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जर्मनी में मुसलमान बढ़े और आबादी की विविधता भी
07-May-2021 9:24 PM
जर्मनी में मुसलमान बढ़े और आबादी की विविधता भी

एक शोध के मुताबिक जर्मनी में मुसलमानों की संख्या साल 2015 की तुलना में काफी बढ़ी है और ज्यादातर मुसलमान अभी भी शिक्षा और रोजगार के लिए चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.

 डॉयचे वैले पर इलियट डगलस की रिपोर्ट- 

"Wir schaffen das" — "हम कर सकते हैं." यही वे मशहूर शब्द थे जिन्हें साल 2015 में जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने इस बात के संकेत देने के लिए कहे थे कि जर्मनी अपने यहां बड़ी संख्या में शरणार्थियों को रखने के लिए तैयार और सक्षम है. उस वक्त करीब दस लाख शरणार्थी यहां आए थे जिनमें से ज़्यादातर मध्य पूर्व के मुस्लिम देशों से थे.

एक अध्ययन के मुताबिक, करीब छह साल बाद जर्मनी में साल 2015 की तुलना में मुस्लिम आबादी काफी बढ़ गई है. इस तरह से वहां जनसंख्या की समरूपता में भी कमी आई है. जर्मनी में प्रवासी और शरणार्थी मामलों के मंत्रालय के प्रमुख हैंस एकहार्ड सोमर ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "पिछले कुछ सालों में मुस्लिम बहुल देशों से आए प्रवासियों की वजह से मुस्लिम जनसंख्या में काफी विविधता आई है."

शोध के मुताबिक, "प्रवासी पृष्ठभूमि” में जर्मनी में मुस्लिम आबादी इस वक्त 53-56 लाख के बीच है जो कि साल 2015 की तुलना में करीब नौ लाख ज्यादा है. यह तादाद जर्मनी की कुल जनसंख्या की 6.4 से 6.7 फीसदी के बीच है. "प्रवासी पृष्ठभूमि” जर्मनी में इस्तेमाल होने वाला वह शब्द है जिसका मतलब पहली पीढ़ी के शरणार्थियों या फिर उनके बच्चों से है."

हालांकि जर्मनी में ज्यादातर मुस्लिम तुर्की समुदाय के हैं जो कि दशकों से यहां रहते आए हैं, लेकिन सीरिया और इराक जैसे देशों से जब शरणार्थी बड़ी संख्या में यहां आने लगे तो जर्मनी में मुस्लिम आबादी काफी विविधतापूर्ण हो गई. शोध के दौरान प्रवासी पृष्ठभूमि के 4,500 और 500 दूसरे मुस्लिमों पर सर्वेक्षण किया गया और उसी के आधार पर आंकड़े जुटाए गए.

धर्म उतना प्रासंगिक नहीं हो सकता

सोमर कहते हैं, "विश्लेषण दिखाता है कि एकीकरण पर धर्म के प्रभाव को कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है." यह शोध जर्मन इस्लाम सम्मेलन की ओर से गृह मंत्रालय और प्रवासी मंत्रालय के सहयोग से किया गया था जिसमें साल 2019 और 2020 के दौरान किए शोध के आंकड़ों को भी ध्यान में रखा गया था. इसमें मुस्लिम आबादी की प्रवासी पृष्ठभूमि के उस आधार पर तुलना की गई थी कि उसमें कितने ईसाई हैं और कितने किसी भी धर्म को न मानने वाले हैं. इस अध्ययन से यही निष्कर्ष निकाला गया कि विभिन्न प्रवृत्तियों के लिए धर्म कोई निर्णायक कारक नहीं हो सकता.

उदाहरण के तौर पर, प्रवासी पृष्ठभूमि के 15.8 फीसदी मुसलमानों ने और प्रवासी पृष्ठभूमि के ही 17.5 फीसदी ईसाइयों ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की थी. यानी औसत रूप में देखा जाए तो प्रवासी पृष्ठभूमि के 15.3 फीसदी लोगों ने स्कूली शिक्षा नहीं पूरी की. इसलिए अन्य प्रवासी समूहों के मुकाबले मुसलमानों की स्थिति कोई बहुत अलग नहीं है. लेकिन यदि प्रवासी पृष्ठभूमि से इतर देखा जाए तो यह अनुपात 3 फीसदी से भी नीचे आ जाता है.

शोधकर्ताओं में से एक कर्स्टिन टानिस कहती हैं कि हो सकता है मध्य पूर्व और उसके आस-पास के इलाकों से आने वाले शरणार्थियों को जगह बदलने की वजह से स्कूल की पढ़ाई छोड़नी पड़ी हो. ठीक इसी तरह, प्रवासी पृष्ठभूमि के 74.6 फीसदी मुसलानों के पास किसी तरह की व्यावसायिक शैक्षिक योग्यता नहीं थी जबकि प्रवासी पृष्ठभूमि के ही ईसाइयों में ऐसे 71.9 फीसदी लोग थे और सभी धर्मों के लिए सामान्य औसत 72.4 था. लेकिन बिना प्रवासी पृष्ठभूमि वाले मुसलमानों के लिए यानी जो पिछली तीन-चार पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं, यह अनुपात सिर्फ 21.8 फीसदी है. ठीक उसी तरह, जैसे स्कूली शिक्षा न पूरी करने वाले मुसलमानों की है.

प्रवासी पृष्ठभूमि के 61 फीसदी मुस्लिम पुरुष और 41 फीसदी मुस्लिम महिलाओं के पास रोजगार है जो कि इसी पृष्ठभूमि के दूसरे समुदाय के लोगों जैसा ही है. लेकिन गैर प्रवासी पृष्ठभूमि के अन्य जर्मन नागरिकों की तुलना में यह कम है जिनमें 77 फीसदी पुरुष और 68 फीसदी महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है.

एकीकरण की सफलता की कहानियां

हालांकि कुछ प्रवासी मुस्लिम, दूसरे प्रवासी समुदायों के साथ कुछ उन चुनौतियों का सामना जरूर करते हैं जो कि अन्य जर्मन नागरिकों को नहीं करना पड़ता, फिर भी शोध के परिणाम यह भी दिखाते हैं कि जर्मनी में ज्यादातर मुस्लिम अच्छी तरह से आबाद हैं और घुले-मिले हैं.

जर्मनी में पैदा हुए लगभग सभी मुसलमान बहुत अच्छी तरह से जर्मन भाषा बोलते हैं और अन्य मुसलमानों के संदर्भ में यह संख्या करीब 79 प्रतिशत है. करीब 65 फीसदी मुसलमानों का कहना है कि उनका उन लोगों के साथ अच्छी तरह उठना-बैठना है जो कि प्रवासी पृष्ठभूमि से नहीं आते हैं. जो लोग ऐसे नहीं थे, उनकी इच्छा भी यही थी कि वे ऐसे लोगों के नजदीकी संपर्क में रहें.

हालांकि यह शोध भेदभाव जैसे मुद्दों पर फोकस नहीं करता है लेकिन यह भी पता चला है कि 70 फीसदी मुस्लिम महिलाएं जर्मनी में बुर्का नहीं पहनतीं और इनमें एक तिहाई यह कहती हैं कि ऐसा उन्होंने किसी डर से नहीं किया है. लेकिन यहां सबसे अहम मुद्दा उम्र का है. 65 साल से ज्यादा की करीब 62 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि वे बुर्का पहनती हैं जबकि 16 से 25 की उम्र की सिर्फ 26 फीसदी महिलाएं ही बुर्का पहनती हैं.

रिपोर्ट में एक अहम समस्या यह भी पाई गई है कि मस्जिदों से संबंध रखने वालों की क्या भूमिका है जो कि जर्मनी में बहुत कम हैं. ऐसे समूहों में से कुछ सीधे तौर पर तुर्की से नियंत्रित होते हैं. जूनियर मंत्री मार्कस कर्बर के मुताबिक, यह एक ऐसी प्रथा है जिसे निश्चित तौर पर खत्म होना चाहिए.

रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि जर्मनी में बहुत से मुस्लिम कुछ खास चुनौतियों का सामना करते हैं और उन्हें बराबरी का दर्जा देने के लिए इन चुनौतियों में कमी लाना बहुत जरूरी है. लेकिन जब पचास लाख लोगों के समूह के संबंध में बात होती है तो धार्मिक आधार पर ऐसी चुनौतियों को नजरअंदाज कर देना चाहिए, क्योंकि वहां सिर्फ धर्म के आधार पर ऐसा आकलन सही नहीं लगता. (dw.com)

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