राजनीति
नई दिल्ली, 10 मई । भाजपा के राष्ट्रीय सचिव मनजिंदर सिंह सिरसा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद यह साफ हो गया है कि अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में लिप्त हैं।
उन्होंने कहा कि अदालत ने अरविंद केजरीवाल को चुनाव के लिए सिर्फ 1 जून तक के लिए जमानत दी है और चुनाव के बाद उन्हें फिर से जेल जाना होगा।
सिरसा ने आम आदमी पार्टी और केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि आज दिल्ली के लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि अगर अरविंद केजरीवाल ने कोई घोटाला नहीं किया है, भ्रष्टाचार नहीं किया है और वह वाकई ईमानदार हैं तो फिर उन्हें 1 जून के बाद दोबारा जेल क्यों जाना होगा ?
भाजपा नेता ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने इतना बड़ा भ्रष्टाचार और घोटाला किया है कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चुनाव के लिए सिर्फ 1 जून तक की ही अंतरिम जमानत दी है।
(आईएएनएस)
पटना, 10 मई । लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर को भारत छोड़कर जाने की हिदायत देते हुए कहा कि उनके लिए हिंदुस्तान में कोई जगह नहीं है।
दरअसल, चिराग पासवान ने मणिशंकर अय्यर के उस बयान पर प्रतिक्रिया दी है जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत को पाकिस्तान का सम्मान करना चाहिए क्योंकि उनके पास परमाणु बम है। चिराग पासवान ने अय्यर पर तंज कसते हुए कहा कि उनकी ही एंट्री का इंतजार था।
उन्होंने कहा कि जब-जब उनकी एंट्री होती है तब-तब हमलोगों का चुनाव और मजबूत हो जाता है। इनके बयान इनके लिए ही कितने सेल्फ गोल कर देते हैं, इन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं होता। अगर इनके मन में पाकिस्तान के लिए इतना ही प्यार और सम्मान है तो मुझे लगता है कि हिंदुस्तान में उनके लिए जगह नहीं है।
वहीं, विपक्ष की ओर से जारी बयानबाजी पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि वह बिना सिर-पैर की बातें कर रहे हैं। ऐसे बयानों से उनका इरिटेसन दिखता है। यह दिखाता है कि आप कितना चिढ़े हुए हैं हमारे प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से।
उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और एनडीए को मिल रहे समर्थन से विपक्ष के लोग इतना ज्यादा चिढ़ गए हैं कि इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसा बयानों का चुनाव से क्या लेना देना है। इस बयान से सिर्फ उनकी बौखलाहट दिखती है।
(आईएएनएस)
चेन्नई, मार्च 31 । तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने रविवार को कांग्रेस और द्रमुक पर साठगांठ कर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपने का आरोप लगाया।
श्रीलंकाई नौसेना द्वारा तमिलनाडु के मछुआरों की गिरफ्तारी पर 'इंडिया' गठबंधन के विरोध पर अन्नामलाई ने 'एक्स' पर कहा कि उन्हें कच्चातिवु मुद्दे पर उनके आरटीआई आवेदन के अनुसार दस्तावेज प्राप्त हुए थे और उन्होंने पाया कि कांग्रेस पार्टी ने कितनी बेरहमी से श्रीलंका के हाथों 'भारत' के हिस्से को छिन जाने दिया था।
भाजपा नेता ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 10 मई, 1961 को इस मुद्दे को अप्रासंगिक बताते हुए खारिज कर दिया था और कहा था कि उन्हें द्वीप पर दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।
अन्नामलाई ने कहा कि उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, नेहरू ने तब लिखा था, “मुझे इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी। मुझे यह पसंद नहीं है कि यह अनिश्चित काल तक लंबित रहे और इसे संसद में दोबारा उठाया जाए।''
भाजपा नेता ने कहा कि भारत के एक अत्यधिक सम्मानित कानूनविद और तत्कालीन अटॉर्नी जनरल सी.एस. सीतलवाड ने 1960 में कहा था कि भारत का इस द्वीप पर अधिक मजबूत दावा है और दावा किया था कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने द्वीप के जमींदारी अधिकार रामनाद (रामनाथपुरम) के राजा को दिए थे।
अन्नामलाई ने यह भी कहा कि विदेश मंत्रालय (कानून और संधि) के तत्कालीन संयुक्त सचिव कृष्ण राव ने भी कहा था कि भारत के पास एक अच्छा कानूनी मामला है और उस पर काफी मजबूती से बहस की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि तत्कालीन विपक्ष ने श्रीलंका (तत्कालीन सीलोन) की संसद में वहां के प्रधानमंत्री डी.एस. सेनानायके और स्थानीय पदाधिकारियों के इन बयानों का विरोध नहीं करने के लिए भारत सरकार को फटकार लगाई थी जिनमें उन्होंने कच्चातिवु को श्रीलंका का हिस्सा बताया था।
भाजपा नेता ने कहा कि 1973 में कोलंबो में विदेश सचिव स्तर की वार्ता के बाद जून 1974 में भारतीय विदेश सचिव केवल सिंह ने तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि को भारत के दावों को छोड़ने के निर्णय से अवगत कराया गया था। अन्नामलाई ने कहा कि रिकॉर्ड के अनुसार, करुणानिधि ने भी सहमति दी थी।
भाजपा नेता ने कहा कि समझौते में एक खंड था कि तमिलनाडु के भारतीय मछुआरे कच्चातिवु का उपयोग कर सकते हैं और वे वहां अपना जाल सुखा सकते हैं। अन्नामलाई के अनुसार, यह मछुआरा समुदाय के संभावित विद्रोह को रोकने के लिए था, लेकिन उन्होंने कहा कि एक साल बाद इस अनुच्छेद को रद्द कर दिया गया था।
अन्नामलाई ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और द्रमुक ने मिलीभगत करके जमीन का एक टुकड़ा श्रीलंका को दे दिया और उसे खोने से रोकने के लिए कोई उपाय भी नहीं किया।
(आईएएनएस)
अहमदाबाद, 31 मार्च । भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गुजरात प्रमुख सी.आर. पाटिल ने रविवार को राज्य के जूनागढ़ में पार्टी के "श्री गिरनार कमलम" नामक नए स्थानीय कार्यालय का उद्घाटन किया और एक बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित किया।
उन्होंने कहा कि चुनाव में सफलता के लिए बूथ नेताओं का योगदान अपरिहार्य है और पार्टी उनके "अथक प्रयासों" के कारण चुनाव जीत रही है।
पाटिल ने संगठनात्मक ताकत के रणनीतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए भाजपा की विस्तार योजनाओं के बारे में बताया, जिसमें पार्टी की उपस्थिति मजबूत करने और लोगों के साथ निरंतर जुड़ाव सुनिश्चित करने के लिए गुजरात के हर जिले में कार्यालयों की स्थापना पर जोर दिया गया।
पाटिल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व की सराहना करते हुए दावा किया कि उनके कार्यकाल में 25 करोड़ लोगों को बिना किसी शोर-शराबे के गरीबी से बाहर निकाला गया है।
इस अवसर पर जूनागढ़ के जिला प्रमुख पुनित शर्मा और लोकसभा उम्मीदवार राजेश चुडासमा भी उपस्थित थे।
(आईएएनएस)
मेरठ, 31 मार्च। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे महत्वपूर्ण लोकसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार का शंखनाद आज पश्चिमी यूपी की धरती मेरठ से कर रहे हैं। यह तीसरा मौका है जब नरेंद्र मोदी ने मेरठ को ही चुनावी आगाज के लिए चुना है। 2014 की रैली दिल्ली रोड स्थित परतापुर के मैदान पर की गई, तो 2019 की रैली का शुभारंभ देश के सबसे बड़े आलू अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम मेरठ के पास किया गया, और आज भी वही स्थल रखा गया है।
आज रैली स्थल पर मंच का कुछ माहौल बदला हुआ है। भारत रत्न दिए जाने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का यहां लगा कट आउट इस बात के संकेत दे रहा है, कि पीएम मोदी पश्चिमी यूपी में सबसे अधिक जाटों को साधने का प्रयास कर रहे हैं।
मंच पर लगे बैकड्रॉप पर केवल पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी की फोटो है। मंच पर पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह की फोटो अलग से रखी गई है, इसके सामने पीएम मोदी दीप जलायेंगे। रातोंरात रैली का नाम बदलकर इसे भारत रत्न चौधरी चरण सिंह जी गौरव रत्न समारोह किया गया है।
गौरतलब है कि मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली, आगरा अलीगढ़ मंडल की 26 लोकसभा सीटों की 72 विधानसभा ऐसी हैं, जहां जाट वोट प्रभावित करता है। माना जाता है कि वेस्ट यूपी में 16.9 प्रतिशत आबादी जाट समुदाय की है। एक और खास बात यह रही है कि 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों ने पूरे देश का राजनीतिक माहौल बदल दिया, और भाजपा को इसको सीधा सीधा फायदा मिला। यही वजह रही है कि देशभर में या फिर पश्चिमी यूपी में जब-जब चुनावी रैलियां हुई हैंं, मुजफ्फरनगर दंगों का जिक्र हुआ है। इससे सियासी माहौल को हवा दी गई है, और इसी के सहारे भाजपा अपने वोट बैंक को सबसे ज्यादा मजबूत कर रही है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 31 मार्च । दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल पार्टी की ओर से राजनीतिक मंच सांझा कर रही हैं। रविवार को वह दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित इंडिया ब्लॉक की रैली 'लोकतंत्र बचाओ' में शामिल हुईं। इस दौरान अरविंद केजरीवाल का संदेश पार्टी के किसी मंत्री या वरिष्ठ नेता की बजाए, उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ने ही पढ़ा। यह भी एक कारण है कि बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच उनके राजनीति में प्रवेश की अटकलें तेज हो गई हैं।
इससे पहले उन्होंने केजरीवाल के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस व समर्थन अभियान की भी शुरुआत की है। राजनीति के विशेषज्ञ इसे सुनीता केजरीवाल की राजनीति में एंट्री के तौर पर भी देख रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी, उद्धव ठाकरे और शरद पवार, सीपीआई नेता सीताराम येचुरी, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे सहित शीर्ष विपक्षी नेताओं के साथ मंच साझा करते हुए सभा में अपना संबोधन एक प्रश्न पूछकर शुरू किया।
उन्होंने अपने पति की गिरफ्तारी में केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल किया। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कथित एक्साइज पॉलिसी घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया है। फिलहाल वह वित्तीय जांच एजेंसी की हिरासत में हैं। विपक्षी नेताओं की रैली में सुनीता केजरीवाल ने कहा, "मैं एक प्रश्न पूछना चाहती हूं। क्या यह उचित है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरे पति को जेल में डाल दिया है। क्या आप केजरीवाल की ईमानदारी और देशभक्ति में विश्वास करते हैं। उनकी गिरफ्तारी के कारण उनके इस्तीफे के लिए भाजपा के दबाव के बावजूद, क्या आपको लगता है कि उन्हें पद छोड़ देना चाहिए।''
उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा भेजे गए पत्र को पढ़ने से पहले कहा। “याद रखें, आपका केजरीवाल शेर की तरह है, वे उन्हें लंबे समय तक कैद में नहीं रख सकते।' रैली में केजरीवाल का पत्र पढ़ते हुए, सुनीता केजरीवाल ने देश के आध्यात्मिक मूल्यों को विश्व स्तर पर फैलाने, भारत के भीतर एकता को बढ़ावा देने और देश भर में 24 घंटे बिजली की पहुंच की गारंटी देने का इरादा व्यक्त किया।
गौरतलब है कि इंडिया ब्लॉक का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता, दिल्ली शराब नीति से संबंधित कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में रैली कर रहे हैं। रैली का आह्वान आम आदमी पार्टी (आप) ने किया है, जो इंडिया ब्लॉक का हिस्सा है।
रैली में मौजूद नेताओं में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और शरद पवार, सीपीआई नेता सीताराम येचुरी, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, कल्पना सोरेन (हेमंत की पत्नी) शामिल हैं। इनके अलावा समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव और आप नेता गोपाल राय भी विपक्षी दलों की इस रैली में शामिल हुए हैं।
(आईएएनएस)
भोपाल, 31 मार्च। मध्य प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए अभियान जारी है। इसी क्रम में राजधानी में मतदाताओं में जागरुकता के लिए वाहन रैली निकाली गई।
राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन ने रविवार को मतदाताओं को जागरूक करने के उद्देश्य से मतदाता जागरूकता वाहन रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। उन्होंने सात मई को भोपाल लोकसभा सीट के लिए होने वाले मतदान में सभी नागरिकों से बढ़ चढ़कर मतदान की अपील की।
उन्होंने प्रदेश के सभी मतदाताओं से आग्रह किया है कि वे खुद मतदान करें और परिवार, आस पड़ोस के नागरिकों को भी मतदान के लिए प्रेरित करें। ज्ञात हो कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राजधानी में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था।
इस बार चुनाव आयोग की कोशिश है कि मतदान के प्रतिशत में बढ़ोतरी की जाए। मतदाता जागरूकता वाहन रैली का लालघाटी चौराहे से शुभारंभ हुआ। यह रैली वीआईपी रोड, गौहर महल, जहांगीराबाद होते हुए शौर्य स्मारक, अरेरा हिल्स पहुंची। शौर्य स्मारक पर रैली का समापन हुआ। रैली में शामिल बाइकर्स ग्रुप, क्लब के सदस्यों सहित 2500 से अधिक नागरिकों ने मतदाता जागरूकता का संदेश दिया।
(आईएएनएस)
बेंगलुरु, 31 मार्च । कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में राज्य के छह कैबिनेट मंत्रियों के बच्चों और रिश्तेदारों को मैदान में उतारा है।
उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि देश का पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है, सभी दलों में मंत्रियों और नेताओं के परिवार के सदस्यों या बच्चों को चुनाव में उतारा जा रहा है।
कर्नाटक के कृषि विपणन मंत्री शिवानंद पाटिल की बेटी संयुक्ता पाटिल बागलकोट लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चार बार के सांसद और वरिष्ठ भाजपा नेता पी.सी. गद्दीगौडर के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं।
कर्नाटक की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री लक्ष्मी हेब्बालकर के बेटे मृणाल हेब्बालकर वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार के खिलाफ बेलगावी लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।
सुनील बोस, कर्नाटक के समाज कल्याण मंत्री एच.सी.महादेवप्पा के बेटे हैं। वह चामराजनगर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार एस. बलराज के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जो पूर्व विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के करीबी सहयोगी हैं।
कर्नाटक के लोक निर्माण विभाग मंत्री सतीश जारकीहोली की बेटी प्रियंका जारकीहोली चिक्कोडी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के वरिष्ठ नेता अन्नासाहेब जोले के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं।
परिवहन मंत्री रामलिंगा रेड्डी की बेटी सौम्या रेड्डी बेंगलुरु दक्षिण लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के तेजस्वी सूर्या के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं।
कर्नाटक के वन मंत्री ईश्वर खंड्रे के बेटे सागर खंड्रे को बीदर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार और केंद्रीय राज्यमंत्री भगवंत खुबा के खिलाफ मैदान में उतारा गया है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री के. रहमान खान के बेटे मंसूर अली खान बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार तीन बार के सांसद पी.सी. मोहन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।
वंशवाद की राजनीति लंबे समय से कर्नाटक में जद (एस) का पर्याय रही है, पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य जद (एस) अध्यक्ष एच.डी. कुमारस्वामी पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के पुत्र हैं।
कुमारस्वामी मंड्या लोकसभा क्षेत्र से एनडीए उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि देवेगौड़ा के पोते प्रज्ज्वल रेवन्ना ने दूसरी बार हासन लोकसभा क्षेत्र से नामांकन दाखिल किया है।
भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा का परिवार पार्टी के अंदर और बाहर दोनों जगह चर्चा का विषय बना हुआ है। उनके बेटे बी.वाई. विजयेंद्र को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, जबकि दूसरे बेटे बी.वाई. राघवेंद्र, शिवमोग्गा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार हैं।
राघवेंद्र ने 2009, 2014, 2018 (उपचुनाव) और 2019 में शिवमोग्गा लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है और पांचवीं बार नामांकन दाखिल करने के लिए तैयार हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस की गीता शिवराजकुमार से है, जो कर्नाटक के शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा की बहन हैं।
चिक्कोडी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार अन्नासाहेब जोले पूर्व मंत्री शशिकला जोले के पति हैं। अन्नासाहेब ने 2018 में चिक्कोडी-सदलगा निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, उनकी पत्नी शशिकला जोले निप्पनी विधानसभा क्षेत्र से जीतीं और उन्हें कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किया गया।
बाद में अन्नासाहेब को 2019 के आम चुनाव के दौरान चिक्कोडी लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिया गया और उन्होंने जीत हासिल की।
गायत्री सिद्धेश्वर पूर्व केंद्रीय मंत्री जी.एम. सिद्धेश्वर की पत्नी हैं। सिद्धेश्वर को स्थानीय भाजपा नेतृत्व के विरोध का सामना करने के बाद दावणगेरे लोकसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा गया था।
इसी तरह, कांग्रेस ने कर्नाटक के बागवानी मंत्री एस.एस. मल्लिकार्जुन की पत्नी प्रभा मल्लिकार्जुन को दावणगेरे लोकसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा है। उनके ससुर शमनूर शिवशंकरप्पा कांग्रेस के विधायक हैं।
सी.एन. मंजूनाथ पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के दामाद हैं। उन्हें बेंगलुरु ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया है। भाजपा का लक्ष्य डी.के.शिवकुमार के प्रभुत्व का मुकाबला करना है। उनके भाई और कांग्रेस सांसद डी.के. सुरेश बेंगलुरु ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।
बेंगलुरु दक्षिण लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार और भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या बसवनगुड़ी से भाजपा विधायक रवि सुब्रमण्यम के करीबी रिश्तेदार हैं। यह देखने वाली बात होगी कि क्या कर्नाटक की जनता वंशवाद की राजनीति का समर्थन करती है या नहीं।
(आईएएनएस)
कोलकाता, 31 मार्च । भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई ने मुर्शिदाबाद जिले में तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व पर पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियों के लिए राज्य सरकार की संपत्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) से शिकायत की है।
भाजपा ने शनिवार को मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के कार्यालय को एक शिकायत भेजकर आरोप लगाया कि तृणमूल ने मालदा जिला परिषद के एक गेस्ट हाउस का इस्तेमाल गुरुवार को पार्टी की आंतरिक बैठक आयोजित करने के लिए किया, जो आदर्श आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन है।
भाजपा ने अपनी शिकायत में यह भी दावा किया कि तृणमूल के मालदा जिला अध्यक्ष अब्दुर रहीम बक्सी ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए बैठक बुलाई और अध्यक्षता की।
भाजपा ने दावा किया कि मालदा जिले से सत्तारूढ़ पार्टी के दो उम्मीदवार - मालदा उत्तर से प्रसून बनर्जी और मालदा दक्षिण से शाहनवाज अली रैहान भी बैठक में मौजूद थे।
भाजपा ने कहा कि चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद किसी राजनीतिक दल द्वारा संगठनात्मक गतिविधियों के लिए राज्य सरकार की संपत्ति का उपयोग करना एमसीसी का स्पष्ट उल्लंघन है।
यह स्वीकार करते हुए कि गुरुवार को उक्त गेस्ट हाउस में एक बैठक आयोजित की गई थी, अब्दुर रहीम बक्सी ने एमसीसी के उल्लंघन से इनकार किया। उन्होंने दावा किया कि सक्षम अधिकारियों से पूर्व अनुमति ली गई थी।
हालांकि, उन्होंने यह बताने से इनकार कर दिया कि किस 'सक्षम प्राधिकारी' से अनुमति ली गई थी।
(आईएएनएस)
झुंझुनू, 31 मार्च | झुंझुनू लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार बृजेन्द्र ओला ने कहा कि मैं चुनाव नहीं लडऩा चाहता था। गहलोत-पायलट को भी मना करके आया था, लेकिन पार्टी नेताओं ने कहा कि पार्टी संकट में है, इसलिए चुनाव लड़ने को तैयार हुआ।
ओला ने कहा कि वह पहले से ही विधायक हैं। मैं लोकसभा का चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं था। मैने अपनी इच्छा खेतड़ी विधानसभा क्षेत्र के गांव तातिजा में आयोजित एक कार्यक्रम में ग्रामीणों के समक्ष भी जता दी थी। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट से भी मैंने अपने मन की कह दी थी।
लेकिन मेरे पास पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का फोन आया कि पार्टी संकट में है और आपको झुंझुनू से लोकसभा चुनाव लड़ना है। लेकिन एक बार फिर मैंने चुनाव लड़ने के प्रति अनिच्छा जाहिर की। ओला ने कहा कि मैंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से कहा कि आप किसी को भी चुनाव लड़ा दो, मैं उसकी मदद करूंगा। लेकिन पार्टी नेताओं ने कहा कि इस संकट से आप ही उबार सकते हैं, ऐसे में आपको ही चुनाव लडऩा चाहिए। इस पर मैं चुनाव लडऩे को तैयार हो गया।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 31 मार्च । दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडिया ब्लॉक की लोकतंत्र बचाओ रैली पर बीजेपी ने हमला बोला और कहा कि विपक्ष पुराने गुनाहों को छिपाने के लिए रामलीला मैदान में एकत्र हो रहा है। बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने इसे परिवार बचाओ, भ्रष्टाचार छुपाओ रैली करार दिया है।
बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, "आज यह कहा जा सकता है कि ये सभी पार्टियां जो राम मंदिर के विरोधी थीं, जिन्होंने हिंदू धर्म के सामूहिक विनाश जैसे संकल्प लिए, अपने पुराने अपराधों को छुपाने के लिए एक साथ इकठ्ठा हो रहे हैं। इन्होने हिंदू धर्म के देवी-देवताओं पर कई आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं, अपने भ्रष्टाचार के पुराने अपराधों को छिपाने के लिए रामलीला मैदान का उपयोग कर रहे हैं। आज जब ये यहां एकत्र हो रहे हैं, तो मुझे लगता है कि अगर इसे एक शब्द में कहा जा सकता है, तो हिंदी में एक कहावत है, 'चोरी ऊपर से सीनाज़ोरी।"
त्रिवेदी ने कहा कि ये सभी हिन्दू विरोधी, सनातन विरोधी हैं।
उन्होंने कहा, कई साल पहले इसी रामलीला मैदान में इंडिया अगेंस्ट करप्शन रैली हुई थी, लेकिन आज करप्शन करने वाले सभी एक साथ खड़े हो रहे हैं।
बता दें कि दिल्ली में आज विपक्ष लोकतंत्र बचाओ रैली कर रहा है जिसमें विपक्ष के तमाम नेता शामिल हो रहे हैं।
(आईएएनएस)
कोलकाता, 11 फरवरी । तृणमूल कांग्रेस ने रविवार को आगामी राज्यसभा चुनाव के लिए चार उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की, जो जल्द ही खाली होने वाले हैं।
घोषित किए गए चार उम्मीदवार मोहम्मद नदीमुल हक, ममता बाला ठाकुर, सुष्मिता देव और सागरिका घोष हैं। हक दोबारा नामांकन पाने वाले पार्टी के एकमात्र मौजूदा राज्यसभा सदस्य हैं।
ठाकुर और देव दोनों पूर्व सांसद हैं, देव असम की पूर्व कांग्रेस नेता हैं और सागरिका घोष पेशे से पत्रकार हैं.
तृणमूल कांग्रेस के तीन मौजूदा राज्यसभा सदस्य, जिन्हें दोबारा नामांकन नहीं मिला, वे हैं डॉ शांतनु सेन, सुभाशीष चक्रवर्ती और अबीर रंजन विश्वास।
बंगाल की पांच सीटों के लिए चुनाव होंगे जो अप्रैल में खाली होने वाली हैं, साथ ही देश के बाकी हिस्सों की 51 अन्य सीटों के लिए भी चुनाव होंगे।
पश्चिम बंगाल विधानसभा में विधायकों के वर्तमान संख्यात्मक वितरण के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस के चार और भाजपा के एक उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित है।
भाजपा ने अभी खाली होने वाली पांचवीं सीट के लिए अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है। पता चला है कि भाजपा की राज्य इकाई ने पहले ही पार्टी आलाकमान को उम्मीदवारों की एक सूची भेज दी है और उम्मीद है कि आलाकमान जल्द ही सूची में से किसी एक को चुन लेगा।
(आईएएनएस)
बेंगलुरु, 11 फरवरी । कर्नाटक के सहकारिता मंत्री के.एन. राजन्ना ने रविवार को कहा कि वह कांग्रेस के वफादार हैं, पार्टी आलाकमान के गुलाम नहीं हैं।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के करीबी माने जाने वाले राजन्ना ने कहा, “मेरा आलाकमान मेरे लोग हैं। मैं कांग्रेस का वफादार हूं, लेकिन आलाकमान का गुलाम नहीं।''
उन्होंने कहा कि लोगों को उनके आचरण की सराहना करनी चाहिए।
राजन्ना ने कहा,“मैं आलाकमान से नहीं डरता। मैं खुद हाईकमान हूं। मेरे लिए कोई आलाकमान नहीं हैं।''
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के प्रदेश और राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और वह हमेशा उनके पद का सम्मान करेंगे। उन्होंने कहा, "मैं उनके फैसलों को कभी चुनौती नहीं दूंगा।"
राजन्ना ने पहले भी राज्य में उपमुख्यमंत्री के अधिक पदों के सृजन की वकालत की थी, जिसे प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार.ने नापसंद किया था।
(आईएएनएस)
लखनऊ, 11 फरवरी । कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के उत्तर प्रदेश चरण को यूपी बोर्ड परीक्षाओं के कारण पुनर्निर्धारित और छोटा कर दिया गया है।
यूपीसीसी प्रमुख अजय राय ने कहा कि यात्रा अब 14 फरवरी के बजाय 16 फरवरी को यूपी में प्रवेश करेगी और 27/28 फरवरी की पूर्व योजना के बजाय 22/23 फरवरी को समाप्त होगी।
यात्रा पश्चिमी उत्तर प्रदेश को छोड़ कर बुन्देलखंड की ओर जाएगी। एक संशोधित योजना शीघ्र ही जारी की जाएगी, यह चंदौली से लखनऊ तक अपने प्राथमिक यात्रा कार्यक्रम के साथ जारी रहेगी।
चंदौली में प्रवेश करने के बाद, यात्रा वाराणसी की ओर जाएगी और अमेठी में प्रवेश करने से पहले भदोही, प्रयागराज और प्रतापगढ़ से होकर गुजरेगी।
रायबरेली और लखनऊ अगला पड़ाव है।
योजना के अनुसार, यात्रा 19 फरवरी को अमेठी और रायबरेली को कवर करेगी। हालांकि, लखनऊ से सीतापुर जाने के बजाय, यह अब कानपुर और फिर झांसी तक जाएगी जहां से यह मध्य प्रदेश में प्रवेश करेगी।
राय ने कहा,“यह बदलाव लॉजिस्टिक मुद्दों के मद्देनजर किया गया है। जिन स्थानों पर कैडरों और आयोजकों को रहना था, वे आमतौर पर निजी स्कूल या कॉलेज हैं जो अब बोर्ड परीक्षाओं के लिए आरक्षित होंगे।”
एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ''हम यह संदेश नहीं देना चाहते कि किसी विशेष क्षेत्र में राहुल की मौजूदगी से हमें सीटें जीतने में मदद नहीं मिली।''
(आईएएनएस)
भोपाल, 27 दिसंबर । मध्य प्रदेश में मिली जीत के बाद भाजपा उत्साहित और पार्टी ने लोकसभा चुनाव की तैयारी तेज कर दी है। पार्टी ने राज्य की सभी 29 सीटों पर जीत का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए राष्ट्रीय नेताओं के दौरे का सिलसिला शुरू हो चुका है। इतना ही नहीं पार्टी ने राज्य सरकार के मंत्रियों को बड़ी जिम्मेदारी सौंपे जाने की तैयारी की है तो वहीं लोकसभा चुनाव में 60 फीसदी वोट हासिल करने का लक्ष्य तय किया गया है।
भाजपा ने विधानसभा चुनाव में जहां 230 सीटों में से 163 पर जीत दर्ज की, विधानसभा चुनाव में 48.62 प्रतिशत वोट हासिल किए। अब राज्य में सरकार बन चुकी है, मंत्रिमंडल का गठन हो चुका है। भाजपा ने अपनी कार्यशैली के मुताबिक लोकसभा चुनाव की तैयारी तेज कर दी है।
इसी को लेकर एक अहम बैठक हुई। जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, प्रदेश महामंत्री हितानंद और नमो ऐप के राष्ट्रीय संयोजक कुलजीत चहल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी और लोकप्रियता, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कुशल चुनाव रणनीति और राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की संगठन शक्ति के साथ कार्यकर्ताओं की मेहनत से मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने का दावा किया।
लघु कार्य समिति की बैठक को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल ने कहा कि पीएम विश्वकर्मा योजना में हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम एक हजार लोगों को लाभ दिलाएं। इस योजना में 18 वर्ग शामिल किए गए हैं। विधानसभा स्तर पर पार्टी की एक समिति बनाएं और वह समिति गांव-गांव जाकर इस योजना के पात्र व्यक्तियों से संपर्क कर पोर्टल पर उनका नामांकन कराएं।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव में जो संकल्प-पत्र जारी किया है, उसके हर वादे को पूरा किया जाएगा। पांच वर्ष के लिए सरकार बनी है, पांच वर्ष के अंदर सभी वादे पूरे कर लिए जाएंगे, यह बात भाजपा के कार्यकर्ता जनता के बीच जाकर बताएं।
प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और गृहमंत्री अमित शाह के कुशल रणनीति तथा संगठन की ताकत से विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल हुई है। लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीटों को भी जीतकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाएंगे, उनके हाथ मजबूत करेंगे।
नमो एप के राष्ट्रीय संयोजक कुलजीत चहल ने कहा कि बूथ स्तर से लेकर सभी विधायक और सांसद नमो ऐप पर अपनी प्रोफाइल अपडेट करें। जिन कार्यकर्ताओं ने अभी नमो ऐप डाउनलोड नहीं किया है, वे भी डाउनलोड करें। जिला अध्यक्ष और जिला प्रभारी इसकी चिंता करें और सभी कार्यकर्ताओं को जुड़ने के लिए प्रेरित करें। कार्यकर्ता नमो ऐप में विकसित भारत की संकल्पना को पूरा करने के लिए विकसित भारत एंबेसडर 100 डेज चैलेंज लें और पार्टी के बाहर के कम से कम 10 व्यक्तियों को जोड़ें। (आईएएनएस)
नागपुर, 20 दिसंबर । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि राज्य सरकार राज्य में जाति जनगणना कराने से पहले जनता से राय लेगी।
शिंदे ने रेशिमबाग स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मुख्यालय में मीडियाकर्मियों से कहा, ''महाराष्ट्र एक प्रगतिशील राज्य है। राज्य में सामाजिक एवं धार्मिक सद्भाव कायम है। हम यहां कानून एवं व्यवस्था की अच्छी स्थिति बनाए रखते हैं। हमारी सरकार जनता की सरकार है और हम इस मुद्दे पर लोगों से राय जरूर लेंगे।''
मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र की संस्कृति बिल्कुल अलग है और विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग शांति से रहते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा, “हमारी आम आदमी सरकार है, कोई भी मुझसे मिल सकता है। हम हिंदुत्व पर दृढ़ हैं और दिवंगत बालासाहेब ठाकरे की विरासत का पालन कर रहे हैं।''
दिलचस्प बात यह है कि आरएसएस देश में जातीय जनगणना का विरोध करता रहा है।
आरएसएस विदर्भ क्षेत्र के प्रमुख श्रीधर गाडगे ने कहा, “जाति जनगणना समाज में असमानता लाएगी। जाति जनगणना कराने से आम लोगों को कोई लाभ नहीं होगा। (आईएएनएस)
प्रयागराज, 15 दिसंबर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के संगम क्षेत्र में एक सूटकेस से एक महिला का शव बरामद किया है और उसके बेटे को हिरासत में लिया गया है। पुलिस ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
पुलिस उपायुक्त (नगर) दीपक भूकर ने बताया कि शुक्रवार सुबह जब दारागंज थाने की पुलिस संगम क्षेत्र में गश्त कर रही थी तो उन्हें सूटकेस लिये एक संदिग्ध व्यक्ति दिखा और पूछताछ में उसने अपना नाम हिमांशु बताया, जो बिहार के गोपालगंज का मूल निवासी है।
उन्होंने बताया कि सूटकेस की जांच करने पर एक महिला का शव मिला।
भूकर ने बताया कि इस बारे में सख्ती से पूछताछ करने पर हिमांशु ने बताया कि वह उसकी मां प्रतिमा देवी (42) का शव है।
पुलिस उपायुक्त ने बताया, ‘‘हिमांशु हरियाणा के हिसार जिले के आर्य नगर में अपनी मां के साथ रहता था और उसकी मां एक मिल में काम करती थी। उसने मां से पांच हजार रुपये मांगे थे, लेकिन पैसे नहीं देने पर उसने 13 दिसंबर को अपनी मां की गला दबाकर हत्या कर दी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हिमांशु उसी दिन शाम को शव को सूटकेस में भरकर ट्रेन से प्रयागराज आ गया और संगम क्षेत्र में शव को ठिकाने लगाने की फिराक में था।’’
मामले में भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है।
अधिकारी ने बताया कि पुलिस ने युवक को हिरासत में ले लिया है और उसे न्यायालय के समक्ष पेश किया जा रहा है।
भूकर ने बताया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है और हरियाणा पुलिस को घटना के बारे में सूचित कर दिया गया है। (भाषा)
अनिल दुबे
भोपाल, 4 दिसंबर (भाषा)। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में लाभ मिलने की कांग्रेस की उम्मीदें उस समय धराशायी हो गईं जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उन 21 सीटों में से 17 सीटें जीत लीं जहां से राहुल गांधी के नेतृत्व वाली यह यात्रा गुजरी थी।
भाजपा ने रविवार को मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से 163 सीटें जीतकर दो-तिहाई बहुमत हासिल कर लिया जबकि कांग्रेस 66 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही।
पिछले साल 23 नवंबर से चार दिसंबर के बीच ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने मप्र के मालवा-निमाड़ क्षेत्र के छह जिलों, बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, इंदौर, उज्जैन और आगर मालवा से होकर 380 किलोमीटर की दूरी तय की जिसमें कुल मिलाकर 21 सीटें हैं।
भाजपा ने 2018 में इनमें से 14 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस सात सीटों पर विजयी रही। इस बार 2023 के चुनावों में भाजपा ने अपनी सीटों की संख्या बढ़ाकर 17 कर ली और कांग्रेस चार सीटों पर सिमट गई।
भाजपा की अर्चना चिटनीस ने बुरहानपुर, मंजू दादू ने जिले की नेपानगर सीट से जीत हासिल की। बुरहानपुर सीट 2018 में निर्दलीय उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह शेरा ने जीती थी जो इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर असफल रहे।
कांग्रेस की सुमित्रा कास्डेकर ने 2018 में नेपानगर सीट जीती, लेकिन बाद में उन्होंने पाला बदल लिया और 2020 के उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनी गईं। भाजपा ने यह सीट बरकरार रखी है।
भाजपा के नारायण पटेल और छाया मोरे भी क्रमश: मांधाता और पंधाना से जीते।
पंधाना सीट पर 2018 में भाजपा के राम दांगोरे ने जीत हासिल की थी, जबकि मांधाता सीट पर कांग्रेस के नारायण पटेल जीते थे। पटेल बाद में भाजपा में चले गए और 2020 में उपचुनाव जीते। उन्हें सत्तारूढ़ पार्टी ने फिर से टिकट दिया।
खरगोन जिले में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ बड़वाह और भीकनगांव विधानसभा सीट से होकर गुजरी। बड़वाह से भाजपा के सचिन बिड़ला जीते तो भीकनगांव से कांग्रेस प्रत्याशी झूमा सोलंकी विजयी रहीं। 2018 में दोनों सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। बड़वाह विधायक सचिन बिड़ला बाद में भाजपा में शामिल हो गए।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ इंदौर जिले की सभी आठ सीटों पर पहुंची। यहां सभी आठ सीटों पर भाजपा विजयी रही।
भाजपा की उषा ठाकुर और मधु वर्मा क्रमश: महू और राऊ से जीतीं।
इंदौर-1 सीट पर भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने मौजूदा विधायक संजय शुक्ला को हराकर जीत हासिल की।
भाजपा के रमेश मेंदोला (इंदौर-2), गोलू शुक्ला (इंदौर-3), मालिनी गौड़ (इंदौर-4) और महेंद्र हार्डिया (इंदौर-5) भी जीते हैं।
इसके अलावा, 2020 में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए तुलसी सिलावट ने सांवेर सीट से जीत हासिल की।
पिछले साल चार दिसंबर को राजस्थान में प्रवेश करने से पहले ‘भारत जोड़ो यात्रा’ आगर मालवा जिले की आगर मालवा और सुसनेर विधानसभा सीटों से गुजरी थी।
आगर मालवा सीट पर भाजपा के माधव सिंह ने जीत हासिल की जबकि सुसनेर सीट पर कांग्रेस के भैरो सिंह को जीत मिली।
भाजपा ने 2018 में आगर मालवा विधानसभा सीट जीती लेकिन 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस से हार गई, जहां मौजूदा विधायक मनोहर ऊंटवाल के निधन के कारण उपचुनाव जरूरी हो गया था। सुसनेर विधानसभा सीट 2018 में निर्दलीय उम्मीदवार विक्रम सिंह राणा ने जीती थी, जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए।
भाजपा के मोहन यादव और अनिल जैन ने क्रमश: उज्जैन दक्षिण और उज्जैन उत्तर सीट से जीत हासिल की।
घट्टिया से भाजपा के सतीश मालवीय और तराना सीट से कांग्रेस के महेश परमार विजयी हुए। महिदपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के दिनेश जैन जीते।
भाजपा ने 2018 में उज्जैन जिलों की पांच में से चार सीटें जीतीं, कांग्रेस को केवल एक सीट पर जीत मिली।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ के मध्य प्रदेश के यात्रा मार्ग पर कांग्रेस ने जो चार सीटें जीतीं, वे हैं भीकनगांव, तराना, महिदपुर और सुसनेर।
कांग्रेस नेताओं ने दावा किया था कि इस साल मई में कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का कारण ‘भारत जोड़ो यात्रा’ थी।
दक्षिणी राज्य में पार्टी ने उन 20 विधानसभा सीटों में से 15 पर जीत हासिल की जहां से राहुल गांधी के नेतृत्व वाली यात्रा गुजरी।
बाद में इस साल अक्टूबर में कांग्रेस ने लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद करगिल के चुनावों में अपनी जीत का श्रेय यात्रा को दिया।
सलमान रावी
इस साल के अंत तक मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना और मिज़ोरम में विधानसभा के चुनाव होंगे. इन चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने दो राज्यों में अपने उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी कर दी है, जिससे हलचल काफ़ी बढ़ गई है.
हालांकि अभी कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है, लेकिन चुनाव की तारीख़ की घोषणा होने के काफ़ी पहले भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में 39 और छत्तीसगढ़ में 21 उमीदवारों की लिस्ट जारी कर अटकलों के बाज़ार को और भी ज़्यादा गर्म कर दिया है.
मध्य प्रदेश में विधानसभा की 230 सीटें हैं जबकि छत्तीसगढ़ में 90. राजस्थान की विधानसभा की 200 सीटें हैं.
कुछ विश्लेषक इसे भारतीय जनता पार्टी की ‘रणनीति’ मान रहे हैं तो कुछ इस क़दम की अपनी तरह से व्याख्या भी कर रहे है. कुछ इसे ‘जल्दबाज़ी में उठाया गया क़दम’ भी कह रहे हैं.
हिमाचल और कर्नाटक में हुए विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत को भी कुछ विश्लेषक इस जल्दबाज़ी का कारण मान रहे हैं.
ये चुनाव, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, दोनों के लिए बहुत मायने रखते हैं क्योंकि पिछले विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल हुई थी.
इन राज्यों में किसी तीसरी राजनीतिक शक्ति की ग़ैर-मौजूदगी में मुक़ाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच आमने-सामने का है.
जहाँ छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें पाँच सालों तक चलीं, वहीं मध्य प्रदेश में उनकी सरकार तब गिर गई जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संगठन से बग़ावत करके अपने समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया.
कांग्रेस के 22 विधायक उनके साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे, सरकार गिर गई जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी फिर से मध्य प्रदेश की सत्ता में लौट आई.
आम चुनाव पर कितना असर?
हिंदी पट्टी के विधानसभा के चुनावों के नतीजों पर पूरे देश की नज़र रहेगी क्योंकि इनके परिणाम आते ही आने वाले लोकसभा के चुनावों में क्या कुछ होगा इसके कुछ तो संकेत मिलने लगेंगे.
तो क्या ये मान लिया जाए कि इन राज्यों के परिणामों से समझा जा सकेगा कि आम चुनावों में ऊँट किस करवट बैठ सकता है?
कांग्रेस पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ऐसा नहीं मानते.
वो कहते हैं कि विधानसभा के चुनावों का ‘वोटिंग पैटर्न’ आम चुनावों से बिलकुल अलग होता है और ज़रूरी नहीं है कि राज्यों के चुनावों के नतीजों से इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सके कि कुछ ही महीनों के बाद होने वाले आम चुनावों पर इनका कितना असर पड़ेगा.
किदवई ने वर्ष 2014 के आम चुनावों का उदाहरण दिया और कहा, “उस समय नरेंद्र मोदी की लहर पर सवार भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनावों में एक तरह से ‘स्वीप’ कर दिया था. भारी बहुमत के साथ केंद्र में उसकी सरकार बनी लेकिन उसके तुरंत बाद दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत मिला था. तो ये कहना मुश्किल है कि पांच राज्यों और ख़ास तौर पर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा के चुनावों के परिणामों का असर आम चुनावों पर पड़ेगा.”
उन्होंने ओडिशा की भी मिसाल दी जहाँ विधानसभा में तो बीजू जनता दल यानी बीजेडी जीतती है जबकि लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को अच्छी-ख़ासी सीटें मिल जाती हैं.
राजनीतिक टिप्पणीकार विद्याभूषण रावत अलग राय रखते हैं. वो कहते हैं कि 2018 कई राज्यों के विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी लेकिन वर्ष 2019 में हुए आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को भारी सीटें इसलिए मिलीं थीं कि कांग्रेस में अंदरूनी कलह चल रही थी. मगर वो कहते हैं, इस बार के विधानसभा के चुनाव बहुत मायने रखेंगे और उसके नतीजे भी आम चुनावों को प्रभावित करेंगे.
कैसे? ये पूछे जाने पर वो कहते हैं, “पिछले आम चुनावों में कांग्रेस कमज़ोर थी. राहुल गाँधी के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे थे, मगर इन कुछ एक सालों में राहुल में राजनीतिक परिपक्वता देखने को मिली. अगर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन रहता है या वो जीत हासिल करती है तो जो विभिन्न विपक्षी दलों का नया गठबंधन, जो राष्ट्रीय स्तर पर बना है, उसमें कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी और इससे भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. लेकिन अगर कांग्रेस इन तीन राज्यों में कामयाब नहीं होती है तो आम चुनावों में भाजपा को एक तरह से ‘वाक ओवर’ मिल जाएगा यानी दिल्ली की सत्ता में फिर वापसी का उनका रास्ता आसान हो जाएगा.”
राजनीतिक विश्लेषक और उज्जैन स्थित ‘मध्य प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेस एंड रिसर्च’ के निदेशक यतिंदर सिंह सिसोदिया कहते हैं कि इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि गुजरात और उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा में अगर भाजपा को सबसे ज़्यादा सीटें मिलीं थीं तो वो इसी इलाके से मिलीं थीं.
बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, “अगर तीन राज्यों में भाजपा का ख़राब प्रदर्शन होता है तो फिर उसके पास सिर्फ़ उत्तर प्रदेश, असम, गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्य ही रह जायेंगे. इन तीन राज्यों में सिर्फ़ दो ही राजनीतिक दलों का दबदबा रहा है इसलिए लोकसभा चुनावों में विपक्ष की एकता पर यहाँ के नतीजों का असर ज़रूर पड़ेगा.”
सिसोदिया के अनुसार लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के दो कार्यकाल उसके इतिहास के सबसे स्वर्णिम कार्यकाल हैं जब पूर्ण बहुमत के साथ वो सत्ता में बनी रही. वहीं कांग्रेस के लिए आज़ादी के बाद ये राजनीतिक दौर सबसे निचले पायदान पर है इसलिए वो कहते हैं कि कांग्रेस और भाजपा, दोनों के लिए इन विधानसभा के चुनावों के नतीजे बहुत मायने रखेंगे.
राजस्थान
राजस्थान की राजनीति बड़े दिलचस्प मोड़ पर आकर खड़ी हुई है जहाँ कांग्रेस के नेता सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच रस्साकशी चलती ही आ रही है. वहीं भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को पार्टी ने चुनाव की किसी भी समिति से दूर ही रखा है. दोनों प्रमुख संगठनों की अंदरूनी कलह अब जनता के सामने है.
वैसे जानकार कहते हैं कि राजस्थान में दोनों ही दलों का पलड़ा ऊपर-नीचे होता रहता है, राजस्थान की जनता ने ऐतिहासिक तौर पर लंबे समय से किसी पार्टी को दूसरा मौक़ा नहीं दिया है.
मसलन, वर्ष 2008 और 2018 के आम चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी लेकिन 200 सीटों वाली विधानसभा में उसे बहुमत के लिए ज़रूरी 101 सीटें नहीं मिल पाई थीं. निर्दलीय और दूसरे छोटे दल के विधायकों के समर्थन से कांग्रेस ने सरकार चलाई.
चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि जहाँ वर्ष 2008 में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच वोटों का अंतर सिर्फ़ 3 प्रतिशत था, ये अंतर वर्ष 2018 में सिर्फ़ एक प्रतिशत पर आ गया था, यानी कांटे की टक्कर.
लेकिन जब वर्ष 2013 में भारतीय जनता पार्टी को जीत हासिल हुई थी तो उस समय दोनों दलों के बीच वोटों का अंतर 10 प्रतिशत का था, तब कांग्रेस को सिर्फ़ 21 सीटें मिलीं थीं जबकि भारतीय जनता पार्टी की झोली में 163 सीटें आयीं थी. ये प्रचंड बहुमत था.
राजस्थान में फिलहाल दोनों ही दल अपने पत्ते खोलने में कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखा रहे हैं और एक एक क़दम बहुत नाप-तौलकर रख रहे हैं. वैसे भी राजस्थान में हर पांच सालों के बाद सत्ता परिवर्तन का एक रिवाज चला आ रहा है और विश्लेषक कहते हैं कि इसलिए कांग्रेस के सामने इस बार के चुनावों में काफ़ी चुनौतियां हैं, पार्टी की अंदरूनी कलह जो सार्वजनिक है और सत्ता विरोधी भावना भी है.
मध्य प्रदेश
भारतीय जनता पार्टी ने जिन 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है इनमें अधिकतर वो सीटें हैं जिन पर क्षेत्र के दिग्गजों ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की है. इनमें 38 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं जबकि एक सीट बहुजन समाज पार्टी के पाले में है. ये इलाके मूलतः आदिवासी बहुल या अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्ग की ज़्यादा आबादी वाले हैं.
प्रदेश कांग्रेस कमिटी के मीडिया प्रकोष्ठ के अध्यक्ष केके मिश्रा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि जिन सीटों पर उम्मीदवारों की सूची भाजपा ने जारी की है ये वो सीटें हैं जिन पर कांग्रेस के मौजूदा विधायक हैं. और सभी अपने-अपने क्षेत्र में बड़ा प्रभाव रखते हैं जैसे राऊ की सीट से जीतू पटवारी जो राहुल गाँधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' में उनके साथ आगे-आगे नज़र आए.
इसी तरह कसरावद से पूर्व मंत्री सचिन यादव, सोनकच्छ से सज्जन सिंह वर्मा और झाबुआ से मध्य प्रदेश में कद्दावर आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया जैसे विधायक हैं जिन्हें हरा पाना मुश्किल है.
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता हितेश वाजपेयी पार्टी के इस क़दम को ‘चुनावी रणनीति’ की संज्ञा देते हुए स्वीकार करते हैं कि ये वो सीटें हैं जहां उनके उम्मीदवारों का अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा है.
वो कहते हैं, “इन सीटों पर कांग्रेस के जीते हुए विधायकों को चुनाव की तैयारी करने का पर्याप्त समय मिला इसलिए हमने भी इन सीटों पर उम्मीदवारों की सूची इसलिए जारी कर दी ताकि वो कांग्रेस से लोहा लेने के लिए ज़मीनी स्तर पर काम करना शुरू कर दें. हर चुनाव की अपनी अलग तासीर होती है. उसी के हिसाब से चुनाव लड़ने की रणनीति भी बनाई जाती है. हम भी ऐसा ही कर रहे हैं.”
वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार से सबक़ लेते हुए भाजपा हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों में ‘किसी तरह का जोखिम’ नहीं उठाना चाहती है.
बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, “संभवत: इसीलिए चुनाव आयोग ने मतदान की तारीक़ों की बेशक घोषणा नहीं की हो, दो राज्यों में प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करके भाजपा यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह चुनाव की तैयारियों में कांग्रेस से बहुत आगे है.”
भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में पिछले विधानसभा चुनावों में यानी 2018 में कांटे की टक्कर थी. वो बात और है कि कांग्रेस की झोली में 114 सीटें आयीं थीं जबकि भाजपा को 109 सीटें मिलीं थीं लेकिन दोनों ही दलों का ‘वोट शेयर’ लगभग बराबर का ही था, भाजपा का वोट शेयर 41.02 प्रतिशत था, वहीं कांग्रेस का 40.89 प्रतिशत था.
लेकिन पूर्ववर्ती चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर का भारी अंतर रहा है. यतिंदर सिंह सिसोदिया कहते हैं कि वोट शेयर में सिर्फ़ एक प्रतिशत अंतर ही कई सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकता है इसलिए दोनों ही दल पूरी ज़ोर आज़माइश कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़
पिछले विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार इतनी करारी थी कि वो 90 में से 15 सीटों पर सिमट गई थी. वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आए इस प्रदेश में भाजपा की इतनी करारी हार पहले कभी नहीं हुई थी.
छत्तीसगढ़ में पिछले विधान सभा के चुनावों में भाजपा का वोट शेयर भी बहुत ज़्यादा नीचे गिरा. 2018 के विधानसभा के चुनावों में भाजपा का वोट शेयर घटकर 32.29 पर आ गया था जबकि कांग्रेस ने 68 सीटें जीतीं थीं और उसका वोट शेयर 43.04 था.
इससे पहले 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत हुई थी मगर कांग्रेस के साथ उसकी कांटे की टक्कर रही.
चुनावों की घोषणा से पहले ही भाजपा ने 21 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है जिसमे सबसे महत्वपूर्ण नाम है सांसद विजय बघेल का जिनको पाटन विधानसभा सीट से टिकट दिया गया है. ये सीट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले विधानसभा चुनाव में जीती थी. विजय बघेल दुर्ग से भाजपा के सांसद हैं और वो कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के रिश्तेदार भी हैं.
दूसरी सीट है रामानुजगंज की जहां राज्यसभा के सांसद रहे चुके रामविचार नेताम को पार्टी ने उम्मीदवार घोषित किया है. नेताम क़द्दावर आदिवासी नेता हैं और वो भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमिटी के प्रवक्ता आरपी सिंह कहते हैं कि मध्य प्रदेश की तरह ही भाजपा ने उन सीटों के उम्मीदवारों की घोषणा की है जहाँ वे हार गए थे.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने इन उम्मीदवारों को ‘बलि के बकरे’ की संज्ञा दी और दावा किया कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस ‘सबसे ज़्यादा मज़बूत’ स्थिति में है.
इस पर छत्तीसगढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता अजय चंद्राकर का कहना था कि संगठन ने इन सीटों पर पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा की है ताकि उन्हें तैयारी करने का पूरा मौक़ा मिले. वो कहते हैं कि विजय बघेल को उम्मेदवार बनाए जाने के बाद अब देखना ये होगा कि मुख्यमंत्री उसी सीट से लड़ते हैं या वो अपने लिए कोई दूसरी सीट ढूंढेंगे.
हालांकि पहली सूची के बाद छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश दोनों जगह भाजपा के अंदर से विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं. मध्य प्रदेश में तो पार्टी के नेताओं ने सड़क पर उतारकर विरोध प्रदर्शन भी किया है.
वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना कहते हैं कि इसीलिए भाजपा ने इतने पहले सूची जारी की है ताकि विरोध से समय रहते निपटा जा सके. उनका कहना है कि अगर आखिरी क्षणों में सूची जारी होती तो विद्रोह और विरोध से संगठन को निपटना मुश्किल हो जाता. (bbc.com)
संतोष कुमार पाठक
नई दिल्ली, 20 अगस्त । अगले साल होने वाले लोक सभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने अपनी तैयारी तेज कर दी है। विपक्षी एकता और एकजुटता की संभावनाओं के बीच भाजपा देशभर में अपने वर्तमान सांसदों का रिपोर्ट कार्ड तैयार कर फिर से चुनाव जीत सकने वाले सांसदों की लिस्ट को अंतिम रूप देने में जुटी है।
दरअसल, 2019 के पिछले लोक सभा चुनाव में भाजपा को 303 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वर्तमान में लोक सभा में भाजपा के पास 301 सांसद हैं लेकिन सूत्रों की मानें तो इनमें से 65 से ज्यादा सांसदों की रिपोर्ट कार्ड बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे में एंटी-इनकंबेंसी से बचने के लिए भाजपा इन सीटों पर अपने उम्मीदवार बदलने यानी वर्तमान सांसदों का टिकट काटने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इनमें से कुछ सांसदों का संसदीय क्षेत्र भी बदला जा सकता है।
आपको याद दिला दें कि मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने पर भाजपा ने इसी वर्ष 30 मई से 30 जून तक देशभर में एक विशेष जनसंपर्क अभियान चलाया था, जिसमें पार्टी के सभी सांसदों को जुट जाने को कहा गया था। पार्टी के कई सांसदों ने इस कार्यक्रम में पूरे मन से भाग नहीं लिया, जिसकी वजह से भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को वर्चुअली बैठक कर उन सांसदों को फटकार भी लगानी पड़ी थी। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाजपा संसदीय दल की बैठक में कई बार सांसदों को फटकार लगाते हुए यह कह चुके हैं कि या तो वो अपना रवैया बदलें या फिर बदले जाने के लिए तैयार रहें।
पिछले कुछ महीनों के दौरान देश भर में पार्टी संगठन द्वारा टिफिन बैठक सहित, कई अन्य महत्वपूर्ण अभियान चलाए गए, उसमें भी कई सांसद पार्टी की उम्मीद के मुताबिक भीड़ नहीं जुटा पाए थे।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो, संघ नेताओं से बहुत करीबी रिश्ते रखने वाले पार्टी के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री अगर अपना प्रदर्शन नहीं सुधार पाते हैं तो इस बार पार्टी उनका टिकट भी काट सकती है। एक जमाने में काफी चर्चित रह चुके और वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री एक हाई प्रोफाइल सांसद से उनके संसदीय क्षेत्र के तमाम विधायक, मेयर और संगठन के बड़े नेता नाराज चल रहे हैं। देश के हाई प्रोफाइल परिवार से जुड़े एक भाजपा सांसद को यह फीडबैक दे दिया गया है कि इस बार उन्हें टिकट तभी दिया जाएगा जब वह पार्टी के प्रति अपना रवैया बदलते हुए स्वयं टिकट मांगें।
2019 के लोक सभा चुनाव में विपक्ष के हाई प्रोफाइल नेताओं को हराने वाले कई सांसदों को भी इस बार अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में जाकर लोगों से संपर्क करने और स्थानीय संगठन के नेताओं से बेहतर समन्वय स्थापित करने को कहा गया है। संदेश बिल्कुल साफ है कि अगर उनकी रिपोर्ट कार्ड में सुधार नहीं हुआ तो पार्टी उनका टिकट काटने में भी संकोच नहीं करेगी।
उत्तर प्रदेश से जिन सांसदों पर टिकट कटने की तलवार लटक रही है, उसमें कई ऐसे सांसद भी हैं जो वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा ने चुनाव जीत सकने वाले कई ऐसे नेताओं की भी अलग से एक लिस्ट बनाई है जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश में विधायक हैं और उनमें से कई योगी सरकार में मंत्री हैं या योगी सरकार में पहले मंत्री रह चुके हैं। यूपी की कई सीटों पर पार्टी अपने वर्तमान सांसदों का टिकट काटकर इन्हें चुनावी मैदान में उतार सकती है।
बिहार की बात करें तो पार्टी अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले एक वर्तमान केंद्रीय मंत्री का टिकट भी 2024 के लोक सभा चुनाव में काट सकती है। हालांकि वह अपना संसदीय क्षेत्र बदलने की गुहार आलाकमान से लगा रहे हैं। बिहार से टिकट कटने वाले सांसदों की लिस्ट में तीन पूर्व केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं। बिहार में लोक सभा की 40 में से सभी 40 सीट जीतने के मिशन में जुटी भाजपा इस बार एक दूसरे प्रदेश से वर्तमान में सांसद और पार्टी के चर्चित चेहरे को बिहार से लोक सभा चुनाव लड़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
दिल्ली में पार्टी अपने एक पूर्व दिवंगत केंद्रीय मंत्री के परिवार के सदस्य को लोक सभा चुनाव में उतार सकती है। दिल्ली के एक लोक सभा सांसद को पार्टी दूसरे राज्य से चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है तो वहीं दो अन्य सांसदों के टिकट काटने की भी तैयारी चल रही है। हरियाणा में पार्टी इस बार 5 सीटों पर उम्मीदवार बदलने की तैयारी कर रही है। तो वहीं इसके साथ ही भाजपा मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल और यहां तक कि अपने सबसे मजबूत गढ़ गुजरात में भी कई वर्तमान सांसदों का टिकट काटने जा रही है। गुजरात में पार्टी के कई दिग्गज राज्य सभा सांसद इस बार लोक सभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं और उन्हें वर्तमान सांसदों का टिकट काट कर ही टिकट दिया जाएगा।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, इनमें से कुछ सांसदों का टिकट उम्र के फैक्टर की वजह से काटा जा रहा है लेकिन ज्यादातर सांसद ऐसे हैं जो अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहे हैं। पार्टी की नजर ऐसे सांसदों पर भी बनी हुई है जो 2014 और 2019 में एक ही सीट से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं।
हालांकि इनमें से कई सांसदों ने पार्टी आलाकमान का रुख भांपकर आला नेताओं तक दौड़ लगाना शुरू कर दिया है तो वहीं कई सांसद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर टिकट बचाने की कोशिश में लग गए हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 15 जुलाई । पश्चिम बंगाल में हालिया संपन्न पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने प्रचंड जीत हासिल की और भाजपा दूसरे स्थान पर रही। इसके बावजूद कांग्रेसी खेमा उत्साहित है। कांग्रेस के वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हुई है और अगर अभी लोक सभा चुनाव हुए तो पार्टी चार से पांच सीट जीतने में सफल होगी।
पंचायत चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को करीब 51.14 फीसदी वोट मिले, उसके बाद भाजपा को 22.88 प्रतिशत और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को 12.56 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस को करीब 6.42 फीसदी और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) को करीब 2 फीसदी वोट मिले हैं।
पार्टी के एक सूत्र ने कहा कि पिछले चुनाव की तुलना में राज्य में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने दो फीसदी वोट हासिल किए और इस बार के पंचायत चुनाव में पार्टी के मत प्रतिशत में चार फीसदी से अधिक वृद्धि दर्ज की गई है। यह कांग्रेस के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
सूत्र ने माना कि 2021 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सबसे खराब नतीजों में से एक मिला था। विधानसभा चुनावों में पार्टी एक सीट भी नहीं जीत सकी थी। लेकिन, पंचायत चुनावों के नतीजों में पार्टी का वोट शेयर बढ़ा है।
सूत्र ने यह भी स्वीकार किया कि 42 वर्षों से अधिक समय तक राज्य में नहीं रहने के बावजूद कांग्रेस अपने प्रदर्शन में सुधार कर रही है। वहीं, केंद्रीय नेतृत्व और राज्य स्तर के नेताओं के बीच कोई मतभेद नहीं है। पंचायत चुनावों में पार्टी ने 63,229 सीटों में से 3,000 से अधिक सीटें जीतीं।
राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने का कारण बताते हुए सूत्र ने कहा कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव दो ध्रुवों के बीच थे। जिससे भाजपा को दूसरी सबसे बड़ी पार्टी का स्थान हासिल करने में मदद मिली। भाजपा कुल 294 सीटों में से 77 सीटें जीतने में सफल रही। जबकि, विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 213 सीटें जीती थीं।
2016 के विधानसभा चुनाव में 44 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2021 में वाम दलों के साथ अपना खाता भी नहीं खोल सकी। राज्य में 2021 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 2.94 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रही। वाम दलों को 4.72 प्रतिशत वोट शेयर मिले।
सूत्र ने कहा कि पार्टी को उम्मीद है कि वह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में राज्य में मजबूत वापसी करेगी, भले ही उसका किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन न हो।
सूत्र ने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कारण तृणमूल कांग्रेस को 6 सीटों का नुकसान हुआ, जिसमें मालदा उत्तर और जादवपुर की सीटें भी शामिल थीं।
सूत्र ने कहा कि 2021 के विधानसभा चुनावों में खराब नतीजों ने कांग्रेस को बैकफुट पर नहीं धकेला है और वह 2024 के लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उत्सुक है। उन्होंने बताया कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के ध्रुवीकरण की राजनीति के चलते 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दो सीटों पर सिमट गई, जहां पार्टी नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी भी हार गए।
उन्होंने कहा कि बीजेपी ने प्रणब मुखर्जी के नागपुर में आरएसएस मुख्यालय जाने के मुद्दे का ध्रुवीकरण किया, जो 2019 के लोकसभा चुनाव में अभिजीत मुखर्जी के खिलाफ गया। लेकिन, लोग अब ध्रुवीकरण की राजनीति और धार्मिक आधार पर मतदान से निराश हो रहे हैं। यही कारण है कि पार्टी को अगले साल राज्य में लोकसभा चुनाव में चार से पांच सीटें जीतने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि अगर अभी आम चुनाव होते हैं तो भी पार्टी आसानी से चार से पांच सीटें जीतने में सफल रहेगी, क्योंकि उसके कैडर और नेता जमीनी स्थिति से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। कांग्रेस वरिष्ठ नेता दीपा दासमुंशी, सांसद अधीर रंजन चौधरी, एएच खान चौधरी, शंकर मालाकार, प्रदीप भट्टाचार्य, नेपाल महतो और अब्दुल मन्नान के साथ एकजुट होकर लड़ने को तैयार है। अभी भी दासमुंशी और चौधरी का रायगंज और मालदा दक्षिण संसदीय क्षेत्रों में दबदबा है। इन नेताओं के जरिए सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को टक्कर देना मुश्किल नहीं है।
उन्होंने कहा कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस आक्रामक चुनाव अभियान चलाते हैं, जिससे तनाव उत्पन्न होता है और लोग इससे ऊब गए हैं। इसके अलावा लोग तृणमूल कांग्रेस सरकार में कथित भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं। मंत्रियों सहित टीएमसी के कई नेताओं को केंद्रीय जांच एजेंसियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे तृणमूल कांग्रेस की जनता में छवि खराब हुई है। जबकि, बंगाली हिंदू समाज के एक वर्ग की नाराजगी से भाजपा को नुकसान तय है।
सबसे खास बात है कि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू करते हुए समान विचारधारा वाले दलों को साथ लाने के लिए बातचीत कर रही है। सूत्र की मानें तो भले ही तृणमूल कांग्रेस के साथ भाजपा का गठबंधन हो जाए, 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतने वाली भाजपा राज्य में 10 सीटों से नीचे चली जाएगी।
ध्यान देने वाली बात है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में 34 सीटें जीतने वाली तृणमूल कांग्रेस 2019 के चुनावों में 22 सीटों पर सिमट गई। जबकि, भाजपा ने 2014 में दो सीटों से 2019 में 18 सीटों पर जीत का सफर पूरा किया। आपको बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में सात सीटें जीती थी। इसके बाद पार्टी 2014 में चार और 2019 के लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर सिमट गई। (आईएएनएस)
पटना 9 जुलाई। बिहार भाजपा के पूर्व अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दावा किया कि ललन सिंह के नेतृत्व में जदयू के 40 फीसदी विधायक राजद में शामिल हो सकते हैं और तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बना सकते हैं।
ललन सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। भाजपा नेता संजय जयसवाल का बयान महागठबंधन के नेताओं के बीच भ्रम पैदा कर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार को अस्थिर करने का प्रयास हो सकता है।
जायसवाल ने कहा, आजकल बिहार में जदयू का अस्तित्व नहीं है। ललन सिंह के नेतृत्व में पार्टी के 40 फीसदी नेता राजद में शामिल होकर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बना सकते हैं और ललन सिंह उपमुख्यमंत्री बनेंगे।
जयसवाल ने कहा, जदयू के लगभग 60 प्रतिशत नेता भाजपा के संपर्क में हैं। वे नीतीश कुमार के महागठबंधन में शामिल होने के फैसले से खुश नहीं थे। उन्होंने राजद के खिलाफ चुनाव लड़े और अब सरकार में हिस्सेदारी कर रहे हैं। चुनाव के दौरान उन्हें जनता के सामने जाना होगा। इसलिए, वे भाजपा में शामिल होना चाहते हैं। (आईएएनएस)
पटना, 8 जुलाई । बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही देश के स्तर पर विपक्षी दलों को एकजुट करने के प्रयास में जुटे हों, लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और विभाग के आईएएस अधिकारी केके पाठक का विवाद पार्टी स्तर तक पहुंचा, उससे लग रहा है कि महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
जिस तरह बिहार के मंत्री और जदयू के नेता अशोक चौधरी और राजद नेता और एमएलसी सुनील कुमार सिंह बयान दे रहे हैं, उससे साफ है कि राजद और जदयू के बीच खींची लकीर अब मोटी होती जा रही है।
एमएलसी सुनील कुमार सिंह ने मंत्री अशोक चौधरी पर सीधा सियासी हमला बोलते हुए कहा कि वह हर रोज पार्टी बदलते हैं। सुनील कुमार सिंह ने उन पर व्यक्तिगत निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें जंगलराज याद आ रहा है, लेकिन उन्हें यह भी याद होना चाहिए कि अगर लालू प्रसाद नहीं होते तो वे जेल में होते।
उन्होंने यहां तक कहा कि उनका नाम एक नेता की हत्या में आया था। सिंह ने चौधरी पर बराबर दल बदलने का आरोप लगाते हुए कहा कि वे कई घाट का पानी पी चुके हैं।
इससे पहले मंत्री चौधरी ने बिहार में जंगलराज की याद दिलाते हुए सिंह पर भाजपा की भाषा बोलने का आरोप लगाया था। सिंह यहीं नहीं रुके। सिंह ने सोशल मीडिया के जरिए भी अधिकारियों को 'अंगुलिमाल' तक कह दिया। ऐसी स्थिति में तय है कि अभी राजद और जदयू की तनातनी समाप्त नहीं होने वाली है। (आईएएनएस)
भोपाल, 18 जून| देश की राजनीति में इस साल के अंत में होने वाला मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव भूचाल लाने वाला है। हमेशा की तरह इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा। लेकिन एक मजबूत क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन के अभाव में कुछ अन्य दल अपने क्षेत्रों का विस्तार करने का प्रयास करेंगे। पिछले साल 'कोयला नगरी' सिंगरौली में मेयर पद जीतकर शानदार एंट्री करने वाली दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) इस साल पहली बार मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
जनवरी में 'आप' ने राज्य की कार्यकारिणी को भंग कर दिया और दो महीने बाद सिंगरौली मेयर का चुनाव रानी अग्रवाल ने जीत लिया। पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भी पदोन्नत किया।
मार्च में राज्य का दौरा करने के दौरान केजरीवाल ने सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के फैसले की घोषणा की थी। अपनी घोषणा में, उन्होंने मध्य प्रदेश में सत्ता में आने पर मुफ्त बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के लिए 'दिल्ली मॉडल' की अवधारणा का हवाला दिया।
'आप' ने अभी तक मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे की घोषणा नहीं की है, लेकिन सूत्रों ने दावा किया है कि वह भाजपा और कांग्रेस दोनों के कुछ बड़े नेताओं के साथ बातचीत कर रही है।
यह भी खबर सामने आ रही है कि कई नेता भाजपा और कांग्रेस से दूर हो गए हैं और राजनीति में आगे बढ़ने के लिए 'आप' में जगह पाने की जुगत में हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कई कारणों से 'आप' का मध्य प्रदेश में ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन यह भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए खेल बिगाड़ सकती है।
राज्य-आधारित एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, मध्य प्रदेश में 'आप' क्यों सफल नहीं होगी? पहला, इसलिए कि उसके कार्यकर्ता जनता के मुद्दों पर लड़ने के लिए सड़कों पर नहीं थे। दूसरा, क्योंकि मुफ्त उपहारों की इसकी अवधारणा पहले से ही कांग्रेस और भाजपा द्वारा अपनाई जा रही है। तीसरा कारण यह है कि दिल्ली में अपने मंत्रियों के खिलाफ हुए भ्रष्टाचार ने आप को झटका दिया है। अगर इसका थोड़ा सा भी असर हुआ तो यह केवल उम्मीदवारों के कारण होगा, जिन्होंने अपनी खास सीटों पर अपना आधार बनाया है, या तो उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण या भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच की आंतरिक लड़ाई के कारण होगा।
इस बीच, उत्तर प्रदेश स्थित बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) काफी जनाधार गंवाने के बावजूद भी चुनाव लड़ेंगी।
जहां सपा के एकमात्र मौजूदा विधायक राजेश शुक्ला (बिजावर) पिछले साल जनवरी में राष्ट्रपति चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे, वहीं बसपा के मौजूदा विधायक संजीव कुशवाहा भी भगवा पार्टी में शामिल हो गए हैं।
हाल ही में रीवा की मनगवां सीट से बसपा की पूर्व विधायक शीला त्यागी कांग्रेस में शामिल हो गईं।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चरशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी मध्य प्रदेश में विस्तार करना शुरू कर दिया है और हाल ही में दो प्रमुख चेहरों बुद्धसेन पटेल और व्यापम के व्हिसलब्लोअर आनंद राय को पार्टी में शामिल किया है।
सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि बीआरएस जल्द ही महाराष्ट्र की तर्ज पर सभी छह जोन में अपना कार्यालय स्थापित करने की योजना बना रहा है। (आईएएनएस)
प्रवीण द्विवेदी
[Each of MP's six divisions sees its own interplay of castes and leaders.] भोपाल, 18 जून (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में महज पांच महीने शेष हैं, ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के बीच गलाकाट लड़ाई शुरू हो गई है। राज्य में सीधी टक्कर में दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच कर्नाटक की तरह हाई-वोल्टेज चुनाव प्रचार देखने की संभावना है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से विधानसभा चुनाव के नतीजे अहम होंगे
2019 में, सत्तारूढ़ भाजपा ने राज्य की 29 लोकसभा सीटों में से 28 पर जीत हासिल की थी।
छह डिवीजनों (क्षेत्र और भूगोल के अनुसार) में विभाजित राज्य में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, शिवराज सिंह चौहान, कांतिलाल भूरिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया, राजेंद्र शुक्ला, और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे राजनीतिक दिग्गजों का अपने-अपने क्षेत्रों व जातियों में मजबूत प्रभाव है।
कमोवेश इनमें से हर एक राजनेता का मध्य प्रदेश की राजनीति में मजबूत दबदबा है।
मसलन, 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विंध्य क्षेत्र की 30 में से 24 सीटों पर जीत हासिल की थी। दो बार के पूर्व मंत्री और रीवा के विधायक राजेंद्र शुक्ल की चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका थी, हालांकि, वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में अपने लिए जगह सुरक्षित नहीं कर सके। रीवा जिले की सभी आठ सीटों पर भगवा पार्टी ने जीत हासिल की थी।
हालांकि कांग्रेस को 2018 में विंध्य क्षेत्र में बड़ा झटका लगा था, लेकिन उसने क्षेत्र में मतदाताओं की भावनाओं का चालाकी से उपयोग किया और 30 साल बाद रीवा के मेयर पद पर जीत हासिल की।
सतना के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेंद्र सिंह ने दावा किया, विंध्य क्षेत्र में एक करीबी मुकाबला होगा, और कांग्रेस वर्तमान परिदृश्य के अनुसार 10-12 सीटें जीतेगी।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में, दो केंद्रीय मंत्रियों- ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के गढ़ में, कांग्रेस ने 2018 में 34 विधानसभा सीटों में से 27 पर जीत हासिल की थी। तब सिंधिया कांग्रेस के साथ थे। हालांकि, उन्होंने और उनके 22 वफादार विधायकों ने कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को छोड़कर हुए भाजपा का दामन थाम लिया।
हाल ही में मुरैना में जिला पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक की अध्यक्षता करते हुए नरेंद्र सिंह तोमर ने दावा किया कि वह और सिंधिया मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि इस साल ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा कम से कम 26 सीटें जीत सके। तोमर ने कहा, हम ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कम से कम 26 सीटें जीतेंगे और भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आएगी।
इसी तरह महाकौशल अंचल में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा। 2018 के विधानसभा चुनावों में ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने 38 सीटों में से 24 सीटें हासिल कीं। इस क्षेत्र में जबलपुर और छिंदवाड़ा शामिल हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का गढ़ है।
महाकौशल क्षेत्र में आठ जिलों में 15 अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीटें हैं। कांग्रेस ने उनमें से 13 पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने 2018 के चुनावों में शेष दो सीटें जीतीं। यही वजह है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने जबलपुर से पार्टी के चुनाव प्रचार की शुरुआत की, जबकि दो दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाडली बहना योजना की पहली किस्त वहीं से जारी की।
मालवा और निमाड़ क्षेत्र, जिसमें राज्य के दो बड़े शहर इंदौर और उज्जैन हैं, में 66 सीटें हैं। इनमें से 2018 में कांग्रेस को 35 सीटें मिलीं (उज्जैन संभाग की 29 में से 11 सीटें और इंदौर संभाग की 37 में से 24 सीटें)।
भोपाल संभाग, जिसमें मुख्यमंत्री चौहान के गृह जिले रायसेन, विदिशा और सीहोर शामिल हैं, में 25 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से 17 भाजपा के पास और आठ कांग्रेस के पास हैं, इनमें भोपाल जिले की तीन सीटें शामिल हैं। इसी तरह, होशंगाबाद, जिसका नाम पिछले साल नर्मदापुरम रखा गया था, में 11 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से सत्तारूढ़ भाजपा ने सात सीटें जीतीं और शेष चार कांग्रेस ने हासिल कीं।
मध्य प्रदेश विधानसभा में सदस्यों की संख्या 230 है। 2018 के पिछले चुनावों में कांग्रेस ने 114 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने 109 सीटों पर जीत हासिल की थी।