अंतरराष्ट्रीय
वाशिंगटन, 24 जनवरी| कोविड ट्रैकिंग प्रोजेक्ट की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, इस सप्ताह अमेरिका में नए कोविड-19 मामलों, अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या और मौतों की दर में गिरावट देखी जा रही है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में अभी भी मौत की दर बढ़ रही है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट से जानकारी मिली कि ट्रैकिंग परियोजना के अनुसार, नए मामलों में 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि नवंबर के बाद से बिना छुट्टी वाले सप्ताह में नए मामलों की सबसे कम संख्या है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, लगातार 16 हफ्ते की बढ़ोतरी के बाद, औसत साप्ताहिक अस्पताल में इस सप्ताह 4 प्रतिशत की गिरावट आई है, जो कि एक अच्छा संकेत है।
ट्रैकिंग प्रोजेक्ट के अनुसार, वर्तमान में 24 राज्यों में एक सप्ताह पहले कोविड-19 के साथ अस्पताल में भर्ती लोगों की संख्या में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। न्यूयॉर्क को छोड़कर अन्य राज्यों के अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है।
राज्यों से इस सप्ताह 21,301 कोविड-19 मौतों की सूचना मिली।
ट्रैकिंग प्रोजेक्ट के अनुसार, हालांकि, अमेरिकी दीर्घकालिक देखभाल सुविधाओं की स्थिति चिंताजनक है। लगातार दूसरे सप्ताह में देशभर में दीर्घकालिक देखभाल सुविधाओं में 7,000 से अधिक निवासियों और कर्मचारियों की मृत्यु की सूचना दी, जो कि पिछले साल मई से भी अधिक है।
नए मामलों में 31 राज्य और क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है। वहीं बीस राज्य और क्षेत्रों में नए मामलों वृद्धि देखी गई है।
यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन द्वारा शनिवार को अपडेट किए गए आंकड़ों के अनुसार, देशभर में शुक्रवार को कुल 1,91,799 नए मामले और 3,895 मौतें हुईं।
अमेरिका के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया में शुक्रवार को एक बार फिर सर्वाधिक कोविड-19 मौतों की अधिक संख्या 764 दर्ज की गई।
(आईएएनएस)
लंदन, 24 जनवरी | ब्रिटेन में और 33,552 लोग कोविड-19 से संक्रमित पाए गए। देश में कोरोनावायरस से संक्रमण के मामलों की कुल संख्या 36,17,459 हो गई है। यह आधिकारिक आंकड़ा शनिवार को जारी किया गया। हाल के 28 दिनों के भीतर 1,348 लोगों की मौत हो चुकी है। ब्रिटेन में कोरोना से मौतों की कुल संख्या अब 97,329 हजार हो गई है।
--आईएएनएस
वॉशिंगटन, 24 जनवरी | दुनियाभर में कोरानावायरस से संक्रमित मामलों की संख्या 9.86 करोड़ तक पहुंच गई है, जबकि अब तक 21.1 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आंकड़ों से इनका खुलासा हुआ है। यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) के रविवार सुबह अपडेट मुताबिक, दुनियाभर में इस वक्त संक्रमितों और मृतकों की संख्या क्रमश: 98,693,047 और 2,118,697 है।
सीएसएसई के मुताबिक, कोरोनावायरस से सबसे अधिक प्रभावित देश अमेरिका में मामलों और मृतकों की संख्या सबसे ज्यादा है। यहां संक्रमितों की संख्या 24,985,689 और मरने वालों की संख्या 417,339 है।
संक्रमण के मामलों के हिसाब से भारत 10,639,684 मामलों के साथ सूची में दूसरे स्थान पर है, जबकि यहां मरने वालों की संख्या 153,184 है।
जिन अन्य देशों में दस लाख से अधिक मामलों की पुष्टि हुई है, उनमें ब्राजील (8,816,254), रूस (3,658,447), ब्रिटेन (3,627,746), फ्रांस (3,093,619), स्पेन (2,499,560), इटली (2,455,185), तुर्की (2,424,328), जर्मनी (2,137,691), कोलम्बिया (2,002,969), अर्जेटीना (1,862,192), मेक्सिको (1,732,290), पोलैंड (1,470,879), दक्षिण अफ्रीका (1,404,839), ईरान (1,367,032), यूक्रेन (1,227,723) और पेरू (1,082,907) शामिल हैं।
ब्राजील कोविड से हुई मौतों के मामले में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है।
सीएसएसई के अनुसार, जिन देशों में 20,000 से अधिक जानें गई हैं, उनमें मेक्सिको (147,614), ब्रिटेन (97,518), इटली (85,162), फ्रांस (73,018), रूस (67,919), ईरान (57,294), स्पेन (55,441), जर्मनी (51,873), कोलम्बिया (50,982), अर्जेटीना (46,737), दक्षिण अफ्रीका (40,574), पेरू (39,274), पोलैंड (35,253), इंडोनेशिया (27,664), तुर्की (24,933), यूक्रेन (22,830) और बेल्जियम (20,675) शामिल हैं।
--आईएएनएस
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जेल में बंद विपक्षी नेता एलेक्सी नवेलनी के समर्थन में पूरे रूस में शुरू हुए विरोध-प्रदर्शनों के दौरान रूसी पुलिस ने 3,000 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया है.
दस हज़ार से भी अधिक लोगों ने भारी सुरक्षाबल की तैनाती में भी इन प्रदर्शनों में भाग लिया है. हाल के सालों में राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के ख़िलाफ़ इसे सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन बताया जा रहा है.
मॉस्को में रॉयट पुलिस को प्रदर्शनकारियों को पीटते और उन्हें घसीटते देखा गया है.
राष्ट्रपति पुतिन के आलोचक नवेलनी ने रविवार को अपनी गिरफ़्तारी के बाद प्रदर्शनों का आह्वान किया था.
सहयोगी पहले ही हिरासत में
पुलिस ने पूर्वी खाबारोवस्क इलाके में विरोध-प्रदर्शनों पर कड़ाई शुरू कर दी है. साथ ही लोगों को घरों पर ही रहने की सख्त चेतावनी दी है.
नवेलनी के कई निकट सहयोगियों को शनिवार के प्रदर्शनों से पहले ही हिरासत में ले लिया गया. इनमें उनकी एक प्रवक्ता और उनके वकील शामिल हैं.
नवेलनी रूस के नेता व्लादिमीर पुतिन के सबसे हाई-प्रोफाइल आलोचक हैं. उन्हें जेल में डाले जाने के बाद उनके समर्थक सोशल मीडिया पर कूद पड़े और विरोध-प्रदर्शनों का आह्वान किया जाने लगा. रूस के तकरीबन 60 शहरों में विरोध-प्रदर्शन होने के आसार हैं.
नवेलनी को रविवार को गिरफ्तार किया गया था. वे बर्लिन से लौटकर मॉस्को आए थे और इसके बाद उन्हें अरेस्ट कर लिया गया. नवेलनी पिछले साल अगस्त में रूस में हुए जानलेवा नर्व एजेंट हमले के बाद बर्लिन में रिकवर कर रहे थे.
मॉस्को पहुंचते ही उन्हें कस्टडी में ले लिया गया और उन्हें पैरोल की शर्तों के उल्लंघन का दोषी पाया गया. नवेलनी का कहना है कि यह केस उन्हें खामोश करने के लिए रचा गया है और उन्होंने अपने समर्थकों से विरोध-प्रदर्शन करने का आह्वान किया.
अब तक क्या हुआ है?
रूस के फार ईस्ट में शनिवार को शुरुआती विरोध-प्रदर्शन हुए. लेकिन, इनमें शामिल होने वाले नवेलनी के समर्थकों की संख्या को लेकर विरोधाभासी खबरें आई हैं.
एक स्वतंत्र न्यूज़ स्रोत सोटा ने कहा है कि व्लाडीवोस्टक में कम से कम 3,000 लोगों ने विरोधों में हिस्सा लिया है, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने यह आंकड़ा 500 बताया है.
रॉयटर्स के मुताबिक, शहर के वीडियो फुटेज में दिख रहा है कि दंगा रोकने वाली पुलिस सड़क पर प्रदर्शनकारियों के एक समूह के पीछे भाग रही है.
दूसरी ओर, साइबेरियाई शहर याकुटस्क में -50 डिग्री सेल्शियस की ठंड में भी लोग सड़कों पर आकर प्रदर्शन कर रहे हैं.
रैलियों को मॉनिटर करने वाले एक स्वतंत्र एनजीओ ओवीडी इंफो का कहना है कि अब तक पुलिस ने देश भर से 48 लोगों को हिरासत में लिया है. इनमें से 13 लोग खाबरोवस्क में हिरासत में लिए गए हैं.
रूसी अधिकारियों ने कड़ाई बरतने का आह्वान किया है. पुलिस का कहना है कि अनधिकृत प्रदर्शनों और उकसावे की गतिविधियों को तत्काल दबा दिया जाएगा.
अनधिकृत रैलियां पूरे देश के 60 से ज्यादा शहरों में निकालने की योजना बनाई गई है. इनमें से एक रैली मॉस्को के सेंट्रल पुश्किन स्क्वेयर में रूस के स्थानीय समय के मुताबिक दोपहर के 2 बजे आयोजित की जानी है.
पुलिस ने स्क्वेयर के चारों तरफ सैकड़ों मेटल बैरियर्स खड़े कर दिए हैं ताकि प्रदर्शनकारियों को इकट्ठा होने से रोका जा सके.
नवेलनी की पत्नी यूलिया भी उनके साथ जर्मनी से मॉस्को लौटी थीं. यूलिया ने कहा है कि वे भी मॉस्को में होने वाले प्रदर्शनों में "अपने, अपने बच्चों के लिए और जिन मूल्यों और आदर्शों को हम मानते हैं उनकी खातिर" शरीक होंगी.
युवा लोगों में पॉपुलर सोशल मीडिया ऐप टिकटॉक पर शनिवार के विरोध-प्रदर्शनों को लेकर वीडियोज की बाढ़ आ गई है.
रूस के शिक्षा मंत्रालय ने पेरेंट्स से कहा है कि वे अपने बच्चों को प्रदर्शनों में हिस्सा लेने की इजाजत न दें.
नवेलनी के कौन से सहयोगी हिरासत में लिए गए हैं?
नवेलनी के कई खास सहयोगियों को शनिवार के प्रदर्शनों से पहले पुलिस कस्टडी में ले लिया गया है. इनमें उनकी स्पोक्सपर्सन किरा यार्मिश और उनके एक वकील ल्युबोव सोबोल शामिल हैं. इन पर जुर्माना या कम वक्त की जेल हो सकती है.
सोबोल को रिलीज कर दिया गया है, लेकिन यार्मिश पिछले नौ दिनों से जेल में हैं.
व्लाडीवोस्टक, नोवोसीबिर्स्क और क्रासनोडार शहरों में प्रमुख नवेलनी एक्टिविस्ट्स को भी पकड़ लिया गया है.
प्रदर्शनों से पहले सपोर्ट हासिल करने के लिए नवेलनी की टीम ने एक वीडियो जारी किया था. यह एक लग्जरी ब्लैक सी रिजॉर्ट का वीडियो था. इनका आरोप है कि यह रिजॉर्ट राष्ट्रपति पुतिन का है. रूस ने इन आरोपों को खारिज किया है. इस वीडियो को 6.5 करोड़ से ज्यादा लोग देख चुके हैं.
putin palace
नवेलनी से रूसी सरकार क्यों है परेशान?
लंबे वक्त से रूसी अधिकारी यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि एलेक्सी नवेलनी की कोई अहमियत नहीं है. वे केवल एक ब्लॉगर हैं, जिनकी मामूली फॉलोइंग है और वे किसी तरह का खतरा नहीं हैं.
हालिया घटनाएं इसके उलट हकीकत बयां कर रही हैं. पहले नवेलनी को नर्व एजेंट से टारगेट किया गया. आरोप है कि एफएसबी के सरकारी कातिलों के खुफिया दस्ते ने यह काम किया था.
जहर दिए जाने की घटना की जांच करने की बजाय रूस ने नवेलनी की जांच शुरू कर दी. जर्मनी से लौटते ही रूस ने उन्हें अरेस्ट कर लिया.
नवेलनी को जेल की सलाखों के पीछे डालने के साथ ही अधिकारियों ने उनके समर्थकों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है.
रूस को यूक्रेन की तरह की क्रांति रूस में भी शुरू होने का डर सता रहा है.
फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि इस तरह का माहौल पैदा हो सकता है. लेकिन, जिस तरह से आर्थिक समस्याएं बढ़ रही हैं उसे देखते हुए रूसी सरकार को चिंता है कि नवेलनी विद्रोह की भावनाएं भड़काने में आग में घी का काम कर सकते हैं. इसी वजह से शनिवार को विरोध प्रदर्शनों से पहले पुलिस ने कड़ाई से इन्हें कुचलने की कोशिशें शुरू कर दी थीं.
साथ ही, यह पूरा मामला अब निजी भी हो गया है. नवेलनी का "पुतिन के महल" का वीडियो रूसी राष्ट्रपति के लिए बड़ी किरकिरी का सबब बन गया है.
कौन हैं एलेक्सी नवेलनी?
नवेलनी एक भ्रष्टाचार विरोधी कैंपेनर हैं और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विरोध का सबसे मुखर चेहरा हैं.
उन्होंने 2018 में राष्ट्रपति चुनाव में उतरने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें एक आरोप में दोषी ठहरा दिया गया और चुनाव लड़ने से रोक दिया गया. नवेलनी इस आरोप को राजनीति से प्रेरित बताते हैं.
एक मुखर ब्लॉगर के तौर पर नवेलनी के सोशल मीडिया पर लाखों फॉलोअर्स हैं. 2020 में वे अपने कुछ समर्थकों को साइबेरिया की स्थानीय परिषदों में जिताने में भी कामयाब रहे हैं.
पिछले साल अगस्त में 44 साल के नवेलनी को एक नर्व एजेंट अटैक में तकरीबन मार दिया गया था. उन्होंने इसका सीधा आरोप राष्ट्रपति पुतिन पर लगाया था.
रूसी सरकार ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था. नवेलनी के इन आरोपों को हालांकि खोजी पत्रकारों की रिपोर्ट्स से बल मिला है.
पिछले वीकेंड अरेस्ट किए जाने के बाद से रूस पर यूएस और ईयू का दबाव बढ़ा है कि रूस नवेलनी को रिहा कर दे. जहर दिए जाने के बाद से पहली बार नवेलनी रूस पहुंचे थे. (bbc)
पाकिस्तान से छपने वाले उर्दू अख़बारों में इस हफ़्ते ब्रॉडशीट स्कैम का मामला छाया रहा.
पाकिस्तान में अभी सरकार और विपक्ष के बीच विदेशी फ़ंडिंग को लेकर तकरार चल ही रही है कि भ्रष्टाचार का एक और मामला सामने आ गया है.
ब्रिटेन की एक अदालत ने दिसंबर, 2020 में फ़ैसला सुनाया था कि लंदन स्थित पाकिस्तान उच्चायोग के बैंक अकाउंट से लंदन की ही एक कंपनी ब्रॉडशीट एलएलसी को 450 करोड़ पाकिस्तानी रुपये दिए जाएं.
ब्रॉडशीट एलएलसी कंपनी का दावा था कि पाकिस्तान पर उसके एक करोड़ 70 लाख डॉलर बक़ाया थे और पाकिस्तानी सरकार पैसे देने में आनाकानी कर रही थी जिसके बाद उसे अदालत में जाना पड़ा और लंदन की अदालत ने ब्रॉडशीट एलएलसी के पक्ष में फ़ैसला सुनाया.
क्या है ब्रॉडशीट स्कैम
ब्रॉडशीट एलएलसी ब्रिटेन स्थित एक कंपनी है जिसका मुख्य काम विदेशों में जमा फ़ंड को रिकवर करवाना है. पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ की सरकार ने साल 2000 में इस कंपनी से एक समझौता किया था जिसके तहत कंपनी को पाकिस्तानी नेताओं और नौकरशाहों की विदेशों में मौजूद संपत्ति का पता लगाना था और उसे पाकिस्तान वापस लाने में मदद करना था.
पाकिस्तानी सरकार ने कंपनी को कोई फ़ीस नहीं दी थी और कहा था कि कंपनी जितनी भी संपत्ति को रिकवर कराएगी उसे उसका 20 फ़ीसद कमीशन मिल जाएगा. कंपनी बाद में दिवालिया हो गई लेकिन उसके अमेरिकी मालिक जेरी जेम्स ने पाकिस्तान सरकार से अपने बक़ाया पैसे माँगे.
पाकिस्तान ने कंपनी के मालिक को 50 लाख डॉलर देकर मामले को सुलझा लिया था. लेकिन बाद में कंपनी के नए मालिक कावे मूसवी ने इस समझौते को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि पाकिस्तानी सरकार को कंपनी को पैसा देना है न कि किसी व्यक्ति विशेष को.
कावे मूसवी पाकिस्तान सरकार के ख़िलाफ़ अदालत गए और केस भी जीत गए. उसके बाद उन्होंने एक विवादास्पद बयान दिया कि पाकिस्तानी सरकार पैसे की रिकवरी से ज़्यादा उन लोगों के ख़िलाफ़ सुबूत जमा करने की इच्छुक है जो कि सरकार के विरोध में हैं.
अब इस मामले ने इतना तूल पकड़ लिया है कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज जस्टिस अज़मत सईद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है जो कि इस पूरे मामले की जाँच करेगी.
विपक्ष ने कमेटी पर उठाए सवाल
लेकिन विपक्ष ने कमेटी के अध्यक्ष पर ही सवाल उठाते हुए इस कमेटी के गठन का विरोध किया है.
अख़बार एक्सप्रेस के अनुसार पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) दोनों ही प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने साफ़ कह दिया है कि उन्हें जस्टिस अज़मत सईद पर भरोसा नहीं है क्योंकि अज़मत सईद इमरान ख़ान के एक ट्रस्ट के ज़रिए चलाए जा रहे शौकत ख़ानम अस्पताल के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स में शामिल हैं.
इसके अलावा जस्टिस अज़मत जजों की उस बेंच में शामिल थे जिन्होंने नवाज़ शरीफ़ को भ्रष्टाचार के मामले में दोषी क़रार दिया था. इसके अलावा जब ब्रॉडशीट कंपनी से पाकिस्तानी सरकार का समझौता हुआ था तब पाकिस्तान की ओर से समझौते पर दस्तख़त करने वाले संगठन नेशनल अकाउंटिबिलिटी ब्यूरो (नैब) के पूर्व डिप्टी प्रॉसिक्यूटर जनरल रह चुके हैं.
लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री शेख़ रशीद ने विपक्ष के विरोध को ख़ारिज करते हुए कहा कि विपक्षी पार्टी के पास अब कहने के लिए कुछ नहीं बचा है और राजनीति करने के लिए तीन ही मुद्दे हैं हज़रत मोहम्मद के इस्लाम के आख़िरी नबी होने पर विश्वास, कश्मीर और इसराइल.
अख़बार दुनिया के अनुसार इमरान ख़ान ने कहा कि इस पूरे मामले में उनकी सरकार का कोई लेना देना नहीं है और यह समझौता तो जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के समय हुआ था. इमरान ने कहा कि ब्रॉडशीट कंपनी ने नवाज़ शरीफ़ की 80 करोड़ डॉलर की संपत्ति का पता लगाया और समझौते के मुताबिक़ सरकार ने कंपनी को पैसे दिए और अगर पैसे नहीं दिए जाते तो पाँच हज़ार पाउंड प्रतिदिन की दर से ब्याज देना पड़ता.
विदेशी फ़ंडिंग का मामला भी सुर्ख़ियों में
पाकिस्तान में राजनीतिक दलों की विदेशी फ़ंडिंग को लेकर मामला इन दिनों सुर्ख़ियों में है. दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री और मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता नवाज़ शरीफ़ ने सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी के ख़िलाफ़ जारी विदेशी फ़ंडिग केस पर सवाल उठाते हुए पूछा था कि यह मामला छह साल से लटका हुआ है और चुनाव आयोग इस पर क्यों नहीं फ़ैसला कर रहा है.
11 विपक्षी पार्टियों के गुट पीडीएम (पाकिस्तान डेमोक्रैटिक मूवमेंट) ने 19 जनवरी को चुनाव आयोग के दफ़्तर के सामने विरोध प्रदर्शन भी किया.
विपक्ष का दावा है कि स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान ने चुनाव आयोग को पीटीआई के 23 बैंक खातों की जानकारी दी है जिनमें बाहर से पैसे आते थे, लेकिन इमरान ख़ान ने इनमें से 15 बैंक खातों की जानकारी चुनाव आयोग को दी ही नहीं.
इमरान ख़ान ने अपना बचाव करते हुए कहा कि यह केस एक ऐसे आदमी ने किया था जो उनकी पार्टी पीटीआई का कट्टर दुश्मन है. इमरान ख़ान ने कहा कि वो चाहते हैं कि इस पूरे मामले की खुली सुनवाई हो ताकि सब कुछ सामने आ जाए. उनके अनुसार पीटीआई को मिलने वाले सारे फ़ंड क़ानूनी हैं और सबका एक-एक पैसे का हिसाब मौजूद है.
उधर पीडीएम के संयोजक और जमीयत उलेमा-ए-पाकिस्तान के अध्यक्ष मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने कहा है कि इमरान ख़ान को सत्ता में लाने के लिए भारत और इसराइल से फ़ंडिंग की गई.
अख़बार एक्सप्रेस के अनुसार मौलाना ने कहा, "मौजूदा प्रधानमंत्री यहूदियों के एजेंट हैं जिनको सत्ता में लाने के लिए दुनिया के दूसरे देशों के साथ पाकिस्तान के दुश्मन देश भारत और इसराइल से भी फ़ंडिंग की गई.''
अख़बार दुनिया के अनुसार पीपीपी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने कहा है कि इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए वो दूसरी पार्टियों को मना लेंगे.
बिलावल ने कहा कि हम पीडीएम के प्लेटफ़ॉर्म से लोकतांत्रिक, संवैधानिक और क़ानूनी तरीक़े से इमरान की सरकार को घर भेजेंगे. (बीबीसी)
लंदन, 23 जनवरी| दक्षिण-पूर्व लंदन का 16 वर्षीय एक किशोर शनिवार को वेस्टमिंस्टर कोर्ट में पेश हुआ। उस पर आतंकी गतिविधि में संलिप्त होने का आरोप लगाया गया है। कानूनी कारणों से उसका नाम नहीं बताया गया है। उस पर एक आतंकवादी प्रकाशन के प्रचार-प्रसार का आरोप लगाया गया है। उसे दिसंबर, 2020 में गिरफ्तार किया गया था। आतंकवाद निरोधी एजेंसियों की जांच के बाद उस पर यह आरोप लगा है। उसे 26 फरवरी को दोबारा कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया गया है।(आईएएनएस)
मनीला, 23 जनवरी | फिलीपींस के मगुइंडानाओ प्रांत में शनिवार को गोलीबारी के दौरान एक पुलिस अधिकारी सहित कम से कम 13 लोग की मौत हो गई, जबकि चार अन्य घायल हो गए। इसकी जानकारी अधिकारियों ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने एक बयान में कहा कि गोलीबारी तब हुई, जब पुलिस सुल्तान कुदरत शहर में एक बदमाश के ठिकाने पर गिरफ्तारी वारंट लेकर सुबह 3 बजे पहुंची, जिसपर हत्या, डकैती समेत कई संगीन आरोप थे।
बयान में कहा गया है कि संदिग्ध और उसके हथियारबंद साथियों ने गिरफ्तारी का विरोध किया और कथित तौर पर टीम पर गोलीबारी की, जिसके परिणामस्वरूप गोलीबारी पांच घंटे तक चली।
पुलिस ने 6 एम 16 असॉल्ट राइफल, दो .45 कैलिबर पिस्टल, एक देशी .50 कैलिबर बैरेट स्नाइपर राइफल, एक एम 14 राइफल, एक लाइट ऑटोमैटिक राइफल और एक .22 कैलिबर राइफल को मौके पर से बरामद किया।
--आईएएनएस
लंदन, 23 जनवरी | लंदन की एक अदालत ने 39 वियतनामी प्रवासियों की हत्या में शामिल चार मानव-तस्करों को लंबे कारावास की सजा सुनाई है। ये प्रवासी वर्ष 2019 में एसेक्स काउंटी इलाके में एक ट्रक के कंटेनर में मृत पाए गए थे। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी के मुताबिक, लंदन के ओल्ड बेली कोर्ट ने शुक्रवार को इन चारों को सजा सुनाई। जिन चार मानव-तस्करों को लंबे कारावास की सजा सुनाई गई है, उनमें आयरलैंड के 41-वर्षीय कारोबारी रोनन ह्यूज और रोमानिया के 43-वर्षीय ट्रक मेकैनिक जार्ज निका शामिल हैं।
रोनन ह्यूज को 20 साल कैद की सजा सुनाई गई, जबकि निका को अदालत ने 27 साल कारावास की सजा सुनाई। दोनों मानव-तस्करी के धंधे में लिप्त रहे हैं। निका ने इन प्रवासियों को अवैध रूप से बेल्जियम से ब्रिटेन में दाखिल कराने में रोनन की मदद की थी।
बहरहाल, इन दोनों के अलावा जिन और दो लोगों को सजा सुनाई गई, उनमें उत्तरी आयरलैंड के 24-वर्षीय ट्रक ड्राइवर एम्मन हैरीसन और उत्तरी आयरलैंड के ही 26-वर्षीय ट्रक ड्राइवर मॉरिस रॉबिन्सन हैं। हैरीसन को 18 वर्ष और रॉबिन्सन को 13 साल चार महीने कैद की सजा सुनाई गई।
--आईएएनएस
बगदाद, 23 जनवरी | इराकी सेना ने शनिवार को कहा कि बगदाद हवाईअड्डे पर तीन रॉकेट दागे गए, जिसके ठीक तीन दिन बाद राजधानी शहर में दो बैक-टू-बैक आत्मघाती विस्फोट हुए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने इराकी ज्वाइंट ऑपरेशंस कमांड के मीडिया कार्यालय के हवाले से बताया कि शुक्रवार देर रात रॉकेट से हमला हुआ।
बयान में कहा गया कि कत्युशा रॉकेट से हवाईअड्डे के बाहर हमला किया गया।
मीडिया कार्यालय ने कहा कि रॉकेटों में से एक ने पास के अल-जिहाद जिले में एक घर को क्षतिग्रस्त कर दिया और इमारत को नुकसान पहुंचाया है।
किसी भी समूह ने अब तक हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
डाउनटाउन बगदाद के बाब अल-शरजी इलाके में एक बाहरी बाजार में दो आत्मघाती बम विस्फोट हुआ, जिसमें 32 लोगों की मौत हुई, जबकि 100 से अधिक घायल हो गए।
आईएस ने उन बम विस्फोटों के लिए जिम्मेदारी का दावा किया है, जो शिया क्षेत्र के भीड़भाड़ वाले इलाके में हुए थे।
इससे पहले, गुरुवार को बमबारी हुई थी। इराकी राजधानी शहर में लगभग दो वर्षो में पहली बार ऐसा हमला हुआ, क्योंकि यहां सुरक्षा बलों की चौकसी काफी बढ़ गई थी। इराकी सुरक्षा बलों ने 2017 के अंत में देशभर में आईएस को पूरी तरह से हरा दिया था।
हालांकि, देश में कभी-कभार छिटपुट घातक घटनाएं होती रहती हैं।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 23 जनवरी | दुबई के भारतीय स्टैंड-अप कॉमेडियन मिक्दाद दोहड़वाला का कहना है कि अमीरात में भीड़ के सामने सबको हंसाना ज्यादा मुश्किल नहीं है, बस आपको दो साधारण नियमों का ध्यान रखना होगा कि कभी भी किंगडम के बारे में मजाक न करें, और कभी भी स्थानीय लोगों का मजाक न बनाएं। दोहड़वाला ने आईएएनएस को बताया, "हमें लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है। किंगडम और स्थानीय लोगों का मजाक बनाना पूरी तरह मनाही है।"
साल 2014 में मुंबई से दुबई बसने वाले कलाकार का कहना है कि यहां का ²श्य भारत से अलग नहीं है। उन्होंने कहा, "दुबई में स्टैंड-अप कॉमेडी भारत जैसी ही है।"
उन्होंने आगे कहा, "आप एक रात के लिए हमारी बहुत ही 'देसी' भीड़ के लिए उपस्थित हो सकते हैं और वहीं दूसरे दिन युक्रेनियों की पूरी मंडली के लिए मंच पर हो सकते हैं। यही कारण है कि जो कंटेंट आपके पास होना चाहिए, वह सांस्कृतिक बाधाओं से परे लोगों से जोड़ने के लिए होनी चाहिए। भारत में हम कंटेंट का स्थानीयकरण करते हैं, क्योंकि दर्शक एक सामान्य आधार पर संबंधित हैं। विविध भारतीय अनुभवों को एक्सप्लोर करना आसान है।"
दोहड़वाला हास्य लेखक मुनव्वर फारुकी की गिरफ्तारी से दुखी है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए, वे कहते हैं कि हास्य कलाकारों का इरादा कभी भी गलत नहीं होता है, और वे कभी भी भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाना चाहते हैं।
स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी को 1 जनवरी को इंदौर में एक शो में 'धार्मिक भावनाओं को आहत करने' के लिए गिरफ्तार किया गया था।
दोहड़वाला ने कहा, "मुनव्वर के साथ जो हो रहा है वह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है। एक आदर्श दुनिया में कॉमेडियन को सेंसर नहीं किया जाना चाहिए। हमारा इरादा कभी गलत नहीं है, हम भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते हैं।"
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 23 जनवरी | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर एम. बोल्सनारो को स्वास्थ्य क्षेत्र में दक्षिण अमेरिकी राष्ट्र के साथ भारत के सहयोग को मजबूत करने का आश्वासन दिया। प्रधानमंत्री ने बोल्सनारो के उस ट्वीट का जवाब देते हुए आश्वासन दिया, जिसमें उन्होंने मोदी को धन्यवाद दिया कि उन्होंने भारत में बने कोरोनावायरस वैक्सीन के 20 लाख खुराक ब्राजील भेजा।
मोदी ने ट्वीट किया, "कोविड -19 महामारी से लड़ने में ब्राजील का एक विश्वसनीय साथी बनना हमारे लिए सम्मान की बात है राष्ट्रपति जेयर बोल्सनारो। हम स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में अपने सहयोग को मजबूत करते रहेंगे।"
ब्राजील में भारत के कोविशील्ड वैक्सीन की 20 लाख खुराक पहुंचने के तुरंत बाद ब्राजील के राष्ट्रपति ने ट्वीट किया, "नमस्कार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी .. वैश्विक बाधा को दूर करने के लिए ब्राजील आप जैसा एक महान साथी पाकर धन्य है। भारत से ब्राजील को वैक्सीन के निर्यात में हमारी मदद करने के लिए शुक्रिया। धन्यवाद!"
बोल्सनारो के ट्वीट में भगवान हनुमान की एक तस्वीर भी थी, जिसमें उन्हें भारत से ब्राजील तक 'संजीवनी बूटी' की तरह कोरोनावायरस वैक्सीन ले जाते हुए दिखाया गया।
भारत ने शुक्रवार को कोविशील्ड वैक्सीन की 20 लाख खुराक ब्राजील भेज दी। कोविशिल्ड को एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है और इसका निर्माण सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) द्वारा किया जा रहा है।
इस बीच 92 देशों ने कोविड-19 टीकों के लिए भारत से संपर्क किया है, जिसमें ब्राजील भी शामिल है। ब्राजील वर्तमान में संक्रमण के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है, वहीं कोविड से हुई मौतों के मामले दूसरे स्थान पर है।
इससे पहले ब्राजील के राजदूत आंद्रे अरान्हा कोरीया डू लागो ने वैक्सीन के लिए और परिवहन के दौरान 'व्यावसायिकता का प्रदर्शन' करने के लिए एसआईआई को धन्यवाद दिया।
--आईएएनएस
ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह ख़ामेनेई के एक ट्वीट को लेकर खड़ा हुआ विवाद सोशल मीडिया पर गर्माया हुआ है.
ख़ामेनेई ने एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से ईरानी सैन्य कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी के क़त्ल का बदला लेने की बात कही.
बाद में सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर ने इस ट्वीट के लिए ख़ामेनेई का ट्विटर अकाउंट निलंबित कर दिया.
कंपनी के प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा कि '@khamenei_site एक फ़र्जी अकाउंट था जिसने ट्विटर के नियमों का उल्लंघन किया और इसीलिए इस अकाउंट को बंद कर दिया गया है.'
इस विवादित ट्वीट का स्क्रीनशॉट अब भी सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है जिसमें ट्रंप की तरह दिखने वाले एक शख़्स को लड़ाकू विमान या किसी बड़े ड्रोन के साये में गोल्फ़ खेलता हुआ दिखा गया है.
यही तस्वीर ख़ामेनेई की वेबसाइट पर भी इस्तेमाल की गई है जिसपर लिखा है, "बदला लाज़िमी है."
जिस ट्वीट को अब ट्विटर ने हटा दिया है, उसमें भी यही लिखा था कि "बदला लाज़िमी है." फ़ारसी भाषा में लिखे उस ट्वीट में 'बदला' शब्द लाल रंग से लिखा गया था.
ट्वीट में यह भी लिखा था कि "सुलेमानी के क़ातिल और जिसने उनके क़त्ल का हुक्म दिया, उसे क़ीमत चुकानी होगी.''
जनरल क़ासिम सुलेमानी के नेतृत्व में ईरान ने इराक़ और सीरिया के कई सैन्य गुटों की मदद करके अपनी जड़ें मज़बूत कर लीं थीं.
क़रीब एक साल पहले अमेरिका ने एक ड्रोन हमले के ज़रिए जनरल सुलेमानी की हत्या कर दी थी, जब वे बग़दाद गए हुए थे.
उस समय राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि 'जनरल सुलेमानी लाखों लोगों की मौत के लिए ज़िम्मेदार थे.'
इसके बाद ईरान ने बदले की कार्रवाई करते हुए इराक़ में स्थित अमेरिकी एयरबेस पर कुछ मिसाइलें दाग़ी थीं.
तब ख़ामेनेई ने कहा था कि 'मुजरिमों से सख़्त बदला लिया जाएगा.'
ट्विटर पर बहुत से लोगों ने 'ख़ामेनेई के इस ट्वीट' पर आपत्ति जताते हुए उनके ट्विटर अकांउट पर पाबंदी लगाने की माँग की थी. लोगों ने यह तर्क दिया था कि 'जब ट्विटर डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकता है, तो ख़ामेनेई के ख़िलाफ़ क्यों नहीं?'
दरअसल, वॉशिंगटन स्थित कैपिटल हिल पर ट्रंप समर्थकों के हमले के बाद ट्विटर ने डोनाल्ड ट्रंप के अकाउंट पर पाबंदी लगा दी थी. ट्विटर ने तब भी ये कहते हुए कार्रवाई की थी कि 'उन्होंने ट्विटर के नियम-कायदों का उल्लंघन किया.'
इस महीने की शुरुआत में भी ट्विटर ने ख़ामेनेई के एक ट्वीट को बैन किया था जिसमें उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन में बनी कोविड वैक्सीन को 'भरोसा न करने लायक' बताया था. (bbc.com)
चीन ने पाकिस्तान को कोरानो वैक्सीन की पांच लाख डोज मुफ्त में देने का ऐलान किया है. आर्थिक संकट से जूझ रही पाकिस्तान की सरकार यह तोहफा पाकर खुश है.
हाल के दिनों में पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण तेजी से फैला है. अब तक देश में कोरोना के मामले सवा पांच लाख के आंकड़े को पार कर गए हैं जबकि इसमें मरने वालों की तादाद 11 हजार से ज्यादा है. अधिकारी संक्रण की रफ्तार को रोकने के लिए टीके को बहुत अहम मान रहे हैं. ऐसे में, पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ट्वीट कर चीन की दरियादिली का स्वागत किया है. उन्होंने लिखा, "पाकिस्तान चीन की तरफ से टीके की पांच लाख डोज तोहफे में दिए जाने को बहुत सराहता है."
चीन ने सिर्फ पाकिस्तान को नहीं, बल्कि कई और देशों को इसी तरह का तोहफा दिया है. फिलीपींस, कंबोडिया और म्यांमार जैसे कई देशों ने भी चीन से मुफ्त वैक्सीन मिलने की पुष्टि की है.
इससे पहले कुरैशी ने पत्रकारों से कहा था, "चीन ने हमें भरोसा दिया है कि पांच लाख डोज की शिपमेंट बिल्कुल मुफ्त होगी और जनवरी के आखिर तक पहुंच जाएगी." उन्होंने कहा कि चीन ने कहा कि चीन ने फरवरी के अंत तक और दस लाख डोज भेजने का वादा किया है. पाकिस्तान ने पहले ही सिनोफार्म कंपनी की बनाई वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई है.
देश के कोने कोने में वैक्सीन
चीन पाकिस्तान का सबसे अहम साझेदार है. वह अरबों डॉलर की लागत से पाकिस्तान में सड़कें, बिजली संयंत्र और रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है. पिछले दिनों जब चीन ने अपने वैक्सीन के ट्रायल शुरू किए तो पाकिस्तान को भी इसमें शामिल किया. हालांकि पाकिस्तान में टीकाकरण अभियानों का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. वहां पोलियो टीकाकरण में बहुत सारी बाधाएं आती रही हैं जिसकी वजह आज तक पाकिस्तान से इसे खत्म नहीं किया गया है.
इससे पहले रिपोर्टें आई थीं कि पाकिस्तान में कोरोना की चीनी वैक्सीन के ट्रायल के लिए पर्याप्त वोलंटियर नहीं मिल रहे हैं. अधिकारी कहते हैं कि कट्टरपंथी लोगों में कई गलतफहमियां फैला रहे हैं, जिससे उनका काम मुश्किल हो रहा है. इसीलिए सरकार ने टीके को लेकर जागरूकता के अभियान शुरू किए हैं.
उधर, भारत ने भी कई देशों को वैक्सीन मुफ्त में देने का ऐलान किया है. इनमें बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, सेशेल्स, मॉरिशस और मालदीव जैसे देश शामिल हैं. वहीं ब्रालीज और मोरक्को जैसे देशों को भारत में तैयार वैक्सीन की व्यावसायिक शिपमेंट हो रही है.
भारत ने भी अपने यहां दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान छेड़ा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि एक हफ्ते के भीतर दस लाख से ज्यादा लोगों को टीका लगवाया जा चुका है. उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र वाराणी से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए देश के स्वास्थ्यकर्मियों से बात करते हुए कहा, "हमारी तैयारी इस तरह की रही है कि वैक्सीन तेजी से देश के कोने कोने में पहुंच रही है."
एके/आईबी (एएफपी, रॉयटर्स)
वॉशिंगटन, 23 जनवरी | अमेरिका में कोविड-19 के खिलाफ बनी वैक्सीन मॉडर्ना को लेने के बाद से प्रतिकूल घटनाओं के सामने आने का सिलसिला लगातार जारी है। यहां 10 जनवरी तक 1,200 से अधिक ऐसे मामलों की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें से 10 मामले एनाफिलेक्सिस या एलर्जिक रिएक्शन के पाए गए हैं। शुक्रवार को सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) द्वारा जारी किए गए एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन ने 18 दिसंबर, 2020 को मॉडर्ना कोविड-19 वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी प्रदान किया था। बताया गया कि कोरोना से लंबी सुरक्षा के लिए टीके की दो खुराक जरूरी होगी।
सीडीसी के मुताबिक, 10 जनवरी तक अमेरिका में मॉडर्ना कोविड-19 वैक्सीन की पहली 40,41,396 खुराके वितरित की गईं और इसके बाद 1,266 प्रतिकूल घटनाओं की रिपोर्ट वैक्सीन एडवर्स इवेंट रिपोर्टिग सिस्टम को सौंपी गई।
इनमें से 108 केस रिपोर्ट की पहचान पुन: समीक्षा के लिए की गई क्योंकि इन्हें संभवत: एलर्जिक रिएक्शन जैसे कि एनाफिलेक्सिस का केस माना जा रहा है।
एनाफिलेक्सिस एक जानवेला एलर्जिक रिएक्शन है जिसका असर सामान्यत: वैक्सीनेशन के कुछ ही मिनटों या घंटों बाद दिखता है।
(आईएएनएस)
वाशिंगटन, 23 जनवरी | वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 9.8 करोड़ से अधिक हो गई है, जबकि संक्रमण से हुई मृत्यु संख्या 21 लाख से अधिक हो गई है। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने शनिवार को दी।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने शनिवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान में वैश्विक संक्रमण के मामलों और मृत्यु क्रमश: 98,129,394 और 2,105,056 पर है।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका दुनियाभर में सबसे अधिक 24,815,084 मामलों और 413,925 मौतों के साथ सबसे ज्यादा प्रभावित देश है।
संक्रमण के हिसाब से भारत 10,625,428 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि देश की कोविड से हुई मौतों की संख्या 153,032 है।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, दस लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (8,753,920), रूस (3,637,862), ब्रिटेन (3,594,094), फ्रांस (3,069,695), स्पेन (2,499,560), इटली (2,441,854), तुर्की (2,418,472), जर्मनी (2,125,261), कोलम्बिया (1,987,418), अर्जेंटीना (1,853,830), मेक्सिको (1,711,283), पोलैंड (1,464,448), दक्षिण अफ्रीका (1,392,568), ईरान (1,360,852), यूक्रेन (1,222,459) और पेरू (1,082,907) हैं।
कोविड से हुई मौतों के मामले में वर्तमान में ब्राजील 215,243 आंकड़ों के साथ दूसरे नंबर पर है।
वहीं 20,000 से अधिक मृत्यु दर्ज करने वाले देश मेक्सिको (146,174), ब्रिटेन (96,166), इटली (84,674), फ्रांस (72,788), रूस (67,376), ईरान (57,225), स्पेन (55,441), जर्मनी (51,277), कोलंबिया (50,586), अर्जेंटीना (46,575), दक्षिण अफ्रीका (40,076), पेरू (39,274), पोलैंड (34,908), इंडोनेशिया (27,453), तुर्की (24,789), यूक्रेन (22,228) और बेल्जियम (20,620) है।
--आईएएनएस
वाशिंगटन, 23 जनवरी | सेवानिवृत्त अमेरिकी सेना के जनरल लॉयड ऑस्टिन जो बाइडेन प्रशासन में रक्षा मंत्री बन गए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में शुक्रवार को उनके रक्षा मंत्री बनने की पुष्टि की गई है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्टिन को सीनेट में 93 वोट मिले, जबकि दो वोट उनके खिलाफ गए। बाइडेन के नेतृत्व वाली सरकार में एवरिल हैन्स के बाद ऑस्टिन के तौर पर दूसरी बड़ी जिम्मेदारी की पुष्टि हुई है। ऑस्टिन से पहले हैन्स नेशनल इंटेलिजेंस की निदेशक बनने वाली पहली महिला बनीं थीं।
लॉयड ऑस्टिन पहले अफ्रीकी-अमेरिकी हैं, जो पेंटागन प्रमुख की जिम्मेदारी संभालेंगे।
कांग्रेस (अमेरिकी सदन) ने गुरुवार को रक्षा मंत्री के तौर पर ऑस्टिन के नाम पर मुहर लगा दी थी। इस मंजूरी के बाद उनका रक्षा मंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया था। दरअसल अमेरिकी कानून के तहत, सैन्य अधिकारियों को रक्षा मंत्री बनने से पहले अपनी सेवानिवृत्ति के बाद सात साल की अवधि की आवश्यकता होती है और ऑस्टिन 2016 में ही सेवानिवृत्त हुए थे।
पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले रक्षा मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल जेम्स मैटिस (सेवानिवृत्त) को भी इस पद के लिए 2016 में कांग्रेस की मंजूरी मिली थी।
--आईएएनएस
मिस्र में दस साल पहले लोग सड़कों पर उतरे थे और उन्होंने दशकों से राज कर रहे एक तानाशाह को उखाड़ दिया था. आज फिर वहां राष्ट्रपति की गद्दी पर ऐसा व्यक्ति बैठा है जिसने पूरे विपक्ष का सफाया कर दिया है.
मिस्र ,22 जनवरी | मिस्र की राजधानी काहिरा के ऐतिहासिक तहरीक चौक पर 25 जनवरी 2011 को सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए. इसके कुछ दिनों के भीतर तानाशाह होस्नी मुबारक को सत्ता छोड़नी पड़ी. यह अरब दुनिया में फैली क्रांति के लिए बहुत बड़ा पल था.
मिस्र एक ऐसे दौर में दाखिल हुआ जहां लोगों ने पहली बार महसूस किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा और निष्पक्ष चुनाव क्या होते हैं. इस्लामी कट्टरपंथी नेता मोहम्मद मुर्सी लोकतांत्रिक रूप से चुने गए देश के पहले राष्ट्रपति बने. लेकिन सिर्फ ढाई साल के भीतर उन्हें भी सत्ता से हटा दिया गया.
मिस्र में 2013 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और देश के पूर्व सेना प्रमुख अब्देल फतह अल-सिसी राष्ट्रपति बने. और फिर मिस्र में कट्टरपंथी इस्लामी कार्यकर्ताओं, धर्मनिरपेक्ष विरोधियों, पत्रकारों, वकीलों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों को प्रताड़ित करने का सिलसिला भी शुरू हो गया. गैर न्यायिक हत्याओं से जुड़े मामले पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि आगनेस कालामर्द कहती हैं, "मिस्र में अरब क्रांति बस थोड़े से समय के लिए थी." उनकी राय में, "वहां की सरकार ने क्रांति से एक बदतर सबक सीखा है- आजादी की कोई कली फूटने का संकेत भी मिले तो उसे मसल दो."
"बाहरी हस्तक्षेप"
दिसंबर की शुरुआत में मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशन ने अरब दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश मिस्र में लोगों को मौत की सजा दिए जाने के बढ़ते मामलों की निंदा की थी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली आलोचना की मिस्र के अधिकारियों को परवाह नहीं है. हर आलोचना पर उनका यही जबाव होता है कि किसी भी तरह के "बाहरी हस्तक्षेप" को स्वीकार नहीं करेंगे.
हाल में मिस्र के विदेश मंत्री सामेह शौकरी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि देश में "मानवाधिकारों से जुड़े सवाल वहां के समाज की जिम्मेदारी हैं ना किसी बाहरी पक्ष की". उनके मंत्रालय की तरफ से समाचार एजेंसी एएफपी को दिए गए वकत्व में मिस्र में मनमाने तरीके से होने वाली गिरफ्तारियों और दमन के मामलों से इनकार किया गया था. बयान के मुताबिक, "मिस्र में कोई राजनीतिक कैदी नहीं हैं". साथ ही यह भी कहा गया कि "मिस्र की सरकार अभिव्यक्ति की आजादी को बहुत महत्व देती है".
मिस्र में 2013 की गर्मियों में दमन की शुरुआत हुई, जब मोहम्मद मुर्सी को हटाए जाने के खिलाफ सड़कों पर उतरे सैकड़ों प्रदर्शकारी सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे गए. मुस्लिम ब्रदरहुड के कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में हिरासत में लिया गया, उन पर मुकदमे चले और सजाएं सुनाई गईं. सिसी की सत्ता लगातार मजबूत होती गई. वह मोर्सी को हटाए जाने के बाद देश के राष्ट्रपति चुने गए. 2018 में 97 प्रतिशत वोटों के साथ फिर राष्ट्रपति चुने गए.
अप्रैल 2019 में एक संवैधानिक संशोधन के जरिए बतौर राष्ट्रपति उनके कार्यकाल को बढ़ाया गया और इससे देश की न्यायपालिका पर भी उनका नियंत्रण मजबूत हुआ. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि मिस्र में इस समय 60 हजार से ज्यादा राजनीतिक विरोधियों को सलाखों के पीछे रखा गया है, सरकार भले ही इससे इनकार करे.
अभी समय लगेगा
सितंबर 2019 में सैकड़ों लोग सिसी के इस्तीफे की मांग के साथ फिर तहरीर चौक पर प्रदर्शन करने पहुंचे और सरकार को भी गिरफ्तारियों का नया दौर शुरू करने की वजह मिल गई. अधिकारियों पर जब भी मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते हैं तो वे आतंकवाद के खतरों का हवाला देने लगते हैं. मिस्र के उत्तरी सिनाई इलाके में 2013 से जिहादी तत्व मजबूत हो रहे हैं. बेरुत के कारनेगी मध्य पूर्व सेंटर में मिस्र और उत्तर अफ्रीका पर विशेषज्ञ शेरीफ मोहिलेदीन कहते हैं, "कथित दमन और मानवाधिकारों के उल्लंघन से संस्थागत हिंसा और कुछ हद तक चरमपंथ को भी बढ़ावा मिलता है."
मिस्र में इंटरनेट पर भी सख्त पहरा है. 2017 से सैकड़ों वेबसाइटों को बंद किया गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स संस्था का कहना है कि 28 पत्रकार अभी मिस्र की जेलों में बंद हैं. सरकार महिलाओं को भी निशाना बना रही है. हाल के महीनों में दर्जनों सोशल मीडिया इंफ्लुएंसरों को गिरफ्तार किया गया है. उन पर टिकटॉक पर ऐसे वीडियो पोस्ट करने का आरोप है जो देश की रूढ़िववादी सामाजिक मान्यताओं के हिसाब से अनैतिक हैं. मिस्र की राष्ट्रीय मानवाधिकार परिषद के महासचिव मोखलेस कोत्ब का कहना है, "मिस्र में कानून का राज स्थापित होने में अभी समय लगेगा."
परमाणु अस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संधि अब लागू हो चुकी है. जानकारों को चिंता है कि ताकतवर देशों के समर्थन के अभाव में यह संधि दुनिया को परमाणु अस्त्रों से मुक्त कराने में कितना सफल हो पाएगी.
संयुक्त राष्ट्र की नाभिकीय अस्त्र निषेध संधि (टीपीएनडब्ल्यू) शुक्रवार 22 जनवरी से लागू हो गई. संधि का उद्देश्य परमाणु अस्त्रों के विकास, उत्पादन, परीक्षण, आधिपत्य और प्रयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना है. 2017 में दुनिया के दो-तिहाई देशों ने इस के पक्ष में मतदान किया था, लेकिन परमाणु शक्तियों के रूप में जाने जाने वाले सभी देश और उनका संरक्षण पाने वाले कई देश संधि का हिस्सा नहीं बने हैं.
संधि देशों को दूसरे देशों में अपने अस्त्र रखने पर भी प्रतिबंध लगाती है. बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स और तुर्की जैसे राष्ट्रों में अमेरिका के परमाणु वॉरहेड मौजूद हैं. संधि के लागू होने का स्वागत करते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा, "परमाणु अस्त्रों से खतरा बढ़ रहा है और उनके संभावित इस्तेमाल से जो अनर्थकारी मानवीय और पर्यावरण-संबंधी परिणाम होंगे उन्हें रोकने के लिए इन अस्त्रों को तुरंत ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए."
कुछ ऐसे ही विचार 2017 का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले परमाणु अस्त्रों को नष्ट करने के अंतर्राष्ट्रीय अभियान (आईसीएएन) ने भी व्यक्त किए. आईसीएएन को नोबेल संधि के लिए समर्थन जुटाने और परमाणु युद्ध की क्रूरता की तरफ दुनिया का ध्यान दिलाने के लिए दिया गया था. लेकिन इस संधि से निशस्त्रीकरण तब तक नहीं होगा जब तक परमाणु शस्त्र रखने वाले देश और नाटो इसका विरोध करते रहेंगे.
संधि का निशस्त्रीकरण पर असर
संधि को शुरू में 122 देशों ने समर्थन दिया था, लेकिन उनमें से सिर्फ 51 देशों ने उसके आधार पर राष्ट्रीय कानून पास किए हैं. इनमें से अधिकतर विकासशील देश हैं. संधि के लागू होने के थोड़ी ही देर पहले नाटो के सदस्य देश जर्मनी ने चेतावनी दी थी कि संधि में "निशस्त्रीकरण पर हो रही बातचीत को और मुश्किल बनाने के क्षमता है." जापान ने भी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. अक्टूबर तक 50 देशों ने संधि को मंजूरी दे दी थी.
परमाणु-विरोधी कार्यकर्ताओं का मानना है कि बड़ी शक्तियों के विरोध के बावजूद संधि सिर्फ सांकेतिक नहीं रहेगी. उन्हें उम्मीद है कि इससे परमाणु कार्यक्रमों पर धब्बा लगेगा और यथास्थिति की मानसिकता को चुनौती मिलेगी. विश्व में परमाणु हथियारों वाले कुल मिला कर नौ देश हैं, जिनमें अमेरिका और रूस के पास इस तरह के 90 प्रतिशत हथियार हैं. बाकी देशों में चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इस्राएल और उत्तर कोरिया शामिल हैं. इनमें से अधिकतर देशों का कहना है कि उनके अस्त्रों का उद्देश्य सिर्फ बचाव है और वो इसके पहले कि परमाणु प्रसार संधि के प्रति प्रतिबद्ध हैं.
अमेरिका-रूस के बीच परमाणु अस्त्र संधि जारी
इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शपथ लेते ही रूस को प्रस्ताव भेजा है कि दोनों देशों के बीच चल रही परमाणु अस्त्रों की संधि 'स्टार्ट' को पांच और सालों के लिए जारी रखा जाना चाहिए. मौजूदा संधि की मियाद फरवरी 2021 में खत्म हो जाएगी. रूस पहले ही कह चुका है कि वो संधि को जारी रखने का स्वागत करेगा. संधि का उद्देश्य दोनों देशों के सामरिक परमाणु हथियारों की संख्या पर लगाम रखना है.
माना जा रहा है कि शपथ लेते ही बाइडेन द्वारा यह प्रस्ताव दिया जाना परमाणु हथियारों पर नियंत्रण लगाने के उनके इरादे का संकेत है. व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने एक बयान में कहा कि संधि को पांच साल ताक जारी रखना "ऐसे समय में और भी तर्कसंगत है जब रूस के साथ हमारे रिश्ते विरोधात्मक हैं."
कीव, 22 जनवरी | यूक्रेन के खारकिव में स्थित एक प्राइवेट नर्सिग होम में आग लगने से 15 लोगों की मौत हो गई है और 5 अन्य घायल हो गए। सिन्हुआ समाचार एजेंसी के मुताबिक, आपातकालीन स्थितियों के लिए यूक्रेनियन स्टेट सर्विस के प्रेस सर्विस ने बताया कि यह आग गुरुवार शाम को 3.03 बजे लगी और देखते ही देखते यह लगभग सौ स्क्व ॉयर मीटर के दायरे में फैल गई।
करीब दो घंटे बाद आग पर काबू पा लिया गया। राज्य आपातकालीन सेवा के पचास कर्मी और 13 अन्य उपकरणों की मदद से यह आग बुझाई गई।
इस हादसे में मारे गाए 15 लोगों के शव मिल गए हैं। नौ और लोगों को बचा लिया गया है, जिनमें से पांच अस्पताल में एडमिट हैं। इनकी स्थिति के बारे में अभी कोई सूचना नहीं मिली है।
राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने इसे एक भयानक त्रासदी करार दिया है और साथ ही अपने कैबिनेट के मंत्रियों को स्थिति पर तत्काल कदम उठाने के निर्देश भी दिए हैं।
प्रॉसीक्यूटर जनरल इरिना वेनेडिकटोवा के मुताबिक, सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करना आग लगने की मुख्य वजह रही है।
प्रधानमंत्री डेनिस शमहल ने तत्काल एक सरकारी बैठक बुलाने का आह्वान किया है, जिसके तहत एक स्टेट कमीशन का गठन किया जाएगा, जो त्रासदी के कारणों का पता लगाएंगे। (आईएएनएस)
जापान सरकार ने उन रिपोर्टों का खंडन किया है, जिनमें कहा गया था कि टोक्यो ओलंपिक रद्द किया जा रहा है. इसी के साथ जापान ने टोक्यो ओलंपिक की मेजबानी के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है.
कोरोना वायरस महामारी की तीसरी लहर के कारण जापान के अधिकांश हिस्से में आपातकाल लागू है. टोक्यो ओलंपिक के आयोजकों ने पिछले साल मार्च में खेलों के स्थगित होने के बाद इस साल 23 जुलाई से ओलंपिक के आयोजन पर ध्यान केंद्रित कर रखा है. जापान सरकार के प्रवक्ता ने कहा है कि द टाइम्स की उस रिपोर्ट में "कोई सच्चाई नहीं" है जिसमें कहा गया था कि जापान ने अब 2032 में आयोजन कराने पर ध्यान केंद्रित कर दिया है.
शुक्रवार को डिप्टी कैबिनेट सचिव मानाबू सकाई ने कहा, "हम स्पष्ट रूप से रिपोर्ट का खंडन कर रहे हैं." टोक्यो 2020 आयोजन समिति ने भी रिपोर्ट का खंडन किया है. उसने कहा है कि जापान सरकार और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति का खेलों के निर्धारित समय पर आयोजन पर ध्यान केंद्रित है.
ब्रिटिश अखबार द टाइम्स ने जापानी सरकार के एक सूत्र के हवाले से कहा था कि जापान ने ओलंपिक आयोजित करने की कोशिशों को छोड़ दिया है और सरकार अब यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि अगले उपलब्ध साल 2032 में टोक्यो में ओलंपिक आयोजित किया जाए.
सकाई के मुताबिक सरकार खेलों की मेजबानी सुनिश्चित करने और कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए हर संभव उपाय कर रही है. शुरुआती अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं में ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी ओलंपिक समितियों ने कहा कि वे खेलों की तैयारी कर रही हैं. ऑस्ट्रेलियाई समिति के प्रमुख मैट कैरल ने सिडनी में पत्रकारों से कहा, "दुर्भाग्य से मुझे निराधार अफवाहों को संबोधित करने की जरूरत पड़ी है कि टोक्यो ओलंपिक को रद्द कर दिया जाएगा. ऐसी अफवाहें खिलाड़ियों के लिए चिंता का कारण बनती हैं." उन्होंने कहा, "टोक्यो ओलंपिक होने जा रहा है. ओलंपिक की ज्योति 23 जुलाई 2021 को जलाई जाएगी."
इस महीने की शुरूआत में ओलंपिक के आयोजन को लेकर संशय तब सामने आया जब कोरोना वायरस के मामले देश में तेजी से बढ़ने लगे और आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी. बड़ी संख्या में लोगों ने खेलों को रद्द करने के लिए अपनी राय दी थी. टोक्यो समेत बड़े शहरों में आपातकाल लागू है और देश ने अनिवासी विदेशियों के लिए अपनी सीमाएं बंद कर दी. ताजा जनमत सर्वेक्षण में जापान के 80 फीसदी लोग इस साल गर्मी में ओलंपिक आयोजन नहीं करने के पक्ष में हैं. उन्हें डर है कि खिलाड़ियों के आने से वायरस का प्रसार होगा. टोक्यो में ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों में लगभग 15,000 खिलाड़ी हिस्सा लेंगे. पैरा ओलंपिक 24 अगस्त से शुरू होगा. आयोजक अगले कुछ हफ्तों में तय करेंगे कि दर्शकों को कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए स्टेडियम में आने की अनुमति दी जाए या नहीं.
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
अंधेरी रात में तरह तरह की रोशनी से जगमगाते शहरों की तस्वीरें देखने में बहुत अच्छी लगती हैं. लेकिन चौबीसों घंटे रोशन रहने वाले इन शहरों की पर्यावरण को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है.
17 जनवरी 1994 को अमेरिका के लॉस एंजेलेस में जब भूकंप आया तो वहां बिजली भी गुल हो गई. घबराहट में लोगों ने पुलिस को फोन किया. कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि धरती के कांपने से ज्यादा वो आसमान के दृश्य को देख कर डर गए थे. काले आसमान में कुछ चमक रहा था, टिमटिमा रहा था. दरअसल ये लोग, आसमान में तारों को देख कर डर गए थे. बिजली चले जाने से इतना अंधेरा हो गया था कि आकाशगंगा को साफ देखा जा सकता था. लॉस एंजेलेस में रहने वाले अधिकतर लोगों ने यह नजारा पहली बार देखा था.
दिन और रात का फर्क खत्म
19वीं सदी में जब बिजली की खोज हुई तो यह एक बहुत बड़ी क्रांति थी. आज इस खोज के सौ साल बीत जाने के बाद बिजली के बिना जीने की कल्पना करना भी मुश्किल है. लेकिन अब दुनिया की 80 फीसदी आबादी प्रकाश प्रदूषण से जूझ रही है. सिंगापुर में तो आसमान इतना रोशन रहता है कि लोगों की आंखों को अंधेरे की आदत ही नहीं रही है.
जर्मन वैज्ञानिक क्रिस्टोफर किबा का कहना है कि कृत्रिम रोशनी ने बायोस्फेयर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. उनका कहना है कि प्रकृति हमें संकेत देती है, "बताती है कि यह दिन है और यह रात है लेकिन जिन इलाकों में प्रकाश प्रदूषण बहुत ज्यादा है, वहां यह संकेत बहुत ही कम हो गया है." वैज्ञानिकों का दावा है कि हमारी पृथ्वी हर साल दो फीसदी ज्यादा रोशन हो रही है.
शहरों में रहने वाले लोगों पर प्रकाश प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर हो रहा है. मुंबई के नीलेश देसाई कहते हैं, "बहुत ही बुरा हाल है. आपको पूरे मुंबई के ऊपर नारंगी रंग की रोशनी की चादर दिखती है." दिनेश बताते हैं कि रात को 12 बजे तक बत्ती का जलना मुंबई में आम है लेकिन कई बार तो सुबह के तीन बजे तक भी बत्तियां जलती रहती थी, "मुझे बहुत परेशानी होती थी. मेरे बैडरूम में इतनी तेज रोशनी आती थी और मुझे बहुत दिक्कत होती थी, मैं सो ही नहीं पाता था."
क्या रोशनी हमें बीमार कर रही है?
2018 में नीलेश ने इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया. नीलेश ने लोगों को इकठ्ठा किया और अपने अधिकार के लिए प्रदर्शन करने शुरू किए. अब उनकी मांगें मान ली गई हैं. उनके घर के पास मौजूद एक स्टेडियम को रात के समय फ्लड लाइट बंद करने का आदेश दिया गया है. लेकिन भारत में प्रकाश प्रदूषण से जुड़े बहुत कानून नहीं हैं. ऐसे में पर्यावरण मंत्रालय से इसे बदलने की मांग भी की जा रही है.
रिसर्च दिखाती है कि ज्यादा वक्त तक प्रकाश का सामना करने से इंसानों की आंखें खराब हो सकती हैं. नींद ना आना, मोटापा और यहां तक कि डिप्रेशन भी इसका नतीजा हो सकता है. अमेरिका में शिफ्ट में काम करने वालों पर हुए शोध में ब्रेस्ट कैंसर के अधिक मामले भी पाए गए. दरअसल, रोशनी के कारण शरीर में मेलाटॉनिन नाम का हार्मोन सक्रिय हो जाता है. बहुत अधिक मात्रा में इस हार्मोन के होने से तरह तरह की बीमारियां हो सकती हैं.
रोशनी का यह बुरा असर ना केवल इंसानों, बल्कि जानवरों, पक्षियों, कीड़ों और पौधों पर भी होता है. एक शोध बताता है कि जर्मनी में सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही रात में निकलने वाले 100 अरब कीड़ों की जान कृत्रिम रोशनी के कारण चली जाती है. इसी तरह जो पौधे स्ट्रीट लाइट के आसपास मौजूद होते हैं, उन पर फल और फूल कम लग पाते हैं.
कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार
चूंकि बिजली अब भी अधिकतर कोयले से बनाई जाती है इसलिए रात को बिजली का अधिक इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ावा देता है. उत्तर प्रदेश स्थित रानी लक्ष्मी बाई सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के पवन कुमार कहते हैं, "रात को बिजली इस्तेमाल करने के कारण दुनिया भर में हर साल एक करोड़ टन से भी ज्यादा सीओ2 उत्सर्जन होता है." उनका कहना है कि अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो कार्बन उत्सर्जन को भी रोका जा सकेगा और पैसे की भी बचत की जा सकेगी.
रिपोर्ट: टिम शाउएनबेर्ग/आईबी
अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी को हराने के लिए युद्धस्तर पर काम किए जाने की ज़रूरत है.
कोरोना से मुक़ाबला करने के लिए उन्होंने एक विस्तृत योजना पेश की है. इसके तहत गुरुवार को उन्होंने 10 ऐसे एग्ज़िक्युटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए जिनसे सरकारी एजेंसियों, निजी क्षेत्र और नागरिकों को कोरोना वायरस के रोकथाम में मदद मिलेगी.
बाइडन ने ये स्पष्ट कर दिया कि अपने पूर्ववर्ती की अपेक्षा कोरोना से लड़ाई के मामले में राज्यों को फ़ैसला करने देने से बेहतर है कि इससे लिए राष्ट्रीय रणनीति तैयार का जाए. कोरोना पर लगाम न लगा पाने के लिए ट्रंप प्रशासन की काफ़ी निंदा हुई थी.
बाइडन का कहना है कि कोरोना से निपटने के लिए "कठोर कदम" उठा रहे हैं जिन पर अलम करना आसान नहीं होगा. उन्होंने कहा, "मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि चीज़ें अभी और बिगड़ भी सकती हैं."
उनका कहना है कि उन्हें डर है कि अगले महीने तक ये वायरस पाँच लाख लोगों की जान ले सकता है और स्थिति को बेहतर करने के लिए हमें युद्धस्तर पर काम करने की ज़रूरत है.
राष्ट्रपति के तौर पर कार्यभार संभालने के बाद बाइडन ने पहले ही कहा था कि देश में कोरोना वैक्सीन अभियान शुरू होने के पहले सौ दिनों में 10 करोड़ लोगों को टीका लगाए जाएंगे.
ट्रंप प्रशासन में आप कुछ कहें और उस पर प्रतिक्रिया न हो, ऐसा नहीं लगता थाः फाउची
मुख्य चिकित्सा सलाहकार एंथनी फाउची ने वैक्सीन रोलआउट के बारे में कहा कि बाइडन प्रशासन पहले से ही मौजूद कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है.
उनका कहना है कि अगर उम्मीद के मुताबिक, 70-85% आबादी को गर्मियों के अंत तक टीका लगा दिया गया तो सर्दियों के आने तक स्थिति सामान्य हो सकती है. फाउची ने कहा कि उनकी चिंता उन लोगों को मनाने की है जो इस वैक्सीन को लेकर संशय में हैं.
उन्होंने कहा कि और अधिक वैक्सीन बनाई जाए इसके लिए प्रशासन इसके उत्पादकों से बातचीत कर रहा है. कुछ क्षेत्रीय अधिकारियों का कहना है कि उनके पास उपलब्ध वैक्सीन ख़त्म होने वाली है.
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी रहे फाउची ने इस बात का स्वागत किया कि नया प्रशासन विज्ञान पर जोर दे रहा है.
फाउची ने कहा, "यह आइडिया कि आप वहाँ तक पहुँच सकते हैं जो आप जानते हैं और इसके साक्ष्य क्या हैं, विज्ञान क्या कहता है... इसके बारे में आप बात कर सकते हैं. जबकि ट्रंप प्रशासन में आप ऐसा महसूस नहीं करते थे कि आप कुछ कहेंगे और उस पर कड़ी प्रतिक्रिया नहीं होगी."
इससे पहले राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने कई अहम एग्ज़िक्युटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए और अपने पूर्ववर्ती के फ़ैसलों को पलटा. इनमें सभी सरकारी दफ़्तरों के परिसर में मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंन्सिंग का पालन करना अनिवार्य करने का फ़ैसला शामिल है.
साथ ही उन्होंने कोरोना वायरस टेस्टिंट बढ़ाने और महामारी पर प्रतिक्रिया के समन्वय के लिए एक नया ऑफिस स्थापित करने का भी फ़ैसला लिया है. बाइडन ने ये भी कहा है कि अमेरिका ग़रीब देशों तक वैक्सीन पहुँचाने के कोवैक्स कार्यक्रम में भी शामिल होगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उनके इस फ़ैसले का स्वागत किया है.
कोरोना से निपटने के लिए बाइडन के 10 कदम
1. डिफेन्स प्रोडक्शन एक्ट का इस्तेमालः कोरोना से लड़ने के लिए ज़रूरी मेडिकल इक्विपमेंट, पीपीई किट और वैक्सीन सप्चलाई को जारी रखने के लिए ज़रूरी चीज़ों के उत्पादन के लिए बाइडन ने शीत युद्ध के दौर के एक अहम क़ानून का इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया है. इसके तहत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय सुरक्षा के कारणों से उत्पादन बढ़ाने के लिए इजाज़त देने का विशेषाधिकार मिलता है. इसके अलावा बाइडन प्रशासन एन95 मास्क, आइसोलेशन गाउन और कोरोना की टेस्टिंग के लिए ज़रूरी सामानों का उत्पादन भी बढ़ाएगा.
2. प्लेन, ट्रेन और बसों में मास्क अनिवार्यः बाइडन प्रशासन की योजनानुसार हवाई अड्डों, कुछ ट्रेनों, हवाई यात्राओं और बसों में सफ़र के दौरान लोगों के लिए मास्क पहनना अनिवार्य किया जाएगा. दूसरे देशों से आने वालों को सफर शुरू करने से पहले अपना कोरोना टेस्ट कराना होगा और अपने निगेटिव होने का प्रमाणपत्र साथ रखना होगा. अमेरिका पहुँचने के बाद उन्हें क्वारंटीन से जुड़े सेंटर ऑफ़ डिज़ीज़ कंट्रोल के सभी नियमों का पूरा पालन करना होगा.
3. राज्यों के हाथ मज़बूत करनाः बाइडन फेडेरल इमर्जेंसी एडमिनिस्ट्रेशन को कोरोना महामारी से लड़ने के लिए इमर्जेंसी सप्लाई सुनिश्चित करने और अधिक संख्या में कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए 75 से 100 फ़ीसद तक मदद देने की योजना बना रहे हैं. स्कूलों को सुरक्षित तरीके से फिर से खोलने में भी सरकार आर्थिक मदद करेगी.
4. तेज़ी से वैक्सीन रोलआउटः बाइडन पहले ही कह चुके हैं कि कोरोना वैक्सीन अभियान शुरू होने के पहले सौ दिनों में 10 करोड़ लोगों को टीका लगाया जाएगा. इस टार्गेट तक पहुँचने के लिए फेडरल इमर्जेंसी एडमिनिस्ट्रेशन को सामुदायिक टीकाकरण केंद्र बनाने की इजाज़त दी जाएगी और अगले महीने तक इस तरह के 100 केंद्र खोलने का लक्ष्य रखा गया है. स्थानीय दवा की दुकानों में कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने की भी कोशिशें की जाएगी जिसकी निगरानी सेंटर्स ऑफ़ डिज़ीज़ कंट्रोल करेगा.
5. टेस्टिंग बढ़ानाः कोरोना वायरस टेस्टिंग बढ़ाने के लिए और इसके लिए ज़रूरी सामान का वितरण बेहतर करने के लिए बाइडन कोविड-19 टेस्टिंग बोर्ड बनाएंगे. उनकी योजना स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाने, स्कूलों में टेस्टिंग कराने और ब्लैक समुदाय के लोगों के लिए टेस्टिंग बढ़ाने की भी है.
6. स्कूलों को दोबोरा खोलने पर विचारः शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग और मानव संसाधन विभाग से बाइडन प्रशासन ने कहा कि वो स्कूलों को सुरक्षित तरीके से खोलने, बच्चों की सुरक्षा और उच्च शिक्षा संस्थानों को खोलने को लेकर सरकार को अहम सलाह दें. साथ ही जिन छात्रों के पास ब्रॉडबैंड की सुविधा नहीं है उनके लिए बेहतर कनेक्विटी पर भी सरकार विचार करेगी.
7. स्वास्थ्य सेवा का दायरा बढ़ानाः कोविड-19 के बेहतर इलाज के लिए सरकार उसके इलाज के नए तरीकों की पहचान करने, स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहतर करने और ज़रूरत पड़ने पर अधिक स्वास्थ्यकर्मियों की नियुक्ति पर भी ध्यान देगी.
8. कोविड-19 से कर्मचारियों की सुरक्षाः कामगारों के लिए काम करने वाली सरकारी एजेंसी और स्वास्थ्य विभाग से कहा गया है कि वो कर्मचारियों को कोविड-19 से सुरक्षा देने के लिए एम्पलॉयर्स के लिए दिशानिर्देश जारी करें.
9. समुदायों के लिए अधिक मददः जो समुदाय कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं उन्हें अधिक मदद पहुँचाने के लिए कोविड-19 हेल्थ इक्विटी टास्क फोर्स को सलाह देने के लिए कहा गया है.
10. बेहतर समझ के लिए अधिक डेटाः सरकार ने कोविड-19 से बेहतर मुक़ाबला करने के लिए अधिक डेटा इकट्ठा करने और उसका अध्ययन करने का भी फ़ैसला लिया है. इसके लिए दूसरे संगठनों से भी डेटा साझा किया जाएगा.
जॉन्स हॉप्किन्स यूनिवर्सिटी के डैशबोर्ड के अनुसार अमेरिका में अब तक 2.4 करोड़ लोग कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं, जबकि 4,09,794 लोगों की मौत हो चुकी है.
पूरी दुनिया में कोरोना के कारण होने वाली मौतों में अमेरिका सबसे आगे है. दुनिया भर में अब तक कोरोना के कारण 20 लाख 88 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है. (bbc.com)
जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल 16 साल से सत्ता में हैं. क़रीब नौ महीने बाद बतौर चांसलर उनका चौथा कार्यकाल पूरा हो जाएगा और उन्हें पद छोड़ना होगा.
एंगेला मर्केल की पार्टी क्रिश्चन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) ने आर्मिन लाशेट को नया नेता चुन लिया है. वो अगला चांसलर बनने की रेस में आगे माने जा रहे हैं. ये पद उन्हें ही मिलेगा, अभी इसकी गारंटी नहीं है.
हालांकि, ये तय है कि अगले चांसलर के सामने कई चुनौतियां होंगी. उन्हें जर्मनी को कोरोना महामारी के झटके से उबारना होगा. साथ ही यूरोपीय यूनियन के साथ बेहतर तालमेल के ज़रिए सुखद भविष्य की राह तलाशनी होगी.
नए चांसलर की सबसे बड़ी चुनौती होगा एंगेला मर्केल की छाया से बाहर आना.
जर्मनी का 'मर्केल युग'
जर्मनी में एंगेला मर्केल के युग का ज़िक्र करते हुए यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स की सीनियर फेलो याना पुलेरिन कहती हैं, "मुझे लगता है कि उन्हें यूरोप की एक महान शख्सियत और जर्मनी की बेहतरीन चांसलर के तौर पर याद किया जाएगा लेकिन आप उनकी किसी एक बहुत बड़ी उपलब्धि को बयान नहीं कर सकते हैं हालांकि, उनकी एक बड़ी नाकामी को गिनाना भी मुश्किल है."
याना कहती हैं कि एंगेला मर्केल के पास मुश्किल वक़्त में संतुलन बनाए रखने की ख़ूबी है और जर्मनी को इसका फ़ायदा मिलता रहा है.
वो कहती हैं कि बीते दस सालों को देखें तो एंगेला मर्केल मुश्किल वक़्त में एक अच्छी प्रबंधक साबित हुईं.
एंगेला मर्केल की शुरुआती ज़िंदगी की बात करें तो वो पूर्वी जर्मनी में बड़ी हुईं. 1989 में जब बर्लिन की दीवार गिरी और जर्मनी का एकीकरण हुआ तब वो 35 बरस की थीं. सीडीयू में शामिल होने के 16 साल बाद वो जर्मनी की चांसलर बन गईं.
एंगेला मर्केल के पहले कार्यकाल के दौरान कई विश्लेषकों की राय थी कि वो इस पद पर ज़्यादा वक़्त तक नहीं टिक पाएंगी.
इसकी वजह बताते हुए याना पुलेरिन कहती हैं, "तब सीडीयू के पास मामूली सा बहुमत था. दूसरी वजह ये थी कि वो सीडीयू में दबदबा रखने वाली पहली महिला थीं. वो पूर्वी जर्मनी से आईं थीं और उन्हें एक बाहरी शख्स के तौर पर देखा जाता था."
लेकिन साल 2007 में एंगेला मर्केल के बारे में राय बदलने लगी. तब उनके कार्यकाल की पहली बड़ी चुनौती यानी वित्तीय संकट सामने था और उन्होंने समझबूझ के साथ रास्ता तलाशा. तब उन्होंने कड़े उपायों की बजाए निवेश पर ज़ोर दिया. उन्होंने उस समय जो स्कीम लागू की, वैसे ही उपाय कोरोना महामारी के दौरान भी किए गए. बाद के सालों में चुनौतियों के वक़्त उनके मज़बूत नेतृत्व की ख़ूबियां सामने आती रहीं.
कमाल की प्रबंधक
एंगेला मर्केल की नेतृत्व क्षमता पर याना पुलेरिन कहती हैं, "एंगेला मर्केल भविष्य की योजना पेश करने वाली कल्पनाशील नेता नहीं हैं. वो संतुलित और व्यावहारिक नेता हैं. चुनौती के वक़्त वो साहसिक फ़ैसले लेती रही हैं."
उधर, एंगेला मर्केल कहती हैं कि लोग उन्हें लेकर आरोप लगाते हैं कि वो तेज़ी से काम नहीं करती हैं. जबकि होता ये है कि कोई भी फ़ैसला लेने के पहले वो उस पर सोच विचार करती हैं.
बतौर चांसलर उनके सामने आई बड़ी चुनौतियों में से एक था यूरोज़ोन संकट. उस वक़्त एंगेला मर्केल की राय थी कि यूरोप के हर एक देश को अपनी वित्तीय चुनौती से ख़ुद निपटना चाहिए. वो मानती थीं कि दूसरों की ग़लती का बोझ जर्मनी के करदाताओं पर नहीं पड़ना चाहिए. तब दक्षिणी यूरोप के देशों ने उनकी ख़ूब आलोचना की.
एंगेला मर्केल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोप के केंद्रीय बैंक के ज़रिए यूरोज़ोन संकट का हल कराने में कामयाब रहीं लेकिन इसके ठीक बाद एक और बड़ा संकट उनके सामने था. साल 2011 में सीरिया में ज़ोरदार संघर्ष शुरू हो गया. सीरिया के लोग यूरोप का रुख़ करने लगे. दस लाख से ज़्यादा प्रवासी जर्मनी में दाख़िल हो गए. इस वक़्त एंगेला मर्केल प्रवासी संकट से जूझते यूरोपीय देशों के साथ खड़ी हो गईं.
याना पुलेरिन बताती हैं कि शुरुआत में एंगेला मर्केल की तारीफ़ हुई लेकिन बाद में वो घिरने लगीं.
वो कहती हैं, "शरणार्थी संकट की शुरुआत में जर्मनी के लोग सीमाएं खुली रखने और प्रवासियों को देश में आने देने के समर्थन में थे. बाद में लोग सोचने लगे कि हमने किन्हें आने दिया है. क्या ये सही फ़ैसला था और क्या चीज़ें हमारे नियंत्रण से बाहर जा रही हैं. मुझे लगता है कि मर्केल ने जब ये फ़ैसला किया था तब उन्हें जानकारी नहीं थी कि चीज़ें कैसे बदल जाएंगी और लोग कैसी प्रतिक्रिया देंगे."
जर्मनी में लोग नाराज़ हुए और एंगेला मर्केल की लोकप्रियता तेज़ी से कम हुई. तब धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के लिए लोगों का समर्थन बढ़ने लगा. फिर आया साल 2020 और कोरोना महामारी. हवा का रुख़ दोबारा बदल गया. याना कहती हैं कि तमाम संकटों के दौरान एंगेला जर्मनी की उम्दा चांसलर साबित हुईं.
यहां के लोग जब बीते 10 सालों को देखते हैं तो उन्हें अभूतपूर्व ख़ुशहाली नज़र आती है. बेरोज़गारी घटी है. अर्थव्यवस्था मज़बूत है. लेकिन जर्मनी के लोग ये सोचकर फ़िक्रमंद हैं कि जब एंगेला मर्केल चांसलर नहीं रहेंगीं तब संकट की स्थितियों के दौरान देश का प्रबंधन कौशल कसौटी पर आ सकता है.
जर्मनी की अर्थव्यवस्था का दसवां हिस्सा कार निर्माण और सप्लाई पर टिका है. जर्मनी में क़रीब दस लाख लोग सीधे या किसी न किसी तौर पर ऑटो सेक्टर का हिस्सा हैं. इस सेक्टर पर जर्मनी का बहुत कुछ दांव पर लगा होता है.
लेकिन अब इस क्षेत्र में बदलाव की जरूरत महसूस होने लगी है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ बासेल के प्रोफ़ेसर ऑलिवर नैचवे की राय में जर्मनी के इंजन को पूरी तरह से मरम्मत किए जाने की ज़रूरत है.
वो कहते हैं, "आने वाले सालों में जर्मनी की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगा निर्माण के ऐसे मॉडल को अपनाना जो ज़्यादा टिकाऊ और पर्यावरण के ज़्यादा माकूल हो. जर्मनी की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक निर्माण, ख़ासकर कार के निर्माण पर टिकी है. ग्लोबल वार्मिंग पर इसका काफ़ी असर होता है. ये एक ऐसा क्षेत्र है जहां नई खोज होती रहती है. इसमें श्रमिकों की भी माँग रहती है. ये क्षेत्र राजनीति को भी काफ़ी प्रभावित करता है."
प्रोफ़ेसर ऑलिवर को जर्मनी के तकनीकी कौशल पर भरोसा है. लेकिन उन्हें एक फ़िक्र भी है. उनकी राय है कि जर्मन कारों की माँग दो बातों पर टिकी है, जो शायद भविष्य में उतनी मज़बूत न रहें. इनमें से पहली है चीन में मध्यवर्ग के लोगों की लगातार बढ़ती संख्या और दूसरी है पूर्वी यूरोप में उपलब्ध सस्ता श्रम. वो कहते हैं कि बीते दस साल में ये दो वजह जर्मनी की कामयाबी और अर्थव्यवस्था बढ़ने के अहम कारण थे. लेकिन अब स्थिति बदल रही है.
कैसे दूर होगी असमानता?
प्रोफ़ेसर ऑलिवर कहते हैं, "जो समस्या सबसे बड़ी है, वो है जर्मनी में पिछले बीस साल के दौरान बनी असमानता है. जर्मनी की कुल श्रमशक्ति में से एक चौथाई कम वेतन पर काम करती है. जर्मनी में जिन क्षेत्रों में कम मज़दूरी मिलती है, वो मज़दूरी के लिहाज़ से यूरोप में सबसे निचले पायदान पर हैं."
इसे देखते हुए एंगेला मर्केल के उत्तराधिकारी के लिए सामाजिक एकजुटता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती हो सकती है.
प्रोफ़ेसर ऑलिवर कहते हैं, "मिडिल क्लास का एक तबक़ा अपने भविष्य को लेकर चिंतित है. उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है. भविष्य को लेकर इस फ़िक्र ने जर्मनी में ध्रुवीकरण की शुरुआत करा दी है. इसका अनुभव दुनिया के दूसरे देश भी कर चुके हैं. मसलन ब्रिटेन, अमरीका, फ्रांस या फिर इटली. अगर हालात बेहतरी की दिशा में नहीं गए तो जर्मनी में पहले से कहीं ज़्यादा अस्थिरता देखने को मिल सकती है."
ज़मीनी सच ये है कि जर्मनी यूरोपीय यूनियन का सबसे ज़्यादा आबादी वाला और सबसे अमीर देश है. ऐसे में जब यूरोपीय यूनियन को दिशा दिखाने का मौक़ा आता है, तब जर्मनी ही आगे बढ़ने की राह तय करता है लेकिन इसमें भी कुछ पेंच हैं.
'द पैराडॉक्स ऑफ़ जर्मन पावर' नाम की किताब के लेखक और यूरोप की राजनीति पर नज़र रखने वाले विश्लेषक हंस कंडनानी कहते हैं, "अगर सरल शब्दों में कहें तो जर्मनी इतना शक्तिशाली है कि वो नियम तय कर सके. लेकिन उसके पास इतनी शक्ति नहीं है कि दबदबे के ज़रिए नियम लागू करा सके. दूसरे देशों के पास इतनी ताक़त है कि वो नियम तोड़ सकें. लेकिन उनके पास इतनी शक्ति नहीं है कि नियमों को बदल सकें. यूरो संकट और शरणार्थी संकट दोनों के ही समय यही देखने को मिला था. यूरोप में अब भी यही स्थिति है."
हंस की राय है कि जर्मनी को अक्सर ख़ुशफ़हमी में ये मानकर चलता है कि उनके और यूरोप के हित मोटे तौर पर एक से हैं.
हंस कहते हैं कि यूरोज़ोन संकट के वक़्त जर्मनी अपने हित दूसरे देशों पर थोपने की कोशिश कर रहा था. तब एंगेला मर्केल ने कमज़ोर देशों को लेकर कड़ा रुख़ अपनाया था. इसका मक़सद जर्मनी के हितों की रक्षा करना था लेकिन उन्होंने तस्वीर ऐसी पेश की मानो उनके क़दम यूरोप के हित में हों.
हंस कंडनानी कहते हैं, "यूरो संकट की शुरुआत से ही एंगेला मर्केल ने जर्मनी की रणनीति तय कर दी थी. वो यूरोप को जर्मनी की छवि में ढालना चाहती थीं. ख़ासकर आर्थिक मामलों में. जर्मनी में तमाम लोगों की राय यही थी कि संकट को टालने का सही तरीक़ा यही है. ये तमाम तरह से दिक्क़त की बात है लेकिन जर्मनी की नीति ऐसी ही रही है."
बदलेंगे रिश्ते?
ये भी माना जा रहा है कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन जर्मनी के साथ रिश्ते सुधारना चाहेंगे. लेकिन इसकी राह में दो बड़ी बाधाएं हैं. ये हैं आर्थिक क्षेत्र और सुरक्षा का मामला.
हंस कंडनानी कहते हैं, "ये देखना होगा कि बाइडन प्रशासन रक्षा पर ख़र्च बढ़ाने और अपने आर्थिक ढांचे में सुधार के लिए जर्मनी पर किस हद तक दबाव बना पाता है."
जर्मनी की अर्थव्यवस्था में चीन की भूमिका अहम है. हंस का कहना है कि ये एक ऐसी राजनीतिक साझेदारी है जिसे बनाए रखना एंगेला मर्केल के उत्तराधिकारी एक मुश्किल चुनौती होगी.
हंस कंडनानी कहते हैं, "मर्केल जब से चांसलर बनीं, उन्होंने लगभग हर साल चीन का दौरा किया. आर्थिक साझेदारी के अलावा दोनों देशों की साझा कैबिनेट मीटिंग भी होती रही हैं. लेकिन अब ये स्थिति जर्मनी के लिए मुश्किल बन गई है. ख़ासकर अमेरिका और जर्मनी के रिश्तों के लिहाज़ से यही लगता है."
कौन होगा अगला चांसलर?
बड़ा सवाल ये भी है कि एंगेला मर्केल की जगह कौन लेगा ?
एंगेला मर्केल ने सीडीयू की कमान साल 2018 में छोड़ दी थी. उनकी जगह आनेग्रेट क्राम्प-कारेनबावर को नेता चुना गया था. जर्मनी के लोग उन्हें मिनी मर्केल कहते रहे हैं. लेकिन वक़्त के साथ ज़ाहिर होता गया कि उनमें एंगेला मर्केल जैसा दबदबा नहीं हैं. उन्होंने बीते साल फ़रवरी में इस्तीफ़ा दे दिया.
जर्मनी की राजनीति पर क़रीबी नज़र रखने वाली पत्रकार मेलानी अमन कहती हैं," ये सीडीयू के लिए एक दुखद अध्याय था. जब ये महिला आईं थीं तो उनकी काफ़ी तारीफ़ होती थी, उन्हें लेकर काफ़ी उम्मीदें लगाई गई थीं. तब माना गया था कि वो यक़ीनन चांसलर बनेंगी."
और अब जब एंगेला मर्केल की विदाई भी क़रीब है तब जर्मनी के कई लोग चाहते हैं कि वो अक्टूबर के बाद भी पद पर बनी रहें. मर्केल इससे इनकार कर चुकी हैं और इस बीच सीडीयू ने आर्मिन लाशेट को नया नेता चुना है. लाशेट नॉर्थ राइन वेस्टफ़ेलिया राज्य के मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने पार्टी के सम्मेलन में एंगेला मर्केल के पुरानी प्रतिद्वंद्वी फ्रेडरिक मैर्त्स को मात दी. रेस में शामिल तीसरे उम्मीदवार नॉर्बर्ट रोएटगेन पहले ही दौर में बाहर हो गए. आर्मिन लाशेट के मुस्लिम समूहों के साथ अच्छे संबंध हैं.
मेलानी अमन कहती हैं, "एक वक़्त ऐसा भी था जब सीडीयू के अंदर ही उनकी लोकप्रियता काफ़ी घट गई थी. इसकी वजह ये थी कि वो मुसलमान सदस्यों के साथ काफ़ी घुलते मिलते थे. तब उन्हें तुर्क आर्मिन कहा जाने लगा था. लेकिन अब उन्होंने ख़ुद को काफ़ी मज़बूत बना लिया है."
मेलानी अमन की राय है कि अब नए नेता के अगला चांसलर बनने की संभावना सबसे ज़्यादा रहेगी.
वो कहती हैं, "जर्मनी में फ़िलहाल सोशल डेमोक्रेट्स संघर्ष कर रहे हैं. चुनाव में उनका प्रदर्शन ख़राब रहा है. मर्केल जब से चांसलर बनी हैं, तब से हर चुनाव में उनका आधार घटा है. अगर वो चांसलर पद के लिए उम्मीदवार भी खड़ा करेंगे तो लोगों को हैरानी होगी."
कोरोना महामारी जब से शुरू हुई है तब से दक्षिणपंथी पार्टी एएफ़डी के समर्थन में भी कमी आई है. इस दौरान ग्रीन पार्टी ने प्रगति की है.
मेलानी अमन के मुताबिक़, "एक वक़्त चुनाव में उनका प्रदर्शन इतना उम्दा था कि उन्हें सीडीयू से मज़बूत माना जा रहा था. तब ये बात की जा रही थी कि एक दिन जर्मनी का चांसलर ग्रीन पार्टी से होगा. देखना दिलचस्प होगा कि क्या वो इस कामयाबी को जारी रख पाते हैं."
हालांकि, फ़िलहाल तय ये है कि नौ महीने बाद जर्मनी के लोग नए चांसलर का चुनाव करेंगे. लेकिन अभी ये तय नहीं है कि लाशेट ही अगले चांसलर बनें. उन्हें स्वास्थ्य मंत्री येन्स श्पान और सीएसयू के नेता मार्कुस ज़ूडर से चुनौती मिल सकती है.
चांसलर चाहे जो बने लेकिन ये सवाल सामने रहेगा कि क्या जर्मनी एंगेला मर्केल के बिना ख़ुद को संभाल सकेगा. फ़िलहाल दुनिया के तमाम देशों की तरह जर्मनी भी कोरोना महामारी से आर्थिक मोर्चे पर मिले झटके से जूझ रहा है. चुनौतियां यूरोप के दूसरे देशों के साझा दिक्क़तों से निपटने की भी होंगी.
जर्मनी के अगले चांसलर को न सिर्फ़ समझबूझ दिखानी होगी बल्कि एक ऐसा व्यापक नज़रिया भी पेश करना होगा, जिसके न होने को लेकर एंगेला मर्केल की भी आलोचना होती रही थी. (bbc.com)
धर्मशाला, 22 जनवरी | तिब्बती लोगों के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता लोबसांग सांगे ने गुरुवार को उम्मीद जताई कि राष्ट्रपति जो बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका का नया प्रशासन तिब्बत और तिब्बती लोगों के लिए अमेरिका का समर्थन लगातार जारी रखेगा। उन्होंने अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति और 49वीं उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने पर बाइडन और कमला हैरिस को बधाई देते हुए यह टिप्पणी की।
सांगे ने अपने एक बधाई संदेश में कहा, "केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और तिब्बती लोगों की ओर से, मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने के लिए आपको बधाई देता हूं।"
उन्होंने कहा, "अमेरिका ने दशकों से विभिन्न मोचरें पर तिब्बत मुद्दे का समर्थन किया है और हम हमेशा अमेरिका और उसके लोगों के आभारी हैं।"
सांगे ने कहा, "हालांकि आज चिंता केवल तिब्बती लोगों के लिए नहीं रह गई है, इसके बजाय आज चिंता वैश्विक लोकतंत्र और सार्वभौमिक आदशरें के लिए है, जो चीन जैसे सत्तावादी शासन से खतरे में हैं।"
सांगे ने शपथ ग्रहण के बाद राष्ट्रपति बाइडन की ओर से दिए गए भाषण में आशा, एकता और लोकतंत्र के संदेश का स्वागत भी किया। सांगे ने कहा, "मैं वास्तव में राष्ट्र के लिए आपके दशकों की सेवा की प्रशंसा करता हूं। आपकी जीत आप में संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों के भरोसे की पुष्टि है, जिनके लिए आप खड़े हैं। एक सफल कार्यकाल के लिए मेरी ओर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।"
भारतीय मूल की हैरिस के उपराष्ट्रपति बनने पर भी सांगे ने खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सरकार के इतिहास में सर्वोच्च रैंकिंग वाली महिला बनना, वैश्विक राजनीति और नेतृत्व में महिलाओं के लिए एक नए युग का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि यह दुनिया भर में भारतीयों के लिए बहुत गर्व और प्रेरणा का विषय है।
--आईएएनएस
चीन के सरकारी मीडिया ने जो बाइडन से चीन को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को पलटने की अपील की है ताकि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध फिर से पटरी पर आ सकें.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने उन मुद्दों को प्राथमिकता दी है जिसे बाइडन ने अपने संबोधन में चुनौतियों के तौर पर रेखांकित किया है.
बाइडन ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अपने संबोधन में कोविड-19 महामारी, सामाजिक असमानता, नस्लीय भेदभाव और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को चुनौतियां बताया है.
शपथ ग्रहण समारोह में ट्रंप की अनुपस्थिति को भी एजेंसी ने ख़बर बनाते हुए लिखा है कि ट्रंप ने किस तरह से परंपरा तोड़ दी.
शिन्हुआ की अंग्रेज़ी वेबसाइट ने बाइडन के शपथ ग्रहण समारोह को कोविड महामारी के चलते आंशिक लॉकडाउन और छह जनवरी को कैपिटल हिल की हिंसा के बाद सुरक्षा व्यवस्था के कारण असामान्य बताया है.
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने चीनी और अंग्रेज़ी में लिखे अपने संपादकीय में सत्ता हस्तांतरण को ट्रंप की ग़ैर-मौजूदगी के चलते सद्भावपूर्ण नहीं माना है. ट्रंप ने 19 जनवरी के अपने विदाई भाषण में चीन के ख़िलाफ़ सख़्ती से खड़े होने की अपील की थी, इसको चीनी मीडिया में उपहास के तौर पर देखा गया है.
बाइडन के सहयोगी ने 19 जनवरी को चीन के प्रति सख़्त रवैया जाहिर किया था.
इसको ध्यान में रखते हुए अख़बार ने लिखा है, "अगर बाइडन की टीम अगले चार सालों में कुछ हासिल करना चाहती है तो चीन के साथ संबंधों को सहज बनाना ही एकमात्र विकल्प है."
संपादकीय में बाइडन प्रशासन से अपील की है कि गंभीर मतभेदों को संभालते हुए उनमें चीन के साथ सहयोग का साहस होना चाहिए.
चीन के दूसरी सरकारी मीडिया आउटलेट्स ने भी बाइडन प्रशासन पर अमेरिका-चीन संबंधों को बेहतर करने के लिए दबाव बनाया है.
शिन्हुआ के अंग्रेज़ी कमेंट्री सेक्शन में कहा गया है कि बाइडन प्रशासन को डोनाल्ड ट्रंप से विरासत में अमेरिका और चीन के तनाव भरे संबंध मिले हैं. इसमें कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन में ऐसे लोग शामिल थे जो अंतिम दिनों में भी चीन विरोधी उन्माद से काम कर रहे थे.
इसमें कहा गया है, "अमेरिका के नए राष्ट्रपति को बीजिंग प्रशासन के साथ तनाव को कम करना चाहिए और दोनों देशों के आपसी संबंधों को पटरी पर लाने के लिए चीन के साथ मिलकर काम करना चाहिए. अब यह बाइडन प्रशासन पर निर्भर है कि वो तर्कसंगत फ़ैसले ले और सही चीज़ों को करे."
सरकारी अख़बार बीजिंग न्यूज़ ने भी चीन को लेकर ट्रंप की नीतियों को पलटने की अपील बाइडन प्रशासन से की है. अख़बार ने उम्मीद जताई है कि बाइडन दोनों ताक़तवर देशों के बीच नए तरह के संबंध बनाने की शुरुआत करेंगे.
अख़बार ने अपने कमेंट्री सेक्शन में लिखा है, "बाइडन ने शपथ ग्रहण के दौरान क्या कहा, उस पर ध्यान देने के बदले भविष्य में वे क्या कहते हैं और क्या करते हैं, ये देखना होगा. अमेरिका चीन के साथ तनाव को कम करके सहयोग बढ़ाना चाहता है तो बाइडन प्रशासन को ट्रंप प्रशासन के कुछ फ़ैसलों को सही करना होगा और यह दिखाना होगा कि चीन के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने के प्रति उनकी निष्ठा है."
अंग्रेज़ी सरकारी अख़बार चाइना डेली के यूरोप ब्यूरो चीफ़ चेन वेहुआ ने अंतरराष्ट्रीय पाठकों को ध्यान में रखते हुए लिखा है कि बाइडन को उन नीतियों को सही करना होगा जो चीन को नुक़सान पहुंचाने वाली थीं, इनमें दंडात्मक शुल्क, चीन की तकनीकी कंपनियों पर पाबंदी और कंफ्यूशियस इंस्टीट्यूट को लेकर जानबूझकर डर फैलाना शामिल है.
कई मीडिया आउटलेट्स ने ताइवान को लेकर बाइडन प्रशासन से सीमा नहीं लांघने की अपील की है.
बीजिंग प्रशासन ताइवान को चीन का हिस्सा मानता है. ताइवान की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले लोगों को ट्रंप प्रशासन के समर्थन के मुद्दे पर चीन पहले भी आपत्ति जता चुका है. जब अमेरिका ने ताइपे के साथ अनाधिकारिक बातचीत पाबंदी हटाई थी, तब भी चीन ने अमेरिका को बदले की कार्रवाई के लिए चेताया था.
शिन्हुआ की अंग्रेज़ी वेबसाइट ने बाइडन प्रशासन से अपील की है कि वे ना तो ताइवान के मुद्दे पर चीन को चुनौती दें और ना ही साउथ चाइना सी सीमा विवाद में दख़ल दें. इस आलेख में यह भी कहा गया कि अगर अमेरिका चीन की सरकारी व्यवस्था को सामने रखकर चीन के प्रति नीतियों को तैयार करता है तो वह कहीं नहीं पहुंचेगा.
इसमें यह भी कहा गया है, "चीन-अमेरिका के आपसी संबंधों का पटरी पर लौटना बाइडन प्रशासन पर निर्भर है. दोनों दोशों के आपसी संबंधों के लिए एक दूसरे की सीमा को समझना होगा. जलवायु परिवर्तन जैसे दूसरे मुद्दों पर सहयोग के अवसर तलाशने होंगे."
ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित चीनी और अंग्रेज़ी में छपे संपादकीय में कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन और ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन की आपसी मिलीभगत के चलते बाइडन को ताइवान स्ट्रीट में नई चुनौतियों का सामना करना होगा. संपादकीय में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि द्वीप का भाग्य अमेरिका नहीं बीजिंग ही तय करेगा. (बीबीसी)