अंतरराष्ट्रीय
ब्राजील की एक संसदीय समिति ने राष्ट्रपति जाएर बोल्सोनारो पर मानवता के खिलाफ अपराधों का मुकदमा चलाने की सिफारिश की है. ऐसा कोविड महामारी से ठीक से ना निपटने के लिए किया गया है.
ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो पर देश की संसदीय समिति ने नौ आरापों में मुकदमा चलाने की सिफारिश की है. इन आरोपों में मानवता के खिलाफ अपराधों के अलावा नीमहकीमी भी शामिल है.
सेनेटर रेनान कैलहाइरोस ने समिति की अंतिम रिपोर्ट को पेश किया. यह समिति राष्ट्रपति बोल्सोनारो की सरकार की कोरोना वायरस संबंधी नीतियों की जांच कर रही थी. छह महीने की जांच के बाद यह रिपोर्ट पेश की गई है.
करीब 1,200 पेज की इस रिपोर्ट में सरकारी धन के दुरुपयोग का भी आरोप है. रिपोर्ट कहती है कि कोविड की शुरुआत में मलेरिया की दवाई की सिफारिश करने के अलावा सरकार ने कोई और नीतिगत फैसला नहीं लिया.
बोल्सोनारो पर अपराधिक मुकदमा चलाने के अलावा समिति ने उन पर महाभियोग चलाने की भी सिफारिश की है. हालांकि ऐसी सिफारिशों को मानने का फैसला चैंबर ऑफ डेप्युटीज के अध्यक्ष पर निर्भर करता है, जिन्हें बोल्सोनारो का करीबी माना जाता है.
हत्या का आरोप नहीं
समिति ने जिन आरोपों में मुकदमे की सिफारिश की है, उनमें आदिवासियों का नरसंहार और कत्ल जैसे संगीन आरोप शामिल नहीं किए गए. हालांकि इन आरोपों पर चर्चा हुई थी. समिति ने राष्ट्रपति के अलावा 65 अन्य व्यक्तियों और दो उद्योगों को भी रिपोर्ट में नामित किया है.
समिति में 11 सदस्य थे. इनमें से सात विपक्षी दलों से जुड़े हैं या निर्दलीय हैं. पिछले छह महीने के दौरान समिति ने दर्जनों लोगों के बयान दर्ज किए. अगले हफ्ते इस रिपोर्ट पर समिति में वोटिंग होने की संभावना है. रिपोर्ट को पारित करने के लिए बहुमत की जरूरत होगी, जिसे फिर प्रॉसीक्यूटर जनरल को भेजा जाएगा. प्रॉसीक्यूटर जरनल ही मुकदमा चलाने पर फैसला करेगा.
बोल्सोनारो का बोलबाला घटा
ब्राजील में 2.2 करोड़ लोग कोरोना वायरस महामारी का शिकार बने. वहां छह लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. महामारी के दौरान देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी. इस कारण मार्च और अप्रैल में बड़ी संख्या में मौतें हुईं.
इस स्थिति के बावजूद बोल्सोनारो ने कोरोनावायरस की गंभीरता को शुरुआत से ही ज्यादा अहमियत नहीं दी. उन्होंने वैक्सीन पर संदेह जाहिर किए और कड़ी पाबंदियां लगाने जैसे उपाय भी नहीं किए. उन्होंने बार-बार कहा कि उन्होंने खुद कोई टीका नहीं लगवाया.
बोल्सोनारो पर यह भी आरोप है कि उन्होंने ब्राजील के लिए वैक्सीन खरीदने में देरी की जबकि उनका देश अमेरिका और भारत के बाद दुनिया का तीसरा सबसे प्रभावित मुल्क है.
बोल्सोनारो सरकार के प्रति जनता का समर्थन लगातार घट रहा है. सितंबर में डाटाफोला संस्था द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में 53 प्रतिशत लोगों ने राष्ट्रपति की नीतियों को खारिज किया. 2019 में बोल्सोनारो द्वारा सत्ता संभालने के बाद से यह समर्थन का निम्नतम स्तर है.
वीके/एए (एपी, डीपीए)
अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार में उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनाफी के नेतृत्व वाले उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को भारत सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात की.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश मंत्रालय में पाक-अफगानिस्तान-ईरान प्रभाग के जॉइंट सेक्रेटरी जेपी सिंह कर रहे हैं. यह दल मॉस्को में हो रहे अफगानिस्तान सम्मेलन के दौरान रूस की सरकार के विशेष न्योते पर वहां गया है.
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने एक संक्षिप्त बयान में कहा कि सम्मेलन से इतर दोनों प्रतिनिधिमंडलों की मुलाकात हुई. भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है.
भारत पहले भी तालिबान के प्रतिनिधियों से औपचारिक बातचीत कर चुका है. पिछली बार ऐसी मुलाकात दोहा में हुई थी जब 31 अगस्त को कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से भारतीय दूतावास में ही मुलाकात की थी.
तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा था, "आज कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा में तालिबान के राजनीतिक दफ्तर के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की. तालिबान के आग्रह पर यह बैठक भारत के दूतावास में हुई.”
सरकारी स्तर पर पहला संपर्क
बुधवार को मॉस्को में हुई मुलाकात अफगानि्सतान में अंतरिम कैबिनेट के गठन के बाद दोनों पक्षों के बीच पहला औपचारिक संपर्क है. अफगानिस्तान के समाचार चैनल टोलो न्यूज ने मुजाहिद के हवाले से बताया कि भारत युद्ध पीड़ित देश को मानवीय सहायता देने को तैयार है.
मुजाहिद के मुताबिक दोनों पक्षों ने एक दूसरे की चिंताओं पर ध्यान देने और कूटनीतिक व आर्थिक रिश्ते सुधारने पर भी जोर दिया.
मॉस्को में अफगानिस्तान पर यह सम्मेलन 2017 में स्थापित किया गया था. इस सम्मेलन में छह पक्षों को अफगानिस्तान पर अपनी राय व्यक्त करने और एक दूसरे से सलाह मश्विरा करने का मौका मिलता है. इन पक्षों में रूस के अलावा अफगानिस्तान, भारत, ईरान, चीन और पाकिस्तान शामिल हैं. 2017 के बाद से ये देश कई बार इस मुद्दे पर चर्चा कर चुके हैं.
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में सरकार बना लिए जाने के बाद यह पहला सम्मेलन है, जिसमें दस देशों के प्रतिनिधि आमंत्रित हैं. तालिबान ने 15 अगस्त को तब काबुल पर कब्जा कर लिया था जब अमेरिकी सेना के नेतृत्व वाली नाटो फौजें दो दशक लंबे अभियान के बाद वहां से जाने के अंतिम चरण में थीं.
मदद की अपील
मॉस्को फॉर्मैट में अफगान उप प्रधानमंत्री हनाफी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि उनकी अंतरिम सरकार को मान्यता दे. इस सरकार में ऐसे लोग भी शामिल हैं जो संयुक्त राष्ट्र की ब्लैक लिस्ट में हैं.
अफगान समाचार एजेंसी खाम प्रेस के मुताबिक हनाफी ने कहा, "अफगानिस्तान को अलग-थलग कर देना किसी के भी हित में नहीं है. यह पहले भी साबित हो चुका है.” हनाफी ने अमेरिका से आग्रह किया कि देश के सेंट्रल बैंक की संपत्ति पर लगी पाबंदियां हटाए. ये संपत्तियां करीब 9.4 अरब अमेरिकी डॉलर की हैं.
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने अमेरिका के सम्मेलन में हिस्सा ना लेने पर अफसोस जाहिर किया. उन्होंने कहा, "हमें अमेरिका के ना आने का अफसोस है. उम्मीद है ऐसा कि उसूली समस्या के कारण नहीं हुआ और वजह बस यही हो कि अफगानिस्तान में अमेरिका का विशेष दूत बदल गया है.”
लावरोव ने कहा कि अब समय आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान को वित्तीय, आर्थिक और मानवीय सहायता दे ताकि मानवीय संकट और बड़े पैमाने पर विस्थापन को टाला जा सके. (dw.com)
कुछ समय पहले तक आस्मा के लिए अपने प्रेमी के साथ सऊदी अरब के समुद्र तट पर पूरा दिन बिताना अकल्पनीय था. पर अब सऊदी अरब बदल रहा है.
बेहद रूढ़िवादी सऊदी अरब के समुद्र तट पर अपने प्रेमी के साथ पूरा दिन बिताना आस्मा के लिए अकल्पनीय था. अब 32 साल की आस्मा लाल सागर के सफेद रेतीले तटों पर अपने दोस्त के साथ डांस कर सकती हैं.
आस्मा इस बात से भी खुश हैं कि वह समुद्र तट पर अपने साथी के साथ डांस करते हुए पास के लाउडस्पीकर पर बजने वाले तेज संगीत का आनंद ले सकती हैं. यह सामाजिक परिवर्तन खाड़ी के इस इस्लामी साम्राज्य में शुरू हुए खुलेपन का एक उदाहरण मात्र है.
हाल के दिनों में सऊदी अरब में हुए कई सामाजिक परिवर्तनों के दो मुख्य कारण हैं. इन परिवर्तनों के साथ-साथ जहां एक ओर अति कठोर सामाजिक ढांचे को आधुनिकता की सोच में बदला जा रहा है, वहीं तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्था का विकल्प तैयार करना भी है.
खाड़ी देश के सामाजिक सुधार पर्यटन और घरेलू खर्च को प्रोत्साहित करके अपनी तेल-निर्भर अर्थव्यवस्था में विविधता लाने की इच्छा से प्रेरित हैं.
संगीत से बैन हटा, महिलाएं कर रहीं ड्राइविंग
सऊदी अरब में 2017 तक सार्वजनिक स्थानों पर संगीत पर प्रतिबंध लगा हुआ था. प्रतिबंध का सम्मान देश की धार्मिक पुलिस द्वारा सुनिश्चित किया जाता था. प्रतिबंध चार साल पहले हटा लिया गया था, इसके एक साल बाद महिलाओं को ड्राइविंग की इजाजत दी गई. अरब देश के अधिकांश बीचों में अभी भी पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग व्यवस्था है.
बीच पर इस तरह की छूट देश में पर्यटन और सार्वजनिक मनोरंजन को बढ़ावा देने के लिए अब तक उठाए गए कदमों में से एक है. 300 रियाल भुगतान करके आप जेद्दाह के पास प्योर बीच नामक एक समुद्र तट रिसॉर्ट में जा सकते हैं. यहां संगीत और डांस पर कोई प्रतिबंध नहीं है और आप समुद्र तट की सफेद रेत की सुंदरता का आनंद ले सकते हैं.
'सपना सच हो गया'
स्विमसूट के ऊपर नीले रंग की पोशाक पहने आस्मा ने एएफपी को बताया, "मैं अपने घर के पास इस समुद्र तट पर आकर बहुत खुश हूं. मैं मजे ले सकती हूं. हमारा सपना था कि हम यहां आएं और एक खूबसूरत वीकएंड बिताएं. अब वह सपना सच हो गया है."
जो लोग सऊदी अरब के प्योर बीच पर जाते हैं वे भी समुद्र में स्नान कर सकते हैं. महिलाओं ने बिकनी पहन रखी है और उनमें से कुछ हुक्का पी रही हैं. सूरज ढलने के साथ पास ही मंच पर पश्चिमी संगीत की धुन पर कलाकार नृत्य पेश करते हैं. एक जोड़ा एक दूसरे को गले लगाता देखा जा सकता है.
दूरगामी सामाजिक परिवर्तनों के फलस्वरूप सऊदी अरब में अब जो दृश्य देखने को मिल रहे हैं वे कई देशों में काफी सामान्य हैं, लेकिन इस अरब साम्राज्य में ऐसे दृश्य बहुत ही अलग और असामान्य लगते हैं क्योंकि सऊदी अरब शुरू से ही यह सख्त वहाबी मुस्लिम विचारधारा वाला एक रूढ़िवादी देश रहा है. इसके अलावा मक्का में काबा और मदीना में पैगंबर मोहम्मद की मस्जिद दुनिया में मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से दो हैं.
खुलता सऊदी समाज
इस देश में जेद्दाह और आसपास के क्षेत्र के बाहर प्योर बीच जैसे दृश्य कभी नहीं देखे गए. ऐसा इसलिए है क्योंकि जेद्दाह देश का वह इलाका है जहां खुलेपन का विचार सबसे ज्यादा प्रचलित है. सऊदी अरब का प्योर बीच जेद्दाह शहर के केंद्र से लगभग 125 किलोमीटर उत्तर में किंग अब्दुल्ला इकोनॉमिक सिटी में स्थित है.
मिस्र के हादिल उमर कहते हैं, "मैं यहां पला-बढ़ा हूं. कुछ साल पहले तक हमें संगीत सुनने की भी इजाजत नहीं थी. तो हमारे लिए यह स्वर्ग के समान है."
अपना खुद का कारोबार चलाने वाली एक युवा सऊदी महिला दीमा ने समुद्र तट पर संगीत पर डांस करते हुए एएफपी को बताया, "मुझे नहीं लगता कि मुझे अच्छा समय बिताने के लिए विदेश जाने की जरूरत है. यहीं सब है इसके लिए."
2017 में सत्ता में आए क्राउन प्रिंस और वास्तविक शासक मोहम्मद बिन सलमान के तहत देश परिवर्तन का अनुभव कर रहा है. लेकिन 'एमबीएस' ने महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, मौलवियों और पत्रकारों को हिरासत में लेते हुए असंतोष पर व्यापक कार्रवाई शुरू की है. एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट ने उन पर इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में पत्रकार जमाल खशोगी की 2018 की नृशंस हत्या को मंजूरी देने का आरोप लगाया है.
एए/वीके (एएफपी)
मृत्युंजय कुमार झा
नई दिल्ली, 20 अक्टूबर: इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस के प्रमुख के पद को लेकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच व्याप्त तनाव अभी भी बना हुआ है।
दो सप्ताह हो गए हैं, लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री खान ने अभी तक आईएसआई प्रमुख के पद के लिए तीन नामों में से एक का चयन नहीं किया है, जो उनके और सेना प्रमुख के बीच टकराव का मुख्य कारण बना हुआ है।
खान के मंत्रियों के दावों के बावजूद कि बाजवा के साथ मामला सुलझा लिया गया है, खान हर संभव सार्वजनिक मंच से सैन्य प्रतिष्ठान को लेकर कई तरह के बयान दे रहे हैं, जो बेहद असामान्य है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने एक बार फिर दोहराया है कि वह 'नया पाकिस्तान' को एक ऐसा इस्लामिक कल्याणकारी राष्ट्र बना देंगे, जो कि पैगंबर के मार्गदर्शक सिद्धांतों पर मदीना के मॉडल पर आधारित होगा, जहां शक्तिशाली लोगों और जनरलों सहित कानून के समक्ष सभी समान होंगे।
खान ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख बाजवा के साथ अपने चल रहे संघर्ष के परोक्ष संदर्भ में कहा, "मदीना की व्यवस्था न्याय और योग्यता पर आधारित है, यहां तक कि एक जनरल को भी प्रदर्शन के आधार पर उच्च पद पर पदोन्नत किया जाता है।"
खान ने मंगलवार को रहमतुल-लील-आलामीन सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, "कानून पैगंबर मुहम्मद (पीबीयूएच) के मार्गदर्शक सिद्धांतों पर आधारित होगा।"
पाकिस्तानी दैनिक द न्यूज ने खान के हवाले से कहा, "भविष्यवक्ताओं ने मुसलमानों को ज्ञान प्राप्त करने पर जोर दिया है, भले ही उन्हें इस उद्देश्य के लिए चीन जाना पड़े। ज्ञान प्राप्त करके, मुसलमान अतीत में दुनिया के सबसे महान वैज्ञानिक बन गए।"
हालांकि इमरान खान प्रधानमंत्री बनने के बाद से 'नया पाकिस्तान' के बारे में बात कर रहे हैं, मगर उन्होंने कभी इस बारे में बात नहीं की कि वह इसे कैसे हासिल करने की योजना बना रहे हैं? क्या मदीना पाकिस्तान के राजनीतिक, सैन्य और न्यायिक पुनर्निर्माण का एक नमूना है या सिर्फ एक नारा है?
मदीना रियासत को लेकर इमरान खान की व्याख्या अलग है। पिछले हफ्ते, उन्होंने पाकिस्तान के लोगों को पश्चिमी संस्कृति से बचाने के लिए रहमतुल-लील-आलामीन प्राधिकरण - मुल्लाओं और धार्मिक मौलवियों की एक परिषद के गठन की घोषणा की थी।
उन्होंने कहा, "वे (प्राधिकरण) हमें बताएंगे कि किन चीजों को बदलने की जरूरत है।"
दिलचस्प बात यह है कि पिछले हफ्ते पाकिस्तानी प्रधानमंत्री खान ने मुल्लाओं से वादा किया था कि उनके शासन के दौरान इस्लामी नियमों के खिलाफ कोई भी कानून नहीं बनाया जाएगा और जो दो प्रमुख विधेयक हैं, पहला घरेलू हिंसा के मुद्दे को संबोधित करने के लिए और दूसरा जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए है, उन्हें लागू नहीं किया जाएगा, क्योंकि वे इस्लामी कानून के खिलाफ हैं।
पिछले साल उनकी सरकार ने मदरसों को मुख्यधारा में लाने के प्रयास में विवादास्पद एकल राष्ट्रीय पाठ्यचर्या नीति (एसएनसीपी) पेश की थी। उन्होंने प्रांतीय सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर पवित्र कुरान की शिक्षा अनिवार्य की जाए। आवश्यक परीक्षा उत्तीर्ण किए बिना कोई भी छात्र बीए, बीएससी, बीई, एमई, एमए, एमएससी, एमफिल, पीएचडी या मेडिकल डिग्री प्राप्त नहीं कर पाएगा।
एक पूर्व क्रिकेटर और पश्चिमी सभ्यता से मेल खाने वाले प्लेबॉय के रूप में खान की प्रतिष्ठा कभी-कभी विदेशियों को यह मानने के लिए गुमराह करती है कि वह पाकिस्तान के लिए एक उदार ²ष्टिकोण का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। वास्तव में, खान पाकिस्तान के आगे रूढ़िवाद और निर्लज्ज कट्टरता में उतरने का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
जबकि पाकिस्तानी समाज के उदारवादी वर्गों को हाशिए पर रखा जा रहा है, धार्मिक दल और उनके मंसूबे फल-फूल रहे हैं।
(यह आलेख इंडियानैरेटिव डॉट कॉम के साथ एक व्यवस्था के तहत लिया गया है) (आईएसआई)
नई दिल्ली, 20 अक्टूबर| अफगान महिला राष्ट्रीय वॉलीबॉल टीम की सदस्य महजुबिन हकीमी का तालिबान ने काबुल में सिर कलम कर दिया। वह युवा आयु वर्ग टीम की तरफ से खेलती थीं। फारसी इंडिपेंडेंट के साथ एक साक्षात्कार में, अफगान महिला राष्ट्रीय वॉलीबॉल टीम के कोचों में से एक, सुराया अफजाली (छद्म नाम) ने पुष्टि की कि एथलीट की मौत हो गई है। उन्होंने कहा कि महजुबिन के परिवार के अलावा कोई मौत के समय और तरीके के बारे में नहीं जानता।
महजुबिन पिछली अफगान सरकार के पतन से पहले काबुल नगर पालिका वॉलीबॉल क्लब के लिए खेलती थीं और क्लब के सबसे सफल खिलाड़ियों में से एक थीं।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि बकौल सुराया अफजाली, महजुबिन हकीमी की हत्या संभवत: अक्टूबर की शुरुआत में हुई थी और यह मुद्दा अब तक छिपा हुआ था, क्योंकि उसके परिवार को धमकी देकर इस बारे में किसी को बताने से मना किया गया था।
अफजाली के अनुसार, पिछली सरकार के पतन के बाद, अफगानिस्तान में महिला एथलीटों को एक गंभीर सुरक्षा खतरे का सामना करना पड़ा और तालिबान ने उनका पीछा किया और विभिन्न शहरों में उनमें से कई के घरों की तलाशी ली।
कई महिला एथलीट, विशेष रूप से अफगान महिला वॉलीबॉल टीम की सदस्य, जिन्होंने विदेशी और घरेलू प्रतियोगिताओं में भाग लिया है और मीडिया कार्यक्रमों में दिखाई दी हैं, गंभीर खतरे में हैं।
अफगान महिला राष्ट्रीय वॉलीबॉल टीम के कोच ने कहा कि टीम के केवल दो खिलाड़ी व्यक्तिगत कार्रवाई के माध्यम से अफगानिस्तान छोड़ने में सक्षम थे और अफगानिस्तान के अंदर टीम के बाकी सदस्य खतरे और आतंक में हैं।
अफजाली ने कहा, "वॉलीबॉल टीम के सभी खिलाड़ी और बाकी महिला एथलीट बुरी स्थिति में हैं और निराशा और डर में हैं।"
रिपोर्ट में कहा गया है, "सभी को पलायन करने और अज्ञात जगहों पर रहने के लिए मजबूर किया गया है। अफगानिस्तान छोड़ने के लिए विदेशी संगठनों और देशों का समर्थन हासिल करने के प्रयास अब तक असफल रहे हैं।"
महजुबिन की मौत ने तालिबान और उन लोगों द्वारा निशाना बनाए जाने की आशंकाओं को हवा दी है, जो लंबे समय से महिलाओं के खेल को बाधित करने की मांग कर रहे हैं।
तालिबान के अफगानिस्तान पर नियंत्रण के साथ खेल, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में महिलाओं की सभी गतिविधियां बंद हो गई हैं और सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं के जीवन, काम और सुरक्षा पर जारी प्रतिबंध के बारे में अभी भी चिंताएं हैं।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) का कहना है कि यमन में 2016 से अब तक 10,000 बच्चे मारे गए हैं या अपंग हो चुके हैं. युद्ध के कारण देश इस समय दुनिया के सबसे भीषण मानवीय संकट का सामना कर रहा है.
यूनिसेफ ने मंगलवार, 19 अक्टूबर को कहा कि युद्धग्रस्त देश यमन में 10,000 से अधिक बच्चे मारे गए या घायल हुए हैं. एजेंसी के अनुसार यमन हर दिन चार बच्चों के मारे जाने या घायल होने के "शर्मनाक मील के पत्थर" पर पहुंच गया है.
यमन में पिछले पांच वर्षों से युद्ध छिड़ा हुआ है, जिसमें ईरानी समर्थित हूथी विद्रोही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यमनी सरकार से लड़ रहे हैं. इस युद्ध में सऊदी अरब और क्षेत्र में उसके सहयोगी भी सरकार का समर्थन कर रहे हैं.
यूनिसेफ के प्रवक्ता जेम्स एल्डर ने कहा कि उनकी एजेंसी का अनुमान है कि यमन में अब तक 10,000 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है, लेकिन वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है. नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 2015 में युद्ध में सऊदी गठबंधन के हस्तक्षेप के बाद से हर दिन लगभग चार बच्चे मारे गए या घायल हुए हैं.
यूनिसेफ ने इसे "शर्मनाक मील का पत्थर" बताया है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है मार्च 2015 से इस साल 30 सितंबर के बीच यमन में हुई लड़ाई में 3,455 बच्चे मारे गए और 6,600 घायल हुए.
युद्ध के परिणामस्वरूप अनगिनत यमनी बच्चे अप्रत्यक्ष रूप से घातक तरीकों से प्रभावित हो रहे हैं. यमन वर्तमान में संघर्षों, आर्थिक तबाही, सामाजिक विघटन और कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं से ग्रस्त है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यमन वर्तमान में दुनिया के सबसे खराब मानवीय संकट से जूझ रहा है, जिसमें लगभग दो करोड़ लोग या देश की एक तिहाई आबादी को किसी भी सहायता की सख्त जरूरत है. बच्चे इस स्थिति से बुरी तरह प्रभावित हैं और कुल 1.1 करोड़ लोग मानवीय सहायता पर निर्भर हैं. यानी पांच में से चार यमनी बच्चों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ता है.
इसके अलावा यूनिसेफ के अनुसार लगभग चार लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. एजेंसी के जेम्स एल्डर ने कहा, "वे भूख से मर रहे हैं क्योंकि वयस्कों ने एक युद्ध शुरू कर दिया है जिसमें बच्चे सबसे ज्यादा पीड़ित हैं."
यमन में गृहयुद्ध के चलते करीब 20 लाख बच्चे अब स्कूल नहीं जा पा रहे हैं जबकि हिंसा ने लगभग 17 लाख बच्चों और उनके परिवारों को विस्थापित कर दिया है. (dw.com)
एए/सीके (डीपीए, एपी)
वेस्ट बैंक में रहने वाले फलस्तीनी इस्राएल के चेक नाकों पर बेरोकटोक जा सकेंगे. इस्राएल उन्हें पहचान पत्र जारी करेगा. 1967 से वेस्ट बैंक पर इस्राएल का कब्जा है.
इस्राएल ने कहा है कि वेस्ट बैंक में रहने वाले 4,000 फलस्तीनियों को पहचान पत्र जारी किए जाएंगे जिसके बाद वे चेक नाकों से बेरोक टोक आ जा सकेंगे. आधिकारिक पंजीकरण का यह अभियान बरसों से बंद पड़ा था.
इस्राएल की सरकार का यह कदम उन 2,800 लोगों के लिए खासतौर पर फायदेमंद होगा जो गजा पट्टी के पूर्व नागरिक हैं. सरकार ने उन्हें कानूनी दर्जा देने का फैसला किया है. ये लोग 2007 में गजा पट्टी से भागकर तब वेस्ट बैंक आ गए थे जब हमास के साथ आंतरिक संघर्ष चल रहा था.
क्यों चाहिए पहचान पत्र?
फलस्तीनी जनता का पंजीकरण होने पर वेस्ट बैंक के नागरिकों को इलाके में बने इस्राएली सेना के नाकों से आने जाने में सुविधा हो जाएगी. इस्राएल ने छह दिन चले युद्ध में इस इलाके पर कब्जा कर लिया था और तब से यहां रहने वाले लोगों के साथ इस्राएली सेना की झड़पें होती रहती हैं.
इस्राएल की सरकार ने इन सैन्य नाकों को सुरक्षा के लिए जरूरी बताया है. लेकिन फलस्तीनी और मानवाधिकार कार्यकर्ता इन नाकों से असहमत हैं और कहते रहे हैं कि इस कारण लोगों की जिंदगी मुश्किल हो गई है.
इस्राएली सेना की नागरिक मामले देखने वाली शाखा COGAT ने कहा है कि पहचान पत्र देने से गजा पट्टी के 2,800 पूर्व बाशिंदों के अलावा 1,200 उन लोगों को भी लाभ पहुंचेगा जो पंजीकृत नहीं हैं. इनमें वेस्ट बैंक के लोगों के रिश्तेदार आदि शामिल हैं.
इस्राएल ने शांति समझौते के तहत पहचान पत्र देने की यह योजना बनाई थी. इन पहचान पत्रों को हर साल नवीनीकृत किया जाना था. लेकिन साल 2,000 में यह योजना तब ठंडे बस्ते में चली गई जब कथित दूसरे इंतिफादा के तहत लोगों ने संघर्ष किया.
2008-09 में इस्राएल ने 32 हजार लोगों को परिवारों के पुनर्मिलन योजना के तहत परमिट दिए थे लेकिन कुछेक मामलों को छोड़कर ज्यादातर के लिए यह योजना लागू नहीं हो पाई.
क्या बोले नेता?
पहचान पत्र देने की योजना फिर से शुरू करने को लेकर देश के रक्षा मंत्री बेनी गांत्स ने ट्विटर पर लिखा कि यह एक मानवतावादी कदम है. उन्होंने सात हफ्ते पहले ही वेस्ट बैंक के शहर रामल्लाह में फलस्तीनी नैशनल अथॉरिटी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से मुलाकात की थी.
ट्वटिर पर उन्होंने कहा कि यह कदम उनकी "देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और फलस्तीनियों की जिंदगी बेहतर बनाने की कोशिशों का हिस्सा है.”
फलस्तीनी अथॉरिटी के वरिष्ठ अधिकारी हुसैन अल-शेख ने भी इस कदम पर ट्वीट किया. उन्होंने कहा, "आज चार हजार लोगों के नामों का ऐलान किया जाएगा, जिन्होंने नागरिकता का अधिकार हासिल किया है. उन्हें फलस्तीनी पहचान के साथ-साथ अपने निवास स्थान का पता भी मिलेगा.”
वेस्ट बैंक में चार लाख 75 हजार इस्राएली यहूदी रहते हैं, जिनकी रिहायश को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध माना जाता है. इस्राएल के प्रधानमंत्री ने फलस्तीनी अथॉरिटी के साथ औपचारिक शांति वार्ता की संभावना से इनकार कर दिया है.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
ब्रिटिश और फ्रांसीसी नेता आव्रजन संकट पर बहस कर रहे हैं. दोनों देश एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. कई आप्रवासी बेहद खतरनाक तरीकों से ब्रिटेन पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.
फ्रांस के कलै क्षेत्र में फंसे कई आप्रवासी या शरण चाहने वाले हर कीमत पर यूके पहुंचना चाहते हैं. कुछ के लिए आर्थिक संकट उन्हें सबसे खतरनाक रास्ता अपनाने के लिए मजबूर कर रहा है, जबकि अन्य गहरे पारिवारिक या सामुदायिक संबंधों पर भरोसा करते हुए यूके की ओर रुख करना चाहते हैं. फ्रांस के अधिकारियों का कहना है कि प्रवासियों की चिंताजनक स्थिति और इंग्लिश चैनल को पार करने की खतरनाक कोशिशें लंदन सरकार के कमजोर नियमों के कारण अवैध रूप से या कानूनी दस्तावेजों के बिना ब्रिटेन जाने वाले प्रवासियों के संबंध में हैं.
यूके आकर्षक क्यों है
ब्रेक्जिट के बाद से ब्रिटेन यूरोप का एक अनूठा देश बन गया है. ब्रिटेन के कई कानून यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों से अलग हैं. इन दिनों यूरोपीय स्तर पर चर्चा के तहत कुछ सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक और कानूनी मुद्दों में आव्रजन का मुद्दा सबसे आगे है, खासकर अफगानिस्तान की स्थिति के संदर्भ में. इंग्लिश चैनल के दोनों तरफ के नेता एक-दूसरे पर इमिग्रेशन संकट पैदा करने का आरोप लगा रहे हैं. सबसे कठिन सवाल यह है कि इंग्लिश चैनल को पार करने और ब्रिटिश मुख्य भूमि में प्रवेश करने वाले प्रवासियों की बाढ़ को कैसे रोका जाए. पिछले कुछ महीनों में हजारों शरण चाहने वालों ने विभिन्न तरीकों और साधनों का इस्तेमाल करके यूके में प्रवेश किया है और इससे आप्रवासियों या शरण चाहने वालों के खिलाफ बयानबाजी में तेजी हुई है.
मोहम्मद और जाबेर एक ट्रक के लिए कई दिनों से इंतजार कर रहे थे कि वे उसपर सवार हो सके और किसी तरह इंग्लिश चैनल पार कर ब्रिटेन में दाखिल हो सके. वे इस वक्त फ्रांस के कलै इलाके में मौजूद हैं. उन्हें यह एहसास हुआ कि वह आज अपने अभियान में सफल हो सकते हैं. उन्होंने एक ट्रक चुना. विशेष रूप से मालवाहक ट्रक, ये वो ट्रक होते हैं जिसपर आप्रवासी चुपके से सवार हो जाते हैं और ब्रिटेन में दाखिल हो जाते हैं. कई बार वे चलते हुए ट्रक से दूसरे ट्रक पर छलांग भी लगाते हैं. अब इस तरह का जोखिम भरा काम कई और लोग कर रहे हैं.
सबसे कठिन और खतरनाक तरीके को अपनाने की हिम्मत केवल सबसे कम उम्र के और सेहतमंद आप्रवासी ही कर सकते हैं और ऐसा करने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता. मोहम्मद और जाबेर सूडानी युवक हैं. दोनों ट्रक में छिप गए. मौका पाकर एक निश्चित स्थान पर चलते ट्रक से कूदने की कोशिश कर रहे एक युवक ने दूसरे पर चिल्लाकर उसे कूदने का निर्देश दिया. ट्रक नहीं रुका यानी ड्राइवर को पता नहीं चला. कुछ ही समय बाद ट्रक चालक और ट्रक दोनों फ्रांसीसी राजमार्ग से गायब हो गए और इंग्लिश चैनल की ओर मुड़ गए. सूडानी लोगों को उम्मीद थी कि वे अपने गंतव्य ब्रिटेन तक पहुंच जाएंगे.
मोहम्मद और जाबेर दोनों अपने-अपने देशों में युद्ध से बच निकल कर आए हैं. लीबिया में पिटाई और अपहरण को सहने के बाद, उन्होंने इटली पहुंचने के प्रयास में भूमध्यसागरीय पार एक घातक यात्रा का अनुभव किया है और अब क्लै के उत्तरी फ्रांसीसी क्षेत्र में है. वहीं मोहम्मद सूडान का रहने वाला है और वह अपने देश से भाग निकला है. वह और पूर्वी अफ्रीका और मध्य पूर्व के सैकड़ों अन्य प्रवासी ट्रकों में छिपकर ब्रिटेन में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं. यह शरण चाहने वालों के लिए एक बहुत ही खतरनाक और संभावित घातक तरीका भी है.
दो तरह के आप्रवासी हैं जो यूके जाना चाहते हैं. ऐसे लोग हैं जिनके पास कुछ पैसे हैं और वे काम चलाऊ नावों में पैसे लगाने से नहीं हिचकिचाते जबकि उनकी नावें बहुत कमजोर और अस्थिर होती हैं और अपनी क्षमता से कई गुना अधिक यात्रियों को ले जाती हैं. प्रवासियों से भरी नावें अक्सर डूब जाती हैं या पलट जाती हैं.
दूसरी ओर आप्रवासी जिनके पास परिभ्रमण का जोखिम उठाने के लिए पर्याप्त धन नहीं है, वे अंग्रेजी चैनल के आसपास के राजमार्गों पर भारी माल से लदे वाणिज्यिक ट्रकों का पीछा कर रहे हैं. जहां से चालक और उसकी आगे की सीट समाप्त होती है, ये प्रवासी किसी तरह ट्रक के पिछले हिस्से में चढ़ जाते हैं और सामान के बीच में छिप जाते हैं और उपयुक्त स्थान पर ट्रक से कूद जाते हैं. वे किसी भी कीमत पर ब्रिटेन में घुसने की कोशिश करते हैं. सिर्फ युवा और ऊर्जावान लोग ही इस खतरनाक साहसिक काम को करने का साहस करते हैं. ट्रक से कूदने की कोशिश हमेशा एक टीम या समूह के रूप में किया जाता है.
एए/सीके (एपी)
बांग्लादेश में साम्प्रदायिक हिंसा के एक बुरे दौर के बाद सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग ने अल्पसंख्यक हिंदुओं के समर्थन में रैली निकाली है. रैली में "सांप्रदायिक हिंसा बंद करो" का नारा लगाते हुए हजारों कार्यकर्ता शामिल हुए.
बीते कुछ दिनों में मुस्लिम-बहुल बांग्लादेश में हुई साम्प्रदायिक हिंसा में कम से कम छह लोग मारे गए और दर्जनों घर नष्ट कर दिए गए. पुलिस ने कहा है कि 450 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है.
हमले शुक्रवार 15 अक्टूबर को दक्षिणपूर्वी जिले नोआखली में शुरू हुए थे. मुस्लिम समुदाय के सैकड़ों लोगों ने हिंदुओं पर कुरान से सम्बंधित ईशनिंदात्मक कार्य करने का आरोप लगाया था और उसका विरोध किया था. विरोध प्रदर्शन ही बाद में हिंसा में बदल गया. हिंदुओं के कई घरों और पवित्र स्थलों पर हमले हुए और वहां तोड़ फोड़ की गई.
अवामी लीग की अपील
इसी हिंसा के विरोध में प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी ने राजधानी ढाका में रैली का आयोजन किया. शहर के केंद्र में पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं ने चार किलोमीटर लंबी रैली निकाली और हिंसा को रोकने की मांग की.
कुछ महिला समर्थकों द्वारा हाथ में लिए हुए एक बैनर पर लिखा था, "इस साम्प्रदायिक दुष्टता को बंद करो, बांग्लादेश." ढाका में कुछ दूसरे इलाकों में सैकड़ों लेखक हाथों से लिखे हुए सन्देश और पोस्टर लेकर इकठ्ठा हुए. एक संदेश में लिखा था, "अपने बच्चों को प्रेम करना सिखाइए, मारना नहीं."
अवामी लीग के सांसद और संयुक्त महासचिव महबूबूल आलम हनीफ ने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अगले दो सप्ताह में पूरे देश में कई रैलियां निकालने की योजना बनाई है. उन्होंने कहा, "इस भय को हटाना ही होगा." सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि दुर्गा पूजा के दौरान हुई हिंसा के संबंध में 71 मामले दर्ज किए गए हैं.
पंथनिरपेक्षता का समर्थन
संयुक्त राष्ट्र ने भी हाल ही में हुई हिंसा को रोकने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र की रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर मिया सेप्पो ने ट्वीट किया, "सोशल मीडिया पर हेट स्पीच की वजह से भड़के बांग्लादेश के हिंदुओं पर हाल ही में हुए हमले संविधान के मूल्यों के खिलाफ हैं और इनका रुकना जरूरी है."
मानवाधिकार समूह एम्नेस्टी इंटरनैशनल ने जांच की और दोषियों को सजा दिलाने की मांग की है. बांग्लादेश की करीब 17 करोड़ आबादी में लगभग 10 प्रतिशत हिंदू हैं. देश में सांप्रदायिक तनाव लंबे समय से रहा है. देश का संविधान इस्लाम को "स्टेट रिलिजन" की मान्यता देता है लेकिन पंथनिरपेक्षता के सिद्धांत का समर्थन भी करता है.
सीके/एए (रॉयटर्स)
फेसबुक अपना नाम बदल सकती है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक द वर्ज नामक वेबसाइट ने इस बारे में खबर दी है. नया नाम छवि बदलने की कोशिश हो सकती है.
सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक इंक का नाम बदला जा सकता है. ऐसी खबरें हैं कि कंपनी अपनी छवि में बदलाव लाने के प्रयास कर रही है और इसी के तहत नया नाम रखा जा सकता है.
वेबसाइट द वर्ज ने मंगलवार को मामले से सीधे तौर पर जुड़े एक सूत्र के हवाले से यह खबर दी है. वर्ज का कहना है फेसबुक चूंकि अब मेटावर्स पर ध्यान देना चाहती है तो नया नाम उसी कड़ी का हो सकता है.
रिपोर्ट कहती है कि फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग की योजना 28 अक्टूबर को होने वाली कंपनी की सालाना कॉन्फ्रेंस में नए नाम के बारे में बात करने की योजना है. हालांकि नया नाम उससे पहले भी उजागर किया जा सकता है.
द वर्ज की रिपोर्ट कहती है कि फेसबुक की रीब्रैंडिंग के जरिए विभिन्न सोशल मीडिया ऐप जैसे इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप और ऑक्युलस आदि को एक छतरी के नीचे लाया जा सकता है.
इस बारे में जब फेसबुक से सवाल पूछा गया तो उसने कहा कि वह अटकलों या अफवाहों पर टिप्पणी नहीं करती.
छवि सुधारने की कोशिश
फेसबुक एक के बाद एक कई संकटों से जूझ रही है. हाल ही में कई बार उसकी सेवाएं कई घंटों तक ठप्प रहीं, जिस कारण उसे अरबों का नुकसान उठाना पड़ा. कंपनी के पूर्व कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे खुलासों ने भी फेसबुक की छवि को नुकसान पहुंचाया है.
पूर्व कर्मचारी फ्रांसिस हॉगेन ने कुछ दस्तावेज लीक करते हुए बताया था कि फेसबुक जानती थी कि उसकी वेबसाइट युवा लोगों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है. इसके अलावा, कई देशों में फेसबुक के बढ़ते प्रभाव पर नियंत्रण की मांग तेज हो रही है.
पिछले महीने अमेरिकी अखबार द वॉशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट में ऐसे संकेत दिए थे कि मेटावर्स की घोषणा के जरिए फेसबुक अपनी छवि को सुधारने की कोशिश कर सकती है. वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा था कि मेटावर्स में कंपनी की दिलचस्पी "नीति-निर्मातओं के बीच कंपनी की छवि को फिर स्थापित करने और फेसबुक को इंटरनेट तकनीकों की अगली लहर के लिए तैयार करने की कोशिशों का हिस्सा हो सकती है."
मेटावर्स पर केंद्रित भविष्य
इसी हफ्ते फेसबुक ने भविष्य के इंटरनेट ‘मेटावर्स' पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही थी. यूरोप में मेटावर्स टीम के लिए दस हजार लोगों को भर्ती का ऐलान करते हुए कंपनी ने एक ब्लॉग में लिखा था कि मेटावर्स भविष्य है.
फेसबुक ने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा, "मेटावर्स में रचनात्मक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर नए आयाम खोलने की संभावना है. यूरोपीय संघ के लोग इसके लिए बिल्कुल शुरुआत से तैयारी करेंगे. आज हम यूरोपीय संघ में 10,000 लोगों को भर्ती करने की योजना का ऐलान कर रहे हैं जिसे अगले 5 साल के दौरान अंजाम दिया जाएगा."
यह इस तरह की तकनीक है जिसके तहत मनुष्य डिजिटल जगत में वर्चुअली प्रवेश कर सकेगा. जानकार बताते हैं कि यह कुछ ऐसा महसूस होगा जैसे आप किसी से बात कर रहे हैं तो वह आपके सामने ही बैठा है जबकि असल में दोनों लोग इंटरनेट के जरिए मीलों दूर से जुड़े हुए हैं.
वीके/सीके (रॉयटर्स)
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने तालिबान से अफगानिस्तान में लड़कियों को तुरंत स्कूल लौटने की अनुमति देने का आह्वान किया है.
अफगानिस्तान में कट्टरपंथी इस्लामी तालिबान के सत्ता में आने के लगभग दो महीने बाद नई सरकार ने लड़कियों के माध्यमिक विद्यालय में लौटने पर रोक लगा दी है और लड़कों को कक्षा में लौटने की इजाजत है.
तालिबान ने दावा किया है कि वे सुरक्षा सुनिश्चित करने और इस्लामी कानून की व्याख्या के तहत छात्रों को सख्ती से अलग करने के बाद लड़कियों को स्कूल लौटने की अनुमति देंगे. अधिकतर लोगों को तालिबान के इस आश्वासन पर संदेह है.
तालिबान को खुला पत्र
नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई और कई अफगान महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक खुले पत्र में लिखा, "तालिबान अधिकारियों के लिए...लड़कियों की शिक्षा पर वास्तविक प्रतिबंध को हटा दें और लड़कियों के माध्यमिक विद्यालयों को तुरंत फिर से खोलें."
उन्होंने मुस्लिम देशों के नेताओं से तालिबान शासकों को यह स्पष्ट करने का भी आह्वान किया कि "लड़कियों को स्कूल जाने से रोकना धार्मिक रूप से उचित नहीं है."
खत पर हस्ताक्षर करने वालों में शहजाद अकबर भी शामिल थे, जो अमेरिका समर्थित पूर्व अशरफ गनी सरकार में अफगान मानवाधिकार आयोग के प्रमुख थे. तालिबान सरकार से अपील करने वालों का कहना है, "दुनिया में इस समय अफगानिस्तान अकेला ऐसा देश है जहां लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध है.''
खत पर हस्ताक्षर करने वालों ने जी20 नेताओं से अफगान बच्चों की शिक्षा परियोजना के लिए तत्काल धन उपलब्ध कराने की अपील की है. इस पत्र के साथ एक याचिका भी दाखिल की गई है जिस पर सोमवार तक 6,40,000 से अधिक हस्ताक्षर हो चुके थे.
शिक्षा में सक्रिय पाकिस्तानी छात्रा मलाला यूसुफजई को तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के आतंकवादियों ने 2012 में स्वात घाटी में गोली मारकर घायल कर दिया था, जब वह स्कूल बस से घर लौट रही थी.
मलाला अब 24 साल की हो गई हैं और खासतौर पर लड़कियों को शिक्षित करने में सक्रिय हैं. इस बीच अफगानिस्तान के आंतरिक मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने मीडिया से कहा, "जहां तक मुझे पता है स्कूल और विश्वविद्यालय जल्द ही खोले जाएंगे और लड़कियां और महिलाएं स्कूल जा सकेंगी और शिक्षण सेवाएं प्रदान कर सकेंगी. इजाजत दी जाएगी."
तालिबान के एक प्रवक्ता ने कहा कि अभी लड़कियों को स्कूल जाने से रोका जा रहा है क्योंकि अभी पर्यावरण सुरक्षित नहीं है.
एए/वीके (एएफपी)
गूगल ने अपना नया फोन पिक्सल 6 बाजार में उतार दिया है. स्मार्टफोन के बाजार के सबसे बड़े खिलाड़ी माने जाने वाले एप्पल और सैमसंग का मुकाबला करने की कोशिश कंपनी कई साल से कर रही है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
मंगलवार को गूगल ने अपना नया फोन पिक्सल 6 पेश किया. ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रॉयड पर आधारित यह फोन गूगल की स्मार्टफोन बाजार में बड़े खिलाड़ियों को टक्कर देने की नई कोशिश है.
कंपनी ने अपने नए फोन के बारे में कहा कि इसे एकदम पूरी तरह से नई सोच के साथ तैयार किया गया है. गूगल ने कहा कि यह फोन सुरक्षा, स्पीड, स्टाइल और सॉफ्टवेयर, हर लिहाज से नई सोच पर आधारित है. कंपनी के सीनियर वाइस प्रेजीडेंट रिक ऑस्टरलो ने कहा, "यह साल काफी लिहाज से अलग है.”
पिक्सल फोन को गूगल अपने एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम की खूबियों को दिखाने के लिए भी इस्तेमाल करता रहा है. एंड्रॉयड एक मुफ्त मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम है और जिसे दुनियाभर की फोन कंपनियां इस्तेमाल करती हैं. लेकिन खुद गूगल के एंड्रॉयड फोन अब तक बहुत ज्यादा नाम नहीं कमा पाए हैं.
क्यों कम कामयाब है पिक्सल?
विश्लेषक ब्रैड एक्यूज कहते हैं कि पिक्सल की मध्यम दर्जे की सफलता की एक वजह इसके पिछले कुछ मॉडल में पाई गईं खामियां हैं. इसके अलावा अमेरिका की मोबाइल सर्विस कंपनियां ग्राहकों को दूसरे ब्रैंड के फोन खरीदने के लिए बेहतर ऑफर देती रही हैं.
एक्यूज ने कहा, "एक क्षेत्र है जहां पिक्सल ने बेहतरीन काम किया है और वो है सॉफ्टवेयर. लेकिन और कुछ अलग देने में यह नाकाम रहा है.”
पिक्सल 6 के रूप में जो नया फोन गूगल ने बाजार में उतारा है उसमें एप्पल जैसे कुछ फीचर भी शामिल हैं. एप्पल अपने आई-फोन के जरिए महंगे फोन खरीदने वाले ग्राहकों को लुभाता रहा है लेकिन उसका सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर दोनों ही कंपनी ने अपने नियंत्रण में रखे हैं.
ऑस्टरलो कहते हैं, "हमारे पास आधुनिकतम हार्डवेयर है यानी पिक्सल और ज्यादा बेहतर तरीके से काम कर सकता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित ऐसा अनुभव है जो अब से पहले कभी संभव नहीं था.”
कैसा है नया पिक्सल?
पिक्सल 6 के मॉडल 5जी क्षमता के साथ आए हैं. गूगल ने अपना नया टेंसर चिप भी इसमें प्रयोग किया है जो और ज्यादा क्षमता के साथ इंसान की तरह सोच सकता है. ऑस्टरलो के मुताबिक हार्डवेयर और सॉफ्वेयर का यह ऐसा मिश्रण है जो भविष्य की ‘एंबिएंट कंप्यूटिंग' की ओर एक बड़ा कदम है.
‘एंबिएंट कंप्यूटिंग' इंटरनेट का इस्तेमाल बातचीत के जरिए करने की क्षमता को कहा जाता है. 2013 की साइंस फिक्शन फिल्म ‘हर' में ऐसा ही कुछ दिखाया गया था.
पिक्सल 6 के कैमरे में कई तरह के सेंसर लगाए गए हैं. इसका बेस मॉडल 6.4 इंच का है जबकि प्रो मॉडल का साइज कुछ बड़ा है. कैमरे में त्वचा के रंग को और ज्यादा सटीकता के साथ फोटो खींचने की खासियत के अलावा ‘मैजिक इरेजर' नाम का एक फीचर भी दिया गया है जो गैरजरूरी चीजों और लोगों को फोटो से हटा सकता है.
अमेरिका में पिक्सल 6 फोन की कीमत $599 डॉलर (लगभग 45 हजार रुपये) रखी गई है जबकि पिक्सल 6 प्रो 899 डॉलर (करीब 68 हजार रुपये) में मिलेगा. गूगल का कहना है कि 28 अक्टूबर से फोन ग्राहकों को भेजना शुरू कर दिया जाएगा.
हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 19 अक्टूबर | पाकिस्तान की नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई ने अफगानिस्तान में तालिबान नेतृत्व से लड़कियों के लिए तत्काल प्रभाव से माध्यमिक विद्यालयों को फिर से खोलने का आह्वान किया है।
उन्होंने इस मांग को युद्धग्रस्त राष्ट्र के नए शासकों को संबोधित एक खुले पत्र में रखा है।
यूसुफजई और अन्य अफगान महिला अधिकार कार्यकतार्यओं ने खुले पत्र में लिखा, "तालिबान अधिकारियों के लिए.. लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध हटाओ और लड़कियों के माध्यमिक विद्यालयों को तुरंत फिर से खोलो।"'
पाकिस्तानी कार्यकर्ता को तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के आतंकवादियों ने 2012 में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्वात घाटी के उनके गृहनगर में सिर में गोली मार दी थी, क्योंकि वह महिला शिक्षा की प्रचारक और समर्थक थीं।
उनका खुला पत्र अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा सत्ता हथियाने के एक महीने बाद सामने आया है। तालिबान नेताओं ने पहले कहा था कि वे देश में बालिका शिक्षा की अनुमति देंगे।
हालांकि, तालिबान ने केवल लड़कों के शिक्षण संस्थानों को खोलने की अनुमति दी है और लड़कियों के स्कूलों को फिर से खोलने की अनदेखी की है।
भले ही तालिबान नेतृत्व शिक्षा सहित देश में महिलाओं को शिक्षा के सभी अधिकार प्रदान करने का वादा करता है, लेकिन कई लोग अनिश्चित हैं कि क्या वह वादा पूरा होगा।
यूसुफजई की मांग को वैश्विक मान्यता और वैल्यू मिल सकती है, लेकिन इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि तालिबान इसे अनदेखा कर सकता है।
तालिबान ने युसुफजई और उसके परिवार को बार-बार धमकी दी थी और जब संभव हो तो उसे मारने की कसम खाई थी और उन पर महिलाओं को शिक्षा के लिए अपने घरों से बाहर जाने के लिए प्रेरित करने का आरोप लगाया था, जो उनका दावा है कि यह इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ है।
अफगानिस्तान में महिला शिक्षा का भविष्य तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार की स्थापना के खिलाफ दुनिया की प्रमुख चिंताओं में से एक है।
वैश्विक शक्तियों ने तालिबान से महिलाओं को उनके बुनियादी मानवाधिकार, स्वतंत्रता और शिक्षा सहित पूर्ण अधिकारों का प्रावधान सुनिश्चित करने की मांग की है।
तालिबान ने भले ही प्रतिबद्धताओं में वैश्विक मांग को पूरा किया हो, लेकिन जमीन पर ऐसा कोई प्रतिबिंब नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि देश महिलाओं के घर छोड़ने की अनुमति के खिलाफ सख्त और कठोर है।
अफगान सरकार अपनी बिगड़ती वित्तीय और आर्थिक स्थिति को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता को फिर से खोलने के लिए वैश्विक मान्यता चाहती है।
हालांकि, वैश्विक समुदाय ने यह सुनिश्चित किया है कि तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार जब तक बातचीत नहीं करती और अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं करती है, तब तक कोई मान्यता प्रदान नहीं की जा सकती है, जिसमें अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा और बुनियादी अधिकारों की मुफ्त पहुंच शामिल है।(आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 19 अक्टूबर | सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी फेसबुक एक ऐसे फीचर का परीक्षण कर रही है, जो यूजर्स को इसके प्लेटफॉर्म पर फोटो या वीडियो सहित अपने पोस्ट को अपने इंस्टाग्राम पर क्रॉस-पोस्ट करने की अनुमति देगा। टेकक्रंच की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी ने नोट किया कि विकल्प वर्तमान में एक वैश्विक परीक्षण है जो केवल उन लोगों के एक छोटे समूह के लिए उपलब्ध है, जिनके पास पहले से ही इंस्टाग्राम पर एक व्यक्तिगत, निर्माता या व्यावसायिक खाते से उनकी फेसबुक प्रोफाइल जुड़ी हुई है।
फेसबुक पहले से ही उपयोगकर्ताओं को अपनी इंस्टाग्राम स्टोरीज और रील को फेसबुक पर क्रॉस-पोस्ट करने की अनुमति देता है।
उपलब्ध होने पर, फेसबुक के कंपोज बॉक्स में यह फीचर दिखाई देगा जहां कोई पोस्ट बना सकता है। पोस्ट के लिए दर्शकों को संपादित करने और एक नया एल्बम बनाने के अलावा नया टॉगल दिखाई देगा।
जब टैप किया जाता है, तो उपयोगकर्ता को एक नई स्क्रीन पर ले जाया जाएगा, जहां कोई भी व्यक्तिगत फेसबुक पोस्ट को कनेक्टेड इंस्टाग्राम अकाउंट पर साझा करना चुन सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, यूजर्स इंस्टाग्राम पर सिंगल फोटो, सिंगल वीडियो या मल्टी फोटो एलबम में 10 फोटो तक क्रॉस-पोस्ट कर सकेंगे।
वर्तमान में, अन्य प्रारूप, जैसे जीआईएफ, पोल, 10 से अधिक फोटो वाले फोटो एल्बम, वर्तमान में क्रॉस-पोस्टिंग के लिए योग्य नहीं हैं।
इससे पहले फेसबुक ने इंस्टाग्राम डायरेक्ट मैसेज (डीएम) को मैसेंजर ऐप के साथ मर्ज कर दिया था। इसके साथ, इंस्टाग्राम उपयोगकर्ता ऐप को छोड़े बिना फेसबुक मैसेंजर पर संपर्को को संदेश भेजने में सक्षम हैं।
इंस्टाग्राम से मैसेंजर कॉन्टेक्टस को संदेश भेजने के लिए, इंस्टाग्राम के एंड्रॉइड और आईओएस उपयोगकर्ताओं को पहले गूगल प्ले स्टोर (संस्करण 164.0.0.46.123) और एप्पल ऐप स्टोर (संस्करण 165.0) से ऐप्स के नवीनतम संस्करण को अपडेट या डाउनलोड करना होगा।
इस महीने की शुरुआत में छह घंटे के लंबे वैश्विक आउटेज से त्रस्त, इंस्टाग्राम अब एक ऐसी सुविधा का परीक्षण कर रहा है जो उपयोगकर्ताओं को तब सचेत करेगा जब प्लेटफॉर्म प्रमुख तकनीकी गड़बड़ियों से गुजर रहा हो।
फोटो-मैसेजिंग प्लेटफॉर्म यूजर्स को उनकी एक्टिविटी फीड में तब सूचित करेगा जब सेवा में कोई खराबी या तकनीकी समस्या आती है, और जब इसका समाधान हो जाता है।(आईएएनएस)
आसियान सम्मेलन से बाहर निकाले जाने के बाद म्यांमार में मिलिट्री जुंटा के नेता मिन आंग हलिंग ने 20 अक्टूबर को होने वाले थडिंग्युट त्योहार पर तख्तापलट विरोधी आंदोलन में शामिल रहे कैदियों को रिहा करने की घोषणा की है.
म्यांमार में नागरिक सरकार को तख्तापलट कर बेदखल किए जाने के विरोध में प्रदर्शन करने के चलते जेल में बंद कुल 5,636 कैदियों को रिहा किया जाएगा. सोमवार को यह घोषणा देश के मिलिट्री जुंटा के प्रमुख ने की. मिन आंग हलिंग ने कहा कि वह 20 अक्टूबर को होने वाले थडिंग्युट त्योहार के मौके पर विरोधियों को मुक्त करेंगे.
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) की 26-28 अक्टूबर के बीच होने वाले एक सम्मेलन से निकाले जाने के बाद जुंटा प्रमुख ने सोमवार को कहा कि वे शांति और लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं.
और क्या बोले सैन्य प्रमुख?
एक फरवरी को हुए तख्तापलट का नेतृत्व करने वाले मिन आंग हलिंग ने कहा कि म्यांमार में लोकतंत्र बहाल करने के लिए उनकी सरकार का एक पांच-स्तरीय कार्यक्रम है. उन्होंने नेशनल यूनिटी सरकार और हथियार बंद घरेलू 'आतंकवादी संगठनों' पर संकट को हल करने की आसियान की कोशिशों को नुकसान पहुंचाने का आरोप भी लगाया.
मिन आंग हलिंग ने कहा, "कोई भी उनकी हिंसा की चिंता नहीं करता, और सिर्फ यह चाहते हैं कि हम इस मुद्दे का हल करें. आसियान को जुंटा पर उंगलियां उठाने की जगह इस मुद्दे पर काम करना चाहिए."
नेशनल यूनिटी की सरकार, जो तख्तापलट विरोधी दलों का प्रतिनिधित्व करती है और जिसने सरकार के खिलाफ एक देशव्यापी विद्रोह को समर्थन दिया है, उसकी प्रवक्ता डॉक्टर सासा ने आसियान के फैसले को 'एक महत्वपूर्ण कदम' बताया लेकिन इससे आगे सासा ने "खुद को (नेशनल यूनिटी को) उचित प्रतिनिधि के तौर पर मान्यता देने" की मांग भी की.
कैसी हैं आंग सान सू ची?
इसके बजाए, आसियान नेताओं ने म्यांमार की ओर से एक गैर-राजनीतिक प्रतिनिधि को सम्मेलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है. ये प्रभावशाली नेता मुश्किलों में फंसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश में 'सामान्य जीवन की वापसी' की चाह रहे हैं.
देश की नागरिक नेता आंग सान सू ची के वकील ने शुक्रवार को यह खुलासा किया कि चल रहे मुकदमों में उन्हें बोलने नहीं दिया गया. सू ची को कैद करने के लिए उन पर भ्रष्टाचार सहित कई अपराधों के लिए आरोप लगाए गए हैं. उनके समर्थक और स्वतंत्र ऑब्जर्वर कहते हैं कि सू ची पर फर्जी आरोप लगाए गए हैं ताकि सैन्य शासक देश पर अपनी पकड़ को मजबूत कर सकें.
सू ची के वकील खिंग मौंग जाऊ ने अक्टूबर में कहा था कि 76 साल की नोबेल पुरस्कार विजेता बार-बार कोर्ट में लंबे समय तक रहने से "आजिज आ चुकी" हैं. उन्होंने मिलिट्री कोर्ट से सुनवाई में और अंतराल दिए जाने की अपील भी की थी. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों के हाई कमिश्नर मिशेल बाशेलेट ने कहा कि तख्तापलट के बाद से म्यांमार में चल रहा विनाशकारी घटनाक्रम बड़े स्तर की असुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता जा रहा है, जिससे एक बड़े इलाके में खतरा पैदा हो सकता है.
हालांकि म्यांमार के सेना प्रमुख मिन आंग हलिंग विद्रोह समाप्त होने के छह महीने बाद 1 अगस्त को राष्ट्र को संबोधित करते हुए, अगस्त 2023 तक देश में बहुदलीय चुनाव कराने का वादा कर चुके हैं.
एडी/सीके (एपी)
चीन की संसद एक नए कानून पर विचार करने जा रही है जिसके तहत बच्चों के व्यवहार के लिए उनके मां-बाप को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और सजा भी दी जाएगी. चीन में कम्युनिस्ट पार्टी कई नए कदम उठा रही है और यह उन्हीं में से एक है.
नए पारिवारिक शिक्षा प्रोत्साहन कानून के मसौदे के तहत अगर बच्चे "बहुत बुरा बर्ताव" दिखाएंगे या कोई अपराध करेंगे तो इसके लिए उनके मां-बाप को सजा दी जाएगी. ऐसे मामलों में अभिभावकों को फटकार मिल सकती है या उन्हें पारिवारिक शिक्षा मार्गदर्शन कार्यक्रमों के लिए भी भेजा जा सकता है.
नेशनल पीपल्स कांग्रेस (एनपीसी) की कानूनी मामलों की समिति के प्रवक्ता जांग तिएवि ने बताया, "किशोरों द्वारा दुर्व्यवहार करने के कई कारण होते हैं और मुनासिब पारिवारिक शिक्षा का ना मिलना या ऐसी शिक्षा का बिलकुल ही ना मिल पाना मुख्य कारण है.
निजी तौर तरीकों पर नजर
इसी हफ्ते एनपीसी की स्थायी समिति के सत्र के दौरान कानून के मसौदे की समीक्षा की जाएगी. मसौदे में माता-पिता को बच्चों के लिए आराम करने, खेलने और कसरत करने के के लिए भी समय की व्यवस्था करने के लिए कहा गया है.
बीजिंग ने इस साल परिवारों पर काफी सख्त रुख अपनाया है और युवाओं के ऑनलाइन खेलों के प्रति लत से लेकर इंटरनेट सेलिब्रिटीयों की "अंधीभक्ति" तक पर लगाम लगाने की कोशिश की है. ऑनलाइन खेलों की लत को तो एक तरह की "आध्यात्मिक अफीम" बताया गया है.
"मर्दाना" बनने पर जोर
पिछले कुछ ही महीनों में शिक्षा मंत्रालय ने नाबालिगों के लिए ऑनलाइन खेल खेलने की सीमा तय की है और उन्हें सिर्फ शुक्रवार, शनिवार और रविवार को एक घंटे के लिए खेलने की अनुमति दी है.
मंत्रालय ने गृहकार्य को भी कम किया है और सप्ताहांत पर और छुट्टियों में मुख्य विषयों के लिए स्कूल के बाद दिए जाने वाले ट्यूशन पर भी रोक लगा दी है. मंत्रालय ने कहा था कि वो बच्चों पर पढ़ाई के बोझ को लेकर चिंतित है.
साथ जी चीन युवाओं से यह भी कह रहा है कि कम "जनाना" और ज्यादा "मर्दाना" बनें. दिसंबर में शिक्षा मंत्रालय ने "किशोर पुरुषों के जनाना बनने को रोकने का प्रस्ताव" जारी किया था, जिसमें उसने स्कूलों को सॉकर जैसे खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए कहा था.
सीके/एए (रॉयटर्स)
अमेरिका ने बांग्लादेश में हाल में हुए हिंदू समुदाय पर हमलों की निंदा की है. दूसरी तरफ राजधानी ढाका में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के विरोध में प्रदर्शन हुए.
सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर इस्लाम के खिलाफ कथित पोस्ट के बाद भड़की हिंसा के विरोध में सोमवार को भी ढाका में विरोध प्रदर्शन जारी रहा. बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान राजधानी ढाका समेत अन्य शहरों में पूजा पंडालों, मंदिरों और हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा हुई थी.
रविवार को भी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हुई. रविवार की रात हिंदू परिवारों के 26 घर जला दिए गए. हालांकि सरकार ने इससे पहले इस तरह के हमले को लेकर चेतावनी जारी की थी, बावजूद इसके हिंदुओं के घरों को निशाना बनाया गया.
निशाने पर हिंदू
हिंसा के बाद संयुक्त राष्ट्र ने बांग्लादेश सरकार से इसे रोकने के लिए कार्रवाई करने का आग्रह किया है. संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार को कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले उसके संविधान में निहित मूल्यों के खिलाफ हैं. यूएन ने कहा कि प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को घटनाओं की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने की जरूरत है.
बांग्लादेश में संयुक्त राष्ट्र की रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर मिया सेप्पो ने कहा, "बांग्लादेश में हिंदुओं पर हालिया हमले, सोशल मीडिया पर लगातार किए जा रहे अभद्र भाषा का प्रयोग संविधान के मूल्यों के खिलाफ हैं और इसे रोकने की जरूरत है. हम सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने का आह्वान करते हैं. हम सभी से समावेशी सहिष्णु बांग्लादेश को मजबूत करने के लिए हाथ मिलाने का आह्वान करते हैं."
इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बांग्लादेश में जारी हिंसा पर कहा, "धर्म चुनने की आजादी, मानवाधिकार है. दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति, फिर चाहे वह किसी भी धर्म या आस्था को मानने वाला हो, उसका अपने अहम पर्व मनाने के लिए सुरक्षित महसूस करना जरूरी है."
प्रवक्ता ने कहा, "बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लोगों पर हाल में हुए हमलों की हम निंदा करते हैं."सोमवार को इस्कॉन इंटरनेशनल के सदस्यों और ढाका यूनिवर्सिटी के हजारों छात्रों और शिक्षकों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया और न्याय की मांग की.
13 अक्टूबर से हिंदू मंदिरों पर हमले तेज हो गए हैं. सोशल मीडिया पर अफवाह उड़ी थी कि चिट्टगांव के कोमिला इलाके में पूजा पंडाल में मूर्ति के चरणों में कुरान रखी है. जिसके बाद कई जगह हिंसक घटनाएं हुईं. स्थानीय मीडिया ने बताया कि छह हिंदू अलग-अलग घटनाओं में मारे गए, लेकिन आंकड़ों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की जा सकी. स्थानीय मीडिया ने हिंसा की कवरेज को कम करके दिखाया. ऐसा माना जा रहा है कि यह सरकार के दबाव में किया गया है.
सोमवार को गृह मंत्रालय ने सात पुलिस अधिकारियों को हिंसा पर काबू पाने में असफल होने पर ट्रांसफर कर दिया है.
एए/वीके (एपी, एएफपी)
चीन ने उन खबरों का खंडन किया है जिनमें कहा गया था कि उसने सुपसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया है. उसने कहा कि उसने तो बस एक अंतरिक्ष यान का परीक्षण किया था.
सोमवार को चीन ने कहा कि उसका हालिया रॉकेट परीक्षण सिर्फ यह जांचने के लिए था कि किसी लॉन्च व्हीकल को दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं. उसने कहा कि यह एक अंतरिक्ष यान का परीक्षण था ना कि मिसाइल का.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लीजियान ने कहा, "यह परीक्षण अंतरिक्ष यान की लागत को कम करने की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है और मनुष्य के लिए अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए दोबारा इस्तेमाल करने की दिशा में एक सस्ता माध्यम उपलब्ध करा सकता है."
चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम उसकी सेना द्वारा ही चलाया जाता है. अगस्त में उसने एक परीक्षण किया था, जिसे लेकर आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं कि यह एक हाइपसोनिक मिसाइल का परीक्षण था. शनिवार को फाइनैंशल टाइम्स अखबार ने खबर छापी थी कि चीन ने एक हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया है जो धरती का चक्कर लगाकर धरती पर लौट आई लेकिन निशाना चूक गई.
जाओ ने कहा, "चीन अन्य देशों के साथ मिलकर काम करेगा ताकि मानवता की भलाई के लिए अंतरिक्ष का शांतिपूर्ण प्रयोग किया जा सके."
चीन की बढ़ती ताकत
सोमवार को चीन ने अंतरिक्ष यात्रियों के दूसरे दल को अपने स्पेस स्टेशन में भेजा है. ये यात्री छह महीने लंबे एक अभियान पर गए हैं, जो अंतरिक्ष में चीन का सबसे लंबा अभियान होगा.
अंतरिक्ष तकनीक के साथ-साथ चीन जिस तरह से सैन्य तकनीक का विस्तार कर रहा है, उसे लेकर पश्चिमी और एशियाई देशों में खासी चिंता है. उसका दक्षिणी चीन सागर पर प्रभाव और दावा लगातार मजबूत हो रहा है. यही नहीं, उसने भारत के साथ लगती सीमा पर भी अपनी गतिविधियां आक्रामक कर दी हैं.
अमेरिका ने अगस्त में हुए परीक्षण को लेकर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया लेकिन उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि अमेरिका चीन की बढ़ती परमाणु क्षमताओं को लेकर चिंतित है. प्राइस ने कहा, "ये घटनाएं दिखाती हैं कि जैसा कि हम पहले से कहते रहे हैं, (चीन) अपनी दशकों पुरानी परमाणु रणनीति से भटक रहा है."
उन्होंने कहा कि चीन की परमाणु क्षमताओं को लेकर अमेरिका लगातार उसके संपर्क में है और साथ ही अपनी व अपने सहयोगियों की प्रतिरोधक क्षमताएं बनाए रखेगा.
चिंतित हैं प्रतिद्वन्द्वी
सोमवार को ही अमेरिका के निरस्त्रीकरण दूत रॉबर्ट वुड ने इस बात पर चिंता जताई थी कि चीन हाइपरसोनिक मिसाइल बना रहा है. उन्होंने कहा, "चीन हाइपरसोनिक मोर्चे पर जो कर रहा है उसे लेकर हम काफी चिंतित हैं."
चीन के क्षेत्रीय प्रतिद्वन्द्वियों में से एक, जापान ने कहा कि वह चीन के नए हथियार के खिलाफ अपनी सुरक्षा चाक-चौबंद करेगा. सोमवार को जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव हिरोकाजू मात्सुनो ने कहा कि यह एक नया खतरा है और जापान किसी भी हवाई खतरे को पकड़ने, ट्रैक करने और नष्ट करने की क्षमताएं बढ़ाएगा.
मात्सुनो ने कहा कि चीन लगातार ऐसे हाइपरसोनिक परमाणु हथियार विकसित कर रहा है, जो मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भेद सकें.
क्या होती है हाइपरसोनिक मिसाइल?
हाइपरसोनिक मिसाइल सामान्य बैलिस्टिक मिसाइल होती है जो ध्वनि की गति से पांच गुना ज्यादा तेज जा सकती है. लेकिन बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में वे वातावरण में काफी कम ऊंचाई पर उड़ सकती हैं इसलिए उन्हें पकड़ पाना कठिन होता है.
अमेरिका पहले ही हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने पर काम कर रहा है. अमेरिकी सेना की वैज्ञानिक शाखा डार्पा ने हाल ही में हाइपर एयर-ब्रीदिंग वेपन कॉन्सेप्ट (HAWC) मिसाइल का सफल परीक्षण किया था. यह हवा में मौजूद ऑक्सीजन का इस्तेमाल ईंधन की तरह करती है.
चीन ने 2019 में मध्यम दूरी तक मार करने वाली एक हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया था, जो 2,000 किलोमीटर तक जा सकती है और परमाणु हथियार ले जाने में भी सक्षम है.
जिस मिसाइल का परीक्षण अगस्त में होने का जिक्र है, वह एक ज्यादा ताकतवर मिसाइल बताई जा रही है. फाइनैंशल टाइम्स की खबर के मुताबिक यह मिसाइल पृथ्वी की कक्षा में जाकर वहां से लौटती है और तब लक्ष्य पर हमला करती है.
रूस ने भी हाल ही में एक हाइपरसोनिक मिसाइल जिरकॉन का परीक्षण किया था. वैसे 2019 से ही उसके पास परमाणु शक्ति संपन्न आवांगार्द हाइपरसोनिक मिसाइल हैं जो ध्वनि से 27 गुना तेज गति से उड़ सकती हैं और रास्ता व ऊंचाई भी बदल सकती हैं.
वीके/एए (एपी, एएफपी)
रूस ने नाटो में अपना दूतावास बंद कर दिया है. मॉस्को में नाटो के दफ्तर को बंद करने के भी आदेश दे दिए गए हैं. हाल ही में नाटो की कार्रवाई के बदले रूस ने यह कदम उठाया है.
नाटो द्वारा अपने कूटनीतिज्ञों के खिलाफ कार्रवाई का बदला लेते हुए रूस ने नाटो को मॉस्को में अपना दफ्तर बंद करने का आदेश दिया है. उसने नाटो स्थित अपना मिशन भी बंद कर दिया है.
इसी महीने नाटो ने ब्रसेल्स के अपने मुख्यालय में काम कर रहे रूस के आठ आधिकारियों की मान्यता रद्द कर दी थी. पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो ने आरोप लगाया था कि ये अधिकारी रूसी जासूस थे. इसके साथ ही नाटो ने अपने मुख्यालय में मॉस्को के अधिकारियों की संख्या 20 से घटाकर आधी कर दी थी.
मॉस्को ने नाटो के इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने जवाबी कार्रवाई करते हुए नाटो के दफ्तर को बंद करने का आदेश दिया. सोमवार को उन्होंने ऐलान किया कि रूस नाटो में अपना मिशन भी बंद कर रहा है.
सारे संपर्क खत्म
लावरोव ने कहा कि नाटो ने साबित कर दिया है कि वे "किसी तरह के सहयोग या बातचीत में रुचि नहीं रखते और हमें नहीं लगता कि यह दिखावा करने की भी कोई जरूरत है कि निकट भविष्य में कुछ बदलने वाला है. रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि नाटो के साथ संपर्क बेल्जियम में रूसी दूतावास के जरिए रखा जा सकता है.
लावरोव ने कहा, "नाटो के इस जानबूझकर उठाए गए कदम के नतीजतन किसी तरह के कूटनीतिक काम के हालात नहीं बचे हैं. और नाटो की कार्रवाई के प्रतिक्रियास्वरूप हम नाटो मे अपन स्थायी मिशन बंद कर रहे हैं. साथ ही मुख्य सैन्य दूत का काम भी बंद किया जाएगा, जो संभवतया 1 नवंबर से बंद हो सकता है या उसमें कुछ दिन लग सकते हैं.”
रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, "नाटो की कार्रवाई यह पुष्ट करती है कि वे राजनीतिक और सैन्य तनाव करने के लिए समानता के स्तर पर बातचीत या किसी साझे काम के इच्छुक नहीं हैं. संगठन का हमारे देश के प्रति रुख लगातार आक्रामक होता जा रहा है.”
मंत्रालय ने कहा कि ‘रूस के खतरे' को जानबूझ कर बढ़ाया-चढ़ाया जा रहा है ताकि संगठन के अंदर सदस्यों के बीच एकता मजबूत की जा सके और आधुनिक भू-राजनीतिक परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता दिखाई जा सके.
नाटो की प्रतिक्रिया
रूस की कार्रवाई को नाटो ने अफसोसनाक बताया है. नाटो प्रवक्ता ओआना लंगेस्कू ने कहा, "हमें इन कदमों पर अफसोस है. रूस पर नाटो की नीति अविरुद्ध है. रूस की आक्रामक कार्रवाइयों के जवाब में हमने अपनी सुरक्षा और प्रतिरोधी कदमों को मजबूत किया है, पर साथ ही नाटो-रूस काउंसिल के जरिए बातचीत के रास्ते भी खुले रखे हैं.”
जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने लग्जमबर्ग में कहा कि मॉस्को का यह कदम मुश्किलें बढ़ाएगा और पिछले कुछ समय से जारी शीतकाल को और लंबा खींचेगा, जिससे रिश्तों में तनाव बढ़ेगा.
मास ने कहा, "बीते सालों में जर्मनी नाटो के भीतर लगातार रूस से बातचीत करने के लिए जोर लगाया है. और हमें एक बार फिर मानना होगा कि रूस अब नहीं है. यह बहुत अफसोस की बात है.”
रूसी मिशन का दफ्तर ब्रसेल्स में नाटो के मुख्यालय वाले भवन में नहीं है बल्कि पड़ोस में है. 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद नाटो ने उसके साथ व्यवहारिक सहयोग बंद कर दिया था लेकिन उच्च स्तरी बैठकों और सैन्य स्तर पर सहयोग के रास्ते खुले रखे थे.
लगातार बढ़ते तनाव के बीच रूस ने कई बार इस बात पर आपत्ति जताई है कि नाटो की सेनाएं रूसी सीमा के पास तैनात हैं और यह उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है. रूस और नाटो एक दूसरे पर सैन्य अभ्यास के जरिए अस्थिरता बढ़ाने का आरोप भी लगाते रहे हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
फलस्तीन की रहने वालीं जिहाद भुट्टो ग्रैजुएट हो गई हैं. इस्राएल के कफ्र बारा में हाल ही में उन्होंने अपनी डिग्री हासिल की. इस डिग्री के लिए उन्हें 85 साल इंतजार करना पड़ा.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
85 साल की जिहाद भुट्टो के बच्चे और पोते-पोतियां, नाते-नातिन उन्हें बधाई देने पहुंचे. आखिर यह दिन लंबे इंतजार के बाद आया था. जाहिर है, भुट्टो बेहद खुश थीं. उन्होंने वो हासिल किया, जिसकी तमन्ना उन्हें ताउम्र रही. वह ग्रैजुएट हो गईं.
जिहाद भुट्टो जब 12 साल की थीं तो उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. 1948 में उन्होंने स्कूल तो छोड़ा पर पढ़ने की इच्छा नहीं छोड़ी. उसी इच्छा के दम पर उन्होंने 81 साल की उम्र में दोबारा पढ़ाई शुरू की.
जहां मिले शिक्षा
भुट्टो ने कफ्र बारा सेंटर फॉर इस्लामिक स्ट्डीज में दाखिला लिया और भाषा, धर्म व गणित की पढ़ाई शुरू की. चार साल बाद उनकी मेहनत रंग लाई और वह ग्रैजुएट हो गईं. उन्हें डिग्री देते हुए टीचर्स और अधिकारी भी फख्र महसूस कर रहे थे. यह आयोजन भुट्टो के लिए ही नहीं सेंटर के भी विशेष था. उन्होंने इससे पहले कभी इतने विशेष छात्र को डिग्री नहीं दी थी.
भुट्टो बताती हैं, "मुझे पढ़ने का मौका मिला. जब भी मुझे मुझे शिक्षा पाने का कोई मौका मिलता है, मैं उसे लपक लेती हूं. पिछली बार जब मैंने कफ्र बारा में दाखिला लिया था तो सभी जान गए कि मुझे शिक्षा से कितना लगाव है. लेकिन मैं आम किताबें पढ़ रही थीं, कोर्स की किताबें नहीं.”
तब किसी ने भुट्टो को सेंटर के कोर्स के बारे में बताया और पूछा कि क्या वह यह कोर्स करना चाहेंगी. भुट्टो के लिए तो ना करने का सवाल ही नहीं था.वह बताती हैं, "उन्होंने मुझे सर्टिफिकेट के बारे में बताया और मुझसे पूछा कि दाखिला लेना है. मैंने कहा कि जहां कहीं शिक्षा है, वहां मैं जाऊंगी. तब दो दोस्तों ने मेरा रजिस्ट्रेशन करा दिया और मैंने यहां पढ़ाई की.”
सबके लिए मिसाल
सात बच्चों की मां जिहाद भुट्टो अपनी क्लास में भी और छात्रों के लिए मिसाल थीं. वह बताती हैं, "अध्यापक मेरे बारे में बहुत बात करते थे. उन्होंने मुझे दूसरे छात्रों के लिए एक उदाहरण बना दिया था. जब मैं ग्रैजुएट हुई तो लोगों ने स्कूल के डीन से पूछा कि क्या वे लोग मेरी मदद करते थे. डीन ने कहा, नहीं, बल्कि इसके उलट, मैं अलग-अलग विषयों पर दूसरे छात्रों की मदद करती थी.”
शिक्षा के लिए जिहाद भुट्टो का अभियान रुका नहीं है. अब वह अपने समुदाय की महिलाओं को पढ़ा रही हैं.
कफ्र बारा इस्राएल के सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट में एक काउंसिल है, जहां अरब आबादी की बहुलता है. करीब चार हजार लोगों का यह कस्बा 1948 से इस्राएल का हिस्सा है. यूं तो यह एक आम कस्बा है, लेकिन इसकी चर्चा शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए उठाए गए कदमों को लेकर अक्सर होती है.
यहां का हाई स्कूल भी चर्चित रहा है, जहां न सिर्फ पढ़ाई के लिए बेहतरीन सुविधाएं हैं बल्कि ऑटिस्टिक बच्चों के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं. मिडल और हाई स्कूल में छात्रों को ही इन ऑटिस्टिक बच्चों का निर्देशक बनाया गया है और वे बच्चों की सीखने में मदद करते हैं. इस मकसद के लिए काउंसिल ने एक बाल विशेषज्ञ को रखा है, जो यह योजना चलाता है. (dw.com)
दुनिया में एलियंस को लेकर कई तरह की रिसर्च की जा रही है मगर आधिकारिक तौर पर किसी ने भी ये नहीं माना है कि दूसरे ग्रहों पर लोग मौजूद हैं. हालांकि समय-समय पर कई वैज्ञानिकों और आम लोगों ने भी एलियंस के देखे जाने का दावा किया है. इन दावों में कितनी सच्चाई है इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है मगर इस बात को पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता है कि हमारी दुनिया के अलावा भी इस ब्रह्मांड में ऐसी दुनिया हैं जहां लोग रहते हैं. एलियंस और उनके यूएफओ को देखे जाने की तमाम बातों के बीच हाल ही में एक खबर चीन से आई है जो सभी को चौंका रही है.
चीन में ‘फास्ट’ नाम का एक विशाल टेलीस्कोप है जिसके जरिए दावा किया जा रहा है कि एलियंस का पता लगाया जा सकता है. रिपोर्ट्स के अनुसार खास ऑब्जर्वेशन के जरिए एलियंस से जुड़ी जानकारी जुटाने में ये टेलीस्कोप मदद करेगा. 500 मीटर के इस विशाल टेलीस्कोप का पूरा नाम एपर्चर स्फेरिकल रेडियो टेलीस्कोप है. जॉर्जिया के टिबिल्सी में स्थित फ्री यूनिवर्सिटी के एक वैज्ञानिक डॉ. जाजा ओसमानोवा ने कहा कि टेलीस्कोप के रेडियो स्पेक्ट्रल बैंड के जरिए बेहद एडवांस्ड सिविलाइजेशन का पता लगाया जा सकता है.
वैज्ञानिक ने कहा- ‘400 मिलियन लाइट ईयर्स दूर के भी एलियंस का लग सकेगा पता’
जाजा की रिसर्च के अनुसार ये टेलीस्कोप कार्दाशेव सिविलाइजेशन पद्धति की मदद से और थर्मल-एलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी की मदद से ये पता लगाएगी कि दूसरे ग्रह पर लोग हैं या नहीं. फास्ट के जरिए ये मालूम चल जाएगा कि किसी दूसरे ग्रह पर कितनी एनर्जी इस्तेमाल हो रही है. इसके जरिए किसी
सभ्यता के तकनीकी उन्नति का पता लगाया जा सकता है. वैज्ञानिक की कैल्कुलेशन के हिसाब से फास्ट सबसे एडवांस एलियन सभ्यता का पता लगा सकता है जो 400 मिलियन लाइट ईयर्स दूर मौजूद हैं. वैज्ञानिक की ये स्टडी arXiv में पब्लिश हुई है. हालांकि अभी इसका रिव्यू नहीं किया गया है.
अमेरिकी मिलिट्री बेस पर दिखा था ‘यूएफओ’
एलियंस से जुड़ी कई खबरें हाल ही में आई हैं. पिछले दिनों टिकटॉक पर शेयर किए गए एक वीडियो में ये दावा किया गया था कि वीडियो में नजर आ रहा अजीबोगरीब जहाज एक यूएफओ है जो अमेरिका के हाथ लग गया है. वीडियो में दिख रहा प्लेन बाकी प्लेन्स से काफी अलग है. ये प्लेन चपटा है और इसका डिजाइन हैरान करने वाला है. वीडियो में प्लेन को एक गाड़ी से ले जाते देखा जा सकता है. वीडियो के साथ लोगों का दावा है कि वो जगह असल में एक अमेरिकी मिलिट्री बेस है जहां गुप्त तरीके से पकड़ा गया यूएफओ रखा गया है. वीडियो बनाने वाला शख्स भी काफी हैरान लग रहा है. दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी ये वीडियो वायरल हो गया है.
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर | चीन ने पिछले डेढ़ साल से अधिक समय से चीन की यात्रा करने वाले भारतीयों पर प्रतिबंध लगा दिया है। नतीजतन, कई छात्र, व्यवसायी और परिवार के सदस्य भारत में फंसे हुए हैं। भारतीय राजदूत ने इस मुद्दे पर चीन के साथ बातचीत शुरू की है, क्योंकि यह विशुद्ध रूप से मानवीय मामला है, द्विपक्षीय राजनयिक मुद्दे जितना जटिल नहीं है। हालांकि चीन के साथ इसके मतभेद हैं, भारत ने वाणिज्यिक और व्यापार संबंधों को जारी रखने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए, चीनी व्यापारियों को भारत आने के लिए वीजा जारी करना। चीन का यह रवैया सही नहीं है।
लगभग 23,000 भारतीय छात्र चीनी विश्वविद्यालयों में चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे थे, जो अब असहाय हैं और चीन में अपने पाठ्यक्रम पर लौटने में असमर्थ हैं। चीनी विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम विषयों, विशेष रूप से व्यावहारिक क्लीनिकों की नींव रखने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे।
साथ ही, छात्रों को उन ऐप्स को डाउनलोड करने के लिए मजबूर किया गया है जो भारत में प्रतिबंधित हैं। इंसुलेट बॉर्डर स्टैंड-ऑफ को लेकर भारत ने लगभग 250 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया है। छात्रों का आरोप है कि अपने पाठ्यक्रम को जारी रखने के लिए उन पर वीचैट, डिंग टॉक, सुपरस्टार और एक वीडियो चैट ऐप जैसे प्रतिबंधित चीनी ऐप डाउनलोड करने के लिए दबाव डाला जा रहा है। फिलहाल, चीन में भारतीय छात्रों (आईएससी) के सदस्य छात्रों को अपनी कक्षा का प्रबंधन करने के लिए वीपीएन के माध्यम से चीनी ऐप में प्रवेश करने के लिए कहा गया है।
चीनी प्राधिकरण ने छात्रों की विनती अनसुनी कर दी है। आईएससी के बैनर तले, लगभग 3,000 छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ईमेल के माध्यम से एक पत्र भेजा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वे चीन में कोविड संबंधी सभी आवश्यक प्रोटोकॉल, जैसे संगरोध अवधि, टीकाकरण और परीक्षण आदि का पालन करेंगे।
केवल भारतीयों को ही चीन की यात्रा करने से नहीं रोका गया है, बल्कि चीनी नागरिकों को भी चीन जाने वाले विमानों में चढ़ने के लिए आवश्यक स्वास्थ्य कोड को पूरा नहीं करने के आधार पर वीजा से वंचित किया जा रहा है। पिछले डेढ़ साल से विभाजित परिवारों के रूप में रह रहे परिवार के सदस्यों पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। कुछ अपने बीमार रिश्तेदारों से मिलने नहीं जा सके, जबकि कुछ परिवार एक-दूसरे से मिलने के लिए नेपाल, श्रीलंका और यूएई जैसे तीसरे देशों की यात्रा कर रहे हैं।
भारत ने चीनी नागरिकों को भारत में उनके परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए वीजा जारी करना शुरू कर दिया है, लेकिन यह उनके लिए किसी काम का नहीं है, क्योंकि चीन देश में वापस आने के लिए वीजा से इनकार करके उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं दे रहा है।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के 100 साल पूरे होने का जश्न पूरा होने तक चीजें आगे बढ़ने की संभावना नहीं थी। लेकिन वे अब खत्म हो गए हैं और फिर भी चीन वीजा जारी नहीं कर रहा है। दूसरी ओर, भारत ने चीनी व्यापारियों को भारत की यात्रा की अनुमति देने के लिए वीजा जारी करना शुरू कर दिया है।(आईएएनएस)
-मृत्युंजय कुमार झा
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर : तालिबान के वरिष्ठ नेता और विदेश मंत्री शेर मुहम्मद अब्बास स्टानिकजई दुबई में अपने परिवार में शामिल होने के लिए काबुल भाग गए हैं।
कई स्रोतों ने पुष्टि की कि एक बार उच्च उड़ान भरने वाले स्टैनिकजई, जो विदेश मंत्री हो सकते थे, को डर है कि अगर वह लौटे तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर स्टेट इंटेलिजेंस (आईएसआई) द्वारा उनकी हत्या करा दी जा सकती है।
सूत्रों के अनुसार, तालिबान सरकार में कट्टरपंथी, पाकिस्तान समर्थक, हक्कानी समूह के सदस्यों द्वारा स्टैनिकजई पर रूस और भारत के साथ 'करीबी' संबंध रखने का आरोप लगाया गया है। स्टैनिकजई की शिक्षा भारतीय सैन्य अकादमी में हुई थी। अगस्त में तालिबान के साथ भारत का पहला औपचारिक संपर्क स्टैनिकजई के साथ था, जो उस समय दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख थे।
बाद में अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद स्टैनिकजई के तालिबान शासन के नए विदेश मंत्री होने की उम्मीद थी। उन्होंने कहा था कि संगठन भारत के साथ अफगानिस्तान के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को जारी रखना चाहता है। हक्कानी गुट के तालिबान नेतृत्व और पाकिस्तानी आईएसआई भारत के साथ स्टैनिकजई के 'संदिग्ध' संबंधों को लेकर चिंतित हैं।
अब, अपने साथी और उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर की तरह, स्टानिकजई भी तालिबान के अंदर अलग-थलग खड़े हैं।
ईरानी पत्रकार तजुदेन सोरौश ने ट्विटर पर अपने पोस्ट में कहा है, "ये दो लोग, अब्बास स्टानिकजई और मुल्ला बरादर, जिन्होंने दो साल से अधिक समय तक दुनिया को बताया था कि हम 'बदले हुए तालिबान' हैं, एक को संयुक्त अरब अमीरात में पूर्व राष्ट्रपति गनी की तरह निर्वासित किया गया है और दूसरे को काबुल में अलग-थलग कर दिया गया है।"
लेकिन स्टैनिकजई के विपरीत, मुल्ला बरादर, जो पिछले महीने काबुल में हक्कानी गुट के साथ लड़ाई में घायल होने के बाद अपनी जान बचाने के लिए कंधार भाग गया था, अफगानिस्तान में रहने के लिए 'मजबूर' है, क्योंकि उसका परिवार आईएसआई के संरक्षण में पाकिस्तान के क्वेटा में है।
बरादर अब काबुल वापस आ गया है, लेकिन आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया। बाद में हक्कानी ने कहा कि डिप्टी पीएम को व्यक्तिगत सुरक्षा प्रदान करना उनका काम था।
मुल्ला याकूब के नेतृत्व वाले तालिबान के कंधारी खंड और सिराजुद्दीन हक्कानी के नेतृत्व वाले काबुल गुट के बीच गुटीय लड़ाई स्पष्ट है। कंधारी गुट पाकिस्तानी आईएसआई से कोई हस्तक्षेप नहीं चाहता है। हालांकि, आईएसआई हक्कानी के जरिए काबुल में पावर प्ले कर रही है।
अफगान विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान सरकार अफगानों को न्यूनतम शासन और सुरक्षा प्रदान करने में भी विफल रही है। आईएसआईएस-के द्वारा तीन बड़े हमलों के बावजूद 'अनजान' आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी, जिनके पास देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी है, उनकी अनुपस्थिति से स्पष्ट है।
"तालिबान सुप्रीमो हिबुतल्लाह अखुनजादा और प्रधानमंत्री हसन अखुंड कहां हैं?" एक अफगान पत्रकार को आश्चर्य होता है जो सुरक्षा कारणों से गुमनाम रहना चाहता था। दोनों 'पहुंच योग्य' हैं। पत्रकार के अनुसार, तालिबान समर्थकों ने अपने अमीर अल-मुमिनिन हिबुतल्लाह अखुनजादा की मौत की अफवाहों को खारिज कर दिया और कहा कि वह कंधार में थे। जहां तक प्रधानमंत्री हसन खुंड का सवाल है, तो उनके सभी शीर्ष मंत्रियों मुल्ला याकूब और सिराजुद्दीन हक्कानी की तरह, वह भी सुरक्षा कारणों से छाया में रहते हैं।
(सामग्री इंडिया नैरेटिव के साथ एक व्यवस्था के तहत की जा रही है)
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर| पाकिस्तान में क्वेटा के सरियाब रोड स्थित बलूचिस्तान यूनिवर्सिटी के पास सोमवार को हुए विस्फोट में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई, जबकि 17 लोग घायल हो गए। घटना की सूचना मिलते ही कानून प्रवर्तन एजेंसियां और बचाव अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचने लगे। सुरक्षा अधिकारियों ने इलाके की घेराबंदी कर दी है।
बलूचिस्तान सरकार के प्रवक्ता लियाकत शाहवानी ने कहा कि विश्वविद्यालय के गेट के बाहर तैनात एक पुलिस ट्रक को मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटक से निशाना बनाया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, शाहवानी ने शुरू में कहा था कि एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई और सात पुलिसकर्मियों और चार राहगीरों सहित ग्यारह लोग घायल हो गए। बाद के अपडेट में उन्होंने कहा कि इस घटना में 17 लोग घायल हुए हैं।
सिविल अस्पताल के प्रवक्ता वसीम बेग ने कहा कि घायलों में 13 पुलिस अधिकारी और चार राहगीर शामिल हैं।
गृहमंत्री मीर जियाउल्लाह लांगोव ने कहा कि जब विस्फोट हुआ, तब पुलिस विश्वविद्यालय के बाहर प्रदर्शन कर रहे छात्रों को सुरक्षा मुहैया करा रही थी।
मंत्री ने कहा, "हमलावर छात्रों को निशाना बनाना चाहते थे, लेकिन कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के कारण पुलिस अधिकारियों को निशाना बनाया गया।"
इस बीच, आंतरिक मंत्री शेख राशिद अहमद ने घटना की निंदा की और कहा कि उन्होंने बलूचिस्तान आईजीपी से रिपोर्ट मांगी है।
इससे पहले, 25 सितंबर को बलूचिस्तान के हरनाई जिले के खोसाट इलाके में फ्रंटियर कॉर्प्स (एफसी) के एक वाहन पर हुए बम हमले में चार सुरक्षाकर्मी मारे गए थे और दो अन्य घायल हो गए थे।
प्रतिबंधित बलूच लिबरेशन आर्मी ने हमले की जिम्मेदारी ली थी।
एफसी के जवान पेट्रोलिंग ड्यूटी पर थे। जब उनका वाहन सफर बाश इलाके में पहुंचा तो इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस फट गया, जिससे चार जवान शहीद हो गए और दो अधिकारी घायल हो गए। (आईएएनएस)
अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्सों में लड़कियां घर पर रहती हैं और लड़के स्कूल जाते हैं लेकिन देश के उत्तरी हिस्से में लड़कियों के लिए स्कूल खुले हैं. तालिबान के सत्ता में आने के दो महीने बाद क्षेत्रीय मतभेद उभरने लगा है.
लगभग पूरे अफगानिस्तान में लड़कियों के माध्यमिक विद्यालय बंद हैं लेकिन उज्बेकिस्तान सीमा के पास मजार ए शरीफ में स्थानीय प्रशासन अलग सोच रखता है. उत्तरी प्रांत बाल्ख में संस्कृति और सूचना निदेशालय के प्रमुख जबीहुल्लाह नूरानी ने कहा कि कई स्कूलों में लड़के और लड़कियों दोनों के लिए पढ़ाई जारी है.
उनका कहना है, "उन जगहों पर जहां स्कूल खुले हैं, वे खुले हैं. उनके लिए कोई बाधा नहीं है. वहां लड़कियों की शिक्षा में कोई प्रतिबंध नहीं है." नूरानी का कहना है कि न केवल उन्हें बल्कि उनके जैसे कई अन्य अधिकारियों को भी लगता है कि लड़कियों को शिक्षा का अधिकार है.
नूरानी कहते हैं, "मेरा विचार और अन्य सभी इस्लामी जानकारों का विचार यह है कि हमारी बहनों को पुरुषों की तरह पढ़ाई करने का अधिकार है."
लड़कियों को शिक्षा से रोकता तालिबान
के सत्ता में आने के बाद से लड़कियों की शिक्षा एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा बन गया है. तालिबान सरकार ने घोषणा की है कि छठी कक्षा के बाद लड़कियां अपने घरों से बाहर स्कूलों में पढ़ने के लिए नहीं जा सकेंगी. तालिबान का कहना है कि उन्होंने सीधे तौर पर ऐसा आदेश जारी नहीं किया है. लेकिन उसकी सरकार के सत्ता में आने के हफ्तों बाद भी देश के अधिकांश हिस्सों में लड़कियों के माध्यमिक विद्यालय बंद हैं. और यह साफ नहीं है कि वे कब फिर से खुलेंगे.
शिक्षा से उम्मीद
15 साल की मरियम मजार ए शरीफ के एक स्कूल की छात्रा है. वह बिना किसी परेशानी के स्कूल जा रही है. उसने फोन पर समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "हमें तालिबान ने कई बार कहा है कि हमें हिजाब या स्कार्फ पहनना चाहिए. उन्होंने कहा कि केवल हमारी आंखें दिखनी चाहिए. हमें अपने हाथों पर दस्ताने भी पहनने चाहिए. कुछ लड़कियां इससे निराश होती हैं लेकिन हम शुक्रगुजार हैं कि हमें स्कूल जाने दिया गया." मरियम आगे चलकर डॉक्टर बनना चाहती हैं.
लड़कियों की शिक्षा के बुनियादी अधिकार के समर्थकों का कहना है कि लड़कियों की शिक्षा तक पहुंच अक्सर स्थानीय तालिबान नेताओं पर निर्भर करती है. यूनिसेफ ने पिछले साल तालिबान के साथ कुछ क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर लड़कों और लड़कियों के लिए अनौपचारिक कक्षाएं चलाने पर सहमति जाहिर की थी.
मजार ए शरीफ के स्थानीय लोगों का कहना है कि लड़कियों को स्कूल जाने में कोई दिक्कत नहीं है. लड़कियों के कई स्कूलों का दौरा करने वाले एक पूर्व सरकारी अधिकारी के मुताबिक, "यहां सभी उम्र की लड़कियों को शिक्षा हासिल करने की इजाजत है."
आंतरिक मंत्रालय के इस अधिकारी ने बताया, "सभी उम्र की सभी लड़कियों को उनकी कक्षाओं में जाने की इजाजत है."(dw.com)
एए/वीके (रॉयटर्स)