अंतरराष्ट्रीय
एस्टोनिया के वैज्ञानिकों ने दलदल में मिलने वाले कोयले से सोडियम आयन बैट्री बनाने में कामयाबी पाई है. अगर यह प्रयोग व्यवसायिक तौर पर सफल रहता है तो वाहनों के लिए बैट्री उपलब्ध कराने में बड़ा योगदान दे सकता है.
एस्टोनिया के वैज्ञानिकों ने दलदल में मिलने वाले कोयले से सोडियम आयन बैट्री बनाने में कामयाबी पाई है. अगर यह प्रयोग व्यवसायिक तौर पर सफल रहता है तो वाहनों के लिए बैट्री उपलब्ध कराने में बड़ा योगदान दे सकता है.
उत्तरी यूरोप के दलदली मैदानों में नरम कोयला प्रचुर मात्रा में मिलता है. एस्टोनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस कोयले से सोडियम आयन बैट्री बनाई जा सकती है, जिन्हें कारों में इस्तेमाल किया जा सकता है.
सोडियम आयन बैट्री में लीथियम, कोबाल्ट या निकल नहीं होता. बैट्री बनाने की यह नई तकनीक है जो लीथियम बैट्री के विकल्प के तौर पर उभर रही है.
एस्टोनिया की तारतू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने नरम कोयले से सोडियम आयन बैट्री बनाने का तरीका खोजा है. इस तरीके से लागत कम होती है. हालांकि यह तकनीक अभी शुरुआती दौर में है.
यूनिवर्सिटी के रसायन विभाग की अध्यक्ष एन लुस्ट बताती हैं, "नरम कोयला बहुत सस्ता कच्चा माल है. सच कहूं तो इसकी कीमत कुछ भी नहीं है.”
कैसे बनाई बैट्री?
नरम कोयले से सोडियम आयन बैट्री बनाने के लिए उसे एक भट्टी में उच्च तापमान पर 2-3 घंटे जलाया जाता है. यूनिवर्सिटी को उम्मीद है कि सरकार इस तकनीक का परीक्षण करने के लिए जरूरी एक छोटी फैक्ट्री बनाने के वास्ते धन उपलब्ध कराएगी.
स्कॉटलैंड में शराब बनाने वाले जौ को सुखाने के लिए नरम कोयले की आग का ही इस्तेमाल करते हैं. इससे व्हिस्की में एक अलग स्वाद आता है. उत्तरी यूरोप के कुछ देशों में नरम कोयले को फैक्ट्रियों और घरों में ईंधन के तौर पर और खेतों में खाद के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है.
नरम कोयला निकालने के लिए दलदलों को सुखाया जाता है. इस प्रक्रिया में कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है, जो पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय है. लेकिन एस्टोनिया के वैज्ञानिकों का कहना है वे डिकंपोज हो चुका नरम कोयला इस्तेमाल कर रहे हैं जो आमतौर पर फेंक दिया जाता है.
कितनी कामयाब होगी सोडियम बैट्री?
इस प्रक्रिया से बनी सोडियम आयन बैट्री व्यवसायिक तौर पर कितनी कामयाबी हासिल कर पाएगी, इस बारे में अभी संदेह बना हुआ है. बैट्री पर किताब लिखने वाले बाजार विशेषज्ञ लुकास बेडनार्स्की कहते हैं कि इस तरह की बैट्री को अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी.
वैसे, कुछ जगहों पर सोडियम आयन बैट्री का प्रयोग शुरू हो गया है. चीन की सीएटीएल ने जुलाई में कारों के लिए सोडियम आयन बैट्री बनाने का ऐलान किया था.
बेडनार्स्की कहते हैं, "मुझे लगता है कि कंपनियां तेजी से सोडियम आयन बैट्रियों को प्रयोग करना चाहेंगी, खासकर चीन में हुए ऐलान के बाद. सोडियम आयन बैट्री की ताकत कम होती है इसलिए संभव है कि उन्हें लीथियम बैट्री के साथ ही प्रयोग किया जाए.” (dw.com)
वीके/सीके (रॉयटर्स)
मैड्रिड, 17 अक्टूबर | ला पाल्मा का स्पेनिश द्वीप पिछले 24 घंटों में 36 भूकंपों की चपेट में आया क्योंकि कंब्रे विएजा ज्वालामुखी का विस्फोट 28वें दिन भी जारी रहा। इसकी जानकारी स्थानीय अधिकारियों ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, स्पेनिश भौगोलिक संस्थान (आईजीएन) ने कहा कि माजो नगर पालिका में शनिवार सुबह 4.41 बजे रिक्टर पैमाने पर 4.6 तीव्रता का भूकंप आया।
शुक्रवार की रात ज्वालामुखी ने अपने मुख्य शंकु के दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर एक के बाद भूकंपों को मापा।
फिशर ने राख और पायरोक्लास्टिक मटेरियल को बाहर निकालना शुरू कर दिया है।
ज्वालामुखी उच्च विस्फोटक और अन्य सापेक्ष शांत की अवधि के साथ एक स्ट्रोमबोलिक तरीके से व्यवहार करता है, हालांकि टीवी की तस्वीरों से पता चलता है कि लावा की तेजी से चलती सुनामी के रूप में इसकी ढलानों को कैस्केडिंग के रूप में वर्णित किया गया है।
द्वीप के अधिकारियों ने गणना की है कि 732 हेक्टेयर भूमि लावा से प्रभावित हुई है, जिससे कॉपरनिकस उपग्रह के अनुसार 1,548 इमारतों को नष्ट कर दिया गया है और 19 सितंबर को विस्फोट की शुरूआत के बाद से 7,000 से अधिक लोगों की निकासी हुई है।
वर्तमान विस्फोट पहले से ही 1971 के विस्फोट से अधिक समय तक चला है, जो द्वीप को प्रभावित करने वाला अंतिम था।
इससे पहले गुरुवार को ला पाल्मा में एक बार फिर 50 से ज्यादा झटके महसूस किए गए। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 17 अक्टूबर | बांग्लादेश के अल्पसंख्यक निकाय के प्रमुख ने हिंदू मंदिरों पर हमले सहित हिंसा की हालिया घटनाओं के विरोध में 23 अक्टूबर को एक दिन का प्रदर्शन का करने का आहवान किया है। पिछले तीन दिनों में हमलों में कम से कम चार लोग मारे गए हैं और 70 अन्य घायल हुए हैं।
जिन हिंदू नेताओं ने पहले दुर्गा पूजा स्थल पर चटगांव में पुलिस की मौजूदगी में हुए हमलों और तोड़फोड़ के खिलाफ आवाज उठाने के लिए देवी दुर्गा की मूर्तियों को विसर्जित करने से इनकार कर दिया था, उन्होंने आखिरकार शनिवार को मूर्तियों का विसर्जन कर दिया।
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद (बीएचबीसीयूसी) के महासचिव एडवोकेट राणा दासगुप्ता, ने कहा कि बांग्लादेश के 20 जिलों में दुर्गा पूजा के दौरान धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा किए गए हमलों में कम से कम चार लोगों की मौत हो गई और 70 अन्य घायल हो गए।
दासगुप्ता ने शनिवार को चटगांव प्रेस क्लब में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कट्टरपंथी हमलावरों ने अल्पसंख्यकों के 70 से अधिक पूजा स्थलों, 30 घरों और 50 दुकानों में तोड़फोड़ की, आग लगा दी और लूटपाट की।
मानवाधिकार कार्यकर्ता नूरजहां खान, लीरहो के महासचिव अशोक साहा, प्रोफेसर जिनोबोधि भांते ने पूर्व नियोजित सांप्रदायिक हमले के खिलाफ न्याय के लिए लड़ने के लिए परिषद के नेताओं के साथ प्रतिबद्धता की कसम खाई है।
दासगुप्ता ने दावा किया कि चटगांव मेट्रोपॉलिटन पुलिस (सीएमपी) के आयुक्त सालेह मोहम्मद तनवीर अल्पसंख्यक लोगों की रक्षा करने में विफल रहे और चटगांव के मंदिरों और अल्पसंख्यक लोगों की रक्षा करने का उनका वादा नाकाम रहा।
उन्होंने कहा, "जब आयुक्त मेरे पास आए, तो मैंने कहा, मुझे आप लोगों पर भरोसा नहीं है.. आप मंदिरों की रक्षा करने में विफल रहे, आपके पुलिस बल भी जेएम सेन हॉल पूजा स्थल पर हमले से पहले गायब हो गए।"
शुक्रवार दोपहर हिंदू समुदाय के नेताओं ने जेएम सेन हॉल के पूजा स्थल में तोड़फोड़ के विरोध में देवी दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन नहीं करने की घोषणा की और कोतवाली थाने के प्रभारी अधिकारी (ओसी) नेजाम उद्दीन को हटाने की भी मांग की।
एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि प्रधानमंत्री शेख हसीना के मुख्य सचिव ने संबंधित पुलिस अधिकारी को वापस बुलाने का आदेश दिया था, लेकिन सीएमपी के आयुक्त तनवीर ने इससे इनकार किया है।
दासगुप्ता ने यह भी उल्लेख किया कि नेजम उद्दीन से उनकी लापरवाही के लिए पूछताछ की जानी बाकी है।
उन्होंने कुछ घटनाओं का विवरण देते हुए मंदिरों और हमले के शिकार लोगों की सूची की भी घोषणा की।
उन्होंने कहा कि एक हिंदू भक्त पार्थ दास का शव शनिवार सुबह नोआखली के चौमोहनी में इस्कान मंदिर के तालाब में देखा गया। बुधवार को चांदपुर के हाजीगंज में लक्ष्मी नारायण जीउ अखरा पर हुए हमले में माणिक साहा की मौत हो गई।
स्थानीय लोगों के अनुसार, शुक्रवार को नोआखली में, हमलावरों ने बिजॉय पूजा मंडप समिति के सदस्य जतन साहा और इस्कान के सदस्य मोलोय कृष्ण दास को उनके मंदिर में पीट-पीट कर मार डाला।
हालांकि, पुलिस ने दावा किया कि साहा की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई।
दासगुप्ता ने कहा, "इन सांप्रदायिक हमलों को अब अलग-अलग घटनाओं के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता है। हमारा मानना है कि ये सभी एक योजना का हिस्सा थे। मुख्य लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बांग्लादेश की छवि को नष्ट करना है।"
उन्होंने आरोप लगाया कि चटगांव के कर्णफुली थाना क्षेत्र के जॉय बांग्ला क्लब के लोगों ने गुरुवार को जेलेपारा पूजा स्थल पर हमला किया। दो भाई-बहन, जोयनल और मोनिर, बीएनपी के पूर्व कार्यकर्ता, जो बाद में अवामी लीग में शामिल हो गए, उन्होंने हमले का नेतृत्व किया।
बुधवार को, शेखरखिल, गोंडारा और नेपोरा के मोहम्मद सबर अहमद, मोहम्मद रिदवान और मोहम्मद शम्सुल इस्लाम ने चट्टोग्राम में शेखरखिल और बंशखली के नपोरा के हिंदुओं पर हमलों का नेतृत्व किया।
पुलिस ने बंदरगाह शहर के जेएम सेन हॉल में पूजा स्थल पर हमला करने के प्रयास को लेकर 83 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इनमें ज्यादातर दुकानदार और निवासी और सुरक्षा कैमरे के फुटेज से पहचाने जाने वाले खलीफापोट्टी हैं।
साथ ही चांदपुर, चटगांव, कॉक्स बाजार, बंदरबन, मौलवीबाजार, गाजीपुर, चपैनवाबगंज और अन्य जिलों में भी ऐसी ही घटनाएं हुई हैं। बुधवार को चांदपुर के हाजीगंज में पूजा स्थलों पर हुए हमलों के दौरान पुलिस की गोलीबारी में कम से कम चार लोगों की मौत हो गई।
हमलों और सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक नफरत फैलाने के आरोप में लगभग सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने दावा किया कि 24 जिलों में बीजीबी कर्मियों को तैनात किया गया है और पूजा स्थलों पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। (आईएएनएस)
चीन में साम्यवादी सरकार के गठन की वर्षगांठ अक्टूबर में होती है और इसी के साथ ताइवान के साथ उसका विवाद भी भड़क जाता है. इस साल चीन ने तो ऐसे तेवर दिखाए कि युद्ध जैसी नौबत दिखने लगी पर युद्ध चीन के फायदे में नहीं है.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र की रिपोर्ट
पूर्व और दक्षिणपूर्व एशिया के देशों में वायांग या कटपुतली का खेल बड़ा मशहूर है. लोककथाओं पर आधारित इन नाटकों का मंचन कुछ इस तरह होता है कि देखने वाला परदे पर घूमती परछाईयों की गतिविधियों में इस कदर डूबने लगता है मानो पल भर के लिए वह सब सच ही हो. और अगर बैकग्राउंड संगीत भी नाटकीय हो तो फिर क्या कहने? बीते दो हफ्तों में चीन और ताइवान के बीच सामरिक जोर-आजमाइश भी कुछ हद तक वायांग के खेल जैसी ही लगी. दुनिया भर के लोगों को यही लगा कि चीन और ताइवान के बीच युद्ध अब शुरू हुआ कि तब. दोनों तरफ के नेताओं के वक्तव्य और वायु सेनाओं की गतिविधियां ही ऐसी थीं कि इस तरह की अटकलों का बाजार गर्म होना लाजमी था.
दरअसल, 1 अक्टूबर को चीन का राष्ट्रीय दिवस था. इसी दिन सन् 1949 में चीन में साम्यवादी पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना हुई थी. और जैसा कि अमूमन हर आधुनिक देश के साथ होता है, चीन में भी सालगिरह के आस-पास के दिनों में राष्ट्रवाद कुलांचे मारने लगता है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर यह जिम्मेदारी कुछ ज्यादा ही है क्योंकि एक छोर से वह सरकार की तरह बैटिंग करती है और दूसरे छोर से जनता के बदले खुद ही बॉलिंग भी कर लेती है. जनता चाहे तो बैठे दर्शक दीर्घा में क्योंकि वेनगार्ड के आगे उसे खुद तो सही गलत की परख है नहीं.
राष्ट्रवाद के रंग में रंगी चीनी वायु सेना ने देश की जनता को एक मजबूत संदेश देने के लिए एक के बाद एक दर्जनों युद्धक जहाज ताइवान के दक्षिण पश्चिमी एडीआईजेड (एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन) के अंदर दाखिल होने के लिए भेज दिए. 1 से 4 अक्टूबर के बीच ही तकरीबन चीनी वायु सेना के 150 लड़ाकू जहाजों ने ताइवान की एडीआईजेड सीमा का उल्लंघन किया.
शी जिनपिंग के आक्रामक तेवर
राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आक्रामक तेवर दिखाए और ताइवान को चीन में मिला लेने का संकल्प भी दुहराया. चीनी क्रांति की एक सौ दसवीं सालगिरह के अवसर पर 9 अक्टूबर को हुई बैठक में भी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस बात पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि चीन के राष्ट्रीय पुनरोत्थान के लिए चीन का पूरी तरह भौगोलिक एकीकरण होना जरूरी है. यह चीनी लोगों के लिए साझा सम्मान की ही बात नहीं, उनके साझा मिशन का भी हिस्सा है.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग की इस बात को हलके में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि वह सिर्फ चीन के सर्वोच्च नेता ही नहीं, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के जनरल सेक्रेटरी और मिलिटरी कमीशन के प्रधान भी हैं. मार्च 2018 में नेशनल पीपल्स कांग्रेस की एक बैठक में जिनपिंग को 5 साल के असीमित कार्यकालों तक सत्ता पर बने रहने का निर्णय दिया गया.
इस बात के मद्देनजर भी अब यह साफ है कि जिनपिंग के लिए हर निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे. माओ जेडोंग के चीन की तरह अब शी जिनपिंग के फैसलों को भी अब बरसों तक चलाया जा सकता है. शी जिनपिंग की बातों से यह साफ है कि चीन ताइवान पर अपना दवा फिलहाल तो छोड़ने से रहा. तो क्या चीन ताइवान पर हमला करने जा रहा है? नहीं. चीन आने वाले कुछ समय में ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे उसके अपने हितों को सीधा नुक्सान पहुंचे. फिलहाल चीन ताइवान पर हमला नहीं करने जा रहा है, लेकिन हां, चीन की ये सरगर्मियां ताइवान के लिए कब सरदर्दियों में बदल जाएंगी, यह कहना मुश्किल है.
सालों से जारी चीन ताइवान विवाद
जहां तक पिछले दो हफ्तों की घटनाओं का सवाल है तो चीन और ताइवान के बीच बातों और धमकियों की रस्साकशी नई नहीं है. पिछले कई सालों में देखा गया है कि चीन और ताइवान के बीच खींचतान अक्टूबर के महीने में बढ़ जाती है. इन दोनों ही देशों के लिए यह सबसे प्रमुख मुद्दा है जिस पर सुलह करना मुश्किल ही नहीं, लगभग नामुमकिन है. खास तौर पर तब तक, जब तक ताइवान में साई इंग-वेन की सरकार है. और ऐसा इसलिए क्यों कि ताइवानी राष्ट्रपति साई इंग-वेन कट्टर राष्ट्रवादी हैं. और इस मुद्दे पर उनके विचार चीन की शी जिनपिंग की सरकार से बिलकुल मेल नहीं खाते.
जहां चीन ने ताइवान को अपना हिस्सा बना लेने की कसमें दोहराईं तो ताइवान भी चुप नहीं है. अपनी सालगिरह के दिन 10 अक्टूबर को, जिसे ताइवान के सन्दर्भ में 'डबल टेन' की संज्ञा भी दी जाती है, ताइवान ने भी अपने तेवर दिखाए और सैन्य शक्ति का मुजाहिरा किया. राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने चीन की अतिक्रमणवादी नीतियों की जमकर आलोचना की और कहा कि ताइवान यथास्थिति बनाये रखने के लिए कटिबद्ध है और चीन का आह्वान करता है कि वह यथास्थिति का सम्मान करे. उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसा नहीं होता है तब भी ताइवान अपनी सुरक्षा और यथास्थिति बनाये रखने के लिए हर संभव कोशिश करेगा.
ताइवान के सख्त तेवरों को अमेरिका, जापान, और आस्ट्रेलिया से समर्थन मिला. यूरोपीय संघ ने भी ताइवान की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई. चीन की अचानक बढ़ी सैन्य गतिविधियों से हलकान हुए ताइवान पर संकट के बादल फिर से मंडराए तो सही, लेकिन जल्द ही छंट भी गए. 5 अक्टूबर के बाद से ही चीनी सेना की गतिविधियों में काफी कमी आई है.
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व पीएम की बैटिंग
लेकिन चीन और ताइवान के बीच तकरार को और ज्यादा मीडिया कवरेज मिला भूतपूर्व ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री टोनी अबॉट के वक्तव्य से और ताइवान को भारतीयों के समर्थन से. टोनी अबॉट ताइपे में हो रही युषान फोरम कांफ्रेंस में मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करने पहुंचे थे. अपने वक्तव्य में उन्होंने चीन को आड़े हाथों लिया और उस पर व्यापार को दूसरे देशों को दंडित करने का हथियार बनाने या यूं कहें कि कारोबार के शस्त्रीकरण करने का आरोप लगाया.
अबॉट ने चीन के हाथों हो रही अपने देश आस्ट्रेलिया की दुर्दशा का मुद्दा उठाया और कहा कि पड़ोसियों के साथ चीन का व्यवहार अनैतिक और निंदनीय है. उन्होंने कहा कि चीन ने खुद अपने ही नागरिकों पर साइबर जासूसी बढ़ा रखी है, और लाल तानाशाही के चलते लोकप्रिय शांतिदूतों को परे कर दिया है. हिमालय पर चीन ने भारतीय सैनिकों के साथ अमानवीय लड़ाई छेड़ रखी है. और पूर्वी सागर में और ताइवान के साथ उसने अनाधिकार अतिक्रमण करने की कोशिशें जारी रखी हैं. चीन की यह आक्रामककता उसकी कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था और तेजी से घटते राजकोष से भी जुड़ी हैं.
अपने देश में अब उतने लोकप्रिय नहीं रहे अबॉट ने इस भाषण से मानो कमाल ही कर दिया, जहां एक ओर चीन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी तो वहीं ताइवान और दुनिया के तमाम देशों ने इस वक्तव्य को काफी सराहा. भारत, दक्षिणपूर्व एशिया, जापान, और आस्ट्रेलिया को एक कड़ी में पिरो कर अबॉट ने चीन की छवि को कुछ इस कदर पेश किया कि चीन सरकार सैन्य कार्रवाईयों के बजाय कूटनीतिक तू तू मैं मैं में लग गई. इसी कड़ी में चीन ने भारत की आलोचना भी की जिसके साथ सीमा विवाद संबंधी तेरहवें दौर की वार्ता भी अब विफल हो चुकी है.
भारत में ताइवान के लिए बढ़ता समर्थन
इन घटनाओं की खबर जैसे ही सोशल मीडिया पर आई तो भारतीयों ने ताइवान की एडीआईजेड सीमा में चीनी अतिक्रमण पर चीन को आड़े हाथों लिया. ट्विटर और फेसबुक पर ताइवान की बहार रही. पिछले साल की तरह इस साल भी 10 अक्टूबर को भारत में चीनी दूतावास के सामने ताइवान के समर्थन में झंडे और बैनर लगाए गए और दोनों देशों की अटूट दोस्ती की बातें की गयीं. हालांकि भारत सरकार का इससे कुछ लेना देना नहीं लेकिन ताइवान को लेकर जनता का बढ़ता समर्थन तो साफ दिखता है.
कुल मिलाकर बात यह कि चीन के सैन्य जहाजों का मुकाबला ताइवान ने कूटनीतिक तौर पर करने की कोशिश की और इसमें सफल भी रहा. गौरतलब है कि पिछले तीन-चार दिनों में चीन के सैन्य और कूटनीतिक दोनों ही तेवरों में खासी नरमी आई है. इन तमाम बातों पर गौर किया जाय तो लगता यही है कि फिलहाल चीन और ताइवान युद्ध की ओर नहीं बढ़ रहे हैं.
महाशक्ति चीन के आगे छोटे से ताइवान का लम्बे समय तक टिकना मुश्किल है, और यही वजह है कि ताइवान सामान विचारधारा वाले तमाम लोकतांत्रिक देशों को साथ लाने की कवायद में लगा है. ताइवान को शायद पता है, संघे शक्ति कलयुगे. लेकिन यह शक्ति हासिल करना हिमालय चढ़ने जैसा ही मुश्किल है. कूटनीतिक वायांग का यह खेल इन दोनों के बीच फिलहाल जारी रहेगा. लेकिन शी जिनपिंग की सत्ता से निपटने के लिए ताइवान को एक सुदृढ़ और सूझबूझ भरी दूरगामी नीति जल्द ही बनानी होगी. (dw.com)
कुम्ब्रे विएखा ज्वालामुखी शांत होने का नाम नहीं ले रहा है. विशेषज्ञों का अंदाजा है कि ये अभी और भड़केगा. इस ज्वालामुखी से निकले लावा से भारी बर्बादी हुई है, लेकिन आगे चलकर एक नया जीवन भी उन्हीं की बदौलत मुमकिन होगा.
डॉयचे वैले पर अलेक्जांडर फ्रॉएंड की रिपोर्ट
कैनरी द्वीपों जैसे ज्वालामुखी वाले द्वीपों में रहने वाले जानते हैं या उन्हें जानना चाहिए कि उनका गठन और उनकी अभूतपूर्व उर्वरता किस तरह धरती के नीचे सुसुप्त ज्वालामुखियों से जुड़ी हुई है. और उन्हें इससे जुड़े जोखिमों का भी अंदाजा होना चाहिए. ये ज्वालामुखी सदियों और सहस्त्राब्दियों तक सोए पड़े रह सकते हैं और फिर किसी दिन अचानक फट सकते हैं.
अधिकारियों के मुताबिक ला पाल्मा में तीन सप्ताह से भड़के कुम्ब्रे विएखा ऋंखला का एक ज्वालामुखी और भी ज्यादा उग्र हो उठा है. आने वाले दिनों में जानकार और ज्वालामुखी फटने की आशंका जता रहे हैं. पहाड़ पर नये मुंह खुल गए हैं जिनसे लावा रिसता हुआ समन्दर की ओर बह रहा है. इसी दौरान द्वीप पर भूकंप के और झटके आते रहे हैं. ये भी संकेत है कि ज्वालामुखी अभी और सक्रिय रह सकता है.
प्रारंभिक विस्फोट के दस दिन बाद, ला पाल्मा का लावा समन्दर तक पहुंच गया था. छह किलोमीटर बहते हुए दहकता लावा 470 हेक्टेयर की जमीन पर फैलता चला गया. 1000 इमारतें और कई सड़कें नष्ट हो गई. छह हजार लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर ले जाना पड़ा. विषैली गैसों के पनप जाने का खतरा भी था.
लावा से विनाशकारी नुकसान
ज्वालामुखी के हर विस्फोट से द्वीप की सूरतेहाल बदल जाती है. लावा और राख की परत विशाल इलाकों को ढांप लेती है. लावा के पसार के नीचे कुछ भी नहीं उगता. ला पाल्मा यूनिवर्सिटी में जैव विविधता और पर्यावरणीय सुरक्षा के विशेषज्ञ फर्नांडो टूया कहते हैं कि समुद्री पौधों और जानवरों पर लावा के शुरुआती असर विनाशकारी होते हैं. लावा के नीचे दफ्न हुए जीव तुरंत ही मर जाते हैं. और ठंडे पड़ चुके लावा पर खुद को पुनर्स्थापित करने में नये पौधों को सालों-साल या दशकों लग जाते हैं.
ला पाल्मा की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है. 85 हजार रैबासियों वाले ला पाल्मा में ज्वालामुखी फटने का मतलब है भारी आर्थिक नुकसान. उदाहरण के लिए लावा से बहुत सारे केला बागान नष्ट हो चुके हैं. और वे कैनरी द्वीपों की आय के मुख्य स्रोतों में से एक हैं.
इसके अलावा सैर सपाटे के लिए मशहूर द्वीप में, ज्वालामुखी की राख के चलते हवाई यातायात भी रोकना पड़ा था. गतिरोध के शुरुआती चार दिनों के बाद, पिछले सप्ताह ही द्वीप पर विमानों का फिर से उतरना शुरु हो पाया. द्वीप से मिल रही डरावनी तस्वीरों को देखते हुए लगता है कि पर्यटन की गतिविधियों को दोबारा शुरू करने में कुछ समय लग सकता है.
उभर रही है नयी जमीन
करीब 470 हेक्टेयर जमीन लावा के नीचे दब चुकी है. अक्सर की जाने वाली तुलना के हिसाब से ये फुटबॉल के 658 मैदानों जितनी जमीन है. इसी दौरान ये भी हुआ है कि ज्वालामुखी विस्फोट की बदौलत कैनरी द्वीप बढ़ने लगा है. पश्चिमी तट पर जहां लावा अटलांटिक में बह गया है, वहां गली हुई चट्टानों से निर्मित एक नया इलाका पहले ही उभर आया है.
इस समय ये तीस हेक्टेयर इलाका है यानी फुटबॉल के 42 मैदानों के बराबर. और इसके साथ ही द्वीप भी वृद्धि करने लगा है. और टूया के मुताबिक प्रारंभिक नकारात्मक असर के बाद ये घटना आगे चलकर "संपन्नता लाने वाली” बन सकती है. "लावा से एक चट्टान बन जाएगी जहां पर बहुत सारी समुद्री प्रजातियों को पनपने का मौका मिलेगा और उसे ही वे तीन से पांच साल के लिए अपना ठिकाना भी बना लेंगी.”
वरदान बन गया उर्वर लावा
नया उभरता समन्दरी जीवन उन लोगों तो क्या ही सांत्वना दे पाएगा जिन्होंने अपना संपत्ति और आजीविका इस विस्फोट में गंवा दी है. लेकिन सक्रिय ज्वालामुखियों के नीचे और ढलानों पर लोग विस्फोट के जोखिम उठाकर भी बस ही रहे हैं और इसकी एक माकूल वजह है. वजह ये है कि लावा मिट्टी को असाधारण रूप से उर्वर बना देता है. उससे निकली राख में पौधों के लिए अहम पोषक तत्व मिलते हैं. लावा की राख में फॉस्फोरस, पोटेशियम और कैल्सियम भरपूर मात्रा में मिलता है और इसमें पानी भी जमा रहता है.
पौधों को ये पोषक तत्व हासिल करने में वक्त नहीं लगता है. मिट्टी की एक पतली परत चट्टान की सतह पर जल्द ही बन जाती है. लावा ऐश, उर्वरक की तरह भी काम करती है जिसकी बदौलत फसल भी अच्छी होती है. इसीलिए ला पाल्मा में केले के विशाल बागान लगाए गए हैं. करीब 3000 हेक्टेयर में एक लाख मीट्रिक टन से ज्यादा केले हर साल पैदा होते हैं. इसी के चलते केले की पैदावार, ला पाल्मा की अर्थव्यवस्था में पर्यटन के साथ साथ, सबसे महत्त्वपूर्ण सेक्टरों में से एक है.
हॉटस्पॉट से उभरा जीवन
धरती की मेन्टल परत में एक हॉटस्पॉट यानी गर्मस्थल से कैनरी द्वीपों का प्रत्यक्षतः निर्माण हुआ था. इसका मतलब ये है कि क्रस्ट और कोर के बीच की ये परत इस बिंदु पर सबसे अधिक तापमान रहता है. अगर धरती की क्रस्ट लेयर यानी उसका आवरण यहां अफ्रीकी प्लेट से आशय है, जब इस हॉटस्पॉट से रगड़ खाती है, तो एक नया ज्वालामुखी इसे भेद देता है. अटलांटिक महासागर में करीब 4000 मीटर की गहराई में करीब बीस से चालीस लाख साल पहले ये घटना हुई थी.
करीब सत्रह लाख साल पहले उभरते हुए शील्ड ज्वालामुखी ने समुद्र की सतह तक पहुंचकर ला पाल्मा के द्वीप को जन्म दिया और दूसरा सबसे बड़ा कैनरी द्वीप बना दिया. आज भी आप ला पाल्मा पर दो अलग अलग ज्लावमुखी संरचनाएं देख सकते हैं. उत्तर में केलडेरा डि टाबुरिइन्टे का पुराना, विशालकाय शील्ड ज्वालामुखी है और दक्षिण में भूगर्भीय लिहाज से ज्यादा नयी कुम्ब्रे विएखा ज्वालामुखी ऋंखला है जो इस समय खासी सक्रिय है.
तेज और सघन विस्फोटों के चलते, अपने सबसे ऊंचे बिंदु पर ये ज्वालामुखी द्वीप 2436 मीटर ऊंचा है. अपने आप में यही एक आकर्षक बात है. लेकिन महासागर की सतह के नीचे, ला पाल्मा पश्चिम में 4000 मीटर नीचे गिरा हुआ है. इसलिए समूचा ज्वालामुखी समूह, 6400 मीटर से भी ज्यादा की कुल ऊंचाई के साथ दुनिया के सबसे ऊंचे ज्वालामुखियों में से एक है. (dw.com)
साल की शुरुआत में लंबे लॉकडाउन के बाद पर्यटक पुर्तगाल के अल्गार्वे लौट रहे हैं. होटल व्यवसायी और रेस्त्रां मालिक भविष्य को लेकर आशान्वित हैं.
डॉयचे वैले पर निकॉल रीस की रिपोर्ट
दक्षिणी पुर्तगाल के अल्गार्वे शहर के फारो में फुटपाथों पर सूटकेस के पहियों की खड़खड़ाहट एक बार फिर लौट आई है. कुथ स्थानीय लोग इन आवाजों को अल्गार्वे की पहचान समझते हैं. अल्गार्वे पुर्तगाल का सबसे दक्षिणी क्षेत्र और एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है.
हालांकि अल्गार्वे में इस साल अन्य वर्षों की तुलना में मौसम उतना बेहतर नहीं है लेकिन फिर भी फ्रांस, यूके और जर्मनी के पर्यटकों की एक अच्छी संख्या को सड़कों पर टहलते हुए या पास के समुद्र तटों पर जाते हुए देखी जा सकता है.
इस इलाके के कई निवासियों के लिए पर्यटन की वापसी एक उपहार के रूप में देखी जा रही है. क्रिस्टीना लील फारो के भीतरी इलाके में मछली से बने पकवानों का एक छोटा रेस्त्रां चलाती हैं. हर शाम उनके रेस्त्रां की छत पर्यटकों से भरी रहती है.
लील लंबे समय से पर्यटकों के लौटने का इंतजार कर रही थीं. वे कहती हैं कि साल की पहली छमाही के दौरान उन्होंने उम्मीद ही खो दी थी, "कोविड-19 महामारी ने हमारी आजीविका ही छीन ली, जिससे हम बहुत तनाव और संकट में आ गए थे." हालांकि अब वे काफी खुश हैं और पर्यटकों के लगातार मिल रहे ऑर्डर की वजह से उनके चेहरे पर उभरी मुस्कान और खुशी आसानी से देखी जा सकती है.
आत्मविश्वास की वापसी
जोआओ कैरोलिनो भी इस साल पर्यटकों में लगातार बढ़ोत्तरी देख रहे हैं. वे कहते हैं कि उनके एक्वा रिया होटल में होने वाली बुकिंग साल 2020 की तुलना में पचास फीसद तक बढ़ गई है. कोविड संक्रमण के दौरान उन्हें अपने होटल को काफी दिनों तक बंद भी करना पड़ा था.
वे कहते हैं, "बहुत मुश्किल वक्ता था. हमें काम करना बंद करना पड़ा. एक साल तक हमारे पास कोई मेहमान नहीं था और हमने केवल बिलों का भुगतान किया और बिल लगातार आते रहे. लेकिन अब स्थिति काफी बेहतर है."
कैरोलिनो पिछले छह साल से अपने भाई के साथ यह होटल चला रहे हैं. यह लंबे समय से उनका सपना था और इसमें उन्होंने एक बड़ा निवेश भी किया. लेकिन उसके कुछ साल बाद ही महामारी ने दस्तक दे दी. कैरोलिनो कहते हैं, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ होगा. हमारे लिए यह एक बड़ा सबक था. भविष्य में हम ऐसी स्थितियों के लिए बेहतर तरीके से तैयार रहना चाहते हैं."
कैरोलिना कहते हैं कि जरूरी स्वच्छता उपायों को लागू करने जैसे उपाय करने और पर्यटन उद्योग की स्थिति सामान्य और पर्यटकों के अनुकूल होने के बाद, होटल में रहने को लेकर मेहमानों का भी आत्मविश्वास काफी बढ़ा महसूस हो रहा है. वे कहते हैं, "टीकाकरण भी इसकी एक बड़ी वजह है."
टीकाकरण की ऊंची दर
पुर्तगाल ने हाल ही में 85 फीसदी की टीकाकरण दर हासिल की है जो दुनिया भर में सबसे ज्यादा है. नतीजतन, महामारी संबंधी कई प्रतिबंधों में अक्टूबर में अब ढील दी जानी है. बार और क्लब उन स्थानों में से होंगे जो फिर से खुलने जा रहे हैं, जबकि रेस्त्रां और होटलों के भीतर बैठने की पाबंदी में भी अब और ढील दी जा रही है.
इसके अलावा लोगों के बड़े समूहों को भी इकट्ठा होने की फिर से अनुमति दी जाएगी, जो इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि पुर्तगाल पर्यटकों का एक बेहद पसंदीदा स्थल है. ज्यादातर पर्यटक गर्मियों के महीनों में यूरोप से आते हैं, जबकि अमेरिका और ब्राजील जैसे कई देशों से लोग सर्दियों के दौरान आना पसंद करते हैं.
पुर्तगाल में पर्यटन क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में दस से पंद्रह फीसद की भागीदारी करता है जिसकी वजह से यह पुर्तगाल के सबसे महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक माना जाता है. महामारी के कारण दूसरे उद्योगों की तरह पर्यटन की भी स्थिति बेहद खराब रही है और 1980 के दशक के बाद यह सबसे खराब स्थिति थी.
साल 2020 में छुट्टियों की संख्या में 76 फीसद की गिरावट आई, जबकि पुर्तगाल की गिनती उन देशों में होती है जहां कोविड महामारी के शुरुआती दौर में कम संक्रमण दर के कारण पुर्तगाल पर्यटन के लिए एक "मॉडल" था.
भविष्य पर विचार
2021 की शुरुआत में पुर्तगाल में संक्रमण और मृत्यु दर अचानक आसमान छूने लगी, जिससे पर्यटन क्षेत्र के जल्द से जल्द ठीक होने की उम्मीद धराशायी होने लगी. अब पुर्तगाली पर्यटन बोर्ड को उम्मीद है कि पतझड़ और सर्दियों में पर्यटन एक बार फिर उनके लिए उम्मीदों भरा होगा. उद्योग को मजबूत करने और यहां तक कि इसका विस्तार करने के लिए सरकारी धन का भी निवेश किया गया है.
भविष्य में पर्यटन बोर्ड वाइन टेस्टिंग और कुछ विशेष आउटडोर छुट्टियों जैसे ऑफर पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहता है ताकि पर्यटकों का आकर्षण बढ़े. देश का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा डिजिटल खानाबदोशों को आकर्षित करना है क्योंकि वे लंबे समय तक रुकते हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था में लंबी अवधि के लिए योगदान करते हैं. 2023 तक पुर्तगाल में पर्यटन पूरी तरह से ठीक हो जाने की उम्मीद है.
मजदूरों की कमी
जोआओ कैरोलिनो जैसे होटल व्यवसायियों को धैर्य रखना होगा. हालांकि इस साल पर्यटकों की वापसी से पहले ही काफी फर्क पड़ा है. उनका कहना है कि उन्हें अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. वे कहते हैं कि पर्यटन क्षेत्र में श्रमिकों की कमी है और उसकी वजह भी महामारी ही है, "विभिन्न यात्रा प्रतिबंधों के कारण पुर्तगाल में विदेशों से कुशल श्रमिक काम पर नहीं लौटे हैं. उन श्रमिकों में से कई ब्राजील और पूर्वी यूरोप के देशों से हैं. इस वजह से मुझे और मेरे भाई को पहले की तुलना में दोगुना काम करना पड़ता है."
क्रिस्टीना लील भी इसी समस्या का अनुभव कर रही हैं और कहती हैं कि वे पहले से कहीं ज्यादा काम कर रही हैं. लील कहती हैं कि पुर्तगाली नागरिक उद्योगों में खुले पदों के लिए बहुत कम संख्या में आवेदन कर रहे हैं जिसकी वजह से मजदूरों की कमी की पूर्ति नहीं हो पा रही है. उनका मानना है कि कई स्थानीय मजदूरों को महामारी से संबंधित सरकारी वित्तीय सहायता मिलती रहती है, जिसकी वजह से वे काम पर लौटने को लेकर ज्यादा उत्साहित भी नहीं हैं.
फिर भी, वे आशावादी बनी हुई हैं कि इन मौजूदा चुनौतियों को आखिरकार दूर कर लिया जाएगा. उन्हें पता है कि मौजूदा समय फिर भी काफी अच्छा है क्योंकि महामारी के दौरान काफी बुरे दिन देखने को मिले हैं. (dw.com)
डीप ब्रेन स्टिमुलेशन यानी गहन मस्तिष्क उद्दीपन के जरिए इलाज पाने वाली सारा अवसाद की पहली मरीज हैं जिनके उपचार का तमाम ब्यौरा दर्ज किया गया है. एक तरह से ये उपचार के साथ साथ प्रयोग भी था. नतीजे सकारात्मक पाए गए हैं.
डॉयचे वैले पर मारी सीना की रिपोर्ट
अवसाद के गंभीर मामलों में ज्ञात उपचारों के बीच एक नयी तकनीक आजमाई गई है. इसे कहते हैं डीप ब्रेन स्टिमुलेशन जिसमें मरीज के दिमाग को इलेक्ट्रोड के जरिए झिंझोड़ा जाता है. लेकिन वैज्ञानिक और डॉक्टर बिरादरी की राय बंटी हुई है.
वर्षों से गहरे अवसाद ने सारा को अपनी जिंदगी खत्म करने के इरादे की ओर धकेल दिया था. उन्होंने 20 किस्म की दवाएं और उपचार किए, महीनों अस्पताल में भर्ती रहीं, दिमाग में बिजली के झटके भी खाए और नसों की चुंबकीय थेरेपी भी की. लेकिन अवसाद के लक्षण बने रहे.
अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर उत्तरी कैलिफोर्निया की 38 वर्षीय सारा ने बताया, "मेरा जीवन तो कगार पर आ गया था.” पांच साल पहले सारा का अवसाद गंभीर हो गया. इतना गंभीर कि उनके लिए अकेले रह पाना सुरक्षित नहीं रह गया था. वो अपने मातापिता के पास लौट आई और अपनी नौकरी छोड़ दी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में तीस करोड़ लोग अवसाद की समस्या से प्रभावित हैं. सही समय पर सहायता, समर्थन और उपचार की बदौलत कुछ लोग आत्महत्या की प्रवृत्ति से निजात पाने में सफल रहे हैं. लेकिन सारा के साथ ऐसा नहीं था. वो उन 20-30 प्रतिशत लोगों में थी जिन्हें सामान्य उपचारों से कोई राहत नहीं मिलती है. वो कहती हैं, "मैं तो इस हालत में जीती नहीं रह सकती थी. अगर यही सब होना था तो फिर जीने का क्या फायदा था.”
एक फौरी उपचार?
जून 2020 में वो एक प्रयोगात्मक अध्ययन में शामिल होने वाली पहली मरीज बनीं. सैन फ्रांसिस्को स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिकों के एक दल ने उनकी खोपड़ी में सिगरेट के डिब्बे के आकार की एक डिवाइस लगा दी. वो सारा के अवसाद के उभरने वाले लक्षणों की शिनाख्त करता है और मस्तिष्क में विद्युत उद्दीपन पैदा कर अपनी प्रतिक्रिया देता है. इस तरह दिमाग को अवसाद के ख्याल निकालने की ताकीद मिल जाती है. ये उसके लिए एक पेसमेकर की तरह है. अवसाद से छुटकारा पाने का ये तरीका था.
इस डिवाइस ने सारा का दुनिया को देखने का नजरिया बदल दिया. उन्होंने सीएनएन को बताया, "मुझे याद है कि एक रोज मैं डिवाइस लगाए घर लौट रही थी. मैं खाड़ी को देख सकती थी जहां वो दलदलों से मिलती है, और मेरे मन में ख्याल आया, हे भगवान, अलग अलग रंगों का क्या नजारा है, क्या उजाला है.” अपने अवसाद की गहराइयों में सारा अपने आसपास अभी तक सिर्फ बुरा ही देखती आई थी.
एमआईटी टेक्नोलॉजी रिव्यू के मुताबिक, डिवाइस लगने के बारह दिन के भीतर, 54 अंकों वाले मोंटोगोमरी-आस्बर्ग डिप्रेशन रेटिंग स्केल पर सारा के अवसाद का पैमाना 36 से गिरकर 14 पर पहुंच गया था. शोधकर्ताओं के मुताबिक, कुछ महीनों बाद वो 10 से नीचे आ गया जो इस बात का संकेत था कि उनका अवसाद ढलान पर था.
न्यू यार्क शहर में आइकान स्कूल ऑफ मेडिसिन के सेंटर फॉर एडवांस्ड सर्किस थेरेप्युटिक्स की निदेशक और न्यूरोलॉजिस्ट हेलेन मेबर्ग ने डीडब्ल्यू को बताया, "ये तकनीक वैज्ञानिक इंजीनियरिंग के एक प्रयत्न के रूप में अविश्वसनीय है. ये दिखाती है कि न्यूरोविज्ञान से जो हमने सीखा है उससे क्या कुछ संभव है.”
सभी अवसाद एक जैसे नहीं
सारा के अवसाद के उपचार में प्रयुक्त तरीके को डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन कहा जाता है. इसमें दिमाग के एक हिस्से में लगातार विद्युत संवेग भेजे जाते हैं. ये उपचार तीस साल से चला आ रहा है. पार्किन्संस, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (जुनूनी बाध्यकारी विकार) और मिरगी जैसी बीमारियों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
करीब 20 साल पहले शोधकर्ताओं ने गंभीर अवसाद के इलाज के रूप में इसका परीक्षण शुरू किया था. लेकिन पूर्व के क्लिनिकल ट्रायलों में सीमित सफलताएं ही मिल पाईं. अमेरिका के दो ट्रायल तो बीच में ही रोकने पड़े क्योंकि मरीजों में डिवाइसों के जरिए प्लेसेबो की अपेक्षा बेहतर नतीजे नहीं मिल पाए थे.
जर्मन शहर ओबरहाउजेन में योहानिटर अस्पताल में मनोचिकित्सक येंस कून ने डीडब्ल्यू को बताया, "दुर्भाग्यवश डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन से अवसाद के इलाज का साक्ष्य हमारे पास अब भी बहुत कम हैं.” दिमाग को झिंझोड़ने वाले इस उपचार से जुड़ी एक बड़ी चुनौती ये है कि इसमें हर व्यक्ति के दिमाग में अलग अलग हिस्से शामिल हो सकते हैं. फ्राइबुर्ग यूनिवर्सिटी क्लिनिक में न्यूरोसर्जन फोल्कर कोएनन ने डीडब्ल्यू को बताया कि "अवसाद हमेशा एक जैसा नहीं होता है.” इस लिहाज से ‘हर मर्ज का एक ही उपचार' वाला रवैया अख्तियार करना नामुमकिन है.
हर मरीज का अलग उपचार
इस केस स्टडी में खास और उत्साह बढ़ाने वाली बात ये है कि सारा के अवसादी मस्तिष्क पैटर्न के लिहाज से उपचार को व्यक्तिनिष्ठ बनाया गया है. अध्ययन की प्रथम लेखक और मनोचिकित्सिका कैथरीन स्कानगोस ने पत्रकारों को बताया, "हम लोग इससे पहले मनोचिकित्सा में इस किस्म की पर्सनलाइज्ड थेरेपी नहीं कर पाए थे.”
डिवाइस को सारा के अवसाद लक्षणों के हिसाब से सेट करने के लिए शोधकर्ताओं ने उनके दिमाग का दस दिनों तक अंवेषण किया. उन्होंने विभिन्न स्थानों पर इलेक्ट्रोड रखे, उन्हें उद्दीप्त किया और सारा से भावनाओं में आए बदलावों के बारे में पूछा.
डिवाइस और थेरेपी के मिलेजुले प्रभाव से सारा के भावनात्मक ट्रिगर और अटपटे ख्यालात उन पर हावी नहीं होने पाते. सारा कहती हैं, "वे ख्याल अब भी उभर आते हैं, लेकिन...बस ज़रा ही देर में...फनां भी हो जाते हैं.”
महंगा और जोखिम भरा उपचार
सारा के जीवन पर इस डिवाइस का बड़ा असर पड़ा है लेकिन इस तरीके की अंतर्वेधिता यानी भीतर घुसकर दखल देने की जरूरत, जोखिम भरी है. मरीज के दिमाग में इलेक्ट्रोड डालने से खून भी बह सकता है. गंभीर मामलों में इससे मौत भी हो सकती है. कोएनन कहते है, "ये उपचार की एक अपेक्षाकृत कठोर विधि है जो आमतौर पर सिर्फ मिरगी के मरीजों पर इस्तेमाल की जाती है.”
दिमाग में उल्लास और आनंद को नियंत्रित करने वाले हिस्से वेंट्रल स्ट्रिएटम को उद्दीप्त करना भी जोखिम भरा है. मेबर्ग कहती हैं, "ये वो इलाका है जिसमें लत लगने की क्षमता है.” वो इस पर भी हैरान हैं कि हो सकता है कि उपचार के दौरान मरीजों में आगे चलकर इस किस्म के उद्दीपन से कोई हरकत ही न हो यानी वे उसे जज्ब ही करने लग जाएं. तब क्या होगा.
शोधकर्ताओं के दिमाग में दूसरा सवाल ये है कि ये डिवाइस सारा के अलावा और लोगों की मदद कर सकता है या नहीं. इस विधि की सफलता उसकी पेचीदगी और वैज्ञानिक कौशल पर निर्भर है. यही चीजें उसकी सबसे बड़ी समस्या भी हैं. मेबर्ग कहती हैं, "इसका संचालन और क्रियान्वयन वाकई, वाकई पेचीदा है.”
डिवाइस को पर्सनलाइज यानी हर मरीज के लिहाज से तैयार करना होगा. हर मरीज के लिए अलग डिवाइस. इसका मतलब है दसियों हजार डॉलर की कीमत, विशेष किस्म के उपकरण, और अस्पताल में सप्ताह भर का निवास, इस किस्म की विलासिता सबके बस में नहीं. मेबर्ग कहती हैं, "उस रूप में तो इसकी माप नहीं हो सकती.”
कमियों और असुविधाओं के बावजूद, अध्ययन से हासिल जानकारी भविष्य में सैकड़ों मरीजों को फायदा पहुंचा सकती है. मनोचिकित्सक कैथरीन स्कानगोस कहती है, "लक्षणों के उभरते ही एक ही पल में हम उनका उपचार कर सकते हैं. ये विचार असल में, अवसाद के सबसे गंभीर और सबसे कठिन मामलों के इलाज से निपटने का पूरी तरह एक नया ही तरीका है” (dw.com)
-डफ़ फोकनर
ब्रिटेन में कंज़र्वेटिव पार्टी के सांसद सर डेविड अमेस की हत्या को पुलिस ने आतंकवादी वारदात बताया है.
साउथेंड वेस्ट से सांसद सर डेविड पर ये हमला शुक्रवार को हुआ. उस समय सर डेविड ले-ऑन-सी के एक चर्च में लोगों से मुलाक़ात कर रहे थे. उन पर चाकू से कई वार किए गए.
मेट्रोपॉलिटिन पुलिस के बताया कि इस हमले के इस्लामिक अतिवाद से जुड़े होने की आशंका है. हत्या के संदेह में घटनास्थाल से एक 25 साल के ब्रितानी शख़्स को भी गिरफ़्तार किया गया है.
पुलिस ने बताया कि मामले की जांच चल रही है और वो इस समय लंदन के दो पतों की तलाश कर रहे हैं. पुलिस ने बताया कि संदिग्ध शख़्स एसेक्स काउंटी में कस्टडी में है.
पुलिस का मानना है कि उस शख़्स ने अकेले इस घटना को अंजाम दिया है लेकिन घटना की परिस्थितियों को लकर जाँच की जा रही है.
सरकारी सूत्रों ने बीबीसी को बताया कि वो शख़्स ब्रितानी नागरिक है. शुरुआती जाँच में उसके सोमाली से होने का पता चला है.
69 साल के सर डेविड पर जब हमला हुआ तो वो बेलफेयर्स मेथोडिस्ट चर्च में आम लोगों से मिल रहे थे.
पुलिस के मुताबिक़ चाकू मारने की घटना की जानकारी मिलने के कुछ ही देर बाद वो घटनास्थल पर पहुंची. लेकिन पुलिस के पहुँचने से पहले मौक़े पर ही सर डेविड की मौत हो गई थी.
एसेक्स पुलिस चीफ़ कॉन्सटेबल बीजे हैरिंगटन ने कहा सर डेविड "बस अपना काम कर रहे थे, जब उनकी भयानक तरीके से जान ले ली गई."
मेट्रोपॉलिटिन पुलिस ने कहा कि आतंकवाद-रोधी अधिकारी एसेक्स पुलिस और इस्टर्न रीजन स्पेशलिस्ट ऑपरेशंस यूनिट (ईआईरएसओयू) के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
पुलिस ने बताया, "ले-ऑन-सी में चाकू से हमले की इस घटना को आंतकवादी वारदात बताया गया है, जिसकी जाँच आतंकवाद-रोधी पुलिस के नेतृत्व में की जा रही है."
"शुरुआती जाँच में पता चला है कि इसके इस्लामिक चरमपंथ से जुड़े होने की आशंका है."
अधिकारियों ने लोगों से इस घटना की कोई भी जानकारी होने या सीसीटीवी, कैमरे या वीडियो डोरबेल की फुटेज होने पर संपर्क करने की अपील की है.
सांसदों की सुरक्षा की समीक्षा के आदेश
सर डेविड की मौत पर गृह मंत्री प्रीति पटेल ने पुलिस को सांसदों के सुरक्षा इंतजामों की तुरंत समीक्षा करने के आदेश दिए हैं.
प्रीति पटेल ने कहा कि ये हत्या ''लोकतंत्र पर एक संवेदनहीन हमला है. हमारे देश के जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं."
प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने सर डेविड को "राजनीति में सबसे दयालु, सबसे अच्छे, सबसे सज्जन लोगों में से एक" कहा था.
सर डेविड अमेस 1983 में पहली बार बैसिल्डन से सांसद चुने गए थे. वो पाँच बच्चों के पिता थे.
1992 में वो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे, जिसके बाद पार्टी में उनकी इज्ज़त बहुत बढ़ गई. 1997 में उन्होंने पास के ही साउथेंड वेस्ट से चुनाव लड़ा.
वो अबॉर्शन के ख़िलाफ़ कैंपेन और जानवरों के मुद्दे पर खुलकर बोलने के लिए जाने जाते थे.
पिछले पाँच साल में ये दूसरा मौक़ा है, जब ब्रिटेन में एक सांसद की हत्या की गई है. इससे पहले साल 2016 में लेबर सांसद जो कॉक्स की वेस्ट यॉर्कशायर में हत्या की गई थी, जहाँ वो आम लोगों से मिलने गई थीं.
हम उम्मीद करते हैं कि जिन सासंदों को हमने चुना है उनसे हम मिल सकें, वो संसद के दरवाज़ों और चारदीवारों के पीछे ही ना रहें.
कई सांसदों ने लोगों की इस मांग को पूरा किया है. लेकिन, अब सांसदों और उनके स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार होने और धमकियां मिलने जैसी घटनाएं बढ़ गई हैं.
कैबिनेट के एक सदस्य ने आज मुझे बताया, "सभी को ख़तरा है... हर किसी के साथ डरवानी घटनाएं हुई हैं."
उत्पीड़न से निपटना, सुरक्षा चिंताओं का सामना करना और उन चिंताओं को पुलिस को रिपोर्ट करना, 21वीं सदी में राजनीति में ऐसा होना दुखद रूप से सामान्य हो गया है.
ये तय है कि आने वाले दिनों में वेस्टमिनिस्टर में उदार माहौल और असल ज़िंदगी व ऑनलाइन में शांति बरतने की अपील की जाएगी.
हालांकि, ये तय नहीं है कि इससे कुछ भी बदलेगा.
हाउस ऑफ कॉमन्स के स्पीकर सर लिंडसे होयल ने बीबीसी टूज़ न्यूज़नाइट को बताया कि पुलिस सभी सांसदों से संपर्क कर रही है ताकि उनकी सुरक्षा की जांच की जा सके और सर डेविड की हत्या के बाद उन्हें आश्वस्त किया जा सके.
सर लिंडसे होयल ने बताया कि उन्होंने शुक्रवार शाम अपने निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य रूप से लोगों से मुलाक़ात की. यह ज़रूरी है कि सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के साथ संबंध बनाए रखने में सक्षम हों.
उन्होंने कहा, "हम ये सुनिश्चित करना होगा कि लोकतंत्र बना रहे."
लेकिन, कंजर्वेटिव सांसद टोबायस एलवुड ने बीबीसी रेडियो 4 के द वर्ल्ड टुनाइट से कहा कि सर डेविड पर हुए हमले को देखते हुए वो कहेंगे कि किसी भी सांसद को निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से आसने-सामने नहीं मिलना चाहिए.
उन्होंने कहा, "आप ज़ूम पर बात कर सकते हैं... आप टेलिफ़ोन पर भी अच्छी बात कर सकते हैं."
बैटले और स्पैन से सांसद और जो कॉक्स की बहन किम लेडबैटर ने बताया कि सर डेविड की मौत के बाद उनके पार्टनर ने उन्हें अपना पद छोड़ने के लिए कहा है.
सांसद जो कॉक्स की भी वेस्ट यॉर्कशायर में ''कंस्टीटूएंसी सर्जरी' के दौरान हत्या कर दी गई थी.
नेताओं से लेकर आम लोगों की श्रद्धांजलि
इस बीच सर डेविड को दोनों दलों के राजनेताओं ने और स्थानीय समुदाय के लोगों ने श्रंद्धाजलि दी.
पीएम बॉरिस जॉनसन ने कहा कि उनका "कमज़ोरों की मदद के लिए क़ानून पारित करने का बेहतरीन रिकॉर्ड" था, "हमने आज एक अच्छा जन सेवक और एक बहुत प्रिय-मित्र और सहकर्मी खो दिया है."
नज़दीक ही स्थित सेंट पीटर्स कैथोलिक चर्च के पादरी जेफ़ वूलनो ने सर डेविड को "एक बहुत महान व्यक्ति, एक अच्छा कैथलिक और सभी का दोस्त" बताया.
उन्होंने कहा, "ऐसा करते हुए उनकी जान गई ये असाधारण बात है. लोगों की सेवा करते हुए उनकी जान चली गई."
उन्होंने सर डेविड की याद में शुक्रवार शाम को चर्च में एक जनसमूह का नेतृत्व किया, जिसमें उन्हें "मिस्टर साउथेंड" बताया गया.
साउथेंड शहर के पार्षद जॉन लैम्ब ने कहा कि सर डेविड "एक बहुत अच्छे, मेहनती सांसद थे जिन्होंने सभी के लिए काम किया."
वहीं, लेबर पार्टी के नेता सर कीर स्टारमर ने कहा कि यह एक "काला और चौंकाने वाला दिन" था.
उन्होंने कहा कि जो कॉक्स की मौत के समय भी देश ने यही स्थिति देखी थी. (bbc.com)
नई दिल्ली, 15 अक्टूबर | चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भारत पर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत ने भूटान पर दीर्घकालिक व्यापक नियंत्रण और प्रभाव का प्रयोग किया है, जिसने भूटान को विदेशी संबंधों को विकसित करने से प्रतिबंधित कर दिया है। चीन और भूटान के वरिष्ठ राजनयिक अधिकारियों ने गुरुवार को एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान भूटान-चीन सीमा वार्ता में तेजी लाने के लिए तीन-चरणीय रोडमैप पर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।
भूटान एकमात्र पड़ोसी देश है, जिसने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किए हैं।
भूटान हिमालय के दक्षिणी ढलानों में स्थित है। 38,000 वर्ग किमी के क्षेत्रफल और 800,000 से कम आबादी के साथ, यह छोटा सा देश चीन और भारत के बीच स्थित है।
ग्लोबल टाइम्स ने कहा, "भूटान के चीन के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं, न ही उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी अन्य स्थायी सदस्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं। यह असामान्य है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत ने भूटान पर दीर्घकालिक व्यापक नियंत्रण और प्रभाव का प्रयोग किया है, जिसने इसे विदेशी संबंधों को विकसित करने से प्रतिबंधित कर दिया है।"
अखबार ने आगे कहा, "भूटान के साथ सीमा वार्ता को पूरा करना इतना मुश्किल नहीं होना चाहिए था। समस्या भूटान के पीछे देश में है -भारत , जिसने एक जटिल कारक के रूप में काम किया है।"
चीनी मुखपत्र ने कहा, "हमें नहीं लगता कि नई दिल्ली को अपना रुख व्यक्त करना चाहिए। यह समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए दो संप्रभु देशों के बीच का मामला है। अगर भारत इस पर उंगली उठाता है, तो यह दुनिया को केवल यह साबित कर सकता है कि भारत एक कमजोर और छोटे देश की संप्रभुता को खत्म कर रहा है।"
ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक संपादकीय में कहा, "भारत को सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं कहना चाहिए, न ही उसे भूटान पर दबाव डालना चाहिए या यह निर्देश देना चाहिए कि भूटान को चीन के साथ अपनी सीमा वार्ता में क्या करना चाहिए। चीन और भूटान के बीच एक सीमांकन रेखा दोनों देशों के क्षेत्रों का परिसीमन करेगी। यदि भारत यह मानता है कि सीमांकन कैसे तय किया गया है, तो यह भारत के राष्ट्रीय हित को प्रभावित करेगा, यह साबित करेगा कि भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को भूटान के क्षेत्र में अनुचित रूप से बढ़ाया है और भूटान को भारत की चीन नीति की आउटपोस्ट (चौकी) में बदलना चाहता है। ये अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मानदंडों का उल्लंघन भी है।"
इसमें आगे कहा गया है, "भारत दक्षिण एशिया में सबसे बड़ी और सबसे मजबूत शक्ति है। लेकिन यह भूटान पर अपने पुराने जमाने के नियंत्रण को समाप्त करने का समय है। भारत को नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों पर असामान्य प्रभाव डालने की अपनी इच्छा पर भी अंकुश लगाना चाहिए। दक्षिण एशियाई देश विकास के इच्छुक हैं। दक्षिण एशियाई देश चीन के साथ संबंध विकसित करने के इच्छुक हैं और उन्हें ऐसा करने का अधिकार है।"
ग्लोबल टाइम्स ने कहा, "चीन के साथ आर्थिक और अन्य संबंधों को मजबूत करने के इन देशों के कदमों को देखते हुए भारत को संकीर्ण सोच वाली भू-राजनीतिक सोच से पार पाना चाहिए और यह कल्पना नहीं करनी चाहिए कि चीन भारत को घेर रहा है। चीन का न तो कोई सैन्य गठबंधन है और न ही विशेष सहयोग, जो उन देशों में से किसी के साथ भारत को निशाना बनाए। भारत अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। इसके लिए, इसे पहले खुले विचारों वाला होना चाहिए और अति संवेदनशील नहीं होना चाहिए।"
ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि ऐसा लगता है कि चीन और भूटान जल्द या बाद में एक सीमा समझौते पर पहुंचेंगे और अंतत: राजनयिक संबंधों की स्थापना की ओर बढ़ेंगे।
इसमें कहा गया है, "यह प्रगति है, जो दोनों पड़ोसी देशों के बीच होनी चाहिए। अगर यह रुक जाती है, तो लोगों को आश्चर्य होगा कि क्या भारत ने फिर से भूटान पर दबाव डाला और उसकी संप्रभुता का उल्लंघन किया है।"(आईएएनएस)
-सुमी खान
ढाका, 15 अक्टूबर| बांग्लादेश के चांदपुर के हाजीगंज उपजिला में बुधवार रात दुर्गा पूजा मंडपों पर हमले और पुलिस-भीड़ के बीच हुई झड़प के मामले में चांदपुर और चटगांव में कुल 16 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। पुलिस ने गुरुवार को इसकी पुष्टि की।
पुलिसकर्मियों पर हमले के बाद स्थानीय प्रशासन ने हाजीगंज बाजार इलाके में धारा 144 लागू कर दी है।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने यहां हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा के दौरान कोमिला मंदिर में एक हिंदू देवता के चरणों में कुरान की नकली तस्वीरें फैलाकर सांप्रदायिक अशांति फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का वादा किया है।
सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर पोस्ट की गई तस्वीरों ने पूरे देश में अशांति फैला दी। चांदपुर में पुलिस की गोलीबारी में चार दंगाइयों की मौत हो गई, जब वे मंदिरों पर हमला करने और दुर्गा पूजा पंडालों में तोड़फोड़ करने गए थे, और कट्टरपंथी इस्लामवादियों ने दुर्गा पूजा उत्सव को रोकने की मांग करते हुए 'इस्लाम का अपमान' करने का आरोप लगाते हुए एक बड़ा शोर मचाया।
दो अलग-अलग जांच निकायों का गठन किया गया है, जबकि पुलिस ने चांदपुर में हुई घटना के संबंध में सात लोगों को हिरासत में लिया है, इसके अलावा कॉक्स बाजार में पूजा स्थलों और हिंदू घरों पर हमलों पर नौ लोगों को हिरासत में लिया है।
पुलिस ने आईएएनएस को बताया कि उन्होंने आयोजन स्थल के मुख्यद्वार को तोड़ा था, लेकिन कॉक्स बाजार के मुख्य पूजा स्थल को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सके। पुलिस ने बताया कि हमलावरों ने कॉक्स बाजार के कुछ अन्य हिस्सों में भी मार्च किया।
हसीना ने कहा, "कुछ लोग धार्मिक रूप से अंधे होते हैं और वे हमेशा सांप्रदायिक संघर्ष पैदा करना चाहते हैं। ये लोग न केवल मुस्लिम समुदाय के हैं, बल्कि अन्य सभी धर्मों के भी हैं। अगर हम सभी मिलकर काम करते हैं, तो वे कोई नुकसान नहीं कर सकते।"
बांग्लादेश के गृहमंत्री असदुज्जमां खान कमाल ने गुरुवार को आईएएनएस को बताया कि इस घटना की जांच के लिए दो अलग-अलग जांच निकायों का गठन किया गया है, एक स्थानीय प्रशासन द्वारा और दूसरी जिला पुलिस द्वारा।
उन्होंने कहा, "हमने कोमिला घटना के सिलसिले में कुछ लोगों की पहचान की है। हमारी जासूसी एजेंसियां उन्हें जल्द ही गिरफ्तार कर लेंगी।"
हाजीगंज थाने के प्रभारी अधिकारी मोहम्मद हारुनूर राशिद ने पुलिस-भीड़ की झड़प में चार लोगों के मारे जाने की पुष्टि की, जिनकी पहचान अल अमीन (18), यासीन हुसैन (15), शमीम (19) और बुबुल के रूप में हुई है। (30)। शवों को पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया जाएगा। (आईएएनएस)
-सुमी खान
ढाका, 14 अक्टूबर| बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने गुरुवार को हिंदू समुदाय को भरोसा दिया कि वे समान अधिकारों का आनंद लेना जारी रखें और अपने त्योहार स्वतंत्र रूप से मनाएं। उन्होंने कोमिला और अन्य जगहों पर मंदिरों और दुर्गा पूजा पंडालों में हिंसा और तोड़फोड़ करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का वादा किया।
उन्होंने कहा, "आपको इस देश के नागरिक के रूप में माना जाता है। आप समान अधिकारों में रहते हैं। आप समान अधिकारों का आनंद लेंगे। आप अपने धर्म का पालन करेंगे और समान अधिकारों के साथ त्योहार मनाएंगे। हम यही चाहते हैं। यह हमारे बांग्लादेश और हमारे आदर्श की वास्तविक नीति है।"
ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर में महानगर सर्वजन पूजा समिति द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा की महानवमी में शामिल होते हुए उन्होंने कहा, "मैं आपसे फिर कभी भी खुद को अल्पसंख्यक नहीं समझने का आग्रह करती हूं।"
"यहां अल्पसंख्यक-बहुमत को संख्या के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए। आप स्वतंत्र बंगाल में एक स्वतंत्र नागरिक हैं। आपको वह आत्मविश्वास होना चाहिए, यही मैं चाहता हूं .. आप अपने आप को एक छोटा समुदाय क्यों समझते हैं?"
"कृपया याद रखें, आप सभी को बोलने की स्वतंत्रता है, आपको इस भूमि में जन्म लेकर अपने त्योहार का आनंद लेने का अधिकार है .. आप उन लोगों की अगली पीढ़ी हैं जो इस धरती पर पैदा हुए हैं। इसलिए, यहां हर कोई अपने में रहता है अपना हक.. मैं आपको अल्पसंख्यक नहीं मानता, हम आपको अपना रिश्तेदार मानते हैं।"
"हमें बहुत सारी जानकारी मिल रही है और निश्चित रूप से हम पता लगाएंगे कि सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने के लिए उकसाने के पीछे कौन है .. उन लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी चाहे वे किसी भी धर्म के हों। मैं सभी को याद दिलाना चाहता हूं; बांग्लादेश सांप्रदायिक सद्भाव की भूमि है। यहां सभी धर्मों के लोग एक साथ रहेंगे और अपने धर्म का पालन करेंगे।"
हसीना ने हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहार के दौरान कोमिला मंदिर में एक हिंदू देवता के चरणों में कुरान की नकली तस्वीरें फैलाकर सांप्रदायिक अशांति भड़काने में शामिल लोगों के खिलाफ फिर से कड़ी कार्रवाई का वादा किया।
सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर पोस्ट की गई तस्वीरों ने पूरे देश में अशांति फैला दी। चांदपुर में पुलिस की गोलीबारी में चार दंगाइयों की मौत हो गई, जब वे मंदिरों पर हमला करने गए और दुर्गा पूजा पंडालों में तोड़फोड़ की और कट्टरपंथी इस्लामवादियों द्वारा दुर्गा पूजा उत्सव को रोकने की मांग करते हुए हंगामा किया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (आईएएनएस)| पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (पीआईए) ने गुरुवार को 'सुरक्षा कारणों' का हवाला देते हुए काबुल में अपना परिचालन तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। पीआईए के प्रवक्ता अब्दुल्ला खान ने इस कदम की पुष्टि करते हुए कहा कि एयरलाइन का काबुल संचालन अगली सूचना तक निलंबित रहेगा।
प्रवक्ता ने इस तथ्य पर जोर दिया कि पीआईए ने 'कठिन परिस्थितियों' में काबुल के अंदर और बाहर उड़ान भरी, जबकि अन्य ने अपना ऑपरेशन बंद कर दिया था।
वह अगस्त में काबुल के तालिबान के तेजी से अधिग्रहण के बाद बड़े पैमाने पर निकासी में पीआईए द्वारा निभाई गई भूमिका का जिक्र कर रहे थे, जिसने उड़ानों की कमी के बीच अफगान राजधानी में फंसे लोगों के बीच भीड़ पैदा कर दी थी।
पीआईए के प्रवक्ता ने कहा, "अफगानिस्तान में तेजी से बदलती स्थिति के बाद पीआईए ने लगभग 3,000 लोगों को निकाला।"
काबुल से बाहर लाए गए लोगों में संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, आईएमएफ, अन्य वैश्विक संगठनों के अधिकारियों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार भी शामिल थे।
खान ने कहा कि पीआईए के कैप्टन और कर्मचारियों ने अपनी जान जोखिम में डाल दी लेकिन फिर भी निकासी की प्रक्रिया जारी रखी।
इस बीच, तालिबान की कार्यवाहक सरकार ने चेतावनी दी है कि अगर पाकिस्तान की एयरलाइन ने काबुल से इस्लामाबाद की उड़ानों पर बढ़ाया गया किराया कम नहीं किया तो सरकार एयरलाइन पर प्रतिबंध लगा देगी।
खामा प्रेस की एक हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान नागरिक उड्डयन प्रशासन ने कहा है कि पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (पीआईए) और एक निजी अफगान एयरलाइन काम एयर अगर तालिबान के अधिग्रहण से पहले की कीमतों पर संचालन नहीं करती हैं तो उन पर काबुल से इस्लामाबाद के लिए उड़ानों के संचालन पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।
खामा प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, प्रशासन ने एक बयान में कहा कि दोनों एयरलाइनों पर जुर्माना लगाया जाएगा और नियमों का उल्लंघन करने पर उन्हें दंडित किया जाएगा।
इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान ने एयरलाइंस को चेतावनी दी कि पाकिस्तानी वाहक पीआईए ने काबुल से इस्लामाबाद के लिए प्रत्येक टिकट के लिए 2,500 डॉलर तक शुल्क लेना शुरू कर दिया है।
बयान में लोगों से नए नियमों के उल्लंघन की सूचना देने में प्रशासन का सहयोग करने को भी कहा गया है।
इसने लोगों से दस्तावेज उल्लंघन की रिपोर्ट करने को भी कहा है।
हेग, 14 अक्टूबर | डच अभियोजकों ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री मार्क रूटे की हत्या की साजिश् करने की योजना बनाने के आरोप में जुलाई में एम्स्टर्डम से एक 22 वर्षीय व्यक्ति की गिरफ्तारी की पुष्टि की है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को यह पुष्टि न्यूजपेपर डी वोक्सक्रांट में गिरफ्तारी का खुलासा करने वाली एक रिपोर्ट के बाद हुई।
यह कहा जा रहा है कि यवुज ओ नाम के व्यक्ति ने सार्वजनिक टेलीग्राम ग्रुप में भड़काऊ संदेश पोस्ट किए थे।
अभियोग के अनुसार, उन्होंने 'संसद में तूफान', 'उस गिरोह का खून बहने देना' और 'जब वह अपनी साइकिल पर बाहर जाए तो रूटे को गोली मारने' के बारे में बात की।
यह बताया जा रहा है कि आरोपी हथियार की भी तलाश कर रहा था।
उन्होंने 9 दिसंबर, 2020 और 15 जुलाई, 2021 के बीच संदेश पोस्ट किए, जब एक दिन बाद उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
हेग की अदालत में अगले सप्ताह संदिग्ध की सुनवाई होनी है।
उस पर तीन मामलों का आरोप लगाया गया, जिसमें एक आतंकवादी अपराध के लिए उकसाना, इस तरह के अपराध की तैयारी में खुफिया जानकारी जुटाना और एक आतंकवादी अपराध की धमकी देना शामिल है।
यह माना जा रहा है कि जुलाई में उस व्यक्ति की गिरफ्तारी का 23 सितंबर को आइंडहोवन में 9 आतंकी संदिग्धों की गिरफ्तारी से कोई संबंध नहीं है।
9 लोगों को आतंकवादी हमले की तैयारी और प्रशिक्षण के संदेह में गिरफ्तार किया गया था।
डच अखबार डी टेलीग्राफ के अनुसार, उन्होंने रूटे और दक्षिणपंथी राजनेताओं गीर्ट वाइल्डर्स और थियरी बॉडेट पर हमले की साजिश रची होगी।
अखबार ने बताया कि सितंबर में गिरफ्तारी के बाद रूटे को अतिरिक्त सुरक्षा मिली थी। (आईएएनएस)
विस्कॉन्सिन में अस्थायी रूप से रहने वाले सैकड़ों बच्चे 53,000 अफगानों में से हैं, तीन महिलाओं को जब यह अहसास हुआ कि बच्चे नियमित शिक्षा से दूर हो रहे हैं तो उन्होंने सैन्य अड्डे पर ही कैंप स्कूल खोलने का फैसला किया.
अफगानिस्तान से अमेरिका आए दर्जनों शरणार्थी बच्चे रंग भरने वाली किताब के साथ बैठे हैं. मेज पर पेंसिल भी फैले हुए हैं. वे बड़े ही ध्यान के साथ अंग्रेजी और गणित पढ़ रहे हैं. साथ ही उन्हें अमेरिकी जीवन के बारे में बताया जा रहा है.
विस्कॉन्सिन में फोर्ट मैककॉय बेस में अस्थायी रूप से रहने वाले सैकड़ों बच्चे 53,000 अफगानों में से हैं, जिन्होंने अगस्त में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अपना देश छोड़ दिया था. उन्हें अमेरिका भर के सैन्य ठिकानों में रखा गया है.
तीन महिलाओं को जब यह अहसास हुआ कि बच्चे नियमित शिक्षा से दूर हो रहे हैं तो उन्होंने सैन्य अड्डे पर ही कैंप स्कूल खोलने का फैसला किया. इस अस्थायी स्कूल का नाम "राइज अगेन" रखा गया है.
स्कूल की तीन संस्थापकों में से एक नीलाब इब्राहिमी कहती हैं, "शिविर में पहुंचने के बाद हमने बच्चों को इधर-उधर घूमते देखा. वे कुछ नहीं कर रहे थे. तभी हमने एक स्कूल के बारे में सोचा उसके बाद हमने पहले ही दिन 130 बच्चों को स्कूल में दाखिल करा लिया."
एशियन यूनिवर्सिटी फॉर वुमन से 23 वर्षीय स्नातक कहती हैं, "हम उन्हें पढ़ा रहे हैं ताकि वे नए माहौल के साथ तालमेल बिठा सकें. शरणार्थी कैंपों के बाहर स्कूलों में वे परेशान ना हो."
बिल और मेलिंडा गेट्स समेत दानदाताओं द्वारा वित्त पोषित फाउंडेशन बांग्लादेश स्थित एयूडब्लू छात्रवृत्ति मुहैया कराता है. ऐसे छात्र जो कमजोर समूह से आते हैं.
जब इब्राहिमी और उनकी दो साथी एयूडब्लू छात्र बातूल बेहनामी और सेफारा आजमी ने फोर्ट मैककॉय में कक्षाएं शुरू कीं तो किताबें और पेंसिंल कम पड़ गए. उनकी अपील के बाद स्थानीय एनजीओ ने आपूर्ति पर तेजी से जवाब दिया. बच्चों को किताबें और पेंसिल दिए गए.
बेहनामी कहती हैं, "बच्चों के साथ-साथ हम उनके माता-पिता को भी गहन जानकारी देते हैं."
यह स्पष्ट नहीं है कि कितने अफगान नागरिक अमेरिका में बसेंगे लेकिन पेंटागन ने कहा है कि कुल संख्या एक लाख के अधिक होने की उम्मीद है.
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने कहा है कि इराक और सीरिया के आतंकी "सक्रिय रूप से" अफगानिस्तान में दाखिल हो रहे हैं.
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने बुधवार को कहा "अफगानिस्तान में स्थिति आसान नहीं है." उन्होंने यह बात पूर्व सोवियत राज्यों के सुरक्षा सेवा प्रमुखों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान कही. पुतिन ने कहा, "सैन्य अभियानों में अनुभव के साथ इराक और सीरिया के आतंकवादी वहां सक्रिय रूप से खिंचे चले जा रहे हैं."
पुतिन ने आगे कहा, "यह संभव है कि आतंकवादी पड़ोसी देशों में स्थिति को अस्थिर करने की कोशिश कर सकते हैं." उन्होंने चेतावनी दी कि वे "प्रत्यक्ष विस्तार" की कोशिश भी कर सकते हैं.
पुतिन बार-बार आतंकवादी समूहों के सदस्यों को अफगानिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल का फायदा उठाकर बतौर शरणार्थी पूर्व सोवियत देशों में आने की चेतावनी दे चुके हैं, जबकि मॉस्को काबुल में नए तालिबान नेतृत्व के बारे में सतर्क रूप से आशावादी रहा है. क्रेमलिन मध्य एशिया में फैली अस्थिरता के बारे में चिंतित है जहां उसके सैन्य ठिकाने हैं.
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के मद्देनजर रूस ने ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास किया, जहां वह सैन्य अड्डा संचालित करता है. दोनों देश अफगानिस्तान के साथ सीमा साझा करते हैं.
इसी वीडियो कॉन्फ्रेंस में ताजिकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख साइमुमिन यतिमोव ने बताया कि उन्होंने अफगानिस्तान से अपने देश में "ड्रग्स, हथियार, गोला-बारूद की तस्करी" के प्रयासों में "तेजी" दर्ज की है.
अफगानिस्तान लंबे समय से अफीम और हेरोइन का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है. इसी के कारोबार से तालिबान को फंडिंग के भी आरोप लगते रहे हैं.
तालिबान का कहना है कि वह मध्य एशियाई देशों के लिए खतरा नहीं है. इस क्षेत्र में पूर्व सोवियत गणराज्यों को पहले अफगानी आतंकियों के सहयोगियों के हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया जा चुका है.
पिछले हफ्ते अफगानिस्तान में क्रेमलिन के दूत जमीर काबुलोव ने कहा था कि रूस 20 अक्टूबर को होने वाली अफगानिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय वार्ता के लिए तालिबान को मॉस्को आमंत्रित करेगा.
इससे पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अफगानिस्तान के मुद्दे पर जी 20 में हिस्सा लेते हुए कहा था कि अफगानिस्तान आतंकवाद का अड्डा न बने. उन्होंने कट्टरपंथ, आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी के गठजोड़ के खिलाफ संयुक्त लड़ाई का आह्वान किया, साथ ही अफगान नागरिकों के लिये तत्काल और निर्बाध मानवीय सहायता का आह्वान किया.
मोदी ने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया कि अफगान क्षेत्र क्षेत्रीय या वैश्विक स्तर पर कट्टरपंथ और आतंकवाद का अड्डा नहीं बनना चाहिए.
एए/वीके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
फिनलैंड की एक प्रयोगशाला में कॉफी तैयार की गई है, बिना खेती किए. इसका स्वाद और खुश्बू असली कॉफी जैसी है. पर इसके सामने अभी कई चुनौतियां हैं.
कृषि क्षेत्र उन क्षेत्रों में से हैं, जिन पर पर्यावरण परिवर्तन का सीधा और तेज प्रभाव हो रहा है. लेकिन इस क्षेत्र में भी कई बातें ऐसी हैं जो पर्यावरण को प्रभावित कर रही हैं. जैसे कुछ फसलें हैं जिनकी खेती पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है. जैसे कि कॉफी.
संसाधनों की कमी की चुनौतियों के चलते कॉफी की पारंपरिक खेती पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है. इन्हीं खतरों के संबंध में शोध करते हुए फिनलैंड के वैज्ञानिकों ने ऐसी कॉफी बनाई है जो पर्यावरण के लिए अच्छी है.
फिनलैंड के इन वैज्ञानिकों ने यह कॉफी ‘सेल कल्चर्स' तकनीक का इस्तेमाल करके बनाई है और दावा किया जा रहा है कि इसका स्वाद और गंध दोनों ही असल कॉफी से मिलती जुलती हैं.
फिनलैंड के वीटीटी टेक्निकल रिसर्च के शोधकर्ताओं का कहना है शायद उन्हें पर्यावरण के लिए कम नुकसानदायक कॉफी बनाने की तकनीक मिल गई है. इस तकनीक के जरिए कॉफी बीन्स की खेती किए बगैर ही कॉफी बनाई जा सकती है.
कैसे बनी लैब में कॉफी?
यह तकनीक सेल कल्चर्स पर आधारित है. इसके जरिए बायो रिएक्टर्स में न सिर्फ कृषि के बल्कि जानवरों से मिलने वाले विभिन्न उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं. वीटीटी में इस प्रक्रिया की निगरानी करने वाले शोधकर्ता हाएकी ऐसाला कहती हैं कि हो सकता है इस तरह से बनाई गई कॉफी अभी लोगों को उतनी लजीज ना लगे लेकिन इसमें अरबों डॉलर के कॉफी उद्योग के लिए विशाल संभावनाएं हैं.
जब उनसे पूछा गया कि क्या इस कॉफी का स्वाद असली कॉफी जैसा है, तो ऐसाला ने कहा, "एकदम सौ फीसदी तो नहीं. इसका स्वाद ऐसा है जैसे कई तरह की कॉफी मिला दी गई हो. व्यवसायिक कॉफी बनाने में हमें अभी पूरी कामयाबी नहीं मिली है लेकिन इतना तय है कि यह कॉफी जैसी है.”
वीटीटी में रिसर्च टीम की प्रमुख हाइको रिषर कहते हैं कि लैब में तैयार प्रक्रिया पर्यावरण के लिए ज्यादा फायदेमंद कॉफी बनाने का रास्ता खोलती है क्योंकि बहुत ज्यादा मांग के चलते विभिन्न देश बहुत बड़े पैमाने पर धरती का इस्तेमाल कॉफी की खेती के लिए कर रहे हैं और इस कारण जंगल काटे जा रहे हैं.
रिषर कहते हैं कि प्रयोगशाला में तैयार कॉफी में कीटनाशकों व खाद का इस्तेमाल कम होता है और इसे दूर देशों के बाजारों तक ले जाने का परिवहन बचता है.
कई चुनौतियां हैं
हालांकि प्रयोगशाला में तैयार कॉफी के सामने काफी चुनौतियां होंगी. जैसे कि यूरोप में बाजार में उतारे जाने से पहले उसे ‘नोवल फूड' के तौर पर अनुमति लेनी होगी.
और सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि कॉफी के दीवाने क्या इसे पसंद भी करेंगे. फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में एक कैफे चलाने वाले सातू कहते हैं कि किसी दिन तो वह राह पकड़नी ही होगी.
उन्होंने कहा, "जिस तरह कॉफी के सारे कुदरती संसाधन खत्म हो रहे हैं, मुझे लगता है कभी तो वह तरीका अपनाना ही होगा. इसलिए हमें उस राह पर चलना ही होगा. और अगर उसका स्वाद अच्छा है, खुश्बू कॉफी जैसी है तो क्यों नहीं? मुझे लगता है कि संभव है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
नॉर्वे के कोन्सबर्ग शहर में पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है जिस पर पांच लोगों की हत्या का आरोप है. उसने धनुष और बाण से हत्याएं कीं. अभी तक घटना की वजह का पता नहीं चल पाया है.
(dw.com)
बुधवार रात नॉर्वे के कोन्सबर्ग शहर में एक धनुर्धारी का कहर टूटा. पुलिस का कहना है कि इस व्यक्ति ने अपने धनुष और बाण से पांच लोगों की जान ले ली. व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन पुलिस ने कहा है कि उसका मकसद अभी पता नहीं चल पाया है. और यह कहना जल्दबादी होगी कि यह कोई आतंकवादी घटना थी या नहीं.
यह घटना कोन्सबर्ग शहर में हुई, जो नॉर्वे के उत्तर पूर्व में है. अधिकारियों ने बताया कि इस व्यक्ति ने परचून की दुकान के पास लोगों पर तीर कमान से हमला किया. पांच लोगों की जान चली गई और दो लोग घायल हुए.
क्यों हुआ हमला?
पुलिस ने मीडिया को घटना की जानकारी देते हुए कहा कि संदिग्ध को फौरन गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस प्रमुख ओएविंद आस ने बताया, "व्यक्ति को पकड़ लिया गया है. अब तक हमारे पास जो जानकारी है, उसके मुताबिक इस व्यक्ति ने अकेले ही घटना को अंजाम दिया. कई लोग घायल हैं और कई लोगों की मौत हो गई है.”
प्रभावित इलाके का दायरा काफी बड़ा बताया गया है. यह वारदात शहर के केंद्र में हुई. पुलिस को घटना के बारे में स्थानीय समय के मुताबिक शाम करीब साढ़े छह बजे सूचना मिली. 20 मिनट बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया.
पुलिस ने आरोपी की पहचान उजागर नहीं की है और उसका आतंकवाद से संबंध होने पर भी टिप्पणी नहीं की है. अधिकारियों का कहना है कि और जांच के बाद ही इस बारे में कुछ कहा जा सकेगा.
नॉर्वे की कार्यवाहक प्रधानमंत्री एरना सोलबर्ग ने इस घटना को वीभत्स करार दिया जबकि प्रधानमंत्री बनने जा रहे जोनास स्टोएरे ने इसे ‘क्रूर और नृशंस' बताया.
घायलों में पुलिस अफसर भी
नॉर्वे के मीडिया ने लिखा है कि हिंसा के डर से शहर के कई इलाकों को खाली करा लिया गया था. घटना स्थल पर दर्जनों हेलीकॉप्टर और एंबुलेंस पहुंची थीं. घायलों को आईसीयू में रखा गया है. दो घायलों में से एक पुलिस अफसर है जो उस वक्त ड्यूटी पर नहीं था.
घटना के बाद देश के पुलिस महानिदेशालय ने अफसरों को हथियार साथ रखने का आदेश दिया है. आम तौर पर स्कैंडेनेविया के देशों में पुलिस के पास हथियार नहीं होते.
करीब दस साल पहले एक दक्षिणपंथी आंद्रेस ब्रेविक ने देश के सबसे भयानक आतंकवादी हमले को अंजाम दिया था. ब्रेविक ने ओस्लो में एक बम धमाका करने के बाद लोगों पर गोलीबारी की थी. जुलाई 2011 में उटोया में हुई उस घटना में 77 लोगों की जान गई थी.
वीके/एए (एपी, डीपीए)
-सुमी खान
ढाका, 14 अक्टूबर| बांग्लादेश में अपने सबसे बड़े हिंदू धार्मिक उत्सव के जश्न के बीच कोमिला जिले और अन्य जगहों पर मंदिरों और दुर्गा पूजा पंडालों पर हमलों की एक श्रृंखला सोशल मीडिया के माध्यम से फैली 'अफवाहों' के बाद हुई।
अधिकारियों ने घटनाओं को गंभीरता से लिया है, अर्धसैनिक बलों को तैनात किया है और अधिकारियों से अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है।
कुरान का कथित तौर पर अनादर करने के लिए कोमिला में एक मंदिर मंगलवार रात फ्लैशपोइंट बन गया।
स्थानीय अधिकारियों ने आईएएनएस को बताया कि बीएनपी और जमात-ए-इस्लाम के कुछ बदमाशों ने मंगलवार रात ननुयार दिघीर पर मंदिर में दुर्गा पंथ में गणेश के चरणों में पवित्र कुरान की एक प्रति लगाई।
जिले के एक अधिकारी ने कहा, "अराजक तत्वों ने इसकी कुछ तस्वीरें लीं और भाग गए। कुछ ही घंटों में फेसबुक का इस्तेमाल कर भड़काऊ तस्वीरों के साथ प्रचार जंगल की आग की तरह फैल गया।"
गुस्साई भीड़ ने पूजा पंडालों और मंदिर में तोड़फोड़ की।
सत्ताधारी अवामी लीग के कार्यकर्ता पुलिस के साथ दुर्गा पूजा पंडालों और मंदिरों की घेराबंदी करने के लिए हरकत में आए। बाद में दिन में, कोमिला शहर और जिले के अन्य संवेदनशील क्षेत्रों और क्षेत्र में अन्य जगहों पर सुरक्षा बलों की अधिक इकाइयां तैनात की गईं।
एक आपातकालीन नोटिस में, धार्मिक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि खबर मिली है कि कोमिला में धार्मिक पाठ का 'अपमान' किया गया था, लेकिन जनता से कानून को अपने हाथ में नहीं लेने का आग्रह किया और धार्मिक सद्भाव और शांति बनाए रखने की अपील दोहराई।
बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के मद्देनजर कोमिला में बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड के जवानों को तैनात किया गया है।
बीजीबी के कोमिला बटालियन कमांडर, लेफ्टिनेंट कर्नल फजल रब्बी ने कहा, "कोमिला में कोई अशांति नहीं हो, यह सुनिश्चित करने के लिए दोपहर में बीजीबी के चार प्लाटून तैनात किए गए थे। किसी भी शत्रुता को रोकने के लिए बीजीबी को तैनात किया गया है।"
--आईएएनएस
एसजीके
बांग्लादेश हिंदू एकता परिषद ने शांति की अपील की।
हम अपने मुस्लिम भाइयों से कहना चाहेंगे, कृपया अफवाहों पर विश्वास न करें। हम कुरान का सम्मान करते हैं। दुर्गा पूजा में कुरान की कोई आवश्यकता नहीं है। यह कोई दंगा भड़काने की साजिश कर रहा है। निष्पक्ष जांच होगी। कृपया अब और हिंदू मंदिरों पर हमला न करें।
लेकिन बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई ओक्या परिषद के महासचिव राणा दासगुप्ता ने कहा: पहले से ही, चटगांव में बंशखली, कॉक्स बाजार के पेकुआ सहित देश भर में मंदिरों पर हमला किया जा रहा है .. देश भर में सांप्रदायिक खतरा फैल गया है। हम संगीत को रोकने का फैसला करने जा रहे हैं। और विरोध के तौर पर माइक का इस्तेमाल.. उस समय की रस्में बंद नहीं हो सकतीं। (आईएएनएस)
ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च न्यायालय ने एक वैज्ञानिक का 'बौद्धिक आजादी' का दावा खारिज करते हुए उन्हें यूनिवर्सिटी से बर्खास्त किए जाने को सही ठहराया है. 2018 में इस विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक को नौकरी से निकाल दिया गया था.
ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च न्यायालय ने जेम्स कुक यूनिवर्सिटी द्वारा एक वैज्ञानिक पीटर रिड को बर्खास्त किए जाने को सही ठहराया है. ऑस्ट्रेलिया का सर्वोच्च न्यायालय हाई कोर्ट कहलाता है.
हाई कोर्ट ने सार्वजनिक रूप से दिए बयानों को रिड की 'बौद्धिक आजादी' मानने से इनकार कर दिया. क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी के पीटर रिड को 2018 में बर्खास्त किया गया था. उन्होंने कहा था कि ग्रेट बैरियर रीफ पर पर्यावरण परिवर्तन के प्रभाव को वैज्ञानिक बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं.
रिड के इस बयान का पर्यावरणविदों ने खासा विरोध किया था जिसके बाद टाउन्सविल शहर में स्थित यूनिवर्सिटी ने उन्हें दुर्व्यवहार का दोषी माना और बर्खास्त कर दिया. रिड ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी थी.
अभिव्यक्ति की आजादी अलग है
बुधवार को हाई कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट में जो 'बौद्धिक आजादी' की बात कही गई है, वह 'अभिव्यक्ति की आम आजादी' नहीं है, इसलिए उस प्रावधान के तहत रिड की बर्खास्तगी को गलत नहीं ठहराया जा सकता.
कोर्ट के इस फैसले को अलग-अलग नजरिए से परखा जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया के शिक्षा मंत्री एलन टज ने कहा कि वह विशेषज्ञों से सलाह करेंगे कि इस फैसले का यूनिवर्सिटी सेक्टर में नौकरियों पर क्या असर हो सकता है.
टज ने कहा, "वैसे तो मैं हाई कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं लेकिन मैं इस बात को लेकर चिंतित हूं कि नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का हमारे विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति की आजादी पर और अकादमिक आजादी पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए.”
पीटर रिड ने 27 साल तक जेम्स कुक यूनिवर्सिटी के लिए काम किया था. वह फिजिक्स विभाग के अध्यक्ष रहे थे और दुनिया के जाने-माने शोधकर्ताओं में गिने जाते हैं. वैज्ञानिकों के लिए यूरोप के सोशल नेटवर्क रिसर्चगेट में पीटर रिड को दुनिया के टॉप 5 प्रतिशत शोधकर्ताओं में गिना जाता है.
कई साल चला विवाद
रिड विवाद में तब फंसे जब 2015 में उन्होंने एक पत्रकार को भेजे ईमेल में आरोप लगाया कि दुनिया के सबसे बड़े कोरल पार्क का प्रबंधन करने वाली ‘ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क अथॉरिटी' ने कुछ वैज्ञानिक आंकड़ों का हेरफेर किया है ताकि ग्रेट बैरियर रीफ के खतरे को बड़ा बताया जा सके.
2017 में स्काई न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने यूनिवर्सिटी से ही जुड़ीं दो संस्थाओं ऑस्ट्रेलियन रिसर्च काउंसिल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर कोरल रिसर्च और ऑस्ट्रेलियन इंस्टिट्यूट ऑफ मरीन साइंस की आलोचना की. इसी के बाद उन पर प्रशासनिक कार्रवाई हुई.
यूनिवर्सिटी ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है जिसमें कहा गया कि रिड पर दुर्व्यवहार के 18 आरोपों को 'बौद्धिक आजादी' के नाम पर सही नहीं ठहराया जा सकता. एक बयान में यूनिवर्सिटी ने कहा, "जेम्स कुक यूनिवर्सिटी ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि वह बौद्धिक खोजबीन और अध्यापकों की अकादमिक वह बौद्धिक आजादी का समर्थन करती है.”
खतरे में है ग्रेट बैरियर रीफ
रिड के विचारों को प्रकाशित करने वाले मेलबर्न स्थित एक रूढ़िवादी थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक अफेयर्स ने अदालत के फैसले पर निराशा जताई है. एक बयान में इंस्टीट्यूट ने कहा, "यह फैसला दिखाता है कि ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय संकट में हैं और देश पर सेंसरशिप की संस्कृति हावी हो रही है. रिड के वकीलों ने अभी तक फैसले पर टिप्पणी नहीं की है.
यूनेस्को ने इसी साल ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ को खतरे में पड़ीं वैश्विक धरोहरों की सूची से निकालने की सलाह दी थी. इसके लिए समुद्र के बढ़ते तापमान को लेकर जरूरी कदम ना उठाए जाने को जिम्मेदार बताया गया था.
ग्रेट बैरियर रीफ को समुद्र के बढ़ते तापमान का भारी नुकसान हुआ है. 2016, 2017 और पिछले साल के नकुसान से दो तिहाई कोरल नष्ट हो चुके हैं.
वीके/एए (एपी)
धरती पर मनुष्य की औसत आयु 71.4 वर्ष है. कुछ जगहों पर लोग ज्यादा जीते हैं, कुछ पर कम. लेकिन दुनिया में पांच जगह ऐसी हैं जहां के लोगों की आयु अचंभित करती है.
94 साल की उम्र में सातोर नीनो लोपेज हर दिन चार किलोमीटर पैदल चलते हैं. सुबह जल्दी उठ कर वह जलावन के लिए लकड़ियां भी काट लेते हैं. कोस्टा रिका का निकोया प्रायद्वीप धरती की उन जगहों में से एक है जहां सबसे लंबी आयु जीने वाले लोग रहते हैं.
सातोर नीनो कोस्टा रिका के उन 1,010 लोगों में हैं जिनकी आयु 90 साल से ज्यादा है. ये लोग कहीं और से यहां नहीं आए हैं बल्कि हमेशा से यहीं रहे हैं. सातोर बताते हैं, "मेरी उम्र में मैं अच्छा महसूस करता हूं क्योंकि ईश्वर ने मुझे शांति से चलने की शक्ति दी है. मैं एक या चार किलोमीटर तक जाकर वापस लौट सकता हूं, कोई समस्या नहीं है.”
प्रकृति की गोद में
सातोर का घर प्रकृति की गोद में है. लकड़ी की इमारत में कंक्रीट कम मिट्टी और दूसरी चीजें ज्यादा हैं. चारों तरफ हरियाली है और चिड़ियों की चहक का संगीत भी. कोरोना के दौर में भी यहां न तो कोई बदहवासी थी ना कोई परेशानी नहीं.
20वीं सदी के आखिर में डेमोग्राफर मिशेल पाउलन और फिजिशन जॉनी पेस ने नक्शे पर नीली स्याही से इटली के सारडीनिया को चिन्हित किया. उन्होंने देखा कि यहां की आबादी काफी लम्बा जीती है. 2005 में अमेरिका के डैन गोअर्टनर ने पता लगाया कि कैलिफॉर्निया के लोमा लिंडा, ग्रीस के इकेरिया, जापान के ओकिनावा और कोस्टा रिका के निकोया में भी यही खासियत है. इन्हीं जगहों को ब्लू जोन नाम दिया गया.
निकोया में लोग सुबह में चावल और बीन्स खाते हैं. बाद में थोड़े से मांस, फल और आवाकाडो की बारी आती है. यहां का खाना यही है.
राज क्या है?
सातोर नीनो के पड़ोस में ही 91 साल की क्लेमेंटीना रहती हैं. उनके पति और ऑगस्टीन सौ साल के हैं. क्लेमेंटीना के 18 बच्चे हुए जिनमें से 12 जिंदा हैं. छोटे-छोटे कदमों से चलकर वह मुर्गियों को दाना डालती हैं, किचन में बर्तन धोती हैं और खाना पकाती हैं. इस उम्र में भी उनकी ऊर्जा कोस्टा रिका के 80 साल और बाकी दुनिया के 72 साल के इंसान जितनी है. आखिर इसका राज क्या है?
क्लेमेंटीना बताती हैं, "गांव में आप ज्यादा शांति से रहते हैं. शहरों की तरह नहीं जहां आपको बहुत सावधान रहना पड़ता है. गांव के लोग ज्यादा शांति से जीते हैं और आपके लिए उतना खतरा नहीं होता."
जीवन में लक्ष्यों को बनाए रखना उन्हें सेहतमंद बनाता है. इन लोगों की मदद के लिए एक सपोर्ट सिस्टम भी है. ये लोग मेहनत करते हैं, खुद से उगाया खाना खाते हैं और तनाव को दूर रखते हैं.
बदल रहा है जीवन
यहीं पर जोश विलेगास का भी घर है. अगले साल मई में वह 105 साल के होंगे और उनकी हसरत है इस मौके पर घोड़े की सवारी करना. हालांकि विलेगास मानते हैं कि उनके आसपास भी चीजें बदल रही हैं.
वह कहते हैं, "जीने का तरीका बदल गया है. अब वो पहले जैसा नहीं रहा. लोग पहले एक दूसरे से प्यार करते थे, मदद करते थे. ज्यादा भाईचारा था.”
जानकार बताते हैं कि ब्लू जोन आने वाले कुछ और सालों तक बढ़ते रहेंगे लेकिन ये 20-30 साल से ज्यादा नहीं टिक पाएंगे. धीरे-धीरे इन इलाकों के लोग भी अपने उगाएं खाने से दूर हो रहे हैं. मोटापा और शुगर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं. आखिर ये इलाके दुनिया भर में हो रहे बदलावों से खुद को कब तक बचा पाएंगे!
ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में केस दर्ज कराया गया है. आरोप है कुदरत के खिलाफ अपराध करने का.
डॉयचे वैले पर जोन शेल्टन की रिपोर्ट
ऑस्ट्रिया में जलवायु परिवर्तन के लिए काम करने वाली एक संस्था ने ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय से अपील की है कि आधिकारिक तौर पर यह जांच की जाए कि उनकी नीतियां मानवता के खिलाफ अपराध हैं या नहीं.
ऑलराइज नामक इस संस्था का कहना है कि प्रकृति के खिलाफ अपराध मानवता के खिलाफ अपराध हैं. इसके संस्थापक योहानेस वेजेमान ने कहा, "जायर बोल्सोनारो देखते-भालते अमेजन का विनाश करवा रहे हैं जबकि वह जानते हैं कि इसके क्या नतीजे होंगे.” ऑलराइज ने सोशल मीडिया पर दप्लेनेटवीज नाम से एक अभियान की भी शुरुआत की है.
अमेजन पर कहर
मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि अमेजन के जंगलों की कटाई के कारण जितना कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, वह इटली या स्पेन के सालाना कुल उत्सर्जन से ज्यादा है. इस कटाई के कारण इतनी कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है, जितनी अमेजन सोख नहीं सकता.
बोल्सोनारो के खिलाफ आईसीसी में यह शिकायत तब दर्ज हुई है जब दुनिया अगले महीने ग्लासगो में होने वाले COP26 जलवायु सम्मेलन की तैयारी कर रही है और सबका ध्यान पर्यावरण की समस्याओं की ओर है.
ऑलराइज के संस्थापक वेजेमान ने डॉयचे वेले से कहा कि आईसीसी में शिकायत करके वह दुनिया में जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं, भले ही इस मामले में जीत की संभावना कम है. उन्होंने बताया, "जीत की परिभाषा क्या है, यह हमें तय करना होगा. अगर जीत का अर्थ बोल्सोनारो को जेल में डालना है तो संभावना कम है. लेकिन, दप्लेनेटवीज का मकसद यह नहीं है. अगर जीत का अर्थ है कि लोग जागरूक हों, आईसीसी हमारी बात सुने और एक शुरुआती जांच हो, तो वह सफलता होगी. ”
अलग है यह केस
वेजेमान उम्मीद कर रहे हैं कि यह मामला एक मिसाल बनेगा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले और ऐसे मामले सामने आएंगे.
ऑलराइज को उम्मीद है कि इस शिकायत का असर अन्य देशों पर भी होगा और वे पर्यावरण विरोधी कदम उठाने से परहेज करेंगे. वेजेमान कहते हैं, "अगर हम आईसीसी की जांच शुरू करवाने में भी कामयाब हो जाते हैं तो यह सबूत होगा कि हमारा मामला आईसीसी के लिए प्रासंगिक है. फिर कोई सीईओ हो या राजनेता, अपने भविष्य के फैसलों को लेकर चौकस रहेगा.”
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में इस तरह का यह पहला मामला नहीं है. इससे पहले द हेग में बोल्सोनारो के खिलाफ तीन और शिकायतें आ चुकी हैं. लेकिन यह मामला बाकियों से अलग है. वेजेमान बताते हैं, "हमारे इस कदम को ब्राजील का मजबूत समर्थन हासिल है. लेकिन हम ब्राजील के लोगों की तरफ से नहीं बोल रहे हैं. ना ही हम उनके प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं. हम उनके संघर्ष को एक अंतरराष्ट्रीय आयाम देना चाहते हैं. अमेजन उनका है लेकिन उसकी जरूरत हम सबको है.”
किसका है अमेजन
बोल्सोनारो कहते रहे हैं कि अमेजन ब्राजील का है और उसके संसाधनों के इस्तेमाल में दखलअंदाजी देश के कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने के मकसद से की जा रही है.
इस बार आईसीसी में बोल्सोनारो के खिलाफ दर्ज शिकायत में ऐसे वैज्ञानिक आधार दिए गए हैं जो अमेजन के जंगलों की बढ़ती कटाई को उनकी नीतियों से सीधे तौर पर जोड़ते हैं और यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि इन नीतियों का दुनियाभर की जलवायु पर नकारात्मक असर पड़ेगा. इस शिकायत में कहा गया है कि गर्मी बढ़ने के कारण सदी के अंत तक औसत से 180,000 मौतें ज्यादा होंगी.
ऑलराइज कहता है, "बोल्सोनारो की सरकार सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से अमेजन की कटाई के लिए जिम्मेदार है. तो यह पर्यावरण को जानबूझ़कर और अनियंत्रित नुकसान पहुंचाना है, जिसके न सिर्फ स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी असर होंगे.”
अमेजन के जंगलों की कटाई के खिलाफ लंबे समय से दुनियाभर में विरोध हो रहा है. 2009 से 2018 के बीच सालाना औसतन 6,500 वर्ग किलोमीटर जंगल काटे गए थे. 1 जनवरी 2019 को बोल्सोनारो द्वारा सत्ता संभालने के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 10,500 हो गया. (dw.com)
इटली के चिड़ियाघर पार्को नेचुरा वीवा ने कहा है कि टोबी के शव पर लेप लगाकर उसे ट्रेंटो के 'म्यूजे साइंस' म्यूजियम में रखा जाएगा. यहां वह इसी चिड़ियाघर में पांच साल पहले मरे ब्लैंको नाम के सफेद शेर का साथी बनेगा.
दुनिया के सबसे बुजुर्ग सफेद गैंडे टोबी ने 54 साल की उम्र में उत्तरी इटली के एक चिड़ियाघर में आखिरी सांस ली. मंगलवार को चिड़ियाघर की प्रवक्ता ने यह जानकारी दी.
इटली के उत्तरी शहर वेरोना के पास एक चिड़ियाघर पार्को नेचुरा वीवा की कर्मी एलिसा लिविया पेनाचियोनी ने बताया, "नैनो टोबी यानी दादाजी टोबी छह अक्टूबर को गुजर गया. वह अपनी रात में रहने की जगह से वापस आते हुए बेहोश होकर जमीन पर गिरा और इसके बाद करीब आधे घंटे में उसकी धड़कनें रुक गईं."
लंबी उम्र मिली
पेनाचियोनी ने बताया कि अब टोबी के शव पर लेप लगाकर उसे ट्रेंटो के 'म्यूजे साइंस' म्यूजियम में रखा जाएगा, जहां वह इसी चिड़ियाघर में पांच साल पहले मरे ब्लैंको नाम के सफेद शेर का साथी बनेगा. उन्होंने बताया, "सफेद गैंडे जब कैद में रहते हैं तो सामान्यत: 40 साल तक जीते हैं. वहीं जंगल में ये करीब 30 साल तक जीते हैं."
टोबी की मौत से पहले साल 2012 में उसकी मादा पार्टनर शुगर की मौत हुई थी. अब टोबी की मौत के बाद पार्को नेचुरा वीवा के पास सिर्फ एक सफेद गैंडा 'बेनो' बचा है, जिसकी उम्र 39 साल है.
गैंडों की हथियारबंद सुरक्षा
टोबी एक 'दक्षिणी सफेद गैंडा' था. वह गैंडों की पांच में से उस एकमात्र प्रजाति से था, जो अब भी लुप्तप्राय नहीं मानी जाती है. वर्ल्ड वाइल्ड फंड (WWF) के मुताबिक अभी इस प्रजाति के गैंडों की संख्या 18 हजार से ज्यादा है. पर्यावरण संगठन ने यह भी बताया कि इससे उलट उत्तरी सफेद गैंडे दुनिया में सिर्फ दो बचे हैं. ये केन्या में रहते हैं और हथियारबंद गार्ड इन गैंडों की दिन-रात सुरक्षा करते हैं.
केन्या के नॉर्दन व्हाइट राइनो प्रजाति के यह दोनों ही गैंडे मादा हैं. साल 2018 में इनके साथ रहने वाले अकेले नर सूडान की 45 साल की उम्र में मौत हो गई थी. यह गैंडा काफी पॉपुलर था. इसका डेटिंग ऐप टिंडर पर अकाउंट भी था. दरअसल टिंडर पर गैंडे के लिए चंदा जुटाने की कोशिश की जा रही थी, फिर भी इस नर गैंडे को बचाया नहीं जा सका था.
भारत में सफेद गैंडे नहीं होते हैं, वहां काजीरंगा के नेशनल पार्क में एक सींग वाले गैंडे रहते हैं जो शिकारियों के निशाने पर हैं. पिछले दिनों में उन्हें बचाने की कोशिशें हो रही हैं जिसमें कामयाबी भी मिली है. हाल ही में गैंडों के जब्त किए गए सींगों को जलाकर विश्व गैंडा दिवस मनाया गया.
एडी/एमजे (एएफपी)
कुनमिंग (चीन), 13 अक्टूबर| रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जैव विविधता के संरक्षण और विकासशील देशों को संबंधित सहायता देने के लिए अंतर्राष्ट्रीयसहयोग का आह्वान किया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, पुतिन ने मंगलवार को जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पक्षकारों के सम्मेलन की 15वीं बैठक में वीडियो के माध्यम से अपने भाषण में कहा, "यह निश्चित रूप से जरूरी है कि सभी राज्य की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और विशिष्टताओं को ध्यान में रखा जाए और विकासशील और सबसे कम विकसित देशों की जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाए।"
सीओपी15 सम्मेलन सोमवार को दक्षिण-पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी कुनमिंग में शुरू हुआ।
अगले दशक के लिए जैव विविधता संरक्षण के लिए तैयार खाका के अनुसार, बैठक का पहला भाग जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक संरक्षण सहित विषयों पर मंचों की समानांतर गतिविधियों के साथ शुक्रवार तक चलेगा। बैठक का दूसरा भाग जो अगले साल होने की उम्मीद है, यह समीक्षा करेगा और '2020 के बाद की वैश्विक जैव विविधता ढांचे' पर निर्णय करेगा।
पुतिन ने रेखांकित करते हुए कहा कि 'अपने प्राकृतिक संसाधनों और आर्थिक गतिविधियों पर राज्यों की संप्रभुता' का इस उद्देश्य से सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "हम वनस्पतियों और जीवों के साथ-साथ वायु और जल संसाधनों की रक्षा के सभी जरूरी मुद्दों पर घनिष्ठ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने के विचार का पूर्ण समर्थन करते हैं।"
उन्होंने पर्यावरणीय मामलों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के प्रयासों का समर्थन करने के लिए चीन की सराहना की।
सम्मेलन के विषय 'पारिस्थितिक सभ्यता: पृथ्वी पर सभी जीवन के लिए एक साझा भविष्य के निर्माण' के बारे में पुतिन ने कहा, "यह सम्मेलन मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने के तरीके पर विचारों को साझा करने का एक अच्छा अवसर देता है।"
यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारिस्थितिक सभ्यता के विषय पर चीन द्वारा प्रस्तावित एक दर्शन पर आयोजित पहला वैश्विक सम्मेलन है।
पुतिन ने कहा, "यह सम्मेलन एक अच्छा उदाहरण है कि प्रकृति संरक्षण के उद्देश्यों को किसी भी देश द्वारा व्यक्तिगत रूप से सफलतापूर्वक संबोधित नहीं किया जा सकता है। अतिशयोक्ति के बिना सभी मानव जाति के लिए सभी राज्यों के लिए यह एक सामान्य कार्य है।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर| अफगानिस्तान के घुर प्रांत में गरीबी, बेरोजगारी और गंभीर आर्थिक समस्याओं के कारण बाल विवाह हो रहे हैं और कई परिवार अपनी कम उम्र की लड़कियों को पैसे, हथियार या पशुधन के बदले मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों से शादी करने दे रहे हैं। राहा प्रेस ने यह जानकारी दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ चौंकाने वाली कहानियां सामने आई हैं, जहां परिवारों ने अपनी एक साल की बेटियों को भी पैसे, पशुधन और हथियारों के लिए बेच दिया है।
एक कम उम्र की लड़की की खरीद और बिक्री की दर आमतौर पर प्रांत में 100,000 से 250,000 अफगानी के बीच होती है।
सूत्रों के मुताबिक अगर खरीदार के पास नगद रकम नहीं है तो वह बदले में लड़की के परिवार को हथियार या मवेशी देता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह की घटनाएं राष्ट्रीय राजधानी से ज्यादा सूबे के सुदूर जिलों में होती हैं।
पैसे के बदले लड़कियों की खरीद-बिक्री या बाल विवाह पहले आम बात थी, लेकिन अफगानिस्तान सरकार के पतन और आने वाली आर्थिक उथल-पुथल के बाद अधिक परिवार इस मार्ग को अपनाने के लिए मजबूर हैं।
देश के पश्चिम में एक महिला अधिकार कार्यकर्ता हबीबा जमशेदी ने कहा कि महिलाएं समाज की आबादी का आधा हिस्सा हैं और उनके साथ अमानवीय या गैर-इस्लामी तरीके से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
जमशेदी ने कहा कि जो परिवार लड़कियों और महिलाओं की विधियों से अनभिज्ञ हैं, वे उनका दुरुपयोग करते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जमशेदी ने जोर देकर कहा कि बाल विवाह के कारणों में से एक महिलाओं की भूमिका और स्थिति के बारे में उचित जागरूकता की कमी है।
घुर प्रांत में तालिबान अधिकारियों ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। (आईएएनएस)
ब्रिटेन की एक संसदीय समिति ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों में ही सरकार ने तालाबंदी लगाने में देर कर दी थी. इस देरी की वजह से हजारों ऐसे लोग मारे गए जिन्हें बचाया जा सकता था.
यह रिपोर्ट ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स की विज्ञान और स्वास्थ्य की समितियों द्वारा संयुक्त रूप से की गई जांच का नतीजा है. इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शुरू में ही तालाबंदी ना लगाने से महामारी को रोकने का एक अवसर हाथ से निकल गया.
रिपोर्ट कहती है कि इस घातक देरी का कारण था वैज्ञानिक सलाहकारों के सुझावों पर मंत्रियों का सवाल ना उठाना. इस वजह से एक खतरनाक स्तर की "सामूहिक सोच" विकसित हो गई जिसके कारण उन आक्रामक रणनीतियों को नकार दिया गया जिन्हें पूर्वी और दक्षिणपूर्वी एशिया में लागू किया गया था.
देर से दिया आदेश
प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की कंजर्वेटिव सरकार ने तब जा कर तालाबंदी का आदेश दिया जब देश की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा पर तेजी से बढ़ते हुए संक्रमण के मामलों की वजह से अत्यधिक दबाव पड़ गया.
रिपोर्ट ने कहा, "सरकार तालाबंदी से बचना चाह रही थे क्योंकि उसकी वजह से अर्थव्यवस्था, सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं और समाज को बहुत नुकसान होता. कड़ाई से आइसोलेशन, एक सार्थक जांच और ट्रेस अभियान और सीमाओं पर सशक्त प्रतिबंध जैसे उपायों के अभाव में एक पूर्ण तालाबंदी अनिवार्य थी और उसे और जल्दी लागू किया जाना चाहिए था."
यह रिपोर्ट ऐसे समय पर आई है जब महामारी से निपटने के सरकार के प्रयासों को लेकर एक औपचारिक जांच में हो रही देरी को लेकर निराशा का माहौल है. प्रधानमंत्री जॉनसन ने कहा है कि जांच अगले साल बसंत में शुरू होगी.
सांसदों का कहना है कि जांच की प्रक्रिया को कुछ इस तरह से बनाया गया है जिससे यह सामने लाया जा सके कि महामारी के शुरुआती दिनों में ब्रिटेन का प्रदर्शन दूसरे देशों के मुकाबले "काफी खराब" क्यों रहा. इससे देश को कोविड-19 के मौजूदा और भविष्य के खतरों से निपटने में मदद मिलेगी.
टीकों पर शुरुआती ध्यान की सराहना
संसदीय समिति की रिपोर्ट 150 पन्नों की है और 50 गवाहों के बयानात पर आधारित है. इनमें पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मैट हैनकॉक और प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार डोमिनिक कमिंग्स भी शामिल हैं. इसे संसद की तीन सबसे बड़ी पार्टियों के 22 सांसदों ने सर्वसम्मति से स्वीकृति दी थी.इन पार्टियों में सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी, विपक्षी लेबर पार्टी और स्कॉटलैंड की स्कॉटिश नेशनल पार्टी शामिल थीं. संसदीय समितियों ने टीकों पर सरकार के शुरुआती ध्यान और टीकों के विकास में निवेश करने के फैसले की सराहना भी की.
इन फैसलों से ब्रिटेन का टीकाकरण कार्यक्रम काफी सफल हुआ और आज 12 साल से ऊपर की उम्र के लगभग 80 प्रतिशत लोगों को टीका लग चुका है. समितियों ने कहा, "यूके ने वैश्विक टीकाकरण अभियान में अग्रणी भूमिका निभाई है जिसकी वजह से अंत में लाखों जानें बच पाएंगी."
रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के पहले तीन महीनों में सरकार की रणनीति औपचारिक वैज्ञानिक सलाह का नतीजा थी, जिसमें कहा गया था कि चूंकि जांच करने की क्षमता सीमित है इसलिए संक्रमण व्यापक रूप से फैलेगा ही.
इसके अलावा यह भी कहा गया था कि टीके की तुरंत कोई संभावना नहीं है. यह भी माना गया था कि जनता एक लंबी तालाबंदी को स्वीकार नहीं करेगी. इसका नतीजा यह हुआ कि सरकार वायरस के प्रसार को पूरी तरह से रोकने की जगह सिर्फ उसके प्रबंधन का इंतजाम कर पाई. (dw.com)
सीके/एए (एपी)