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कुवैत में महिलाएं सार्वजनिक रूप से क्या करेंगी और कैसे करेंगी, इसका फैसला पुरुष करते हैं. महिलाओं का आरोप है कि संसद उनकी बात सुनने के बजाए रुढ़िवादियों की चमचागिरी करती रहती है. योग शिविर इस विवाद की ताजा कड़ी है.
शुरुआत एक योग शिविर को लेकर हुई. योग प्रशिक्षक ने रेगिस्तान में वेलनेस योगा रिट्रीट का इश्तेहार दिया. फरवरी में आए इस इश्तेहार को रुढ़िवादियों ने इस्लाम पर हमला करार दिया. नेताओं और मौलवियों ने सार्वजनिक जगह पर पद्मसान और श्वानासन की योग मुद्रा को "खतरनाक" करार दिया. विवाद इतना बढ़ा कि योग शिविर पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
शेखों के वर्चस्व वाले कुवैत में अब योग महिला अधिकारों की लड़ाई एक और प्रतीक बन गया है. इस्लामिक रुढ़िवादियों और कबीलों वाले कुवैती समाज में महिलाओं के योग पर विभाजन साफ दिख रहा है. रुढ़िवादियों का कहना है कि महिलाओं की ऐसी कोशिशें कुवैत के पारंपरिक मूल्यों पर प्रहार कर रही हैं. वे सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वे इतने बड़े मुद्दों पर ठीक से काम नहीं कर रही है.
कुवैत में महिला अधिकारों को लेकर लड़ने वाली एक्टिविस्ट नजीबा हयात कहती हैं, "हमारा देश अभूतपूर्व रफ्तार से पीछे जा रहा है और अतीत में वापसी कर रहा है." नजीबा कई महिलाओं के साथ कुवैत की संसद के बाहर प्रदर्शन भी कर चुकी हैं. लेकिन जब वे सार्वजनिक जगह पर होती हैं तो उन्हें नियमित रूप से रोका और परेशान किया जाता है.
सऊदी अरब और इराक के कोने में स्थित कतर को कभी खाड़ी का सबसे ज्यादा प्रगतिशील देश माना जाता था. हाल के बरसों में जहां सऊदी अरब समेत खाड़ी के दूसरे देशों में महिलाओं को कई अधिकार दिए जा रहे हैं, वहीं 42.7 लाख की आबादी वाले कुवैत में मामला उल्टा दिख रहा है. कुवैत में योग पर हो रहे विवाद के बीच सऊदी अरब ने जनवरी 2022 में पहली बार ओपन एयर योग फेस्टिवल आयोजित कराया. कुवैत में सोशल मीडिया पर इसकी खूब चर्चा हुई.
अलानौद अलशारेख कुवैत में एबॉलिश 153 नाम के संगठन की संस्थापक हैं. अलानौद कहती हैं, "कुवैत में महिला विरोधी आंदोलन हमेशा बंदखाने के भीतर और अदृश्य रूप से चलता रहा, लेकिन अब ये सतह पर आ गया है."
कुवैत की विवादित धारा 153
कुवैती दंड संहिता की धारा 153 के तहत सम्मान की खातिर महिला की हत्या पर बहुत ही नर्म सजा का प्रावधान है. 2021 में फराह अकबर नाम की एक महिला की हत्या के बाद आर्टिकल 153 को रद्द करने की मांग उठी. प्रदर्शन हुए. मामले की जांच के दौरान पता चला कि फराह ने परिवार के एक सदस्य के खिलाफ कई बार पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. उसी शख्स ने जमानत पर रिहा होने के बाद फराह को कार से बाहर घसीटा और चाकू मार मारकर हत्या कर दी.
उस हत्याकांड के बाद हुए प्रदर्शनों के कारण संसद ने आर्टिकल 153 को रद्द करने का ड्राफ्ट पेश किया. आर्टिकल कहता है कि अगर कोई महिला किसी भी किस्म के नायाजय शारीरिक संबंध बनाती है तो उसके हत्यारे परिवारजन या पति को अधिकतम तीन साल की सजा काटनी होगी और 46 डॉलर के बराबर जुर्माना भरना होगा.
धारा 153 को रद्द करने के लिए तैयार प्रस्ताव को कानून में बदलने की घड़ी आते ही मर्दों से भरी कुवैती संसद ने अभूतपूर्व कदम उठाया. कानून बनाने के बजाए संसदीय समिति ने मामले को एक मौलवी को भेज दिया और मौलवी से इस बाबत फतवा जारी करने की दरख्वास्त की. जनवरी 2022 में मौलवी ने आर्टिकल 153 को बहाल रखने का एलान कर दिया.
एबॉलिश 153 ग्रुप की एक और संस्थापक सदस्य सुनदूस हुसैन के मुताबिक, "संसद के ज्यादातर सदस्य उसी सिस्टम से आते हैं जिसमें सम्मान के लिए हत्या आम है." हुसैन कहती हैं कि 2020 के चुनावों के बाद राजनीति में रुढ़िवादी और कबीलाई सोच रखने वाले नेताओं की संख्या बढ़ी है.
मौलवियों को रिझाने की कोशिश
इस बीच मौलवियों के सामने एक नया सवाल रखा गया है: क्या महिलाओं को सेना में शामिल होने की इजाजत देनी चाहिए. लंबे समय से सैन्य सेवाओं में शामिल होने की मांग कर रही महिलाओं की इस अपील पर रक्षा मंत्रालय ने भी गौर करना शुरू किया. लेकिन मंत्रालय के निर्णय से पहले ही मौलवियों ने महिलाओं को सशस्त्र सेनाओं में भर्ती करने से इनकार कर दिया. मौलवियों ने कहा कि महिलाएं इस्लामिक तरीके से सिर ढककर सिर्फ गैर लड़ाई वाले कामकाज में शामिल हो सकती हैं और इसके लिए भी उनके पुरुष अभिभावक की अनुमति जरूरी होगी.
कुवैत यूनिवर्सिटी में लैंगिक अध्ययन की एक्सपर्ट दलाल अल फारेस कहती हैं, "सरकार क्यों धार्मिक प्रशासन से मशविरा करती है? ये इस बात का एक साफ सबूत है कि सरकार रढ़िवादियों को रिझाने और संसद को खुश करने की कोशिश करती है. महिलाओं के मुद्दों को दबाकर वे आसानी से कह सकते हैं कि वे राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा कर रहे हैं."
सम्मान के लिए महिलाओं की आड़
दो साल पहले कुवैती संसद ने घरेलू हिंसा सुरक्षा कानून लागू किया. लेकिन हिंसा की शिकायत करने वाली महिलाओं के लिए आज तक न तो कोई अस्थायी राहत केंद्र या आवासीय सुविधा बनी है और ना ही मदद करने वाली कोई सर्विस शुरू की गई है.
ताजा घटनाक्रम में योग के खिलाफ छिड़े अभियान की अगुवाई कर रहे इस्लामी रुढ़िवादी हमदान अल अज्मी कहते हैं, "अगर कुवैत की बेटियों की रक्षा करना पिछड़ापन है तो ये कहलाने पर मैं सम्मानित महसूस करता हूं."
योग विवाद से कुछ महीने पहले कुवैत में प्रशासन ने बेली डांस की क्लासेस आयोजित करने वाले एक मशहूर जिम को बंद कर दिया. महिलाओं के लिए आयोजित "द डिवाइन फेमिनिन" नामक रिट्रीट को मौलवियों ने ईशनिंदा करार दिया. आने वाले दिनों में कुवैत की सर्वोच्च अदालत नेटफ्लिक्स पर बैन लगाने की याचिका पर फैसला करेगी. नेटफ्लिक्स ने ने पहली अरबी फिल्म प्रोड्यूस की, जिससे रुढ़िवादी आहत हैं.
ओएसजे/एके (एपी)
करीब तीन दशक पहले शार्लेट इवांस के तीन साल के बच्चे की फायरिंग में मौत हो गई थी. अब वह अपना दर्द कम करने के लिए राइफल की नली को हथौड़े से मारकर गार्डन का औजार बना रही हैं.
डेनवर के चर्च में एक गैरलाभकारी संगठन रॉटूल्स ने बाइबल के छंद से प्रेरित इस कार्यक्रम का आयोजन किया. छंद कुछ इस तरह से है, "अपने अपने हल की फाल को पीटकर तलवार और अपनी अपनी हंसिया को पीटकर बर्छी बनाओ, जो बलहीन हो वह भी कहे मैं वीर हूं."
शार्लेट इवांस का बेटा 1995 में क्रिसमस के ठीक पहले बंदूक हिंसा में मारा गया था. इवांस कहती हैं, ''सड़क से एक और बंदूक कम होता देखना कितना सुकून देने वाला है. मुझे ऐसी चीजों से प्यार है जो किसी को नुकसान पहुंचाए बिना गार्डन के काम के लिए इस्तेमाल हो." बड़ी संख्या में बंदूक उठा रही हैं अश्वेत महिलाएं
2013 में अपनी स्थापना के बाद से रॉटूल्स संगठन ने देश भर में 1,000 से अधिक हथियारों को निष्क्रिय किया है. उसी साल एक बंदूकधारी ने एक स्कूल में 20 बच्चों को मार डाला था. इस तरह के कार्यक्रम में निष्क्रिय हथियारों को भाग लेने वाले चर्चों को दान दिए जाते हैं या फिर रॉटूल्स की वेबसाइट पर बेचा जाता है.
संगठन के कार्यकारी निदेशक माइक मार्टिन ने कहा कि 1,000 निष्क्रिय हथियारों की संख्या 40 करोड़ हथियार की तुलना में बहुत कम है. वे कहते हैं कि लेकिन ''यह एक शुरुआत है.''
मार्टिन कहते हैं, ''यह थोड़ा-थोड़ा करके है. हम बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं. हम अपने और दूसरों के जीवन में इस तरह का बदलाव लाना चाहते हैं.'' उन्होंने यह भी बताया कि रॉटूल्स उन समूहों के साथ भी साझेदारी करता है जो अपराधियों के पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
उन्होंने कहा कि संगठन का अंतिम लक्ष्य एक ''ऐसी जगह'' की पेशकश करना है जो लोगों के लिए अपने आघात को कम कर ऐसी चीज बनाने में मदद करे जो उनकी जिंदगी में मौत लाती है और किसी चीज के लिए जिंदगी लाती है.
एए/सीके (एपी)
टोक्यो, 21 फरवरी | जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा इस सप्ताह जी-7 देशों की एक ऑनलाइन बैठक में हिस्सा लेंगे और वार्ता का उद्देश्य रूस और यूक्रेन के बीच तनाव को कम करने के उपाय करना होगा। सरकार ने सोमवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, किशिदा ने कहा कि वह रूस-यूक्रेन सीमा पर संकट को कम करने और अंतत: हल करने के लिए जी-7 और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अन्य सदस्यों के साथ पूरी कोशिश करेंगे।
संसद को संबोधित करते हुए, उन्होंने कहा, "जबकि स्थिति गंभीर बनी हुई है, जापान तनाव कम करने के लिए अन्य देशों के साथ राजनयिक प्रयास करना जारी रखेगा।"
सरकारी सूत्रों ने कहा कि किशिदा ने पिछले हफ्ते रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मौजूदा गतिरोध का 'स्वीकार्य' राजनयिक समाधान खोजने का आग्रह किया और यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की के साथ एक टेलीकांफ्रेंस की, जिसके दौरान कई प्रासंगिक मुद्दों का पता चला।
इस बीच, जर्मनी द्वारा आयोजित होने वाले गुरुवार के शिखर सम्मेलन में किशिदा की भागीदारी की घोषणा मुख्य कैबिनेट सचिव हिरोकाजु मात्सुनो ने की।
मात्सुनो ने सोमवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि सरकार यूक्रेन में जापानी नागरिकों से खाली करने का आग्रह कर रही है, और इसे लागू करने के उपाय कर रही है।
उन्होंने कहा कि जापान ने जापानी नागरिकों को निकालने की अपनी योजना के तहत यूक्रेन के पास एक विमान किराए पर लिया है।
स्थानीय मीडिया ने बताया कि अब तक यूक्रेन में लगभग 120 जापानी नागरिक थे। (आईएएनएस)
फ्रांस का कहना है कि यूक्रेन संकट पर एक शिखर सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति माक्रों के प्रस्ताव को अमेरिकी और रूसी राष्ट्रपतियों ने स्वीकार कर लिया है.
फ्रांसीसी राष्ट्रपति भवन और व्हाइट हाउस द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर अमेरिका-रूस शिखर सम्मेलन में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के एक प्रस्ताव पर सहमति जताई थी.
सोमवार को फ्रांस के राष्ट्रपति भवन से एक बयान में कहा गया कि "माक्रों ने रविवार को बाइडेन और पुतिन दोनों से फोन पर बात की और दोनों ने सैद्धांतिक रूप से शिखर सम्मेलन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है" इसमें साथ ही कहा गया कि यह शिखर सम्मेलन तभी होगा जब रूस यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा.
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने एक बयान में कहा कि वॉशिंगटन ने पुष्टि की है कि वह हमला शुरू होने तक अपनी कूटनीति जारी रखेगा. बयान के मुताबिक, "राष्ट्रपति बाइडेन ने राष्ट्रपति पुतिन के साथ बैठक को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया है. अगर कोई हमला नहीं होता है."
इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने गुरुवार को अमेरिका-रूस शिखर सम्मेलन के एजेंडे और अन्य विवरणों पर चर्चा करने के लिए मिलने वाले हैं.
ताजा घटनाक्रम पर बाइडेन द्वारा कहा गया था कि उनका मानना है कि पुतिन ने अगले कुछ दिनों में यूक्रेन पर आक्रमण करने का फैसला किया है. मॉस्को ने आरोपों से इनकार किया है.
इससे पहले रविवार को माक्रों और पुतिन के बीच करीब दो घंटे की टेलीफोन बातचीत के बाद दोनों नेता यूक्रेन गतिरोध के समाधान की तलाश में तेजी लाने पर सहमत हुए. माक्रों के दफ्तर ने कहा कि दोनों नेता मौजूदा संकट का कूटनीतिक समाधान खोजने के पक्ष में हैं और इसके बारे में कुछ भी करेंगे.
इस बीच पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने दोहराया कि रूस का यूक्रेन पर हमला करने का कोई इरादा नहीं है. उन्होंने कहा कि पश्चिम को यह समझना चाहिए.
एए/सीके (एएफपी, एपी, डीपीए)
आज माहवारी से सुविधाजनक ढंग से निपटने के बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं. लेकिन दुनिया में कई इलाकों की औरतों के पास विकल्प के नाम पर अभी सिर्फ चीथड़े ही हैं.
डॉयचे वैले पर क्लेयर रोथ की रिपोर्ट-
माहवारी की असुविधाओं से निजात दिलाने के लिए संपन्न देशों में डिस्पोजेबल टैम्पूनों और पैडों की भरमार पिछली सदी में हो चुकी है. लेकिन ये उत्पाद सुविधाजनक तो हैं लेकिन मुकम्मल नहीं हैं. मासिक वेतनभोगियों के लिए इन उत्पादों की मासिक लागत महंगी हो सकती है. ये उत्पाद आखिरकार कचरे में फेंक दिए जाते हैं. इस तरह ये पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. ब्रिटिश शोधकर्ताओं के मुताबिक एक सामान्य गैर-ऑर्गेनिक पैड को पूरी तरह नष्ट होने में 500-800 साल लग जाते हैं.
और तो और एक खराब टैम्पून, टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का कारण बनता है. ये एक दुर्लभ लेकिन घातक किस्म का संक्रमण है. फिर भी दुनिया भर में माहवारी से गुजरने वाली कई महिलाओं के लिए ये उत्पाद एक विलासिता की तरह हैं. अगर वे किसी तरह उपलब्ध हैं, तब भी.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) के मुताबिक हर महीने, 1.8 अरब औरतों को माहवारी होती है. लेकिन कुछ लोगों के लिए ये सहज होती है कुछ के लिए नहीं. ऊंची कीमतों के अलावा माहवारी से जुड़ी सामाजिक शर्म और संकोच, सुविधाजनक उत्पाद और बुनियादी सैनिटेशन सुविधाओं की किल्लत की वजह से भी लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती. अध्ययन बताते हैं कि बांग्लादेश, भारत, युगांडा और ब्रिटेन में कुछ लड़कियां पीरियड आने पर घर में ही रहने को विवश होती हैं.
विकल्प क्या हैं?
डिस्पोजेबल टैम्पूनों और पैडो से आजिज आ चुके लोगों के सामने अब नए विकल्प भी हैं- दोबारा इस्तेमाल हो सकने वाले माहवारी कप, पीरियड अंडरवियर, कपड़ों से बने पैड और पीरियड डिस्क.
डिस्पोजेबल पीरियड उत्पादों के सबसे जानेमाने विकल्पों में माहवारी कप भी आते हैं. वे दोबारा इस्तेमाल हो सकते हैं और दस साल तक चल जाते हैं. एक लोकप्रिय ब्रांड है डिवाकप. उसकी वेबसाइट के मुताबिक उसे 12 घंटों तक लगातार पहने रखा जा सकता है. और पानी और साबुन से धोकर दोबारा पहना जा सकता है.
हालांकि कप महंगे भी पड़ते हैं (करीब 26 यूरो) और उन्हें गरम पानी में खौलाना पड़ता है. ये काम उनके लिए असुविधाजनक है जिन्हें पानी की किल्लत है या उसे उबालने के लिए साधन नहीं हैं. और शोध बताते हैं कि अगर सही ढंग से इस्तेमाल नहीं किया गया तो टैम्पूनों की तरह कप भी टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का कारण बन सकते हैं.
पीरियड अंडरवियर, भी बेहतर विकल्प हो सकते हैं. लेकिन वे वैसे अपने स्तर पर काम नहीं करते हैं और उनसे रिसाव का खतरा भी बना रहता है. ये कहना है इस उत्पाद की समीक्षा करने वाली वेबसाइटों का. वे भी महंगे आते हैं- अगर पीरियड की पूरी अवधि के दौरान, रोजाना धुले बिना उन्हें पहना जाए तो कम से कम तीन से चार जोड़े खरीदकर रखने होंगे. इससे दीर्घ अवधि में पैसा तो बचेगा लेकिन तात्कालिक लागत काफी आएगी.
पीरियड डिस्क को माहवारी कप की तरह अंदर डाला जाता है लेकिन टैम्पूनों की तरह वे डिस्पोजेबल हैं. कप या टैम्पूनों से उलट डिस्क, सर्विक्स यानी गर्भाशयग्रीवा पर लगाई जाती है (ये गर्भाशय का निचला हिस्सा है) और योनि में जाने से पहले खून उसी डिस्क में उतर जाता है. इससे झंझट-मुक्त संभोग भी संभव है. अभी तक, ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है जिनसे ये पता चलता हो कि डिस्क के उपयोग से भी टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम हो सकता है.
कौन से परहेज करने हैं
विशेषज्ञों के मुताबिक, लोगों के सामने जब पीरियड से निपटने के लिए बहुत सारे विकल्पों को चुनने की सुविधा हो, तो सही तरीका यही है कि उसी विकल्प को चुनें जो उनके लिए सबसे सही काम करता है- इसी में समझदारी है.
"सी स्पंज” टैम्पून भी आते हैं. वे असली सी स्पंज के बने होते हैं या सिथेंटिक होते हैं. स्त्री सेहत से जुड़ी कई वेबसाइटों में उनकी काफी सराहना की गई है. उन्हें कॉटन टैम्पूनों का एक प्राकृतिक और टिकाऊ विकल्प बताया जाता है. लेकिन इस तरह के और दूसरे टैम्पून विकल्पों के इस्तेमाल से बचना चाहिए. ये कहना है एक कनाडाई स्त्रीरोग विशेषज्ञ जेन गुंटेर का. वो न्यू यार्क टाइम्स में महिला स्वास्थ्य पर एक मासिक स्तंभ भी लिखती हैं.
गुंटेर कहती हैं कि स्पंज से इसलिए परहेज करना चाहिए क्योंकि उन्हें साफ करने का कोई तरीका नहीं है, जिसका मतलब वो योनि में बाहरी बैक्टीरिया का प्रवेश करा सकते हैं. और उनकी खुरदुरी सतह योनि की नाज़ुक झिल्ली में खरोंच पैदा कर सकती है, जिस पर कतई ध्यान भी नहीं जाता है लेकिन वो बैक्टीरिया के लिए रास्ता बना देने के लिए काफी होती है.
वो कहती हैं कि स्पंज के आकार से भी योनि में चोट आ सकती है. क्योंकि वो क्षैतिज ढंग से फैलता है ना कि ऊर्ध्वाकार ढंग से. उसे हटाने के दौरान समस्या आ सकती है.
अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के एक गाइडेंस पेपर के मुताबिक 1980 में जिन महावारी स्पंजों की जांच की गई उनमें रेत, गारा, बैक्टीरिया और दूसरे विभिन्न पदार्थ पाए गए थे. पर्चे के मुताबिक एक सैंपल में स्टेफाइलोकोकस ऑरियस नाम का एक बैक्टीरिया होने की पुष्टि हुई.
एफडीए की जांच के बाद वितरकों ने स्वैच्छिक ढंग से कई स्पंजों को वापस ले लिया. लेकिन जेड एंड पर्ल जैसी कंपनियों के जरिए, स्पंज अभी भी ऑनलाइन बिक रहे हैं. नियामकों की जांच में पता चला था कि उच्च-अवशोषकता वाले टैम्पूनों और रेली ब्रांड के टैम्पूनों के इस्तेमाल में टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम संक्रमण का खतरा था. 1980 में उन्हें बाजार से वापस ले लिया गया.
अवरोध और उपलब्धतता
अमेरिका में माहवारियों में पैडों का इस्तेमाल भी टैम्पूनों की तरह बहुधा होता है. यूरोप में टैम्पून ज्यादा चलते हैं. कॉटन टैम्पून जल्दी नष्ट होते हैं. करीब छह महीने में. जबकि अमेरिका में मिलने वाले टैम्पूनों के साथ लगे प्लास्टिक एप्लीकेटरों और रैपरों को नष्ट होने में ज्यादा समय लगता है.
यूरोप में टैम्पून, एप्लीकेटरों या रैपरों के बिना बिकते हैं. गत्तों की पैकिंग में आते हैं जिनसे कचरा कम होता है. दुनिया के दूसरे हिस्सों में टैम्पूनों का इस्तेमाल बहुत ही कम होता है. अध्ययन बताते हैं कि बाज मौकों पर तो इसकी वजह सांस्कृतिक होती है- उन्हें गंदा या अशुद्ध माना जाता है या स्त्री कौमार्य को भंग करने वाला समझा जाता है- कई जगहें ऐसी है जहां इसका इस्तेमाल न करने की वजहें आर्थिक होती हैं.
जाम्बिया, सूडान, इथोपिया जैसे देशों में महिलाएं अब भी फटे पुराने सूती कपड़ों या चीथड़ों का इस्तेमाल माहवारी आने पर करती हैं. डिस्पोजेबल पीरियड उत्पादों तक उनकी पहुंच नहीं हैं या उतना खर्च वहन नहीं कर सकतीं.
दक्षिण सूडान में 2015 के एक अध्ययन में पाया गया कि सर्वे में शामिल लड़कियों में से सिर्फ 17 फीसदी लड़कियां ही बाजार में बिकने वाले डिस्पोजेबल सैनिटरी पैडों का इस्तेमाल कर रही थीं. शेष लड़कियों ने पुराने कपड़े या बकरे का चमड़ा इस्तेमाल किया या उनके पास कुछ भी नहीं था. करीब 17 फीसदी लड़कियों का कहना था कि माहवारी के समय वे जमीन में सूराख कर देती थीं जिन्हें बाद में मिट्टी से ढक देती थीं.
अध्ययन के मुताबिक इथोपिया, जिम्बाव्वे और तंजानिया में एक चौथाई से कम लड़कियां पीरियड में डिस्पोजेबल पैड लगाती हैं. बाकी लड़कियां पुराने कपड़े, चीथड़े, कॉटन और टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल करती हैं.
नेपाल में "माहवारी झोपड़ियों” में हर महीने जाकर अपना खून गिराने की परंपरा है. हालांकि "चौपदी” कही जाने वाली ये परंपरा गैरकानूनी है फिर भी कई लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. 2019 के एक सर्वे के मुताबिक मध्यपश्चिमी नेपाल के गांवों की 400 किशोरियों के बीच पाया गया कि उनमें से 77 फीसदी लड़कियां चौपदी अपना रही थीं जबकि 60 फीसदी लड़कियां जानती थी कि वैसा करना कानून के खिलाफ था.
इथोपिया जैसे इलाकों में जहां माहवारी के उत्पाद उपलब्ध नहीं है या उन तक पहुंच मुमकिन नहीं है, और जहां महिलाएं चीथड़ों से काम चलाती हैं, वहां कप और दोबारा इस्तेमाल होने वाले अफ्रीपैड बांटे जाते रहे हैं. लेकिन ये विकल्प, पीरियड संबंधी उन दूसरी समस्याओं का समाधान नहीं बन पाते हैं जो इनमें से कई महिलाओं को झेलनी पड़ती हैं, जैसे कि साफ पानी या घर पर शौचालय की कमी. (dw.com)
पूरी दुनिया में तेजी से रेगिस्तान फैलते जा रहे हैं. मिट्टीअपनी उर्वरता गंवाती जा रही हैं. निर्जन रेतीले उजाड़ रेगिस्तान में जीवन कैसे वापस लाया जा सकता है. यहां पेश हैं चार तरीके.
डॉयचे वैले पर टिम शाउएनबेर्ग की रिपोर्ट-
मंगोलिया और चीन के पश्चिमोत्तर तक फैला इलाका, दुनिया में सबसे तेज गति से रेगिस्तान में तब्दील हो रहा है. आकार मे ये 12 लाख वर्ग किलोमीटर हो चुका है. गोबी रेगिस्तान इसमें हर साल करीब 6,000 वर्ग किलोमीटर का इजाफा कर देता है.
फैलता हुआ ये रेगिस्तान घास के मैदानों को चपट कर जाता है, गांव के गांव निगल जाता है और बड़े पैमाने पर उर्वर भूमि को एक निर्जन उजाड़ में बदल देता है. दसियों हजार लोग विस्थापित होने को विवश होते हैं और कुछ एक हजार ही उन्हीं उजाड़ों मे रहने को अभिशप्त.
मरुस्थलीकरण वो प्रक्रिया है जिसके तहत उर्वर मिट्टी रेगिस्तान में बदल जाती है. यूं तो इसके पीछे कई कुदरती वजहें भी हैं लेकिन इसके द्रुत विस्तार में इंसानों की भूमिका भी निर्णायक रही है.
दुनिया में मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट की चार प्रमुख वजहे हैं- औद्योगिक कृषि में पानी का अत्यधिक इस्तेमाल, गंभीर सूखे की बढ़ती मियाद, निर्वनीकरण और मवेशियों के लिए चरागाहों का जरूरत से ज्यादा दोहन.
पहले उर्वर और हरे-भरे रह चुके लैंडस्केप रूखे-सूखे, रेतीले इलाकों में तब्दील होकर दुनिया भर में करीब एक अरब लोगों की जिंदगियों पर खतरा बने हुए हैं. लाखों प्रजातियों का जीवन भी उनकी वजह से संकट में है. आकलनों के मुताबिक इस सदी के मध्य तक धरती की एक चौथाई मिट्टी मरुस्थलीकरण से प्रभावित होगी.
ये एक चिंताजनक और गंभीर पहलू है. लेकिन अच्छी खबर ये है कि इन हालात को फिर से ठीक किया जा सकता है.
रेगिस्तान में घनघोर बारिशों की आमद
एक स्वागतयोग्य समाधान मक्का के नजदीक मिला है. ये है अल बायदा प्रोजेक्ट. वहां रेगिस्तानी खेती के जानकारों ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है जिसके जरिए रूखी उजाड़ मिट्टी में मूसलाधार बारिश की मदद से दोबारा जान फूंकी जा सकती है.
सउदी अरब में जब बारिश होती है, तो कम समय में बड़ी मात्रा में पानी गिरता है. अप्रैल 2021 में भी ऐसा हुआ था जब शहर के शहर कुछ समय के लिए जलमग्न हो गए थे. इतना सारा पानी एक साथ गिरे तो उसे थामना मिट्टी के लिए मुश्किल हो जाता है.
अल बायदा प्रोजेक्ट के पूर्व निदेशक और पुनरुत्पादक कृषि के जानकार नाइल स्पेकमैन कहते हैं, "हमने सोचा कि अगर हम उस पानी को जमीन तक ले आते हैं तो वो पानी का एक टिकाऊ स्रोत बन सकता है, फिर चाहे 20 महीने बारिश न हो, कोई फर्क नहीं पड़ेगा.”
इलाके में रहने वाले ग्रामीणों के साथ कृषि विशेषज्ञों ने पश्चिमी सउदी अरब की घाटी की सीमा बनाने वाली चट्टानी दीवारों के साथ साथ बांध और टैरेस बनाए. साथ ही किलोमीटर लंबी खाइयां भी तैयार की गई. अब बारिश होने पर पानी जमा होता जाता है और जरूरत वाले इलाकों को रवाना कर दिया जाता है. जहां पानी धीरे धीरे जमीन के अंदर दाखिल होता रहता है. सिंचाई का ये तरीका पूरी दुनिया में कारगर रहा है और सदियों पहले दक्षिण अमेरिका में इन्का आदिवासी भी इसका इस्तेमाल करते थे.
सउदी अरब में इस प्राकृतिक चक्र को चालू करने के लिए जानकारों ने शुरुआत में कृत्रिम सिंचाई का इस्तेमाल किया था. लेकिन अहम बात ये थी कि पानी निकाला कम गया, मिट्टी में छोड़ा ज्यादा गया. जहां पहले सिर्फ रेत और पत्थर थे वहां देसी पेड़-पौधे उग आए और घास फिर से पनप गई. वे सिंचाई के बगैर भी 30 महीने लंबा सूखा भी झेल गए.
अक्षय ऊर्जा कैसे लाती है बारिश
सउदी अरब के पास उत्तर अफ्रीकी देश भी, मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए इस प्रौद्योगिकी का परीक्षण कर रहे हैं. 90 लाख वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के दायरे में फैला सहारा- धरती का सबसे विशाल रेगिस्तान है. गोबी रेगिस्तान की तरह वो भी फैलता ही जा रहा है, कुछ इलाकों में तो हर साल करीब 50 किलोमीटर. सहारा के आसपास के इलाके शुष्क हैं लेकिन जीवित हैं. हालांकि ऐसी स्थिति ज्यादा नहीं खिचेंगी क्योंकि उर्वर मिट्टी की जो तबाही इंसानो के हाथों हो रही है उसके चलते वे इलाके दुनिया में किसी दूसरी जगह से ज्यादा तेजी से मरुस्थलीकरण की जद में हैं. रही-सही कसर गरीबी, पानी की कमी और जमीन पर मालिकाने के विवादों, टकरावों ने पूरी कर दी है. जिससे पर्यावरणीय नुकसान तेजी से होता जा रहा है.
ऐसी सूरत में काम आते हैं सौर पैनल और पवनचक्कियां. रेगिस्तान विस्तार को रोकने के ये एक सशक्त उपाय हैं. कैसे?
क्योंकि ये बारिश लाने में मदद करते हैं. ये प्रक्रिया कुछ यूं काम करती हैः सौर पैनलों की काली सतह हवा को गरम करती है, वो वायुमंडल में और ऊपर पहुंच जाती है. उसी तरह हजारों पवनचक्कियों के डैने घूमते हैं और हवा को ऊपर की ओर धक्का देते हैं. मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में भौतिकविद् और इस विषय पर एक अध्ययन की सह-लेखिका सफा मोटे कहती हैं कि, "जब हवा के ये पिंड ऊंचाइयों में पहुंच जाते हैं तो वे ठंडा होने लगते हैं...ठंडे होते हैं तो आर्द्रता भी सघन होकर बारिश के रूप में गिरने लगती है.”
विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर सहारा रेगिस्तान का एक बटा पांचवा यानी 20 प्रतिशत हिस्सा, सौर पैनलों और पवन चक्कियों के लिए इस्तेमाल किया जाता तो उससे सहारा के दक्षिणी हिस्से में हर साल करीब पांच सेंटीमीटर ज्यादा बारिश होती. ये नाकाफी लग सकता है लेकिन इतनी बारिश से हरित क्षेत्र 20 फीसदी बढ़ जाता और खेती में जबरदस्त उछाल आ जाता. और क्या चाहिए था- लोग भी खुश और पर्यावरण भी महफूज.
सफा मोटे के मुताबिक उस आकार का एक सोलर और विंड फार्म हर साल उससे चार गुना ज्यादा बिजली उत्पादन कर सकता है जितना पूरी दुनिया में आज खपत है. उससे अफ्रीकी देशों को और टिकाऊ बन पाने में मदद मिल सकती है. इस प्रोजेक्ट को अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति का साथ मिला तो भौतिकविद सफा मोटे को पक्का यकीन है कि प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में खर्च होने वाली 20 खरब डॉलर की विशालकाय धनराशि की लागत भी निकल सकती है.
मरुस्थलीकरण से हरितीकरण की ओर
रेगिस्तान को फिर से हराभरा और उर्वर बनाने के दूसरा प्रकृति-आधारित तरीके का परीक्षण चीन में चल रहा है. सफलता भी मिल रही है.
चीन सरकार के वानिकी और घासभूमि प्रशासन के मुताबिक महज कुछ दशकों पहले तक देश में रेगिस्तान हर साल 10,000 वर्ग किलोमीटर के दायरे में बढ़ रहे थे. आज वो हर साल 2,000 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के दायरे में सिकुड़ रहे हैं.
लेकिन कैसे?
1988 में लोगों ने एक नमक खदान के आवागमन मार्गों की हिफाजत के लिए, राजधानी बीजिंग के पश्चिमोत्तर में स्थित कुबुकी रेगिस्तान में पेड़ लगाने शुरू किए थे. पिछले कुछ दशकों में, ये दुनिया के सबसे कामयाब वनीकरण कार्यक्रमों में से एक बन चुका है.
एक निर्धारित परिपाटी में पेड़ लगाने के बजाय, रेत के ढूहों में पेड़ों को रोपने के लिए पानी के खास फौवारे तैयार किए गए थे. ये फौवारे रेत में सूराख बनाते और साथ ही साथ पेड़ की कलमों को भी सींचते. मरुस्थलीकरण से लड़ाई के लिए गठित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के शीर्ष वैज्ञानिक बैरन जोसेफ ओर कहते हैं, "इससे रोपाई का काम दस मिनट से कम होकर 10 सेकंड ही रह गया. ये एक बड़ा ही कामयाब और महत्त्वपूर्ण तरीका है.”
कुबुकी में नवजात छोटे पौधों को तेज हवा से बचाने के लिए किसान, रेत के ढूहों पर पुआल के बंडल भी रख देते हैं.
नई घासभूमि किसानों के लिए पैदावार के नए इलाके और मवेशियों के लिए नयी चरागाह भी बन गई है. किसान यहां लिकरिस यानी मुलैठी और दूसरी जड़ी बूटियां उगाते हैं. ये पौधे शुष्क जलवायु में ठीक से पनप जाते हैं और पारंपरिक चीनी दवाओं में उनकी काफी मांग रहती है.
कुबुकी रेगिस्तान की हरियाली का 800 किलोमीटर दूर राजधानी बीजिंग पर भी सकारात्मक असर पड़ा है. वहां रेतीले तूफान से होने वाले वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय गिरावट आई है.
तो क्या ये माना जाए कि सही प्रौद्योगिकी से मरुस्थलीकरण को रोका जा सकता है?
खराब हो चुकी जमीन, मिट्टी और वनस्पति को पुनर्जीवित करना संभव है और बाधित जलचक्रों को भी फिर से सामान्य किया जा सकता है. चाहे वो प्रकृति-प्रदत तरीकों से हो या फिर हाईटेक रणनीतियों के दम पर.
लेकिन दुनिया के मरुस्थलीकृत इलाकों को वापस उर्वर और हरित बनाने के इन तरीकों में बड़ी लागत और कड़ी मेहनत लगती है. जानकार कहते हैं कि उर्वर मिट्टी को सूखने से बचाने और रेगिस्तानों को फैलने से रोकने का ही एक ही तरीका है- और वो है मिट्टी और पानी का अनवरत निर्मम दोहन बंद हो. (dw.com)
पेरिस, 21 फरवरी | फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और उनके रूस के समकक्ष व्लादिमीर पुतिन ने रविवार को फोन कॉल पर बातचीत के दौरान पूर्वी यूक्रेन में तनाव से बचने, जोखिम कम करने और शांति बनाए रखने का संकल्प लिया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, एलिसी के मुताबिक, मैक्रों और पुतिन हाल के दिनों में यूक्रेन द्वारा किए गए आदान-प्रदान और प्रस्तावों के आधार पर नोरमंडी प्रारूप के ढांचे के अंदर काम फिर से शुरू करने और अगले कुछ घंटों में त्रिपक्षीय संपर्क समूह सभी हितधारकों से युद्धविराम के लिए प्रतिबद्धता प्राप्त करने का लक्ष्य की बैठक को सक्षम करने के लिए सहमत हुए हैं।
वे मौजूदा संकट के कूटनीतिक समाधान का समर्थन करने और इसे हासिल करने के लिए भी सहमत हुए। यूरोप और विदेश मामलों के फ्रांसीसी मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन आने वाले दिनों में अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव से मिलेंगे।
प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, राजनयिक कार्य को सभी हितधारकों को शामिल करके नए आदान-प्रदान के आधार पर प्रगति करना संभव बनाना चाहिए ताकि अगर शर्तों को पूरा किया जा सके, तो यूरोप में शांति और सुरक्षा के एक नए आदेश को परिभाषित करने के लिए उच्चतम स्तर पर एक बैठक हो।
मैक्रों ने सप्ताहांत में यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की से टेलीफोन पर भी बात की।
एलिसी ने एक अन्य प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "राष्ट्रपति जेलेंस्की ने उकसावे पर प्रतिक्रिया नहीं देने और युद्धविराम का सम्मान करने के अपने दृढ़ संकल्प की पुष्टि की है।"
फ्रांस ने यूक्रेन में अपने सभी नागरिकों से देश छोड़ने का आग्रह किया और नागरिकों को वहां अपनी यात्रा स्थगित करने की सलाह दी।
(आईएएनएस)
ढाका, 21 फरवरी | बांग्लादेश सरकार ने 'जॉय बांग्ला' को देश का नेशनल स्लोगन बनाने का फैसला किया है। यह फैसला रविवार को प्रधानमंत्री शेख हसीना की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया। कैबिनेट सचिव खांडकर अनवारुल इस्लाम ने बैठक के बाद मीडिया को बताया कि इस संबंध में एक अधिसूचना इसे सार्वजनिक करने के लिए जारी की जाएगी।
हसीना अपने आधिकारिक आवास से बैठक में शामिल हुई, जबकि मंत्रियों ने सचिवालय के सम्मेलन कक्ष से बैठक में भाग लिया।
कैबिनेट सचिव ने कहा, "जॉय बांग्ला' को नेशनल स्लोगन बनाने का फैसला उच्च न्यायालय द्वारा जारी आदेश के तत्वाधान में लिया गया है। कैबिनेट डिवीजन ने इस मामले पर चर्चा की है और 'जॉय बांग्ला' को नेशनल स्लोगन बनाने वाली अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिए हैं।" (आईएएनएस)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के वाणिज्य, टेक्सटाइल, इंडस्ट्री, निवेश और प्रोडक्शन मामलों के सलाहकार अब्दुल रज़ाक दाऊद ने कहा है कि भारत के साथ व्यापार दोनों देशों के हित में है.
रविवार को रज़ाक ने कहा कि रूस पाकिस्तान में कंस्ट्रक्शन और पाइपलाइन बनाने में निवेश करना चाहता है.
ट्रेड डिवेलपमेंट अथॉरिटी ऑफ पाकिस्तान की ओर से आयोजित इंजीनियरिंग और हेल्थकेयर की एक प्रदर्शनी में मीडिया से बात करते हुए रज़ाक ने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय भारत से व्यापार करना चाहता है. मुझे लगता है कि भारत के साथ व्यापार खोल देना चाहिए.''
पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार डॉन ने इस ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है. अब्दुल रज़ाक दाऊद ने जो बात मीडिया से भारत को लेकर कही है, उसका वीडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर किया गया है.
डॉन के अनुसार, रज़ाक ने कहा कि भारत के साथ व्यापार सभी के लिए बहुत फ़ायदेमंद है और ख़ासकर पाकिस्तान के लिए. रज़ाक ने कहा कि वह भारत से व्यापार शुरू करने का समर्थन करते हैं.
पाकिस्तान ने पाँच अगस्त 2019 के बाद भारत से द्विपक्षीय व्यापार ख़त्म करने का फ़ैसला लिया था और तब से बंद है. पाँच अगस्त, 2019 को भारत ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निष्प्रभावी कर दिया था.
इससे पहले पाकिस्तान के अरबपति कारोबारी मियां मोहम्मद मंशा ने भी कहा था कि भारत के साथ व्यापार शुरू होना चाहिए. इसी महीने तीन फ़रवरी को मियां मोहम्मद मंशा ने कहा था कि अगर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आई तो इसके नतीजे भयावह होंगे. उन्होंने यह भी कहा था कि भारत से व्यापारिक रिश्ते सुधारने चाहिए.
मियां मोहम्मद मंशा ने कहा था, ''यूरोप में दो भयावह युद्ध हुए लेकिन शांति और क्षेत्रीय विकास के लिए सब एक हो गए. किसी से स्थायी दुश्मनी नहीं हो सकती.''
मियां मोहम्मद मंशा के इस बयान पर भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने कहा था कि वह कारोबारी हैं और नए मार्केट की तलाश में उनका बयान चौंकाने वाला नहीं है.
अब्दुल बासित ने कहा था, ''पाकिस्तान में एक तबका है, जो मानता है कि भारत के साथ तनाव के कारण पाकिस्तान को आर्थिक नुक़सान हो रहा है. लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूँ. मेरा मानना है कि हमारी अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है तो इसका कारण यह नहीं है कि भारत के साथ ताल्लुकात सही नहीं है. मेरा मानना है कि हमारी अंदरूनी वजहें हैं, जिनकी वजह से अर्थव्यवस्था ठीक नहीं है.''
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ यूक्रेन संकट पर समिट के लिए तैयार हो गए हैं. इस समिट का प्रस्ताव फ़्रांस ने रखा है.
व्हाइट हाउस ने कहा है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला नहीं करता है तभी यह समिट संभव होगा. इस वार्ता में यूरोप में उपजे सुरक्षा संकट को लेकर कोई राजनयिक समाधान को लेकर प्रस्ताव रखा जा सकता है.
अमेरिकी ख़ुफ़िया सूचना के अनुसार, रूस यूक्रेन पर हमले के लिए तैयार है. हालांकि रूस इससे इनकार कर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन से वार्ता का प्रस्ताव फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच फ़ोन पर हुई बातचीत के बाद सामने आया है. दोनों राष्ट्रपतियों के बीच तीन घंटों तक बात हुई है.
यह तीन घंटे की वार्ता दो बार में हुई. दूसरी बार रूसी समय के हिसाब से सोमवार सुबह हुई. मैक्रों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से भी 15 मिनट बात की है. फ़्रांस के राष्ट्रपति के कार्यालय का कहना है कि संभावित समिट के डिटेल के लिए गुरुवार को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोफ़ के बीच बैठक होगी.
व्हाइट हाउस ने कहा है कि रूस लगातार यूक्रेन पर हमले की तैयारी कर रहा है. अमेरिका ने रूस को चेतावनी दी है कि अगर हमला हुआ तो इसके गंभीर नतीजे होंगे.(bbc.com)
जर्मनी के म्यूनिख शहर में शनिवार को एक सिक्यॉरिटी कॉन्फ़्रेंस में बांग्लादेश और भारत के विदेश मंत्रियों के बीच सवाल-जवाब का दौर चला.
भारत के अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू और बांग्लादेश की न्यूज़ एजेंसी यूएनबी (यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ बांग्लादेश) के अनुसार, भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि जो देश ग़ैर-टिकाऊ प्रोजेक्ट जैसे- एयरपोर्ट्स और पोर्ट्स के लिए क़र्ज़ चाह रहे हैं, उन्हें सतर्क रहना चाहिए.
इसके जवाब में बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमिन ने कहा कि ऐसे में क्वॉड देशों को चीन की तरह वित्तीय मदद मुहैया करानी चाहिए. क्वॉड में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत हैं. क्वॉड के बारे में कहा जाता है कि यह हिन्द-प्रशांत में चीन की बढ़ती आक्रामकता से निपटने के लिए है.
द हिन्दू के अनुसार, जयशंकर ने कहा कि भारत के साथ चीन के संबंध मुश्किल दौर में हैं. भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, ''हमने देखा है कि हमारे क्षेत्र के देश भी बड़े क़र्ज़ के बोझ से दबे हैं. हमने उन परियोजनाओं को देखा है, जो व्यावसायिक रूप से टिकाऊ नही हैं: ऐसे एयरोपोर्ट हैं, जहाँ एक भी प्लेन नहीं आता है, ऐसे बंदरगाह हैं, जहाँ एक भी शिप नहीं आती है.''
जयशंकर इंडो-पैसिफिक के भविष्य पर आयोजित एक पैनल का हिस्सा थे. जयशंकर की टिप्पणी को श्रीलंका में गहराते क़र्ज़ के संकट से जोड़कर देखा जा रहा है.
श्रीलंका में हम्बनटोटा और मटाला एयरपोर्ट को लेकर कई चिंताएं हैं. दोनों को चीनी क़र्ज़ से विकसित किया गया है. श्रीलंका इस क़र्ज़ को चुकाने के लिए जूझ रहा है. आख़िरकार क़र्ज़ नहीं चुका पाने की स्थिति में श्रीलंका को मजबूरी में हम्बनटोटा पोर्ट एक चीनी कंपनी को 99 साल की लीज पर देना पड़ा था.
बांग्लादेश की न्यूज़ एजेंसी यूएनबी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि वहां के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमिन ने कहा कि बांग्लादेश में इन्फ़्रास्ट्रक्चर से जुड़ी ज़रूरतें बढ़ रही हैं और चीन तब आकर मदद कर रहा है, जब कई देश मदद से इनकार कर रहे हैं. यूएनबी के अनुसार, मोमिन ने कहा कि चीन न केवल पैसे के साथ आ रहा है बल्कि वह काफ़ी सक्रियता दिखा रहा है और वहन करने योग्य भी है.
यूएनबी ने लिखा है, ''भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि इस मामले में देशों को वैसे फ़ैसले करने चाहिए, जिनके बारे में पूरी जानकारी हो. जयशंकर ने कहा कि इस इलाक़े में कई देश ख़ास क़र्ज़ों से परेशान हैं. बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि आर्थिक विकास के मामले में उनका मुल्क अपेक्षाकृत अच्छा कर रहा है.''
बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने कहा, ''लोग सुविधा के अलावा और मौक़े चाह रहे हैं ताकि गुज़र-बसर ठीक से हो. देश में इन्फ़्रास्ट्रक्चर सुविधा की ज़रूरतें बढ़ रही हैं. लेकिन हमारे पास पैसे नहीं हैं. हमारे पास तकनीक भी नहीं है. लोगों की ज़रूरतें हमें पूरी करनी है लेकिन कई देशों ने मदद से इनकार कर दिया. मैं जापान को धन्यवाद देना चाहता हूँ, जो हमारा अच्छा दोस्त है और बांग्लादेश में निवेश कर रहा है. मैं भारत को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ क्योंकि यहाँ से भी कई परियोजनाओं में हमें मदद मिली है.''
यूएनबी के अनुसार, बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने कहा, ''बांग्लादेश ने ज़्यादातर क़र्ज़ विश्व बैंक, आईएमएफ़ और एडीबी से लिया है. मोमिन के सवाल के जवाब में भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति काफ़ी प्रतिस्पर्धी है और हर देश मौक़े देखेगा. लेकिन ऐसा करते वक़्त विवेकपूर्ण होना और यह सोचना ज़रूरी है कि यह उनके हित में किस हद तक है. हमने अपने क्षेत्र में भी वैसे देशों को देखा है, जो इसी चक्कर में क़र्ज़ के बोझ से दबे हुए हैं. मुझे लगता है कि लोगों को समझना चाहिए कि उन्हें क्या मिल रहा है.''
यूएनबी के अनुसार, भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि कोई भी फ़ैसला चीज़ों को समझकर लेना चाहिए.(bbc.com)
ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय कोरोना संक्रमित हो गई हैं. बकिंघम पैलेस ने महारानी के संक्रमित होने की पुष्टि कर दी है.
बकिंघम पैलेस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उन्हें अगले कुछ दिनों तक डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाएगा. इस दौरान वह पूरी तरह से कोविड गाइडलाइंस का पालन करेंगी.
95 वर्षीया क्वीन के साथ उनके बेटे और राजगद्दी के उत्तराधिकारी प्रिंस ऑफ़ वेल्स भी कोरोना संक्रमित हैं. वह पिछले सप्ताह कोरोना पॉजीटिव हुए थे. (bbc.com)
कटहल की ये तस्वीर बीबीसी के रिपोर्टर रिकार्डो सेनरा ने खींची थी, जो उनके देश ब्राज़ील में ट्विटर पर वायरल हो गई.
इस तस्वीर को एक लाख बार शेयर किया गया. लंदन के सबसे बड़े और सबसे पुराने बाज़ार, बोरो मार्केट में एक कटहल क़रीब 16 हज़ार रुपये (160 पाउंड) में बिक रहा था.
कटहल की इस क़ीमत ने ट्विटर पर लोगों के होश उड़ा दिए. कुछ ने तो मज़ाक किया कि वो कटहल बेचकर "करोड़पति" बनने के लिए ब्रिटेन आएंगे.
वैसे तो ब्राज़ील के कई इलाक़ों में एक ताज़ा कटहल 82 रुपये में मिल जाता है. कई जगहों पर ये सड़कों पर सड़ता भी दिखाई दे जाएगा. कई अन्य देशों में भी ये सस्ता ही है. कई जगह तो इसे फ्री में ही पेड़ों से तोड़ा जा सकता है.
तो फिर एक कटहल की क़ीमत इतनी कैसे बढ़ गई? और हाल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग में इतना उछाल क्यों आ गया?
सबसे पहले तो एक सामान्य-सा नियम याद रखना बहुत ज़रूरी है: किसी भी वस्तु की मांग उसकी क़ीमत को प्रभावित करती है - और ये किसी भी उत्पाद पर लागू होता है.
साओ पाउलो राज्य में तीन हज़ार तरह के फलों का बाग लगाने वाली कंपनी के सीईओ सबरीना सारतोरी ने बीबीसी को बताया, "ब्राज़ील में भी, कटहल की क़ीमतों में उतारचढ़ाव आता रहता है. कई ऐसी जगह हैं जहां पेड़ों से लोग फ्री में ही तोड़कर ले जाते हैं. लेकिन कुछ जगहों पर ये बहुत महंगा होता है."
लेकिन ब्रिटेन जैसे ठंडे देशों में कटहल को व्यावसायिक रूप से नहीं उगाया जा सकता है.
जानकारों का कहना है कि कटहल का अंतरराष्ट्रीय व्यापार काफ़ी पेचीदा और जोख़िम भरा है. जिसकी कई वजहें हैं जिनमें रखने पर ख़राब होने की कटहल की प्रकृति, इसका मौसमी होना और इसका आकार शामिल है.
एक कटहल का वज़न 40 किलो तक हो सकता है. एशिया से आने वाले इस फल की शेल्फ़ लाइफ कम है. इसका ट्रांस्पोर्टेशन तो मुश्किल है ही, इसकी पैकिंग भी आसान नहीं.
सारतोरी साथ ही कहते हैं, "कटहल बहुत भारी होता है और जल्दी पक जाता है. इससे एक अजीब-सी गंध आती है, जो हर किसी को पसंद नहीं होती."
जिन देशों में कटहल की उपज होती है वहां अक्सर इसे इतना महत्व नहीं दिया जाता, लेकिन विकसित देशों में शाकाहरी लोगों के बीच इसकी मांग बढ़ रही है. कटहल को मांस के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है.
पकाए जाने पर ये बीफ या पोर्क की तरह दिखता है और इस कारण ये टोफ़ू, क्वार्न और ग्लूटेन-फ्री जैसा लोकप्रिय मीट-फ्री विकल्प बन रहा है. अकेले ब्रिटेन में, शाकाहारी लोगों की संख्या क़रीब 35 लाख है और ये बढ़ती जा रही है.
जब कटहल बहुत ज़्यादा पक जाता है इसमें एक मीठा स्वाद आ जाता है और इसे सिर्फ मीठे व्यंजन में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसलिए, उपभोक्ताओं के लिए एक ज़्यादा किफ़ायती विकल्प इसे डिब्बाबंद खरीदना है.
डिब्बाबंद कटहल ब्रिटिश सुपरमार्केट में औसतन लगभग 300 रुपये में मिल सकता है, लेकिन कई लोग कहते हैं कि इसका स्वाद मूल फल जैसा नहीं होता.
बड़े आकार के कारण इसकी पैकिंग मुश्किल है. इसे अन्य फलों की तरह एक जैसे आकार के बक्सों में नहीं रखा जा सकता. साथ ही ये बताने का कोई वैज्ञानिक तरीक़ा भी नहीं है कि कटहल को बाहर से देखकर बताया जा सके कि वो अच्छी स्थिति में है या नहीं.
इसके अलावा, जो प्रमुख देश इसकी खेती करते हैं और निर्यात करते हैं, वहां सप्लाई चेन मज़बूत नहीं. साथ ही कटाई के बाद इसे स्टोर करने की सुविधाओं का अभाव है. नतीजतन, एक अनुमान के मुताबिक़, पूरे उत्पादन का 70 फीसदी नष्ट हो जाता है. कटहल की खेती ज़्यादातर दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया में होती हैं, कटहल बांग्लादेश और श्रीलंका का राष्ट्रीय फल है.
भारत में कटहल को ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले ग़रीब लोगों के खाने की चीज़ के तौर पर भी देखा जाता है. जानकार कहते हैं कि इसके अलावा इसे लेकर जागरुकता की कमी है. कई लोगों ने कभी इसका स्वाद नहीं चखा और वो इसे बनाने का कोई तरीक़ा भी नहीं जानते. हालांकि कटहल अब लोकप्रिय होता जा रहा है.
नीदरलैंड स्थित विदेशी फलों के आयातक टोरेस ट्रॉपिकल बीवी के मालिक फैब्रिकियो टोरेस ने ये भी कहा कि फलों सब्ज़ियों के महंगे होने का एक कारण ये भी रहा है कि कोविड -19 महामारी के बाद हवाई मालभाड़ा काफी बढ़ गया है.
वो कहते हैं, "एशिया और दक्षिण अमेरिका जैसे क्षेत्रों से कई फल विमानों से यूरोप आते हैं. एयरलाइंस अब कार्गो स्पेस के लिए ज़्यादा क़ीमत वाले उत्पादों की तलाश में रहती है. कटहल तेज़ी से ख़राब होने वाला फल है और इसकी मांग भी कम रहती है. इसलिए इसे बड़ी मात्रा में आयात करना सही नहीं समझा जाता. इस सब आधार पर ही बाज़ार में कटहल की क़ीमत तय होती है."
बढ़ रहा है कटहल का व्यापार
तमाम अड़चनों के बावजूद हाल के अध्ययनों में कटहल के अंतरराष्ट्रीय बाज़ार के विस्तार का अनुमान लगाया गया है.
कंसल्टेंसी इंडस्ट्री एआरसी के अनुमानों के मुताबिक़, 2026 तक इसके 35.91 करोड़ डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2021-2026 की अवधि के दौरान 3.3 फीसदी की वार्षिक दर से बढ़ रहा है.
2020 में, एशिया-प्रशांत क्षेत्र का कटहल के बाज़ार में सबसे बड़ा हिस्सा रहा (37%), इसके बाद यूरोप (23%), उत्तरी अमेरिका (20%), बाक़ी दुनिया (12%) और दक्षिण अमेरिका (8%) थे. (bbc.com)
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने बीबीसी से कहा है कि सबूत ये संकेत दे रहे हैं कि रूस यूरोप में "1945 के बाद सबसे बड़ी जंग" की तैयारी कर रहा है.
बीबीसी संवाददाता सोफ़ी रावर्थ को दिए एक साक्षात्कार में ब्रितानी प्रधानमंत्री ने कहा, "सारे संकेत ये हैं कि कुछ मायनों में रूस ने अपनी इस तैयारी को अंजाम देना भी शुरू कर दिया है."
पीएम जॉनसन ने कहा कि ख़ुफिया जानकारी के मुताबिक, रूस का मकसद यूक्रेन पर इस तरह हमला करने का है, जिससे राजधानी कीव की घेराबंदी कर ली जाए.
म्यूनिख में दुनियाभर के शीर्ष नेताओं के वार्षिक सुरक्षा कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री जॉनसन ने कहा, "लोगों को समझना होगा कि इससे मानव जीवन को भारी नुकसान हो सकता है."
अमरीकी सरकार की ओर से जारी किए ताज़ा अनुमान के अनुसार यूक्रेन की सीमा पर अब तकरीबन 1 लाख 69 हज़ार से 1 लाख 90 के बीच रूसी सैनिक तैनात हैं. ये सैनिक रूस और पड़ोसी देश बेलारूस में मौजूद हैं. लेकिन इनमें पूर्वी यूक्रेन के विद्रोही गुट के लोग भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा, "जो तैयारी हम देख रहे हैं, वो कुछ ऐसी है जो 1945 के बाद यूरोप में सबसे बड़ी जंग हो सकती है. केवल पूर्व के रास्ते, डोनबास क्षेत्र से हमले की संभावना को देखा जा रहा है, हमें मिली ख़ुफिया जानकारी के मुताबिक, हमला बेलारूस के रास्ते भी हो सकता है, जिससे राजधानी कीव को घेरा जा सके. मुझे लगता है कि लोगों को ये समझने की ज़रूरत है कि इससे न सिर्फ़ यूक्रेन बल्कि रूस को भी भारी संख्या में अपने लोगों की जान गंवानी पड़ सकती है."
पश्चिमी देशों के अधिकारियों ने हालिया दिनों में चेतावनी दी है कि रूस किसी भी समय यूक्रेन पर हमला कर सकता है, लेकिन रूस ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा है कि उसके सैनिक इस क्षेत्र में सैन्य अभ्यास कर रहे हैं.
यूक्रेन पर रूस के हमले का ख़तरा अभी भी मंडरा रहा है या नहीं, इस सवाल पर जॉनसन ने कहा कि मुझे डर है कि संकेत यही हैं. उन्होंने कहा, "सच ये है कि सभी संकेत यही हैं कि रूस ने युद्ध की तैयारियों को कुछ मायनों में अंजाम देना शुरू कर दिया है."
उन्होंने कहा, "मुझे डर है कि हमें जो योजना दिख रही है, वो कुछ ऐसी है जो यूरोप में 1945 के बाद सबसे बड़ा युद्ध हो सकता है. लोगों को सिर्फ़ यूक्रेन में संभावित मौतों के बारे में नहीं बल्कि युवा रूसी लोगों की जान के बारे में भी सोचने की ज़रूरत है."
बोरिस जॉनसन ने दुनिया के नेताओं से कहा कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो इसका "असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है." (bbc.com)
बीबीसी ने अपनी पड़ताल में पाया है कि महिलाओं की अंतरंग तस्वीरें उनका शोषण करने, शर्मसार और ब्लैकमेल करने के इरादे से सोशल मीडिया ऐप टेलीग्राम पर बड़े स्तर पर शेयर की जा रही हैं.
टेलीग्राम पर अपनी नग्न तस्वीरें देखने के साथ ही सारा की ज़िंदगी में जैसे भूचाल आ गया. टेलीग्राम पर उनके इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक अकाउंट के साथ साथ उनका फ़ोन नंबर भी शेयर किया गया था. जिससे अचानक ही उनके पास अनजान लोगों के कई फ़ोन कॉल्स आने लगे और ये सभी सारा से उनकी और तस्वीरें मांगने लगे.
वे कहती हैं, ''उन्होंने मुझे ऐसा महसूस कराया कि मैं एक वेश्या हूं क्योंकि [उन्हें विश्वास था] मैंने अपनी अंतरंग तस्वीरें खुद शेयर की थीं. जैसे एक महिला के रूप में मेरा कोई मूल्य नहीं था.''
सारा (बदला हुआ नाम) ने एक शख़्स के साथ अपनी तस्वीर शेयर की थी, लेकिन ये तस्वीर टेलीग्राम पर 18 हज़ार फॉलोअर्स वाले एक ग्रुप में शेयर कर दी गई, इनमें से कई फॉलोअर क्यूबा के हवाना में उनके पड़ोसी थे.
उन्हें डर लगता है कि सड़कों पर चलने वाले कई अनजान लोगों ने भी उनकी नग्न तस्वीर को देखा होगा.
सारा अकेली नहीं है. टेलीग्राम पर महीनों की जांच के बाद, हमनें पाया कि कम से कम 20 देशों में बड़े ग्रुप और चैनल महिलाओं की हजारों गुप्त रूप से फिल्माई गई, चोरी या लीक की गई तस्वीरों को शेयर कर रहे हैं. और इस बात के लगभग ना के बराबर सबूत हैं कि प्लेटफॉर्म इस विकट समस्या से निपट रहा है.
क्यूबा से हज़ारों किलोमीटर दूर, निगार एक नई ज़िंदगी में ढलने की कोशिश कर रही हैं.
निगार अज़रबैजान से हैं, लेकिन वह कहती हैं कि उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर किया गया. साल 2021 में उनका अपने पति के साथ का एक अंतरंग वीडियो उनके परिवार को भेजा गया और फिर वह टेलीग्राम के एक ग्रुप पर शेयर कर दिया गया.
वह बताती हैं, "मेरी माँ रोने लगी और मुझसे बोलीं, 'एक वीडियो है, यह मुझे भेजा गया है.' उसे देखकर मैं बर्बाद हो गई थी, बिल्कुल बर्बाद हो गयी."
उनके वीडियो को 40,000 सदस्यों के ग्रुप में शेयर किया गया था. फुटेज में निगार के पूर्व पति का चेहरा ब्लर था लेकिन उनका चेहरा साफ़ नज़र आ रहा है.
अब निगार का उनके पति से तलाक हो चुका है.
उनका मानना है कि उनके पूर्व पति ने ही गुपचुप तरीके से उनका वीडियो बनाया था ताकि निगार के भाई को ब्लैकमेल किया जा सके, जो कि अज़रबैजान के राष्ट्रपति के एक प्रमुख आलोचक हैं.
वे कहती हैं कि उसकी मां को बताया गया था कि अगर उनके भाई ने अपना एक्टिविज़म न रोका तो ये वीडियो टेलीग्राम पर जारी कर दिया जाएगा.
निगार कहती हैं, ''लोग आपको हेय दृष्टि से देखते हैं, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप शादी-शुदा हैं.''
निगार का कहना है कि उन्होंने वीडियो के बारे में अपने पूर्व पति से बात की लेकिन उन्होंने वीडियो बनाने की बात से इनकार कर दिया. बीबीसी ने उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
निगार अब तक अपनी ज़िंदगी में आगे नहीं बढ़ सकी हैं.
वे कहती हैं, ''मैं इससे उबर नहीं पाई हूं, अब तक मैं सप्ताह में दो बार थैरेपिस्ट से मिलती रही हूं. वह कहते हैं कि मुझमें कोई सुधार नहीं हो रहा है. वह कहते हैं क्या मैं इसे भूल सकती हूं और मैं कहती हूं नहीं.''
निगार और सारा की तस्वीरों की टेलीग्राम पर रिपोर्ट किया गया. लेकिन प्लेटफॉर्म ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
बीबीसी रूस से लेकर ब्राज़ील और केन्या से लेकर मलेशिया तक के देशों में 18 टेलीग्राम चैनलों और 24 ग्रुपों को मॉनिटर किया. जिस पर कुल फॉलोअर्स लगभग 20 लाख है.
इन ग्रुप पर तस्वीरों के साथ घर के पते और माता-पिता के फ़ोन नंबर जैसे व्यक्तिगत विवरण भी पोस्ट किए गए थे.
हमने देखा कि ग्रुप एडमिन लोगों से उनके एक्स-पार्टनर, सहकर्मियों या साथी-छात्रों की अंतरंग तस्वीरें मैसेज भेजने के लिए कहते हैं, ताकि भेजने वाले की पहचान छुपा कर शेयर किया जा सके.
टेलीग्राम कहता है कि दुनिया भर में उसके 50 करोड़ से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ता हैं- जो कि ट्विटर से भी अधिक है, इस प्लेटफॉर्म पर कई यूजर्स इसके सीक्रेट प्लेटफॉर्म होने के नाते जुड़े हैं.
बीते साल जनवरी में व्हाट्सएप ने जब अपनी डेटा पॉलिसी में बदलाव किया तो लाखों लोग टेलीग्राम पर चले गए.
टेलीग्राम लंबे समय से मीडिया सेंसरशिप वाले देशों में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों के बीच लोकप्रिय रहा है.
इसमें यूजर अपना नाम या फ़ोन नंबर साझा किए बिना पोस्ट कर सकते हैं, और अधिकतम 2,00,000 सदस्यों के साथ सार्वजनिक या निजी ग्रुप बना सकते हैं. यहां किसी चैनल को भी लोग एक साथ असीमित संख्या में देख सकते हैं.
गोपनीयता के लिए टेलीग्राम की खा़ा चर्चा है, ये एप एंड टू एंड एन्क्रिप्शन देता है, जो सुनिश्चित करता है कि जो दो लोग बात कर रहे हैं वही मैसेज देख सकते हैं. यह सिग्नल और व्हाट्सएप जैसे सुरक्षित चैट ऐप्स पर भी डिफ़ॉल्ट सेटिंग है.
प्लेटफ़ॉर्म कम विनियमित (रेगुलेटेड) स्थान चाहने वाले उपयोगकर्ताओं को भी आकर्षित करता है, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें अन्य प्लेटफ़ॉर्म से प्रतिबंधित कर दिया गया है.
डिजिटल राइट्स ग्रुप एक्सेस नाउ की तकनीकी क़ानूनी सलाहकार नतालिया क्रापिवा कहती हैं, "टेलीग्राम और उसके मालिकों के अनुसार, वे यूजर्स को सेंसर नहीं करना चाहते हैं."
लेकिन बीबीसी के शोध से पता चला है कि इस तरह के रुख़ ने टेलीग्राम को न्यूड तस्वीरों को लीक करने और शेयर करने का अड्डा बना दिया है.
टेलीग्राम के पास इस तरह की तस्वीरें जिसे किसी की इच्छा के ख़िलाफ़ शेयर किया जाए उससे निपटने की कोई नीति नहीं है. लेकिन जब यूजर इसके टर्म-कंडीशन पर सहमति दर्ज करते हैं तो उनमें से एक नियम ये कहता है कि ''सार्वजनिक रूप से देखे जा सकने वाले टेलीग्राम चैनलों, बॉट आदि पर अवैध अश्लील सामग्री पोस्ट न करें.''
टेलीग्राम पर सार्वजनिक और निजी दोनों ग्रुप और चैनलों में इन-ऐप रिपोर्टिंग सुविधा भी है जहां यूजर्स पोर्नोग्राफ़ी को रिपोर्ट कर सकते हैं.
टेलीग्राम
टेलीग्राम इस तरह के रिपोर्ट पर कितनी जल्दी कार्रवाई करता है ये देखने के लिए बीबीसी की टीम ने 100 पोर्नोग्राफ़ी की तस्वीरों को इन-एप रिपोर्टिंग फ़ीचर से रिपोर्ट किया. एक महीने बाद भी इनमें से 96 तस्वीरें प्लेटफॉर्म पर एक्सेसेबल बनी रहीं. वहीं चार तस्वीरें प्राइवेट ग्रुप में अभी भी थीं जिन्हें एक्सेस नहीं कर पाएं.
इस पड़ताल के दौरान बीबीसी की टीम के साथ भी एक परेशान करने वाला वाकया हुआ, जहां रूस के एक अकाउंट से बीबीसी की टीम को टेलीग्राम पर चाइल्स पोर्नोग्राफ़ी एक कप कॉफ़ी से भी कम कीमत पर बेचने की कोशिश की गई.
ऐसे ही बच्चों के पोर्न से जुड़े एक वीडियो पर जब एप्पल ने अपने प्लेटफ़ॉर्म से टेलीग्राम को कुछ वक़्त के लिए हटा दिया था तब जाकर टेलीग्राम ने बच्चों के पोर्नोग्राफ़ी पर कुछ कदम उठाए.
प्लेटफॉर्म ने 2019 में यूरोपीय संघ की अपराध एजेंसी यूरोपोल के साथ मिलकर इस्लामिक स्टेट की एक बड़ी यूनिट को ख़त्म करने के लिए काम किया था.
लेकिन अंतरंग तस्वीरों को हटाना टेलीग्राम की प्राथमिकता नहीं मालूम होती है.
हमने नाम न छापने की शर्त पर पांच टेलीग्राम कंटेंट मॉडरेटर से बात की. उन्होंने हमें बताया कि वे एक ऑटोमेटेड सिस्टम के माध्यम से यूजर्स से रिपोर्ट प्राप्त करते हैं, जिसे वे "स्पैम" और "नॉट स्पैम नहीं" जैसे विकल्प चुन कर निपटा लेते हैं.
उन्होंने बताया कि वह इस तरह की तस्वीरों के लिए प्रो-एक्टिव सर्च नहीं करते, जहां तक उन्हें पता है टेलीग्राम भी ऐसे कंटेट के लिए एआई का इस्तेमाल नहीं करता है.
जोआना जब 13 साल की थीं तो उन्हें मलेशिया के टेलीग्राम पर अपनी न्यूड तस्वीर मिलीं.
उन्होंने एक फ़ेक अकाउंट बनाया, ग्रुप जॉइन करके अपनी तस्वीर रिपोर्ट की.
उन्होंने अपने दोस्तों से भी ये फ़ोटो रिपोर्ट करने को कहा.
मीडिया के दबाव के बीच, ग्रुप को अंततः बंद कर दिया गया. लेकिन अपनी पड़ताल के दौरान, हमने पाया कि कम से कम दो डुप्लीकेट ग्रुप एक ही तरह की तस्वीरें साझा कर रहे हैं.
जोआना कहती हैं, "कभी-कभी आप इतना असहाय महसूस करते हैं, क्योंकि हमने इन ग्रुपों को हटाने के लिए बहुत कुछ करने की कोशिश की है, लेकिन वे अभी भी सामने आ रहे हैं, इसलिए मुझे नहीं पता कि इसका कोई अंत है या नहीं."
टेलीग्राम ने बीबीसी को इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया, लेकिन एक बयान में उसने हमें बताया कि यह सार्वजनिक ग्रुप, चैनल की लगातार निगरानी करता है और कंटेंट के बारे में अगर कोई यूजर रिपोर्ट करता है तो उसे प्रोसेस किया जाता है.
टेलीग्राम पर कुछ सार्वजनिक चैनलों पर विज्ञापनों को रोलआउट कर रहा है इससे साफ़ है कि संस्थापक पावेल ड्यूरोव इससे एड के ज़रिए पैसे कमाने की मंशा रखते हैं.
इससे टेलीग्राम पर व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्रतिद्वंद्वियों के कदम मिलाने का दबाव बढ़ने की संभावना है. व्हाट्सएप ने अंतरंग तस्वीरें साझा करने के ख़िलाफ़ नीतियों को पेश करना शुरू कर दिया है.
ऐसे में देखना होगा कि टेलीग्राम कब तक इसे नज़रअंदाज़ करता रहेगा.
उन महिलाओं के लिए जिनकी ज़िंदगी टेलीग्राम पर आई तस्वीरों ने बदल दी हैं उनके लिए ये बदलाव अभी बहुत दूर है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 19 फरवरी| पाकिस्तान में सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री सैयद मुराद अली शाह ने शनिवार को कराची में सड़क पर अपराधों में वृद्धि के लिए देश की मौजूदा वित्तीय स्थिति को जिम्मेदार ठहराया। मुख्यमंत्री ने यह बात कराची में मीडिया के एक सवाल के जवाब में कही।
अपराध में वृद्धि के संभावित कारणों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि कई मामलों में ऐसी घटनाओं में शामिल लोगों को आर्थिक परिस्थितियां इस तरह के कार्यो का सहारा लेने के लिए मजबूर करती हैं।
उन्होंने कहा, "सड़क पर अपराध बढ़ने का एक कारण बिल्कुल स्पष्ट है, और वह है देश की वर्तमान वित्तीय स्थिति। लेकिन हम कोई बहाना नहीं ढूंढ रहे हैं, जिम्मेदारी हमारी है और हम इसे पूरा करेंगे।"
उन्होंने कहा कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हाल ही में कुछ उपाय किए गए थे, पुलिस को आवश्यक निर्देश दिए गए थे और उम्मीद है कि सुधार दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि सुरक्षित शहरों की परियोजना में तकनीकी सुधार भी अपने अंतिम चरण में हैं।
कराची में एक पत्रकार की हत्या के बारे में पूछे जाने पर, जिसे कथित स्नैचिंग के दौरान सशस्त्र लुटेरों ने गोली मार दी थी, सीएम शाह ने कहा कि तीन से चार अलग-अलग सुरागों पर काम किया जा रहा है और अपराधियों को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने कहा कि बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति देश के अधिकांश शहरों की समस्या है और केवल कराची तक ही सीमित नहीं है, जो एक प्रमुख शहर होने के कारण अधिक ध्यान आकर्षित करता है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 19 फरवरी| अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन पुलिस ने घोषणा की है कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के 1 मार्च को होने वाले पहले स्टेट ऑफ द यूनियन (एसओटीयू) संबोधन से पहले अतिरिक्त सुरक्षा की योजना बना रहे हैं। कड़ी सुरक्षा ऐसे समय पर निर्धारित की जा रही है, जब अमेरिका के पड़ोसी देश कनाडा में ट्रक चालकों द्वारा शुरू किए गए विरोध प्रदर्शन अब खत्म हो रहे हैं।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने कैपिटल पुलिस के हवाले से एक बयान में कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कानून प्रवर्तन एजेंसियां ट्रक काफिले की एक सीरीज की योजना से अवगत हैं, जो कि कांग्रेस के संयुक्त सत्र में बाइडेन के भाषण के समय के आसपास ही वाशिंगटन, डी. सी. आ रहे हैं।
होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (डीएचएस) ने हाल ही में राज्य और स्थानीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों को चेतावनी दी है कि कनाडा में ट्रक विरोध के समान प्रदर्शन अमेरिका के प्रमुख महानगरीय शहरों में भी शुरू हो सकते हैं।
ट्रक ड्राइवरों ने पिछले कुछ हफ्तों में कनाडा में देश के कोविड-19 प्रतिबंधों के खिलाफ शहर के यातायात और अमेरिका के साथ सीमा पार को अवरुद्ध करके विरोध प्रदर्शन किया है।
कनाडा की पुलिस ने शुक्रवार को प्रदर्शनकारियों को उस समय गिरफ्तार करना शुरू किया था, जब प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कानून प्रवर्तन अधिकारियों को नाकाबंदी को अवैध घोषित करने, ट्रकों को हटाने, ड्राइवरों को गिरफ्तार करने, उनके लाइसेंस निलंबित करने और उनके बैंक खातों को फ्रीज करने का अधिकार दिया था।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि प्रशासन अमेरिका में संभावित ट्रक विरोध से किसी भी प्रभाव या किसी भी सुरक्षा प्रभाव का लगातार आकलन कर रहा है।
कांग्रेस के सभी 535 सदस्यों के बाइडेन के एसओटीयू संबोधन में शामिल होने की उम्मीद है।
उन्हें पूरे समय मास्क पहनना होगा और आयोजन से पहले 24 घंटों के भीतर एक कोविड-19 निगेटिव रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
अमेरिकी राष्ट्रपतियों को देश के संविधान द्वारा स्टेट ऑफ यूनियन की कांग्रेस को जानकारी देना और उनके विचार के लिए ऐसे उपायों की सिफारिश करना आवश्यक है।
बाइडेन ने पिछले साल अप्रैल में कांग्रेस के एक संयुक्त सत्र में अपने विचार रखे थे, लेकिन राष्ट्रपति के दूसरे कैलेंडर वर्ष के कार्यकाल तक दी गई टिप्पणियों को स्टेट ऑफ द यूनियन एड्रेस यानी एक आधिकारिक संबोधन नहीं माना जाता है। (आईएएनएस)
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नस्ल के लोग रहते हैं, लेकिन डर्मेटोलॉजी की किताबों में नस्लीय प्रतिनिधित्व की कमी साफ तौर पर दिखती है. यह समस्या सिर्फ श्वेत आबादी वाले देशों में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है.
डॉयचे वैले पर क्लेयर रोथ की रिपोर्ट-
सीये एबिम्बोला 2000 के दशक की शुरुआत में नाइजीरिया में डॉक्टर बनने की ट्रेनिंग ले रहे थे. उस समय उनकी किताबों में त्वचा से जुड़ी जितनी भी तस्वीरें दी गई थीं सबका रंग गोरा था. उनकी ज्यादातर किताबें अमेरिका या ब्रिटेन से आई थीं, जहां चिकित्सा से जुड़ी तस्वीरों में गोरी नस्ल को दिखाया जाता है. जब डर्मेटोलॉजी की बात आई, तो एबिम्बोला पेज पर दिख रही तस्वीरों को हकीकत से नहीं जोड़ पा रहे थे. नाइजीरिया की लगभग पूरी आबादी अश्वेत है. वह, उनके सहपाठी और उनके शिक्षक सभी अश्वेत थे.
एबिम्बोला ने डॉयचे वेले को बताया, "इसके बाद मैंने भारतीय किताबें खरीदीं, क्योंकि मैं यह बात नहीं समझ पा रहा था कि गोरी त्वचा में कोई जख्म कैसा दिखता है और वह काली त्वचा में कैसा दिखता है. इसे लेकर उस किताब में कोई खास जानकारी नहीं दी गई थी. भारतीय किताब के जरिए इस बात को आसानी से समझा जा सकता था. हालांकि, मैंने उस समय इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा था."
अफ्रीका में एक जैसा अनुभव
दक्षिण अफ्रीका और युगांडा के त्वचा विशेषज्ञों को भी पढ़ाई के दौरान इसी तरह का अनुभव हुआ. दक्षिण अफ्रीका की डर्मेटोलॉजिस्ट नकोजा डलोवा भी जब पढ़ाई कर रही थीं, तो उनकी किताबों की भी ज्यादातर तस्वीरों में गोरी त्वचा दिखाई गई थी. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद समाप्त होने के कुछ समय बाद ही 1990 के दशक के अंत में डलोवा ने अपनी ट्रेनिंग पूरी की. वह देश की पहली अश्वेत त्वचा विशेषज्ञ बनीं.
वह कहती हैं, "उन तस्वीरों के जरिए पूरी बात को समझना हमारे लिए मुश्किल था, क्योंकि हमारे ज्यादातर मरीज अश्वेत हैं. अगर हमें बताया जाता है कि किसी व्यक्ति को सोरायसिस (त्वचा से जुड़ी बीमारी) है और उसके शरीर पर सैल्मन के रंग वाला धब्बा हो गया है, तो हमें आश्चर्य होगा. हमें तो पता भी नहीं कि यह धब्बा कैसा दिखता है. हमारे यहां आने वाले अश्वेत रोगियों में सोरायसिस की बीमारी होने पर ऐसा नहीं दिखता है. यह तस्वीर हमारे यहां के रोगियों के हिसाब से सही नहीं है."
वह आगे कहती हैं, "काली त्वचा से जुड़ी कीलॉइड और रंगहीनता जैसी सामान्य समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया था. जब उनके बारे में किताबों में जानकारी दी भी गई, तो काफी कम. यह इतनी कम जानकारी थी कि उसके सहारे किसी का इलाज करना भी संभव नहीं था."
दक्षिण अफ्रीका की एक अन्य डर्मेटोलॉजिस्ट सेबी सिबिसी ने भी पढ़ाई करते समय कुछ इसी तरह का अनुभव किया. वह कहती हैं कि उनकी किताबों में दिखाई गई 95 फीसदी तस्वीरें गोरी त्वचा की थीं. वह डॉयचे वेले को बताती हैं, "अश्वेत लोगों को हाइपरपिंग्मेंटेशन (त्वचा पर काले धब्बे) की काफी समस्या होती है. हमारे यहां लगभग हर दिन ऐसे मरीज आते हैं जो चेहरे के धब्बे, जांघ के नीचे गहरे काले धब्बे जैसी समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, लेकिन हमें नहीं पता कि इनका इलाज कैसे करना है. हमें इसके बारे में विश्वविद्यालय में कभी बताया ही नहीं गया."
कम प्रतिनिधित्व और शोषण
वर्ष 2021 के सितंबर महीने में एक जर्मन अध्ययन प्रकाशित हुआ है. इसके लिए जर्मन डॉक्टरों द्वारा पिछले चार वर्षों में जर्मन भाषा में प्रकाशित की गईं डर्मेटोलॉजी की 17 किताबों में छपीं 5,300 तस्वीरों का मूल्यांकन किया गया. जर्मन डॉक्टरों ने इन किताबों के जरिए त्वचा के अलग-अलग रंग के बारे में जानकारी देने के लिए फिट्जपैट्रिक फ्रेमवर्क का इस्तेमाल किया है.
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि 91 फीसदी तस्वीरों में गोरी त्वचा, 6 फीसदी में मध्यम या जैतून के रंग की त्वचा, और 3 फीसदी से भी कम में भूरी त्वचा दिखाई गई है. टाइप 6 वाले सबसे गहरे रंग की त्वचा वाली सिर्फ एक तस्वीर मिली. 2021 में एक अमेरिकी किताब का भी विश्लेषण किया गया था. उसके नतीजे भी इसी से मिलते-जुलते हैं. उसमें भी सिर्फ 14 फीसदी तस्वीरें गहरे रंग की त्वचा की थी.
डलोवा कहती हैं कि उन्होंने पढ़ाई करते समय शायद ही अपनी किताबों में गहरे रंग की त्वचा की कोई तस्वीर देखी थी. उन्होंने कहा कि यौन संचारित रोगों के बारे में पढ़ाई करते समय भी उनके लिए यह असामान्य बात नहीं थी. ये रोग भी सबसे पहले त्वचा को ही प्रभावित करते हैं.
सिफलिस यौन संचारित रोगों में से एक है. यह बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण है जो यौन संपर्क की वजह से फैलता है. इस रोग को लेकर हुए अमेरिकी शोध के दौरान अश्वेत लोगों का शोषण किया गया था. 1930 के दशक में अमेरिकी सरकार की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के डॉक्टरों ने इस बीमारी के बारे में जानने के लिए सैकड़ों अश्वेत पुरुषों पर प्रयोग किया. उस समय तक इस बीमारी के उपचार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इस अध्ययन को बाद में कुख्यात ‘टस्केगी सिफलिस एक्सपेरिमेन्ट' नाम दिया गया.
अगले 15 वर्षों में शोधकर्ताओं ने पाया कि पेनिसिलिन को सिफलिस के इलाज के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन अश्वेत पुरुषों को पेनिसिलिन की खुराक नहीं दी गई. डॉक्टर देखना चाहते थे कि यह बीमारी किस तरह इंसानों को मौत के मुंह में ले जाती है. 1970 के दशक की शुरुआत में एक रिपोर्टर ने इस प्रयोग का खुलासा किया. तब तक दो दर्जन से अधिक पुरुषों की मौत हो गई थी. कई अन्य पुरुष अपने परिवार के लोगों को भी इस बीमारी से ग्रसित कर चुके थे.
सिस्टम का असर
ऑस्ट्रेलिया में सिडनी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में स्वास्थ्य प्रणाली के शोधकर्ता और वरिष्ठ व्याख्याता एबिम्बोला ने कहा कि 1940 के दशक के अंत में अमेरिका में टस्केगी एक्सपेरिमेन्ट पर काम चल रहा था. इसी दौरान अंग्रेजों ने नाइजीरिया में पहला मेडिकल स्कूल स्थापित किया था.
एबिम्बोला ने डीडब्ल्यू को बताया, "उस समय औपनिवेशिक शासन था. स्कूल की स्थापना करने वालों ने अपने मुताबिक पाठ्यक्रम तैयार किया. वे चाहते थे कि इस स्कूल से पढ़ाई करने वाले डॉक्टर ब्रिटेन में प्रैक्टिस करें." इसका साफ मतलब था कि डॉक्टरों को नाइजीरिया के बजाय ब्रिटेन में होने वाली बीमारियों के इलाज के लिए तैयार किया गया था.
एबिम्बोला कहते हैं, "आप 1948 के नाइजीरिया और ब्रिटेन की कल्पना कर सकते हैं. आपको यह तय करना होगा कि आप डॉक्टर को किस लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं. अगर आप उन्हें ब्रिटेन में इलाज करने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं, तो इसका मतलब यह भी है कि आप नहीं चाहते कि वे नाइजीरिया में रोगियों का इलाज करें." उन्होंने कहा कि 1960 में देश को आजादी मिलने के बाद भी, नाइजीरियाई मेडिकल स्कूल में किस तरह ट्रेनिंग और पढ़ाई हो, इस तर्क ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
स्थानीय विशेषज्ञ की जरूरत
एक बार यूरोपीय डर्मेटोलॉजिस्ट से मुलाकात के दौरान डलोवा ने देखा कि उस डर्मेलॉजिस्ट को अफ्रीका के लोगों की त्वचा से जुड़ी सामान्य समस्याओं के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है. उसके पास कांगो का एक मरीज इलाज के लिए गया था. वहां का कर्मचारी इलाज के सिलसिले में मरीज का बायोप्सी करना चाहता था.
डलोवा ने इस बीमारी की पहचान तुरंत कर ली. वह बीमारी थी सारकॉइडोसिस. यह एक गंभीर बीमारी है जिससे त्वचा पर लाल या बैंगनी रंग के धब्बे उभर आते हैं. इससे त्वचा पर जख्म होने का खतरा बढ़ जाता है और त्वचा के नीचे दाना भी हो सकता है. डलोवा ने उनसे कहा, "यह सारकॉइडोसिस है. आपको बायोप्सी करने की जरूरत नहीं है."
डलोवा ने कहा कि मेडिकल जर्नल को त्वचा से जुड़ी इन समस्याओं के बारे में लिखने के लिए अफ्रीका के विशेषज्ञों को आमंत्रित करना चाहिए. वह कहती हैं, "उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति के पास नहीं जाना चाहिए जिसे इन सब के बारे में जानकारी नहीं है. उन्हें अमेरिकन या यूरोपीय डर्मेटोलॉजिस्ट की जगह इन बीमारियों के बारे में पूरी तरह जानकारी रखने वाले अफ्रीकी डर्मेटोलॉजिस्ट से मिलना चाहिए."
जब डलोवा, एबिम्बोला और सिबिसी मेडिकल स्कूल में थे, उस समय की तुलना में चीजें अब बदलने लगी हैं. डलोवा ने 2017 में ‘डर्मेटोलॉजी: अ कॉम्प्रिहेंसिव हैंडबुक फॉर अफ्रीका' नामक पुस्तक प्रकाशित की. साथ ही, वह ऐसे अंतरराष्ट्रीय दल का हिस्सा भी रह चुकी हैं जिसने 2019 में ऐसे जीन की खोज की जिससे यह समझने में मदद मिलती है कि अश्वेत महिलाओं के बाल क्यों झड़ते हैं.
नाइजीरियाई मेडिकल छात्र चिडीबेरे इबे की एक तस्वीर दिसंबर 2021 में वायरल हुई थी. इस चित्र में मां के गर्भ में अश्वेत बच्चे को दिखाया गया था. दुनिया भर के लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्होंने अपनी त्वचा के रंग को चिकित्सा के क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाली तस्वीर में देखा.
पिछले महीने इबे ने घोषणा की कि उन्होंने डर्मेटोलॉजी की ऑनलाइन किताब ‘माइंड इन गैप' की तस्वीरें बनाने की योजना बनाई है. इस किताब को 2020 में यूके में लॉन्च किया गया था. यह किताब ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर उपलब्ध उन संसाधनों में से एक है जिसमें पूरी तरह काली त्वचा से जुड़ी जानकारी दी गई है. (dw.com)
तेजी से बदलते मौसम, जंगल की आग और शहरों का शोरगुल हमें बीमार कर रहा है. पक्षियों को भी नुकसान पहुंचा रहा है. सिर्फ यूरोप में हर साल लाखों लोग हृदय रोग की चपेट में आ रहे हैं. आखिर इन समस्याओं से निपटने का क्या उपाय है?
डॉयचे वैले पर टिम शाउएनबेर्ग की रिपोर्ट-
संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि शहरों में होने वाला शोर हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी ज्यादा हानिकारक है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, यातायात, निर्माण स्थलों और अन्य स्रोतों से लगातार होने वाले शोर की वजह से बार्सिलोना और काहिरा से लेकर न्यूयॉर्क तक हर जगह, दुनिया भर के लोगों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय रोग और मानसिक बीमारी का खतरा बढ़ गया है.
ध्वनि प्रदूषण
सिर्फ यूरोप में, तेज और लगातार होने वाले शोर की वजह से हर साल 4,80,000 लोग हृदय रोग से प्रभावित हो रहे हैं और करीब 12,000 लोगों की असमय मौत हो रही है.
जानवरों की दुनिया में, ध्वनि प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा समस्या पक्षियों को हो रही है. जेब्रा फिंच, गौरैया और टिट जैसे पक्षी ऊंची आवाज में गा रहे हैं या ऊंची आवाज निकाल रहे हैं, ताकि अपने साथियों से बातचीत कर सकें. हालांकि, इस वजह से कई बार पक्षियों के बीच गलतफहमियां पैदा होती हैं. इससे नर पक्षी को मादा पक्षी खोजने में परेशानी होती है.
रिपोर्ट के लेखकों के मुताबिक, शहरों में ज्यादा से ज्यादा पेड़ और जंगल लगाने से ध्वनि प्रदूषण कम हो सकता है. इससे शोर भी कम होगा और जलवायु भी बेहतर होगी. उदाहरण के लिए, शोर को कम करने वाली दीवार के पीछे पंक्ति में पेड़ लगाने से शोर का स्तर करीब 12 डेसिबल तक कम हो सकता है.
साइकिल के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर और कार के इस्तेमाल को कम करके भी यातायात के शोर को कम किया जा सकता है. शहरों में ग्रीन जोन बनाने से इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा और हवा की गुणवत्ता बेहतर होगी.
प्रकृति के साथ छेड़छाड़
प्रवासी पक्षी अब सर्दियों में दक्षिण की ओर नहीं उड़ रहे हैं और पौधे समय से पहले फल दे रहे हैं. साथ ही, पक्षी समय से पहले ही अपने बच्चों के लिए घोंसले बना रहे हैं जबकि उस समय उनके पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए पर्याप्त कीड़े भी नहीं होते.
जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ वैश्विक स्तर पर औसत तापमान में वृद्धि हुई है, बल्कि हजारों वर्षों से स्थापित जीवन चक्र को भी नुकसान पहुंच रहा है. पहाड़ी इलाकों से लेकर तटीय क्षेत्रों, जंगलों और घास के मैदान तक कोई भी जगह इन बदलावों से अछूता नहीं है. पेड़-पौधे से लेकर इंसान और पक्षी तक इस बदलाव से प्रभावित हो रहे हैं.
जिस गति से धरती गर्म हो रही है उस गति से पशु और पेड़-पौधे बढ़ते तापमान के साथ सामंजस्य नहीं बैठा सकते. इससे यह खतरा तेजी से बढ़ रहा है कि जमीन और समुद्र के सभी पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो सकते हैं. इससे इंसानों को अप्रत्याशित स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है.
जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने के लिए, हमें उत्सर्जन में काफी ज्यादा और तेजी से कटौती करनी चाहिए. शोधकर्ताओं का कहना है कि जीवन चक्र में बदलाव से निपटने के लिए, अलग-अलग प्रजातियों की रक्षा करनी होगी. पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना होगा. साथ ही, वन्यजीव गलियारा बनाना होगा. यह एक मात्र तरीका है कि अलग-अलग प्रजातियां धरती पर मौजूद रहें और उन्हें यह मौका मिल सके कि वे प्राकृतिक वातावरण में रहते हुए नई परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठा सकें.
जंगल की आग
जंगल में आग लगना मौसम के हिसाब से स्वाभाविक घटना है. हालांकि, गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ने, तेज गर्मी और सूखा पड़ने से जंगलों में लंबे समय तक आग लग रही है. साथ ही, आग लगने की संभावना भी बढ़ रही है.
पिछले साल कैलिफोर्निया और साइबेरिया से लेकर तुर्की और ऑस्ट्रेलिया तक के जंगलों को आग ने नष्ट कर दिया. आग लगने की वजह से आसपास के शहरों की हवा की गुणवत्ता पूरी तरह खराब हो गई. कई दिनों तक लोगों का घर से बाहर निकलना बंद हो गया. काफी ज्यादा मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ.
जंगल की आग भी जल प्रदूषण, समुद्री जीवन और जैव विविधता के नुकसान का कारण बन सकती है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, कुछ एहतियाती उपाय जंगल की आग और उससे होने वाले नुकसान को कम करने में मदद कर सकते हैं. पड़ोसी इलाकों के बीच बेहतर सहयोग, उपग्रह से निगरानी, आकाशीय बिजली गिरने का पूर्वानुमान, बेहतर पूर्वानुमान प्रणाली और अग्निशामक क्षमता से काफी मदद मिल सकती है.
विशेषज्ञ आग से निपटने के पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करने की भी सलाह देते हैं. जंगलों में छोटी-छोटी झाड़ियों को नियंत्रित तौर पर जलाने से जंगल में लंबे समय तक लगने वाली आग को कम किया जा सकता है, क्योंकि ये छोटी-छोटी झाड़ियां ही आग को दूर-दूर तक फैलाने और इंधन का काम करती हैं. कुछ पारिस्थितिकी तंत्र में आग के फायदे भी हो सकते हैं, क्योंकि कुछ फूल और पौधे तभी उगते हैं जब उनके बीज आग से गर्म होते हैं. (dw.com)
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रुटे ने युद्ध अपराधों के लिए इंडोनेशिया से माफी मांगी है. क्षमा इंडोनेशिया के स्वतंत्रता आंदोलन को बर्बरता से कुचलने के लिए मांगी है.
इंडोनेशिया 17वीं शताब्दी से लेकर 1949 तक नीदरलैंड्स के अधीन रहा. लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नीदरलैंड्स खुद जर्मनी के नियंत्रण में आ गया. ऐसे में हजारों किलोमीटर दूर इंडोनेशिया को कंट्रोल में रखना उसके लिए मुश्किल होने लगा. जापान ने इस स्थिति का फायदा उठाया और इंडोनेशिया में आजादी के आंदोलन को हवा देनी शुरू की. 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका के परमाणु हमले के बाद एशिया में दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो गया. जापान के राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया.
जापानी राजा के आत्मसमर्पण के दो दिन बाद 17 अगस्त 1945 को इंडोनेशिया के नेताओं ने आजादी का एलान कर दिया. लेकिन विश्वयुद्ध में जापान की हार का फायदा उठाकर नीदरलैंड्स की सेना ने इंडोनेशिया को फिर से नियंत्रण में लेने की कोशिश की. और इस तरह इंडोनेशिया में आजादी का युद्ध शुरू हो गया. स्वतंत्रता के इस युद्ध को डच फौजों ने बर्बर तरीके से कुचलने की कोशिश की.
अनुमानों के मुताबिक इस संघर्ष में 45 हजार से लेकर एक लाख स्वतंत्रता सेनानियों की मौत हुई. मरने वाले आम लोगों की संख्या 25 हजार से एक लाख तक आंकी जाती हैं. 1949 में इंडोनेशिया के आजाद होने के बाद भी नीदरलैंड्स में यही आम धारणा रही कि फौज सिर्फ छिटपुट संघर्ष में शामिल रही और सैन्य कार्रवाइयों का मकसद सिर्फ उपनिवेश पर नियंत्रण बनाए रखना था.
तीन रिसर्च इंस्टीट्यूटों का शोध
अब नीदरलैंड्स में इतिहास पर काम करने वाले तीन रिसर्च इंस्टीट्यूटों के शोध ने इस धारणा को तोड़ा है. चार साल लंबी रिसर्च के बाद प्रकाशित शोध में दावा किया गया है कि नीदरलैंड्स के सैनिकों ने तत्कालीन डच ईस्ट इंडीज (इंडोनेशिया का औपनिवेशिक नाम) में योजनाबद्ध तरीके से बर्बरता को अंजाम दिया. शोध कहता है, "डच सशस्त्र बलों की चरम हिंसा सिर्फ व्यापक ही नहीं थी बल्कि ये अक्सर जानबूझकर की गई कार्रवाई होती थी."
रिसर्चरों के मुताबिक, रिसर्च दिखाती है कि डच पक्ष में ऐसे कई लोग हैं जो इसके जिम्मेदार हैं. इनमें राजनेता, अधिकारी, सरकारी कर्मचारी, जज और अन्य भी शामिल हैं, इन्हें योजनाबद्ध तरीके से हो रही उस बर्बर हिंसा की भनक या जानकारी थी. इस हिंसा को राजनीतिक, सैन्य और कानूनी, हर स्तर पर नजरअंदाज किया गया. रिसर्चर कहते हैं, "इन वारदातों को बिना सजा के नजरअंदाज करने, जायज ठहराने और छुपाने के पीछे एक सामूहिक सोच थी. यह सब कुछ एक बड़े लक्ष्य के लिए हो रहा था: वो था युद्ध जीतना."
शोध के रिव्यू में साफ लिखा गया है कि, "गैर न्यायिक कार्रवाइंया, बदसलूकी और यातनाएं, अमानवीय परिस्थितियों में हिरासत में रखना, घरों और गांवों में आग लगाना, संपत्ति और भोजन आपूर्ति को चुराना और बर्बाद करना, हवाई हमले और गोलीबारी करना और अकसर बड़ी संख्या में गिरफ्तारी और नजरबंदी, ये सब बहुत आम था." रिसर्चरों के मुताबिक डच सेना के अपराधों और उनका शिकार बने पीड़ितों की सटीक संख्या जुटाना अब नामुमकिन है.
डच सेना का हिस्सा रहे चुके एक भूतपूर्व फौजी ने 1969 में पहली बार इन युद्ध अपराधों का खुलासा किया. उस खुलासे के दशकों बाद भी नीदरलैंड्स की सरकारें लगातार युद्ध अपराध के आरोपों से इनकार करती रहीं. सरकारों ने हमेशा यही तर्क दिए कि हमले गिने चुने थे और पूरी तस्वीर को देखें तो सेना का व्यवहार सही था. शोध साफ कहता है कि यह धारणा बिल्कुल गलत है.
क्षमा मांगते हुए प्रधानमंत्री ने क्या कहा?
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री रुटे ने सिर्फ अतीत की बर्बरता के लिए ही माफी नहीं मांगी, बल्कि अब तक डच सरकार द्वारा इन तथ्यों को स्वीकार न करने के लिए क्षमा मांगी. पीएम मार्क रुटे ने कहा, "उन बरसों में डच पक्ष की तरफ से की गई योजनाबद्ध और व्यापक बर्बरता के लिए और पुरानी सरकारों द्वारा लगातार इसे नजरअंदाज किए जाने के लिए, मैं तहेदिल से इंडोनेशिया के लोगों से माफी मांगता हूं."
रुटे ने कहा कि शोध में सामने आने वाले तथ्य असहज करने वाले हैं, लेकिन इन्हें स्वीकार करना होगा, सरकार "सामूहिक नाकामी" की पूरी जिम्मेदार लेती है.
यह पहला मौका नहीं है जब नीदरलैंड्स ने इंडोनेशिया से माफी मांगी हो, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब डच सरकार ने यह स्वीकार किया है कि इंडोनेशियाई लोगों को साथ जानबूझकर और एक सिस्टम बनाकर बर्बरता की गई. इससे पहले मार्च 2020 में डच राजा किंग विलियम-आलेक्जांडर ने भी डच सेना की बर्बरता के लिए माफी मांगी. 2016 में नीदरलैंड्स के तत्कालीन विदेश मंत्री ने भी डच सेना द्वारा इंडोनेशिया के एक गांव में 400 लोगों के जनसंहार के लिए माफी मांगी.
ओएसजे/एके (रॉयटर्स, डीपीए, एएफपी, एपी)
एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में खुद को एलजीबीटी मानने वाले वयस्कों की संख्या 7.1 प्रतिशत हो गई है. 2012 के मुकाबले यह आंकड़ा दोगुना हो गया है और यह एक तरह से पीढ़ीगत बदलाव है.
ये आंकड़े सर्वेक्षण करने वाली कंपनी गैलप के हैं. कंपनी ने 2012 में ही इन आंकड़ों को इकट्ठा करना शुरू किया था. ताजा सर्वेक्षण के नतीजों पर कंपनी ने एक बयान में कहा, "युवा अब वयस्क हो रहे हैं और अपनी लैंगिकता और अपनी पहचान को भी समझ रहे हैं, और यह समय भी ऐसा है जब अमेरिका में समलैंगिक और ट्रांसजेंडर लोगों की स्वीकार्यता बढ़ रही है. सभी तरह के एलजीबीटी लोगों को कानूनी संरक्षण भी मिल रहा है."
गैलप फोन पर किए गए सर्वेक्षणों के दौरान जनसंख्या से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करती है. कंपनी इन सर्वेक्षणों में लोगों से यह भी पूछती है कि क्या वो खुद को स्ट्रेट, लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर या हेट्रोसेक्सुअल के अलावा और कुछ महसूस करते हैं.
पीढ़ीगत बदलाव
जवाब देने वाले दूसरी कोई लैंगिक अनुस्थिति या पहचान के बारे में भी बता सकते हैं. 2021 के सर्वेक्षण में 12,000 लोगों से बात की गई थी और उनमें से 86.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो स्ट्रेट या हेट्रोसेक्सुअल हैं. 6.6 प्रतिशत लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया.
2012 में जब सर्वेक्षण शुरू हुआ था तब खुद को एलजीबीटी बताने लोग 3.5 प्रतिशत थे और तब से यह संख्या लगातार बढ़ ही रही है. आंकड़ों को और बारीकी से देखने पर पता चलता है कि कम उम्र के वयस्कों में खुद को एलजीबीटी मानने वाले लोग ज्यादा हैं.
कुल मिला कर 1997 से 2003 के बीच जन्मे जनरेशन जेड के युवाओं में 20.8 प्रतिशत यानी हर पांच में से एक व्यक्ति एलजीबीटी है. 1981 से 1996 के बीच जन्मे मिलेनियलों में यह आंकड़ा आधा, यानी 10.5 प्रतिशत है.
1965 से 1980 के बीच जन्मे जनरेशन एक्स के लोगों में यह आंकड़ा 4.2 प्रतिशत है. 1946 से 1964 के बीच जन्मे बेबी बूमर लोगों के बीच यह आंकड़ा 2.6 प्रतिशत और 1946 से पहले जन्मे परंपरावादी लोगों में 0.8 प्रतिशत है.
हर श्रेणी की जानकारी
2017 तक जनरेशन जेड का आंकड़ा सात प्रतिशत था लेकिन जैसे जैसे ये लोग वयस्क हुए 2021 तक यह आंकड़ा बढ़ कर 12 प्रतिशत हो गया. जब से सर्वेक्षण शुरू हुआ है तब से परंपरावादियों, बूमरों, और जनरेशन एक्स के बीच खुद को एलजीबीटी मानने वालों की संख्या स्थिर है. बस मिल्लेनियलों में इस संख्या में थोड़ी सी बढ़ोतरी देखी गई है.
गैलप ने बयान में कहा, "यह ट्रेंड अगर जनरेशन जेड के बीच जारी रहा तो उस पीढ़ी में खुद को एलजीबीटी बताने वाली लोगों की संख्या तब और बढ़ जाएगी जब पीढ़ी के सभी युवा वयस्क हो जाएंगे.
इस बार पहली बार सर्वेक्षण में हर एलजीबीटी श्रेणी में भी लोगों की गणना की गई. 57 प्रतिशत यानी आधे से ज्यादा एलजीबीटी लोगों ने बताया कि वो बाइसेक्सुअल हैं. यह अमेरिका की कुल वयस्क आबादी के चार प्रतिशत के बराबर है.
इसके बाद अगले स्थान पर हैं गे (21 प्रतिशत), लेस्बियन (14 प्रतिशत) और ट्रांसजेंडर (10 प्रतिशत). चार प्रतिशत एलजीबीटी क्वियर या समलैंगिक प्रेमी जैसी किसी दूसरी श्रेणी में हैं.
सीके/एए (एएफपी)
इस समय तनावग्रस्त क्षेत्र से पुख़्ता जानकारी हासिल करने में स्वाभाविक समस्याएं हैं. ऐसे में विरोधी पक्ष की ओर से किए जाने वाले दावों को संदेह के साथ देखे जाने की ज़रूरत है.
यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में तनाव बढ़ने के बाद एक दूसरे पर लगाए जा रहे आरोप असल गोलाबारी से कम अहम नहीं हैं.
यूक्रेन के लुहांस्क में स्थित नर्सरी स्कूल पर गोले दागे जाने की हालिया घटना उस बर्बरता को रेखांकित करता है जिसे कीव के अधिकारी 'रूसी आक्रामकता' के रूप में परिभाषित करते हैं.
वहीं, रूसी सरकार यूक्रेन पर हमला करने का इरादा रखने से इनकार कर रहा है. लेकिन मीडिया मैसेजिंग को देखें तो ऐसा लगता है कि यह इस पक्ष में आम राय बनाने की दिशा में काम कर रही है.
इसमें यूक्रेन पर रूस समर्थित अलगाववादियों द्वारा कब्जाई ज़मीन पर बड़ा हमला करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है जिसमें संभवत: बेगुनाह लोगों को निशाना बनाया जाएगा.
रूस के टीवी दर्शकों को ये लग सकता है कि यूक्रेन में रहने वाले अपने लोगों को बचाना रूस का नैतिक कर्तव्य है.
इस प्रक्रिया में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या रूस उस अत्याचार के बारे में लोगों को बताएगा जिसकी वह चेतावनी दे रहा है, और अगर ऐसा होगा तो वह कब बताएगा.
अमेरिकी अधिकारियों ने बताया है कि यह एक फॉल्स फ़्लैग ऑपरेशन हो सकता है जिसे रूस द्वारा अंजाम दिया जाएगा जिससे यूक्रेन पर हमला करने का बहाना मिल सके.
डोनबास में हालिया तनाव के बावजूद अब तक इस हद को पार नहीं किया गया है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 18 फरवरी | भारत के कुछ हिस्सों में हिजाब को लेकर जारी विवाद का लाभ उठाते हुए, पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्री नूरुल हक कादरी ने प्रधानमंत्री इमरान खान से 8 मार्च (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस) को अंतर्राष्ट्रीय हिजाब दिवस घोषित करने का अनुरोध किया है। उन्होंने यह दावा किया है कि देश भर में औरत मार्च आयोजित किया गया था। डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, यह दिन इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ जाता है।
कादरी ने खान को एक संयुक्त राष्ट्र-नामित अंतर्राष्ट्रीय दिवस की स्थिति को बदलने के लिए एक प्रतिगामी उपाय का सुझाव देते हुए लिखा, जिसका उद्देश्य 'महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों' का जश्न मनाना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जब महिला अधिकार आंदोलन न केवल पाकिस्तान में बल्कि दुनिया भर में लिंग आधारित अपराधों और अन्याय के मद्देनजर गति पकड़ रहा है।
9 फरवरी को लिखे गए पत्र में लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि सामाजिक अन्याय और सुरक्षा के लिए कानूनों के कार्यान्वयन की कमी पर प्रकाश डालने के लिए दुनिया भर में रैलियों और कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था।
हालांकि, बाद में यह कहा गया कि पाकिस्तान में, औरत मार्च पूरे देश में आयोजित किए गए थे जहां प्रतिभागियों ने नारे लगाए और इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ जाने वाले तख्तियां और बैनर ले लिए।
मंत्री ने लिखा, "हम सभी स्वीकार करते हैं कि इस्लाम जीवन का एक पूर्ण कोड प्रदान करता है और इसका कोई विकल्प नहीं है। किसी भी संगठन को औरत मार्च या किसी अन्य पर इस्लामी मूल्यों, समाज के मानदंडों, हिजाब या मुस्लिम महिलाओं की विनम्रता पर सवाल उठाने या उपहास करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इन कृत्यों से देश में मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंची है।"
कादरी ने प्रधानमंत्री से 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय हिजाब दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया है, जिसमें प्रस्ताव दिया गया है कि इस अवसर का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मुसलमानों के साथ भारत के व्यवहार की जाँच करने और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए किया जाए।
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, इस दिन का इस्तेमाल दुनिया भर की मुस्लिम महिलाओं के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए भी किया जा सकता है, जो अपनी धार्मिक स्वतंत्रता और बुनियादी मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करती हैं।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 फरवरी | एक जनमत सर्वेक्षण में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की लोकप्रियता में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जिससे यह भी पता चला है कि विपक्षी पीएमएल-एन सुप्रीमो नवाज शरीफ पंजाब प्रांत में 58 फीसदी, खैबर पख्तूनख्वा (केपी) 46 फीसदी और सिंध में 51 फीसदी के साथ लोकप्रियता रेटिंग में आगे चल रहे हैं। द न्यूज की रिपोर्ट में यह जानकारी मिली।
गैलप पाकिस्तान द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, केपी में खान लोकप्रियता में 44 प्रतिशत के साथ दूसरे और सिंध और पंजाब में 33 प्रतिशत लोकप्रियता के साथ तीसरे स्थान पर थे।
22 दिसंबर, 2021 से 31 जनवरी, 2022 तक किए गए इन ओपिनियन सर्वे में पीएमएल-एन सुप्रीमो नवाज शरीफ, खान, पीएमएल-एन के अध्यक्ष शहबाज शरीफ और पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी की लोकप्रियता के बारे में देश भर के 5,000 लोगों के विचार मांगे गए।
खैबर पख्तूनख्वा में शहबाज शरीफ की लोकप्रियता 43 फीसदी रही, जबकि बिलावल भुट्टो जरदारी और आसिफ अली जरदारी की लोकप्रियता 24 फीसदी रही।
केपी में खान के साथ संतुष्टि के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई जो फरवरी 2020 में 67 प्रतिशत से घटकर वर्तमान सर्वेक्षण में 44 प्रतिशत हो गई, जबकि बिलावल भुट्टो जरदारी की 26 प्रतिशत से 24 प्रतिशत तक गिर गई।
हालांकि, नवाज शरीफ के मामले में, उनकी अनुमोदन रेटिंग 33 प्रतिशत से बढ़कर 46 प्रतिशत और केपी में शहबाज शरीफ की 31 प्रतिशत से बढ़कर 43 प्रतिशत हो गई।
गैलप पाकिस्तान के अनुसार, यह पहली बार था जब पूर्व प्रधानमंत्री की लोकप्रियता दिसंबर 2018 के बाद बढ़ी और नवाज शरीफ ने शहबाज शरीफ के समान रेटिंग हासिल की।
लेकिन खान की लोकप्रियता जो 2018 में बढ़कर 51 फीसदी हो गई, वह अब घटकर 33 फीसदी रह गई है। जबकि पीपीपी चेयरमैन का पद 18 फीसदी से बढ़कर 24 फीसदी हो गया। (आईएएनएस)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के सह संस्थापक रहे बिल गेट्स के साथ मुलाक़ात की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है.
इस तस्वीर को शेयर करते हुए पीएम ख़ान ने लिखा है-“मेरे निमंत्रण पर पाकिस्तान आए बिल गेट्स का स्वागत करते हुए बहुत खुशी हुई. उनके हिस्से कई उपलब्धियां हैं लेकिन दुनियाभर में उन्हें उनके परोपकार से जुड़े कामों के लिए सराहा जाता है.”
इमरान ख़ान ने आगे लिखा है कि मैं अपनी और अपने देश की ओर से पोलियो को जड़ से समाप्त करने और ग़रीबी को मिटाने के लिए उनकी पहला और उनके योगदान के लिए धन्यवाद देता हूं.
दूसरी ओर बिल गेट्स ने भी इमरान ख़ान के साथ एक फ़ोटो शेयर की है.
उन्होंने लिखा है-“इमरान ख़ान को धन्यवाद.पाकिस्तान में पोलियों को ख़त्म करने के लिए उठाए गए क़दमों पर एक अच्छी और उपयोगी बातचीत हुई. मैं पोलियो उन्मूलन के लिए उनके देश की प्रतिबद्धता से काफी उत्साहित हूं.”
टीकाकरण की वजह से दुनिया के ज़्यादातर इलाक़ों से इस बीमारी को मिटाने में कामयाबी मिली है.
आज की तारीख़ में केवल दो देशों में पोलियो के मरीज़ पाए जाते हैं. पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान.
पाकिस्तान में पोलियो से मुक्ति का अभियान कमोबेश पटरी पर ही है लेकिन इस बात से इनक़ार भी नहीं कर सकते हैं कि यहां टीके को लेकर एक वर्ग अभी भी संदेह करता है.
साल 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान जारी कर के कहा था, "हम इस बात से बहुत चिंतित हैं कि पोलियो के ख़िलाफ़ पाकिस्तान की लड़ाई ग़लत दिशा में जा रही है." (bbc.com)