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नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली हिंसा के उन आरोपियों की जमानत याचिका को खारिज करते हुए आगे की जांच करने के लिए तकनीकी चीजों की मदद लेने वाली जांच एजेंसी की कार्रवाई पर कोई रोक नहीं लगाई है, जिनकी गिरफ्तारी पुलिस द्वारा डिजिटली पहचान किए जाने के बाद हुई है। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा जांच की जा रही एक मामले में मोहम्मद आरिफ पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं और शस्त्र अधिनियम के तहत हत्या, दंगा करने, षड्यंत्र रचने के आरोप हैं।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने यह देखते हुए आरिफ को जमानत देने से इनकार कर दिया कि एक तो उसके खिलाफ लगे आरोपों की प्रकृति गंभीर है और रिहा होने पर उसके द्वारा गवाहों को धमकाने या डराने की भी संभावना है।
सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि घटनास्थल पर आरोपी की डिजिटल पहचान की गई है। हालांकि आरोपी के प्रतिनिधि ने इस आधार पर डिजिटली पहचान पर विरोध जताया कि चार्जशीट के दाखिल होने के बाद यह कानूनन वैद्य नहीं है।
सरकारी वकील ने इस बात पर जोर दिया कि मामले में कुछ भी नया नहीं जोड़ा गया है, लेकिन हां, तकनीक के इस्तेमाल के चलते आरोपी की पहचान करने की प्रक्रिया बदल गई है।
इस पर कोर्ट ने कहा, "प्रथम दृष्टया में आगे की जांच में भी तकनीकी चीजों की मदद लेने में जांच एजेंसियों पर कोई रोक नहीं है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि चांद बाग में 24 फरवरी की रात के 12.06.35 बजे की सीसीटीवी फुटेज में आरोपी बिल्कुल स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है। उसने सफेद रंग की टी-शर्ट और ब्लैक लोअर पहन रखा है। उसके हाथ में एक छड़ी दिखाई पड़ रही है और इससे वह सीसीटीवी को नुकसान पहुंचाते हुए भी दिख रहा है।