, वहां बीमारी फैलेगी या कम होगी? जो कम पढ़े लिखे लोग हैं, उन्हें भी इस बात का इल्म है। किसी भी तरह का पब्लिक प्रोग्राम करना गलत है।"