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राहुल गांधी की कितनी छाप है कांग्रेस के नए बदलाव परः नज़रिया
12-Sep-2020 8:45 PM
राहुल गांधी की कितनी छाप है कांग्रेस के नए बदलाव परः नज़रिया

painting by -Rajasekharan Parameswaran

नई दिल्ली,12 सितम्बर: कांग्रेस पार्टी के संगठन में बदलाव की ख़बर जैसे ही आई, सबसे ज़्यादा चर्चा गुलाम नबी आज़ाद की रही. उनके बाद आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं की यानी वो सारे वरिष्ठ नेता जिन्होंने तीन हफ़्ते पहले कांग्रेस में मज़बूत नेतृत्व और संगठन में चुनाव की माँग की थी.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी संगठन में बड़ा फ़ेरबदल करते हुए गुलाम नबी आज़ाद समेत चार वरिष्ठ नेताओं को महासचिव की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया और कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्लूसी) का भी पुनर्गठन किया.

इसके अलावा उन्होंने एक समिति का भी गठन किया है जो पार्टी के संगठन और कामकाज से जुड़े मामलों में सोनिया गांधी का सहयोग करेगी.

ध्यान देने वाली बात ये है कि कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम ना तो सोनिया गांधी को सलाह देने वाली समिति में है और ना ही पार्टी संगठन में उन्हें कोई महत्वपूर्ण पद दिया गया है. और तो और किसी राज्य की ज़िम्मेदारी भी नहीं सौंपी गई.

लेकिन अगर ध्यान से देखें तो ये सारे बदलाव आने वाले दिनों में उनकी ताजपोशी की ओर इशारा कर रहे हैं.

कांग्रेस कार्यसमिति में राहुल गांधी का क़द अब भी ऊपर है. सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बाद अब वो तीसरे स्थान पर आ गए.

गांधी परिवार के चहेते

कांग्रेस की कार्यकारी अध्‍यक्ष को सलाह देने के लिए विशेष समिति में एके एंटनी, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक और रणदीप सिंह सुरजेवाला शामिल हैं. ये वो लोग हैं जो पूरी तरह से गांधी परिवार के विश्वासपात्र हैं.

इन लोगों ने कभी दबे रूप से भी राहुल गांधी के नेतृत्व की आलोचना नहीं की है. रणदीप सिंह सुरजेवाला तो राहुल गांधी की ख़ास पसंद हैं.

राहुल गांधी को उन पर पूरा भरोसा है और यही वजह है कि वो पार्टी के मुख्‍य प्रवक्‍ता, फिर पार्टी के महासचिव, कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्‍य और अब अध्‍यक्ष को परामर्श देने वाली समिति के सदस्‍य भी बन गए हैं.

सुरजेवाला अकेले ऐसे नेता हैं जिन्‍हें एक साथ इतने पद मिले हैं.

इसके साथ ही पार्टी ने मधुसूदन मिस्त्री को केंद्रीय चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया है.

2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात की वडोदरा सीट से मधुसूदन मिस्त्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था. उस दौरान वो काफ़ी विवादों में भी रहे.

गुजरात के मिस्त्री की भूमिका 2012 के उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी काफी अहम थी. वह राहुल गांधी के भी ख़ास हैं.

प्रियंका गांधी को पूरे उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई. इसके अलावा राहुल गांधी के चहेते दिनेश गुंडूराव, मणिकम और एच के पाटिल जैसे नेताओं का क़द पार्टी में बढ़ा है.

राज्यों के प्रभारी बनाने में भी राहुल गांधी के वफ़ादारों को प्राथमिकता दी गई है. इनमें शक्तिकांत गोहिल और राजीव साटव जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं.

बागियों को संदेश

पिछले दिनों कांग्रेस के 23 नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी और उसके बाद हंगामेदार कार्यसमिति की बैठक हुई. यह फ़ेरबदल इस घटना के 20 दिनों के अंदर हुआ है.

चिट्ठी लिखने वाले नेताओं ने कार्यसमिति का चुनाव कराए जाने की माँग की थी, लेकिन सोनिया गांधी ने कार्यसमिति पुनर्गठित कर दी.

सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मनमोहन सिंह, अहमद पटेल, गुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, ए के एंटनी, अम्बिका सोनी समेत कुल 22 नेता कार्यसमिति के सदस्य बनाए गए हैं.

गुलाम नबी आज़ाद कार्यसमिति के सदस्य बनाये गए हैं लेकिन उन्हें महासचिव के पद से हटा दिया गया है.

अम्बिका सोनी और मल्लिकार्जुन खड़गे को भी महासचिव की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है. हालांकि दोनों को ही कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया है.

आनंद शर्मा भी कार्यसमिति के सदस्य बनाये गए हैं. मुकुल वासनिक को महासचिव के पद पर बरक़रार रखा गया है और उन्हें सोनिया गांधी की मदद करने वाली समिति में भी जगह दी गई है.

चिट्ठी लिखने वाले नेताओं में शामिल भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी का नाम किसी भी लिस्ट में नहीं है.

सचिन पायलट को भी नजरअंदाज़ किया गया है. राजस्‍थान में उनके सारे पद पहले ही छीने जा चुके हैं. यानी बाग़ियों को भी पार्टी कोई संदेश दे रही है.

राहुल की वापसी की तैयारी

कांग्रेस वैसे भी राहुल गांधी को वापस लाने की तैयारी में थी. लॉकडाउन से पहले राहुल गांधी ने अर्थव्यस्था को लेकर मोदी सरकार पर चोट करनी शुरू कर दी थी.

उन्होंने दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों से मंदी पर बात की और छोटे-छोटे वीडियो जारी किए थे.

आम लोगों की समस्याओं को उठाने के लिए उन्होंने बक़ायदा हिन्दी में ये वीडियो जारी किए थे.

पलायन करने वाले मजदूरों से राहुल गांधी मिलने गए थे. यानी कांग्रेस की रणनीति थी कि आम लोगों की बात करने वाले नेता के रूप में राहुल गांधी की छवि बनाई जाए.

हालांकि वो कांग्रेस अध्‍यक्ष का पद छोड़ चुके थे और दोबारा इस पद पर आने के लिए मना कर रहे थे लेकिन कांग्रेस पार्टी उन्‍हीं को चेहरा बनाकर आगे बढ़ रही है.

कांग्रेस में दबी ज़बान में ये भी कहा जा रहा है कि इस फ़ेरबदल में सबसे ज़्यादा उन नेताओं को नज़रअंदाज़ किया गया है जो कांग्रेस मुख्‍यालय में बैठकर ही राहुल गांधी की आलोचना करते थे. यानी अब आर या पार का संदेश दिया जा रहा है.

पार्टी की सोच है कि राहुल गांधी का नेतृत्व स्थापित किया जाये और ये संदेश भी दिया जाये कि अनुशासन ज़रूरी है. साथ ही जनाधार वाले नेताओं को तरजीह देने की बात की गई है.
हालांकि ज़रूरी नहीं है कि राहुल गांधी की ताजपोशी अभी की जाये. कहा जा रहा है कि इस बार कांग्रेस पार्टी संभलकर राहुल गांधी को रीलॉन्च करेगी.

लोकसभा चुनाव में पूरे चार साल बाकी हैं, ऐसे में राहुल गांधी को अध्‍यक्ष बनाने की पार्टी को कोई जल्‍दी नहीं है.

कुल मिलाकर सोनिया गांधी की नई टीम में उनके पुराने वफ़ादारों के साथ-साथ राहुल गांधी के भरोसेमंद नेताओं को जगह मिली है और शांत बैठकर पार्टी नेतृत्व पर सवालिया निशान ना उठाने वाले नेताओं को इनाम दिया गया है. जबकि चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को महत्वपूर्ण पदों से दूर कर अनुशासन बनाये रखने का संदेश देने की कोशिश भी गई है.(BBCNEWS)

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