खेल
2016 में, भारत की शिवानी कटारिया ने एक अहम उपलब्धि हासिल की. उन्होंने 12 साल में पहली बार ओलंपिक की महिला तैराकी प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व किया.
अपने खेल को बेहतर करने के लिए और टोक्यो ओलंपिक में जगह बनाने के लिए अब वो थाईलैंड के फुके में ट्रेनिंग ले रही हैं.
2016 के दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली और महिलाओं के 200 मीटर फ्री-स्टाइल इवेंट में नेशनल रिकॉर्ड होल्डर कटारिया का सफ़र हरियाणा के गुरुग्राम में एक समर कैंप से शुरू हुआ था. वो गुरुग्राम में ही पली-बढ़ी हैं.
जब वो छह साल की थीं तो उनके पिता उन्हें एक समर कैंप में तैराकी सिखाने के लिए लेकर गए थे.
वो कहती हैं कि शुरुआत में उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो तैराकी को अपने करियर के तौर पर चुनेंगी या ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी.
फिर शुरू हुआ प्रतियोगिताएं जीतने की सिलसिला
गुरुग्राम में उनके घर के नज़दीक पड़ने वाले बाबा गंग नाथ तैराकी केंद्र के समर कैंप में उन्होंने शौकिया तौर पर तैराकी सीखी. यहीं से कटारिया को एक सही दिशा मिल सकी.
इसके बाद उन्होंने खेल में उत्साह दिखाते हुए स्थानीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. ज़िला स्तर की प्रतियोगिता में मिली जीत ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया.
उन्होंने तैराकी को और गंभीरता से लेना शुरू किया और दिन में दो बार ट्रेनिंग करके राज्य और राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट के लिए तैयारी शुरू कर दी.
कटारिया कहती हैं कि पेशेवर तरक्की सीखने में उनके परिवार ने अहम भूमिका निभाई. जहां उनके माता-पिता ने उन्हें आर्थिक और भावनात्मक रूप से हर तरह का सहयोग दिया, वहीं उनके भाई पूल में उतरकर उनके ट्रेनिंग पार्टनर बन गए. भाई से मिली कड़ी प्रतिस्पर्धा ने उन्हें हर दिन बेहतर बनने में मदद की.
कटारिया की कड़ी मेहनत का फल मिलने लगा था. वो राष्ट्रीय स्तर पर जीत हासिल करने लगीं और अपनी एज-ग्रूप की प्रतियोगिताओं में रिकॉर्ड तोड़ने लगीं.
वो कहती हैं कि जूनियर स्तर पर मिली शुरुआती सफलता से उन्हें सीनियर स्तर की तैयारी करने में मदद मिली.
लेकिन चुनौतियां भी थीं...
खेल में सफल करियर बनाना आसान नहीं है. सहनशक्ति मज़बूत करने और चुनौतियों से निपटने के लिए बलिदान और प्रतिबद्धता की ज़रूरत होती है. गुरुग्राम में अपने प्रशिक्षण के दौरान कई बाधाओं का सामना करने के बाद कटारिया को इस बात का एहसास हुआ.
उस वक़्त हरियाणा में गर्म पानी वाले पूल नहीं होते थे, जिसकी वजह से ठंड के महीनों में प्रैक्टिस कम ही हो पाती थी. और कड़ी मेहनत से जो सहनशक्ति खिलाड़ियों में विकसित होती थी वो ठंड के दिनों के ब्रेक की वजह से कम हो जाती थी.
इसकी वजह से उन्हें 2013 में अपना शहर छोड़कर बेंगलुरू जाना पड़ा, ताकि वो पूरे साल प्रैक्टिस कर सकें और बेहतर ट्रेनिंग की सुविधाएं भी उन्हें मिल सकें.
उनका ये फ़ैसला बेकार नहीं गया. उसी साल कटारिया को एशियन एज ग्रुप चैंपियनशिप में छठा स्थान हासिल हुआ. इस प्रतियोगिता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया.
इस युवा तैराक ने 2014 यूथ ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधत्व किया. 2016 में उन्होंने गुवाहाटी में हुए दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक भी जीता.
इन प्रदर्शनों ने उन्हें रियो के 2016 समर ओलंपिक में अपनी जगह बनाने के लक्ष्य पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया. हालांकि रियो ओलंपिक में उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन कटारिया कहती हैं कि इस अनुभव से उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला.
कटारिया के प्रदर्शन के लिए हरियाणा सरकार ने 2017 में उन्हें भीम अवॉर्ड से सम्मानित किया. वो कहती हैं कि उन्हें उम्मीद है वो भारत के लिए और पदक लाएंगी और एक दिन प्रतिष्ठित अर्जुन अवॉर्ड जीतेंगी.
वो कहती हैं कि भारत में खेलों के लिए सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन देश को और महिला कोच की ज़रूरत है, जो देश में और अधिक विश्व स्तरीय महिला खिलाड़ी तैयार कर सकें.
(ये प्रोफाइल शिवानी कटारिया को ईमेल के ज़रिए भेजे गए बीबीसी के सवालों के जवाब के आधार पर तैयार किया गया है) (bbc)