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बोलने की आजादी पर अंकुश के लिए हो रहा राजद्रोह का उपयोग, पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज ने उठाया सवाल
15-Sep-2020 7:37 PM
बोलने की आजादी पर अंकुश के लिए हो रहा राजद्रोह का उपयोग, पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज ने उठाया सवाल

नई दिल्ली, 15 सितंबर | सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने सोमवार को एक वेबिनार में कहा कि देश में सरकार बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए राजद्रोह कानून का उपयोग कर रही है। पूर्व न्यायाधीश लोकुर की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब रविवार रात जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को दिल्ली पुलिस द्वारा दिल्ली दंगों में यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले शनिवार को सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, योगेंद्र यादव, अपूर्वानंद, जयति घोष, राहुल रॉय, उमर खालिद समेत ऐसे कई लोगों के नाम दिल्ली पुलिस द्वारा दंगों की चार्जशीट में डालने की खबर आई, जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध-प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और उसके बाद उसके आयोजकों की गिरफ्तारी के खिलाफ मुखर विरोध दर्ज करा रहे थे।

सेवानिवृत्त जस्टिस लोकुर ने यह बात ‘बोलने की आजादी और न्यायपालिका’ विषय पर आयोजित एक वेबिनार में अपने संबोधन के दौरान कही। अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “बोलने की आजादी को कुचलने के लिए सरकार लोगों पर फर्जी खबरें फैलाने के आरोप लगाने का हथकंडा भी अपना रही है। कोरोना संक्रमण के मामलों और वेंटिलेटर की कमी जैसे मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले कई पत्रकारों पर फर्जी खबर के कानूनों के तहत आरोप लगाए गए और केस दर्ज किए जा रहे हैं।”

जस्टिस लोकुर ने कहा, “देश में अचानक ही ऐसे मामलों की संख्या बढ़ गई है, जिसमें लोगों पर राजद्रोह के मामले दर्ज किए गए हैं। इसी साल अब तक राजद्रोह के 70 मामले देखे जा चुके हैं। हालत ये है कि कुछ भी बोलने वाले एक आम नागरिक पर राजद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है।” उन्होंने डॉ कफील खान पर एनएसए लगाने के मामले का भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत आरोप लगाते समय उनके भाषण और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उनके बयानों को गलत पढ़ा गया।” उन्होंने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ न्यायालय की अवमानना के मामले का भी जिक्र किया।

कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफार्म्स और स्वराज अभियान द्वारा आयोजित इस वेबिनार में वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने कहा, “प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले में दी गई सजा बेतुकी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्षो का कोई ठोस आधार नहीं है।” उन्होंने कहा कि उनके मन में न्यायपालिका के लिए बहुत सम्मान है, क्योंकि यह न्यायपालिका ही है जिसने संविधान में प्रेस की आजादी को स्थापित किया। वेबिनार में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा कि प्रशांत भूषण की प्रसिद्धी काफी व्यापक होने के कारण इस मामले ने काफी लोगों को सशक्त किया है।(navjivan)

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