अंतरराष्ट्रीय
फ्रेंच आल्प्स में बीवी बच्चों के साथ घूमने निकला एक शख्स बर्फीले तूफान में घिर गया. ढाई घंटे से ज्यादा बर्फ के नीचे दबे रहने के बाद भी वो जिंदा बच गया. आमतौर पर 20 मिनट के बाद ही जिंदा बचने की उम्मीद खत्म हो जाती है.
(dw.com)
50 साल का यह शख्स गुरुवार को अपने दो बच्चों और बीवी के साथ काफी ऊंचाई पर बने वाल डीसेरे स्की रिसॉर्ट के पास घूमने निकला था. उनके पास बर्फीले तूफान से सुरक्षा के लिए कोई उपकरण भी नहीं था. स्थानीय इलाके सावी की पुलिस का कहना है, "शुक्र है कि तुरंत वहां करीब 100 लोग जमा हो गए... दो घंटे और 40 मिनट तक खोजने के बाद वह शख्स जिंदा मिल गया."
बहुत ज्यादा बर्फ होने की वजह से बचावकर्मियों के साथ मौजूद खोजी कुत्ते भी उसे ढूंढ पाने में नाकाम साबित हुए. हालांकि माउंटेन पुलिस के एक खास दस्ते ने वोल्फहाउंड उपकरण की मदद से बर्फ के नीचे उसके मोबाइल फोन पता लगा लिया.
चमत्कार था जीवित बचना
बचावकर्मियों की टीम पीजीएचेम के सदस्य अलेक्सांद्रे गेर्थर ने स्थानीय न्यूज चैनल फ्रांस 3 से कहा, "मुझे तो यह चमत्कार लगता है." ग्रेथर ने बताया कि वह शख्स सतह से ढाई मीटर यानी करीब आठ फुट नीचे दबा हुआ था. बर्फीले तुफान में दब जाने के 20 मिनट बाद ही जिंदा होने की उम्मीदें खत्म हो जाती है.
ग्रेथर ने समझाया कि उसकी जान कैसे बची, "उसकी रक्षा एक पेड़ ने की जिसने उसे ऊपर से गिरने वाली बर्फ के नीचे दबने से रोक लिया. उसके चारों तरफ बर्फ थी लेकिन पेड़ की वजह से एक छोटी सी दरार बन गई जिसने उसे सांस लेने के लिए हवा का रास्ता बनाए रखा. "पीड़ित शख्स के कूल्हे की एक हड्डी टूट गई है उसके जुड़ने के बाद वह पूरी तरह ठीक हो जाएगा.
सालों बाद ऐसी बर्फबारी
गुरुवार को इलाके में बर्फीले तूफान का अंदेशा बहुत ज्यादा था. पांच के स्केल पर इसे पांच ही बताया जा रहा था और बचाव दल के लोग सैलानियों से आग्रह कर रहे थे कि वो बाहर जाने से पहले बर्फ की स्थिति देख लें. कई सालों के बाद यहां जनवरी में इतनी भारी बर्फबारी हुई है. कोविड-19 की महामारी के चलते आल्प्स के स्की लिफ्ट को भी फिलहाल बंद कर दिया गया है.
सैलानियों को बर्फ में घूमने फिरने की आजादी है हालांकि होटलों और कैम्पों में रुकने वालों लोगों की संख्या बहुत कम है. इलाके के कारोबारी मुश्किल हालात का सामना कर रहे हैं. सरकार ने उनकी मदद के लिए उन्हें आर्थिक पैकेज देने का वादा किया है.
एनआर/एमजे (एएफपी)
क्या जो बाइडेन सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के सवाल पर झिझक रहे हैं? संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की अगली राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड के अमेरिकी संसद में दिए गए बयान को लेकर यह सवाल उठाया जा रहा है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय का लिखा-
लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड अमेरिकी सीनेट की विदेशी रिश्तों की समिति के सामने पेश हुई थीं जहां उनसे पूछा गया कि वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के बारे में क्या सोचती हैं और उनकी राय में क्या भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील को परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए.
थॉमस-ग्रीनफील्ड ने जवाब में कहा कि उन्हें लगता है कि इस विषय पर कुछ चर्चा हुई है और इन देशों को स्थायी सदस्य बनाए जाने के पक्ष में कुछ मजबूत दलीलें दी गई हैं. उन्होंने आगे कहा कि उन्हें यह भी मालूम है कि जिन प्रांतों में ये देश हैं वहां कुछ दूसरे देश इन देशों को इलाके का प्रतिनिधि बना दिए जाने के फैसले से असहमत हैं. उन्होंने कहा कि इस पर अभी चर्चा चल ही रही है.
थॉमस-ग्रीनफील्ड के इस बयान को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि ये कहीं इस बात का संकेत तो नहीं है कि बाइडेन प्रशासन भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर प्रतिबद्ध नहीं है और झिझक रहा है. हालांकि जानकारों का कहना है कि उस बयान को सही परिपेक्ष में देखना जरूरी है. भारत की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की दावेदारी कई सालों पुरानी है.
और भी हैं दावेदार
बीते दशकों में पिछले कम से कम तीन अमेरिकी राष्ट्रपति भारत की दावेदारी का समर्थन कर चुके हैं, जिनमें जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और डॉनल्ड ट्रंप शामिल हैं. तो क्या जो बाइडेन पिछले राष्ट्रपतियों की राय से अलग जाकर इस समर्थन को लेकर झिझक रहे हैं? सिर्फ थॉमस-ग्रीनफील्ड के ताजा बयान की वजह से यह निष्कर्ष निकालना शायद मुनासिब ना हो.
यह सच है कि भारत में सत्तारुढ़ बीजेपी ने राष्ट्रपति चुनावों से पहले ट्रंप की पुनर्निर्वाचित होने की दावेदारी का समर्थन किया था, लेकिन इसके बावजूद बाइडेन ने अपने चुनावी अभियान के दौरान सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की भारत की दावेदारी का नीतिगत स्तर पर समर्थन किया था. ऐसे में इतनी जल्दी अपने समर्थन से उनके मुकर जाने की कोई वजह नजर नहीं आती है.
वरिष्ठ पत्रकार और विदेशी मामलों की जानकार नीलोवा रॉय चौधरी का कहना है कि थॉमस-ग्रीनफील्ड ने इस तरह का जवाब इसलिए दिया क्योंकि उनसे सवाल सिर्फ भारत नहीं बल्कि तीन और देशों की दावेदारी के बारे में पूछा गया था. नीलोवा कहती हैं कि भारत के साथ जी-चार समूह के बाकी तीनों सदस्य देशों - जर्मनी, ब्राजील और जापान - भी स्थायी सदस्यता के दावेदार हैं और अमेरिका इनमें से सिर्फ भारत और जापान की दावेदारी का समर्थन करता है.
प्रांतों में विरोध
अमेरिकी राजदूत से सवाल चारों देशों के बारे में किया गया था और अमेरिका ने अभी तक जी-चार समूह के सभी सदस्य देशों को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिए जाने के पक्ष में प्रतिबद्धता नहीं जताई है. नीलोवा कहती हैं कि अमेरिका विशेष रूप से जर्मनी और ब्राजील की दावेदारी का समर्थन नहीं करता है. उन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि थॉमस-ग्रीनफील्ड ने संसदीय समिति को यह बताया कि इन चारों देशों के अपने प्रांतों में इनकी दावेदारी को लेकर विरोध है.
बीते सालों में देखा गया है कि पाकिस्तान ने भारत की दावेदारी का, दक्षिण कोरिया ने जापान की, इटली ने जर्मनी की और अर्जेंटीना ने ब्राजील की दावेदारी का विरोध किया है. इन्हें युनाइटिंग फॉर कंसेंसस (यूएफसी) समूह के रूप में भी जाना जाता है. इनके अलावा चीन भी भारत और जापान दोनों की दावेदारी का विरोध करता है. (dw.com)
हमजा अमीर
लाहौर, 29 जनवरी| पाकिस्तान सरकार ने देश में रहने वाले अल्पसंख्यकों की सलामती और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के अपने मामले को और मजबूत करने के लिए देश भर में अल्पसंख्यकों से जुड़े कई पवित्र स्थलों का नवीनीकरण करने का फैसला किया है।
जानकारी के अनुसार, अब पाकिस्तान में कई गुरुद्वारों और मंदिरों का जीर्णोद्धार होगा।
आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान में सिख गुरुद्वारों और हिंदू मंदिरों की कुल संख्या 1,830 है।
हालांकि, फिलहाल केवल 31 मंदिर और गुरुद्वारे ही संचालित हैं।
आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि संचालित हो रहे मंदिरों और गुरुद्वारों की कम संख्या ने ही सरकार को यह कदम उठाने और अल्पसंख्यक पवित्र स्थलों का नवीनीकरण करने के लिए प्रेरित किया है।
द इवैक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी), प्रांतीय सरकारों के साथ-साथ सिख और हिंदू समुदाय के सदस्य समग्र नवीकरण प्रक्रिया का हिस्सा होंगे, जो इस साल पूरा होने की संभावना है।
पंजाब प्रांत के रावलपिंडी में एक सिख भवन को बहाल किया जाएगा, जबकि लाहौर में कम से कम दो चचरें और सात हिंदू मंदिरों का नवीनीकरण प्रगति पर है।
इसके अलावा राजधानी इस्लामाबाद में हिंदू मंदिर का निर्माण भी 2021 में पूरा होने की संभावना है।
पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (पीएसजीपीसी) के महासचिव सरदार अमीर सिंध ने कहा, "लाहौर में गुरुद्वारा डेरा साहिब की कारसेवा कई वर्षों से चल रही है। लेकिन कारसेवा समिति के भारतीय सदस्यों को वीजा समाप्त होने के बाद घर वापस लौटना पड़ा, क्योंकि यह महामारी के कारण नवीनीकृत (रिन्यू) नहीं हो सका। इसलिए यह काम ठप हो गया और जल्द ही शुरू हो जाएगा।"
उन्होंने कहा, "इसी तरह से गुरुद्वारा बाली ला, ननकानी साहिब और गुरुद्वारा तन्बो साहिब की बहाली का काम भी जल्द पूरा हो जाएगा।"
ईटीपीबी ने यह सुनिश्चित किया है कि पाकिस्तान भर के गुरुद्वारों और हिंदू मंदिरों को पुनर्निर्मित और बहाल किया जाएगा और आने वाले दिनों में समुदायों के लिए इन्हें खोला जाएगा।
पाकिस्तान हिंदू परिषद के प्रमुख रमेश कुमार ने कहा, "एक प्रमुख मंदिर और गुरुद्वारा हर साल एक्टिवेट (शुरू होना) होता है।"
उन्होंने कहा, "ईटीबीपी के अलावा, प्रांतीय सरकारें भी प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों और गुरुद्वारों की बहाली में अपनी भूमिका निभा रही हैं।"
बता दें कि पाकिस्तान पर उसके अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार करने और उनके अधिकारों का हनन करने के आरोप लगते रहते हैं। अब वह छवि सुधारने के लिए अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही उन्हें धार्मिक आजादी देने के लिए बड़ा कदम उठा रहा है।
प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि उनकी सरकार अल्पसंख्यकों के लिए स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रही है।
हालांकि पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण, अपहरण और अल्पसंख्यकों को टारगेट करके उनके अधिकारों का हनन करने वाले मामले प्रधानमंत्री खान के दावों को धता बताते हैं। (आईएएनएस)
ओटावा, 29 जनवरी| कनाडा के टोरंटो शहर में एक केयर होम में कोरोनावायरस के नए प्रकार से 300 से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं, जिससे यहां के लोगों में खौफ का माहौल फैल गया है। इसकी जानकारी अधिकारियों ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, 86 स्टाफ सदस्यों के साथ केयर होम के 128 निवासी नए वायरस से बीमार पड़ गए हैं।
रिपोर्ट से पता चला है कि प्रांत के अधिकांश मामलों में पॉजिटिव लोगों की संख्या कम है, वहीं सैंपलों की जांच भी कम हुई है।
फरवरी के अंत तक कोरोनावायरस मामलों में 1,000-2,000 के बीच गिरावट आने की संभावना है।
गुरुवार को कनाडा में कोरोनावायरस जांच रिपोर्ट में 3,869 नए मामले पाए गए थे, जबकि इस वायरस से 104 लोगों की मौत हुई थी, जिससे देश में संक्रमण की कुल संख्या और मृत्यु दर क्रमश: 765,094 और 19,645 हो गई।
ओंटारियो में गुरुवार को 2,093 नए मामले पाए गए, जिससे प्रांत में कुल मामलों की संख्या 262,463 पहुंच गई है।
प्रांत में कम से कम 317,240 वैक्सीन की खुराक लगाए जाने की सूचना मिली है, जिनकी आबादी 14.7 मिलियन है। (आईएएनएस)
29 साल की यांग ली को चीन की 'पंचलाइन क्वीन' कहा जाता है. वो चीन की सबसे लोकप्रिय कॉमेडियन हैं और विवादों से उनका नाता नया नहीं है.
चीनी टीवी पर हाल के महीनों में आ रहे उनके शो 'रॉक एंड रोस्ट' को लेकर उनकी लोकप्रियता कई गुणा बढ़ गई है.
हर हफ्ते वो लाखों दर्शकों के सामने इस शो में विवादास्पद जेंडर मुद्दे को लेकर स्टैंड-अप कॉमेडियन के तौर पर मुखातिब होती हैं. कई चीनी दर्शक स्टैंड-अप कॉमेडियन की अवधारणा से वाकिफ नहीं हैं.
बड़े पैमाने पर दर्शक उनके इस शो को देख तो रहे हैं लेकिन हर कोई उनकी पंचलाइन्स से प्रभावित हो ऐसा नहीं है.
इसकी वजह से अब यांग को बड़े पैमाने पर आलोचनाएं भी झेलनी पड़ रही हैं.
दिसंबर में दिखाए गए एक एपीसोड में वो एक पुरुष कॉमेडियन की बात करती हैं. जिसमें वो उस कॉमेडियन से नए जोक सुनाने को कहती हैं. इस पर वह पुरुष कॉमेडियन उनसे कहता है कि, "क्या तुम मर्दों की सीमा की परीक्षा ले रही हो."
इस पर यांग व्यंगात्मक लहजे में जवाब देती हैं, "क्या मर्दों की कोई सीमा भी होती है?" यांग का इस तरह से व्यंग्य करना कुछ लोगों को नागवार गुज़रा और उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी.
हाल के कुछ हफ़्तों में सोशल मीडिया पर कुछ पुरुषों ने उन पर 'लैंगिक भेदभाव' और 'पुरुषों से नफरत' करने का आरोप लगाया है.
इस बीच पुरुषों के अधिकार की रक्षा करने का दावा करने वाला एक समूह सामने आया है. उसने सोशल मीडिया पर लोगों से चीन के मीडिया नियामक के सामने यांग की शिकायत करने को कहा है. उसने यांग पर 'बार-बार मर्दों के अपमान' करने और 'लैंगिक विरोध' पैदा करने का आरोप लगाया है.
लेकिन समर्थकों ने यांग का बचाव किया है और कहा है कि आलोचना करने वाले इन मर्दों में संवेदनशीलता और हास्यबोध का अभाव है. यांग के जोक्स ने चीन में एक नए विवाद को जन्म दिया है. चीन में नारीवादी आंदोलन और स्टैंड-अप कॉमेडी अपेक्षाकृत एक नई सांस्कृतिक पहल है.
ऐसा नहीं है कि चीन की संस्कृति में मज़ाक के लिए कोई जगह नहीं रही है. चीन की मज़ाकिया परंपरा में शियांगशेंग एक सदी से भी अधिक वक्त से पूरे देश में प्रचलन में है और काफी लोकप्रिय भी है.
इस फॉर्मेट में दो कॉमेडियन आपस में एक-दूसरे की खिंचाई करते हैं और दर्शक इसका आनंद लेते हैं.
लेकिन जब दर्शकों को खुद किसी मज़ाक का हिस्सा बनाया जाता है तब वैसे मामले में चीनी दर्शक इसे सहजता से नहीं लेते हैं. जबकि पश्चिम में स्टैंड-अप कॉमेडी के दौरान यह एक आम बात है.
बीजिंग कॉमेडियन क्लब ह्युमर सेक्शन के मालिक और कॉमेडियन टोनी चोउ बीबीसी से कहते हैं, "पश्चिम में स्टैंड-अप कॉमेडी के दौरान आम दर्शकों, अधिकारियों और सामाजिक प्रचलनों का मज़ाक उड़ाया जाता है और उन्हें चुनौती दी जाती है."
लेकिन चीन में इसे एक बड़ा तबका अपमानजनक मानता है.
उदाहरण के तौर पर टोनी बताते हैं कि एक बार एक कॉमेडियन पर एक दर्शक ने इसलिए हमला कर दिया क्योंकि उस कॉमेडियन ने हेनान प्रांत के लोगों पर मज़ाक किया था. टोनी कहते हैं कि "जबकि वो कॉमेडियन खुद हेनान प्रांत से ही था."
वह कहते हैं कि नतीजतन कुछ कॉमेडियन अपनी व्यक्तिगत भावनाएँ छिपाने की कोशिश करते हैं. ऐसा वो सिर्फ़ सांस्कृतिक वजहों से नहीं करते हैं बल्कि वो राजनीतिक और आर्थिक तौर पर होने वाले नुकसान से डरते हैं.
चीनी कॉमेडियन यांग को लेकर हुए विवाद पर लोग दो खेमों में बंटे हुए हैं. वीबो पर एक लोकप्रिय कॉमेडियन शी जी ने अपनी पोस्ट में कहा है कि यांग एक सच्ची स्टैंड-अप कॉमेडियन नहीं हैं. उनके इस पोस्ट को दस करोड़ बार देखा गया है और यह इसी लाइन के साथ हैशटैग के रूप में ट्रेंड कर रहा है.
लेकिन चीनी-अमेरिकी कॉमेडियन जो वॉन्ग ने यह कहते हुए यांग का समर्थन किया है कि कॉमेडी "समाज में अपेक्षाकृत दबे लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के मज़ाक" उड़ाने की सुविधा देता है.
हालांकि यांग ने कभी भी सार्वजनिक तौर पर इस बात का ऐलान नहीं किया है कि वो नारीवादी हैं लेकिन सोशल मीडिया पर उनके आलोचकों ने उनके और उनके समर्थकों के लिए एक नई शब्दावली इस्तेमाल करनी शुरू की है. वो है "चरमपंथी नारीवादी".
"नू कुआन" का चीनी भाषा में मतलब होता है नारीवाद या इसका शाब्दिक अर्थ होता है महिलाओं का हक. नेटिज़ेंस ने "कुआन" जिसका मतलब अधिकार होता है, उसकी जगह इसी तरह सुनाई देने वाला एक अन्य शब्द इस्तेमाल करना शुरू किया है. जिसका मतलब मुट्ठी होता है. इसका नारीवादियों के लिए अपमानजनक लहजे में इस्तेमाल किया जा रहा है.
यांग ली के एक 23 साल के आलोचक जिनका सरनेम भी यांग है (हालांकि कॉमेडियन यांग ली से उनका कोई संबंध नहीं है) बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "चरमपंथी नारीवादी बिल्कुल बेतुके हैं. वो हर कहीं मुक्के मारते रहते हैं और अधिकारों की बात करते हैं. "
बीजिंग में क़ानून के प्रोफेसर चु यीन वीबो पर कहते हैं कि, "पश्चिम में शुरू हुई लैंगिंक भेदभाव की राजनीति कामगारों की एकता के लिए खतरा है. इससे स्ट्रेट मर्दों के ख़िलाफ़ नफरत फैलेगी."
इस बीच यांग ली के समर्थकों का यह कहना है कि इन सब बातों ने यांग के मज़ाक को सही साबित किया है. अक्सर औरतों की आवाज़ को ऐसे ही उन लोगों की ओर से दबाया जाता है जो मर्दों को औरतों से श्रेष्ठ मानते हैं.
चीन के समाज में पारंपरिक तौर पर लैंगिक आधार पर काम का बंटवारा होता है. मर्द और औरत दोनों ही समाज के दबाव में अपनी-अपनी भूमिकाओं को निभाने के लिए मजबूर होते हैं.
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चीनी औरतों के अधिकार के लिए लड़ने वाली शियोंग जिंग कहती हैं कि इस तरह के लैंगिक रूढ़िवाद का खामियाज़ा मर्दों को भी भुगतना पड़ता है.
मसलन मर्दों को शादी के लिए अपना घर और गाड़ी होना ज़रूरी है तभी उन्हें शादी के योग्य माना जाएगा. या फिर उससे परिवार के अकेले कमाने वाले शख्स के तौर पर उम्मीदें की जाएंगी.
वो कहती हैं, "कई मर्द भारी उम्मीदों के बोझ तले दबे होते हैं जिससे उन्हें हताशा और रोष होता है. उन्हें इस बारे में सोचना होगा कि बुनियादी तौर पर क्या बदले जाने की ज़रूरत है."
चीन की एक मशहूर नारीवादी कार्यकर्ता लू पीन बीबीसी से बातचीत में कहती हैं कि दूसरे देशों की तुलना में चीन में नारीवादियों को एक अलग ही किस्म का राजनीतिक और सामाजिक दबाव झेलना पड़ता है.
"चीनी पुरुष सत्तात्मक व्यवस्था में नारीवादियों के आलोचकों को सत्ता में बैठे लोगों से अपेक्षाकृत अधिक समर्थन प्राप्त होता है."
चीनी में नारीवादी चूंकि गहराई से धंसे लैंगिक रूढ़िवाद को चुनौती देती हैं, इसलिए उन्हें सत्ता प्रतिष्ठानों की तरफ से "सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने के लिए उकसाने" वाला बताया जाता है.
इससे वो चीनी सरकार की नज़र में आ जाती हैं क्योंकि सरकार चीनी समाज में अपनी पकड़ को सबसे अधिक तरजीह देती है.
2015 में पांच चीनी नारीवादी कार्यकर्ताओं को सात हफ्तों तक हिरासत में रखा गया था. उन कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक परिवहनों में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले यौन उत्पीड़न को लेकर अभियान चलाने की योजना बनाई थी.
2018 में चीन की अग्रणी नारीवादी संगठन फेमिनिस्ट वॉयस के सोशल मीडिया एकाउंट्स को कई बार संस्पेंड करने के बाद आखिरकार सेंसर किया गया है.
पिछले दिसंबर में जब चीनी कोर्ट में मी टू से जुड़े एक हाई प्रोफाइल मामले की सुनवाई हो रही थी तब सरकारी मीडिया ने उसे कवर करने से परहेज़ किया था.
इस बीच वीबो पर कुछ प्रभावशाली लोगों के एकाउंट्स से नारीवादी आंदोलन में 'विदेशी ताकतों' की भूमिका के इल्ज़ाम भी लगाए गए.
लू पीन कहती हैं, "कई लोग अब चीनी नारीवादियों पर विदेशी ताकतों के साथ जुड़े होने का आरोप लगा रहे हैं. इन आरोपों का लोगों पर इतना असर क्यों हो रहा है? क्योंकि वे सरकार के नक्शे कदम पर चलते हुए उसकी ही बात को दोहरा रहे हैं."
तो यांग ली की टिप्पणी से उत्पन्न हुए विवाद की पृष्ठभूमि में यह पूरा किस्सा है.
इस मामले में सरकार ने औपचारिक रूप से कोई जांच शुरू की है कि नहीं, यह अभी साफ नहीं है. जिस समूह ने वीबो पर यांग ली की शिकायत दर्ज करने की मांग की है उसने बाद में इस पोस्ट को हटा लिया है.
बीबीसी ने यांग ली से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए जब इंटरव्यू का अनुरोध किया तब उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
उन्होंने इस पूरे मामले पर अब तक कोई बयान भी नहीं जारी नहीं किया है.
लेकिन उन्होंने हाल ही में सोशल मीडिया पर यह ज़रूर लिखा है, "यह कभी खत्म नहीं होने वाला है…अब इस इंडस्ट्री में रहना थोड़ा मुश्किल है." (bbc.com)
अफगान स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग (एआईएचआरसी) ने कहा है कि देश में युद्ध और हिंसा के कारण पिछले साल 8,500 नागरिक मारे गए. अफगानिस्तान की सरकार और तालिबान के बीच शांति वार्ता चल रही है.
एआईएचआरसी के मुताबिक साल 2020 में देश में युद्ध और हिंसा के कारण 8,500 नागरिक हताहत हुए. वार्षिक रिपोर्ट में 2,958 मौतों का जिक्र है. साल 2019 में मरने वालों की संख्या 2,817 थी. रिपोर्ट के मुताबिक इस अवधि के दौरान तालिबान के हमले में 4,568 नागरिकों की मौत हई या वे घायल हुए.
जबकि अज्ञात समूह के हमले में मरने वालों की और घायल हुए लोगों की कुल संख्या 2,107 है. वहीं सुरक्षा बलों को 1,188 लोगों की मौत और घायल होने का दोषी ठहराया गया है. गृह मंत्रालय के प्रवक्ता तारिक एरियन ने कहा, "हाल के दिनों में तालिबान ने जिम्मेदारी लिए बिना बड़े अपराध किए हैं. तालिबान ने हमारे हजारों नागरिक को मारा है."
अफगानिस्तान सरकार की तालिबान के साथ शांति वार्ता चल रही है और इस दौरान हिंसा में कोई कमी नहीं हुई. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी शांति के लिए दबाव बनाया जा रहा है. पिछले साल मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सरकारी कर्मचारियों और पत्रकारों की हत्या हुई थी. यही नहीं आम नागरिकों को निशाना बनाया गया था. मई के महीने में प्रसूति वार्ड में भी नई मांओं को मौत के घाट उतार दिया गया था.
एआईएचआरसी ने इन निष्कर्षों पर "गंभीर चिंता" व्यक्त की है. उसके मुताबिक आधी से अधिक मौतें तालिबान के कारण हुईं, 15 प्रतिशत सरकारी सुरक्षाबलों और उनके अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों की कार्रवाई में मौतें हुई, जबकि बाकी मौतों का कारण अज्ञात संगठनों जैसे कि इस्लामिक स्टेट है.
राजनयिक चिंता जता रहे हैं कि तालिबान द्वारा हिंसा खास तौर से सफल शांति वार्ता के लिए जरूरी विश्वास को कम कर रही है. कई महीनों की देरी के बाद पिछले साल सितंबर में दोहा में शांति वार्ता की शुरूआत हुई थी. अमेरिका भी देश से धीरे-धीरे अपनी सैनिकों की संख्या कम कर रहा है और मई तक पूरी तरह से देश से सैनिकों को वापस बुला लेगा.
अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन कह चुके हैं कि उनका प्रशासन व्यवस्थाओं की समीक्षा करेगा. अधिकांश राजनयिकों और विश्लेषकों को वार्ता जारी रहने की उम्मीद है, हालांकि अमेरिकी सैनिकों की वापसी को पीछे किया जा सकता है. तालिबान के एक प्रवक्ता ने एएचआईआरसी के निष्कर्षों को खारिज करते हुए कहा है कि वे केवल सैन्य ठिकानों पर हमले करते हैं.
सरकार का कहना है कि तालिबान नागरिकों की हत्या के लिए जिम्मेदार है. एरियन के मुताबिक, "हाल के महीनों में तालिबान ने जिम्मेदारी लिए बिना कई बड़े हमलों को अंजाम दिया है. जिनमें हजारों लोग मारे गए हैं."
एए/सीके (रॉयटर्स)
जर्मन नवनाजी श्टेफान ई को 2019 में हेसे के काउंटी प्रमुख की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. इस मुकदमे ने जर्मन अधिकारियों और खुफिया एजेंसियों की चरमपंथियों पर नजर रखने की क्षमता पर सवाल उठाए हैं.
डॉयचे वैले पर बेन नाइट का लिखा-
बीते कुछ सालों में जर्मनी में नवनाजी गुटों का तेजी से उभार हुआ है. ये लोग देश में शरणार्थियों और गैर जर्मन लोगों के खिलाफ हैं और पर्दे में रह कर अपने नफरती विचारों को फैला रहे हैं. जर्मन सरकार इन पर चौकस निगाह रखने का दावा करती है लेकिन हाल के वर्षों में हुई घटनाओं ने अधिकारियों की अक्षमता को उजागर किया है. हेस्से प्रांत में काउंटी प्रमुख वाल्टर ल्युब्के की हत्या का मामला पहला है जिसमें किसी नवनाजी को राजनीतिक हत्या के लिए दोषी माना गया है.
काउंटी प्रमुख की हत्या का मामला
47 साल के नवनाजी श्टेफान ई को कासेल काउंटी के प्रमुख वाल्टर ल्युब्के की हत्या का दोषी करार दिया गया है. गुरुवार को अदालत के इस फैसले के साथ ही जर्मनी में 1970 के बाद राजनीतिक हत्या के पहले मुकदमे की कार्रवाई पूरी हो गई. श्टेफान ई को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है. जज थॉमस जागेबील ने इस घटना को "विशेष गंभीर" माना है. इस वजह से श्टेफान ई को पैरोल पर रिहा होने से पहले ज्यादा वक्त जेल में बिताना होगा. जर्मनी में आमतौर पर उम्रकैद की सजा पाने वालों को 15 साल जेल में रहने के बाद पैरोल पर रिहा किया जा सकता है. हालांकि इस मामले में कम से कम 22 साल जेल में रहने के बाद ही रिहाई पर विचार होगा.
अदालत में ल्युब्के का परिवार भी मौजूद था. पीड़ित परिवार से सहानुभूति जताते हुए जज ने कहा कि यह मुकदमा उनके लिए "कठिन और पीड़ादायी" रहा होगा. हालांकि जज ने यह भी कहा "इससे हमारे इस कठिन काम में कोई बदलाव नहीं आया." वाल्टर ल्युब्के की हत्या ने जर्मनी के नवनाजियों की तरफ से हिंसा की आशंकाओं की ओर ध्यान दिलाया है. साथ ही घरेलू खुफिया एजेंसियों की हिंसक चमरपंथियों पर निगरानी रखने में नाकामी भी उजागर हुई है. यह सब तब हुआ जब कि मुखबिरों का एक पूरा नेटवर्क मौजूद है और उन्हें पैसे भी दिए जा रहे हैं.
हत्यारे का सहयोगी
चांसलर अंगेला मैर्केल कीसीडीयू पार्टी के राजनीतिज्ञ वाल्टर ल्युब्के धुर दक्षिणपंथियों के लिए 2015 में ही नफरत की शख्सियत बन गए जब उन्होंने सीरिया के युद्ध से भागने वाले शरणार्थियों को जर्मनी लाने के फैसले के समर्थन में भाषण दिया. हालांकि इस मुकदमे में सहवादी रहे उनके परिवार का आरोप है कि खुफिया एजेंसियों ने उनकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया. जून 2019 में उन्हें उनके घर के पोर्च में गोली मार दी गई.
श्टेफान ई का कथित सहयोगी मार्कुस एच भी एक जाना माना नवनाजी है. उसे हत्या में सहयोग के आरोप से तो मुक्त कर दिया गया लेकिन उसे अवैध हथियार रखने का दोषी करार दिया गया है. श्टेफान ई ने दावा किया था कि मार्कुस एच हत्या की जगह मौजूद था और उसने श्टेफान के गोली चलाने से पहले पीड़ित को कुछ निंदापूर्ण शब्द कहे. अभियोजन और ल्युब्के के परिवार ने घटना के इस ब्यौरे को सही माना. हालांकि बचाव पक्ष की दलील परस्पर विरोधी बयानों में उलझ गई. एक मौके पर उसके पिछले वकील ने दावा किया कि मार्कुस एच ने ल्युब्के के साथ झड़प में उन पर गोली चलाई.
शरणार्थी की हत्या की कोशिश
अदालत ने एक और मामले में भी फैसला सुनाया लेकिन श्टेफान ई को इराकी शरणार्थी अहमद आई की हत्या की कोशिश के आरोपों से बरी कर दिया. जनवरी 2016 में किसी अज्ञात हमलावर ने अहमद आई पर चाकू से हमला किया था. यह हमला शरणार्थी कैंप के बाहर हुआ जहां अहमद रहते थे. उसी इलाके में रहने वाले एक नवनाजी पर इस हमले की आशंका थी जिसने इससे पहले अरबी और तुर्क मूल के कुछ लोगों पर हमले किए थे. उससे पूछताछ तो हुई लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं किया गया.
ल्युब्के की हत्या की जांच के दौरान जो बातें सामने आईं उनके आधार पर अभियोजकों ने 2016 के हमले वाले केस से जुड़े आरोप लगाए. इसमें अहम सुराग यह था कि श्टेफान के घर के तहखाने से मिले एक चाकू पर ऐसे डीएनए के सुराग मिले जो उस इलाके से जुड़े थे जहां अहमद आई था. मुकदमे में सहवादी के वकील अलेक्जांडर हॉफमन का कहना था कि अगर श्टेफान के घर की 2016 में तलाशी ली गई होती तो उस पर आरोप साबित हो जाता और उसे ल्युब्के की हत्या करने का मौका नहीं मिलता.
उग्र दक्षिणपंथी हिंसा का डर
वाल्टर ल्युब्के की हत्या ने जर्मनी में स्थानीय राजनीतिज्ञों और अधिकारियों पर उग्र दक्षिणपंथी गुटों के हमलों के बढ़ते खतरे की ओर ध्यान खींचा है. बहुत से लोगों ने वाल्टर व्युब्के पर हमले की तुलना कुछ साल पहले 2015 में कोलोन शहर की मेयर हेनरिएटे रेकर पर दक्षिणपंथी उग्रपंथी द्वारा किए गए चाकू हमले से भी की है.
अपराध पीड़ितों के मामलों के लिए जर्मन सरकार के कमिश्नर एडगर फ्रांके ने गुरुवार को अदालत के पैसले के बाद एक बयान में कहा है, "बार बार मेरे पास शहरों के मेयर आए हैं और अपने परिवार के लिए सुरक्षा की चिंता जताई है." उन्होंने कहा, "लोकतंत्र का दिल शहरों और कस्बों में धड़कता है. इसलिए हमें स्थानीय राजनीतिज्ञों को अब तक से बेहतर सुरक्षा देने की जरूरत है." (dw.com)
-शहज़ाद मलिक
पाकिस्तान की सैन्य नियंत्रण सेवा 'इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस' (आईएसआई) के पूर्व प्रमुख रिटायर्ड जनरल असद दुर्रानी ने अपना नाम एग्ज़िट कंट्रोल लिस्ट (ईसीएल) से निकालने के बारे में अर्ज़ी दायर की थी. अब पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने उनकी इस अर्ज़ी का इस्लामाबाद हाई कोर्ट में जवाब जमा करा दिया है.
इस जवाब में कहा गया है कि "पूर्व आईएसआई प्रमुख 2008 से 'भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी' रॉ के संपर्क में हैं."
इस जवाब में, इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि "असद दुर्रानी देश विरोधी गतिविधियों में भी शामिल हैं."
रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इस आधार पर उनका नाम ईसीएल से नहीं हटाया जा सकता और इसी वजह से वो देश छोड़ कर बाहर नहीं जा सकते हैं.
हालांकि, असद दुर्रानी पहले भी कई बार इन आरोपों से इनकार कर चुके हैं.
ध्यान रहे कि उन्होंने भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत के साथ एक पुस्तक लिखी थी. पाकिस्तानी अधिकारियों के अनुसार, उस पुस्तक में पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कंटेंट भी शामिल था.
पाकिस्तान सरकार ने 29 मई 2018 को पूर्व आईएसआई प्रमुख का नाम ईसीएल में शामिल कर दिया था.
सरकार के इस क़दम के ख़िलाफ़, रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल असद दुर्रानी ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी.
इस याचिका में उन्होंने कहा था कि उनका नाम ईसीएल से हटाया जाये.
इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अतहर मिनल्लाह ने इस याचिका पर सरकार से जवाब माँगा था.
असद दुर्रानी के बारे में रक्षा मंत्रालय ने और क्या कहा?
बुधवार को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में रक्षा मंत्रालय की तरफ़ से एक जवाब जमा किया गया था.
इस जवाब में कहा गया कि आईएसआई के पूर्व प्रमुख ने भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के पूर्व प्रमुख के साथ किताबें लिखकर आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 का भी उल्लंघन किया है और इस अपराध पर क़ानूनी कार्रवाई सेना अधिनियम के तहत की जाती है.
इस जवाब में सेना अधिनियम, 1952 का भी उल्लेख है और कहा गया है कि याचिकाकर्ता तो सेना में रहे हैं, लेकिन यदि कोई नागरिक भी ऐसी गतिविधियों में शामिल हो, जिससे राष्ट्रीय हित को ख़तरा हो, तो इस अधिनियम के अनुच्छेद-2डी के तहत उसका कोर्ट-मार्शल भी हो सकता है.
इस जवाब में ईसीएल क़ानून का हवाला देते हुए, रक्षा मंत्रालय की तरफ़ से कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है या उससे राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा है, तो ऐसी स्थिति में केंद्रीय सरकार के पास ये अधिकार है कि वो बिना नोटिस दिये उस व्यक्ति का नाम ईसीएल में शामिल कर दे और उसके देश छोड़ने पर पाबंदी लगा दे.
इस जवाब में यह भी उल्लेख किया गया है कि रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल असद दुर्रानी के ख़िलाफ़ जाँच अंतिम चरण में है और इस स्तर पर उनका नाम ईसीएल से नहीं हटाया जा सकता है.
रक्षा मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि इस स्तर पर याचिकाकर्ता के देश से बाहर जाने का उद्देश्य 'अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों, मंचों और टॉक-शो में भाग लेना है. ऐसा होने से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जटिलताएं भी पैदा हो सकती हैं.'
जवाब में यह भी कहा गया है कि 'पिछले साल 12 और 13 अक्तूबर को सोशल मीडिया पर पूर्व आईएसआई प्रमुख ने जिस तरह से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया था, उसे किसी भी देश भक्त नागरिक ने अच्छा नहीं समझा.'
हालांकि इस जवाब में पूर्व आईएसआई प्रमुख की इन 'भावनाओं' को विस्तार से नहीं बताया गया है.
रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल असद दुर्रानी की इस याचिका पर अगली सुनवाई 12 फ़रवरी को होगी.
अदालत ने केंद्रीय सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि वो याचिकाकर्ता द्वारा लिखित पुस्तक में प्रकाशित उन हिस्सों को भी अदालत के सामने प्रस्तुत करें जो सरकार के अनुसार 'राष्ट्रीय सुरक्षा के ख़िलाफ़' हैं.
असद दुर्रानी का क्या पक्ष है?
पिछले साल बीबीसी को दिये एक इंटरव्यू में असद दुर्रानी ने कहा था कि "जब तक किसी किताब में विवाद ना हो तो फ़ायदा क्या है? वो तो फिर एक सरकारी किस्म का लेखन होगा, जो आप आईएसपीआर से ले लें या सरकार से ले लें. विवाद तो आपको पैदा करना होगा ताकि बहस हो सके."
देश की गोपनीयता को ज़ाहिर करने के आरोप के जवाब में उन्होंने कहा था कि "बहुत शोर मचा था, लेकिन किसी ने आज तक यह नहीं बताया कि इस पुस्तक में देश से जुड़ी कौन-सी गोपनीय बात थी. आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत लोगों पर मुक़दमा चलाना सबसे आसान काम है. जितनी भी गोपनीयता की बात थी, वो भी धीरे-धीरे किसी ने इधर से बता दी, किसी ने उधर से, इसलिए गोपनीयता का कोई सवाल ही नहीं है."
"मुझे ऐसा लगता है कि मैंने अपना विश्लेषण देकर किसी कमज़ोरी को ज़ाहिर कर दिया है, या दुम पर पैर रख दिया है. मैंने इस आधार पर एक विश्लेषण किया था कि अगर मैं उस समय होता तो क्या करता."
उन्होंने कहा था कि "सेना के अंदर कई लोगों ने अपनी किताबें लिखीं और किसी ने उनसे नहीं पूछा कि उन्होंने क्या लिखा है."
"मुझे रिटायरमेंट के समय तत्कालीन आर्मी चीफ़ जनरल वहीद काकड़ ने कहा था कि आपको ख़ुद देखना है कि आपको अपनी बात कहाँ तक लिखनी हैं और कहाँ तक नहीं. अपना सेंसर ख़ुद ही करो और उसूल भी यही है."
कौन हैं असद दुर्रानी?
80 वर्षीय असद दुर्रानी पाकिस्तानी सेना के एक रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल हैं. उन्हें 1988 में सैन्य ख़ुफ़िया महानिदेशक नियुक्त किया गया था.
1990 में उन्हें महानिदेशक, आईएसआई के रूप में नियुक्त किया गया था.
1993 में रिटायर्ड होने के बाद, उन्होंने जर्मनी और सऊदी अरब में पाकिस्तान के राजदूत के रूप में भी काम किया.
असद दुर्रानी अक्सर विवादों में रहे, चाहे वह उनकी दोनों प्रकाशित पुस्तकों में शामिल जानकारी को लेकर हो या ओसामा बिन लादेन के बारे में उनके बयान, जिन्हें वे अपना 'विश्लेषण' कहते हैं.
स्पाई क्रॉनिकल के लेखक रिटायर्ड जनरल असद दुर्रानी को 1990 के दशक में ही सेना से बेदख़ल कर दिया गया था. असग़र ख़ान केस में उनका नाम सामने आने के बाद, उन्हें आईएसआई से जीएचक्यू बुला लिया गया. फिर जब यह सामने आया कि वह राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, तो उन्हें समय से पहले ही रिटायर्ड कर दिया गया.
वो अपनी किताब 'ओनर अमंगस्ट स्पाइज़' के प्रकाशन के बाद भी ख़बरों में रहे. ये पुस्तक उनकी पहली प्रकाशित पुस्तक 'स्पाई क्रॉनिकल्स' सिरीज़ की दूसरी किताब है.
वो 1990 के दशक में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार के ख़िलाफ़ इस्लामिक जम्हूरी इत्तेहाद (आईजेआई) के गठन के मुक़दमे में भी शामिल थे जिसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मियां नवाज़ शरीफ़ सहित अन्य राजनेताओं को बड़ी रक़म देने की बात क़बूल की थी. (bbc.com)
भ्रष्टाचार विरोधी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक जिन देशों में भ्रष्टाचार के उच्च स्तर है वे कोरोना वायरस महामारी की चुनौती से निपटने में कम सक्षम रहे.
(dw.com)
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की चेयरपर्सन डेलिया फरेरिया रूबियो ने कहा, "कोविड-19 केवल एक स्वास्थ्य और आर्थिक संकट नहीं है. यह एक भ्रष्टाचार संकट है, जिसे हम मौजूदा समय में संभालने में विफल हो रहे हैं." ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने ताजा भ्रष्टाचार इंडेक्स जारी किया है. संगठन दुनिया के 180 देशों में सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार के आधार पर रैंकिंग देता है.
इस साल संगठन ने मापदंडों में कोविड-19 महामारी से निपटने के दौरान हुए भ्रष्टाचार पर खास जोर दिया है. संगठन ने पाया कि सबसे कम भ्रष्टाचार वाले देश कोरोना वायरस और आर्थिक चुनौतियों से निपटने में सर्वश्रेष्ठ रहे. संगठन ने निष्कर्ष निकाला कि जिन देशों ने स्वास्थ्य देखभाल में अधिक निवेश किया वे सार्वभौमिक स्वास्थ्य तक पहुंच मुहैया कराने में सक्षम रहे और वहां लोकतांत्रिक मानदंडों का उल्लंघन करने की संभावना कम है.
इस साल के सूचकांक में अमेरिका नई गिरावट के साथ 67वें पायदान पर है. डॉनल्ड ट्रंप के शासन में देश की रैंकिंग गिरी है. 100 में से शून्य अंक वाले देश ''बहुत भ्रष्ट'' हैं वहीं 100 में से 100 अंक पाने वाले देश ''बहुत स्वच्छ'' है. रिपोर्ट में पाया गया कि 26 अंक पाने वाला बांग्लादेश स्वास्थ्य देखभाल में बहुत कम निवेश करता है और इसलिए अब क्लीनिकों में इस तरह की रिश्वतखोरी, दवाई की खरीद में भ्रष्टाचार की समस्याओं का सामना कर रहा है.
इसके विपरीत 71 अंक हासिल करने वाले उरुग्वे को दक्षिण अमेरिका में कम भ्रष्ट देश माना गया है. उरुग्वे ने स्वास्थ्य देखभाल में भारी निवेश किया है. इसी वजह से वह कोरोना वायरस को लेकर तेज प्रतिक्रिया देने में सक्षम रहा.
कोरोना से निपटने में भ्रष्टाचार की कितनी भूमिका
बर्लिन स्थित संगठन के विश्लेषण के मुताबिक कोरोना वायरस को लेकर प्रतिक्रिया और भ्रष्टाचार के बीच रिश्ता दुनियाभर में व्यापक रूप में देखा सकता है. इस सूचकांक में 100 में से 88 अंक हासिल कर न्यूजीलैंड पहले पायदान पर है. न्यूजीलैंड की कोरोना महामारी से निपटने को लेकर संगठन ने तारीफ भी की है और कहा है कि वहां और बेहतरी की गुंजाइश है. 88 अंकों के साथ डेनमार्क भी शीर्ष पायदान पर न्यूजीलैंड के साथ है. सूचकांक में शीर्ष पर रहने वाले देश में स्वच्छ है, जबकि निचले पायदान वाले देशों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार पाया गया.
फिनलैंड, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड और स्वीडन ने 85 अंक हासिल किए, नॉर्वे को 84, नीदरलैंड्स 82, जर्मनी और लक्जेमबर्ग 80 अंकों के साथ शीर्ष दस देशों में शामिल है. एशियाई देशों की बात की जाए तो इस रैंकिंग में भारत 86वें पायदान पर है. चीन 78वें, पाकिस्तान 124वें जबकि नेपाल 117वें स्थान पर है. ट्रांसपेरेंसी ने 180 देशों का सर्वेक्षण किया, दो तिहाई देशों ने 100 में से 50 से कम अंक हासिल किए और औसतन अंक 43 रहा.
ट्रांसपेरेंसी ने सुझाव दिया है कि भ्रष्टाचार से मुकाबला करने और स्वास्थ्य पर इसके नकारात्मक प्रभाव से निपटने के लिए पारदर्शिता के साथ निरीक्षण संस्थानों को मजबूत किया जाना चाहिए. साथ ही खुला और पारदर्शी करार सुनिश्चित किया जाना चाहिए और सूचना तक पहुंच की गारंटी भी देनी चाहिए.
एए/सीके (डीपीए, एएफपी)
चीनी ऐप टिकटॉक की पेरेंट कंपनी बाइट डांस ने सात महीनों के बैन के बाद आख़िरकार अपने भारतीय कर्मचारियों की छुट्टी करना शुरू कर दिया है.
भारत सरकार ने पिछले साल जून महीने में 59 चीनी ऐप्स को बैन कर दिया था.
अंग्रेजी अख़बार इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक़, भारत सरकार ने टिकटॉक समेत दूसरे ऐप्स पर स्थायी प्रतिबंध लगा दिया है.
कंपनी ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है, "हमने लगातार अपनी ऐप्स को स्थानीय क़ानूनों और नियमों के अनुसार ढालने की कोशिश की. और (सरकार की) उन सभी चिंताओं को दूर करने की कोशिश की. ऐसे में ये निराश करने वाला है कि बीते सात महीनों में हमारे प्रयासों के बावजूद हमें अब तक स्पष्ट रूप से ये नहीं बताया गया है कि हमारी ऐप्स को कब और कैसे दोबारा अनुमति मिल सकती है."
कंपनी ने कहा है कि उन्हें काफ़ी दुख के साथ ये कहना पड़ रहा है कि आधे साल से ज़्यादा समय तक भारत में दो हज़ार से ज़्यादा कर्मचारियों की मदद करने के बाद आख़िरकार उन्हें अपने कर्मचारियों की संख्या कम करनी पड़ रही है. (bbc.com)
ट्रंप के कार्यकाल के आखिरी दिनों में अरबों डॉलर के हथियारों की बिक्री को लेकर करार हुए थे. सऊदी अरब और यूएई को हथियारों की बिक्री पर अस्थायी रोक के बाद नए प्रशासन का कहना है कि इसका उद्देश्य सौदे की समीक्षा करना है.
बाइडेन प्रशासन ने बुधवार को घोषणा की कि वह संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के साथ अरबों डॉलर के हथियारों के सौदे को अस्थायी रूप से निलंबित कर रहा है. विदेश विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक यह एक "सामान्य प्रशासनिक कदम" है क्योंकि हर नया प्रशासन निवर्तमान प्रशासन द्वारा किए गए बड़े हथियारों के सौदों की समीक्षा करता है. विदेश विभाग ने कहा है कि हथियारों की बिक्री पर अस्थायी रोक से बाइडेन प्रशासन को यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि "अमेरिकी हथियारों की बिक्री एक मजबूत, सक्षम और प्रतिभाशाली सुरक्षा साझेदार के निर्माण के हमारे रणनीतिक लक्ष्यों को पूरा करती है."
अमेरिका ने जो रोक लगाई उसमें यूएई को एफ-35 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति करने के लिए एक समझौता भी शामिल है. नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव के बाद ट्रंप ने यूएई के साथ स्टील्थ लड़ाकू विमान एफ-35 के लिए 23 अरब डॉलर का सौदा किया था. अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि और कौने से सौदे इस अस्थायी रोक से प्रभावित होंगे. पिछले साल 29 दिसंबर को विदेश विभाग ने सऊदी अरब को 29 करोड़ डॉलर की अत्याधुनिक तीन हजार मिसाइलों की बिक्री को भी मंजूरी दी थी.
बाइडेन ने अपने चुनाव अभियान के दौरान वादा किया था कि वे यमन में ईरान समर्थित विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी के नेतृत्व वाले युद्ध को रोकने के लिए सऊदी अरब को हथियारों की आपूर्ति में कटौती करेंगे. ट्रंप प्रशासन खाड़ी देशों को हथियारों की बिक्री को लेकर अधिक उदार था. ट्रंप खाड़ी देशों को अमेरिकी हथियारों की बिक्री की जमकर तारीफ भी कर चुके हैं.
अमेरिकी संसद ने कुछ हथियारों के सौदों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था, जिससे ट्रंप प्रशासन नाराज हो गया था, उसके बाद उसने सऊदी अरब को हथियारों की बिक्री को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया और जिसे संसद की समीक्षा प्रक्रिया के बिना लागू किया जा सकता था. उस वक्त डेमोक्रेट सीनेटर क्रिस मर्फी ने कहा था, "ट्रंप कानून में एक कमी का फायदा उठा रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि कांग्रेस उनके फैसले को पलट देगी...यमन में गिराने के लिए सउदी को बम बेचने का कोई नया आपातकालीन कारण नहीं है."
डेमोक्रेट्स के अलावा वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर इंटरनैशनल पॉलिसी समेत अन्य पर्यवेक्षकों ने हथियारों की बिक्री की आलोचना करते हुए कहा था इससे क्षेत्र में संघर्ष को बढ़ावा मिलेगा. बाइडेन प्रशासन ने इस बात की विस्तृत जानकारी नहीं दी कि वह किन अन्य सौदों की समीक्षा कर रहा है. बाइडेन ने सत्ता संभालने के साथ ही ट्रंप के कई फैसलों को या तो पलट दिया है या उनकी समीक्षा कर रहे हैं.
एए/सीके (एपी, एएफपी)
-सुमी खान
ढाका, 28 जनवरी | बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बुधवार को वर्चुअली देश में टीकाकरण अभियान का उद्घाटन करते हुए भारत सरकार का शुक्रिया अदा किया क्योंकि इस पड़ोसी मुल्क द्वारा उनके देश को कोविड-19 वैक्सीन की बीस लाख खुराकें भेंट स्वरूप दी गई है।
इस दौरान ढाका में स्थित कुर्मीटोला जनरल हॉस्पिटल (केजीएच) के नर्स रूनू वेरोनिका कोस्टा को पहली खुराक दी गई, जिसे प्रधानमंत्री ने वर्चुअली देखा। 21 और लोगों का टीकाकरण होने से पहले हसीना ने चार और लोगों को टीका लेते हुए देखा।
हसीना ने कहा कि जिस वक्त कई सारे देश कोविड-19 के खिलाफ अपने नागरिकों का टीकाकरण होने के लिए प्रतीक्षारत हैं, उस दौरान बांग्लादेश ने अपनी सीमित संसाधनों के साथ अभियान को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया है।
हसीना ने कहा, "हम समय पर वैक्सीन की खरीद कर पाने में सक्षम रहे हैं। आज का दिन बांग्लादेश के लिए एक ऐतिहासिक दिन है क्योंकि जहां कई देश अभी भी अपने नागरिकों में टीकाकरण अभियान को शुरू करवाने का इंतजार कर रहे हैं, हमने सीमित आर्थिक क्षमता और घनी आबादी के होते हुए भी ऐसा कर लिया है। आज यह साबित हो गया है कि हम जनता की हित में काम करते हैं।"
बांग्लादेश में कोविड-19 से 8,000 लोगों की मौत हो चुकी है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 28 जनवरी (आईएएनएस) वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 10.07 करोड़ से अधिक हो गई है, जबकि संक्रमण से हुई मौतों की संख्या 21.7 लाख से अधिक हो गई है। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय ने गुरुवार को दी।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने गुरुवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामलों और मृत्यु दर क्रमश: 100,755,075 और 2,170,608 है।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक प्रभावित देश है, जहां संक्रमण के 25,588,419 मामले और 428,862 मौतें दर्ज की गई हैं।
संक्रमण के लिहाज से भारत 10,689,527 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि देश में कोविड से मरने वालों की संख्या 153,724 है।
सीएसएसई के अनुसार, दस से अधिक मामले दर्ज करने वाले अन्य देश ब्राजील (8,933,356), रूस (3,733,692), ब्रिटेन (3,725,637), फ्रांस (3,165,449), स्पेन (2,670,102), इटली (2,501,147), तुर्की (2,449,839), जर्मनी (2,179,839), कोलंबिया (2,055,305), अर्जेंटीना (1,896,053), मेक्सिको (1,788,905), पोलैंड (1,489,512), दक्षिण अफ्रीका (1,430,648), ईरान (1,392,314), यूक्रेन (1,241,863), पेरू (1,107,239) और इंडोनेशिया (1,024,298) हैं।
संक्रमण से हुई मौतों के मामले में अमेरिका के बाद ब्राजील 218,878 आंकड़ों के साथ दूसरे स्थान पर है।
वहीं 20,000 से अधिक मौतें दर्ज करने वाले देश मेक्सिको (152,016), ब्रिटेन (102,085), इटली (86,889), फ्रांस (74,600), रूस (69,971), ईरान (57,651), स्पेन (57,291), जर्मनी (54,498), कोलंबिया (52,523), अर्जेंटीना (47,435), दक्षिण अफ्रीका (42,550), पेरू (40,107), पोलैंड (36,054), इंडोनेशिया (28,855), तुर्की (25,476), यूक्रेन (23,307) और बेल्जियम (20,879) हैं।
नई दिल्ली, 27 जनवरी| भारतीय वायुसेना के एक अधिकारी ने कहा, फ्रांस से नॉन स्टॉप उड़ान भरने के बाद बुधवार रात को तीन राफेल लड़ाकू विमान भारत में उतरे। तीनों लड़ाकू विमान आठ राफेल विमानों के मौजूदा बेड़े में जुड़ेंगे। भारतीय वायुसेना के एक अधिकारी ने कहा, विमान फ्रांस के इस्ट्रेस एयर बेस से उड़ान भ्रने के बाद राफेल विमानों की तीसरी खेप दिन में भारतीय वायुसेना के एक ठिकाने पर उतरा। उन्होंने इन-फ्लाइट ईंधन भरने के साथ 7,000 किमी से अधिक की उड़ान भरी।
राफेल लड़ाकू विमान का निर्माण फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट एविएशन द्वारा किया जाता है।
इससे पहले बुधवार को फ्रांस स्थित भारतीय दूतावास ने ट्वीट किया था कि एयर ईंधन भरने के साथ भारत के लिए तीन और राफेल जेट विमान नॉन स्टॉप फ्लाइट बनकर इस्ट्रेस से आए हैं।
भारतीय दूतावास ने कहा कि हमारे अद्भुत पायलटों को शानदार लड़ाकू विमानों के साथ एक चिकनी उड़ान और सुरक्षित लैंडिंग की बधाई।
तीन और विमानों के साथ भारतीय वायुसेना के पास अब 11 राफेल जेट सेवा में होंगे। इसके अलावा भारतीय वायुसेना के पायलटों को फ्रांस के सेंट-डिजियर एयर बेस पर बैचों में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
भारत को 29 जुलाई, 2020 को पांच राफेल विमानों का पहला बैच मिला था, जिन्हें अंबाला एयर बेस पर 10 सितंबर को 17 'गोल्डन एरो' स्क्वाड्रन में शामिल किया गया था।
राफेल लड़ाकू विमानों का दूसरा जत्था फ्रांस से नॉन स्टॉप उड़ान भरने के बाद 4 नवंबर 2020 को भारत पहुंचा था।
भारत ने फ्रांस के साथ 59,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल जेट खरीदने के लिए एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। (आईएएनएस)
ब्रिटेन में बेरोजगारी दर कोरोना महामारी के कारण पिछले साढ़े साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. लॉकडाउन के कारण खत्म हुए रोजगारों ने भारतीय समुदाय पर औसत से ज्यादा असर डाला है.
डॉयचे वैले पर स्वाति बक्षी का लिखा-
"मैं एक मार्केट रिसर्च फर्म में काम करती थी लेकिन सालों पहले मैंने ये सोचकर उसे छोड़ दिया था कि अपना बॉस खुद बनूंगी. एक दोस्त ने सुझाया कि ड्राइविंग इंस्ट्रक्टर बन जाओ, अपनी जिंदगी पर पूरी लगाम रहेगी, और मैंने लाइसेंस हासिल कर लिया. लेकिन कोविड के चलते पिछले मार्च से लॉकडाउन का जो सिलसिला शुरू हुआ तो मेरा रोजगार पूरी तरह से ठप हो गया." लंदन के पूर्वी इलाके में रहने वाली बेला सूरी उन हजारों भारतीयों में से हैं जिनके स्व-रोजगार पर कोविड महामारी का सीधा असर पड़ा है. उनका काम ऐसा है जिसमें सोशल डिस्टेंसिग जैसी बातों को लागू नहीं किया जा सकता और फिलहाल काम पर लौटने की दूर तक संभावना नहीं है.
सरकारी नियमों के मुताबिक ड्राइविंग इंस्ट्रक्टर कोरोना प्रतिबंधों के कारण इस समय काम नहीं कर सकते. बेला सूरी करीब सोलह साल से ये काम कर रही हैं और इसके अलावा वे और कोई काम नहीं कर सकतीं. वे कहती हैं, "मेरे पास और कोई हुनर नहीं है. समझ नहीं आता कि आमदनी के लिए अब मैं क्या करूंगी.' बेला की आवाज में घुली बेबसी फिलहाल किसी दिलासे से दूर नहीं की जा सकती. खासकर तब जब आधिकारिक आंकड़े निराशाजनक हालात बयां कर रहे हों.
ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ओएनएस के नए आंकड़े बताते हैं कि सितंबर से नवंबर के बीच बेरोजगारी दर पांच फीसदी रही है और सोलह साल से ऊपर के करीब सत्रह लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं. एक अन्य आर्थिक संस्था, ऑफिस फॉर बजट रेस्पॉन्सिबिलिटी (ओबीआर) के नवंबर 2020 के आंकड़े पहले ही कह चुके हैं कि साल 2021 के मध्य तक बेरोजगार लोगों की संख्या बढ़कर छब्बीस लाख हो जाएगी. अर्थव्यवस्था के कुछ खास क्षेत्रों पर महामारी का बेहद गंभीर असर पड़ा है. होटल उद्योग, पर्यटन और मनोरंजन से जुड़ी कंपिनयां और रीटेल उद्योग में काम करने वाले लोगों की नौकरियां पर भयंकर चोट हुई है और हजारों लोगों को नौकरियों से बाहर कर दिया गया है. सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले शहरों में लंदन है जहां बेरोजगारी दर, राष्ट्रीय औसत से डेढ़ फीसदी ज्यादा यानी साढे छह प्रतिशत रही.
एक भी ग्राहक नहीं
लंदन के डेगेनहेम इलाके में रहने वाले मनोज लूक बताते हैं, "मैं दुनिया की सबसे बड़ी फूड सर्विस कंपनी में शेफ था. मार्च में जब लॉकडाउन हुआ तो हमें लगा कि बस कुछ दिनों की बात है, लेकिन हफ्ते महीनों में और महीने साल में बदलते चले गए. शुरू में सरकार की फरलो स्कीम का फायदा था लेकिन बाद में जब सरकार ने कंपनियों को भी कर्मचारियों की तनख्वाह में कुछ हिस्सेदारी करने को कहा तो सूरत बदलने लगी. सितंबर में हमें नोटिस दिया गया कि अनिश्चितता को देखते हुआ नौकरियां खत्म की जा रही हैं. मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि पंद्रह साल तक काम करने के बाद भी जीवन में एक दिन ऐसा आ सकता है.'
ओएनएस के ही आंकड़े बताते हैं कि सितंबर से नवंबर के बीच तीन लाख पच्चान्बे हजार लोगों को नौकरियों से बाहर कर दिया गया. रोजगार खोने वाले भारतीयों में, मनोज से मिलता जुलता कड़वा अनुभव रहा, गैटविक एयरपोर्ट स्थित एक बड़े होटल में काम करने वाले एक अन्य भारतीय लॉरेंस डिसूजा का. लॉरेंस बताते हैं, "मैं असिस्टेंट फूड ऐंड बेवरेज के तौर पर काम कर रहा था. मार्च से जब लॉकडाउन हुआ तो बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया. मार्च से जुलाई तक तो फरलो के तहत तनख्वाह मिल रही थी लेकिन बाद में जब कंपनियों की तरफ से कुछ हिस्सा देने की बात आई तो हर जगह लोगों के कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने लगे. लंदन में मेरे बहुत से दोस्तों के साथ यही हुआ. इतना ज्यादा असर इस वजह से भी हुआ कि होटल उद्योग पूरी तरह से पर्यटकों पर निर्भर है, यहां भारत जैसे देशों की तरह स्थानीय मांग नहीं है. मेरे दोस्त बताते हैं कि उनकी बुकिंग किताबों में इस साल के अंत तक फिलहाल एक भी कस्टमर का नाम नहीं है. ऐसे हाल में कब तक काम चलाया जा सकता है.'
क्या हैं विकल्प
कोविड महामारी के आर्थिक असर को गहराई से टटोलने पर कुछ बातें बहुत साफ तौर पर दिखाई देती हैं. मसलन स्वनियोजित या सीमित अवधि के करार पर काम करने वाले लोगों पर ज्यादा असर हुआ जबकि प्रशासनिक या सूचना-प्रौद्योगिकी से जुड़ी नौकरियों में पर्मानेंट कॉन्ट्रैक्ट या पक्की नौकरी पर काम करने वाले लोगों का रोजगार बचा रहा क्योंकि वो घर से ही काम कर सके. इसके अलावा, वो उद्योग जो पारंपरिक तौर पर सस्ते प्रवासी कामगारों पर निर्भर रहे हैं, उनके बंद होने से गहरा असर पड़ा है जैसे होटल और खाद्य सेवाओं से जुड़ी कंपनियों में प्रवासी कर्मचारियों की संख्या काफी ज्यादा है.
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय स्थित माइग्रेंट ऑब्जर्वेट्री का शोध बताता है कि करीब बीस फीसदी प्रवासी कामगार खान-पान और होटल व्यवसाय से जुड़े हैं. कोविड के चलते ये क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ क्योंकि रेस्टोरेंट और होटल जैसी जगहों में भी लोगों से दूरी बनाकर सुरक्षित तरीके से काम करने की संभावनाएं बहुत सीमित हैं और इन्हें बंद रखना पड़ा. खान-पान, होटल व्यवसाय, होलसेल और रिटेल तथा मैन्युफैक्चरिंग में करीब 600,000 नौकरियां खत्म हो गई हैं जो कुल नौकरियों का 70 प्रतिशत है. इनमें ज्यादातर अश्वेत, एशियन और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग काम करते हैं.
चूंकि भारतीय कर्मचारियों की संख्या भी इस क्षेत्र में काफी ज्यादा है, इसलिए इस क्षेत्र में नौकरियां खोने वाले लोगों में भारतीय बड़ी संख्या में हैं. हालांकि लोग निराशा के बावजूद, रोजगार के दूसरे अवसरों को खोजने और अपने विकल्प समझने की कोशिशों में लगे हुए हैं. कुछ को इंतजार है कि शायद इन्हीं परिस्थितियों से कोई नई दिशा दिखाई दे जाए. (dw.com)
(पहचान गुप्त रखने के उद्देश्य से कुछ नाम बदले गए हैं.)
याउंड, 27 जनवरी| कैमरून के पश्चिमी क्षेत्र में एक राजमार्ग पर ट्रक और बस के टक्कर में जोरदार भिड़ंत हो गई, जिससे कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई और 38 अन्य घायल हो गए। पुलिस ने बुधवार को यह जानकारी दी। एक पुलिस अधिकारी जोन्स नंदा ने कहा कि यह घटना सुबह करीब 3:30 बजे (स्थानीय समय) दिनदहांग शहर के पास घटी।
नंदा ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को फोन पर बताया, "14 शव को पहले ही मलबे से निकाला जा चुका है। हम अभी और शवों को तलाश रहे हैं।"
सिन्हुआ ने बताया कि घायलों को इलाज के लिए नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।(आईएएनएस)
कोरोना वायरस की महामारी पर काबू पाने के लिए जर्मनी हवाई यात्रा पूरी तरह से बंद करने पर विचार कर रहा है. तमाम कोशिशों और तीन महीने से तालाबंदी के बाद भी वायरस का संक्रमण रोका नहीं जा सका है.
जर्मनी के गृह मंत्री होर्स्ट जेहोफर ने मंगलवार को हवाई यात्रा पर रोक लगाने की बात कही. जर्मन टेब्लॉयड बिल्ड से बातचीत में गृहमंत्री ने कहा, "वायरस के अलग अलग म्यूटेशनों ने हमें विवश किया है कि हम कुछ ज्यादा बड़े उपायों को लागू करने पर विचार करें. सीमा पर कठोर जांच खास तौर से ज्यादा जोखिम वाली सीमाओं पर हालांकि इसके साथ ही जर्मनी से हवाई यात्रा को भी लगभग शून्य कर देना होगा जैसा कि इस्राएल फिलहाल कर रहा है."
बीते साल महामारी के जर्मनी में पैर फैलाने पर अप्रैल में 4 हजार से कुछ ज्यादा उड़ानों का संचालन हो रहा था. अगस्त आते आते यह संख्या बढ़ कर 16 हजार से ज्यादा हो गई. नवंबर से इनमें फिर गिरावट आनी शुरू हो गई और वर्तमान में करीब 9 हजार उड़ानों का संचालन हो रहा है. सरकार की तरफ से आ रहे बयानों से संकेत मिल रहा है कि इन्हें फिर से घटा कर चार हजार या और कम किया जा सकता है.
ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में कोविड-19 के नए संस्करण सामने आए हैं जो ज्यादा तेजी से फैल कर मुसीबत बढ़ा रहे हैं. बावेरिया राज्य के बायरयूथ शहर के एक अस्पताल के 99 कर्मचारी कोरोना से संक्रमित हुए हैं. ये लोग ब्रिटेन में सामने आए नए संस्करण की चपेट में आए हैं. अस्पताल के 3000 कर्मचारियों को सिर्फ घर से अस्पताल और वापस घर जाने की अनुमति ही दी गई है. अस्पताल आपातकालीन मामले छोड़कर दूसरे मरीजों का इलाज नहीं कर पा रहा है. राजधानी बर्लिन का एक अस्पताल भी इसी तरह की स्थिति का सामना कर रहा है.
ऐसी स्थिति में पहले से ही वायरस के विस्तार को रोक पाने में नाकाम हो रहे देशों के लिए नई चुनौती खड़ी हो गई है. इसके अलावा उम्मीद से कम तेज चल रहे टीका लगाने के कार्यक्रम ने भी चिंता बढ़ा दी है.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भी अपनी पार्टी के सांसदों को संबोधित करने के दौरान इस बात का अंदेशा जताया. पार्टी में मौजूद सूत्रों के हवाले से समाचार एजेंसी एएफपी ने खबर दी है कि चांसलर मान रही हैं कि यह समय यात्रा के लिए उचित नहीं है. ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में हवाई यात्रा को पूरी तरह से बंद किया जा सकता है.
बीते साल वसंत के मौसम में कोरोना की महामारी से जंग में बेहतर प्रदर्शन करने वाला जर्मनी दूसरे दौर के बीते कुछ महीनों में बुरी तरह लड़खड़ा गया है. नवंबर महीने में यहां फिर से पाबंदियां लगा दी गईं जो गुजरते हफ्तों के साथ सख्त होती जा रही हैं. जरूरी चीजों को छोड़ बाकी दुकानें तो पहले से ही बंद है. दफ्तर आने वाले कर्मचारियों की संख्या भी लगातार घटाने की कोशिश हो रही है.
कोरोना के नए संस्करण वाले देशों से आने वाले यात्रियों को जर्मन सीमा में घुसने से पहले कोरोना टेस्ट में निगेटिव रहने का प्रमाण देना पड़ रहा है. इसकी वजह से जर्मनी और चेक की सीमा पर लंबे कतार लग गई है. जर्मनी में महामारी की शुरुआत के बाद से अब तक करीब 20 लाख लोग इसकी चपेट में आए हैं. इसके साथ ही करीब 52,000 लोगों नेअपनी जान गंवाई है.
एनआर/ओएसजे(एएफपी)
तालिबान ने कहा है कि वह अफगानिस्तान में कोरोना वैक्सीन अभियान को अपना समर्थन देगा. अफगानिस्तान को डब्ल्यूएचओ ने कोवैक्स कार्यक्रम के तहत 11.2 करोड़ डॉलर सहायता देने का वादा किया है.
अफगानिस्तान सहायता विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवैक्स कार्यक्रम के तहत दी जा रही है. तालिबान ने यह घोषणा ऐसे समय में की है जब पिछले साल सितंबर से उसकी और सरकार के बीच शांति वार्ता चल रही है. बातचीत के बावजूद देश में हिंसा का दौर जारी है और आतंकवादी घटनाएं कम नहीं हो रही हैं. इस बीच तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उनका समूह टीकाकरण अभियान को "मदद और सुविधा" देगा.
टीकाकरण अभियान अफगानिस्तान में स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से चलाया जाएगा. सरकार का मानना है आतंकी टीकाकरण कार्यक्रम के सदस्यों पर हमला नहीं करेंगे क्योंकि वे दरवाजे तक नहीं जाएंगे. फंडिंग की घोषणा करते हुए स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा यह कार्यक्रम देश की 3.8 करोड़ आबादी के 20 प्रतिशत तक पहुंच पाएगा.
भारत भी देगा मदद
कोवैक्स एक वैश्विक पहल है जिसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि सभी देशों को, भले ही उनकी आय का स्तर जो भी हो, कोविड-19 का टीका तेजी से और समान तरीके से पहुंचे. डब्ल्यूएचओ साल के अंत तक दो अरब वैक्सीन दुनिया के सबसे जोखिम वाले 20 प्रतिशत लोगों तक पहुंचाना चाहता है. इसके तहत उसने 91 देशों तक टीका पहुंचाने का लक्ष्य रखा है.
अफगानिस्तान के उप स्वास्थ्य मंत्री वहीद मोजराह ने पत्रकारों को बताया कि वैक्सीन मिलने में छह महीने तक लग सकते हैं लेकिन अधिकारी जल्द पाने की कोशिशों में लगे हुए हैं. अफगानिस्तान में अब तक कोरोना वायरस के 54,854 मामले दर्ज किए जा चुके हैं और 2,390 लोगों की मौत हुई है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जांच में कमी और चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच सीमित होने के कारण कम मामले दर्ज किए जा रहे हैं. युद्धग्रस्त देश होने के कारण स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है.
अफगानिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय में टीकाकरण विभाग प्रमुख गुलाम दस्तगीर नाजरी के मुताबिक कोवैक्स के अलावा देश को भारत से एस्ट्राजेनेका की पांच लाख खुराकें भी मिलने वाली हैं. नाजरी के मुताबिक, "एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन जो भारत में निर्मित हो रही है वह जल्द अफगानिस्तान आएगी." भारत सरकार के एक सूत्र ने पुष्टि की है कि पांच लाख खुराकें अफगानिस्तान के लिए अलग रख दी गई हैं. एक और अधिकारी ने बताया कि वैक्सीन की पहली खेप फरवरी में अफगानिस्तान पहुंच जाएगी. हालांकि काबुल ने लोगों को वैक्सीन देने के प्रोटोकॉल को अब तक नहीं अपनाया है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
लुसाने, 27 जनवरी | अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने इस साल जुलाई-अगस्त में होने वाले टोक्यो ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों में भाग लेने वाली टीमों और खिलाड़ियों से कोविड-19 वैक्सीन लगवाने का अनुरोध किया है। आईओसी वेबसाइट की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, आईओसी के अध्यक्ष थामस बाक ने आगामी टोक्यो ओलंपिक खेलों और 2022 बीजिंग विंटर गेम्स की तैयारियों को लेकर राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (एनओसीएस) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ शुक्रवार को ही सलाह मशविरा किया है।
आईओसी ने कहा कि कोविड-19 काउंटरमेशर्स का एक टूलबॉक्स विकसित किया गया है, जिसमें आव्रजन प्रक्रियाएं, संगरोध उपाय, परीक्षण, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण, संपर्क ट्रेसिंग और वैक्सीन भी शामिल हैं।
बयान में कहा गया है, " वैक्सीन टूल बॉक्स में उपलब्ध कई उपकरणों में से एक हैं, जिनका उपयोग उचित समय और उचित तरीके से किया जाना है। कमजोर समूहों, नर्सों, चिकित्सा डॉक्टरों और हर कोई जो हमारे समाजों को सुरक्षित रख रहा है, टीकाकरण की प्राथमिकता का ²ढ़ता से समर्थन करता है।"
टोक्यो ओलंपिक का आयोजन पिछले साल जुलाई-अगस्त में होना था, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे इस साल तक के लिए टाल दिया गया था और इसका आयोजन इस साल जुलाई-अगस्त में होगा। (आईएएनएस)
अमेरिकी संसद के उच्च सदन सीनेट में पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने के लिए पांच रिपब्लिकन सांसदों को छोड़ सभी ने पक्ष में मतदान किया. ट्रंप को हिंसा के लिए दोषी ठहराना असंभवन हो गया है.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को महाभियोग मामले में दोषी ठहराए जाने की कोशिश लगता है सफल नहीं हो पाएगी. मंगलवार को सीनेट में इस पर मतदान कराया गया गया. सीनेट में ट्रंप के पक्ष में 45 के मुकाबले 55 मत पड़े जो दो तिहाई बहुमत (67) से 12 मत कम थे. मतदान सफल तो रहा, लेकिन डेमोक्रैट पार्टी के पक्ष में उतने मत नहीं मिले जो ट्रंप को दोषी करार दिए जाने के लिए पर्याप्त हो. इससे पता चलता है कि महाभियोग के खिलाफ न केवल रिपब्लिकन सांसदों का बहुमत है, बल्कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप का अभी भी पार्टी पर काफी नियंत्रण है. मतदान से यह भी साफ हो जाता है कि ट्रंप को कैपिटल हिल में 6 जनवरी को हुई हिंसा के लिए "उकसाने" के लिए दोषी ठहराए जाने की संभावना बहुत कम है.
रिपब्लिकन सदस्य रैंड पॉल ने ट्रंप पर महाभियोग लगाए जाने की प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिए जाने के संबंध में सीनेट में एक प्रस्ताव पेश किया जिस पर मतदान हुआ और उसे सीनेट ने 55-45 के अंतर से खारिज कर दिया. इस मामले में ट्रंप की पार्टी के लिए अच्छी बात यह रही कि इस मतदान में रिपब्लिकन पार्टी के पांच सांसदों का साथ कुछ डेमोक्रैट सांसदों ने भी दिया जिसके परिणामस्वरूप इस बात की संभावना मजबूत होती दिख रही है कि महाभियोग मामले में ट्रंप को दोषी ठहराए जाने की कोशिश संभव है कि नाकाम हो जाएगी.
8 फरवरी से सीनेट में ट्रंप के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की शुरूआत होगी, लेकिन बड़ी संख्या में रिपब्लिकन इसका विरोध करेंगे. ट्रंप को कैपिटल हिल पर हिंसा के लिए प्रतिनिधि सभा में 13 जनवरी को पहले ही आरोपित किया जा चुका है, जिसमें एक पुलिस अधिकारी समेत पांच लोग मारे गए थे. अमेरिका के इतिहास में ट्रंप एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन पर दो बार महाभियोग का मामला चलाया गया है. इस मामले में पहली सुनवाई 8 फरवरी को होनी है.
मतदान के बाद पत्रकारों से बात करते हुए पॉल ने कहा, "45 वोट का मतलब है कि महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगी." सोमवार को प्रतिनिधि सभा के एक प्रतिनिधिमंडल ने सीनेट को आरोप पत्र सौंपा था जिसमें ट्रंप पर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 6 जनवरी को अपने हजारों समर्थकों को अमेरिकी संसद पर हमला करने के लिए उकसाया था.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स)
डच पुलिस ने हिंसा को काबू में रखने के लिए देशभर में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है. लगातार तीन रात देश में हिंसक घटनाएं दर्ज की गईं. प्रदर्शनकारी रात के सख्त कर्फ्यू के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.
नीदरलैंड्स में मंगलवार को स्थिति तनावपूर्ण बनी रही. डच सरकार ने कोरोना वायरस के नए संस्करण को रोकने के लिए कड़ी पाबंदियां लगाईं हैं जिसके खिलाफ लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. लगातार तीन रातों से कर्फ्यू के दौरान हिंसा, आगजनी और विरोध प्रदर्शन हुए. सरकार ने कोरोना वायरस महामारी को नियंत्रित करने के लिए रात के कर्फ्यू सहित कई नए प्रतिबंधों की घोषणा की है. पुलिस ने हिंसक दंगों को रोकने के लिए देश भर के कस्बों और शहरों की सड़कों पर मार्च किया, जबकि व्यवसाय जल्दी बंद हो गए और दुकानें भी समय से पहले बंद कर दी गईं.
मंगलवार की रात 9 बजे जब कर्फ्यू लागू हुआ तो हुड़दंग करने वाले कुछ युवा एम्स्टर्डम और हिलवेर्सुम में इकट्ठा हुए लेकिन उन्हें खदेड़ दिया गया. रॉटरडम में पुलिस ने 33 लोगों को सामाजिक दूरी के नियमों का पालन नहीं करने और तोड़फोड़ के आरोप में हिरासत में लिया. यह सोमवार की रात के बिल्कुल विपरीत था, जब देश भर में पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं थी. 180 लोगों को गाड़ियों में आग लगाने और लूटपाट करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद नीदरलैंड में लगाए गए पहले राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू के विरोध में राजधानी समेत कई शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं.
राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख विलेम वोल्डर्स ने डच पब्लिक टेलीविजन को बताया, "कल के मुकाबले आज बिल्कुल दूसरी तस्वीर थी. हमें दंगा रोधी पुलिस या अन्य सुरक्षाबलों की जरूरत नहीं पड़ी." लेकिन उन्होंने आगाह किया कि एक रात की शांति का मतलब यह नहीं है कि वे सतर्क रहना छोड़ देंगे. वोल्डर्स ने कहा, "हमें सतर्क रहना होगा."
सोशल मीडिया से भड़की हिंसा?
सरकार ने कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के प्रयास में कर्फ्यू और कुछ नए प्रतिबंधों की घोषणा की थी, जिसके बाद देशभर के कई शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए. सोशल मीडिया पर दुकानों में लूटपाट की तस्वीरें तेजी से वायरल हुई. एक तस्वीर में एक पत्रकार पर पथराव करते हुए देखा जा सकता है. प्रदर्शनकारियों ने पहली रात एक कोरोना परीक्षण केंद्र में भी आग लगा दी थी. हाल के सालों में नीदरलैंड्स में इस तरह की हिंसा नहीं देखी गई है. हिंसा की शुरूआत सख्त लॉकडाउन के खिलाफ हुई, जो कि मध्य दिसंबर के बाद से लागू है लेकिन सोशल मीडिया में घूम रहे संदेशों के कारण भीड़ द्वारा लूटपाट की घटना में यह तब्दील हो गई. सोमवार की रात को उपद्रवियों ने रॉटरडम और डेन बॉश में पुलिस पर पथराव किया, पटाखे छोड़े और दुकानों में लूटपाट की.
प्रधानमंत्री मार्क रुटे ने ट्वीट कर लिखा, "यह आपराधिक हिंसा बंद होनी चाहिए." उन्होंने कहा, "दंगों का आजादी के लिए संघर्ष करने से कोई लेना देना नहीं है. हमें एक साथ वायरस के खिलाफ लड़ाई जीतनी है, क्योंकि यह हमारी आजादी वापस पाने का एकमात्र तरीका है." देश के न्याय मंत्री फेर्ड ग्रेपरहॉस ने मंगलवार को कहा कि दंगा करने वाले जल्द ही कोर्ट में पेश किए जाएंगे और दोषी पाए जाने पर जेल की सजा पाएंगे.
देश में कर्फ्यू का समय रात 9 बजे से लेकर सुबह 4.30 बजे तक है और 10 फरवरी तक जारी रहने की उम्मीद है. कर्फ्यू का उल्लंघन करने वालों पर 8,400 रुपये के करीब का जुर्माना लगाया जा सकता है. नीदरलैंड्स में अब तक कोरोना वायरस के कारण 13,650 लोग मारे जा चुके हैं.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स, डीपीए)
जर्मनी आप्रवासियों का देश है. यहां रहने वाले लोगों में करीब 20 फीसदी विदेशी मूल के हैं. एक सर्वे के अनुसार यहां रहने वाले तुर्की, पोलिश या रूसी मूल के लोग मूल जर्मनों के मुकाबले ज्यादा धार्मिक प्रवृति के हैं.
धार्मिक आस्था के बारे में प्रतिनिधि सर्वे सत्ताधारी पार्टी सीडीयू से जुड़े कोनराड आडेनावर फाउंडेशन ने कराया है. इस सर्वे के अनुसार तुर्क मूल के जिन लोगों से सवाल किए गए उनमें से 82 प्रतिशत ने कहा कि वे कुछ धार्मिक या अत्यंत धार्मिक हैं. करीब आधे लोगों ने माना कि वे रोज नमाज पढ़ते हैं. पोलिश और रूसी मूल के लोगों में करीब आधे खुद को थोड़ा या अत्यंत धार्मिक मानते हैं. सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत लोगों ने इस सर्वे में कहा है कि वे अपने आपको को कतई धार्मिक नहीं मानते.
इसके विपरीत ऐसे जर्मनों का, जिनका विदेशों में कोई मूल नहीं रहा है, उनमें से 38 प्रतिशत ने कहा कि वे कतई धार्मिक नहीं हैं. 13 प्रतिशत ने कहा कि वे शायद ही धार्मिक हैं जबकि 39 प्रतिशत ने कहा कि वे कुछ धार्मिक हैं. मूल रूप से जर्मन लोगों में सिर्फ 9 प्रतिशत ने अपने आपको अत्यंत धार्मिक बताया. आप्रवासी समाज में साझा क्या नाम वाले इस सर्वे के लिए अक्टूबर 208 से फरवरी 2019 के बीच 3003 लोगों से टेलिफोन पर सवाल पूछे गए थे.
अंतरधार्मिक विवाह पर मतांतर
सर्वे में शामिल लोगों से ये भी पूछा गया कि यदि उनकी बेटी किसी ईसाई, मुस्लिम या यहूदी से शादी करती है तो उन्हें कैसा लगेगा? विभिन्न गुटों में इस सवाल पर जवाब में बहुत अंतर दिखा. मूल जर्मनों में सिर्फ दो प्रतिशत ने ईसाई दामाद पर एतराज दिखाया जबकि 11 प्रतिशत को यहूदी दामाद पर और 23 प्रतिशत को मुस्लिम दामाद पर ऐतराज था.
पोलिश मूल के लोगों में 61 प्रतिशत ऐसे थे जिन्हें अपनी बेटी का किसी मुस्लिम से शादी करना पसंद नहीं था. 39 प्रतिशत ने यहूदी दामाद को भी अस्वीकार कर दिया. तुर्क मूल के लोगों ने 47 प्रतिशत को उनकी बेटी
जर्मनी के कारोबारी शहर फ्रैंकफर्ट में एक आदमी ने चाकू से हमला कर कई लोगों को घायल कर दिया. हमलावर को पकड़ लिया है, लेकिन हमले के कारणों का पता नहीं है. पुलिस मामले की जांच कर रही है.
फ्रैंकफर्ट के रेलवे स्टेशन इलाके में एक आदमी ने कई लोगों पर चाकू से हमला किया और उन्हें घायल कर दिया. 24, 40 और 78 साल के गंभीर रूप से घायल लोगों को इलाज के लिए तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. यह इलाका बहुत भीड़ भरा इलाका है क्योंकि ट्रेन से शहर आने वाले बहुत से लोग यहां से होकर गुजरते हैं. इसके अलावा इस इलाके में बहुत ही दुकानें भी हैं.
पुलिस के प्रवक्ता थॉमस होलरबाख ने कहा, "लगभग नौ बजे लड़ाई हो गई जिसमें चाकू का इस्तेमाल किया गया. इसमें कई लोग घायल हो गए." मंगलवार को अपराध स्थल पर जांच के दौरान होलरबाख ने कहा, "परिणामस्वरूप हमने एक संदिग्ध को गिरफ्तार किया है.”
घटनास्थल पर और उसके पास स्थित कैफे की खिड़की पर खून के छींटे हटाए नहीं गए थे. खिड़की के पीछे एक साल पहले हानाऊ में हुए हमले के पीड़ितों की तस्वीरें हैं. जांच अधिकारी घटनास्थल पर सुराग तलाश रहे हैं, इलाकें की सड़कें सुनसान पड़ी हैं. रेलवे स्टेशन का इलाका ड्रग कारोबार का केंद्र है, जांच के लिए बड़े इलाके में पुलिस ने नाकेबंदी कर दी है.
पुलिस के अनुसार सुबह करीब नौ बजे घटनास्थल पर 42 वर्षीय संदिग्ध अपराधी ने फुटपाथ पर पड़े एक आदमी को मारा, लातों से मारा और चाकू से हमला करने की कोशिश की. 40 वर्षीय व्यक्ति खड़ा हो गया और हमले को रोकने में कामयाब रहा, लेकिन गंभीर रूप से घायल हो गया. अपराधी ने उसे छोड़कर दो और तीन अन्य लोगों पर चाकुओं से हमला कर दिया.
प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को सतर्क किया और उस आदमी को जल्दी से गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के समय उसके हाथ में चाकू था. वह खुद भी थोड़ा घायल हो गया था और पुलिस ने उसका इलाज करवाया. पुलिस का कहना है कि अभी तक ये पता नहीं है कि हमलावर और पीड़ितों को कोई संबंध है या नहीं, क्या वे एक दूसरे को जानते हैंऔर क्या उनके बीच पहले भी झगड़ा हुआ था.
42 वर्षीय संदिग्ध हमलावर के खिलाफ हत्या की कोशिश करने के आरोप में जांच चल रही है. अपराध की पृष्ठभूमि अभी साफ नहीं है. जांच में पुलिस ने एक ड्रोन का भी इस्तेमाल किया और गवाहों से पूछताछ की गई. पुलिस ये भी पता कर रही है कि क्या घटनास्थल की कोई वीडियो रिकॉर्डिंग मौजूद है.
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दक्षिण अफ्रीका में मुस्लिम समुदाय के लोग, कोविड-19 की वजह से मरे लोगों के शव को रीतियों और सम्मान के साथ नहला कर दफना रहे हैं. कोविड से बचने के लिए पहने जाने वाली पीपीई किट भी इसमें बाधा नहीं बन रही है.
"हम अल्लाह के हैं और उसके पास हम लौट आएंगे. पहला गुसल खाना.” कोविड-19 के पीड़ितों के लिए समर्पित एक कमरे के दरवाजे पर गुसल यानी सफाई की रस्म का हवाला देते हुए यह संदेश लिखा हुआ है.
कोविड-19 से मरे व्यक्ति के शव को कफन में लपेटा गया और ताबूत में रखा गया. इसके बाद, जोहानिसबर्ग के बाहरी इलाके में लगभग 1,00,000 की आबादी वाले समुदाय, लेनोसिया के एक कब्रिस्तान में सभी परंपराओं का पालन करते हुए उसे दफनाया गया. दफनाने से पहले शव को परंपराओं के मुताबिक नहलाया भी गया. इस दौरान वहां मौजूद लोगों की सुरक्षा पर भी पूरा ध्यान था. यह सब स्थानीय लोगों की एकजुटता की वजह से संभव हो पाया है. इसमें साबरी चिश्ती संगठन का अहम योगदान है.
24 घंटे के भीतर दफन
कोविड की वजह से दक्षिण अफ्रीका में काफी ज्यादा लोगों की मौत हुई है. इन मौतों को देखते हुए, साबरी चिश्ती संगठन अब सुरक्षित तरीके से मृतकों के शरीर को दफन करने का काम कर रहा है. संगठन की टीम ने तो मौत के 12 घंटे के अंदर ही कई शव को सुरक्षित तरीके से दफना दिया. इस्लामिक परंपरा में 24 घंटे के भीतर शव को दफन करना होता है. संगठन इस बात का पूरा ख्याल रखता है कि सारा काम 24 घंटे के भीतर पूरा हो जाए.
साबरी चिश्ती सोसायटी के चेयरमैन अबू बकर सईद हैं. सईद कहते हैं, "हमने कोविड के दौरान विदेशों की कई खबरें देखीं. काफी संख्या में लोगों की मौत की खबर सुनी. बड़ी संख्या में शव को दफनाने की खबर सुनी. तब हमने खुद से पूछा कि अगर हमारा देश इस बीमारी की चपेट में आता है, तो क्या हम इससे निपटने के लिए तैयार होंगे?”
पिछले 30 वर्षों से अधिक समय से साबरी चिश्ती एंबुलेंस सेवा और आपातकालीन स्थितियों में लोगों की दूसरे तरीकों से मदद करती है. इस एंबुलेंस सेवा को चलाने के लिए समुदाय के लोग चंदा देते हैं. कोविड-19 की बीमारी फैलने के बाद इस सेवा का विस्तार किया गया है. एम्बुलेंस से मरीजों के लिए ऑक्सीजन भी पहुंचाया जा रहा है.
कोविड की चुनौती
कोविड महामारी के दौरान पूरी दुनिया में मुस्लिम समुदाय के सामने, "परंपरागत तरीके से शव को दफन” करने की चुनौती आ खड़ी हुई. दक्षिण अफ्रीका में सामाजिक संगठन ने मेडिकल विशेषज्ञों से शवों को सुरक्षित तरीके से धोने और दफनाने के बारे में सलाह ली. सईद कहते हैं, "इमामों ने हमारे वॉलंटियरों को ट्रेनिंग दी. यह हमारी युवा पीढ़ी के लिए, खुद को क्रिक्रेट के मैदान पर बल्लेबाज के तौर पर साबित करने जैसा था. ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्हें अपनी पिछली पीढ़ी की परंपराओं को आगे बढ़ाना था. उन्हें सीखना था.”
इस समूह ने जोहानिसबर्ग, डरबन और केपटाउन के अन्य हिस्सों में मुस्लिम समुदायों के साथ अपने दिशानिर्देशों को साझा किया और उन्हें ट्रेनिंग दी. सईद बताते हैं, "सफाई की रस्म के समय परिवार के सदस्यों को भी मृतक को देखने की अनुमति मिलती है. हालांकि, कोविड से मरने पर सबसे खराब बात ये है कि परिवार के सदस्य अपने परिजन को अलविदा नहीं कह सकते लेकिन सुरक्षित तरीके से सफाई की रस्म की वजह से वे अपने अजीज को अंतिम समय में देख पा रहे हैं. मैंने उस समय यह नहीं सोचा था कि इससे मेरे परिवार को या मुझे मदद मिलेगी.”
सईद के पिता और चाचा दोनों की मौत पिछले साल जुलाई महीने में कोविड की वजह से हो गई. दोनों को एक-दूसरे के बगल में दफनाया गया. सईद भावुक होते हुए कहते हैं, "इस रस्म से मुझे काफी ज्यादा मदद मिली.” उनके पिता संगठन के प्रेसिडेंट और चाचा चेयरमैन थे. अब सईद, संगठन के चेयरमैन हैं. वे कहते हैं, "सोसायटी ने ऐसे 180 लोगों को दफनाया है जिनकी मौत कोविड-19 की वजह से हुई."
ज्यादा कब्रों के साथ तैयारी
कब्रिस्तान में काफी ज्यादा कब्रें खोदी गई हैं. ऐसे में, दफनाने के लिए पर्याप्त जगह है. घर पर हल्के लक्षणों वाले लोगों की मदद के लिए साबरी चिश्ती एंबुलेंस सेवा का भी विस्तार हुआ है. अन्य संगठनों के सहयोग से, घर में रोगियों की देखभाल के लिए 70 ऑक्सीजन सिलिंडर की व्यवस्था की गई है. कई डॉक्टर भी अपनी सेवा दे रहे हैं.
दक्षिण अफ्रीका में एक बार फिर कोरोना तेजी से फैल रहा है. पहले के मुकाबले इस बार दोगुनी संख्या में लोग प्रभावित हो रहे हैं. इन हालातों में, सोसायटी की दो एंबुलेंस कोविड-19 से प्रभावित लोगों की हर दिन मदद कर रही है. यह सेवा लेनोसिया और आसपास के क्षेत्रों के सभी निवासियों को दी जाती है. इसमें, सोवतो के कुछ हिस्से भी शामिल हैं क्योंकि यहां रहने वाले अधिकांश लोगों की आय बहुत कम है. इसलिए, गरीब लोगों से पैसे नहीं लिए जाते हैं.
दक्षिण अफ्रीका की आबादी करीब छह करोड़ है. यहां कोविड-19 के 14 लाख मामलों की पुष्टि की गई है. यह पूरे अफ्रीका महाद्वीप में कोविड के पुष्टि किए गए मामलों का 40 प्रतिशत है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार फिर से कोविड का मामला बढ़ने का असर अस्पतालों पर दिखेगा.
आरआर/एनआर (एपी)
न्यूयार्क, 27 जनवरी | अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को महाभियोग मामले में दोषी ठहराए जाने की कवायद संभवत: परवान नहीं चढ़ पाएगी। इसकी एक प्रमुख वजह है कि इसके लिए मौजूदा प्रशासन को संवैधानिक आधार पर सीनेट में दो तिहाई मतों की आवश्यकता पड़ती है और फिलहाल ऐसा नहीं हो पाया है। गौरतलब है कि मंगलवार को सीनेट में इस बाबत मतदान कराया गया गया जिसमें सीनेट में ट्रंप के पक्ष में 45 के मुकाबले 55 मत मिले जो दो तिहाई बहुमत (67) से 12 मत कम थे। हालांकि मतदान सफल रहा, लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी के पक्ष में उतने मत नहीं मिले जो ट्रंप को दोषी करार दिए जाने के लिए पर्याप्त हों।
इस मामले में ट्रंप, या यूं कहें कि उनकी पार्टी के लिए अच्छी बात यह रही कि इस मतदान में रिपब्लिकन पार्टी के पांच सांसदों का साथ कुछ डेमोक्रेट सांसदों ने भी दिया जिसके परिणामस्वरूप इस बात की संभावना प्रबल होती दिख रही है कि महाभियोग मामले में ट्रंप को दोषी ठहराए जाने की कोशिश संभवत: नाकाम हो जाएगी।
गौरतलब है कि अमेरिका के इतिहास में ट्रंप एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन पर दो बार महाभियोग का मामला चलाया गया है। इस मामले में पहली सुनवाई 8 फरवरी को होनी है। सोमवार को अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के एक प्रतिनिधिमंडल ने सीनेट को आरोपपत्र सौंपा था जिसमें ट्रंप पर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 6 जनवरी को अपने हजारों समर्थकों को अमेरिकी संसद भवन (कैपिटल) पर हमला करने के लिए उकसाया। (आईएएनएस)