अंतरराष्ट्रीय
नोम पेन्ह, 13 फरवरी| कंबोडिया ने आधिकारिक तौर पर चीन के साइनोवैक कोविड-19 वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग को मंजूरी दे दी है। देश के स्वास्थ्य मंत्री मैम बुनहेंग ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। उन्होंने एक बयान में कहा, "कोविड-19 की महामारी को ध्यान में रखते हुए, कंबोडिया के लोगों के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए, कंबोडिया के स्वास्थ्य मंत्रालय ने साइनोवैक कोविड-19 वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी देने का फैसला किया है।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने मंत्री के हवाले से कहा कि साइनोवैक कोविड-19 वैक्सीन को चीन और अन्य देशों में सुरक्षित रूप से इस्तेमाल किया गया है।
इससे पहले, 4 फरवरी को कंबोडिया ने चीन के साइनोफार्म कोविड-19 वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग को भी मंजूरी दी थी।
दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र ने चीन से साइनोफार्म वैक्सीन का पहला बैच प्राप्त करने के कुछ दिनों बाद 10 फरवरी से टीकाकरण अभियान शुरू किया।
कंबोडिया को कोविड-19 के प्रसार को रोकने में उल्लेखनीय सफलता मिली है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में अब तक कुल 479 मामले दर्ज किए गए हैं और कोविड से किसी की मौत नहीं हुई है, जबकि 463 मरीज ठीक हुए हैं। (आईएएनएस)
लेबनान में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर नया कानून लागू किया गया है. इसके बावजूद, देश में घरेलू हिंसा के मामले दोगुने हो गए हैं. हेल्पलाइन नंबर पर सहायता के लिए आने वाले कॉलों की संख्या तीन गुनी बढ़ गई है.
दुनिया के कई अन्य देशों की तरह लेबनान में भी महिलाओं की स्थिति काफी खराब है. यह खुलासा एक आधिकारिक रिपोर्ट में हुआ है. हाल ही में, तीन महिलाओं की हत्या के बाद देश में आक्रोश का माहौल पैदा हो गया है. सबसे हाई-प्रोफाइल मामला मॉडल जीना कांजो की हत्या का है. उनकी हत्या घर पर ही गला घोंटकर कर दी गई थी. देश की सरकारी समाचार एजेंसी (एनएनए) के अनुसार, हत्या के इस मामले में मॉडल के पति इब्राहित गजल को आरोपी बनाया गया है. पति के तुर्की भाग जाने के बाद उसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया गया.
इस मामले में एक स्थानीय समाचार चैनल ने मॉडल के पति इब्राहिम को पूरी घटना को शेयर करने और अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया था. इसके बाद, लोग भड़क गए और सोशल मीडिया पर अपने गुस्से का इजहार किया. लोगों ने कहा कि ऐसा करना पीड़िता को दोषी मानने की संस्कृति को बढ़ावा देना है. स्थानीय नारीवादी समूह फी-मेल की सह-निदेशक हयात मीरशाद ने कहा, "लेबनान की मीडिया अक्सर ऐसे विचारों को मजबूत करने में मदद करती है कि पुरुष ऐसे अपराध करके बच सकते हैं.” स्थानीय टीवी चैनल के शो में इब्राहिम ने कहा, "जब तक वह नहीं चाहेगा, गिरफ्तार नहीं होगा.”
कोरोना की वजह से हिंसा में वृद्धि
पिछले साल दिसंबर महीने में लेबनान में यौन उत्पीड़न को गैरकानूनी घोषित किया गया और घरेलू हिंसा कानून में सुधार किए गए. हालांकि, इस कानून के तहत, यहां वैवाहिक बलात्कार और धार्मिक न्यायालयों द्वारा प्रशासित निजी कानून तलाक और बाल हिरासत जैसे मामलों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को अपराध नहीं माना गया है. महिला अधिकार समूहों के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र ने कोरोना लॉकडाउन के दौरान पूरी दुनिया में घरेलू शोषण में वृद्धि को "शैडो पैन्डेमिक” माना है. इसमें बताया गया है कि आर्थिक संकट की वजह से लेबनान में घरेलू हिंसा की स्थिति खराब हो रही है.
इंटरनेशनल सिक्योरिटी फोर्स (आईएसएफ) ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के साथ नया आंकड़ा साझा किया है. इसमें कहा गया है कि पिछले 12 महीनों में लेबनान में घरेलू हिंसा के मामले दोगुने हो गए हैं. पिछले साल जहां यह संख्या 747 थी, जो अब बढ़कर 1468 हो गई. आईएसएफ के एक अधिकारी ने बताया कि घरेलू हिंसा के दौरान महिलाओं की हत्या के मामले भी काफी बढ़ गए हैं. हालांकि, अभी इसका पूरा आंकड़ा सामने नहीं आया है.
आधिकारिक आंकड़े और एबीएएडी के पास आने वाले सहायता कॉल, दोनों से पता चलता है कि घरेलू हिंसा के मामले काफी बढ़ गए हैं. एबीएएडी महिला अधिकार संगठन है. इस संगठन के हेल्पलाइन नंबर पर आने वाले कॉल तीन गुना तक बढ़ गए हैं. 2019 में 1375 कॉल आए थे, जो 2020 में बढ़कर 4,127 पर पहुंच गया. आईएसएफ ने एक बयान में जानकारी दी कि इस महीने की दूसरी हत्या जो सुर्खियों में थी, वह करीब 50 साल की महिला की थी. इस महिला की हत्या करने वाले ने उसके साथ यौन उत्पीड़न की कोशिश की थी. हत्या करने वाला महिला का एक किशोर रिश्तेदार था. गिरफ्तारी के बाद, इस व्यक्ति ने हत्या की बात कबूल भी की थी.
अपराध को सही ठहराने की मानसिकता
फी-मेल की नारीवादी वेबसाइट शारिका वा लाकेन के अनुसार, अधेड़ उम्र की महिला विदाद हसून की गला घोंटकर हत्या कर दी गई थी. वह उत्तरी लेबनान में मृत पायी गई थी. इस मामले पर फी-मेल की सह-निदेशक मीरशाद कहती हैं, "इन घटनाओं को अलग मामलों के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. ये अपराध महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हर दिन होने वाले अपराध का हिस्सा हैं. इन अपराधों की वजह पितृसत्तात्मक व्यवस्था और अपराध को सही ठहराने वाली मानसिकता है.”
लेबनान में दिसंबर में हुए कानूनी संशोधन में 2014 के घरेलू हिंसा कानून में "विवाह" से होने वाली हिंसा को शामिल किया गया है. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस संशोधन का स्वागत किया है. हालांकि, स्थानीय वकीलों का कहना है कि यह साफ नहीं है कि यह कानून तलाकशुदा महिलाओं पर लागू होता है या नहीं. यह इस संशोधन की कानूनी खामी है. महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाले समूह लेबनानी महिला डेमोक्रेटिक गैदरिंग से जुड़े वकील मनल माजिद कहते हैं, "सिविल कोर्ट में हमने कई ऐसे मामले देखे हैं जहां उत्पीड़न का आरोप लगने के बाद पुरूष महिलाओं को तलाक दे देते हैं, ताकि मुकदमे से बच सकें. महिलाओं के पास अभी भी बचाव के कम रास्ते हैं.”
आरआर/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
इस्लामाबाद, 13 फरवरी | चीन का कैनसिनो कोविड-19 वैक्सीन शुक्रवार को पाकिस्तान के ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी द्वारा अनुमोदित किए जाने वाला दूसरा चीनी वैक्सीन बन गया है। स्वास्थ्य मामलों पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विशेष सहायक फैसल सुल्तान ने यह जानकारी दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, इससे पहले जनवरी में, पाकिस्तान ने सुरक्षा और गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के बाद आपातकालीन उपयोग के लिए चीन के साइनोफार्म कोविड-19 वैक्सीन को मंजूरी दी थी।
पाकिस्तान ने चीन से टीके मिलने के बाद आधिकारिक रूप से 3 फरवरी को अपना टीकाकरण अभियान शुरू किया था। (आईएएनएस)
ब्रिटेन के भारतीय समुदाय में कोविड वैक्सीन को लेकर फैले अविश्वास और वैक्सीन लेने में आनाकानी की खबरें लगातार आ रही हैं. इसमें परिवारों और दोस्तों में व्हाट्सऐप के जरिए फैलने वाली फेक न्यूज और संदेंह की बड़ी भूमिका है.
इन संदेशों में वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों पर शक जाहिर किया गया है जैसे कि वैक्सीन शाकाहारी है या नहीं, उसमें किसी प्रकार के मीट या जानवरों का फैट इस्तेमाल हुआ है या नहीं. लगातार इस बात की कोशिशें हो रही हैं कि भारतीयों को वैक्सीन लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए. हाल ही में हुए एक सर्वे के जरिए यह पता लगाने की कोशिश भी की गई कि भारतीयों पर महामारी का क्या असर हुआ और वैक्सीन को लेकर उनका नजरिया क्या है. गौरतलब है कि कोविड महामारी के दूसरे चरण में दक्षिण एशियाई मूल के लोगों में मौत का खतरा कई गुना ज्यादा बताया गया है. यह बात पहले अश्वेत समुदाय के बारे में कही गई थी.
समुदाय का नजरिया
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय समेत कई संस्थानों ने मिलकर हाल ही में एक सर्वे किया जिसके नतीजे ज्यादा उत्साहजनक नहीं रहे. 2,320 ब्रिटिश भारतीयों से हासिल किए गए इस सर्वे में केवल 56 फीसदी ने वैक्सीन लेने में दिलचस्पी दिखाई जबकि 44 फीसदी ने वैक्सीन ना लेने या फिर असमंजस में होने की बात कही. खासकर मर्दों के मुकाबले महिलाओं की दिलचस्पी वैक्सीन लेने में काफी कम दिखाई दी.
जो वजहें गिनाई गई हैं उसमें वैक्सीन पर जानकारी के अभाव को जिम्मेदार ठहराया गया जबकि कुछ लोगों का यह भी कहना था कि उन्हें वैक्सीन की उतनी जरूरत नहीं है जितनी शायद सेहत की परेशानियों से जूझ रहे लोगों को होगी, इसलिए अगर उन्हें बुलाया भी जाए तो वे वैक्सीन लेने से इनकार कर देंगे.
इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले कुल लोगों में तकरीबन आधी संख्या पंजाबी समुदाय से है, जबकि एक चौथाई गुजराती समुदाय से हैं. गुजरात से संबंध रखने वाले जगदीश मेहता, उत्तर-पश्चिमी लंदन के सबसे विविधता वाले इलाकों में शामिल हैरो में रहते हैं. बातचीत में उन्होंने बताया, "जब एक के बाद एक कई वैक्सीन आ गईं और उनके इस्तेमाल की इजाजत मिल गई, तो मेरे सभी नजदीकी लोगों में एक डर था कि आखिर कौन सी वैक्सीन सही होगी. इस पर जानकारी नहीं मिल पा रही थी. मीडिया में आई रिपोर्टें भी स्थिति को साफ नहीं कर पाईं. इससे समझ ही नहीं आ रहा था कि हमें क्या करना चाहिए”.
कुछ सामान्य साइड इफेक्ट
कोई भी टीका लगने के बाद त्वचा का लाल होना, टीके वाली जगह पर सूजन और कुछ वक्त तक इंजेक्शन का दर्द होना आम बात है. कुछ लोगों को पहले तीन दिनों में थकान, बुखार और सिरदर्द भी होता है. इसका मतलब होता है कि टीका अपना काम कर रहा है और शरीर ने बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर दिया है.
विश्वास पैदा करने की कोशिशें
शोधकर्ताओं ने इन आंकड़ों का इस्तेमाल इस बात पर जोर देने के लिए किया है कि वैक्सीन को लेकर फैली भ्रांतियां और फेक न्यूज के जाल को तोड़ने के लिए समुदाय केंद्रित अभियान चलाए जाने की जरूरत है. विश्वास पैदा करने की इसी मुहिम के तहत ब्रिटेन में मस्जिदों और मंदिरों को वैक्सीन अभियान में हिस्सेदारी के लिए जोड़ा गया है.
इन्हीं कोशिशों के तहत ऐसे कई वीडियो जारी किए जा रहे हैं जहां जाने-माने चेहरे वैक्सीन से जुड़े डर को कम करने की कोशिशें करते नजर आएंगे. इसमें टेलीविजन के मशहूर चेहरों के अलावा कॉमेडी की दुनिया से असीम चौधरी, संदीप भास्कर और रोमेश रंगनाथन जैसे नाम हैं जो वैक्सीन पर गलतफहमियों को दूर करने के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं. दक्षिण एशियाई समुदायों में जहां वैक्सीन पर जानकारी और भ्रम के बीच लकीर खीचने की चुनौती है, वहीं जानकार मानते हैं कि अश्वेत समुदाय में अविश्वास की वजह नस्लीय भेदभावपूर्ण सामाजिक ढांचा और चिकित्सीय अनुसंधानों का इतिहास है जहां अश्वेतों को शोध के लिए इस्तेमाल किया गया.
गलत सूचनाओं का जाल
महामारी ने जहां ब्रिटेन के अश्वेत और दक्षिण एशियाई समुदायों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के मामले में गैर-बराबरी की गंभीर स्थितियों को उजागर किया है, वहीं इन समुदायों में वैक्सीन को लेकर गलत सूचनाओं के प्रसार की काट ढूंढना भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. ब्रिटिश स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि वे स्थानीय काउंसिलों को अतिरिक्त धनराशि मुहैया कराई जा रही है ताकि वे सही सूचनाएं फैलाने के लिए पूरी कोशिश कर सकें.
ब्रिटेन में कोविड वैक्सीन उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी संभालने वाले मंत्री नदीम जहावी ने अपने लिखित बयान में कहा है, "ऐसा हर व्यक्ति जिसे वैक्सीन मिलनी चाहिए, उसे हम वैक्सीन देंगे चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो”. फेक न्यूज और फोन पर फैलने वाली गलत सूचनाएं, सरकारी कदमों पर अधूरी जानकारियों और तेजी से तैयार हुई वैक्सीन के प्रभावों पर भ्रम, ये सब मिलकर लोगों के भरोसे को हिला रहे हैं. जातीय समुदायों में विश्वास बहाली की चुनौती लगातार बनी हुई है क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद आंकड़े बार-बार इस बात की ओर इशारा करते हैं कि रास्ता अब भी लंबा है और लड़ाई अभी बाकी है.
जल-संकट से निपटने के लिए मिस्र की सरकार ने खेतों में सिंचाई का एक ऐप तैयार किया है. किसान इस ऐप की मदद से पानी की बरबादी से बच रहे हैं और खेतों में अच्छी फसल उगा रहे हैं. कई किसान नई तकनीक से अंजान और असहज भी हैं.
दक्षिण मिस्र के समालाउत शहर में एमन एसा ने अपने किसान पति के निधन के बाद खेती का काम संभाला. उसे अंदाजा नहीं था कि गेहूं की फसल को कब और कितना पानी देना होगा. 36 साल की एसा अपने दो एकड़ खेत के लिए या तो जरूरत से ज्यादा पानी इस्तेमाल कर बैठती थी या उसे सिंचाई के लिए किसी किसान को रखना पड़ता था.
पिछले साल दिसंबर में चार बच्चों की मां एसा एक सरकारी प्रोजेक्ट से जुड़ गई जो सेंसरों की मदद से खेत को पानी की जरूरत और मात्रा के बारे मे बताता है. और यह जानकारी मिल रही थी फोन पर एक ऐप के जरिए. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को फोन पर इंटरव्यू में एसा ने बताया, "जब मैंने इस नए सिस्टम के बारे में सुना, तो नहीं जानती थी कि इससे मुझे फायदा क्या होगा. लेकिन जब लोगों ने दिखाया कि यह ऐसे काम करता है, तो मुझे वाकई बहुत मदद मिली और मेरी मेहनत और पैसा भी बचने लगा.”
ऐप का इस्तेमाल करते हुए कुछ ही हफ्तों में एसा की पानी की खपत 20 फीसदी और लेबर की कॉस्ट एक तिहाई कम हो गई. यह सिस्टम देश के जल संसाधन और सिंचाई मंत्रालय ने काहिरा की एमएसए यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर विकसित किया है. इसके तहत मिट्टी में एक सेंसर दबा दिया जाता है जो नमी के स्तर की जांच करता है. एक ट्रांसमीटर के जरिए उसका डाटा यूजर के पास पहुंचता है जो उसे अपने मोबाईल ऐप के जरिए देख सकता है. किसान अपने खेतों से दूर भी रहें तब भी जान सकते हैं कि उनकी फसल को और पानी चाहिए या नहीं.
एसा उन दर्जनों किसानों में से एक है जिसने दिसबंर में लॉन्च हुए इस नए सिस्टम का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. जल संसाधन मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद घानेम के मुताबिक यह प्रोजेक्ट आधुनिक सिंचाई विधियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए बनी देशव्यापी रणनीति का हिस्सा है. वे कहते हैं कि कम पानी में पैदावार बढ़ाना और उत्पादन की लागत घटाना ही इसका लक्ष्य है क्योंकि मिस्र पानी की किल्लत से जूझ रहा है.
फोन पर प्रवक्ता ने बताया, "शुरुआती नतीजे दिखाते हैं कि पानी का खर्च कम करने और लागत कम करने में कामयाबी मिली है.” वे यह भी कहते हैं कि सरकार अभी और भी डाटा इकट्ठा कर रही है. घानेम के मुताबिक मंत्रालय ने अभी तक किसानों को मुफ्त में 200 उपकरण मुहैया कराए हैं लेकिन ट्रायल पीरियड खत्म होने के बाद देश भर में उन्हें बेचा जाएगा. हालांकि उन्होंने उपकरण की कीमत नहीं बताई.
खेती के नए तरीके
एसा के मीन्या प्रांत के नजदीक एक दूसरे खेत में जॉर्जेस शाउकरी कहते हैं कि नए मोबाइल ऐप के साथ ड्रिप सिंचाई को मिलाकर बड़ा फायदा हुआ है. उन्होंने पत्नी के साथ ड्रिप सिंचाई पिछले साल ही लगाई थी. 32 साल के शाउकरी कहते हैं कि वे अब 15 फीसदी कम पानी खर्च करते हैं, उनकी सब्जी की फसल की क्वॉलिटी सुधर गई है और उत्पादन करीब 30 फीसदी बढ़ गया है, "अगर पानी की कमी हुई तो हमें सिंचाई और खेती के नए तरीकों के लिए तैयार रहना होगा.”
मिस्र के सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक स्टडीज की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक नील नदी से देश को मिलने वाले पानी का 85 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा, खेती में ही निकल जाता है. अधिकारियों के मुतबिक मिस्र में हर साल हर व्यक्ति पर करीब 570 घन मीटर यानी डेढ़ लाख गैलन पानी की खपत है. अगर किसी देश में प्रति व्यक्ति सालाना जल आपूर्ति एक हजार घन मीटर से कम है तो विशेषज्ञ उस देश को "जल निर्धन” मानते हैं.
2017 में जल संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए मिस्र ने 20 साल की एक रणनीति तैयार की थी. विशेषज्ञों के मुताबिक बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले सूखे और नील नदी से हासिल ज्यादातर पानी को गंवा देने के डर ने मिस्र की चुनौतियों को और भी आपात बना दिया है. मिस्र की डाटा एजेंसी के मुताबिक देश का 70 फीसदी पानी नील नदी से आता है. सूडान के साथ 1959 में हुए करार के बाद मिस्र को सालाना साढ़े 55 अरब घन मीटर पानी मिलता है. लेकिन इथियोपिया इस करार को नहीं मानता जिसने अपने नए ग्रांड रिनेसां विशाल बांध के लिए मिस्र को जाने वाले पानी से अपना जलाशय भरना शुरू कर दिया है.
आने वाली चुनौतियों से मुकाबला
कुछ कृषि विशेषज्ञ नए मोबाइल इरीगेशन सिस्टम से बहुत मुतास्सिर नहीं हैं. उनका इशारा कीमत और इस बात की ओर है कि कई किसान टेक्नोलजी से अंजान हैं या असहज. काहिरा यूनिवर्सिटी में इकोनोमिक जियोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर अब्बास शराकी कहते हैं कि यह तकनीक बड़े कमर्शियल किसानों के लिए तो फायदेमंद हो सकती है लेकिन बहुत से छोटे किसानों के लिए नहीं. उन्होंने बताया, "मिस्र में कुछ कंपनियों ने अच्छी क्वॉलिटी और बेहतर मैनेजमेंट के लिए खेती में मोबाइल तकनीक का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. लेकिन अलग अलग व्यक्तियों के लिए इसे इस्तेमाल करना मुश्किल होगा क्योंकि उन्हें ट्रेनिंग और उचित संसाधनों की दरकार होगी."
पेशे से कृषि इंजीनियर युसूफ अल बहावशी का गीजा शहर में खेत है और उन्होंने नया उपकरण नहीं लगाया है. उनका कहना है कि बहुत से किसान तो मोबाइल फोन तक इस्तेमाल नहीं करते हैं, "सिंचाई और खेती में लंबा अनुभव रखने वाले किसानों को नए उपकरण का इस्तेमाल करने के लिए तैयार करना आसान नहीं, इसमें उनके पैसे लगेंगे और यह बात उन्हें शायद हजम नहीं होगी.”
मीन्या प्रांत में प्रोजेक्ट के सुपरवाइजर सफा अब्देल हकीम का कहना है कि जिन किसानों को उपकरण मिल गए हैं उन्हें ट्रेनिंग भी मिली है. उधर एसा का कहना है कि जो शख्स तकनीक से अंजान है उसके लिए तो बदलावों के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल है. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि नई सिंचाई तकनीक को अपनाकर और पानी की खपत के तरीके बदलकर मिस्र के किसान आने वाली चुनौतियों से मुकाबला भी कर सकते हैं, "नई तकनीक के बारे में सीख-समझकर न सिर्फ मैं अपनी जमीन का बेहतर प्रबंध कर सकती हूं, बल्कि भविष्य के बदलावों के लिहाज से भी खुद को ढाल सकती हूं.”
एसजे/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
नई दिल्ली. टिकटॉक भले ही भारत में बंद कर दिया गया हो, लेकिन यह चीनी मोबाइल एप्लिकेशन अमेरिका समेत दूसरे देशों में चल रही है. अमेरिका की ही टिकटॉक स्टार डेझरिया क्विंट नोयेज ने सोमवार को आत्महत्या कर ली है. वह 18 साल की थी और सुसाइड करने से पहले उसने एक वीडियो भी बनाया था. जिसे उसने उसका आखिरी वीडियो बताया था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डेझरिया को डी के नाम से जाना जाता था. उसने अपने उस वीडियो को आखिरी बताया था. उसने वीडियो के कैप्शन में लिखा था, 'ओके मुझे पता है कि आप लोगों को मैं परेशान कर रही हूं. ये मेरी आखिरी पोस्ट है.' उसके परिवार ने उसकी मौत की पुष्टि की है.
डेझरिया द्वारा आत्महत्या कर लेने की घटना के बाद से उसके पैरेंट काफी दुखी हैं. डेझरिया के पिता रहीम अल्ला ने गोफंडमी नामक एक पेज पर अपने दुख के बारे में लिखा है. उन्होंने इसमें लिखा, 'मेरी बेटी डेझरिया हमें छोड़कर चली गई है. वह मेरी दोस्त थी. मैं अपनी बेटी को दफनाने के लिए तैयार नहीं था. वह बहुत खुश थी.'
उन्होंने आगे लिखा, 'मैं जब घर आता था तो मुझे सड़क पर ही देखकर वाह बहुत खुश होती थी. मैं केवल यही चाहता था कि वह अपने तनाव और आत्महत्या के विचारों और सोच के बारे में मुझसे बात करे. हम दोनों इस पर बातचीत कर सकते थे. अब मैं घर आता हूं. तो मेरा इंतजार करने के लिए तुम नहीं हो. डैडी लव यू.'
पाकिस्तान में एक बुजुर्ग डॉक्टर की इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वह अहमदिया थे. एक साल से भी कम समय में यह ऐसी पांचवी हत्या है. अहमदिया खुद को इस्लाम के अनुयायी कहते हैं, लेकिन पाकिस्तान में उन्हें मुसलमान नहीं माना जाता.
पुलिस का कहना है कि पेशावर में एक युवक ने 65 साल के होम्योपैथी डॉक्टर अब्दुल कादिर की गोली मार कर हत्या कर दी है. घटनास्थल पर ही लोगों ने हमलावर को पकड़ कर तुरंत पुलिस को सौंप दिया. पुलिस की पूछताछ में 18 साल के आरोपी युवक ने माना कि अहमदिया समुदाय से होने के कारण ही उसने डॉक्टर कादिर को निशाना बनाया.
अहमदिया समुदाय के प्रवक्ता सलीमुद्दीन ने एक बयान जारी कर इस घटना की कड़ी निंदा की है. उनका कहना है कि यह एक साल से भी कम समय के भीतर उनके समुदाय के पांचवें व्यक्ति की हत्या है. पिछले साल इसी समुदाय से संबंध रखने वाले एक पाकिस्तानी-अमेरिकी व्यक्ति की अदालत के भीतर गोली मारकर हत्या की गई थी. उस समय उस व्यक्ति पर ईशनिंदा के आरोपों में मुकदमा चल रहा था.
उस वक्त अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान से कहा था कि वह ईशनिंदा कानून को खत्म करे ताकि धार्मिक नफरत से प्रेरित अपराधों को रोका जा सके. हिंदू, ईसाई और अहमदिया जैसे अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अकसर ईशानिंदा के मामलों में फंसते हैं.
पाकिस्तान में अहमदिया लोगों को अपने धार्मिक विश्वास के कारण अकसर निशाना बनाया जाता है. हालांकि देश में उनकी आबादी लगभग 40 लाख है. लेकिन उनके खिलाफ वहां दशकों से नफरत से प्रेरित मुहिम चल रही है. अहमदिया लोग कहते हैं कि वे भी इस्लाम को मानते हैं, लेकिन पाकिस्तान की संसद ने उन्हें 1974 में गैर मुसलमान घोषित कर दिया. इसकी वजह यह है कि अहमदिया लोग अपने समुदाय के संस्थापक गुलाम अहमद को भी पैगंबर बताते हैं जबकि रवायती इस्लाम में मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद के बाद कोई दूसरा पैगंबर नहीं हुआ.
मिर्जा गुलाम अहमद ने 19वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप में अहमदिया समुदाय की नींव रखी थी. उनके अनुयायी मानते हैं कि गुलाम अहमद ही वह मसीहा थे जिसका वादा पैगंबर मोहम्मद ने किया था. मुख्यधारा का इस्लाम इस को पूरी तरह खारिज करता है और इसे धर्म विरोधी मानता है. अगर कोई अहमदिया व्यक्ति पाकिस्तान में मुसलमान होने का दावा करे तो उसे 10 साल तक की सजा हो सकती है. अहमदिया समुदाय का कहना है कि उसके सदस्यों को निशाना बनाकर किए हमलों में 1984 से 260 से ज्यादा लोग मारे गए हैं.
एके/आईबी (डीपीए, एपी)
दस साल पहले जब अरब दुनिया में बदलाव की हवा चली तो बहरीन में भी लोग इस आस में सड़कों पर निकले थे कि सरकार को गिरा देंगे. लेकिन देश की बहुसंख्यक शिया जनता के गुस्से को सुन्नी शासक ने ताकत से कुचल दिया. अब तक यही हो रहा है.
बहरीन के सरकार विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े कार्यकर्ता कहते हैं कि उस समय की सारी यादों को दफन कर दिया गया है. जिन लोगों ने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया, उन्हें इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़े. अब प्रतिबंधित की जा चुकी शिया राजनीतिक पार्टी अल-वेफाक के एक पूर्व निर्वासित नेता जवाद फैरूज कहते हैं, "वह अंधेरे दौर की शुरुआत थी." 2012 में अपनी राजनीतिक गतिविधियों के कारण फैरूज को अपनी नागरिकता गंवानी पड़ी.
हालांकि बहुत से कार्यकर्ता और प्रदर्शनकारी बहरीन से निकल गए और निर्वासन में रह रहे हैं, लेकिन सऊदी अरब के पूर्वी तट पर बसे इस छोटे से देश में विद्रोह का खतरा लगातार बना हुआ है. पड़ोसी खाड़ी देशों की राजशाहियों के विपरीत बहरीन हाल के वर्षों में छोटे स्तर पर ही सही लेकिन अशांति से जूझता रहा है. पिछले हफ्ते शहर की सड़कों पर पुलिस की तैनाती एकदम बढ़ा दी गई. स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस बिल्कुल नहीं चाहती कि फिर कोई प्रदर्शन हों.
अमेरिकी क्रांति
अमेरिकी क्रांति एक राजनीतिक विरोध की मुहिम थी जिसमें उत्तरी अमेरिकी के 13 उपनिवेश आपस में मिल गए और ब्रिटिश सरकार से आजाद होने और खुद के संयुक्त राज्य अमेरिका होने का एलान कर दिया. अमेरिकी सैन्य क्रांति का नाम दिया गया. करीब 35-75 हजार अमेरिकी और 70 हजार ब्रिटिश मारे गए. 1996 में उसी क्रांति की शुरुआत 'टैक्स प्रोटेस्ट' का दृश्य दिखाते कुछ कलाकार.
बहरीन में 14 फरवरी 2011 को हजारों लोग सड़कों पर निकल आए और कई हफ्तों तक प्रदर्शन चलता रहा. मिस्र, सीरिया, ट्यूनीशिया और यमन में सत्ता विरोधी लहर ने बहरीन के प्रदर्शनकारियों के हौसले भी बुलंद कर दिए. बहरीन में प्रदर्शनों के पीछे देश का शिया समुदाय था जो अपने लिए व्यापक राजनीतिक अधिकार चाहता था. बहरीन पश्चिमी देशों का अहम सहयोगी है, जहां अमेरिकी नौसेना का पांचवा बेड़ा तैनात है.
प्रदर्शनों के दौरान नजीहा सईद एक फ्रेंच टीवी के लिए रिपोर्टिंग कर रही थीं. वह बताती है, "बड़ा ही अद्भुत नजारा था." राजधानी मनाना में पर्ल गोलचक्कर के आसपास लोग जमा थे. यह शहर का एक अहम प्रतीक था जिसे बाद में सरकार ने ढहा दिया. वह बताती हैं, "मैंने पहली बार ऐसा कुछ देखा था. लोग भूल गए थे कि वे एक राजशाही में रह रहे हैं जिसे दूसरी ताकतवर शाही सत्ताओं का समर्थन प्राप्त है." लेकिन सईद बताती हैं कि यह सब ज्यादा दिन तक नहीं चला.
सुरक्षा बलों ने धरने पर बैठे लोगों को तितर बितर करना शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारिीयों पर आंसू गैस छोड़ी गई, रबड़ की गोलियां चलाई गई और कहीं कहीं तो असली कारतूस भी दागे गए. सईद कहती हैं कि उनसे सिर्फ 20 मीटर की दूरी पर पुलिस ने एक प्रदर्शनकारी के सिर में गोली मारी. सईद अब बर्लिन में निर्वासित जिंदगी बिता रही हैं. वह अपने घर वापस नहीं जा सकतीं. 2017 में बहरीन की सरकार ने उन पर सरकार की तरफ से जारी प्रेस कार्ड पर काम करने के लिए 2,650 डॉलर का जुर्माना लगाया.
फरवरी 2011 में जैसे जैसे हिंसा बढ़ती गई, प्रदर्शनों का दायरा भी बढ़ता गया. उसमें हर समुदाय के लोग शामिल हो रहे थे. संवैधानिक सुधारों की मांग के साथ शुरू हुए आंदोलन में अब देश के पूरे राजनीतिक ढांचे को ही खत्म करने की मांग उठने लगी. देश के सुन्नी शासकों ने पड़ोसी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से मदद मांगी. प्रदर्शनकारियों को दबाने के लिए विदेशी सैनिकों को बुलाया. और क्रांति की उम्मीदें बूटों के नीचे दफन हो गईं.
अब दस साल बाद बहरीन में और निर्वासन में रह रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनका देश कमोबेश वैसा ही है जैसा 2011 में था. विरोधियों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाता. उन पर तेजी से कार्रवाई होती है. बहरीन ने 2011 के अंसतोष के लिए शिया बहुल ईरान को जिम्मेदार ठहराया. लेकिन ईरान ने ऐसे आरोपों से इनकार किया. हालांकि बहरीन में जब्त किए गए हथियारों का संबंध ईरान से बताया जाता है. जब ईरान में शाह का शासन था, तो उसने बहरीन पर अपना दावा किया था.
बहरीन के अधिकारियों ने 2011 के बाद से ना सिर्फ शिया राजनीतिक समूहों और धार्मिक नेताओं को निशाना बनाया है बल्कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और इंटरनेट पर सरकार के खिलाफ लिखने वालों को भी प्रताड़ित किया है. सरकार के आलोचकों पर मुकदमे आम बात हो गई है. राजनीतिक पार्टियों पर बैन लगा दिया गया है. बहरीन से निष्पक्ष रिपोर्टिंग कर पाना लगभग असंभव हो गया है. इस बीच, शिया चरमपंथी गुटों की तरफ से पुलिस और अन्य बलों पर छिटपुट हमले भी हुए हैं.
बहरीन में सरकार को विरोध बिल्कुल बर्दाश्त नहीं
बहरीन की सरकार ने ताकत के दम पर विरोध को कुचला
विपक्ष का काम
वैसे बहरीन का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. लेकिन सिर्फ एक ट्वीट की बदौलत आपको जेल में डाला जा सकता है. नाम गोपनीय रखने की शर्त पर एक व्यक्ति ने बताया कि उसे दो हफ्ते के लिए इसलिए जेल में डाल दिया गया कि उसने कुरान की एक आयत सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी. सुरक्षा बलों का कहना है कि इस आयत के जरिए प्रधानमंत्री के निधन पर खुशी जताई गई थी.
उसी जेल में बंद एक अन्य व्यक्ति को राजनीतिक कविता पोस्ट करने की सजा दी गई. सजा काटने वाले 47 वर्षीय व्यक्ति ने कहा, "2011 के बाद हमारा देश आगे नहीं बल्कि पीछे की तरफ गया है. अब बहरीन विपक्ष का सिर्फ यही मतलब रह गया है कि अपने दोस्तों की गिरफ्तारी को दर्ज करिए, उनके दस्तावेज बनाइए."
एके/आईबी (एपी)
काबुल, 12 फरवरी| अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति प्रक्रिया रुकने के बाद अफगान बलों ने आतंकी समूह के खिलाफ हवाई हमले तेज कर दिए हैं। पिछले दो दिनों में इन हमलो में 90 से अधिक आतंकवादी मारे गए हैं। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने एक शीर्ष सैन्य अधिकारी के हवाले से बताया कि गुरुवार को हमले में लड़ाकू विमानों ने बल्ख प्रांत में चारबोलक जिले के अक्तेपा इलाके में तालिबान के ठिकाने पर हमला किया और तीन स्थानीय कमांडरों सहित 11 आतंकियों को मार गिराया।
अधिकारियों के मुताबिक, हमले गुरुवार दोपहर 1.25 बजे किए गए।
उन्होंने कहा कि बुधवार को उसी क्षेत्र में हवाई हमले में 31 आतंकी मारे गए थे।
इससे पहले, अक्तेपा के पड़ोसी गोरतेपा गांव में भी हवाई हमले किए गए, जिसमें 26 आतंकवादी मारे गए।
सेना के एक बयान में कहा गया है कि हवाई हमलों ने बुधवार को हेलमंद प्रांत के नावा, नाहर-ए-सरज और गर्मसीर जिलों में भी तालिबान आतंकवादियों को भी निशाना बनाया, जिसमें दो सशस्त्र आंतकियों को मार गिराया गया, जिसमें दो ग्रुप कमांडर हंजला और बरकत भी शामिल थे।
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने अधिकारियों द्वारा किए गए दावों पर टिप्पणी किए बिना कहा कि आतंकवादी अपनी पोजिशन की रक्षा करने में पर्याप्त रूप से सक्षम हैं।
5 जनवरी को दोहा में फिर से शुरू हुई अंतर-अफगान वार्ता का दूसरा दौर रुका पड़ा है।
स्थानीय मीडिया रिपोटरें के अनुसार पिछले 25 दिनों से कोई बैठक नहीं हुई है। (आईएएनएस)
नेपीता, 12 फरवरी | दक्षिण एशियाई देश म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है। इस बीच फेसबुक ने म्यांमार की सेना द्वारा 'गलत सूचना' के प्रसार को रोकने के लिए चलाए जा रहे कंटेंट और प्रोफाइल पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं। एक फरवरी को सैन्य तख्तापलट के बाद देश में स्थिति अस्थिर बनी हुई है।
एपीएसी इमर्जिग कंट्रीज के डायरेक्टर ऑफ पॉलिसी राफेल फ्रेंकल ने गुरुवार को एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा, "गलत सूचनाओं के दोहराने वाले अपराधियों पर हमारी वैश्विक नीतियों के अनुरूप, अब हम भी लोगों को उनकी सिफारिश नहीं करेंगे।"
अन्य सैन्य-संचालित खातों के बीच, ये प्रतिबंध म्यांमार सैन्य सूचना टीम के फेसबुक पेज पर और म्यांमार के सैन्य प्रवक्ता ब्रिगेडियर-जनरल जब मिन टुन के फेसबुक खाते पर लागू होते हैं।
तख्तापलट के बाद, म्यांमार ने राज्य के स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनियों को 7 फरवरी की आधी रात तक फेसबुक को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित करने का निर्देश दिया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सोशल मीडिया दिग्गज देश में अस्थिरता में योगदान दे रहा है।
बाद में इसने माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर और फोटो-शेयरिंग ऐप इंस्टाग्राम पर भी अस्थायी अंकुश लगा दिया था। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 12 फरवरी | पाकिस्तान के दक्षिण वजीरिस्तान जिले में झड़प के दौरान चार आतंकवादी और चार सैनिक मारे गए। शुक्रवार को एक सैन्य बयान में यह कहा गया। सेना के मीडिया विंग इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) ने बयान में कहा कि आतंकवादियों ने जिले में सुरक्षाबलों की पोस्ट पर गुरुवार देर रात को हमला किया।
आईएसपीआर द्वारा आठों मृतकों की पहचान उजागर नहीं की गई।
खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के पार स्थित, दक्षिण वजीरिस्तान कुछ साल पहले तक आतंकवाद का केंद्र हुआ करता था, लेकिन सुरक्षाबलों ने आतंकवादियों को सफलतापूर्वक खदेड़ दिया है।
यद्यपि इस क्षेत्र को आतंकवाद से काफी हद तक छुटकारा दिलाया गया है लेकिन छिटपुट हमले जारी हैं।
पिछले महीने, सुरक्षाबलों ने जिले में एक खुफिया-आधारित ऑपरेशन किया था।
आईएसपीआर के अनुसार, फायरिंग के दौरान दो आतंकवादी मारे गए और एक घायल हो गया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 12 फरवरी | अफगानिस्तान की ओर से पाकिस्तान की तरफ रॉकेट हमला किया गया, जिसमें एक पांच साल के बच्चे की मौत हो गई है और सात अन्य बच्चे घायल हो गए हैं। सेना की तरफ से जारी एक बयान में इसकी पुष्टि हुई है। सेना के मीडिया विंग इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस ने अपने एक बयान में कहा है कि गुरुवार को दोपहर के 2.50 बजे उस वक्त यह घटना हुई, जब पाकिस्तान के खबर पख्तूनख्वा प्रांत के बाजुर जिले में अफगानिस्तान की तरफ से पांच रॉकेट दागे गए।
एक सूत्र ने सिन्हुआ समाचार एजेंसी को बताया कि घायलों को पास के एक अस्पताल में ले जाया गया। सूत्रों ने पाकिस्तान की तरफ से भी जवाबी कार्रवाई किए जाने की बात कही है।
गुरुवार को हुए हमले में किस आतंकी संगठन के शामिल होने की आशंका है, इस पर सेना ने चुप्पी साध रखी।
रविवार रात को इस्लामाबाद में विदेश मंत्रालय ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह बात साबित हो चुकी है कि देश में हुए आतंकी हमलों के लिए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे आतंकवादी संगठन जिम्मेदार हैं। (आईएएनएस)
ट्रंप को महाभियोग का दोषी साबित करना क्यों डेमोक्रैट्स के लिए है मुश्किल
डेमोक्रेट्स ने संसद में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के महाभियोग पर अपने आरोपों का दौर पूरा कर लिया है, और कहा है कि डोनाल्ड ट्रंप ने 6 जनवरी को कैपिटल हिल पर दंगा भड़काया. उन्होंने कहा कि अगर ट्रंप को दोषी नहीं ठहराया गया तो "वह फिर से ऐसा कर सकते हैं".
गुरुवार को महाभियोग के अभियोजकों ने दंगाइयों के ही शब्द इस्तेमाल कर ट्रंप को हिंसा से जोड़ते हुए पेश किया.
अपना पक्ष रखते हुए डेमोक्रैट्स ने पुलिस, इंटेलिजेंस अधिकारियों के बयान और विदेशी मीडिया रिपोर्ट्स आदि का हवाला दिया.
शुक्रवार को ट्रंप की बचाव टीम सीनेट में अपना पक्ष रखेगी.
डेमोक्रैट्स के बहुमत वाले सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव ने बीते महीने ही ट्रंप पर महाभियोग के प्रस्ताव पास किया था. उन पर दंगे भड़काने का आरोप लगाया गया है. इस हफ़्ते डेमोक्रैट्स सीनेट में अपना पक्ष रख रहे थे.
ट्रंप के वकीलों ने तर्क दिया है कि वह नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव में धोखाधड़ी की बात कह कर अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल कर रहे थे.
100 सीटों वाली सीनेट में ट्रंप को दोषी ठहराने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है. इस वक़्त दोनो पार्टियों के बीच सीटें समान रूप से विभाजित हैं. ऐसे में ट्रंप के बरी होने की संभावना है क्योंकि ज़्यादातर रिपब्लिकन सीनेटर अब तक उनके प्रति वफ़ादार रहे हैं.
यदि ट्रंप को दोषी ठहराया गया तो उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने को लेकर सदन में मतदान हो किया जाएगा.
क्या है महाभियोग
महाभियोग तब लगाया जाता है जब राष्ट्रपति रहते हुए किसी पर अपराधों के आरोप लगते हैं. इस मामले में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप पर विद्रोह भड़काने का आरोप है. ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं जिन पर दूसरी बार महाभियोग का मामला चलाया जा रहा है.
अब तक क्या हुआ है
हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव ने अपने कार्यकाल की समाप्ति से एक सप्ताह पहले 13 जनवरी को ट्रंप पर दूसरी बार महाभियोग चलाने के लिए मतदान किया. सीनेट में अब ये ट्रायल चल रहा है.
इसका मतलब क्या है?
अब जब ट्रंप राष्ट्रपति नहीं हैं तो सीनेटर उन्हें आगे कोई भी चुनाव लड़ने से रोकने के लिए मतदान कर सकते हैं. लेकिन ये तभी होगा जब वह अगर वह दोषी साबित हो जाएं. (bbc.com)
निखिला नटराजन
न्यूयॉर्क, 12 फरवरी | भारत के बहुभाषी माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म कू की हाल में डेटा प्राइवेसी को लेकर आलोचना की गई थी और साथ में यह भी बात सामने आई थी कि इनके निर्माताओं में चीनी निवेशक भी शामिल हैं। ऐसे में लोगों के सामने इसे बेहतर तरीके से पेश करने का इनका प्रयास जारी है।
कू के सह-संस्थापक अप्रमेय राधाकृष्ण ने आईएएनएस को दिए अपने साक्षात्कार में कहा, "एक फाउंडर के तौर पर मैं एक भारतीय हूं, मेरे को-फाउंडर भी भारतीय हैं और हम जिस चीज का विकास कर रहे हैं, उससे हम गहराई से जुड़े हुए हैं और इसी के चलते हमारा मार्केट भी वजूद में है। हमारी कंपनी दस महीने पुरानी है, ऐसे में कुछ शुरुआती परेशानियां तो आएंगी ही। देश भर के सभी यूजर्स से हमें जिस कदर प्यार मिला है, उससे हम हैरान हैं और हम चाहते हैं कि हमारे इस शुरुआती सफर में वे हमारे साथ रहें।"
चीनी निवेशकों के शामिल होने की बात पर कू की टीम ने कहा, "यह बात सही नहीं है। कू पूरी तरह से बॉम्बिनेट टेक्न ोलॉजीस प्राइवेट लिमिटेड के अधीन है और यह सिर्फ भारत में ही संचालित है। सभी डेटा और संबंधित सर्वर भी भारत से ही चलाए जाते हैं। बेंगलुरू में कंपनी का मुख्यालय है।"
आज की तारीख में कू के निवेशकों में एक्टेल पार्टनर्स, 3वन4 कैपिटल, ब्लूम वेंचर्स और कलारी कैपिटल शामिल हैं।
राधाकृष्ण ने कहा, "कू की संरचना में शामिल चीनी निवेशक शुनवेई से कंपनी से बाहर जाने का फैसला ले लिया है।" कू को उम्मीद है कि इस मुद्दे को लगभग एक ही महीने की समयावधि में हल कर लिया जाएगा।
राधाकृष्ण ने आगे कहा, "भारत में चीनी निवेशकों पर बढ़ते प्रतिबंधों के चलते कंपनी से शुनवेई के बाहर निकलने की प्रक्रिया को उपयुक्त जांच और स्पष्टीकरण से होकर गुजरना होगा।"
वेरिफिकेशन की बात पर टीम ने कहा, "हमारा वेरिफिकेशन लोकप्रियता के बजाय प्रामाणिकता पर आधारित है इसलिए हम अपने समकालीनों के मुकाबले अधिक पारदर्शिता के साथ अकाउंट्स को वेरिफाई करने में सक्षम हैं। एक प्लेटफॉर्म के तौर पर हमारी इच्छा इसे और बेहतर ढंग से पेश करने की है और हर कोई इसका उपयोग कर सके इसके लिए हम कुछ नियमों की भी पेशकश करेंगे।"
पॉलिटिकल एक्सपोजर पर टीम ने कहा, "राजनीतिक संबंध होने या संगठित रूप से राजनीतिक भागीदारी होने की बातें सम्पूर्ण रूप से गलत हैं। हम एक ऐसे प्लेटफॉर्म का संचालन कर रहे हैं, जो समस्त भारतीयों के लिए अनुकूल हो। एक देसी कंपनी होने के नाते हम भारतीय संविधान और कानूनों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। हम इसे एक ऐसे मंच के रूप में पेश करना चाहते हैं, जो लोगों का, लोगों के द्वारा और लोगों के लिए हो। फिलहाल, रवि शंकर प्रसाद, पीयूष गोयल, बी. एस. येदियुरप्पा, शिवराज सिंह चौहान, एचडी देवगौड़ा, एचडी कुमारस्वामी, प्रियांक खड़गे हमारे प्लेटफॉर्म से जुड़े हैं और हम निश्चित हैं कि आने वाले दिनों में और भी कई राजनीतिक दिग्गज अपने प्रांतीय ऑडियंस संग हमारे मंच के साथ जुड़ेंगे।"
तकनीक से जुड़े मुद्दों पर टीम ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, "कू के बारे में डेटा ब्रीच होने की बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया है। कू के 95 फीसदी यूजर्स अपने मोबाइल फोन नंबर के माध्यम से लॉग इन करते हैं। लैंग्वेज कम्युनिटी के लोग ईमेल से लॉग इन नहीं करते हैं। ईमेल लॉग इन का इजात हाल ही में हुआ है। जो डेटा पहले से ही सार्वजनिक है, उसे ब्रीच करार देना सही नहीं है। सेशन टोकन मैनेजमेंट से जुड़े कुछ मुद्दे थे, जिन्हें सुलझा लिया गया है।" (आईएएनएस)
नेपाल ने दो भारतीय नागरिकों पर छह साल तक का पर्वतारोहण प्रतिबंध लगाया है.
साथ ही उनके एवरेस्ट चढ़ने के प्रमाणपत्र को निरस्त कर दिया है. इन दो शख़्स ने दावा किया था कि उन्होंने मई 2016 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी.
इन दो भारतीय पर्वतारोहियों नरेंद्र सिंह यादव और सीमा रानी गोस्वामी को 2016 में पर्यटन विभाग की ओर से एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रमाण पत्र जारी किया गया था, जो संपर्क अधिकारी ने पेश की गई तस्वीरों और चढ़ाई की रिपोर्ट को देखते हुए जारी किया था.
लेकिन नेपाल के पर्यटन मंत्रलय ने अपनी जांच में पाया है कि ये दस्तावेज़ फर्ज़ी थे.
पर्यटन मंत्रलय के प्रवक्ता तारानाथ अधिकारी ने नेपाली अख़बार काठमांडू पोस्ट को दिए गए एक बयान में कहा, ‘’ हमारी जांच रिपोर्ट बताती है कि जिन तस्वीरों को दिखा कर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने का दावा किया गया वो नकली थीं. सरकार ने चढ़ाई प्रमाणपत्रों को रद्द करने और उन पर छह साल के पर्वतारोहण प्रतिबंध को जारी करने का फ़ैसला लिया है.‘’
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि कश्मीर पर उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है. वह कश्मीर को विवादित क्षेत्र ही मानता है.
हाल ही में अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने एक ट्वीट में विवादास्पद क्षेत्र के रूप में कश्मीर का ज़िक्र नहीं किया था, जिसके बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अमेरिका के सामने इसे लेकर चिंता ज़ाहिर की थी. पाकिस्तान का कहना है कि अब बाइडन प्रसाशन ने अपना रूख़ साफ़ किया है.
ट्वीट को लेकर पूछे गए एक सवाल पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा है,‘’ हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि इस क्षेत्र में अमेरिकी नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है ‘’
जम्मू-कश्मीर में हाल ही में 4जी इंटरनेट की बहाली होने पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय की ओर से ट्वीट किया गया था, ''हम भारत के जम्मू और कश्मीर में 4जी मोबाइल इंटरनेट की बहाली का स्वागत करते हैं. यह स्थानीय निवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण क]दम है और हम जम्मू-कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए निरंतर राजनीतिक और आर्थिक प्रगति के लिए तत्पर हैं.‘’
इस ट्वीट में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर को विवादित इलाक़ा नहीं लिखा था, जिसके बाद से पाकिस्तान में सवाल उठने लगे थे कि क्या बाइडन प्रशासन ने जम्मू-कश्मीर को लेकर कोई नीतिगत बदलाव किया है. (bbc.com)
इस्लामाबाद, 12 फरवरी | पाकिस्तान की सेना ने यहां जारी अपने एक बयान में कहा है कि पाकिस्तान ने 450 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली क्रूज मिसाइल का सफल प्रक्षेपण किया है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) द्वारा जारी एक बयान में सेना के मीडिया विंग ने कहा कि गुरुवार को लॉन्च की गई बाबर क्रूज मिसाइल समुद्र और भूमि लक्ष्यों के खिलाफ प्रक्षेपित किए जाने में सक्षम हैं।
आईएसपीआर ने अपने बयान में कहा, "इस मिसाइल को अत्याधुनिक मल्टी ट्यूब मिसाइल व्हीकल से लॉन्च किया गया है।"
सेना के वरिष्ठ अधिकारियों व अन्य सिविल अधिकारियों की उपस्थिति में सफलतापूर्वक इसका प्रक्षेपण किया गया, जिन्होंने सेना के रणनीतिक बलों के प्रशिक्षण और परिचालन संबंधी तैयारियों के मानकों की प्रशंसा की क्योंकि इससे पता चलता है कि ये इस क्षेत्र में हथियार प्रणाली के कुशल संचालन और सभी निर्धारित प्रशिक्षण मापदंडों को पूरा करने में सक्षम हैं।
बयान के मुताबिक, राष्ट्रपति आरिफ अल्वी, प्रधानमंत्री इमरान खान और संयुक्त समिति के अध्यक्ष और सेवा प्रमुखों के अध्यक्षों ने मिसाइल परीक्षण के सफल संचालन के लिए वैज्ञानिकों सहित इंजीनियरों की टीम को बधाई दी है। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 12 फरवरी (आईएएनएस)| दुनियाभर में कोरोनोवायरस मामलों की कुल संख्या 10.77 करोड़ तक पहुंच चुकी है जबकि 23.6 लाख से अधिक लोग इससे अपनी जान गंवा चुके हैं। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी दी है। यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम्स साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने शुक्रवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि कोरोना के वर्तमान वैश्विक मामले 107,749,090 हैं और 2,366,158 लोगों की मौत हो चुकी है। सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक 27,389,196 मामलों और 475,221 मौतों के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है। वहीं, 10,871,294 मामलों के साथ भारत दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, कोरोना के 10 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (9,713,909), ब्रिटेन (4,010,362), रूस (3,983,031), फ्रांस (3,465,951), स्पेन (3,041,454), इटली (2,683,403), तुर्की (2,564,427) जर्मनी (2,321,225), कोलंबिया (2,179,641), अर्जेंटीना (2,008,345), मेक्सिको (1,957,889), पोलैंड (1,570,658), ईरान (1,496,455), दक्षिण अफ्रीका (1,484,900), , यूक्रेन (1,302,811), पेरू (1,203,502), इंडोनेशिया (1,191,990), चेक रिपब्लिक (1,064,952) और नीदरलैंड (1,031,454) हैं।
वर्तमान में 236,201 मौतों के साथ ब्राजील मौतों के मामले में दूसरे स्थान पर है। इसके बाद तीसरे स्थान पर मेक्सिको (169,760) और चौथे पर भारत (155,360) है।
इस बीच, 20,000 से ज्यादा मौतों वाले देशों में ब्रिटेन (115,748), इटली (92,729), फ्रांस (80,951), रूस (77,415), स्पेन (64,217), जर्मनी (63,858), ईरान (58,751), कोलंबिया (56,983), अर्जेंटीना (49,874), दक्षिण अफ्रीका (47,382), पेरू (42,859), पोलैंड (40,177), इंडोनेशिया (32,381), तुर्की (27,187), यूक्रेन (25,330), बेल्जियम (21,512) और कनाडा (21,089) शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र,12 फरवरी| संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 75वें सत्र के अध्यक्ष वोल्कान बोजकिर ने गुरुवार को चीन के लोगों को चंद्र नव वर्ष के लिए शुभकामनाएं दीं। अपने एक संदेश में यूएनजीए अध्यक्ष ने कहा कि चीनी संस्कृति में बैल सकारात्मकता, साहस, ईमानदारी और कठिन परिश्रम का प्रतिनिधित्व करता है, ये सभी कुछ इस तरह के कामों का मिश्रण है, जिन्हें हम यूएन में करते हैं।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक बोजकिर ने कहा, "यह नया बैल (चीनी भाषा में न्यू) वर्ष आपके लिए ढेर सारी खुशियां और अच्छी सेहत लेकर आए।"
चीनी चंद्र नव वर्ष या स्प्रिंग फेस्टिवल का पालन चीनी पंचाग के आधार पर किया जाता है। इस साल 12 फरवरी के दिन चीन में इसे सेलिब्रेट किया जाएगा, जो कि बैल वर्ष भी है। (आईएएनएस)
चीन ने बीबीसी वर्ल्ड सर्विस टेलीविज़न को चीन के भीतर प्रसारण करने से प्रतिबंधित कर दिया है.
चीन का दावा है कि बीबीसी अनुचित और असत्य पत्रकारिता कर रहा है.
हाल के महीनों में चीन ने बीबीसी की कोरनावायरस महामारी और शिनजियांग में वीगर मुसलमानों के शोषण पर रिपोर्टों की आलोचना की है.
एक बयान में ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि चीन में इंटरनेट और मीडिया पर सबसे सख़्त पाबंदियां लागू हैं.
बयान में कहा गया है कि चीन का ये फ़ैसला दुनिया के सामने उसकी ही साख कम करेगा.
बीते सप्ताह ब्रिटेन के मीडिया नियामक ऑफकॉम ने चीन के सरकारी नियंत्रण वाले चैनल सीजीटीएन का प्रसारण लाइसेंस निलंबित कर दिया था.
वहीं बीबीसी के एशिया एडिटर का कहना है कि चीन में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस टीवी के प्रतिबंधित किए जाने का बहुत ज़्यादा असर नहीं होगा क्योंकि चीन में ये चैनल अधिकतर लोगों के लिए पहले से ही उपलब्ध नहीं था.
बीबीसी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, 'हमें खेद है कि चीन के प्रशासन ने ये क़दम उठाया है. बीबीसी दुनिया के सबसे विश्वस्नीय अंतरराष्ट्रीय समाचार प्रसारकों में से एक है और दुनियाभर से पूरी निष्पक्षता से, बिना डर या पक्षपात के कहानियां रिपोर्ट करता है.' (bbc.com)
मीडिया संस्थानों पर लगाए जा रहे भारी टैक्स के विरोध में पोलैंड में 24 घंटों के लिए रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइटें बंद रहेंगी. मीडिया का आरोप है कि टैक्स मीडिया की आवाज को दबाने के लिए लगाया जा रहा है.
(dw.com)
बुधवार, 11 फरवरी को पोलैंड में प्राइवेट मीडिया लगभग पूरी तरह बंद रहेगा. 45 निजी मीडिया संस्थान इसमें हिस्सा ले रहे हैं. इस दौरान न्यूज वेबसाइटों पर काली स्क्रीन और सरकार के विरोध में बैनर लगा देखा जा सकता है. आज सुबह के अखबारों के पहले पन्ने भी काले ही दिखे.
यह नया टैक्स टीवी, रेडियो, प्रिंट और इंटरनेट मीडिया कंपनियों पर लगेगा. सिनेमा भी इसकी चपेट में आएंगे. सरकार का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान नेशनल हेल्थ फंड को बढ़ाने के लिए ऐसा किया जा रहा है. सरकार के अनुसार मीडिया पर लगे टैक्स का 50 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
प्रधानमंत्री माटेउष मोरावीकी ने इसे सद्भावना शुल्क का नाम दिया है और कहा है कि इसका इस्तेमाल देश के सांस्कृतिक क्षेत्र को मजबूत करने के लिए भी किया जाएगा. सरकारी प्रवक्ता पियोत्र म्यूलर ने सरकारी टीवी चैनल पर इसका बचाव करते हुए कहा है कि यूरोप के अन्य देशों में भी इस तरह के टैक्स लगे हुए हैं.
मीडिया की आजादी पर हमला
वहीं, देश में मीडिया का कहना है कि यह टैक्स मीडिया की आजादी को छीनने के लिए लगाया गया है. सरकार को लिखे गए एक खुले पत्र में 40 मीडिया संस्थानों ने मिल कर लिखा है कि इतने भारी टैक्स के चलते देश में बहुत सी मीडिया कंपनियों को बंद करने की नौबत आ सकती है. ऐसे में, जनता को निष्पक्ष जानकारी नहीं मिल सकेगी.
अमेरिका का डिस्कवरी ग्रुप पोलैंड में टीवीएन नाम का चैनल चलाता है. चैनल ने एएफपी से बातचीत में कहा है कि यह सरकार की अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने की कोशिश है. वहीं रेडियो जेन ने अपने श्रोताओं से कहा, "बिना स्वतंत्र मीडिया के स्वतंत्र देश नहीं होते हैं. चुनने की आजादी के बिना कोई आजादी नहीं होती."
यह टैक्स केवल प्राइवेट चैनलों या निजी मीडिया कंपनियों पर ही लगेगा. सरकारी चैनल इससे बाहर रहेंगे. पिछले कुछ वक्त से पोलैंड की दक्षिणपंथी सरकार मीडिया की आजादी पर नकेल कसने की कोशिशें करती रही है. सरकारी रेडियो और टीवी चैनलों में बड़ी संख्या में स्टाफ को बदला गया है.
इसके अलावा निजी मीडिया कंपनियों की विज्ञापन के जरिए होने वाली कमाई को भी रोकने की कोशिश की गई है. बताया जा रहा है कि बुधवार को सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले कई मीडिया संस्थान ऐसे हैं, जिन पर बंद होने और सरकार द्वारा अधिग्रहण का खतरा है. ऐसे में सरकार के खिलाफ लिखने वालों की नौकरियां जाना तय ही दिखता है.
आईबी/एके (एएफपी, डीपीए)
पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर चल रहे महाभियोग में संसद के अंदर लगे कैमरों की फुटेज दिखाई गई है जिससे पता चलता है कि स्पीकर नैंसी पेलोसी को अगर वक्त रहते सुरक्षाकर्मियों ने बाहर ना निकाला होता, तो उनकी जान जा सकती थी.
डॉयचे वैले पर ईशा भाटिया सानन की रिपोर्ट-
अमेरिकी संसद कैपिटोल हिल पर हिंसा भड़काने के आरोप में डॉनल्ड ट्रंप पर चल रहे महाभियोग की सुनवाई के दूसरे दिन ऐसा वीडियो पेश किया गया जिसे देख कर पता चलता है कि यह हमला कितना खतरनाक था. सीसीटीवी कैमरों से ली गई फुटेज को संसद के नक्शे के साथ दिखाया गया ताकि समझाया जा सके कि दंगाई कैपिटोल के अंदर कहां कहां तक पहुंच गए थे.
वीडियो में देखा जा सकता है कि जैसे ही सुरक्षाकर्मी नैंसी पेलोसी और उनके स्टाफ को सुरक्षित कमरे में ले जाते हैं, उसके सिर्फ सात मिनट बाद दंगाइयों का एक झुंड वहां पहुंचता है. ये लोग नैंसी पेलोसी को खोज रहे हैं. एक व्यक्ति चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है, "नैंसी तुम कहां हो, हम तुम्हें ढूंढ रहे हैं, नैंसी.."
इम्पीचमेंट मैनेजर स्टेसी प्लैसकेट ने कहा, "सच्चाई सच्चाई है, फिर चाहे उसे माना जाए या नहीं और सच्चाई यह है कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने महीनों तक अपने समर्थकों से एक प्रदर्शन में हिस्सा लेने का आह्वान किया था. वे एक खास दिन, एक खास वक्त और खास जगहों की बात करते रहे.. तब तक, जब तक उनके समर्थकों ने इसे कैपिटोल पर हमला करने के संकेत के रूप में समझ नहीं लिया." प्लैसकेट ने कहा कि इन लोगों के हाथ जो भी कोई लग जाता, ये उसकी जान ले लेते.
प्लैसकेट ने वीडियो के जरिए यह भी समझाया कि दंगाई उपराष्ट्रपति और उनके परिवार से मात्र 100 फीट की दूरी पर थे. सीसीटीवी फुटेज में माइक पेंस और उनके परिवार को सुरक्षाकर्मियों द्वारा चेंबर से बाहर ले जाते देखा जा सकता है. प्लैसकेट ने कहा, "यह संयोग की बात नहीं है, कुछ भी संयोग से नहीं हुआ है. डॉनल्ड ट्रंप ने कई महीनों तक योजनाबद्ध तरीके से हिंसा को बढ़ावा दिया."
ट्रंप के खिलाफ एकजुट
महाभियोग के दौरान रिपब्लिकन पार्टी के कई सांसदों ने ट्रंप के खिलाफ गवाही दी. रिपब्लिकन जेमी रेस्किन ने कहा, "सबूत आपको दिखाएगा कि पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इसमें बेकसूर मूक दर्शक नहीं थे. सबूत दिखाएगा कि उन्होंने ही 6 जनवरी की हिंसा भड़काई थी. वह दिखाएगा कि डॉनल्ड ट्रंप ने इसमें कमांडर इन चीफ की भूमिका निभाई."
इस दौरान ट्रंप द्वारा किए गए ट्वीट दिखाए गए. एक ट्वीट में वे (हिंसा भड़काने वालों से) कह रहे थे, "और हम लड़ेंगे. हम हर हाल में लड़ेंगे. और अगर आप नहीं लड़े तो आपके पास यह देश नहीं रहेगा.. आपको जोश जारी रखना होगा और आपको मजबूती से आगे बढ़ना होगा."
रिपब्लिकन जो नेगयूज ने कहा "कुछ लोगों का कहना है कि ट्रंप सिर्फ भाषण दे रहे थे. मैं यह जानना चाहूंगा कि हमारे इतिहास में ऐसा कब हुआ कि किसी राष्ट्रपति ने भाषण दिया और हजारों लोग संसद पर हमला करने पहुंच गए, वह भी हाथ में हथियार लिए.. यह मात्र एक भाषण नहीं था."
इस दौरान उन विज्ञापनों को भी दिखाया गया जो डॉनल्ड ट्रंप ने दिसंबर में चलवाए थे. एक का नाम था "फ्रॉड" और दूसरे को "स्टॉप द स्टील". ट्रंप अपने समर्थकों से यह कहते रहे कि उनसे यह चुनाव छीना जा रहा है, झूठे वोट डलवा कर उन्हें हराने का षड्यंत्र रचा जा रहा है. इस पर उन्होंने पांच करोड़ डॉलर तक खर्च किए. महाभियोग के दौरान कहा गया कि ट्रंप ने इन विज्ञापनों को 5 जनवरी तक चलवाया ताकि 6 जनवरी को हिंसा करवा सकें.
ना भूलने वाले पल
6 जनवरी की घटनाओं को याद करते हुए रिपब्लिकन मैडलीन डीन की आंखें भर आईं. उन्होंने कहा, "मैं कुछ साथियों के साथ गैलरी में खड़ी थी. तभी एक आवाज आई.. नीचे झुको.. फिर कहा.. लेट जाओ.. अपने ऑक्सीजन मास्क निकाल लो. इसकी कुछ देर बाद चेंबर के दरवाजों को जोर जोर से पीटने की आवाज आने लगी. मैं उन आवाजों को कभी भूल नहीं पाउंगी."
रिपब्लिकन डेविड सिसिलीन ने ट्रंप पर आरोप लगाया कि इस हमले के शुरुआती घटों में ट्रंप ने उसे रोकने की, लोगों को बचाने की कोई कोशिश नहीं की. उन्होंने कहा, "उन्होंने एक बार भी इस हमले की निंदा नहीं की, बल्कि 6 जनवरी को अगर उन्होंने किसी की निंदा की थी तो वो थे उनके उपराष्ट्रपति माइक पेंस, जो इस इमारत में कहीं छिपने पर मजबूर थे क्योंकि उनकी और उनके परिवार की जान पर बन आई थी." (dw.com)
हांगकांग में चीन की सख्ती को देखते हुए वहां के लाखों लोगों के लिए ब्रिटेन ने अपनी नागरिकता देने का रास्ता खोल दिया है. लेकिन क्या अपने शहर, अपनी जगह और अपने वतन को छोड़ना इतना आसान होता है?
1997 में हांगकांग चीन को सौंपे जाने से पहले वहां ब्रिटेन का शासन था. ब्रिटेन ने इस वादे के साथ हांगकांग चीन को सौंपा था कि कम के कम 50 साल तक वहां की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को नहीं बदला जाए. चीन ने भी इसे "एक देश दो व्यवस्थाओं" वाले सिद्धांत के तहत स्वीकार किया था. लेकिन अब वह देश के दूसरे हिस्सों की तरह हांगकांग में भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का एकछत्र राज कायम करना चाहता है. 2019 में वहां हुए लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों को ताकत के दम पर कुचला गया. नए सुरक्षा कानून के तहत बड़े पैमाने पर लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया.
चीन की सरकार 75 लाख की आबादी वाले हांगकांग में उठने वाली हर उस आवाज को दबाना चाहती है जो उसके सुर में सुर नहीं मिलाती. इन हालात में ब्रिटेन ने अपनी नई वीजा स्कीम के तहत उन लोगों को ब्रिटेश नागरिकता की पेशकश की है जो हांगकांग को छोड़ना चाहते हैं.
कैसी होगी नई जिंदगी
इमिग्रेशन कंसल्टेंट बिली वोंग के पास हाल के महीने में ऐसे लोगों की बहुत सारी फोन कॉल्स आई हैं जो ब्रिटेन जाना चाहते हैं. 44 साल के वोंग कहते हैं, "बहुत सारे लोग हांगकांग छोड़ना चाहते हैं. संख्या बहुत ही ज्यादा है." खुद वोंग भी ब्रिटेन जाना चाहते हैं. वह और उनकी पत्नी आईलीन येउंग कई बरसों से इस बारे में सोच रहे थे.
येउंग नए सुरक्षा कानून की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, "अब यह कानून आ गया है. हमें बहुत सावधानी बरतनी पड़ रही है कि क्या बोलें और फेसबुक पर क्या लिखें... सबसे ज्यादा मैं अपनी बेटी के लिए चाहती हूं कि वह आजाद रहे और मुक्त रूप से सोच सके."
उनकी बेटी टिनयू अभी 10 साल की है. उसका दाखिला पहले ही ब्रिटेन के डेब्री शहर के एक स्कूल में हो गया है. अपनी जिंदगी के अगले अध्याय के बारे में उसके जेहन में बहुत सारे सवाल हैं. वह कहती है, "इमिग्रेशन का क्या मतबल होता है? क्या इसका मतलब है कि कहीं और जाना होगा.. यहीं हांगकांग में किसी दूसरी जगह पर? ब्रिटेन कैसा है? क्या ब्रिटेन के लोग अच्छे होते हैं? मैं खुद से बहुत सारे सवाल पूछती हूं."
पहचान का सवाल
42 साल के गाविन मोक को अपनी पत्नी लिडिया के साथ ब्रिटेन में बसे तीन महीने हो गए हैं. अब जाकर उनके घर का सामान उन तक पहुंचा है. अपनी जगह को छोड़ना और ब्रिटेन के शहर एक्सेटर में नई दुनिया बसाना उनके लिए बहुत मुश्किल था. उन्होंने इस पूरे प्रोसेस को फिल्माया है और यूट्यूब पर अपलोड किया है. उन्हें उम्मीद है कि उनका यूट्यूब चैनल हांगकांग के दूसरे लोगों को भी ब्रिटेन में आने के लिए प्रेरित करेगा. वह कहते हैं, "मैं अपना अनुभव साझा करना चाहता हूं. लोगों को बताना चाहता हूं कि अब हांगकांग को छोड़ने का समय आ गया है."
वैसे, मोक की स्कूल और यूनिवर्सिटी की पढ़ाई ब्रिटेन में हुई है. इसलिए उनकी दोनों बेटियों को यहां ज्यादा समस्या नहीं हो रही है. एक बेटी 9 साल की है और दूसरी 11 साल की. मोक तो हंसते हुए कहते हैं, "वे तो कैंटोनीज से ज्यादा अंग्रेजी ही बोलती हैं"
मोक हांगकांग के फाइनेंशियल सेक्टर में काम करते थे. वह कहते हैं कि अब वहां के जैसी सैलरी वाली जॉब मिलनी तो आसान नहीं है, लेकिन वह कम सैलरी वाला काम भी करने को तैयार हैं. वह कहते हैं, "मैं खाने और पार्सल की डिलीवरी जैसे काम भी कर सकता हूं."
उन्हें तो हांगकांग की याद भी नहीं सताती है. वह कहते हैं, "एक जगह के तौर पर मैंने बहुत पहले ही उसे छोड़ दिया था. वहां असल में मेरे लिए कुछ बचा नहीं है. लेकिन हांगकांग वासी के तौर पर अपनी पहचान को मैं कभी नहीं छोड़ूंगा."
रातोंरात लिया फैसला
जून 2019 में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों पर सरकार समर्थकों के हमलों ने 40 साल के विंस्टन वोंग और कोनी चान को हांगकांग छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. पिछले साल ब्रिटेन आकर बसी चान कहती हैं, "हमने बिल्कुल रातोंरात फैसला किया कि अब यहां से चले जाना ही बेहतर है." फिलहाल वह ब्रिटेन में रह कर ही हांगकांग में अपना बिजनेस संभाल रही हैं.
चेम्सफोर्ड को उन्होंने अपना नया घर बनाया है. उनका नौ साल का एक बेटा है. चान कहती हैं, "हम अपने बच्चे और उसके भविष्य को लेकर चिंतित थे." महामारी के बीच एक नए देश में आकर बसना कतई आसान नहीं था. वोंग फाइनेंशियल डायरेक्ट का अच्छा खासा पद छोड़कर ब्रिटेन आए हैं. अभी उन्होंने ब्रिटेन में कोई काम नहीं ढूंढा है.
चीन ब्रिटेन की नई वीजा स्कीम से बिल्कुल खुश नहीं है और उसे दुष्परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रहा है. लेकिन वोंग इससे बेपरवाह हैं. वह कहते हैं, "अगर अधिकारी मजबूर करेंगे तो मैं अपना हांगकांग का पहचान पत्र त्यागने में बिल्कुल नहीं हिचकूंगा. मुझे नहीं लगता कि हांगकांग निवासी के तौर पर मेरी पहचान किसी पहचान पत्र की मोहताज है."
अभी तौ मैं युवा हूं..
उधर 40 साल के इयान इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि ब्रिटेन में कोरोना वायरस की वैक्सीन का कैसा असर होता है. उसके बाद ही वह वहां जाने के बारे में सोचेंगे. वह हमेशा चाहते थे कि अपनी रिटायरमेंट वाली जिंदगी ब्रिटेन में ही गुजारें. उन्हें ब्रिटेन की संस्कृति पसंद रही है, लेकिन राजनीतिक घटनाओं को देखते हुए वह अब जल्द वहां बसने के बारे में सोच रहे हैं. वह कहते हैं, "हांगकांग के राजनीतिक हालात दिन प्रति दिन खराब होते जा रहे हैं, इसलिए मैंने पहले ही यहां से निकल जाने का फैसला किया है."
वह एक ऑनलाइन उद्यमी हैं, इसलिए कहीं से भी काम कर सकते हैं. लेकिन उनकी पार्टनर को अभी हांगकांग में ही ठहरना होगा. वह कहते हैं, "हांगकांग अब वह शहर नहीं रहा जिसे मैं जानता था. अतीत में युवा लोग भी यहां धीरे धीरे सामाजिक सीढियां चढ़कर ऊपर पहुंच जाते थे, लेकिन अब आप देख सकते हैं कि युवा लोगों का भविष्य अंधकारमय है."
वह कहते हैं कि अभी तो वह युवा ही हैं और ब्रिटेन में जाकार आसानी से नई जिंदगी शुरू कर सकते हैं. हालांकि उन्होंने अभी पैकिंग शुरू नहीं की है. वैसे वह बहुत कम सामान लेकर ब्रिटेन जाना चाहते हैं. चीन की सांस्कृतिक क्रांति और हांगकांग के लोकतांत्रिक आंदोलन से जुड़ी किताबें वह जरूर अपने साथ ले जाना चाहेंगे. वह कहते हैं, "ऐसा लगता है कि कुछ किताबें अपने साथ रखना हमारा कर्तव्य है."
एके/आईबी (एएफपी)
लंदन, 11 फरवरी | इंपीरियल कॉलेज लंदन ने एक अध्ययन प्रकाशित किया है, जिसमें कोविड-19 से संबंधित कुछ नए लक्षणों का पता चला है। इन नए लक्षणों में ठंड लगना, भूख में कमी, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द शामिल हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, जून 2020 से जनवरी 2021 के बीच 10 लाख से अधिक लोगों पर किए गए सर्वे के आधार पर अध्ययन में कहा गया है कि ये नए लक्षण वायरस के उन क्लासिक लक्षणों (बुखार, लगातार खांसी, गंध और/या स्वाद की क्षमता खो देना) के अलावा थे, जिनका उल्लेख नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) के मार्गदर्शन में शामिल है।
इंपीरियल कॉलेज लंदन में रिएक्ट (रियल-टाइम असेसमेंट ऑफ कम्युनिटी ट्रांसमिशन) टीम द्वारा जारी किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि उम्र के आधार पर लक्षणों में कुछ भिन्नता थी, लेकिन ठंड सभी आयु वर्ग के कोविड-19 मरीजों को महसूस हुई थी।
बता दें कि ब्रिटेन में अब कुल मामलों की संख्या गुरुवार सुबह तक बढ़कर 39,96,833 और मौतों का आंकड़ा 1,15,068 हो गया है। यह देश संक्रमण के मामलों में दुनिया में अमेरिका, भारत और ब्राजील के बाद चौथे नंबर पर है। वहीं मौतों के मामले में अमेरिका, ब्राजील, मैक्सिको और भारत के बाद पांचवें नंबर पर है। यहां अब तक 1.26 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन का पहला डोज मिल चुका है। (आईएएनएस)
दुबई, 11 फरवरी | पैरा एथलीट्स देवेंद्र कुमार और निमिषा सुरेश चक्कुनगालपरांबिल ने 12वीं फाजा अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप विश्व पैरा एथलेटिक्स ग्रां प्री के पहले दिन अपनी-अपनी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। देवेंद्र ने डिस्कस थ्रो (चक्का फेंक) स्पर्धा में दूसरे प्रयास में 50.61 मीटर दूरी नापकर पहला स्थान प्राप्त किया और स्वर्ण पदक जीता। भारत के ही प्रदीप ने 41.77 मीटर की थ्रो के साथ रजत और बेलारूस के दमित्री बरताशएविच ने 37.8 मीटर थ्रो के साथ कांस्य पदक जीता।
निमिषा ने महिलाओं के एफ46/47 लंबी कूद स्पर्धा में 5.25 मीटर छलांग लगा कर स्वर्ण पदक हासिल किया। उनके अलावा फ्रांस की एंजेलिना लांजा ने 5.05 मीटर और श्रीलंका की के. दिसानायके मुदियांसेला ने 4.89 मीटर की छलांग लगाकर क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीता।
इस बीच रक्षिता राजू ने 1500 मीटर टी11 स्पर्धा में पांच मिनट 22 सेकेंड में दौड़ पूरी कर कांस्य पदक जीता। (आईएएनएस)