अंतरराष्ट्रीय
चीन में ऐसे गिनती के खिलाड़ी हैं, जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपनी लैंगिकता को स्वीकार किया है.वहां एलजीबीटीक्यू खिलाड़ियों को तभी तक बर्दाश्त किया जाता है, जब तक वे इस बात को खुद तक सीमित रखें.
डॉयचे वैले पर श्टेफान नेस्टलर की रिपोर्ट
ली यिंग 'स्टील रोजेज' टीम में वापस आ गई हैं. चीन की राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टीम की पहली नेशनल महिला कोच शुई किंगशिया ने 29 साल की स्ट्राइकर यिंग को भारत में आयोजित हो रहे एएफसी विमेन्स एशियन कप के लिए टीम में शामिल किया है.
पहली नजर में यह कोई बड़ी बात नहीं है. यिंग ने 2018 के टूर्नामेंट में पांच मैचों में सात गोल किए थे और गोल्डन बूट भी जीता था. 2019 में फ्रांस में हुए वर्ल्ड कप में स्टील रोजेज ने जो इकलौता गोल किया था, वह यिंग ने ही किया था. ग्रुप स्टेज के उस मैच में चीन ने दक्षिण अफ्रीका को 1-0 से हराया था.
लेकिन, चीन की राष्ट्रीय टीम के लिए खेले 100 मैचों में 30 गोल करने के बावजूद यिंग को पिछले साल टोक्यो ओलंपिक से पहले टीम से बाहर कर दिया गया था. कयास लगाए गए कि शायद इसके पीछे उनका अपनी पूरी असली पहचान जाहिर करना हो सकता है.
असली पहचान के साथ सामने आईं यिंग
ओलिंपिक के उद्घाटन समारोह से कुछ दिनों पहले यिंग ने एक पोस्ट लिखी थी, जो वायरल हो गई थी. इस पोस्ट में यिंग ने चीन के वीबो प्लेटफॉर्म पर इन्फ्लूएंसर चेन लीली के प्रति अपने प्रेम को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था. अपने रिश्ते की पहली सालगिरह पर उन्होंने लिखा था, "तुम मेरी सारी कोमलता की स्रोत हो और यह तुम्हारे लिए है".
इसके बाद चीन के चर्चित फुटबॉल पत्रकार और ब्लॉगर ने लिखा था, "यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि समलैंगिक भी महिला फुटबॉल टीम का हिस्सा हैं, लेकिन ली यिंग अपनी लैंगिकता और अपनी गर्लफ्रेंड को सार्वजनिक रूप से स्वीकारने की हिम्मत दिखाने वाली पहली खिलाड़ी हैं. मैं उनके इस साहस के लिए उन्हें बधाई देता हूं."
लेकिन यिंग को मिली सभी प्रतिक्रियाएं सकारात्मक नहीं थीं. कुछ तो बेहद होमोफोबिक यानी समलैंगिकों के प्रति घृणा और भय से भरी हुई थीं. यिंग के सोशल मीडिया पर उनका मेसेज पोस्ट करने के कुछ ही देर बाद यह गायब हो गया. क्या ऐसा किसी बाहरी दबाव में किया गया था?
'हां, मैं गे हूं'
चीन में जिन महिला और पुरुष खिलाड़ियों ने अपने समलैंगिक होने की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की है, उनकी संख्या इतनी कम है कि उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है. ली यिंग के बाद पिछले साल सितंबर में वॉलीबॉल टीम की स्टार सुन वेनजिंग ने अपना समलैंगिक होना स्वीकार किया. हालांकि, वह दो साल पहले ही अपने खेल जीवन से संन्यास ले चुकी थीं.
2018 में प्रोफेशनल सर्फर शू जिंगसेन चीन के पहले पुरुष खिलाड़ी थे, जिन्होंने गे होना स्वीकार किया था. उन्होंने तब पैरिस में आयोजित होने जा रहे गे गेम्स में हिस्सा लेने की इच्छा जाहिर करते हुए वीबो पर अपनी समलैंगिकता का एलान किया था. शू ने लिखा था, "हां, मैं गे हूं. हमें अपना प्रेम चुनने और प्रेम किए जाने का अधिकार है. लिंग, उम्र और त्वचा का रंग कोई बेड़ियां नहीं हैं." इसके साथ उन्होंने इंद्रधनुषी झंडे के आगे सर्फबोर्ड पर अपनी तस्वीरें साझा की थीं.
इसके बाद शू ने पैरिस में हुए खेलों में शिरकत की थी. अगले गे गेम्स 2022 में हांग कांग में होने थे, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से इन्हें नवंबर 2023 तक के लिए आगे बढ़ा दिया गया है. ताइवान के गे खिलाड़ी पहले ही अपनी सुरक्षा का हवाला देते हुए इन खेलों में हिस्सा लेने से इनकार कर चुके हैं.
सोशल मीडिया अकाउंट ब्लॉक होना
2019 में ताइवान समलैंगिक शादियों को मान्यता देने वाला एशिया का पहला देश बन गया था, लेकिन चीन में इस पर प्रतिबंध है. यौन विविधता को सभी कम्युनिस्ट शासकों के दौर में बर्दाश्त किया जाता रहा है, लेकिन सिर्फ तभी तक, जब तक लोग अपनी लैंगिकता अपने तक सीमित रखें.
यौन विविधता को सार्वजनिक तौर पर जाहिर करने की किसी भी गतिविधि को विरोध का सामना करना ही पड़ता है. शंघाई प्राइड चीन के सबसे पुराने और बड़े एलजीबीटीक्यू आयोजनों में से एक था. इसमें साइकल से परेड निकाली जाती थी, लोग पैदल निकलते थे. पार्टियां और प्रदर्शनियां आयोजित की जाती थीं, लेकिन 2020 में इसे बंद कर दिया गया था.
इससे पहले भी ऐसे आयोजनों को सरकारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता रहा है. जुलाई 2021 में नागरिक मामलों के मंत्रालय ने सैकड़ों एलजीबीटीक्यू वेबसाइटों और सोशल मीडिया अकाउंट्स को बंद कर दिया था और हटा दिया था. इनमें से ज्यादातर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले लोग थे.
सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' के संपादक हू शीजिन ने सरकार के फैसलों का बचाव करते हुए अपने ब्लॉग में लिखा, "इस मुद्दे पर चीन का पूरी दुनिया में सिरमौर बनना नामुमकिन है. कुछ मामलों में हमारा रूढ़िवादी होना अपरिहार्य है और उचित भी है."
सतर्क हो गया है एलजीबीटीक्यूसमुदाय
प्रशासन का चाबुक देखते हुए एलजीबीटीक्यू समुदाय सावधान भी हो गया है. गुमनामी की शर्त पर चीन के एक एलजीबीटीक्यू ऐक्टिविस्ट डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "जब से प्रशासन ने कॉलेजों में एलजीबीटीक्यू अधिकारों का समर्थन करने वाले संगठनों पर डंडा चलाना शुरू किया है, तब से हम और ज्यादा सावधान हो गए हैं और एलजीबीटीक्यू से जुड़ा कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं कर रहे हैं."
वह कहते हैं, "निश्चित तौर पर सरकार ने एलजीबीटीक्यू संगठनों पर अपना रुख और नियंत्रण कड़ा कर लिया है, लेकिन समुदाय के सदस्य इवेंट आयोजित करने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे. हम चीन के नए माहौल में खुद को ढाल रहे हैं. अब हम ज्यादा बुद्धिमानी से कदम उठा रहे हैं." (dw.com)
दार एस सलाम, 21 जनवरी | तंजानिया के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि नए संक्रमणों को नियंत्रित करने के लिए कम से कम 200,000 अपंजीकृत एचआईवी रोगियों का पता लगाने की योजना है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य, सामुदायिक विकास, लिंग, वरिष्ठ और बच्चों के मंत्री उम्मी मवालिमु ने कहा कि वर्तमान में तंजानिया में 1.7 मिलियन एचआईवी रोगी हैं, लेकिन केवल 1.5 मिलियन पंजीकृत हैं, जिनमें से 200,000 अपंजीकृत हैं।
म्वालिमु ने कहा कि हमें उन 200,000 अपंजीकृत एचआईवी रोगियों का पता लगाना है जो नए संक्रमणों के प्रसार में आसानी से योगदान दे सकते हैं।
उन्होंने कहा कि 200,000 एचआईवी रोगियों का पता उन परीक्षणों के माध्यम से लगाया जा सकता है जो कि गांव स्तर, वार्ड स्तर से जिला स्तर तक किए गए हो, और कहा कि सरकार का इरादा 2030 तक एचआईवी को खत्म करना है। (आईएएनएस)
सियोल, 21 जनवरी | सियोल में हजारों बौद्ध भिक्षुओं ने शुक्रवार को एक रैली की, जिसमें राष्ट्रपति मून जे-इन से मांग की गई कि वे सरकार के 'बौद्ध विरोधी पूर्वाग्रह' के लिए माफी मांगें। दरअसल, एक सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद ने मंदिरों पर पर्यटकों से राष्ट्रीय उद्यानों में प्रवेश शुल्क इक्ठ्ठा करने का आरोप लगाया है। समाचार एजेंसी योनहाप की रिपोर्ट के अनुसार, सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के विधायक, जंग चुंग-राय, दक्षिण कोरिया के सबसे बड़े बौद्ध संप्रदाय जोग्ये ऑर्डर की आलोचनाओं के दौर से गुजर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने सांस्कृतिक संपत्ति देखने के शुल्क इक्ठ्ठा करने वाले मंदिरों की तुलना एक प्रसिद्ध ठग से की है।
राष्ट्रीय उद्यानों में स्थित मंदिरों ने सभी पार्क के पर्याटकों से फीस में प्रति व्यक्ति 3,000-4,000 लिए हैं, चाहे वे मंदिरों में जाते हों या नहीं।
मंदिरों का तर्क है कि वे इस तरह की फीस के हकदार हैं क्योंकि पैसे का उपयोग मंदिर की संपत्ति और पार्कों के अंदर मंदिरों से संबंधित निजी क्षेत्रों की देखभाल के लिए किया जाता है।
मध्य सियोल में जोग्ये ऑर्डर के मुख्यालय में आयोजित शुक्रवार की रैली ने ध्यान आकर्षित किया क्योंकि यह ऐसे समय में आया जब राष्ट्रपति पद की दौड़ इस अटकल के बीच गर्म हो रही थी कि बौद्धों में सरकार विरोधी भावना सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार ली जे-म्युंग की संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है।
यह 28 वर्षों में पहली बार चिह्न्ति हुआ है कि जोग्ये ऑर्डर ने 1994 में संप्रदाय के सुधार के लिए आयोजित की गई रैली के बाद से बौद्ध भिक्षुओं के राष्ट्रीय सम्मेलन के नाम पर देश भर से मोंक की एक बड़ी रैली का आयोजन किया है।
रैली से पहले जारी एक बयान में, जोग्ये ऑर्डर और प्रतिभागियों ने राष्ट्रपति मून की माफी, बौद्ध धर्म के खिलाफ और धार्मिक पूर्वाग्रह को रोकने के लिए कानूनों के अधिनियमन और राष्ट्रीय विरासत को संरक्षित करने के उपायों के बारे में कहा है। (आईएएनएस)
जिनेवा, 21 जनवरी | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक ट्रेडोस एडनॉम घेब्रेयसस ने विश्व नेताओं को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि कोविड-19 महामारी 'कहीं खत्म नहीं हुई है।' बीबीसी ने बताया कि डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने इस धारणा के खिलाफ आगाह किया कि नया प्रमुख ओमिक्रॉन वेरिएंट काफी हल्का है और इसने वायरस से उत्पन्न खतरे को समाप्त कर दिया है।
डब्ल्यूएचओ ने यह चेतावनी तब दी है, जब कुछ यूरोपीय देशों ने रिकॉर्ड नए मामले सामने आ रहे हैं।
जिनेवा में डब्ल्यूएचओ मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान बोलते हुए, ट्रेडोस ने संवाददाताओं से कहा कि ओमिक्रॉन वेरिएंट के पिछले एक सप्ताह में दुनिया भर में 18 मिलियन नए संक्रमण सामने हैं।
उन्होंने कहा कि यह भ्रामक है कि यह एक हल्की बीमारी है।
उन्होंने कहा, "कोई गलती न करें, ओमिक्रान अस्पताल में भर्ती होने और मौतों का कारण बन रहा है।"
उन्होंने वैश्विक नेताओं को चेतावनी दी कि 'विश्व स्तर पर ओमिक्रॉन की अविश्वसनीय वृद्धि के साथ, नए वेरिएंट उभरने की संभावना है, यही वजह है कि ट्रैकिंग और मूल्यांकन महत्वपूर्ण हैं।"
उन्होंने कहा, "मैं कई देशों के बारे में विशेष रूप से चिंतित हूं, जहां टीकाकरण की दर कम है, क्योंकि लोगों को गंभीर बीमारी और मृत्यु का खतरा कई गुना अधिक होता है, यदि वे टीकाकरण नहीं करवाते हैं।"
डब्ल्यूएचओ के आपात निदेशक, माइक रयान ने भी चेतावनी दी है कि ऑमिक्रोन की बढ़ी हुई संचरण क्षमता से अस्पताल में भर्ती होने और मौतों में वृद्धि होने की संभावना है, खासकर उन देशों में जहां कम लोगों को टीका लगाया जाता है। (आईएएनएस)
चीन में 44 साल के यु की आपबीती माइग्रेंट कामगारों के संघर्ष को दिखाती है. बेहतर मौकों के लिए लोगों के पास बडे़ शहरों में आने के अलाव कोई रास्ता नहीं. लोग आर्थिक असमानता और संसाधनों के असमान वितरण पर भी सवाल उठा रहे हैं.
चीन की सोशल मीडिया पर इन दिनों अपने गुमशुदा बेटे की तलाश में जुटे एक मजदूर की आपबीती की बहुत चर्चा हो रही है. इस प्रकरण के चलते चीन में बढ़ रही आर्थिक असमानता और छोटे कस्बों और गांवों से शहर आने वाले कामगारों की जिंदगी पर बहस छिड़ी है.
क्या है मामला?
यह आपबीती है, 44 साल के यु की. वह मध्य चीन के हेनान प्रांत के रहने वाले मछुआरे हैं. पिछले साल वह राजधानी बीजिंग आए. यहां आने का मकसद था, अपने गुमशुदा बेटे यु युतोंग की तलाश करना. युतोंग चीन के उन 28 करोड़ प्रवासी कामगारों में से एक है, जो बेहतर मौकों की तलाश में बड़े शहर आ जाते हैं.
युतोंग भी काम की तलाश में घर छोड़कर बड़े शहर चला गए थे. वह रसोइये का काम करते थे. अगस्त 2020 से परिवार को युतोंग की कोई खबर नहीं है. अपने बेटे को खोजने के लिए यु ने कई शहरों और प्रांतों का चक्कर लगाया. इसी क्रम में वह राजधानी बीजिंग भी आए. यहां बेटे को खोजने के साथ-साथ गुजारा चलाने के लिए छोटे-मोटे काम करते रहे. कभी कचरा उठाया, तो कभी निर्माण स्थल पर सामान ढोया. यु पर छह लोगों का परिवार चलाने की जिम्मेदारी है. इनमें उनके लकवाग्रस्त पिता भी शामिल हैं.
यु की कहानी कैसे आई सामने?
चीन में ओमिक्रॉन वैरिएंट के मद्देनजर अतिरिक्त सावधानी बरती जा रही है. नए साल की छुट्टियों और विंटर ओलिंपिक के चलते कोरोना पर हाई अलर्ट है. इसी क्रम में 19 जनवरी को बीजिंग के अधिकारियों ने एक कोरोना केस की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि 44 साल के एक आदमी को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है. यह कोरोना संक्रमित व्यक्ति यु ही थे.
कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग करते हुए यु की हालिया गतिविधियां ट्रेस की गईं. ट्रेसिंग के दौरान पता चला कि वह शहर के अलग-अलग हिस्सों में खूब आते-जाते थे. कभी देर रात, कभी तड़के. तब पता चला कि यु अपने लापता बेटे को खोजते हुए इतना भटकते थे और इसी दौरान उन्हें कोरोना हुआ. ये जाने के बाद लोग भावुक हो गए.
लोगों की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोग यु के बारे में लिख रहे हैं. कई लोगों ने यु को 'काम की तलाश में जगह-जगह जाते लोगों के बीच सबसे मेहनती आदमी' बताया है. चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'वाइबू' पर यु से जुड़े हैशटैग को छह करोड़ से ज्यादा व्यू मिले. इसी संदर्भ में आर्थिक असमानता और माइग्रेंट आबादी की मुश्किलों को लेकर भी चर्चा होने लगी.
एक यूजर ने लिखा, "मुझे नहीं पता कि समान संपन्नता केवल खोखले शब्द हैं या नहीं, मगर हर मजदूर इज्जत से जिंदगी बसर कर सके, यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है." 2021 में चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने समान संपन्नता का यह शब्द इस्तेमाल किया था. उन्होंने चीन में मौजूद आर्थिक असमानता का जिक्र करते हुए लोगों के लिए समान संपन्नता हासिल करने का लक्ष्य रखा था.
यु अब कहां हैं?
फिलहाल बीजिंग के एक अस्पताल में यु का इलाज हो रहा है. उन्होंने चाइना न्यूज वीकली को बताया, "मुझे नहीं लगता कि मुझपर तरस खाया जाना चाहिए. मैं बस अच्छे से अपना काम करना चाहता हूं. चुराना या लूटना नहीं चाहता हूं. मैं अपनी ताकत पर, अपने इन दो हाथों पर भरोसा करना चाहता हूं, ताकि मैं कुछ पैसे कमा सकूं और अपने बेटे को खोज सकूं."
बीजिंग न्यूज को दिए इंटरव्यू में यु ने बताया कि उनका बेटा इस साल 21 का हो जाएगा. उन्होंने बताया कि अगस्त 2020 में लापता होने से पहले उनके बेटे को आखिरी बार शानदोंग प्रांत के रोंगचेंग बस अड्डे पर देखा गया था. हालांकि यह इंटरव्यू बाद में डिलीट कर दिया गया. रोंगचेंग पुलिस ने स्थानीय पत्रकारों को बताया कि वह मामले की जांच कर रहे हैं.
एसएम/एनआर (रॉयटर्स)
इस्राएल और जर्मनी के राजदूतों ने कहा है कि होलोकॉस्ट से इनकार दुनिया भर में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए खतरा है. उनकी अपील वानसे कांफ्रेंस की 80वीं वर्षगांठ पर आई है.
80 साल पहले इसी कांफ्रेंस में नाजियों ने यूरोप से यहूदियों का सफाया करने की चर्चा की थी. इस्राएल और जर्मनी ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा से कहा है कि वह होलोकॉस्ट से किसी भी इनकार की निंदा करने और उसे खारिज करने के लिए आम सहमति से एक प्रस्ताव पारित करे. इस्राएल में जर्मनी की राजदूत सुजाने वासुम राइनर और उनके इस्राएली समकक्ष जेरेमी इसाचाराओफ ने न्यूयॉर्क में गुरुवार को आमसभा की बैठक से पहले एक संयुक्त अपील जारी की.
अपील में दोनों राजनयिकों की तरफ से लिखा गया है, "यह प्रस्ताव उन सभी देशों और समाजों के लिए उम्मीद की किरण होगा जो सहिष्णुता और विविधता के लिए खड़े होते हैं साथ ही जो समन्वय के लिए प्रयास करते हैं और यह समझते हैं कि होलोकॉस्ट को याद करना इस तरह के अपराध को दोबारा होने से रोकने के लिए जरूरी है."
जर्मन अखबार टागेसश्पीगल और इस्राएली अखबार मारीव ने उनकी अपील छापी है.
दोनों राजनयिकों ने कहा है कि होलोकॉस्ट से इनकार पीड़ियों और उनके वारिसों, यहूदियों पर हमला है और साथ ही "शांतिप्रिय समाजों और दुनिया भर में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर भी."
यह अपील वानसे कांफ्रेंस की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर की गई है. बर्लिन के पास वानसे झील के खिनारे एक विला में नाजी नेता इस कांफ्रेंस के लिए जमा हुए थे और यहीं उन्होंने यूरोप में चरणबद्ध तरीके से 1.1 करोड़ यहूदियों के हत्या पर चर्चा की थी.
संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में यहूदीविरोधवाद की एकसमान परिभाषा तय करने और जागरुकता बढ़ाने के साथ ही शिक्षा में निवेश की बात कही गई है. इसमें यह भी आग्रह किया गया है कि सोशल मीडिया कंपनियां होलोकॉस्ट से इंकार के खिलाफ प्रभावी कदम उठाएं.
जर्मनी "कभी नहीं भूलेगा"
जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा है कि 80 साल बीतने के बावजूद यह याद करना जरूरी है कि कैसे जर्मन राजनयिक नाजी अपराधों में संलिप्त हुए थे. बेयरबॉक का कहना है, "विदेश सेवा के जिन अधिकारियों ने नाजी सत्ता के अपराधों और नरसंहारों में अपनी सेवा दी वो भी पीड़ितों के कष्ट के लिए आरोपी हैं."
उन्होंने होलोकॉस्ट के पीड़ितों को याद किया और शपथ ली, "जर्मनी ने उनके साथ जो किया वो हम कभी नहीं भूलेंगे."
संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 27 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होलोकॉस्ट के पीड़ितों को याद करने का दिन घोषित किया है. यह वो दिन है जब आउशवित्स कैंप से लोगों को आजादा कराया गया था. इसे अंतरराष्ट्रीय होलोकॉस्ट स्मृति दिवस भी कहा जाता है.
एनआर/आरपी (एपी, डीपीए, केएनए)
सत्तारूढ़ बीजेपी के एक सांसद का दावा है कि चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश से एक भारतीय किशोर का "अपहरण" कर लिया है. मामले पर भारतीय सेना ने चीनी सेना से संपर्क साधा है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
अरुणाचल (पूर्व) से बीजेपी के सांसद तापिर गाओ ने 19 जनवरी को ट्वीट कर दावा किया कि चीनी सेना ने 17 वर्षीय लड़के मिराम टैरॉन को अगवा कर लिया है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "मिराम टैरॉन को पीएलए ने मंगलवार को सियुंगला क्षेत्र के लुंगटा जोर इलाके से अगवा किया." गाओ ने लोअर सुबनसिरी जिले के मुख्यालय जिरो से फोन पर पत्रकारों को बताया कि भागने में सफल रहे टैरॉन के दोस्त जॉनी यायिंग ने पीएलए द्वारा अपहरण के बारे में अधिकारियों को सूचित किया.
किशोर को छुड़ाने की अपील
गाओ ने ट्वीट किया था, "चीनी पीएलए ने जिदो गांव के 17 साल के मिराम टैरॉन का अपहरण कर लिया है. 18 जनवरी को भारतीय क्षेत्र के अंदर से, लुंगटा जोर क्षेत्र जहां चीन ने 2018 में भारत के अंदर 3-4 किलोमीटर सड़क बनाई थी." यह सियुंगला क्षेत्र के तहत आता है.
बीजेपी सांसद गाओ ने अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को टैग करते हुए कहा कि भारत सरकार की सभी एजेंसियों से अनुरोध है कि अपहृत किशोर को जल्द से जल्द रिहा कराया जाए.
भारतीय मीडिया में रक्षा सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि मिराम टैरॉन के लापता होने की घटना के संबंध में भारतीय सेना ने तुरंत पीएलए से संपर्क किया. पीएलए से उसके क्षेत्र में व्यक्ति का पता लगाने और उसे प्रोटोकॉल के मुताबिक वापस करने के लिए सहायता मांगी है.
विपक्ष के निशाने पर मोदी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किशोर के कथित तौर पर अगवा होने पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है और प्रधानमंत्री मोदी को आडे़ हाथों लिया है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "गणतंत्र दिवस से कुछ दिन पहले भारत के एक भाग्य विधाता का चीन ने अपहरण किया है- हम मिराम टैरॉन के परिवार के साथ हैं और उम्मीद नहीं छोड़ेंगे, हार नहीं मानेंगे. PM की बुजदिल चुप्पी ही उनका बयान है- उन्हें फर्क नहीं पड़ता!"
वहीं अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस के विधायक निनोंग एरिंग ने इस कथित अपहरण पर दुख जताया है और कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीनी सेना भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर रही है. बताया जा रहा है कि घटना उस स्थान के पास हुई जहां से त्सांगपो नदी भारत में प्रवेश करती है. भारत ने अभी तक कथित अपहरण पर कोई टिप्पणी नहीं की है. इस संबंध में विभिन्न पत्रकारों द्वारा विदेश मंत्रालय से पूछे गए सवालों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
जिस क्षेत्र से किशोर लापता हुआ है, वह वही इलाका है जहां 2018 में चीनी और भारतीय सेनाओं के बीच सड़क निर्माण को लेकर विवाद हुआ था. इससे पहले सितंबर 2020 में पीएलए ने ऊपरी सुबनसिरी जिले से पांच लड़कों का अपहरण कर लिया था. हालांकि एक हफ्ते बाद सेना के दखल के बाद उनको रिहा किया गया था.
चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता आया है, बीजिंग का कहना है कि यह दक्षिणी तिब्बत क्षेत्र का हिस्सा है. भारत ने हमेशा से इस दावे का खंडन किया है और प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताया है.
यह घटना ऐसे समय में हुई है जब पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना और पीएलए के बीच सैन्य गतिरोध अप्रैल 2020 से जारी है. इस गतिरोध को हल करने के लिए दोनों देशों के बीच राजनयिक और सैन्य स्तर पर अब तक कई बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है.
सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने पिछले दिनों कहा था कि भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख में चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के साथ दृढ़ता एवं मजबूत तरीके से निपटना जारी रखेगी और वह क्षेत्र में सर्वोच्च स्तर की अभियान संबंधी तैयारियां रख रही है.
(dw.com)
पहाड़ों पर बर्फ ज्यादा जम जाए, तो उसके गिरने से भारी नुकसान हो सकता है. देखिए कनाडा ने इसके लिए क्या रास्ता निकाला है.
ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में हिमस्खलन रोकने और तमाम रास्तों को बंद होने से बचाने के लिए कनाडा अब बम गिराकर बर्फ तोड़ने की कोशिश कर रहा है. पिछले कई दशकों में यह पहला मौका है, जब कनाडा के इस प्रांत में ठंड इतनी ज्यादा है कि बर्फ बेहद मोटी और सख्त हो गई है. इसकी वजह से यहां हिमस्खलन की आशंका पैदा हो गई है.
ब्रिटिश कोलंबिया कनाडा के सबसे पश्चिमी हिस्से में बसा प्रांत है. यह प्रशांत महासागर और उसके करीब की पर्वत श्रृंखला के सबसे नजदीक है. यहां ग्लेशियर भी हैं. बर्फ इतनी ज्यादा होती है कि लोग हाइकिंग करते हैं, स्कीइंग करते हैं. 2010 में यहां विंटर ओलिंपिक भी हो चुके हैं. अब इस इलाके में कनाडा को कुछ बड़े कदम उठाने पड़ रहे हैं.
क्यों जरूरत पड़ रही है इसकी?
साल 2021 में ब्रिटिश कोलंबिया को कई प्राकृतिक समस्याओं का सामना करना पड़ा था. पहले तो यहां रिकॉर्ड-तोड़ लू दर्ज की गई. जंगलों में आग लग गई थी. फिर अप्रत्याशित बारिश की वजह से हाइवे क्षतिग्रस्त हो गए थे, जिससे वैंकूवर का बाकी देश से संपर्क टूट गया था. वैंकूवर कनाडा का प्रमुख शहर है, जहां देश का व्यस्ततम बंदरगाह है. यह कनाडा की तीसरी सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रांत है.
अब यहां सड़कों को सुरक्षित रखने के मकसद से हेलिकॉप्टर के जरिए बम गिराए जाएंगे. रिमोट से होने वाले धमाकों का इस्तेमाल किया जाएगा और कनाडा की सेना की ओर से हॉओइत्जर बंदूक का भी इस्तेमाल किया जाएगा. हालांकि, अब भी हो रहे हिमस्खलन की वजह से वैंकूवर जाने के अहम रास्ते बार-बार बाधित हो रहे हैं.
बर्फ में आने लगी हैं दरारें
वेदर नेटवर्क चैनल के अनुसार इस महीने की शुरुआत में ब्रिटिश कोलंबिया के ऊंचे पहाड़ों पर जमी स्नोपैक यानी मोटी बर्फ औसत से 15 फीसदी ज्यादा थी. स्नोपैक उस बर्फ को कहते हैं, जो अपने ही वजन से दबती जाती है और इसकी वजह से बेहद सख्त और भारी हो जाती है. बीते कुछ वक्त से यहां ठंड भी ज्यादा पड़ रही है.
नवंबर में यहां मूसलाधार बारिश हुई थी. फिर दिसंबर के आखिर में ठंड बहुत ज्यादा हो गई. जनवरी की शुरुआत में बर्फ पिघलने भी लगी थी. इन सबकी वजह से पर्वतों पर जमी बर्फ में दरारें आने लगी हैं. ऐसे में जो सीधे और ऊंचे पहाड़ खड़े हैं, उन पर जमी बर्फ के गिरने की आशंका बढ़ गई है. दिक्कत यह है कि यह बर्फ नीचे घाटी में कभी भी गिर सकती है और कोई इसका अनुमान भी नहीं लगा पाएगा.
वेदर नेटवर्क के मौसम विज्ञानी टाइलर हैमिल्टन बताते हैं, "इस साल पतझड़ और ठंड का मौसम बेहद अप्रत्याशित और अस्थिर रहा है. हमने दिसंबर में ब्रिटिश कोलंबिया के कई इलाकों में भारी हिमस्खलन की चेतावनी जारी की थी. हालांकि, अंदरूनी इलाकों में यह खतरा अब भी बरकरार है."
किन हिस्सों में होंगी गतिविधियां?
एवेलांच (हिमस्खलन) कंट्रोल मिशन का काम यह है कि जब टीम पर्वतों पर जमा सख्त बर्फ के छोटे-छोटे हिस्सों को विस्फोटकों की मदद से तोड़कर नीचे गिराए, तो वे उस समय हाइवे के उन हिस्सों को बंद रखें, जहां लोग मौजूद हो सकते हैं. बर्फ गिराने का मकसद यह है कि वह सख्त, मोटी और वजनी होकर इतनी अस्थिर न हो जाए कि बहुत बड़े हिस्से में टूटकर नीचे गिरने लगे. मिशन में सैनिक भी शामिल किए जाते हैं.
ब्रिटिश कोलंबिया के परिवहन और बुनियादी ढांचा मंत्रालय के मुताबिक इस साल सर्दियों में फ्रेजर घाटी से गुजरने वाले हाइवे 1 के एक हिस्से में बीते 25 बरसों में पहली बार मानवीय रूप से हिमस्खलन कराने की जरूरत पड़ी है. हाइवे 99 के पास इस साल औसत से तीन गुना ज्यादा एवेलांच कंट्रोल गतिविधियों की जरूरत पड़ी है, क्योंकि इस बार हिमस्खलन का असर हाइवे तक पर पड़ने लगा था.
वीएस/एमजे (रॉयटर्स)
बीते सालों से ताइवान के प्रति चीन की आक्रामकता बढ़ी है. चीन ताइवान को कूटनीतिक स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश में है. चीन के साथ संघर्ष की आशंका के बीच ताइवान अपनी सुरक्षा बढ़ा रहा है. उसका सबसे करीबी सहयोगी अमेरिका है.
ताइवान के उपराष्ट्रपति लाइ चिंग ते उर्फ विलियम लाई अगले हफ्ते अमेरिका जाएंगे. वह होंडूरास की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिका जाकर वहां नेताओं से बातचीत करेंगे. 20 जनवरी को राष्ट्रपति के दफ्तर ने यह जानकारी दी.
ताइवान और चीन के बीच बढ़े तनाव के बीच विलियम लाई की यह यात्रा अहम होगी. चीन हमेशा से ही अपनी 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत ताइवानी लीडरों के अमेरिका जाने पर सख्त आपत्ति जताता आया है.
क्या है चीन और ताइवान के संबंधों का इतिहास?
चीन, ताइवान को अपना भूभाग मानता है. दोनों देशों के बंटवारे का अतीत चीनी गृह युद्ध से जुड़ा है. गृह युद्ध में माओ की कम्युनिस्ट पार्टी चीन की तत्कालीन सत्ताधारी क्यूमिनतांग पार्टी और उसके लीडर च्यांग काई शेक से लड़ रही थी.
1949 में कम्युनिस्ट धड़े को जीत की तरफ बढ़ते देखकर च्यांग काई शेक चीन की मुख्यभूमि से भागकर ताइवान आ गए थे. उन्होंने ताइवान का नाम 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' रखा. च्यांग का दावा था कि वह चीन के वैध शासक हैं. उधर कम्युनिस्ट पार्टी ने गृह युद्ध में अपनी जीत के बाद सत्ता संभाली और देश का नाम रखा, पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना.
ताइवान में लोकतंत्र मजबूत हुआ
आगे चलकर ताइवान में लोकतंत्र की मांग उठी. 1996 में यहां पहली बार निष्पक्ष चुनाव हुए. साल 2000 में हुए चुनाव में क्यूमिनतांग पार्टी की जगह 'डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी' (डीपीपी) सत्ता में आई.
क्यूमिनतांग पार्टी जहां चीन और ताइवान के एकीकरण की समर्थक थी, वहीं डीपीपी ताइवान को स्वतंत्र और संप्रभु देश मानती थी. वह ताइवान और चीन के एकीकरण का समर्थन नहीं करती थी. आगे के सालों में ताइवान में अलग अस्तित्व और स्वतंत्र पहचान का मुद्दा जोर पकड़ता गया.
वन चाइना पॉलिसी
चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान के इस रुख का विरोध करती है. अपनी 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत चीन कहता है कि ताइवान के किसी और देश के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं हो सकते हैं. ताइवान इसका विरोध करता है.
वहां 2016 और 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में भी चीन का मुद्दा सबसे अहम रहा था. इन चुनावों में डीपीपी को मिली जीत को ताइवान के स्वतंत्र अस्तित्व पर जनता की मुहर के तौर पर देखा गया.
अमेरिका-ताइवान के रिश्ते
ताइवान में मजबूत हो रही स्वतंत्र अस्तित्व की मांगों के बीच पिछले कुछ सालों से चीन लगातार दबाव बढ़ा रहा है. ताइवान का कहना है कि चीन आक्रामकता दिखाकर और शक्ति प्रदर्शन करके उससे अपनी संप्रभुता मनवाना चाहता है. चीन की बढ़ती आक्रामकता के चलते ताइवान की सुरक्षा चिंताएं बढ़ी हैं. अनुमान है कि उपराष्ट्रपति विलियम लाई सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं पर बातचीत के लिए ही अमेरिका जा रहे हैं.
ताइवान और अमेरिका के बीच आधिकारिक कूटनीतिक रिश्ते नहीं हैं. मगर अमेरिका उसका सबसे मजबूत सहयोगी है. वह ताइवान को हथियारों की भी आपूर्ति करता है. चीन, अमेरिका और ताइवान के रिश्तों का विरोधी है. वह ताइवान को अपने और अमेरिका के बीच का सबसे संवेदनशील मुद्दा बताता है.
होंडूरास और ताइवान के संबंध
चीन की 'वन चाइना पॉलिसी' के चलते केवल 14 देशों के ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध हैं. होंडूरास इनमें से एक है. हालांकि यह रिश्ता अभी नाजुक स्थिति में है. इसी के मद्देनजर विलियम लाई होंडूरास की यात्रा पर जा रहे हैं.
वह होंडूरास के नए राष्ट्रपति सिओमारा कास्त्रो के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में शरीक होंगे. ताइवान सरकार ने कहा है कि वह कास्त्रो के साथ मिलकर होंडूरास के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ करना चाहता है. मगर आशंका है कि कास्त्रो शायद ताइवान का साथ छोड़कर चीन के खेमे में चले जाएं.
निकारागुआ ने ताइवान ने रिश्ते तोड़ लिए थे
चीन ताइवान के सीमित कूटनीतिक संबंधों को खत्म करवाने की कोशिश कर रहा है. उसने कहा है कि वह ताइवान के कूटनीतिक सहयोगियों की संख्या शून्य करना चाहता है. दिसंबर 2021 में निकारागुआ ने ताइवान के साथ अपने कूटनीतिक रिश्ते तोड़ लिए थे.
इसके बाद जनवरी 2022 की शुरुआत में चीन ने निकारागुआ में अपना दूतावास खोल दिया. होंडूरास के राष्ट्रपति सिओमारा कास्त्रो ने भी ताइवान से रिश्ते तोड़कर चीन के साथ जाने के संकेत दिए हैं.
एसएम/एनआर (रॉयटर्स)
संयुक्त राष्ट्र ने बीते दिनों जर्मनी की पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल के सामने एक जिम्मेदारी का प्रस्ताव रखा था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया. उन्होंने रिटायरमेंट के बाद की योजनाओं के बारे में भी ज्यादा कुछ नहीं बताया.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने जर्मनी की पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल के सामने एक जिम्मेदारी का प्रस्ताव रखा था, जिसे मैर्केल ने अस्वीकार कर दिया है. यह जानकारी बुधवार को मैर्केल के दफ्तर और संयुक्त राष्ट्र के सूत्रों की ओर से दी गई.
मैर्कल के दफ्तर की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया है, "मैर्केल ने पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र के महासचिव से मुलाकात की थी. मैर्केल ने यह प्रस्ताव दिए जाने के लिए शुक्रिया अदा किया और जानकारी दी कि वह अभी यह जिम्मेदारी स्वीकार नहीं कर पाएंगी."
क्या जिम्मेदारी की गई थी ऑफर?
संयुक्त राष्ट्र के सूत्रों के मुताबिक गुटेरेश ने मैर्केल के सामने 'वैश्विक सार्वजनिक सामग्री' पर संयुक्त राष्ट्र की एक शीर्ष समिति की अध्यक्षता करने का प्रस्ताव रखा था. यह सलाहकार समिति संयुक्त राष्ट्र की अहम सुधार परियोजनाओं में से एक है, जिसका प्रस्ताव गुटेरेश ने संयुक्त राष्ट्र में अपने दूसरे कार्यकाल में रखा था. इसकी शुरुआत जनवरी से हुई है.
समिति सार्वजिनक रूप से इस्तेमाल होने वाले उन सामानों और दूसरी चीजों को चिह्नित करेगी, जहां बेहतर संचालन की सबसे ज्यादा जरूरत है. जर्मनी के मीडिया में संयुक्त राष्ट्र के सूत्रों के हवाले छपी खबरों की मुताबिक यह समिति अपनी ओर से विकल्प भी सुझाएगी कि जरूरत वाली जगहों पर कैसे बेहतर संचालन हो सकता है.
वैश्विक सार्वजनिक इस्तेमाल की चीजों में ओजोन परत, वैक्सीन और वैश्विक व्यापार जैसी चीजें शामिल हैं.
रिटायरमेंट के बाद मैर्कल की योजना
16 साल तक जर्मनी के चांसलर की जिम्मेदारी संभालने के बाद 67 साल की मैर्केल ने अपने चौथे कार्यकाल के आखिरी साल राजनीति से संन्यास ले लिया. वह पिछले साल सितंबर में हुए आम चुनावों में नहीं खड़ी हुईं. इस चुनाव में सोशल डेमोक्रेट नेता ओलाफ शॉल्त्स ने जीत हासिल की थी.
हालांकि, अपना पद छोड़ने से पहले भी मैर्केल ने अपनी सियासी जिम्मेदारियों को छोड़कर निजी जिंदगी के बारे में कुछ नहीं बताया. रिटायरमेंट के बारे में पूछे जाने पर भी उन्होंने अपनी योजनाएं जाहिर नहीं की. एक जर्मन पत्रिका के मुताबिक मैर्केल इन दिनों लंबे समय तक अपने सहयोगी रहे बीट बाउमन के साथ अपने राजनीतिक संस्मरण पर काम कर रही हैं.
बाउमन से बातचीत के आधार पर पत्रिका ने लिखा है कि इस संस्मरण में मैर्केल की पूरी जिंदगी के बारे में जानकारियां दर्ज नहीं होंगी, बल्कि मैर्केल अपनी सियासी फैसलों के बारे में अपने शब्दों में कुछ बातें बताएंगी और जीवन के अपने सफर के बारे में कुछ बातें दर्ज करेंगी.
वीएस/एनआर(डीपीए, रॉयटर्स)
बीजिंग. रूस ने एंटी-सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण से अपने ही एक सैटेलाइट को 1500 टुकड़ों में बदल दिया था. इस कार्रवाई से उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. अब चीन अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि रूस के पुराने सैटेलाइट के मलबे से चीन की सैटेलाइट की टक्कर होते होते बची. इसके लिए चीन के वैज्ञानिकों ने कड़ी मशक्कत की और इस टक्कर को नाकाम किया. अंतरिक्ष के मलबों पर निगाह रखने वाली संस्था चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा कि इस मलबे से भविष्य में खतरा बना रहेगा.
चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा कि सिंघुआ साइंस सैटेलाइट, 14.5 मीटर लंबे अंतरिक्ष मलबे की टक्कर से बाल-बाल बची है. इस टक्कर से अंतरिक्ष में मौजूद दूसरी सैटेलाइटों को भी गंभीर खतरा पैदा हो सकता था. सरकारी मीडिया ने बताया कि नवंबर में रूस के एंटी-सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण के नतीजे के बाद छोड़े गए मलबे के 1500 टुकड़ों में से एक की चीनी उपग्रह की निकट टक्कर हो सकती थी. मॉस्को ने नवंबर में एक मिसाइल परीक्षण में अपने पुराने उपग्रहों में से एक को उड़ा दिया था. इससे पृथ्वी की कक्षा के चारों ओर अंतरिक्ष मलबे बिखर गया था. इसके कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय उससे नाराज है. अमेरिकी अधिकारियों ने रूस पर खतरनाक और गैर-जिम्मेदार हमला करने का आरोप लगाया है.
रूस ने उन चिंताओं को खारिज कर दिया और इनकार किया कि अंतरिक्ष मलबे से कोई खतरा है लेकिन चीनी उपग्रह के साथ एक नई घटना कुछ और ही बताती है. सरकारी ग्लोबल टाइम्स ने भी बताया चीन का सिंघुआ विज्ञान उपग्रह मलबे के एक टुकड़े से 14.5 मीटर के करीब आया. यह ‘बेहद खतरनाक’ घटना मंगलवार को हुई थी.
अंतरिक्ष मलबे विशेषज्ञ लियू जिंग ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि मलबे और अंतरिक्ष यान दोनों बेहद करीब थे. इस बार टकराव की संभावना थी. कुछ देशों के पास एंटी-सैटेलाइट हथियार जैसी उच्च तकनीक वाली मिसाइलें हैं. इस कदम ने अंतरिक्ष में हथियारों की बढ़ती दौड़ के बारे में चिंता जताई है. इसमें लेजर हथियारों से लेकर उपग्रहों तक सब कुछ शामिल है जो दूसरों को कक्षा से बाहर धकेलने में सक्षम हैं.
लाहौर, 20 जनवरी। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में एक शक्तिशाली विस्फोट में कम से कम दो लोगों की जान चली गई और दर्जनों लोग घायल हो गए, जिसे एक लक्षित आतंकवादी हमले के रूप में देखा जा रहा है।
प्रतिबंधित बलूच नेशनल आर्मी ने हमले की जिम्मेदारी ली है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, लोहारी गेट क्षेत्र के आसपास स्थित लाहौर के थोक बाजारों का केंद्र, जो एक भीड़भाड़ वाला और घनी आबादी वाला इलाका है, एक शक्तिशाली विस्फोट से हिल गया, जिसमें एक किशोर सहित कम से कम दो लोगों की जान चली गई और कम से कम 25 अन्य घायल हो गए। घायलों में 22 पुरुष जबकि तीन महिलाएं शामिल हैं।
इलाके के एक स्थानीय दुकानदार ने कहा, विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि हम चीजों को हवा में उड़ते हुए देख सकते थे।
अधिकारियों को संदेह है कि विस्फोट एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) से किया गया है, क्योंकि विस्फोट स्थल पर एक गहरा गड्ढा बन गया है।
डीआईजी ऑपरेशन, लाहौर डॉ. मुहम्मद आबिद खान ने कहा, जांच प्रारंभिक चरण में है और जांच के बिना विस्फोट की प्रकृति का पता नहीं लगाया जा सकता है।
विस्फोट स्थल के सबसे नजदीक मेओ अस्पताल में अब तक कम से कम 27 लोग आ चुके हैं, जिनमें से कम से कम दो लोगों की मौत हो गई है, जबकि 25 अन्य का इलाज चल रहा है। अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि कम से कम 5 और लोगों की हालत गंभीर है।
विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि एक निजी बैंक सहित कम से कम नौ दुकानें और प्रतिष्ठान क्षतिग्रस्त हो गए, जबकि दर्जनों मोटरबाइक और सड़क किनारे बिक्री के मौजूद स्टॉल और अन्य चीजों को नुकसान पहुंचा और आसपास आग भी लग गई।
प्रतिबंधित समूह की ओर से हमले की जिम्मेदारी ले ली गई है, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा बलों ने इस दुखद घटना की जांच के लिए इलाके की घेराबंदी कर दी है।
बता दें कि लोहारी गेट क्षेत्र लाहौर के पुराने शहर का हिस्सा है, जहां संकरी गलियां और भीड़भाड़ वाले इलाके हैं। बाजार में निम्न वर्ग और गरीब लोग अक्सर आते हैं, क्योंकि वे यहां से अपने लिए सस्ती चीजें खरीदने के लिए बाजार आते हैं।
विस्फोट के वक्त बाजार में बड़ी संख्या में स्थानीय लोग मौजूद थे। (आईएएनएस)
सियोल, 20 जनवरी | प्योंगयांग के राज्य मीडिया ने गुरुवार को कहा कि उत्तर कोरिया ने इस महीने के अंत में अपने दिवंगत नेताओं के जयंती समारोह के अवसर पर दोषी लोगों को माफी देने का फैसला किया है। स्थायी समिति द्वारा किए गए एक निर्णय में, किम इल-सुंग और किम जोंग-इल की 110 वीं और 80 वीं जयंती मनाने के लिए 'देश और लोगों के खिलाफ अपराधों' के लिए दोषी ठहराए गए लोगों को क्षमा प्रदान की जाएगी। सुप्रीम पीपुल्स असेंबली, उत्तर की आधिकारिक कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी ने जानकारी दी।
योनहाप न्यूज एजेंसी ने केसीएनए के हवाले से कहा कि माफी 30 जनवरी से प्रभावी होगी, कैबिनेट और संबंधित अंग उन्हें सामान्य कामकाजी जीवन में बसने में मदद करने के लिए व्यावहारिक उपाय करेंगे।
वर्तमान नेता किम जोंग-उन के दिवंगत पिता किम जोंग-इल की जयंती 16 फरवरी को पड़ती है और उनके दिवंगत दादा किम इल-सुंग की जयंती 15 अप्रैल को होती है, जो दोनों प्रमुख उत्सव हैं। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र, 20 जनवरी | टोंगा ज्वालामुखी आपदा के चलते राहत के लिए जरूरतों के आकलन का विस्तार हुआ है, जबकि सहायता प्रयासों में भी वृद्धि हुई है, हालांकि दूरी और राख से लदी रनवे से डिलीवरी में देरी हो रही है। मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (ओसीएचए) ने टोंगन अधिकारियों का हवाला देते हुए कहा कि पानी, भोजन और संचार की बहाली जरूरतों की सूची में सबसे ऊपर है, लेकिन यह ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के नौसैनिक जहाजों के आने और डॉक करने से कुछ दिन पहले होगा।
ओसीएचए ने कहा कि 15 जनवरी के बड़े विस्फोट ने 84, 000 लोगों या 80 प्रतिशत आबादी को प्रभावित किया, साथ ही तीन लोगों मारे गए है, और अज्ञात संख्या में लोग घायल हुए हैं।
टोंगटापु पर 90 प्रतिशत बिजली का बैकअप है, लेकिन ज्वालामुखी की राख राजधानी शहर नुकु आलोफा में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर रनवे को अवरुद्ध कर रही है। ओसीएचए ने कहा कि उन्हें गुरुवार तक मंजूरी मिलने की उम्मीद है।
घरेलू फोन सेवा केवल टोंगटापु और 'यूआ आइलैंड्स' के भीतर ही संचालित होती है।
यह दुनिया के कुछ कोविड मुक्त देशों में से एक है।
ओसीएचए ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मैंगो, फोनोइफुआ और नोमुका के द्वीपों के बारे में चिंतित है जो गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं, हालांकि वहां बहुत कम आबादी है।
"मैंगो पर सभी घर नष्ट हो गए हैं और फोनोइफुआ पर केवल दो घर बचे हैं, नोमुका पर व्यापक नुकसान की सूचना है। मैंगो और फोनोइफुआ से नोमुका तक लोगों की निकासी का काम चल रहा है।"
ओसीएचए ने कहा कि निगरानी उड़ान के आंकड़ों से पता चला है कि मुख्य द्वीप पर 100 घर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं और यूआ पर लगभग 50 घर क्षतिग्रस्त हुए हैं।
टोंगन के अधिकारी खोज और बचाव अभियान चला रहे हैं और स्वास्थ्य दल और पानी, भोजन और तंबू ले जाने वाले दो जहाजों को हापई द्वीप समूह में भेजा है, जहां मैंगो, फोनोइफुआ और नोमुका स्थित हैं।
मानवीय कार्यालय ने कहा कि टोंगन रेड क्रॉस सोसाइटी और अन्य स्थानीय साझेदार आपातकालीन पानी, भोजन राशन, आश्रय और रसोई की आपूर्ति वितरित कर रहे हैं।
यूनिसेफ ऑस्ट्रेलिया के एचएमएएस एडिलेड के साथ पानी और अन्य आपूर्ति कर रहा है, लेकिन जहाज शुक्रवार तक टोंगा के लिए नहीं रवाना होगा।
ओसीएचए ने कहा कि जापान ने राहत आपूर्ति और उपकरण भेजने की प्रतिज्ञा के साथ 1 मिलियन डॉलर से अधिक के आपातकालीन अनुदान की घोषणा की है।
रेड क्रॉस सोसाइटी ऑफ चाइना 100,000 डॉलर नकद और मानवीय सहायता प्रदान करेगी। (आईएएनएस)
अमेरिका और यूरोपीय संघ यूक्रेन के इलाके में रूसी सैन्य कार्रवाई की आशंका में रूस पर नए प्रतिबंध की चेतावनी दे रहे हैं. रूसी बैंकों को स्विफ्ट से निकालने का उपाय पहले ही खारिज हो गया है तो फिर इनके पास बचा क्या है?
डॉयचे वैले पर निक मार्टिन की रिपोर्ट-
अमेरिका और यूरोप के राजनयिक रूस पर नए प्रतिबंध लगाने की लगातार चेतावनी दे रहे हैं ताकि रूसी सेना को यूक्रेन में घुसने से रोका जा सके. हालांकि यह उलझन बनी हुई है कि आखिर रूस पर क्या कार्रवाई होगी. मंगलवार को जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने यूक्रेन और रूस की यात्रा के दौरान कहा कि अगर मौजूदा संकट का कूटनीतिक हल नहीं निकलता है तो रूस को इसकी "ऊंची कीमत चुकानी होगी."
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी पिछले महीने रूस को कुछ इसी तरह की चेतावनी देकर "गंभीर नतीजों" की बात कही थी. रूस ने यूक्रेन की सीमा पर एक लाख से ज्यादा की फौज जमा कर रखी है और सैन्य कार्रवाई की आशंका को रोकने के लिए ये नेता रूस पर दबाव बनाने की कोशिश में है. दिक्कत यह है कि वो क्या कदम उठाएंगे, यह तय नहीं हो पा रहा है.
स्विफ्ट से बाहर करने का विकल्प
कुछ दिन पहले अफवाह उड़ी कि सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलिकम्युनिकेशंस यानी स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम से रूस के बैंकों को बाहर कर दिया जाएगा. हर दिन 3.5 करोड़ लेन देन में करीब 5 हजार अरब डॉलर का भुगतान करने वाले सिस्टम से बाहर होने का मतलब रूस की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा नुकसान होगा. रूसी बैंकों के लिए अंतरराष्ट्रीय भुगतान हासिल करना मुश्किल हो जाएगा और ऐसे में रूसी मुद्रा रुबल बहुत कमजोर हो जाएगी. इसके साथ ही रूस में ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों पर खासतौर से बहुत बुरा असर पड़ेगा.
भले ही यह उपाय पुतिन को जंग से दूर करने की दिशा में असरदार माना जा रहा हो, लेकिन जर्मन अखबार हांडेल्सब्लाट ने सरकार के सूत्रों के हवाले से बताया कि इस उपाय पर फिलहाल विचार नहीं हो रहा है. अखबार का कहना है कि इसकी बजाय रूसी बैंकों पर प्रतिबंध लगाए जा सकता है.
रूसी बैंकों पर निशाना
हांडेल्सब्लाट का कहना है कि इस उपाय को भी खारिज कर दिया गया है क्योंकि इससे वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता पैदा होगी और वैकल्पिक भुगतान तंत्र को विकसित करने के लिए पहल होगी. पश्चिमी देश इस बात की अनदेखी नहीं कर सकते. रूस और चीन ने हालांकि पहले ही अपने लिए स्विफ्ट का विकल्प तैयार कर लिया है, हालांकि इसमें स्विफ्ट की तरह पूरी दुनिया अभी शामिल नहीं है.
वहीं व्हाइट हाउस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता ने हांडेल्सब्लाट की रिपोर्ट को खारिज किया है. प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "ऐसा कोई विकल्प टेबल पर नहीं है. अगर रूस हमला करता है तो इसके गंभीर नतीजे क्या होंगे, इस पर हम अपने यूरोपीय सहयोगियों से चर्चा कर रहे हैं."
अखबार का कहना है कि रूसी बैंकों को इस बार कैसे निशाना बनाया जाएगा, इस बारे में बहुत कम ही जानकारी सामने आई है. हालांकि जर्मनी इस तरह की पाबंदियों से बचना चाहता है क्योंकि तब यूरोप के लिए रूस से आयात होने वाले तेल और गैस के लिए भुगतान करना मुश्किल हो जाएगा.
उत्तर कोरिया की तरह अलग थलग
मंगलवार को फाइनेंशियल टाइम्स ने खबर दी कि जिस तरह के प्रतिबंध उत्तर कोरिया और ईरान पर लगाए गए हैं, वही रूस पर भी लग सकते हैं यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था से रूस को एक तरह से बाहर कर देना. 2012 में ईरान उस वक्त तक का दुनिया का पहला देश बना जिसे स्विफ्ट से बाहर किया गया. यह ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंध के तहत हुआ था.
यूरोप और अमेरिका 2014 में क्राइमिया को यूक्रेन से अलग करने के बाद रूस के बैंकों और कंपनियों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. इन प्रतिबंधों का लक्ष्य रूस की हथियार और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों की यूरोपीय और अमेरिकी वित्तीय बाजारों तक पहुंच को सीमित करना था. हालांकि जर्मनी के कारोबारी नेता रूस पर लगे प्रतिबंधों को कम करने की मांग कर रहे है क्योंकि अगर और प्रतिबंध लगाए गए तो यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यानी जर्मनी का भी बहुत नुकसान होगा.
पाइपलाइन पर सहमति
उदाहरण के लिए रूस और जर्मनी के बीच बाल्टिक सागर से गुजरने वाली नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन का निर्माण पिछले साल पूरा हो गया. हालांकि अभी तक इसके काम शुरू करने के लिए जर्मन प्रशासन से मंजूरी नहीं मिली है. पाइपलाइन और ज्यादा बड़ी मात्रा में रूसी गैस को पश्चिमी यूरोप लेकर आएगी. हालांकि यूक्रेन और अमेरिका समेत इस प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले देश कह रहे हैं कि इससे यूरोप और ज्यादा रूस की ऊर्जा पर निर्भर हो जाएगा. यूरोपीय संघ और अमेरिका जर्मनी पर नॉर्ड स्ट्रीम 2 की मंजूरी को रोकने के लिए दबाव बना रहे हैं. इस कदम को रूस पर प्रतिबंधों के रूप में पेश किया जा रहा है.
जर्मनी के विदेश मामलों की कमेटी के चेयरमैन मिषाएल रोथ ने मंगलवार को एआरडी टीवी चैनल से कहा कि पाइपलाइन का इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता के खिलाफ करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. रोथ का कहना है, "अगर हम सचमुच प्रतिबंध लगाने पर आते हैं और मुझे अब भी उम्मीद है कि हम इससे बच सकते हैं तो हम उन चीजों को खारिज नहीं कर सकते जिनकी मांग यूरोपीय संघ में हमारे सहयोगी कर रहे हैं."
जर्मनी की चुप्पी
अंतरराष्ट्रीय संबंधों की यूरोपीय परिषद के रफाएल लॉस ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि जर्मनी ने रूस को रोकने में यूक्रेन की मदद की दिशा में बहुत कम ही काम किया है. लॉस ने कहा, "पिछले कुछ दिनों में जो इस मुद्दे पर सारी बातचीत हुई है उसमें उन्हीं मुद्दों की चर्चा हुई है जो जर्मनी बातचीत की मेज पर नहीं रखना चाहता, जैसे कि नॉर्ड स्ट्रीम 2, हथियार देना और स्विफ्ट."
लॉस ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि यूरोप में यह धारणा बन रही है कि रूस और अमेरिका में बातचीत यूरोपीय नेताओं की अनदेखी करके हो रही है. उन्होंने याद दिलाया कि यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल इस बात से कितने खफा थे कि यूरोपीय संघ इस मामले में कोई अर्थपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है.
इस बीच रूस के वित्त मंत्री ने पिछले हफ्ते चेतावनी दी कि और प्रतिबंध दुखद होंगे लेकिन उनका देश उन्हें सह लेगा. उनका कहना है, "अगर यह खतरा आता है तो मेरे ख्याल से हमारी वित्तीय संस्थाएं इसे संभाल लेंगी." (dw.com)
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को अभी तक किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है. इसका असर यह हो रहा है कि अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर यह देश आर्थिक विनाश के कगार पर पहुंच गया है.
तालिबान ने मुस्लिम देशों से अपील की है कि वो उसकी सरकार को मान्यता देने की प्रक्रिया की शुरुआत करें. तालिबान के प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद ने काबुल में एक प्रेस वार्ता के दौरान मुस्लिम देशों से यह अपील की. प्रेस वार्ता देश की बढ़ती आर्थिक समस्याओं पर तालिबान के विचार रखने के लिए बुलाई गई थी.
अखुंद ने कहा कि अगर मुस्लिम देश मान्यता की शुरुआत कर देते हैं तो उन्हें उम्मीद है कि अफगानिस्तान का "तेजी से विकास होगा." तालिबान नेता ने यह भी कहा, "हम मान्यता हमारे अधिकारियों के लिए नहीं चाहते हैं. हम यह हमारी जनता के लिए चाहते हैं."
नहीं मिल रही मदद
अखुंद ने इस बात पर जोर दिया कि तालिबान ने शांति और स्थिरता बहाल कर मान्यता के लिए आवश्यक जरूरतों को पूरा कर दिया है. अभी तक दुनिया के किसी भी देश ने तालिबान को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है और इसका असर यह हो रहा है कि अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर यह देश आर्थिक विनाश के कगार पर पहुंच गया है.
दुनिया के अधिकांश देश यह देखना चाह रहे हैं कि सत्ता में अपने पहले कार्यकाल के दौरान मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए बदनाम तालिबान इस बार अधिकारों को लेकर कैसे पेश आता है.
तालिबान ने इस्लामिक शरिया कानून की उसकी अपनी समझ के हिसाब से लागू किए जाने में थोड़ी नरमी के संकेत तो दिए हैं लेकिन महिलाओं की हालत को लेकर अभी भी कई चिंताएं बनी हुई हैं. सरकारी नौकरियों से महिलाएं अभी भी मोटे तौर पर बाहर ही हैं और लड़कियों के लिए माध्यमिक स्तर के स्कूल लगभग पूरे देश में बंद ही हैं.
मानवीय त्रासदी
उधर देश एक मानवीय त्रासदी की चपेट में है जो तालिबान के आने के बाद और गहरा गया है. तालिबान के सत्ता हथिया लेने के बाद पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय मदद रोक दी. साथ ही विदेशों में अफगान सरकार के अरबों डॉलर मूल्य की संपत्ति को भी फ्रीज कर दिया.
अमेरिका की मदद से चल रही पिछली सरकार के तहत अफगानिस्तान लगभग पूरी तरह से विदेशी मदद पर निर्भर था. अब हालत ये है कि देश में रोजगार बिलकुल खत्म हो गया है और अधिकांश सरकारी अधिकारियों को महीनों से तनख्वाह नहीं मिली है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि 2021 की तीसरी तिमाही में करीब 5,00,000 अफगान लोगों की नौकरी चली गई. अंदेशा है कि 2022 के मध्य तक यह संख्या बढ़ कर करीब 9,00,000 हो जाएगी. इसमें महिलाओं पर अनुपातहीन रूप से असर पड़ा है.
देश में गरीबी और गहरा रही है और कई इलाकों में सूखा ने कृषि को उजाड़ कर रख दिया है. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि 3.8 करोड़ लोगों में कम से कम आधी आबादी को भोजन की कमी का सामना करना पड़ रहा है.
मुस्लिम देशों का रुख
पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से अमेरिका के एक प्रस्ताव को पारित किया जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन किए बिना अफगान लोगों तक कुछ मदद पहुंचाई जाएगी. लेकिन अधिकार और मदद संगठन पश्चिमी देशों से और पैसे देने की अपील कर रहे हैं.
मदद देने वालों के सामने चुनौती बिना तालिबान का समर्थन किए मदद पहुंचाने की है. लेकिन तालिबान सरकार के उप-प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनाफी ने प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि उनकी सरकार "मदद करने वालों की शर्तों के आगे झुक कर देश की अर्थव्यवस्था की आजादी का त्याग नहीं करेगी."
पिछले महीने ही 57 सदस्य देशों के ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) ने तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता देने से इनकार कर दिया. लेकिन संगठन ने ये वादा जरूर किया कि वो विदेश में फ्रीज की हुई अरबों डॉलर मूल्य की अफगान संपत्ति पर से रोक हटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ काम करेगा.
इसके लिए ओआईसी ने तालिबान के नेताओं को भी महिलाओं के अधिकारों को लेकर अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं को मानने के लिए कहा. 1996 में जब पहली बार अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आया था तब पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई ने उसकी सरकार को मान्यता दी थी.
सीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)
लू, बाढ़, सूखा जैसी आपदाएं, तेजी से गर्म होती धरती, विलुप्त होते जानवर और पेड़-पौधों की प्रजातियां... कितने संकट हमारे सामने एक साथ मुंह बाए खड़े हैं और हम 'बुरी तरह बीमार आदमी का प्लास्टर लगाकर इलाज करना' चाहते हैं.
विशेषज्ञों के एक समूह ने चेतावनी दी है कि जैव विविधता और कई प्रजातियों के विलुप्त होने के जिस संकट से हम गुजर रहे हैं, उससे निपटने के लिए प्रकृति संरक्षण के उपाय नाकाफी हैं. विशेषज्ञों ने यह बयान धरती पर जानवरों और पेड़-पौधों को बचाने की नीयत से किए जाने वाले उस समझौते के बारे में दिया है, जिसका मसौदा अभी तैयार किया जा रहा है.
दरअसल इस साल मई में चीन के कुनमिंग में संयुक्त राष्ट्र का जैव विविधता सम्मेलन होना है. इसमें यह कथित 'वैश्विक जैव विविधता संरक्षण समझौता' पेश किया जाएगा. इस समझौते का मुख्य लक्ष्य धरती पर जमीन और समंदर के 30 फीसदी हिस्से को 'संरक्षित इलाका' करार देकर एक किनारे रखने का है. यानी उस जगह ऐसी कोई गतिविधि नहीं की जाएगी, जिससे जैव-विविधता को खतरा हो.
क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ
50 से ज्यादा शीर्ष विशेषज्ञों ने कहा है कि इस समझौते के मसौदे में जो उपाय या लक्ष्य तय किए जा रहे हैं, वो हमारी आज की जरूरत के सामने बौने साबित होंगे. पेरिस सैकले यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और लेखक पॉल लीडली ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "हम जैव विविधता संकट से घिरे हुए हैं. आज लाखों प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं."
पॉल कहते हैं, "इस बात के पुख्ता सुबूत हैं कि जो फैसले तुरंत करने की जरूरत है, उनकी बजाय अगर हम इलाकों को संरक्षित करने पर बहुत ज्यादा ध्यान देते रहेंगे, तो हम इन महत्वाकांक्षी जैव विविधता लक्ष्यों को हासिल करने में फिर से नाकाम हो जाएंगे."
क्या पहले के लक्ष्य हुए हासिल?
जो मसौदा अभी तैयार किया जा रहा है, उस समझौते को लेकर करीब 200 देश बातचीत कर रहे हैं. इस समझौते में 2030 के लिए लक्ष्य तय किए जाने हैं. साथ ही, इसका मकसद है कि जैव विविधता का जो भी नुकसान हुआ है, उसे 2050 तक पूरी तरह रोक दिया जाए और इंसान प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहने लगे.
एक दशक पहले जापान के आइची में भी संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन में दुनिया के तमाम देशों ने मिलकर ऐसे ही कुछ लक्ष्य तय किए थे. हालांकि एक दशक बाद उन लक्ष्यों को हासिल करने में दुनिया लगभग पूरी तरह नाकाम रही. पॉल कहते हैं, "हम एक गंभीर रूप से बीमार शख्स को बार-बार प्लास्टर लगाकर ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं. यह बंद होना चाहिए."
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र का 'जलवायु परिवर्तन पर विज्ञान सलाहकार समूह' भी ऐसी ही चेतावनी जारी कर चुका है. पॉल और उनके सहयोगी कहते हैं कि प्रकृति को अब तक जो नुकसान पहुंचाया जा चुका है, उसे पलटने के लिए समाज में एकदम कायापलट की क्षमता रखनेवाले उपाय करने की जरूरत है. इसकी शुरुआत खाने का उत्पादन और उसका दोहन करने के हमारे तौर-तरीकों में सुधार के साथ होना चाहिए.
वजहें क्या हैं?
नीतियां बनानेवालों को यह भी समझना होगा कि तमाम जीवों के विलुप्त होने, उनका प्राकृतिक आवास छिनने और उनके बंट जाने के पीछे कई कारण हैं. जैसे खाने और मुनाफे के लिए जरूरत से ज्यादा शिकार किया जाना, प्रदूषण, हमलावर प्रजातियों का फैलना वगैरह. इन सभी समस्याओं को एक साथ साधे बिना कोई ठोस नतीजा नहीं निकलेगा.
रिपोर्ट कहती है, "जैव विविधता का संकट कई वजहों से पैदा हुआ है. इसका मतलब है कि किसी एक या कुछ समस्याओं पर कदम उठाना नाकाफी होगा और लगातार हो रहे नुकसान को रोक नहीं पाएगा." जलवायु परिवर्तन भी जमीन से लेकर समंदर तक जानवरों और पेड़-पौधों की कई प्रजातियों के लिए तेजी से बढ़ता संकट है. ये प्रजातियां खुद को हालात के अनुकूल जितनी तेजी से ढालती हैं, उससे कहीं ज्यादा तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने की जरूरत है. हालांकि, डेढ़ डिग्री भी औद्योगिक काल से पहले के स्तर से ज्यादा ही होगा, लेकिन मसौदे में यह लक्ष्य कहीं दिखाई ही नहीं देता है. धरती की ऊपरी परत पहले ही 1.1 डिग्री गर्म हो चुकी है, जिससे तूफान, लू, सूखा और बाढ़ जैसी विनाशकारी घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है.
वीएस/एनआर (एएफपी)
अब जबकि कई देशों में ढेर सारे लोगों को वैक्सीन लग चुकी है, तो यह सवाल कई लोगों के मन में आ रहा है कि कपड़े का मास्क जरूरी है या N95 मास्क. हालांकि, इसका सही जवाब डॉक्टरों और विशेषज्ञों से ही हासिल किया जा सकता है.
(dw.com)
कोरोना महामारी का दूसरा साल चल रहा है और फिलहाल कहर मचाए ओमिक्रॉन वेरिएंट से लोगों के गंभीर रूप से बीमार की होने की खबरें नहीं आ रही हैं. कई देशों में तमाम लोगों को कोविड वैक्सीन लग चुकी है. बहुत से लोगों को तो दो वैक्सीन के बाद बूस्टर भी दिया जा चुका है. ऐसे में जायज सवाल है कि एन95 मास्क पहनना ज्यादा सही है या फिर कपड़े का मास्क पहनना बेहतर है? हो सकता है कि यह सवाल आपके मन में भी उमड़ रहा हो. सही जवाब तो विशेषज्ञ और डॉक्टर ही दे सकते हैं. तो आइए, जानते हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार कोविड का ओमिक्रॉन वेरिएंट बहुत तेजी से फैलता है. इसके खिलाफ मजबूत सुरक्षा जरूरी है. ऐसे में कोरोना संक्रमण से बचने के लिए आज आपको एन95 या केएन95 जैसे ज्यादा सुरक्षा देने वाले मास्क की ही जरूरत है. आज की तारीख में कई देशों में स्वास्थ्य तंत्र लचर हालत में हैं. लोगों की एक बड़ी आबादी संक्रमण की शिकार हो चुकी है या संक्रमित होने की जद में है. घरों में भी किसी एक व्यक्ति के संक्रमित होने पर बाकी पूरे परिवार के संक्रमित होने के मामले ज्यादा आ रहे हैं. वर्जीनिया टेक में वायरस पर अध्ययन करने वाली लिन्सी मार कहती हैं कि ऐसे में ज्यादा सुरक्षा वाले मास्क और जरूरी हो जाते हैं.
सीडीसी का क्या कहना है?
अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और प्रिवेंशन (सीडीसी ) ने हाल ही में अपने दिशा-निर्देशों में बदलाव किया है और बताया है कि स्वास्थ्यकर्मियों को कौन से मास्क पहनने चाहिए. इन्हीं दिशा-निर्देशों में आम लोगों के लिए भी सलाह दी गई है कि लोग अपने चेहरे पर अच्छी तरह फिट होने वाला मास्क ही लगाएं और इसे ज्यादा से ज्यादा वक्त तक लगाए रखें.
इससे पहले जब आपूर्ति में दिक्कतें आ रही थीं, तब इस संकट को देखते हुए सीडीसी ने कहा था कि एन95 सिर्फ स्वास्थ्यकर्मियों को ही लगाने चाहिए. वैसे एक और श्रेणी भी है, सर्जिकल एन95 मास्क, जो अमूमन आम जनता को बेचे जाने के लिए उपलब्ध नहीं होते हैं.
एन95 में क्या बेहतर है?
कपड़ों से बने मास्क के मुकाबले एन95 मास्क आपके चेहरे पर अच्छी तरह और कसा हुआ फिट होता है. इसे बनाया ही ऐसी सामग्री से जाता है कि यह 95 फीसदी से ज्यादा हानिकारक कणों को आपकी नाक और मुंह में जाने से बचा लेता है. कपड़े के मुकाबले एन95 में फाइबर एक-दूसरे के बहुत करीब गुंथे होते हैं. इसमें इलेक्ट्रोस्टैटिक चार्ज होता है, जो कणों को मास्क से गुजरकर आपके नाक-मुंह में जाने देने के बजाय उन्हें खुद से चिपका लेता है.
केएन95 और केएफ94 मास्क से भी आपको लगभग इसी तरह की सुरक्षा मिलती है. सीडीसी की वेबसाइट पर आप उन मास्क की लिस्ट भी देख सकते हैं, जो सुरक्षा और गुणवत्ता के अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हैं. वैसे इन मास्क को खरीदते समय भी आपको सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि बाजार में नकली मास्क भी खूब बेचे जा रहे हैं.
नकली मास्क से भी सावधान
सीडीसी की ही मानें, तो अमेरिका में केएन95 के नाम से बिक रहे 60 फीसदी से ज्यादा मास्क नकली हैं, जो गुणवत्ता और सुरक्षा के अंतरराष्ट्रीय पैमानों पर खरे नहीं उतरते हैं. आपको भी अपने देश में मास्क खरीदते समय इस बात को लेकर सावधान रहने की जरूरत है. वैसे किसी के मास्क को सिर्फ देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यह असली या नकली. ऐसे में विशेषज्ञ सुझाते हैं कि मास्क सीधे नामी विक्रेताओं से ही खरीदे जाएं.
हां, अगर आपको कोई एन95 मास्क लगातार देर तक लगाने में दिक्कत होती है, तो विशेषज्ञ आपको अलग-अलग बनावट और आकार वाले मास्क आजमाने की सलाह देते हैं, ताकि आप खुद ही अंदाजा लगा सकें कि कौन सा मास्क आपके लिए सबसे आरामदेह है.
वीएस/एमजे (एपी, रॉयटर्स)
पाकिस्तान में एक मुस्लिम महिला को व्हॉट्सऐप के जरिए ईशनिंदा करने वाले संदेश और पैगंबर मोहम्मद के कार्टून भेजने का दोषी पाए जाने के बाद मौत की सजा सुनाई गई है.
पाकिस्तान की अदालत ने बुधवार को महिला को व्हॉट्सऐप पर ईशनिंदा करने वाले संदेश और पैगंबर मोहम्मद के कार्टून भेजने का दोषी पाए जाने के बाद मौत की सजा सुनाई है. मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में ईशनिंदा एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है और इसे प्रतिबंधित करने वाले कानूनों में संभावित मौत की सजा हो सकती है. हालांकि इसे अपराध के लिए कभी भी लागू नहीं किया गया है.
अदालत की तरफ से जारी संक्षिप्त विवरण के मुताबिक 26 वर्षीय अनीका अतीक को मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और उसके व्हॉट्सऐप स्टेटस के रूप में "ईशनिंदा सामग्री" पोस्ट करने का आरोप लगाया गया था. जब उसके दोस्त ने स्टेटस हटाने को कहा था तो अतीक ने उस संदेश को अपने दोस्त को ही भेज दिया. पैगंबर मोहम्मद के चित्र बनाना इस्लाम में प्रतिबंधित है.
ईशनिंदा के मैसेज भेजने का आरोप
इसी शिकायत पर रावलपिंडी की अदालत ने अतीक को दोषी ठहराया था और उसे मौत की सजा सुनाई है. रावलपिंडी के गैरीसन शहर में सजा की घोषणा की गई, अदालत ने अतीक को "उसकी गर्दन से तब तक लटकाए रखने" का आदेश दिया जब तक कि वह मर नहीं जाए. उन्हें 20 साल की जेल की सजा भी दी गई है.
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के मुताबिक पाकिस्तान में आज भी लगभग 80 लोग ईशनिंदा के आरोपों में जेलों में बंद हैं. उनमें से कम से कम आधे मौत की सजा या उम्रकैद पा सकते हैं जबकि कई मामलों में एक मुस्लिम पर दूसरा मुस्लिम व्यक्ति ईशनिंदा का आरोप लगाता है, अधिकार कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि धार्मिक अल्पसंख्यक विशेष रूप से ईसाई इस झगड़े में फंस जाते हैं और व्यक्तिगत विवाद को निपटाने के लिए उनके खिलाफ ईशनिंदा के आरोपों का इस्तेमाल किया जाता है.
पीट-पीटकर मारे जाते हैं आरोपी
पिछले साल दिसंबर में पाकिस्तान में काम करने वाले एक श्रीलंकाई मैनेजर को ईशनिंदा का आरोप लगाने के बाद भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था और उसे जला डाला था. पाकिस्तान के मानवाधिकर समूहों का कहना है देश में ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल निजी दुश्मनी या फिर अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए होता आया है.
पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथ चरम पर है और इस तरह के आरोपों पर पीट-पीटकर हत्या या सड़क पर कानून को अपने हाथ में लेने वालों की कोई कमी नहीं है. 1980 से अब तक ईशनिंदा के करीब 75 आरोपियों की कोर्ट में सुनवाई खत्म होने से पहले ही भीड़ द्वारा हत्या की जा चुकी है.
एए/वीके (एएफपी, एपी)
अफगानिस्तान में अब मुश्किल से 140 सिख बचे हैं. इन लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि जाएं या रुकें. कुछ लोग भारत जाकर लौट आए हैं क्योंकि वहां कुछ नहीं मिला.
काबुल के जिस गुरुद्वारे में कभी विशाल संगतें हुआ करती थीं, वहां अब वीराना पड़ा है. काबुल में एक ही गुरुद्वारा है जिसकी देखरेख करने वाले गुरनाम सिंह खाली आंगन को निराशा से देखते रहते हैं. वह बताते हैं, "अफगानिस्तान हमारा देश है, हमारी सरजमीं है. पर हम पूरी निराशा के साथ इसे छोड़ रहे हैं.”
1970 में अफगानिस्तान में सिखों की आबादी एक लाख से ज्यादा थी. दशकों से जारी युद्ध, गरीबी और समाज में बढ़ी असहिष्णुता ने हालात बदल दिए हैं. पहले सोवियत संघ के कब्जे, फिर तालिबान का खूनी राज, उसके बाद अमेरिका का आक्रमण इस सिख आबादी पर ऐसा भारी गुजरा कि देश में पिछले साल मात्र 240 सिख बचे थे.
अगस्त में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद सिखों के देश छोड़ने का नया सिलसिला शुरू हो गया. गुरनाम सिंह का अंदाजा है कि अब 140 लोग बचे हैं जिनमें से अधिकतर जलालाबाद या काबुल में हैं. काबुल में बचे ये मुट्ठीभर सिख गुरुद्वारे में अरदास के लिए जमा होते हैं. हाल ही में एक सोमवार को अरदास के लिए कुल जमा 15 लोग आए थे. नवंबर में गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब की तीन प्रतियां थीं जिनमें से दो भारत ले जाई जा चुकी हैं.
खतरा अब भी है
मुस्लिम बहुल अफगानिस्तान में सिखों ने काफी भेदभाव झेला है. गरीबी की मार तो है ही, इस्लामिक स्टेट के तेजी से उभरते संगठन खोरसान का खतरा भी लगातार मंडरा रहा है.
अफगानिस्तान से भागे ज्यादातर सिख भारत गए हैं जहां दुनियाभर की कुल ढाई करोड़ आबादी का 90 प्रतिशत हिस्सा बसता है. तालिबान के सत्ता में वापसी के बाद भारत ने सिखों को प्राथमिकता से वीजा देने की योजना शुरू की है. लोग लंबे निवास के लिए वीजा भी अप्लाई कर सकते हैं लेकिन नागरिकता की फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आती.
फार्मासिस्ट मनजीत सिंह 40 साल के हैं. वह उन चंद लोगों में से हैं जिन्होंने अफगानिस्तान छोड़ने से इनकार कर दिया. पिछले साल जब उनकी बेटी भारत चली गई तो उनके सामने भी विकल्प था लेकिन उन्होंने कहा, "मैं भारत में करूंगा क्या? ना वहां कोई काम है न घर है.”
जो सिख अफगानिस्तान में बचे हैं उनके लिए देश छोड़ने का फैसला बेहद मुश्किल है. उनके लिए अफगानिस्तान छोड़ना अपने रूहानी घर को त्यागने जैसा है. 60 साल के मनमोहन सिंह कहते हैं, "60 साल पहले जब यह गुरुद्वारा बना था, तब सारा इलाका सिखों से भरा हुआ था. हमने अपने सुख-दुख सब एक दूसरे के साथ साझे किए थे.”
भारत नहीं जाना चाहते
बाहर से देखने पर गुरुद्वारा आसपास की किसी भी आम इमारत जैसा लगता है. लेकिन यहां सुरक्षा ज्यादा चाकचौबंद है. सबकी कड़ी तलाशी होती है, पहचान पत्र जांचे जाते हैं और तभी अंदर जाने की इजाजत मिलती है. बीते अक्टूबर में कुछ अज्ञात बंदूकधारी इमारत में घुस गए थे और यहां तोड़फोड़ की थी. तब से डर और बढ़ गया.
हालांकि यह कोई पहला ऐसा वाकया नहीं था. 2020 मार्च में आईएस-के के सदस्यों ने काबुल के शोर बाजार में हर राय साहिब गुरुद्वारे पर हमला किया और 25 सिखों को मार गिराया था. उस हमले के बाद से काबुल का करीब 500 साल पुराना वह सबसे पुराना गुरुद्वार अनाथ पड़ा है.
आईएस-के के हमले में घायल परमजीत कौर की बाईं आंख में छर्रा लगा था. उनकी बहन मरने वालों में शामिल थीं. बाद में कौर ने अपना सामान बांधा और दिल्ली चली गईं. लेकिन वह लौट आईं. वह बताती हैं, "वहां ना तो कोई काम था और रहना भी बहुत महंगा था.”
परमजीत पिछले साल जुलाई में लौटी थीं, तालिबान के सत्ता में लौटने से एक महीना पहले. अब वह, उनके पति और तीन बच्चे कारते परवान गुरुद्वारे में ही रहते हैं. उनके बच्चे स्कूल नहीं जाते और वह खुद भी गुरुद्वारे की चार दीवारी से बाहर नहीं निकलतीं. यही एक जगह है जहां वह सुरक्षित महसूस करती हैं.
परमजीत देश छोड़ने के बारे में सोचती हैं, लेकिन इस बार वह भारत नहीं कनाडा या अमेरिका जाना चाहती हैं. वह कहती हैं, "मेरे बच्चे अभी छोटे हैं. अगर हम चले जाएं तो वहां अपनी जिंदगी फिर से खड़ी कर सकती हैं.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
चेक गणराज्य में एक लोक गायिका की कोविड से मौत हो गई है. हाना होरका नाम की इस गायिका ने जानबूझ कर खुद को कोविड से संक्रमित किया था.
चेक गणराज्य की लोकगायिका हाना होरका की कोविड से मौत हो गई है. 57 वर्षीया होरका के परिवार ने बताया है कि ‘हेल्थ पास' हासिल करने के लिए उन्होंने जानबूझ कर खुद को संक्रमित किया था ताकि वह रेस्तरां और थिएटर आदि में जा सकें.
चेक गणराज्य में नियम है कि सार्वजनिक जगहों जैसे रेस्तरां, थिएटर और सांस्कृतिक केंद्रों आदि में जाने के लिए वैक्सीनेशन का प्रमाण पत्र दिखाना होता है. हालांकि, कोविड होने पर टीका लगवाने से छूट मिल जाती है.
‘उनके हाथ खून से रंगे हैं'
होरका के पुत्र यान रेक ने बताया कि होरका की रविवार को मौत हो गई. वह जानेमाने बैंड ऐसोनांस की मुख्य गायिका थीं. रेक ने सरकारी रेडियो आईरोजहाल्त्स को बताया कि क्रिसमस से पहले होरका ने खुद को संक्रमित कर लिया था जबकि उनके पति और बेटे ने टीका लगवाया था.
रेक ने कहा, "उन्होंने हमारे साथ सामान्य रूप से ही रहने का फैसला किया. उन्होंने फैसला किया कि टीका लगवाने से बेहतर है संक्रमित होना.”
लगभग एक करोड़ लोगों की आबादी वाले चेक रिपब्लिक में मंगलवार को 20 हजार से ज्यादा संक्रमण थे. मौत से दो दिन पहले ही होरका ने सोशल मीडिया पर लिखा था, "मैं बच गई. यह बहुत गंभीर था. इसलिए अब थिएटर होगा, सॉना और कॉन्सर्ट होगा. और समुद्र की एक तुरंत जरूरी यात्रा भी.”
रेक ने होरका की मौत के लिए स्थानीय वैक्सीनेशन विरोधी आंदोलन को जिम्मेदार बताया है. उन्होंने कहा कि उन लोगों के हाथ खून से रंगे हैं. रेक ने कहा, "मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मेरी मां को किसने प्रभावित किया. मुझे इस बात का अफसोस है कि उन्होंने अपने परिवार के बजाय अनजान लोगों पर ज्यादा भरोसा किया.”
कोविड खत्म नहीं हुआ है
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि महामारी अभी खत्म होने के आसपास भी नहीं है. संगठन के प्रमुख तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने कहा कि ओमिक्रॉन की तरह और वेरिएंट आते रहेंगे. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, "यह महामारी खात्मे के आसपास भी नहीं है. और जिस तरह ओमिक्रॉन दुनियाभर में फैला है, बहुत संभव है कि नए वेरिएंट उभरते रहेंगे. इसलिए ट्रैकिंग और आकलन महत्वपूर्ण है.”
पिछले साल के आखिरी महीने में दक्षिण अफ्रीका में पहचाने गए ओमिक्रॉन के कारण पूरी दुनिया में एक बार फिर कोविड-19 के मामले चरम पर पहुंच गए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारियों ने कहा है कि भले ही ओमिक्रॉन पहले से कम खतरनाक है लेकिन इस कारण लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ रहा है और उनकी जानें भी जा रही हैं.
डबल्यूएचओ के स्वास्थ्य आपदा योजना के कार्यकारी निदेशक माइक रायन ने कहा, "इसे हल्का वायरस कहना या कम खतरनाक कहना यह भाव देता है कि इसका स्वास्थ्य व्यवस्था पर कम असर होगा. अगर यह वायरस नियंत्रण से बाहर हो जाएगा तो ऐसा नहीं होगा. इसीलिए हमारी सलाह है कि कड़े उपाय जारी रखे जाएं.”
कुछ सरकारों ने संकेत दिए हैं कि वे अब कोविड-19 महामारी को स्थानीय बीमारी के तौर पर ही मानेंगी. हालांकि अधिकारियों का कहना है कि ओमिक्रॉन वायरस ने अब तक प्रतिरोधी क्षमता को सबसे ज्यादा पार किया है और यह वैक्सीन ले चुके लोगों में भी तेजी से फैसला है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी, डीपीए)
उन दोनों के बीच कोई लड़ाई नहीं थी, न मतभेद, न गुस्सा, न कोई शिकायत. दोनों लंबे समय से शादी के रिश्ते को बखूबी निभा रहे थे. उनमें प्यार था. एक-दूसरे के लिए सम्मान था. कुल मिलाकर एक बेहतर रिश्ते के साथ जी रहे थे दोनों. फिर अचानक एक रात पत्नी नींद में बड़बड़ाने लगी तो 61 साल के पति एंटोनी ने अपनी 47 साल की पत्नी रूथ फोर्ट की पुलिस से शिकायत कर दी. पुलिस भी पत्नी के खिलाफ पति के इस एक्शन से दंग थी. लेकिन जब सच सामने आया तो पुलिस ने भी उनकी सराहना की.
2010 में शादी के बंधन में बंधे रूथ और एंटोनी की ज़िंदगी अच्छी गुज़र रही थी. परिवार के सामने कुछ दिक्कतें आई तो रूथ ने केयर होम में नौकरी कर ली. वहीं की एक दिव्यांग महिला के पैसों पर बीवी को ऐश करते देख एंटोनी को उसपर शक हुआ था. जो बाद में सच साबित हुआ.
नींद में कबूल कर लिया जुर्म, पहुंच गई जेल
अपने पति के साथ सोई रूथ देर रात अचानक नींद में बड़बड़ाने लगी. एंटोनी की भी नींद टूट गई. थोड़ी देर तक बड़बड़ाने के बाद रुथ ने कुछ ऐसा कहा जिससे एंटोनी का दिल टूट गया. जिस पत्नी को वो इतना प्यार और सम्मान देता था वो चोर निकली. उसने केयर होम में जिस दिव्यांग महिला की ज़िम्मेदारी ली थी. उसी को मार्केट घुमाने के दौरान उसका एटीएम कार्ड चुरा लिया. रूथ ने ये सारी बातें नींद में कबूल कर ली. जिसके बाद एंटोनी ने उसे जगा कर फिर से सारी बातों को पुख्ता करने के लिए पूछताछ की तो रूथ ने सारा वाकया कह सुनाया. फिर कया था, एंटोनी ने पुलिस में पत्नी के खिलाफ रिपोर्ट कर दी.
उड़ाने लगी बेतहाशा पैसे तो आई शक के घेरे में
कुछ समय पहले ही दोनों परिवार समेत मैक्सिको घूमने गए थे. वहां रूथ ने जमकर पैसे उड़ाए. एंटोनी को अचानक होती पैसों की बारिश से कुछ शक हुआ लेकिन उस समय रूथ ने कोई जवाब नहीं दिया. फिर अचानक एक रात फर्श पर पड़े उसके पर्स में कुछ कैश और एक अनजान एटीएम देखकर फिर चौंका, उसके बाद तो नींद में सच कबूल करते ही सारी बात साफ हो गई. एंटोनी को इस बात का दुख है की उसकी पत्नी इतनी निर्दयी कब और कैसे हो गई कि एक व्हीलचेयर के सहारे चलने वाली बेसहारा महिला के पैसों पर उसने बुरी नज़र डाली. वहीं Preston Crown Court कोर्ट में पेश होने के बाद रूथ ने अपनी चोरी का जुर्म कबूल कर लिया, वहीं कोर्ट की जज ने एंटोनी की हिम्मत और कड़े कदम के लिए उसकी सराहना की. कोर्ट ने रूथ को 16 महीने की सज़ा सुनाई.
मिस्र में एक महिला टीचर का डांस वीडियो वायरल हो गया, जिसके बाद पति ने तलाक दे दिया और नियोक्ता ने उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया. अब देश में महिलाओं के अधिकारों को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है.
बीते दिनों प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका 30 साल की आया यूसुफ का डांस वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसके कारण उसके पति ने उसे तलाक दे दिया और उसकी नौकरी चली गई. इस कदम ने महिलाओं के अधिकारों के हनन पर एक नई बहस छेड़ दी है. मोबाइल द्वारा बनाए गए छोटे से इस वीडियो में यूसुफ स्कार्फ पहनी हुई हैं और पूरी बाजू की कमीज पहने नील नदी पर एक नाव पर अपने सहयोगियों के साथ नाचती और मुस्कुराती हुई दिखाई दे रही हैं.
लेकिन ऑनलाइन वायरल हो रहे इस वीडियो ने विवाद खड़ा कर दिया है. कुछ आलोचकों ने डांस को इस्लामी समाज के मूल्यों का उल्लंघन बताया है, जबकि अन्य लोगों ने महिलाओं के साथ सहानुभूति दिखाते हुए उसका साथ दिया है. हाल के सालों में मिस्र में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें महिलाओं को सोशल मीडिया पर बदनाम किया गया है. जिसके कारण जनता ने जिम्मेदार लोगों से जवाबदेही की मांग की है.
मौलिक अधिकार पर छिड़ी बहस
यह मामला ऐसे समय में आया है जब मौलिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने 2014 में राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी के पदभार संभालने के बाद से रूढ़िवादी उत्तर अफ्रीकी देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर व्यापक कार्रवाई की चेतावनी दी है.
हाल ही में एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में महिला ने कहा, ''वह अपनी ट्रिप से खुश थीं और उनका डांस उस खुशी की अभिव्यक्ति था. मेरे साथ कुछ साथी डांस कर रहे थे और कुछ हवा में हाथ लहरा रहे थे. हम सब नाच रहे थे." जब से वीडियो को ऑनलाइन साझा किया गया है तब से कुछ लोगों ने इसकी कड़ी आलोचना की और इसे "अशोभनीय" व्यवहार बताया. सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर के एक यूजर जिहाद अल-कुलुबी ने टीचर के डांस को "शर्मनाक" कहा. एक अन्य यूजर अहमद अल-बहिरा ने लिखा कि एक "शादीशुदा महिला इतने बेहूदा तरीके से कैसे डांस कर सकती है."
लेकिन एक ऐसे देश में जहां 18 से 39 वर्ष की आयु की 90 प्रतिशत महिलाओं ने 2019 में उत्पीड़न की सूचना दी थी, उन्होंने महिला का समर्थन किया है. वीडियो के वायरल होने के बाद मिस्र के शिक्षा विभाग ने शिक्षिका को काहिरा के उत्तर-पूर्व में डकाहलिया क्षेत्र में एक अनुशासनात्मक समिति के सामने पेश होने का आदेश दिया था, जहां आया यूसुफ को नौकरी से निकाल दिया गया था. लेकिन उसके बाद से जनता के कड़े विरोध के चलते यूसुफ की नौकरी बहाल हो गई.
महिला के डांस पर देश में बहस
मिस्र में महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन के प्रमुख निहद अल-कुमसान ने शिक्षिका का बचाव किया और महिला शिक्षिका को नौकरी की पेशकश की. कुमसान ने मजाकिया लहजे में कहा, "हम अदालत से डांस के संबंध में सही नियमों पर जवाब मांगेंगे ताकि महिलाएं अपने भाइयों और बेटों की शादी या जन्मदिन पर इन नियमों के मुताबिक डांस कर सकें."
मिस्र की मशहूर अभिनेत्री सामिया अल-खशाब का कहना है कि इस तरह की प्रतिक्रिया समाज के दोहरे मानकों को दर्शाती है. उन्होंने सवाल किया कि पुरुष अपनी पत्नियों का समर्थन क्यों नहीं करते. उन्होंने आगे कहा, "कई महिलाएं हैं जो अपने पति का समर्थन करती हैं और बुरी स्थिति में या जेल जाने पर भी पत्नियां उनका साथ नहीं छोड़ती हैं."
आया यूसुफ ने मिस्र की अल-वतन अखबार को बताया कि वह नहीं जानती कि सोशल मीडिया पर वीडियो किसने पोस्ट किया, लेकिन वह उन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना चाहती थी जिन्होंने बदनाम करने की कोशिश की थी. लेकिन यह पहली बार नहीं है जब ऑनलाइन बदनाम करने की घटना ने मिस्र में आक्रोश पैदा किया है.
पिछले साल एक 17 वर्षीय लड़की ने जहर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश करने के बाद जनवरी में दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया था. लड़कों ने उसकी ऑनलाइन तस्वीरों में छेड़छाड़ करके उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश की क्योंकि लड़की ने उनसे दोस्ती करने से इनकार कर दिया था.
जुलाई 2021 में दो महिलाओं को टिकटॉक पर अपने वीडियो पोस्ट करके सार्वजनिक नैतिकता का उल्लंघन करने के लिए मिस्र की एक अदालत ने 6 और 10 साल जेल की सजा सुनाई थी. वे मिस्र के दर्जनों सोशल मीडिया इंफ्लुएंसरों में से थीं जिन्हें 2020 में सामाजिक मूल्यों का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
एए/सीके (एएफपी)
अभी केवल एक पेट स्टोर के 11 हैमस्टर कोरोना पॉजिटिव मिले हैं. मगर प्रशासन ने यहां के दो दर्जन से भी अधिक दुकानों से खरीदे गए सैकड़ों हैमस्टरों और छोटे स्तनपायी जीवों को मारने का फैसला किया है.
हांग कांग प्रशासन ने कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते करीब दो हजार हैमस्टरों को मारने की बात कही है. यह फैसला पालतू जानवर बेचने वाली एक दुकान में 11 हैमस्टरों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद लिया गया. इसके बाद प्रशासन ने लोगों से कहा कि वे अपने हैमस्टर दे दें, ताकि उन्हें मारकर संक्रमण फैलने के खतरे को रोका जा सके. 18 जनवरी को हुए प्रशासन के इस ऐलान के चलते जानवरों के लिए काम करने वाली संस्थाएं डरी हुई हैं. उन्हें आशंका है कि कहीं लोग डरकर अपने पालतू जानवरों को छोड़ न दें.
क्यों लिया गया ये फैसला?
17 जनवरी को पालतू जानवर बेचने वाली एक स्थानीय दुकान 'लिटिल बॉस पेट स्टोर' का एक कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाया गया. इस दुकान पर आने वाला एक ग्राहक भी पॉजिटिव मिला. दोनों को डेल्टा वैरिएंट का संक्रमण हुआ था. इसके बाद प्रशासन ने दुकान के जानवरों की जांच की, जिसमें 11 हैमस्टर संक्रमित पाए गए. हांगकांग प्रशासन महामारी की शुरुआत से ही कोरोना मामलों को शून्य रखने की रणनीति अपना रहा है.
मौजूदा प्रकरण के बाद आशंका उभरी कि कहीं यह जानवरों से इंसानों में संक्रमण फैलने का मामला तो नहीं है. इसीलिए प्रशासन ने लोगों से कहा है कि जिन्होंने भी 22 दिसंबर से लेकर अब तक इस दुकान से हैमस्टर खरीदा है, वे उन्हें प्रशासन के सुपुर्द कर दें. ताकि उन्हें मारा जा सके. हालांकि केवल लिटिल बॉस पेट स्टोर के ही हैमस्टर कोरोना संक्रमित मिले हैं. लेकिन प्रशासन ने शहर के 34 पेट स्टोरों से खरीदे गए करीब दो हजार हैमस्टरों और अन्य छोटे स्तनपायी जानवरों को मारने का फैसला किया है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
दुनियाभर के कई वैज्ञानिकों और हांग कांग के वेटनरी विशेषज्ञों का कहना है कि इंसानों में कोरोना संक्रमण के पीछे जानवरों की कोई बड़ी भूमिका हो, इस बात के फिलहाल कोई साक्ष्य नहीं हैं. वनेसा बार्स हांग कांग में यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. उन्होंने कहा कि जनता के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं के आधार पर हैमस्टरों को मारने का फैसला उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन इसके चलते पालतू जानवरों से संक्रमण होने की आशंका को काफी तूल दे दिया गया है. वनैसा ने आगे कहा, "दुनियाभर में लाखों लोगों के पास पालतू जानवर हैं. आज तक पालतू जानवरों से इंसानों में संक्रमण फैलने का एक भी मामला साबित नहीं हुआ है."
पशु कल्याण संस्थाएं क्या कह रही हैं?
हांग कांग में जानवरों के कल्याण से जुड़ी संस्था 'दी लोकल सोसायटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल्स' (एसपीसीए) ने बताया कि पालतू जानवर रखने वाले कई लोग घबराकर संपर्क कर रहे हैं. एसपीसीए ने बयान जारी कर कहा, "हम पालतू जानवर रखने वालों से अपील करते हैं कि वे घबराएं नहीं और ना ही अपने जानवरों को छोड़ें."
एसपीसीए ने कुछ तरीके भी बताए, जिनका पालन करके इंसानों और जानवरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है. इसमें जानवरों को न चूमना, उनके नजदीक ना छींकना, उन्हें छूने के बाद हाथ धोना जैसी सावधानियां शामिल हैं.
ऑनलाइन याचिकाएं
इस बीच हांग कांग में कई लोग प्रशासन से अपना फैसला बदलने की भी अपील कर रहे हैं. इससे जुड़ी कई ऑनलाइन याचिकाएं भी शेयर की जा रही हैं. मगर प्रशासन के फैसले का बचाव करते हुए स्वास्थ्य सचिव सोफिया चान ने 18 जनवरी को कहा कि वह संक्रमण फैलने की आशंकाओं को खारिज नहीं कर सकती हैं. इसके बाद स्वास्थ्य कर्मी शहर के अलग-अलग पेट स्टोरों से लाल रंग का प्लास्टिक बैग लेकर बाहर आते दिखे.
पकड़े गए जानवरों को इन्हीं बैगों में रखा गया था. इसके अलावा दर्जनों पेट स्टोरों को बंद किए जाने का भी आदेश जारी किया गया है. हालिया दिनों में इन दुकानों में जा चुके करीब 150 लोगों को क्वारंटीन में भेज दिया गया है. छोटे स्तनपायी जानवरों के आयात और बिक्री पर फिलहाल प्रतिबंध लगा दिया गया है. प्रशासन ने एक हॉटलाइन नंबर भी जारी किया है, जिसपर संपर्क करके लोग इस मामले के बारे में पूछताछ कर सकते हैं.
इसके पहले 2020 में डेनमार्क ने कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते लाखों मिंकों को मार दिया था. बाद में सरकार ने माना कि मिंकों को मारने का कोई कानूनी आधार नहीं था. विशेषज्ञों के मुताबिक, अब तक मौजूद जानकारी कहती है कि जानवरों से इंसानों में कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका बेहद कम है.
एसएम/एनआर (रॉयटर्स)
बीजिंग विंटर ओलिंपिक में जाने वाले हर शख्स को अपने स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी अधिकारियों को देनी है. हालांकि इसके लिए बने आधिकारिक स्मार्टफोन ऐप एमवाई 2022 की कई कमजोरियां सामने आई हैं जो इसकी हैकिंग को आसान बनाती हैं.
डॉयचे वैले पर इंगो मानटॉयफेल की रिपोर्ट-
बीजिंग ओलिंपिक विंटर गेम्स के पहले एथलीट अपनी आखिरी तैयारियों में जुटे हैं. इनमें चीन के स्वास्थ्य संबंधी दिशा निर्देशों और उपायों का ध्यान रखने के लिए "एमवाई 2022" स्मार्टफोन ऐप पर लगातार नजर रखना भी शामिल है. हालांकि इनक्रिप्शन के अपर्याप्त उपायों की वजह से यह ऐप ओलंपिक खिलाड़ियों, पत्रकारों और खेल अधिकारियों को हैकरों का शिकार बना सकता है. वो उनकी निजता में खलल डालने के साथ ही उनकी निगरानी के लिए भी इस्तेमाल हो सकता है. सिटिजन लैब से डीडब्ल्यू को खासतौर से मिली साइबर सिक्योरिटी रिपोर्ट से इसका पता चला है. इसके साथ ही आईटी फोरेंसिक विशेषज्ञों ने यह भी पता लगाया है कि ऐप में कुछ शब्दों को सेंसर करने की भी सूची है.
खेलों के दौरान डिजिटल सिक्योरिटी को लेकर उठ रही चिंताओं के बीच यह जानकारी सामने आई है. जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका ने अपने एथलीटों और राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटियों से आग्रह किया है कि वो अपने पर्सनल फोन और लैपटॉप यहीं छोड़ कर जाएं और जासूसी के जोखिम को देखते हुए अपने साथ अलग उपकरण रखें.
डच ओलिंपिक कमेटी ने तो निगरानी के डर से बकायदा एथलीटों के फोन और लैपटॉप ले जाने पर रोक ही लगा दी है.
कांटेक्ट ट्रेसिंग और दूसरी चीजों के लिए एमवाई 2022
4 फरवरी को शुरू हो रहे विंटर गेम्स कोविड-19 की महामारी के बीच दूसरे ओलिंपिक गेम हैं. टोक्यो समर गेम्स की तरह ही इसके लिए भी खिलाड़ियों के स्वास्थ्य पर नजर रखना जरूरी है. इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी यानी आईओसी के प्लेबुक के तहत खिलाड़ियों, कोच, रिपोर्टर और खेल अधिकारियों के साथ ही हजारों स्थानीय कर्मचारियों के लिए अपनी जानकारी एमवाई 2022 या फिर वेबसाइट पर डालना जरूरी किया गया है. चीन में विकसित यह ऐप सारे स्टाफ और मेहमानों के स्वास्थ्य पर नजर रखता है ताकि संभावित कोविड-19 के संक्रमण का पता चल सके.
पासपोर्ट और फ्लाइट की जानकारी भी इस ऐप में डाली जानी है. कोविड-19 के संक्रमण से जुड़े लक्षणों की जानकारी भी यहां डाली जानी है. जैसे कि क्या किसी को बुखार, सिरदर्द, सूखी खांसी, गले का दर्द या डायरिया तो नहीं है. जो लोग बाहर के देशों से आ रहे हैं, उन्हें चीन पहुंचने के 14 दिन पहले से ही सारी जानकारी ऐप पर डालना शुरू कर देना है.
बहुत सारे देश कांटेक्ट ट्रेसिंग ऐप का इस्तेमाल महामारी से लड़ने के लिए कर रहे हैं. एमवाई 2022 कांटेक्ट ट्रैसिंग के साथ ही दूसरी सेवाओं के लिए भी इस्तेमाल हो रहा है. यह इवेंट में जाने को नियंत्रित करता है, खेल के मैदान और पर्यटन सेवाओं से जुड़ी जानकारियां दे कर विजिटर के लिए गाइड की भूमिका निभाता है. इसके साथ ही चैट फंक्शन, न्यूज फीड और फाइल ट्रांसफर की सेवा भी इस पर मौजूद है.
एप्पल के ऐप स्टोर पर जो इसका ब्यौरा दिया गया है उसके मुताबिक, "यह अलग यूजर ग्रुपों के लिए उनकी रुचि के मुताबिक सेवाएं देता है ताकि वो एक ही ऐप पर गेम से जुड़ा हर अनुभव ले सकें."
असुरक्षित डाटा ट्रांसमिशन
टोरंटो यूनिवर्सिटी के मंक स्कूल ऑफ ग्लोबल अफेयर्स में सिटिजन लैब डिजिटल सिक्योरिटी पर रिसर्च करती है. इसी लैब ने पेगासस स्पाइवेयर की सच्चाई भी दुनिया के सामने रखी थी. सिटिजन लैब ने ऐप का परीक्षण किया है और पता लगाया है कि यह इलेक्ट्रॉनिक चोरी के लिहाज से कमजोर है.
इस ऐप के एसएसएल सर्टिफिकेट की पुष्टि नहीं हुई है. यही सर्टिफिकेट यह तय करता है कि डाटा का लेन देन केवल भरोसेमंद उपकरणों और सर्वर के बीच ही हो. इसका मतलब है कि इनक्रिप्शन के लिहाज से यह ऐप गंभीर रूप से कमजोर है. इसके नतीजे में ऐप के जरिए किसी संदिग्ध होस्ट के साथ जोड़ कर इसकी सूचनाओं तक पहुंचा जा सकता है और यहां तक कि ऐप में संदिग्ध या दुर्भावना वाली सूचनाएं भी डाली जा सकती हैं.
सिटिजन लैब के रिसर्चर जेफरी क्नॉकेल के मुताबिक उन्होंने ऐप की कमजोरी को ना सिर्फ स्वास्थ्य की जानकारियों में बल्कि ऐप की दूसरी प्रमुख सेवाओं में भी देखा है. इनमें ऐप की वॉयस ऑडियो भेजने और फाइल अटैचमेंट को प्रॉसेस करने वाली सेवाएं भी शामिल हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ सेवाओं के लिए डाटा ट्रैफिक का इनक्रिप्शन एकदम से नहीं है. इसका मतलब है कि ऐप के अपने चैट सर्विस के मेटाडाटा को भी हैकर पढ़ सकते हैं. क्नॉकेल ने रिपोर्ट में कहा है, "हमारी खोज यह साफ कर देती है कि एमवाई 22 के सुरक्षा उपाय पूरी तरह से अपर्याप्त हैं और यह संवेदनशील जानकारियों को अनाधिकृत लोगों तक पहुंचने से नहीं रोक सकते."
सेंसरशिप से उठे सवाल
सिटिजन लैब के रिसर्चरों ने ऐप में एक टेक्स्ट फाइल भी देखी है जिसका नाम है "इललीगलवर्ड्स.टीएक्सटी" इसमें 2,442 कीवर्ड्स और फ्रेज हैं. मुख्य रूप से ये सरल चाइनीज भाषा के शब्द हैं जिनका इस्तेमाल चीन में आमतौर पर होता है लेकिन इसमें एक हिस्सा उइगुर, तिब्बती, पारंपरिक चाइनीज और अंग्रेजी शब्दों का भी है.
इन शब्दों में ज्यादातर अपशब्द हैं लेकिन इसके साथ ही कुछ ऐसे शब्द भी हैं जो साम्यवादी चीन में राजनीतिक रूप से वर्जित है और जिन पर सरकार का प्रतिबंध है. इनमें चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और उसके नेताओं की आलोचना के साथ ही थियानमेन प्रदर्शन, दलाई लामा और शिनजियांग प्रांत के उइगुर मुसलमान अल्पसंख्यकों से जुड़ी बाते हैं. उदाहरण के लिए सिटिजन लैब ने जिन शब्दों की समीक्षा की है उनमें उइगुर भाषा में "पवित्र कुरान" भी है.
सिटिजन लैब के पास ऐप की सिक्योरिटी का विश्लेषण करने की खास महारत है. लैब का कहना है कि ऐप के मौजूदा संस्करण में इन कीवर्ड का इस्तेमाल सेंसरशिप के लिए सक्रिय रूप से होने के संकेत नहीं मिले हैं. फिलहाल यह भी साफ नहीं है कि इन कीवर्डों को इस ऐप में क्यों डाला गया. हालांकि क्नॉकेल का कहना है, "भले ही इललीगलवर्ड्स.टीएक्सटी का इस्तेमाल फिलहाल नहीं हो रहा हो लेकिन एमवाई 2022 में पहले से ही ऐसे कोड फंक्शन हैं जो इस फाइल को पढ़ने और सेंसरशिप के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, ऐसे में इस लिस्ट की सेंसरशिप चालू करना चुटकियों का काम है."
इस ऐप में रिपोर्टिंग फंक्शन भी मौजूद है जो यूजर को किसी चैट मैसेज के संदिग्ध या आपत्तिजनक लगने पर दूसरे यूजर की रिपोर्ट करने की सहूलियत देता है. रिपोर्ट करने के लिए जो संभावित कारण दिए गए हैं उनमें एक है, "राजनीतिक रूप से संवेदनशील सामग्री." चीन में इस विकल्प का इस्तेमाल सेंसर की गई चीजों के लिए खासतौर से होता है.
बीजिंग ऑर्गनाइजिंग कमेटी की तरफ से कोई जवाब नहीं
सिटिजन लैब का कहना है कि उसने दिसंबर 2021 के शुरुआत में ही बीजिंग ऑर्गनाइजिंग कमेटी को गोपनीयता के साथ ओलिंपिक 2022 के लिए ये सारी जानकारी दे दी थी. सुरक्षा से जुड़ी कमजोरियों की रिपोर्टिंग के लिए यह जरूरी होता है. सिटिजन लैब ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से पहले कमेटी को इसे हल करने के लिए 45 दिन का समय दिया था. क्नॉकेल ने डीडब्ल्यू को बताया, "ऑर्गनाइजिंग कमेटी ने हमारे इस पर्दाफाश का कोई जवाब नहीं दिया."
इसी बीच ऐप में अपडेट भी कर उसे एप्पल और गूगल के स्टोर पर पब्लिश कर दिया गया. सिटिजन लैब के साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञों ने जब इसकी 17 जनवरी 2022 को जांच की तो पता चला कि जिन बातों को लेकर चिंता जताई गई थी उसके संदर्भ में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
कानून का उल्लंघन
इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी ने एथलीटों और टीम के अधिकारियों के लिए बने ओलिंपिक प्लेबुक में कहा है कि एमवाई 2022 ऐप अंतरराष्ट्रीय मानकों और चीन के कानून के मुताबिक है. अपनी खोज के आधार पर सिटिजन लैब का कहना है कि निजी जानकारियों का असुरक्षित प्रसार "चीन के निजता कानूनों का सीधा उल्लंघन हो सकता है." चीन के डाटा प्रोटेक्शन कानून के तहत किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों को डिजिटल रूप से रखा जाता है और इसे सिर्फ इनक्रिप्शन के साथ ही प्रसारित किया जा सकता है.
सिटिजन लैब की खोज ने एप्पल और गूगल पर भी सवाल उठाए हैं. क्नॉकेल ने बताया, "गूगल और एप्पल दोनों की नीतिया संवेदनशील जानकारियों को बिना इनक्रिप्शन के प्रसारित करने से मना करती हैं. ऐसे में एप्पल और गूगल को यह तय करना होगा कि क्या ऐप की कमजोरियां इसे स्टोर से हटाए जाने के काबिल बनाती हैं."
डीडब्ल्यू ने गूगल और एप्पल से इस मामले में प्रतिक्रिया मांगी है. इस बीच बीजिंग ऑर्गनाइजिंग कमेटी अपने ऐप के साथ खड़ी है. उनका कहना है कि गूगल, एप्पल और सैमसंग के परीक्षणों को ऐप ने पास किया है. कमेटी ने सोमवार को शिन्हुआ न्यूज एजेंसी से कहा, "हमने निजी जानकारियों के इनक्रिप्शन जैसे उपाय किए हैं ताकि निजता की रक्षा हो सके." (dw.com)