राष्ट्रीय
-प्रकाश भंडारी
राजस्थान में जोधपुर से करीब 150 किलोमीटर दूर डेमोइसेल क्रेन का पहला जत्था 3 अक्तूबर को पहुंचा। बीकानेर और जोधपुर संभागों में इसे कुरजां या कुरजा कहते हैं। उम्मीद है कि महीने के अंत तक इनकी संख्या 30,000 हो जाएगी। हिमालय पर्वत श्रृंखला को पारकर ये यहां पहुंचती हैं और इस दौरान ये 26,000 फीट से भी ऊपर उड़ती हैं। माना जाता है कि ये रोजाना 200 मील या 321 किलोमीटर तक की उड़ान भरती हैं।
कहा जाता है कि कुख्यात रही फ्रांसीसी रानी मैरी एंटोइंटो ने इसे डैम्जल (नवयौवना) नाम दिया था लेकिन ये किसी भी तरह कमजोर नहीं हैं। ये मंगोलिया और चीन से लगभग 6,000 किलोमीटर की दूरी तय कर राजस्थान पहुंचती हैं। किसी जीपीएस के बिना ये कैसे यहां पहुंच जाती हैं और फिर लौट जाती हैं, यह गुत्थी अनसुलझी ही है। यह जरूर है कि ये अब भी कथित मानव विकास से वाबस्ता नहीं हो पाई हैं और इसीलिए रास्ते में हाई टेंशन बिजली तारों से लिपट जाने की वजह से काफी सारी चिड़ियों की मौत भी हो जाती है।
जोधपुर के खिचन गांव के सेवाराम परिहार कहते हैं किः हम सब पंख वाले इन राजदूतों से मुहब्बत करते हैं और ये कुछ महीने के लिए यहां आती हैं, इसके लिए हम इनके शुक्रगुजार हैं। इतनी ऊंचाई पर उड़ने के बावजूद ये खूबसूरत चिड़िया किस तरह हमारे गांव को पहचान लेती हैं, हम नहीं जानते। लेकिन इन्हें देखकर हम आनंद से भर जाते हैं और हर साल इनका इंतजार करते हैं।
खिचन में संपन्न जैन समुदाय के लोगों के घर हैं। अधिकांशतः ये व्यापारी हैं और देश के अलग-अलग शहरों में रहते हैं। वे इन चिड़िया के खाने-पीने के लिए आपस में चंदा करते हैं। इन पंछियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए बने कुरजा संरक्षण विकास संस्थान इनकी देखभाल करती है। इस संस्थान से जुड़े प्रकाश जैन बताते हैं कि पक्षियों का झुंड रोजाना 5,000 किलोग्राम तक अनाज खा जाता है।
1970 के दशक में स्थानीय कुत्ते इन्हें अपना ग्रास बनाने लगे थे। तब रतनलाल मल्लू ने पंचायत से गांव के किनारे उन्हें कुछ जमीन देने का आग्रह किया। चुग्गाघर बनाने में अन्य गांव वाले भी आगे आए। अनाज के लिए कोठार बनाया गया और एक जगह घेरी गई। लेकिन अब आसपास बस्तियां बस गई हैं इसलिए पंछियों के लिए जगह थोड़ी सिकुड़ गई है। सुबह अनाज चुगने के बाद बाद ये पक्षी समूह में उड़ जाते हैं। इन समूहों में आगे मादा पक्षी रहती हैं, उसके बाद बच्चे रहते हैं जबकि अंत में नर पक्षी होते हैं। दोपहर के आसपास ये पानी पीते हैं। कुछ पक्षी कभी-कभार नहाते भी लगते हैं। कुछ पक्षी नींद लेते हैं जबकि कुछ उन्हें घेरकर नाचते लगते हैं। लगभग तीन बजे वे उड़ते हैं और फिर वापस आ जाते हैं।
इन पक्षियों को चुरू के पास ताल छापर वन्य प्राणी उद्यान और गुजरात में कच्छ के छोटे रण के पास भी देखा जा सकता है (navjivan)