राजनीति
शिवपुरी, 12 अक्टूबर| भारतीय जनता पार्टी के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय िंसंह पर हमला करते हुए कहा कि वो जितना दौरे और प्रचार करेंगे, भाजपा को उतना ही लाभ होगा। सिंधिया इन दिनों ग्वालियर-चंबल इलाके के दौरे पर हैं। सिंधिया ने रविवार को दिग्विजय सिंह पर बड़ा हमला बोला। उन्होंने दिनारा में कार्यकतार्ओं से चर्चा करते हुए कहा कि चुनाव आता है तो बड़ा भाई (दिग्विजय सिंह) पर्दे के पीछे हो जाते हैं, चुनाव संपन्न हो जाता है तो इसके बाद डोर बड़े भाई के हाथ में आ जाती है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भी यही हुआ था और अब 2020 में भी यही हो रहा है।
सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि हमारा कहना है कि दिग्विजय सिंह बहुत दौरा करें, जितना दौरा करेंगे उतना जनता हमारे साथ होगी।
गौरतलब है कि इस समय हो रहे उपचुनाव के दौरान कांग्रेस के प्रचार में दिग्विजय सिंह की दूरी चर्चा में है खासकर ग्वालियर-चंबल संभाग से। इसी पर सिंधिया ने चुटकी ली। (आईएएनएस)
लखनऊ, 12 अक्टूबर| बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने उत्तर प्रदेश के गोंडा में एक मंदिर के पुजारी पर जानलेवा हमले की कड़ी निंदा की है। उन्होंने प्रदेश सरकार से साधु-संतों की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की है। मायावती ने सोमवार सुबह ट्वीट के माध्यम से प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि, राजस्थान की तरह यूपी के गोण्डा जिले में मन्दिर के पुजारी पर भू-माफियाओं द्वारा मन्दिर की जमीन पर कब्जा करने के इरादे से किया गया जानलेवा हमला अति-शर्मनाक अर्थात संत की सरकार में अब संत भी सुरक्षित नहीं। इससे खराब कानून-व्यवस्था की स्थिति और क्या हो सकती है।
उन्होंने आगे लिखा कि यूपी की सरकार इस मामले में सभी पहलुओं का गम्भीरता से संज्ञान लेकर दोषियों के विरूद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई करे तथा इस घटना से जुड़े सभी भू-माफियाओं की सम्पत्ति भी जरूर जब्त की जाये। साथ ही, साधु-सन्तों की सुरक्षा भी बढ़ाई जाये।
ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के इटियाथोक कोतवाली के तर्िेमनोरमा मंदिर के पुजारी सम्राट दास को शनिवार करीब दो बजे गोली मार दी गई। गोली उनके बाएं कंधे पर लगकर निकल गई। गनीमत रही, गोली पुजारी के कंधे को छू कर निकल गई। मंदिर की जमीन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। 150 बीघा जमीन का पूरा मामला है।(आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 12 अक्टूबर| कोरोना काल में बिहार में हो रहा यह विधानसभा चुनाव ऐसे तो कई मामलों में अलग होगा, लेकिन यह चुनाव इन मामलों में भी खास होगा कि प्रचार में न तो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद का मजाकिया अंदाज दिखाई देगा और न ही लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के वरिष्ठ नेता रामविलास पासवान की सधी आवाज सुनाई दगी।
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिए करीब सभी प्रमुख दलों ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी है। राजद के स्टार प्रचारकों में खास गंवई अंदाज में वोट मांगने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह भी इस चुनाव में मतदाताओं को नहीं लुभाएंगें। वेसे कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव में सोशल डिस्टेंसिंग के कारण बडी रैलियों पर रोक लगाई गई है, फिर भी छोटी रैलियों की मंजूरी दी गई है।
ऐसे में माना जा रहा है कि क्षेत्रीय दलों का पूरा जोर छोटी रैलियों पर हेागा। राजद के लिए स्टार प्रचारकों की सूची में पहले नंबर पर रहने वाले और अपनी भाषण शैली के जरिए मतदाताओं को रूख मोड़ देने की प्रतिभा वाले लालू प्रसाद इस चुनाव में प्रचार करते नजर नहीं आएंगें।
चारा घोटाले के मामले में लालू प्रसाद इन दिनों रांची की एक जेल में सजा काट रहे हैं। लालू हालांकि स्वास्थ्य कारणों से अभी रांची रिम्स में भर्ती हैं, लेकिन बिना अदालत के आदेश के वे चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं ले सकेंगे।
लालू की अनुपस्थिति राजद नेताओं को भी खल रही है। राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते भी हैं कि लालू प्रसाद बिहार के ही नहीं देश के स्टार प्रचारकों में सबसे आगे हैं। उनपर मतदाताओं को विश्वास है। उन्होंने कहा कि उनकी रैलियों में अपार भीड़ होती थी और लोग उनकी बातों को आत्मसात करते थे।
इधर, लोजपा के अध्यक्ष रहे रामविलास पासवान और राजद के उपाध्यक्ष रहे रघुवंश प्रसाद सिंह का निधन हो गया है, यही कारण है कि उनकी दमदार आवाज भी इस चुनाव में नहीं सुनाई देगी।
राजद के लिए चुनाव में लालू प्रसाद और रघुवंश प्रसाद सिंह की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद ने 170 से अधिक और रघुवंश प्रसाद सिंह ने 100 से अधिक रैलियां और रोडशो किए थे।
बिहार के इस चुनाव में समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के भी पहुंचने की संभावना कम है। सूत्र बताते हैं कि स्वास्थ्य कारणों से वे भी इस चुनाव में प्रचार करने शायद ही नजर आएं।
वैसे, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि स्वास्थ्य कारणों से वे कम ही रैलियों में शामिल होंगे। पार्टी के नेता हालांकि कहते हैं वर्चुअल रूप से वे लोगों कों संबोधित करते नजर आएंगें। जदयू के स्टार प्रचारकों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले नंबर पर होंगे।
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए तीन चरणों में होने वाले चुनाव के लिए मतदान 28 अक्टूबर, तीन नवंबर और सात नवंबर होगा जबकि मतगणना 10 नवंबर होगी। पहले चरण में 28 नवंबर को 71 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा जबकि दूसरे चरण में तीन नवंबर को 94 सीटों के लिए और आखिरी चरण में सात नवंबर को 78 सीटों के लिए मतदान होगा।
इस चुनाव में राजद जहां कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ चुनावी मैदान में उतरा है वहीं भाजपा और जदयू सहित चार दल मिलकर चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं।(आईएएनएस)
अशोक नगर (मध्य प्रदेश), 11 अक्टूबर| मध्य प्रदेश में विधानसभा के उप-चुनाव मे बयानों की तल्खी बढ़ती जा रही है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव ने एक बार फिर भाजपा नेता व राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि सिंधिया ने एक कुत्ते की समाधि को 13 करोड़ में बेच दिया। अशोकनगर में आयोजित कांग्रेस की सभा में रविवार को यादव ने आरोप लगाया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के परदादा के स्वर्गवास के दिन उनके एक वफादार कुत्ते की भी मौत हुई थी। उस कुत्ते की याद में एक समाधि ग्वालियर में बनवाई गई। उस वफादार कुत्ते की समाधि भी 13 करोड़ में बेचने का काम किया गया है।
यादव ने सिंधिया को एक बार फिर भूमाफिया करार दिया और जमीनों पर कब्जे के आरोप लगाए। इसके साथ ही कांग्रेस छेाड़कर जाने पर उन्हें गद्दार करार दिया। इस सभा में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ भी मौजूद थे। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 10 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार में 2014 के बाद से होने वाले कोई भी चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम चर्चा में रहा है, लेकिन इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में मोदी का 'चेहरा' मुद्दा बना हुआ है। मोदी के चेहरे को लेकर दो दलों में 'चखचख' हो रही है।
केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व को नकारते हुए अकेले चुनावी मैदान में उतरकर चुनाव को रोचक बना दिया है। पहले चरण में 71 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में लोजपा ने भाजपा के खिलाफ तो उम्मीदवार नहीं उतारे, लेकिन उन सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं, जहां से जदयू चुनाव मैदान में उतरी है।
इस बीच, लोजपा स्पष्ट कह रही है वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगेगी। इधर, भाजपा का कहना है कि बिहार राजग में शामिल दल ही प्रधानमंत्री के चेहरे का इस्तेमाल चुनाव में कर सकते हैं।
कहा जा रहा है कि लोजपा ने एक रणनीति के तहत बिहार में राजग में नहीं रहकर भी नरेंद्र मोदी के नाम का लाभ उठाने और प्रधनमंत्री के 'चेहरे' को मुद्दा बना दिया है। लोजपा के एक नेता ने नारा देते हुए कहा, ' मोदी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं।'
दीगर बात है कि इसे लेकर जदयू अब तक खुलकर सामने नहीं आई है। हालांकि, भाजपा इसे लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुकी है।
बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी तो स्पष्ट कर चुके हैं कि बिहार चुनाव में राजग में शामिल भाजपा, जदयू, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को छोड़कर कोई और पार्टी प्रधानमंत्री के चेहरे का इस्तेमाल नहीं कर सकते। अगर ऐसा कोई दल करेगा, तो इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की जाएगी।
इधर, लोजपा के वरिष्ठ नेता और पार्टी के मीडिया पैनल में शामिल संजय सर्राफ ने आईएएनएस से कहा कि प्रधानमंत्री पूरे देश के होते हैं, कोई उनके चेहरे का इस्तेमाल से कैसे रोक सकता है। उन्होंने कहा कि लोजपा प्रधानमंत्री द्वारा किए गए विकास कार्यो और उनके उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कृतसंकल्पित है। ऐसे में उन्हें उनके तस्वीर के उपयोग करने से कोई कैसे रोक सकता है।
इधर, जदयू इस मामले को लेकर कभी खुलकर सामने नहीं आ रही है। जदयू के एक नेता नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहते हैं कि नीतीश कुमार के कार्यो की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई सार्वजनिक मंचों से कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जल-जीवन-हरियाली योजना की भी तारीफ कर चुके हैं, यहीं कारण जदयू का मानना है कि मोदी, नीतीश की जोड़ी ही बिहार को विकास के पथ पर आगे ले जाएगा।
इस बीच, हालांकि कार्यकर्ताओं में उलझन जरूर है। जदयू और भाजपा के कार्यकर्ता तो एकजुट हैं, लेकिन लोजपा को लेकर उलझन है। कार्यकर्ता लोजपा को राजग का हिस्सा मानते हैं, लेकिन उन्हें इस बात का भी डर सता रहा है कि लोजपा और जदयू की तनातनी में महागठबंधन को लाभ ना हो जाए। कार्यकर्ता तो यहां तक कहते हैं कि इस तनातनी को शीर्ष नेतृत्व को मिल बैठकर निपटाना चाहिए।
बहरहाल, केंद्र की सत्ता में भाजपा की सहयोगी पार्टी लोजपा के बिहार चुनाव में भाजपा की सहयोगी जदयू प्रत्याशियों के खिलाफ अपने उम्म्ीदवार उतारे जाने के बाद चुनाव रोचक हो गया है, लेकिन देखने वाली बात होगी कि प्रधानमंत्री के चेहरे को लेकर मतदाता किस पार्टी को पसंद करते हैं।
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण को लेकर बढ़ती नाराजगी के बीच कांग्रेस एक अभियान की योजना बना रही है जिसमें राहुल गांधी इसके स्टार प्रचारक होंगे। पार्टी सूत्रों ने कहा कि तीन चरण के चुनावों के दौरान, राहुल गांधी प्रत्येक चरण में छह रैलियों को संबोधित कर सकते हैं - जिसमें महागठबंधन के सहयोगियों के साथ एक संयुक्त रैली शामिल है।
पार्टी की योजना डिजिटल रूप से मतदाताओं तक पहुंचने की भी है क्योंकि कोरोना काल में लोग कांग्रेस की रैलियों और अन्य सार्वजनिक बैठकों में बड़ी संख्या में शामिल नहीं होना चाहते।
बिहार में कांग्रेस पहले चरण में 21 सहित कुल 70 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
बुधवार को पहले चरण के टिकटों की घोषणा की गई, जिसके बाद टिकट पाने में असफल रहे नेताओं में काफी नाराजगी है। मुस्लिम नेता पहले चरण के टिकट बंटवारे से संतुष्ट नहीं हैं। किसी भी अल्पसंख्यक को एक भी टिकट नहीं दिया गया।
कांग्रेस के कार्यकर्ता दिल्ली में पार्टी मुख्यालय पर वरिष्ठ नेताओं द्वारा भाई-भतीजावाद का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ ने आरोप लगाया कि टिकट बेचे गए हैं।
कांग्रेस का नेतृत्व इस तरह के विरोध और आरोपों को खारिज कर रहा है। पार्टी का कहना है कि इसके पास अपने कोटे की सीमित संख्या है और इसलिए सभी को टिकट नहीं दिया जा सकता।
विवेक त्रिपाठी
लखनऊ , 9 अक्टूबर (आईएएनएस)| बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने एक बार फिर ब्राम्हणों को अपने पाले में खींचने की मुहिम तेज कर दी है। पार्टी को लगता है कि ब्राम्हण और दलितों का गठजोड़ कर दें तो आने वाले समय में आराम से सत्ता पर काबिज हो सकते हैं। तमाम दलों से गठबंधन और संगठन में अनेक प्रयोगों के बाद बसपा मानती है कि 2007 में बनी रणनीति के अनुरूप ही सफलता मिल सकती है। लिहाजा पार्टी ने फिर एक बार सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से पुराने फॉर्मूले को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
पार्टी सूत्रों की मानें तो नवरात्रि से इस पर काम तेजी से शुरू हो जाएगा। एक बार फिर बड़े पैमाने पर ब्राम्हणों को जोड़ने की कवायद की जाएगी। पार्टी के एक नेता ने बताया कि ब्राम्हणों की समस्याओं और उसके निराकरण की जिम्मेदारी इस समय खुद महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा ने ले रखी है। वो जिलेवार लोंगों से मिल रहे हैं। उन्हें पूरा एक्शन प्लान भी बता रहे हैं। इसके अलावा बड़े ब्राम्हण नेता में शुमार रहे रामवीर उपाध्याय और ब्रजेश पाठक में विकल्प तलाशा जा रहा है। दूसरे दलों के ब्राम्हणों में प्रभाव रखने वाले बसपा से जोड़े जा रहे हैं। सभी जिलों में पांच प्रमुख नेताओं की टीम बनायी जा रही है जिसमें ब्राम्हण रखा जाना अनिवार्य है। इसके साथ ही पार्टी का युवा ब्राम्हण नेताओं पर खास फोकस है।
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से ब्राम्हण केन्द्र बिन्दु पर हैं। विपक्षी दलों ने खूब शोर मचाकर एक माहौल भी तैयार किया है। बसपा को लगता है ब्राम्हण अगर सत्तारूढ़ दल से कटेगा तो उसे आसानी से लपका जा सकता है। इसी कारण इन दिनों सोशल मीडिया पर इसके लिए तेजी से अभियान भी चलाए जा रहे हैं। इसी वोट के कारण मायावती 2007 में सत्ता पर काबिज हो चुकी है।
सतीश चन्द्र मिश्रा के नेतृत्व में पूर्व मंत्री नकुल दुबे, अनंत मिश्रा, परेश मिश्रा समेत कई लोग ब्राम्हणों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
पूर्व मंत्री नकुल दुबे ने कहा, इन दिनों ब्राम्हण समाज के साथ जो उत्पात बढ़ा है, वह कैसे दूर हो, उन्हें क्या-क्या दिक्कतें आ रही है। इसके लिए महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा लोगों से मिल खुद फीडबैक ले रहे हैं। अभी तक हजारों लोगों से भेंट हो चुकी है। करीब 80 बैठकें भी हो चुकी है। प्रदेश में ब्राम्हणों का उत्पीड़न हो रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। 2007 से 2012 के कार्यकाल को देंखें तो ब्राम्हण बसपा के साथ बहुत सुखी था।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पी.एन. द्विवेदी कहते हैं कि, पिछले कुछ दिनों से ब्राम्हण राजनीति के केन्द्र बिन्दु में घूम रहा है। हर पार्टी इसे अपने पाले में लाने के प्रयास में है। सपा ने परशुराम मंदिर बनवाने की बात कहकर अपना प्रेम दिखा रही है। लेकिन अभी चुनाव दूर है। ऊंट किस करवट बैठेगा यह वक्त बताएगा।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 12-13 प्रतिशत ब्राह्मण हैं, जिस पर सभी दलों की नजर है। बसपा भी इसे साधने की कोशिश में है।
मनोज पाठक
पटना, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहारे राज्य के सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) इस चुनाव में एक बार फिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दलों में शामिल है। मांझी ने एक बार फिर सत्ता तक पहुंचने के लिए जदयू के साथ गठबंधन किया है। जदयू ने मांझी को सात सीटें दी हैं, जिसमें छह सीटों पर प्रथम चरण में ही चुनाव होना है।
मांझी ने सात सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है जिसमें दो ऐसी सीटें भी हैं, जिसमें उनके दामाद और समधिन चुनावी मुकाबले में ताल ठोंक रहे हैं। ऐसे में बिहार के 28 अक्टूबर को होने वाले प्रथम चरण का चुनाव काफी अहम माना जा रहा है।
इस चुनाव में राजग में शामिल चार दलों भाजपा, जदयू, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और हम हैं। इसमें जदयू ने अपने हिस्से की 122 सीटों में से सात सीटें 'हम' को दी है, वहीं भाजपा ने अपने हिस्से आई 121 सीटों में से 11 सीटें वीआईपी को दी है।
'हम' के हिस्से आई सीटें टिकारी, इमामगंज, बाराचट्टी, मखदुमपुर, सिकंदरा, कसबा और कुटुंबा हैं। पिछले चुनाव में 'हम' को केवल एक सीटें मिली थी, जिसमें मांझी खुद इमामगंज से विधानसभा अध्यक्ष रहे उदय नाारायण चौधरी को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। इस चुनाव में भी मांझी एक बार फिर इमामगंज से चुनावी मैदान में हैं और उनका मुकाबला चौधरी से ही होगा।
इस चुनाव में मांझी ने बाराचट्टी सीट से अपनी समधिन ज्योति देवी और मखदुमपुर सीट से अपने दामाद देवेंद्र कुमार को उम्मीदवार बनाया है। पिछले चुनाव में मांझी मखदुमपुर से चुनाव हार गए थे। देवेंद्र कुमार के खिलाफ राजद से सतीश दास चुनावी मैदान में उतरे हैं जबकि लोजपा ने यहां रानी कुमारी को और बहुजन समाज पार्टी ब्यासमुनि दास को प्रत्याशी बनाया है।
'हम' के लिए प्रतिष्ठा की सीट बनी बाराचट्टी से मांझी ने अपनी समधिन ज्योति देवी को चुनाव मैदान में उतारा है। उनके खिलाफ राजद ने अपने निवर्तमान विधायक समता देवी को फिर से यहां का प्रत्ययाशी बनाया है। बाराचट्टी से लोजपा ने रेणुका देवी को जबकि बसपा ने रीता देवी को प्रत्याशी बनाया है।
इसके अलावे 'हम' ने कुटुंबा से श्रवण भुईंयां, कसबा से राजेंद्र यादव, सिकन्दरा से प्रफुल्ल मांझी, टेकारी से अनिल कुमार को प्रत्याशी बनाया है। 'हम' के हिस्से आई सात सीटों में से कसबा सीट को छोड़कर सभी छह सीटों पर प्रथम चरण में मतदान होना है, यही कारण है कि मांझी के लिए प्रथम चरण का मतदान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए तीन चरणों में होने वाले चुनाव के लिए मतदान 28 अक्टूबर, तीन नवंबर और सात नवंबर को होगा जबकि मतगणना 10 नवंबर को होगी। पहले चरण में 28 नवंबर को 71 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा जबकि दूसरे चरण में तीन नवंबर को 94 सीटों के लिए और आखिरी चरण में सात नवंबर को 78 सीटों के लिए मतदान होगा।
लखनऊ , 9 अक्टूबर (आईएएनएस)| बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के साथ देश में जहां पर भी भाजपा या कांग्रेस की सरकार है, वहां दलितों और पिछड़ों पर अत्याचार हो रहा है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर शुक्रवार को मीडिया को संबोधित कर रही थी। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस और भाजपा पर दलित की उपेक्षा को लेकर जमकर निशाना साधा। उन्होंने हाथरस केस के साथ ही उत्तर प्रदेश में अन्य मामलों में दलितों पर बढ़ते अत्याचार का सारा दोष भाजपा सरकार पर मढ़ा है।
मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश के साथ देश में जहां पर भी भाजपा या कांग्रेस की सरकार है, वहां दलितों तथा पिछड़ों पर अत्याचार हो रहा है। उत्तर प्रदेश का हाथरस इसका ताजा उदाहरण है। हर स्तर पर दलितों का शोषण हो रहा है। इस मामले में भाजपा तथा कांग्रेस के लोग एक जैसे हैं। दोनों ही पार्टी अंदर से एक है। यह दोनों देश तथा कई प्रदेशों में बारी-बारी से अपनी सरकार बनाकर अपना मिशन साधने का काम करती हैं।
बसपा मुखिया ने कहा कि सच्चाई यह है कि कांगेस हो या भाजपा दोनों के राज में दलित समाज का कोई उत्थान या विकास नहीं हुआ। इसके उलट उनके साथ बड़े पैमाने पर जुल्म और ज्यादती हुई है।
उन्होंने कहा कि विकास के उत्थान के मामले में दलित समाज की जमकर उपेक्षा की जाती है। इतना ही नहीं यह सभी पार्टियां राजनीतिक फायदे और स्वार्थ की पूर्ति के लिए इन वगोर्ं की बहन-बेटियों पर कोई भी जुल्म-ज्यादती होने पर राजनीतिक ड्रामा भी खूब करती हैं। इसके हाथरस जैसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं।
मायावती ने कहा कि सभी विरोधी पार्टियां अंदर-अंदर आपस में एक होकर हमारे वर्ग के इन लोगों का शोषण करती है। साथ ही ये हम लोगों को गुलाम बनाए रखना चाहती हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने विरोधियों पर पार्टी के मूवमेंट को कमजोर करने की साजिश का आरोप भी लगाया।
बहुजन समाज पार्टी देश में किसी की भी पिछलग्गू नहीं है। हमारी पार्टी का अपना एक मिशन है और हम मिशन के तहत काम करते हैं। मायावती ने कहा कि ऐसे संगठनों के पास धन बसपा की तरह अपने लोगों से नहीं आता है। इनके कार्यकर्ता लोगों को गुमराह करते हैं कि बसपा तो आए दिन चंदा ही इकट्ठा करती रहती है। उन्होंने कहा कि बसपा कार्यकर्ताओं और बहुजन समाज को इन लोगों से सावधान रहने की जरूरत है।
मनोज पाठक
पटना, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)| राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होकर बिहार विधानसभा चुनाव में पहले ही कई चुनौतियों का सामना कर रहे लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के प्रमुख चिराग पासवान के सिर से पिताजी रामविलास पासवान का साया छीन जाने से चुनौतियां और बढ़ गई हैं। हालांकि माना यह भी जा रहा है कि पार्टी को इस चुनाव में सहानुभूित वोट भी मिल सकता है, जिसे बटोरने में पार्टी कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।
बिहार की राजनीति में पांच दशक तक अपना रूतबा कायम रखने वाले रामविलास ने पार्टी की जिम्मेदारी पुत्र चिराग के कंधों पर डाल दी थी। इसके बाद चिराग पासवान ने पार्टी का नेतृत्व किया लेकिन समय-समय पर दिग्गज रामविलास पासवान की सलाह भी उन्हें मिलती रही। रामविलास के संरक्षण में चिराग राजनीति का ककहारा सीख ही रहे थे कि रामविलास अनंत सफ र पर चले गए।
चिराग के नेतृत्व में पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में है, ऐसे में रामविलास पासवान के नहीं रहने से चुनौतियां बढ़ी हैं। रामविलास के करीब सभी चुनावों की कवरेज करने वाले पत्रकार सुरेंद्र मानपुरी भी आईएएनएस के साथ बातचीत में कहते हैं कि रामविलास के नहीं रहने से चिराग की राजनीति में चुनौतियां तो बढ़ेगी ही।
उन्होंने कहा कि रामविलास की उपज छात्र आंदोलन, जेपी आंदोलन से हुई थी। उन्होंने राजनीति के शिखर पर पहुंचने के लिए संघर्ष किया था, जिससे वे राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी बन गए थे। उनका मार्गदर्शन ही नहीं मिलना चिराग को कम चुनौती खड़ा नहीं करेगा।
मानपुरी कहते हैं, "लोजपा की अब तक पहचान रामविलास का चेहरा रहा था लेकिन अब चिराग को खुद यह साबित करना होगा। चिराग में लोगों को प्रभावित करने वाला वह जादुई छवि भी अब तक नहीं दिखाई दिया है, जो रामविलास के पास था।"
मानपुरी कहते हैं कि राजनीति क्षेत्र में ही नहीं पारिवारिक रूप से भी रामविलास 'सबके' रहे। राजनीति का फैसला भी वे अपने भाईयों के सलाह मश्विरा के बिना नहीं करते थे। वे कहते हैं कि चिराग को अभी बहुत कुछ सीखना होगा, जिसके रास्ते में कई चुनौतियां आएगी।
वैसे, देश की राजनीति में सहानुभूति वोट की पंरपरा भी रही है। कई नेता सत्ता के शिखर पर सहानुभूित के सहारे पहुंचे हैं। हाजीपुर के रहने वाले वकील और रामविलास के मित्र ख्वाजा हसन खां उर्फ लड्डू जी भी ऐसा ही कुछ मानते हैं। वे कहते हैं कि इस चुनाव में लोजपा को किसी और चेहरे की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि रामविलास आज भी लोजपा के लिए बड़ा चेहरा हैं, उनकी वजह से पार्टी को सहानुभूति वोट मिलेगा। उन्होंने कहा कि हाजीपुर की पहचान रामविलास पासवान से होती थी।
उन्होंने कहा, "रामविलास हाजीपुर को मां की तरह मानते थे और हाजीपुर ने भी उन्हें निराश नहीं किया और बेटे की तरह लाड-प्यार दिया।"
लड्डू जी कहते हैं कि रामविलास के निधन पर सहानुभूति वोट लोजपा को जरूर मिलेगा लेकिन चिराग उसे कैसे लेते हैं, यह देखने वाली बात होगी। रामविलास बिहार ही नहीं देश के नेता रहे हैं।
बिहार चुनाव के बीच गुरुवार को बीमारी के बाद पासवान का निधन हो गया। लोजपा के अध्यक्ष ने बिहार में राजग से अलग हटकर 143 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए तीन चरणों में होने वाले चुनाव के लिए मतदान 28 अक्टूबर, तीन नवंबर और सात नवंबर को होगा जबकि मतगणना 10 नवंबर को होगी। पहले चरण में 28 नवंबर को 71 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा जबकि दूसरे चरण में तीन नवंबर को 94 सीटों के लिए और आखिरी चरण में सात नवंबर को 78 सीटों के लिए मतदान होगा।
मनोज पाठक
पटना, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होकर चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर चुकी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) नाराज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं के लिए नया ठिकाना बन गया है। भाजपा के लिए यह चिंता का सबब जरूर बना है, लेकिन भाजपा ऐसों को अपने हाल पर छोड़ दिया है। वैसे, राजग के नेता इस पर ज्यादा कुछ नहीं बोलते, लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि लोजपा का बिहार में आधार नहीं है। लोजपा के प्रमुख चिराग पासवान ऐसे तो जदयू के प्रमुख नीतीश कुमार से नाराज होकर बिहार में उनके नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है, लेकिन इसका खमियाजा भाजपा को भी उठाना पड़ रहा है। टिकट नहीं मिलने से नाराज भाजपा के कई दिग्गज लोजपा का दामन थाम चुनावी मैदान में उतर सकते हैं।
रोहतास जिले के नोखा विधानसभा क्षेत्र जदयू के कोटे में जाने के बाद, उस क्षेत्र से विधानसभा में कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके भाजपा के नेता रामेश्वर चौरसिया ने लोजपा का दामन थाम कर चुनावी मैदान में जाने का फैसला कर लिया है।
इधर, दिनारा क्षेत्र के भी जदयू के हिस्से में जाने के बाद भाजपा के दिग्गज नेता राजेंद्र सिंह लोजपा का दामन थाम चुके हैं। भाजपा की उपाध्यक्ष रहीं डॉ.उषा विद्यार्थी भी बुधवार को लोजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। डॉ. विद्यार्थी के पटना जिले के पालीगंज विधानसभा क्षेत्र से लोजपा की प्रत्याशी बनने के कयास लगाए जा रहे हैं।
ऐसे में पार्टी ऐसे नेताओं को लेकर मंथन में जुट गई है। भाजपा के राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र दुबे कहते हैं कि, "लोजपा 'वोटकटवा' के अलावा कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि राजग का कोई कार्यकर्ता लोजपा के साथ नहीं जाएगा। उन्होंने माना कि कई लोग नाराज होकर इधर-उधर जाते हैं लेकिन भाजपा ऐसी पार्टी है, जिसके कार्यकर्ता देर-सबेर इधर उधर कूद-फांदकर फिर लौट आते हैं।"
इधर, भाजपा के प्रवक्ता अरविंद सिंह कहते हैं कि, "किसी भी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी है। जिसे पार्टी से निष्ठा नहीं होगी, वे इधर-उधर जा सकते हैं। कोई कहीं जाता है, तो जाने वाले लोगों को कोई नहीं रोक सकता है। यह खुद सोचने की बात है।
जदयू के नेता और सांसद सुनील कुमार पिंटू कहते हैं कि, "लोजपा का बिहार में कोई आधार नहीं है। इसके पहले भी लोजपा अकेले चुनाव लड़कर देख ली है। इस चुनाव में भी वही होना है।"
इधर, बिहार के चुनाव प्रभारी और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन में स्पष्ट कहा था कि, "राजग के बाहर कोई भी किसी अन्य पार्टी से चुनाव लड़ेगा वो हमारा नहीं है। भाजपा स्पष्ट कर चुकी है कि जिसे भी बिहार में नीतीश कुमार का नेतृत्व पसंद नहीं है, वह भााजपा के साथ नहीं है।"
वैसे, सूत्र यह भी कहते हैं कि भाजपा के रणनीतिकार ऐसे नाराज नेताओं के संपर्क में हैं, देर सबेर इन्हें मना लिया जाएगा।
पहले चरण में फिलहाल 71 सीटों पर चुनाव होना है। बिहार में पहले चरण की वोटिंग 28 अक्टूबर को होगी। दूसरे चरण में 3 नवंबर और तीसरे चरण में 7 नवंबर को मतदान होगा। चुनाव परिणाम 10 नवंबर को निकलेंगे।
अर्चना शर्मा
जयपुर, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)| राजस्थान कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं लग रहा है। यहां की पुलिस द्वारा पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के मीडिया मैनेजर और जयपुर के एक पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के साथ ही फिर से नई दरार बननी शुरू हो गईं है।
यह मामला उस समय का है, जब जुलाई-अगस्त में राज्य में राजनीतिक संकट पैदा हो गया था और जैसलमेर के एक होटल में रहने के दौरान 'कांग्रेस विधायकों के फोन टैप' किए गए थे।
इतना ही नहीं, कांग्रेस की राज्य इकाई के प्रमुख रहे पायलट के द्वारा प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के कार्यालय में शुरू किया गया 'जन सुनवाई सत्र' भी बंद कर दिया गया है।
पीसीसी प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा ने आईएएनएस को बताया कि जनसुनवाई बंद करने के पीछे वजह कोविड-19 महामारी है। उन्होंने कहा, "हम इस समय पीसीसी में भीड़ इकट्ठा नहीं करना चाहते हैं। वैसे तो पिछले कई महीनों से जनसुनवाई नहीं हो रही थी, अब हमने इसे आधिकारिक तौर पर बंद कर दिया है।"
इस बीच गुरुवार को पायलट अपने समर्थकों के एक बड़े काफिले के साथ जोधपुर जा रहे थे, जिसे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री के गृह निर्वाचन क्षेत्र में उनकी ताकत का प्रदर्शन करार दिया। उनकी मीडिया टीम ने कहा कि वे भाजपा नेता जसवंत सिंह के निधन पर अपनी संवेदनाएं जताने के लिए उनके बेटे मानवेंद्र सिंह से मिलेंगे।
वहीं, जयपुर के विधायक पुरी थाने में पायलट के मीडिया मैनेजर लोकेंद्र सिंह और राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार शरत कुमार पर एफआईआर दर्ज की गई है। कुमार ने आईएएनएस से कहा, "जबकि यह खबर कई मीडिया हाउस ने चलाई है, तो केवल मेरे खिलाफ ही एफआईआर क्यों दर्ज की गई।"
वहीं, आईएएनएस ने लोकेंद्र सिंह से भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनका फोन स्विच ऑफ था।
इन दोनों पर आईपीसी की धारा 505 (1), 505 (2), 120 बी और सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 76 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
पुलिस अधिकारियों ने पुष्टि की है कि उन्होंने लोकेंद्र सिंह को अपने गैजेट्स (लैपटॉप, मोबाइल और कंप्यूटर) के साथ गुरुवार को पुलिस स्टेशन में बुलाया था। इन गैजेट्स का इस्तेमाल 'फोन टैपिंग रिपोर्ट' की जानकारी फैलाने में किया गया था।
पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य ने आईएएनएस को पुष्टि की कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट, दोनों के ही खेमों में सब कुछ ठीक नहीं है। पहला खेमा, पायलट के राजस्थान कांग्रेस में वापसी से नाखुश है तो दूसरा अपने कट्टर समर्थकों के पोर्टफोलियो छिन जाने से नाराज है।
ग्वालियर, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)| भाजपा के राज्यसभा में सांसद ज्येातिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के प्रदशाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि कमल नाथ को राज्य के विकास और प्रगति की नहीं बल्कि कुर्सी और तिजोरी की चिंता थी। उप-चुनाव के प्रचार के लिए अपने गृह नगर ग्वालियर पहुंचे सिंधिया ने गुरुवार को कहा कि, कमल नाथ को अपने शासन काल में सिर्फ कुर्सी और तिजोरी की ही चिंता रही। विकास और प्रगति के मामले में सिर्फ ग्वालियर-चंबल ही नहीं पूरे प्रदेश के साथ गद्दारी की गई।
उन्होंने आगे कहा कि कमल नाथ पैसा न होने की बात कहते थे, मगर बीते पांच माह में शिवराज सिंह चौहान ने तिजोरी खोलकर ग्वालियर-चंबल ही नहीं पूरे प्रदेश के हर क्षेत्र के लिए योजनाएं दी। कुछ लोग ऐसे होते है जिनके पास संभव काम भी ले जाओ तो वह असंभव हो जाता है और कई लोग ऐसे होते है उनके पास असंभव काम ले जाओ तो वह संभव कर देते हैं।
अनूपपुर में कमल नाथ के काफिले पर कथित तौर पर हुए पथराव के सवाल पर सिंधिया ने कहा कि प्रजातंत्र में किसी के भी काफिले पर हमला होना चिंताजनक है। राजनीति में, प्रजातंत्र में हम लेाग आमने-सामने जरुर होते हैं, अपना पक्ष रख सकते हैं, पक्ष रखने का पूर्ण अधिकार दिया जाता है, पर राजनीति का भी एक स्तर होना चाहिए। कांग्रेस ने जो स्तर दिखाया है उसे वह खुद अपने गिरेबान में झांककर देखे।
मनोज पाठक
पटना, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)| राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल (युनाइटेड) के अपने कोटे की सभी 115 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा के बाद बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) गुप्तेश्वर पांडेय का चुनाव लड़ने का सपना एक बार फिर टूट गया है। इस बीच, उन्होंने अपने शुभचिंतकों के लिए सोशल मीडिया के जरिए एक संदेश देकर निराश नहीं होने की अपील की है।
बिहार के डीजीपी रहे पांडेय ने कुछ दिनों पूर्व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उपस्थिति में जदयू की सदस्यता ग्रहण की थी, तब यह कयास लगाए जा रहे थे कि पांडेय इस चुनाव में बक्सर से जदयू के प्रत्याशी हो सकते हैं। लेकिन बक्सर सीट भाजपा के कोटे में चली गई।
इसके बाद यह भी बातें सियासी हवा में तैरने लगी कि पांडेय को भाजपा टिकट देकर विधानसभा पहुंचा देगी, लेकिन भाजपा ने यहां परशुराम चतुर्वेदी को टिकट थमाकर उनके सियासी सपनों को तोड़ दिया।
जदयू ने अपनी सभी 115 सीटों पर उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी, जिसमें गुप्तेश्वर पांडेय का नाम नहीं है।
इसके बाद पूर्व डीजीपी पांडेय का दर्द छलक गया। पांडेय ने सोशल मीडिया के आधिकारिक एकाउंट से पोस्ट किया, "अपने अनेक शुभचिंतकों के फोन से परेशान हूं, मैं उनकी चिंता और परेशानी भी समझता हूं। मेरे सेवामुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूंगा लेकिन मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा। हताश निराश होने की कोई बात नहीं है। धीरज रखें, मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है। मैं जीवन भर जनता की सेवा में रहूंगा। कृपया धीरज रखें और मुझे फोन नहीं करें। बिहार की जनता को मेरा जीवन समर्पित है।"
वैसे, यह कोई पहली बार नहीं है कि पांडेय का विधानसभा या लोकसभा पहुंचने का सपना टूटा है। इससे पहले करीब 11 साल पहले 2009 में भी पांडेय ने वीआरएस लिया था, तब चर्चा थी कि वे भाजपा के टिकट लेकर बक्सर लोकसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरेंगें, लेकिन उस समय भी उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया।
वैसे, पांडेय की राजनीतिक पारी में भले ही अब तक गोटी सही सेट नहीं हो सकी है, लेकिन अभी भी कई विकल्प खुले हुए हैं। कहा जा रहा है कि बिहार में राज्यपाल कोटे के 12 विधान परिषद सदस्यों का मनोनयन होना है। चुनाव के बाद राजग की सत्ता में वापसी होती है तो जदयू के प्रमुख नीतीश कुमार के हाथ में होगा कि वो किसे विधान परिषद भेजते हैं। ऐसे में पांडेय अब इस कोटे के जरिए सदन पहुंचने के लिए राजनीतिक जुगाड़ कर अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।
मनोज पाठक
पटना, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनावी संग्राम में सियासत का संघर्ष बदलता नजर आ रहा है। टिकट कटने या सहयोगी दलों के हिस्से में सीट जाने के बाद बगावती तेवर अपनाए नेताओं के लिए सहारा के रूप में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) का ठिकाना मिल रहा है, जिससे चुनावी संघर्ष रोमांचक हो गया है।
केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल लोजपा बिहार चुनाव में भले ही राजग से अलग चुनावी मैदान में हो, लेकिन बगावती तेवर अपना चुके राजग नेताओं के लिए लोजपा बिहार में शरणस्थली बनी हुई है। लोजपा में जाने वाले नेताओं को लोजपा के रूप में 'अपनों' का साथ भले ही मिला हो लेकिन राजग के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि लोजपा अब राजग में नहीं है।
भाजपा की वरिष्ठ नेता उषा विद्यार्थी ने बुधवार को लोजपा का दामन थाम लिया विद्यार्थी बिहार भाजपा की उपाध्यक्ष और प्रदेश मंत्री भी रह चुकी हैं।
लोजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद विद्यार्थी कहती हैं कि चिराग का नीतीश पर लिए गए स्टैंड से प्रभावित हुई और बिहार को आगे ले जाने के लिए कुछ कठोर फैसले लेने की जरूरत थी। उन्होंने कहा कि 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' एक विचार है।
इससे पहले मंगलवार को भाजपा के दिग्गज नेता राजेंद्र सिंह लोजपा में शामिल हो गए थे।
सूत्रों के मुताबिक, वे दिनारा से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। दिनारा से जदयू ने अपने मंत्री जयकुमार सिंह को टिकट दिया है।
इधर, बताया जाता है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता और नोखा से विधायक रह चुके रामेश्वर चौरसिया, सासाराम से पांच बार भाजपा विधायक रहे जवाहर प्रसाद भी पार्टी से नाराज हैं। सूत्रों का कहना है कि लोजपा ऐसे लोगों से संपर्क में है।
सूत्र बताते हैं कि भोजपुर के भाजपा नेता राम संजीवन सिंह, जहानाबाद के देवेश शर्मा, गया के रामावतार सिंह, जदयू के औरंगाबाद जिला के पूर्व उपाध्यक्ष आर एस सिंह तथा खगड़िया के पूर्व जदयू उपाध्यक्ष कपिलदेव सिंह समेत कई नेता लोजपा के संपर्क में हैं।
लोजपा के एक नेता कहते हैं, पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान के संपर्क में भाजपा, जदयू और राजद के दर्जनों दिग्गज नेता हैं जो चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। पार्टी द्वारा मजबूत वोट आधार वाले नेताओं को सिंबल देने में प्राथमिकता दी जा रही है। चिराग पासवान जल्द ही पहले चरण के उम्मीदवारों की सूची घोषित करेंगे।
लोजपा के वरिष्ठ नेता और पार्टी के मीडिया पैनल में शामिल संजय सर्राफ ने आईएएनएस से कहा कि अगर कोई पार्टी की सदस्यता ग्रहण करता है तो इसमें कोई बुराई है क्या?
उन्होंने कहा कि भाजपा, जदयू के कई मंत्री अभी पार्टी के संपर्क में है। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा, "लोजपा 143 सीटों पर प्रत्याशियों की सूची तैयार कर रखी है, लेकिन हाल ही में पार्टी में शामिल हुए नेताओं में से कोई कद्दावर या मजबूत वोट आधार वाला नेता होंगे तो कार्यकर्ताओं की राय के बाद उसे भी टिकट दिया जा सकता है। प्रत्याशी चयन में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा नहीं की जाएगी।"
संदीप पौराणिक
भोपाल, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव के लिए भाजपा ने उम्मीदवारों की सूची जीरी कर संतुलन का संदेश दिया है। एक तरफ जहां 25 पूर्व विधायकों को उम्मीदवार बनाया गया है तो तीन स्थानों पर संगठन से जुड़े लोगों को जगह दी गई है।
राज्य में भाजपा की सरकार पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ 22 तत्कालीन विधायकों द्वारा इस्तीफा देने से बनी थी। उसके बाद तीन और तत्कालीन विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। इस तरह कांग्रेस से भाजपा में आने वाले पूर्व विधायकों की कुल संख्या 25 हो गई।
भाजपा ने सभी 28 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। इस सूची में 25 उम्मीदवार वही हैं, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे, वहीं पार्टी ने तीन अन्य उम्मीदवारों के जरिए संतुलन का संदेश दिया है़, इनमें सबसे महत्वपूर्ण मुरैना जिले की जौरा विधानसभा सीट है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मुरैना से बनवारी लाल शर्मा के परिजनों को टिकट देने के पक्ष में थे। बनवारी लाल शर्मा की गिनती सिंधिया के करीबी में होती रही है और वे कांग्रेस के विधायक थे मगर उनका निधन होने से स्थान रिक्त है। पार्टी ने यहां से सूबेदार सिंह को उम्मीदवार बनाया है।
इसी तरह ब्यावरा में नारायण सिंह पवार को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है, स्थानीय कुछ लोग पवार का विरोध कर रहे थे मगर संगठन ने उस विरोध को दरकिनार कर दिया, वहीं आगर से पूर्व सांसद और तत्कालीन विधायक मनोहर ऊंटवाल के बेटे मनोज ऊंटवाल को उम्मीदवार बनाया गया है, यह सीट मनोहर ऊंटवाल के निधन से खाली हुई है।
भाजपा के एक नेता का कहना है कि पार्टी ने जहां कांग्रेस छोड़कर आए पूर्व विधायकों को उम्मीदवार बनाने का वादा किया था, उन नेताओं ने त्याग किया है, इसलिए पार्टी ने सभी 25 पूर्व विधायकों को उम्मीदवार बनाकर अपना वादा निभाया है। वहीं पार्टी के तीन निष्ठावान कार्यकर्ताओं का ध्यान रखकर उनको उम्मीदवार बनाया गया है।
राजनीतिक विश्लेषक भारत शर्मा का कहना है कि भाजपा ने भले ही अपना वादा निभाया हो, मगर इससे पार्टी में असंतोष तो पनपा ही है। वहीं तीन उन नेताओं को उम्मीदवार बनाया है जो पुराने और समर्पित कार्यकर्ता हैं। इस तरह पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनके लिए समर्पित कार्यकर्ताओं की अहमियत कम नहीं हुई है।
चेन्नई, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)| तमिलनाडु की सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने बुधवार को घोषणा की है कि मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ही 2021 विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। पार्टी के समन्वयक और उपमुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम द्वारा पार्टी मुख्यालय में यह घोषणा की गई।
पन्नीरसेल्वम की मांग को स्वीकार करते हुए पार्टी ने पार्टी का मार्गदर्शन करने के लिए 11 सदस्यीय स्टीयरिंग कमेटी (संचालन समिति) की स्थापना की भी घोषणा की है।
स्टीयरिंग कमेटी के गठन की घोषणा पार्टी के संयुक्त समन्वयक और मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने की।
स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य हैं : डिंडीगुल सी. श्रीनिवासन, एस.पी. वेलुमणि, पी. थंगमणि, सी.वी. शनमुगम, डी. जयकुमार, आर. कामराज, मनोज पांडियन, जे.सी.डी. प्रभाकर, पी.मोहन, गोपालकृष्णन और मणिकम।
घोषणा का स्वागत करते हुए पार्टी के कार्यकर्ताओं ने खुशी में मुख्यालय में पटाखे फोड़े और मिठाइयां बांटी।
पार्टी की कार्यकारी समिति की हालिया बैठक में, 2021 विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा का मुद्दा उठाया गया था।
पन्नीरसेल्वम और पलानीस्वामी के समर्थकों के बीच जुबानीजंग भी हुई थी।
पन्नीरसेल्वम की मांग रही है कि पहले के समझौते के अनुसार पार्टी का मार्गदर्शन करने के लिए एक स्टीयरिंग कमेटी का गठन किया जाए।
इतने वर्षो में पलानीस्वामी स्टीयरिंग समिति के लिए सहमत नहीं थे और पन्नीरसेल्वम चुप रहे।
पार्टी की कार्यकारी समिति की बैठक के बाद, उप समन्वयक के.पी. मुनुसामी ने संवाददाताओं से कहा कि पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा 7 अक्टूबर को पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी द्वारा की जाएगी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, "मौजूदा धड़े में कोई बदलाव नहीं होगा। यथास्थिति यही रहेगी। पलानीस्वामी की अगुवाई में पार्टी चुनाव लड़ेगी जबकि पन्नीरसेल्वम पार्टी के समन्वयक बने रहेंगे।"
मनोज पाठक
पटना, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार चुनाव में सियासत का अजब खेल दिख रहा है। सियासत के रंग में राजनीतिक दल कहीं आपस में गहरे दोस्त हैं, लेकिन बिहार के इस चुनावी मैदान में आमने-सामने खड़े हो कर ताल ठोंक रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सब सत्ता के नजदीक पहुंचने का खेल है।
केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ खड़ी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नेतृत्व खराब लगने लगता है जबकि झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के गलबहिया कर सत्ता का स्वाद चख रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को यहां अपने हिस्से की झामुमो को टिकट देना घाटे का सौदा दिखाई देने लगा।
ऐसे में बिहार चुनाव में लोजपा और जदयू तथा राजद और झामुमो आमने-सामने खड़े हैं।
झारखंड विधानसभा चुनाव में राजद सिर्फ अपना खाता खोल सकी थी लेकिन इसके बावजूद उसके एक मात्र विधायक को मंत्री बनाकर सत्ता में शामिल किया गया। इसके बाद जब बिहार चुनाव की बारी आई तो बिहार में राजद को झामुमो का साथ गंवारा नहीं हुआ और झामुमो ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।
झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि झामुमो सम्मान के साथ समझौता नहीं कर सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि राजद ने राजनीतिक मक्कारी की है, जिसके खिलाफ हम बोलने को मजबूर हैं।
भट्टाचार्य ने तो राजद को उसकी हैसियत तक याद करा दिया। उन्होंने कहा कि राजद की हैसियत झारखंड में क्या थी? झामुमो के कारण झारखंड में उनका दीया टिमटिमा रहा है।
उन्होंने राजद को याद दिलाते हुए कहा कि राजद को लोकसभा और विधानसभा में उनकी हैसियत से ज्यादा दिया। उन्होंने कहा कि अपने संगठन के बूते बिहार में निर्णायक सीटों पर हम लड़ेंगे।
उन्होंने कहा कि झामुमो ने झारखंड को संघर्ष करके हासिल किया है, खैरात में नहीं पाया है।
पार्टी ने झाझा, चकाई, कटोरिया, धमदाहा, मनिहारी, पिरपैती और नाथनगर से प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है।
कमोबेश यही हाल लोजपा का है। लोजपा के प्रमुख चिराग पासवान को केंद्र में राजग के साथ तो अच्छा लगता है, लेकिन बिहार चुनाव में उनको राजग का साथ नहीं भाया और चुनावी मैदान में राजग के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।
केंद्र में लोजपा के पूर्व अध्यक्ष रामविलास पासववान मंत्री हैं। लोजपा के प्रमुख चिराग कहते भी हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके आदर्श हैं और उन्हीं से वे संघर्ष करना सीखे हैं, लेकिन बिहार में भाजपा नेतृत्व वाला राजग उनको पसंद नहीं आता।
उल्लेखनीय है कि राजग यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव मैदान में है।
वैसे, राजग के संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में मंगलवार को भाजपा नेताओं ने भी स्पष्ट कर दिया कि बिहार में नीतीश कुमार का नेतृत्व जिन्हें नहीं पसंद है वह राजग के साथ नहीं हो सकता है।
बहरहाल, बिहार के इस चुनाव में सियासत का अजब खेल दिख रहा है, जिससे चुनावी मैदान में मुकाबला रोचक हो गया है। वैसे, अब देखना होगा कि चुनाव मैदान में कहीं और की दोस्ती और यहां पर मुकाबला मतदाताओं को कितना रास आता है।
इंदौर से पंकज मुकाती की विशेष रिपोर्ट
इंदौर, 6 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’)। बदनावर के प्रत्याशी का बदलाव प्रदेश में सियासत के बदलाव की निशानी है। कांग्रेस ने अपने घोषित प्रत्याशी अभिषेक सिंह टिंकू बना का टिकट अब कमलसिंह पटेल को दे दिया है। यानी अब यहां कमलसिंह पटेल और भाजपा के राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के बीच मुकाबला होगा। अभिषेक सिंह के प्रत्याशी बनते ही ये बदलाव तय माना जा रहा था।
प्रत्याशी बदलना राजनीतिक दलों में सामान्य चलन है। बदनावर के टिकट का बदलाव भविष्य की पूरी राजनीति की दिशा तय करता है। अभिषेक सिंह का टिकट दिग्विजय सिंह की पसंद का बताया जा रहा है। उनकी टिकट वापसी का मतलब दिग्विजय की खींची लकीर मिटाना भी भी है। अब तक ये माना जाता रहा है कि दिग्विजय मध्यप्रदेश कांग्रेस पर एकछत्र राज करते हैं। वे जो कहते हैं, उसकी कोई काट नहीं।
अभिषेक सिंह के टिकट के कटने का कारण संगठन में विरोध जनता का सही फीडबैक न होने जैसा बताया जा रहा है। यही हमेशा कहा भी जाता है। पर मामला इतना आसान है नहीं। बदनावर टिकट में वही हुआ जो दिग्विजय की पुराना स्टाइल रहा है। इस राजा ने भी कई बार ऐसे टिकट दिए और फिर फीडबैक के नाम पर अपने आदमी को टिकट दिया। आज वही अंदाज उन पर लागू हो गया।
राजवर्धन सिंह सिंधिया के खास हैं, वे सिंधिया के साथ ही भाजपा में आये हैं। उनके पिता प्रेमसिंह दत्तीगांव की राजनीति को खत्म करने का जिम्मेदार राजवर्धन सिंह दिग्विजय को ही मानते हैं। वे कभी दिग्विजय के बारे में बात तक करना पसंद नहीं करते। उनके सामने दिग्विजय भी अपनी पसंद के प्रत्याशी को ही चाहते थे।
कमलसिंह पटेल का नाम घोषित करवा कर उमंग सिंगार ने दिग्विजय खेमे को क्षेत्र में अपनी ताकत का अहसास भी करा दिया है। सिंगर संकेत दे चुके थे कि कमल पटेल को टिकट नहीं दिया गया तो वे चुनाव तक बदनावर से दूरी बना लेंगे। सिंगार पहले भी इस इलाके में दिग्विजय की घुसपैठ के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। सिंगार ने पहले भी दिग्विजय को खुली चुनौती दी है।
कांग्रेस ने जिस टिंकू बना का पहले नाम घोषित किया था उनके खाते में बड़ी उपलब्धि के नाम पर शिवराज-सिंधिया की हाल की बदनावर यात्रा में समर्थकों के साथ उन्हें काले झंडे दिखाना ही है। दत्तीगांव ने विधायक रहते टिंकू बना परिवार को कांग्रेस सदस्यता से निष्कासित कराने जैसी कार्रवाई की थी, इसके बाद भी उन्हें प्रत्याशी घोषित किए जाने का क्षेत्र के कांग्रेसजन खुल कर विरोध कर रहे थे।
टिंकू बना के पिता एडवोकेट जीपी सिंह का बदनावर में दबदबा तो रहा लेकिन दत्तीगांव के पावर में आने के बाद इसी परिवार को दलगत स्तर पर परेशानियों से भी जूझना पड़ा है। अब जब उनकी जगह पटेल को टिकट दे दिया है तब भी टिंकू बना की मजबूरी होगी कांग्रेस के लिए काम करना क्योंकि उन्हें दत्तीगांव से पुराने हिसाब चुकते करना है।
कमलसिंह पटेल राजवर्धन और उनके पिता की सियासत के स्तम्भ रहे कमल पटेल परिवार का प्रेम सिंह दत्तीगांव से लेकर राज्यवद्र्धन सिंह को राजनीतिक रूप से मजबूत करने में योगदान रहा है इस वजह से भी अब जब कमल पटेल को मौका दिया है तो आम कांग्रेसजन अधिक खुश है। दावेदारी में जिला कांग्रेस अध्यक्ष बीके गौतम के पुत्र मनोज का भी नाम था लेकिन कमल पटेल का नाम घोषित कर कांग्रेस ने स्थानीय प्रत्याशी वाली मांग का सम्मान किया है।
बदनावर की कुल जनसंख्या, जातिगत मतदाता 1135 हजार के करीब राजपूत, इतने ही 35 पाटीदार मतदाता है। सत्रह हजार के करीब जैन समाज, 19 हजार के करीब मुस्लिम, 65 हजार के करीब आदिवासी व अन्य समाज के लोग विधानसभा में हैं। कुल जनसंख्या दो लाख के आसपास है।
पटना, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार चुनाव को लेकर महागठबंधन में सीट बंटवारे के बाद भाकपा (माले) ने सोमवार को यहां प्रत्याशियों की अपनी सूची जारी कर दी। महागठबंधन में सीट बंटवारे के बाद भाकपा (माले) के हिस्सें में 19 सीटें आई हैं। भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने प्रत्याशियों की सूची जारी करते हुए कहा कि, "तीनों निवर्तमान विधायक महबूब आलम, सुदामा प्रसाद और सत्यदेव राम को फिर से प्रत्याशी बनाया गया है।"
आलम को बलरामपुर से पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है, जबकि सुदामा प्रसाद तरारी से और सत्यदेव राम दरौली से चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा संदीप सौरभ को पालीगंज, कयामुद्दीन अंसारी को आरा, मनोज मंजिल को अगिआंव, अजीत कुमार सिंह को डुमरांव, अरूण सिंह को काराकाट, महानंद प्रसाद को अरवल तथा रामबलि सिंह यादव को घोसी से प्रत्याशी बनाया गया है।
भट्टाचार्य ने आगे बताया कि पहले चरण में 28 अक्टूबर को होने वाले 71 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होना है, इसमें आठ क्षेत्र पर भाकपा (माले) के प्रत्याशी उतारे हैं।
उन्होंने कहा कि, "भोरे क्षेत्र से जितेंद्र पासववान को, जीरादेई से अमरजीत कुशवाहा, दरौंदा से अमरनाथ यादव, दीघा से शशि यादव, फुलवारी से गोपाल रविदास को टिकट दिया गया है।"
उन्होंने कहा कि इसके अलावा वीरेंद्र गुप्ता सिकटा से, अफताब आलम औराई से, रंजीत राम कल्याणपुर से तथा फुलबाबू सिंह वारिसनगर से पार्टी के प्रत्याशी होंगे।
उल्लेखनीय है कि बिहार के 243 विधानसभा सीटों में से महागठबंधन में 144 पर राष्ट्रीय जनता दल, 70 पर कांग्रेस और 29 सीटों पर वामपंथी दल अपने प्रत्याशी उतारेंगे। वामपंथी दलों में भाकपा माले को 19 सीटें दी गई हैं।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक और शिवराज सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि राज्य में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव 'विकास' बनाम 'विश्वासघात' के बीच होने वाले हैं। भाजपा का लक्ष्य विकास और स्थायित्व है तो दूसरी ओर कांग्रेस विश्वासघात और धोखे की राजनीति करती है।
नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, कांग्रेस पिछले चुनाव में किसानों की कर्जमाफी और बेरोजगारों को भत्ता देने का वादा करके सत्ता में आई थी और उसने लगभग 100 पेज का वचन पत्र भी जारी किया था, मगर हुआ क्या, यह सबके सामने है। यही कारण रहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथियों ने वादा खिलाफी करने वाली कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और वे भाजपा में शामिल हो गए।
राज्य में 28 विधानसभा क्षेत्रों में 3 नवंबर को उप चुनाव होने वाले हैं। इस चुनाव में भाजपा को आखिर मतदाता क्यों वोट दें, इस सवाल पर भूपेंद्र सिंह का कहना है कि, प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के 15 महीने का शासन देखा है, कांग्रेस चुनाव में जो वादा करके सत्ता में आई थी, उसे सत्ता में आते ही कांग्रेस ने भुला दिया। जनता के साथ कांग्रेस ने धोखा किया, वहीं दूसरी ओर भाजपा विकास की राजनीति करती है और स्थायित्व वाली सरकार देने में सक्षम है। यही दो ऐसे मुद्दे हैं जिन पर जनता का भाजपा को साथ मिलेगा।
भाजपा द्वारा दलबदल कराने वाले नेताओं को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर कांग्रेस हमलावर है और सवाल उठा रही है कि आखिर दलबदल करने वालों पर भरोसा कैसे किया जाए। इस सवाल पर भूपेंद्र सिंह ने कहा, जिन नेताओं ने दलबदल किया है उन्होंने जनता की खातिर ही कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में आए हैं क्योंकि कांग्रेस की सरकार ने जनता के साथ धोखा किया था। कांग्रेस की सरकार ने वचन पूरे नहीं किए, तभी तो उन नेताओं ने पार्टी छोड़ी। वास्तव में उन नेताओं ने तो जनता के लिए त्याग किया है, वे विधायक थे, मंत्री थे, उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी, मगर कांग्रेस ने जनता के साथ धोखेबाजी की तो उन नेताओं ने सत्ता ही त्याग दी।
भूपेंद्र सिंह ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, यह चुनाव प्रत्याशी आधारित नहीं है बल्कि भाजपा विकास के मुद्दे पर लड़ रही है। यह चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक प्रभाव को लेकर पूछे गए सवाल पर भूपेंद्र सिंह ने कहा कि, सिंधिया के भाजपा में आने से पार्टी को लाभ मिलेगा। सिंधिया बड़ी ताकत हैं, राज्य के बड़े नेता हैं, कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में तो कांग्रेस सिंधिया पर ही आधारित थी। उनके कांग्रेस छोड़ने से पार्टी लगभग समाप्त होने की स्थिति में आ गई है। इसका भाजपा को लाभ मिलेगा।
किसान कर्ज माफी को लेकर भाजपा और कांग्रेस के अपने-अपने तर्क हैं। सिंह का कहना है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में 10 दिन में किसान कर्जमाफी की बात कही थी, अगर वास्तव में कर्जमाफी हुई हेाती तो लोकसभा के चुनाव में राज्य से कांग्रेस का सफाया नहीं हुआ होता। सब साफ है, कांग्रेस ने जनता के साथ सिर्फ विश्वासघात ही किया है।
बेंगलुरु, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)| दिवंगत आईएएस अधिकारी डी.के. रवि की विधवा पत्नी कुसुमा एच. ने कर्नाटक की दो विधानसभा सीटों के लिए 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव से पहले रविवार को कांग्रेस का दामन थाम लिया। पार्टी के एक नेता ने यहां आईएएनएस को बताया, "31 साल की कुसुमा औपचारिक रूप से हमारी पार्टी में एक प्राथमिक सदस्य के रूप में शामिल हुईं।"
2009 बैच के कर्नाटक कैडर के आईएएस अधिकारी 35 वर्षीय रवि ने 16 मार्च, 2015 को 'व्यक्तिगत कारणों' से आत्महत्या कर ली थी।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने कहा, "पार्टी कुसुमा को आरआर नगर से उपचुनाव के लिए उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रही है, क्योंकि वह शिक्षित और युवा हैं और युवाओं से सहजता से जुड़ सकती हैं।"
2019 में भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस विधायक मुनिरत्ना के इस्तीफे से आरआर नगर में उपचुनाव कराने की जरूरत आ पड़ी।
एक और उपचुनाव तुमकुरु जिले में सिरा विधानसभा क्षेत्र में होना है। 5 अगस्त को लंबी बीमारी के बाद जेडी-एस के विधायक बी. सत्यनारायण के निधन के कारण यह सीट खाली हो गई।
कुसुमा के पिता हनुमंतरायप्पा आरआर नगर जोन से कांग्रेस काउंसिल के पूर्व सदस्य और मैसूर योजना समिति के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं।
पटना, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान महागठबंधन से बाहर होने के बाद रविवार को विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने राजद नेता तेजस्वी यादव पर अंधेरे में पीठ पर छूा घोंपने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि कई अन्य पार्टियों से उनकी बात हो रही है। पटना में आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान उन्होंने तेजस्वी पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि उनकी कथनी और करनी में फर्क है। उन्होंने कहा, "जब बात सीटों की हो चुकी थी, तब उन्हें इसकी घोषणा करने में दिक्कत क्यों हुई, जबकि दो दिन पहले उनके पास आई पार्टी के सीटों की घोषणा करने में देर नहीं की।"
सहनी ने साफ-साफ कहा, "वे भविष्य में कभी तेजस्वी यादव के साथ राजनीति नहीं करेंगे। हम अपनी शतोर्ं पर चुनाव लड़ेंगे। अभी कुछ लोगों से बात चल रही है। फिलहाल हमने पार्टी के सभी पदाधिकारियों के साथ विमर्श के बाद 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। प्रथम सूची की घोषणा पांच अक्टूबर को कर दी जाएगी।"
इससे पहले मुकेश सहनी ने तेजस्वी पर ताबड़तोड़ कई आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के विचारों से प्रभावित होकर हमने उनसे समझौता किया था और महागठबंधन में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि तेजस्वी ने लोकसभा चुनाव में भी धोखा दिया था।
उन्होंने तेजस्वी पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनसे एक पार्टी नहीं संभल रही है, तो वे बिहार क्या संभालेंगे। उन्होंने कहा कि तेजस्वी बिहार के युवा की बात करते हैं, लेकिन वामपंथी नेता कन्हैया कुमार और लोजपा नेता चिराग पासवान से उनको परेशानी है।
उल्लेखनीय है कि वीआईपी के मुकेश सहनी शनिवार को महागठबंधन में सीट बंटवारे से नाराज होकर प्रेस कांफ्रेंस से बाहर निकल गए थे।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव के कई क्षेत्रों में मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार बनने लगे हैं, क्योंकि बहुजन समाज पार्टी ने अपने उम्मीदवार तय कर दिए हैं।
राज्य के 28 विधानसभा क्षेत्रों में तीन नवंबर को उप-चुनाव के लिए मतदान होना है और नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। कांग्रेस 24 क्षेत्रों के लिए अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है, वहीं भाजपा के उम्मीदवारों का आधिकारिक ऐलान बाकी है तो बहुजन समाज पार्टी ने 18 उम्मीदवारों की दो सूची जारी कर चुकी है।
राज्य के जिन 28 विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव होने वाले हैं उनमें से 16 सीटें ग्वालियर चंबल इलाके से आती हैं। यह ऐसा क्षेत्र है जहां बसपा का अपना वोट बैंक है। इस इलाके की नौ विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां बसपा के उम्मीदवार पहले जीत चुके हैं। इनमें मेहगांव, करैरा, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, भांडेर व अशोकनगर शामिल है। पिछले विधानसभा क्षेत्रों में भी इन इलाकों में बसपा को काफी वोट मिले थे।
इस अंचल की राजनीति का अंदाजा आरक्षण को लेकर वर्ष 2018 में भड़की हिंसा से लगाया जा सकता है। प्रदेश में लगभग 16 फीसदी अनुसूचित जाति की आबादी है और इसमें सबसे ज्यादा ग्वालियर-चंबल इलाके से आती है। यही कारण है कि यह इलाका ऐसा है जिसे बसपा अपना गढ़ मानती है।
वैसे बसपा ने अब से पहले उप-चुनाव लड़ने में कभी भी दिलचस्पी नहीं दिखाई, मगर इस बार वह पूरी ताकत से चुनाव लड़ने की तैयारी में है। उसकी वजह कांग्रेस द्वारा बसपा में सेंध लगाना माना जा रहा हैं। कांग्रेस ने अब तक जिन उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है, उनमें कई नेता ऐसे है जो बसपा के प्रमुख स्तंभ रहे है या उन्होंने बसपा के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा है। इनमें फूल सिंह बरैया, सत्यप्रकाश संखवार, प्रागी लाल जाटव, रविंद तोमर प्रमुख हैं।
बसपा के नेता यही मानकर चल रहे हैं कि इस उप-चुनाव से उनकी ताकत और मजबूत हेागी, क्योंकि वे यह चुनाव पूरी ताकत और क्षमता से लड़ने वाले हैं। साथ ही भाजपा और कांग्रेस ने बहुजन वर्ग की उपेक्षा की है, यह वर्ग देानों राजनीतिक दलों से नाराज है।
राजनीतिक विश्लेषक देव श्रीमाली का मानना है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की एक तिहाई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है। यह त्रिकोणीय मुकाबला बसपा के कारण नहीं बल्कि उम्मीदवार की जाति, संगठन क्षमता के कारण होगा। वैसे इस क्षेत्र में बसपा की ताकत लगातार कम हुई है, पिछले विधानसभा के दो चुनाव के आंकड़े यही बताते हैं।
पटना, 3 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार चुनाव के मद्देनजर नेताओं के दलबदल का सिलसिला अब जोर पकड़ने लिया है। इसी क्रम में शनिवार को जन अधिकार पार्टी (जाप) के राष्ट्रीय महासचिव अकबर अली परवेज, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रदेश उपाध्यक्ष संजय चौबे सहित कई नेताओं ने शनिवार को राष्ट्रीय जन जन पार्टी (राजजपा) की सदस्यता ग्रहण कर ली। राजजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशुतोष कुमार ने आए करीब दो दर्जन नेताओं का स्वागत किया और पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवाई।
इस मौके पर उन्होंने राजजपा को बिहार को मजबूत और स्वच्छ विकल्प देने वाली पार्टी बताते हुए कहा कि पार्टी की विचारधारा से प्रभावित होकर विभिन्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं की बदौलत बिहार में बदलाव को अब चंद दिन ही रह गए हैं।
उन्होंने कहा, "हमने जो बिहार में विकल्पहीनता को समाप्त करने का संकल्प लिया है, उस विचारधारा से प्रभावित होकर स्वच्छ राजनीति के लिए आज कई दलों के नेता हमारे साथ आए हैं।"
कुमार ने पहले चरण की अधिसूचना जारी होने के बाद भी प्रदेश की तमाम दलों द्वारा सीटों पर उम्मीदवारों के नाम पर जिच को लेकर निशाना साधते हुए कहा कि सीटों को लेकर यह खींचतान बताता है कि उनकी लड़ाई विचारधारा की नहीं, सीटों की है। इन लोगों से जनता से ज्यादा कुर्सी से मतलब है।