राष्ट्रीय
लखनऊ, 4 मई | उत्तर प्रदेश में हो रहे नगर निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को गोरखपुर में अपने मताधिकार का प्रयोग किया। वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने राजधानी लखनऊ में वोट डाला। दोनों ने अपनी-अपनी पार्टी की जीत का दावा किया। मतदान के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि नगर निकाय के चुनाव के प्रथम चरण का आज मतदान प्रारंभ हो चुका है। प्रदेश के 4.32 करोड़ से अधिक मतदाता नगरीय व्यवस्था को सु²ढ़ और सुंदर बनाने के लिए मतदान करेंगे।
उन्होंने कहा कि आज मौसम भी सुहाना है, ऐसे में जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करे और एक अच्छी सरकार चुने। उन्होंने लोगों से हर हाल में मतदान करने की अपील की और कहा, मतदान हमारा कर्तव्य है जिसका बेहतर उपयोग किया जाना चाहिए इसलिए मेरी प्रदेश के मतदाताओं से अपील है कि मतदान अवश्य करें।
बसपा प्रमुख मायावती ने लखनऊ के चिल्ड्रेन पैलेस म्युनिसिपल स्कूल में अपने मताधिकार का उपयोग किया। उन्होंने मतदाताओं से वोट जरूर डालने की अपील करते हुए कहा, हमारी पार्टी इस चुनाव को बिना किसी दूसरी पार्टी के समर्थन के अकेले लड़ रही है। हमें उम्मीद है कि हमारी पार्टी को अच्छा रिस्पॉन्स मिलेगा और हमें सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। मैं चाहती हूं कि राज्य के सभी नागरिक इस चुनाव में अपना वोट डालें।
गौरतलब है कि नगरीय निकाय चुनाव के पहले चरण का मतदान सुबह सात बजे से शुरू हो गया है। मतदान शाम छह बजे तक होगा। मतदान के लिए बुधवार सुबह ही पोलिंग पार्टियां रवाना कर दी गई थीं। पहले चरण में प्रदेश के नौ मंडलों के 37 जिलों में 10 नगर निगमों, 104 नगर पालिका परिषदों और 276 नगर पंचायतों के चुनाव होंगे। इस चरण में करीब 2.40 करोड़ मतदाता 7,593 पदों के लिए 44 हजार से अधिक उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे। (आईएएनएस)
रांची, 4 मई | लातेहार जिले के चंदवा थाने के हेसला गांव में पंचायत लगाकर दंपति को मौत के घाट उतारने की वारदात में पुलिस ने दो पाहनों (पुजारियों) सहित 13 लोगों को गिरफ्तार किया है। वारदात के बाद हेसला और आसपास के गांवों में तनाव पसरा हुआ है। एहतियात के तौर पर पुलिस बल की तैनाती की गई है। यह घटना मंगलवार को देर रात की है। सूचना मिलने पर पुलिस बुधवार को गांव पहुंची थी। लातेहार के एसपी अंजनी अंजन ने बताया कि हत्या के पीछे की वजह डायन-जादू-टोना का अंधविश्वास है। दो पाहनों (पुजारियों) ने भीड़ को उनकी हत्या के लिए उकसाया था। इस मामले में दोनों पाहनों के अलावा 11 लोगों की गिरफ्तारी की गई है। सभी हेसला गांव के ही रहनेवाले हैं।
एसपी ने बताया कि इस घटना की कड़ी सरहुल पूजा से जुड़ी हुई है। 22 अप्रैल को हुई सरहुल पूजा के दिन बुजुर्ग दंपति ने सरहुल फूल लेने से इनकार कर दिया था। इससे लोगों में नाराजगी थी। वहीं, इसी दिन सेन्हा के दो युवकों अजय और सुकेश महतो की दुर्घटना में मौत हो गई थी। इस मौत की वजह दंपति के जादू-टोने को बताया गया। इसी हेसला के पाहन धीरज मुंडा और बुतरी पाहन ने दो मई की रात अखड़ा में बुजुर्ग दंपति शिबल गंझू तथा बवरी देवी को पीटा जिससे उनकी मौत हो गई। गिरफ्तार आरोपियों में पाहन धीरज मुंडा, बुतरु पाहन, संतोष गंझू, परदेशी मुंडा, सिंधु मुंडा, अमृत मुंडा, सुरेंद्र गंझू, विनोद सिंह, भोला मुंडा, रामचंद्र मुंडा, मुनवा मुंडा, रामधन गंझू और परमेश्वर मुंडा के नाम शामिल हैं। (आईएएनएस)
छपरा, 4 मई | ऐसे तो आपने विवाह समारोह की कई तरह की घटनाओं का जिक्र सुना होगा, लेकिन बिहार के सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र में एक विवाह समारोह के दौरान अजीबोगरीब वाक्या देखने को मिला जब दुल्हन की छोटी बहन यानी साली का दिल दुल्हे पर आ गया। काफी हंगामे के बाद दुल्हे की साली से शादी करा दी गई। कई लोग इसे प्रेम प्रसंग का मामला भी बता रहे हैं।
दरअसल, मामला सारण जिले के मांझी थाना क्षेत्र के भभौली गांव का है। जहां गांव के रहने वाले रामू बीन की बड़ी पुत्री का विवाह छपरा शहर के रतनपुरा बिनटोली निवासी स्व. जगमोहन महतो के पुत्र राजेश कुमार से 2 मई को होना सुनिश्चित हुआ था। राजेश तय समय के अनुसार बैंड बाजे और बारात लेकर भभौली गांव पहुंच भी गया।
घर में शादी के रस्म रिवाज भी निभाए जाने लगे। दोनों ने एक दूसरे को जयमाला भी पहना दी थी और शादी मंडप में जाने की तैयारी चल रही थी। इधर, राजेश और दुल्हन भी मन ही मन अपने भविष्य के सपने गढ़ रहे थे, तभी दुल्हे की साली यानी दुल्हन की छोटी बहन पुतुल घर की छत पर पहुंच गई और धमकी दी कि अगर यह शादी हुई तो वह छत से कूदकर जान दे देगी।
इसके बाद शादी की सभी रस्म रोक दी गई और खुशी का माहौल तानाव में बदल गया। इसके बाद बारातियों और सरातियों के बीच हाथापाई की नौबत आ गई। दोनों ओर से मारपीट भी हुई। किसी तरह यह सूचना मांझी थाना तक पहुंच गई।
पुलिस और स्थानीय जनप्रतिनिधि के दोनों परिवार के सदस्यों के समझाने के बाद स्थिति शांत हुई और राजेश की शादी बड़ी बहन से न कराकर पुतुल से करवा दी गई।
इधर, कई लोग इसे प्रेम प्रसंग का मामला भी बता रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पुतुल का पहले से ही राजेश के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था।
बहरहाल, इस शादी की चर्चा इलाके में खूब हो रही है और इसे लेकर कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं। (आईएएनएस)
लखनऊ, 4 मई | उत्तर प्रदेश पुलिस के एक हेड कांस्टेबल को एक स्कूली छात्रा का कथित रूप से पीछा करने और उसे परेशान करने का आरोप लगने के बाद निलंबित कर दिया गया है। लड़की का पीछा करते हुए उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। इसके बाद यह कार्रवाई की गई है। इस वीडियो में तारीख नहीं है। इसमें दिख रहा है कि खाकी वर्दी पहने एक व्यक्ति को दोपहिया वाहन पर एक साइकिल सवार स्कूली छात्रा का पीछा कर रहा है।
एक अन्य महिला और वीडियो बनाने वाला व्यक्ति ने उनका पीछा किया।
महिला ने पुलिसकर्मी को रोककर उससे उसके वाहनन का नंबर पूछा तो उसने जवाब दिया कि यह इलेक्ट्रिक वाहन है जिस पर नंबर नहीं होता है। वीडियो में सुनाई दे रहा है कि महिला ने उस पर आरोप लगाया कि वह इलाके में रोजाना लड़कियों का पीछा करता है।
हेड कांस्टेबल सदाकत अली जो अब पुलिस कंट्रोल रूम से जुड़ा हुआ है, उस समय पीजीआई इलाके में तैनात था।
डीसीपी पूर्वी लखनऊ, हिरदेश कुमार ने कहा, एक सरकारी कर्मचारी द्वारा उत्पीड़न से निपटने के लिए आईपीसी की उपयुक्त धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है और आरोपी पर पोक्सो एक्ट के प्रावधान भी लगाए गए हैं। (आईएएनएस)
रांची, 4 मई | झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के हाटगम्हरिया थाना क्षेत्र में प्रेमिका से मिलने गये युवक सोमा चातर उर्फ बाटे को लड़की के परिजनों ने पीट-पीटकर मार डाला। वह 25 साल का था। इस मामले में लड़के की मां जेमा चातर के बयान पर हाटगम्हरिया थाने में लड़की के पिता और भाई समेत तीन लोगों के खिलाफ एफआईआर की गई है। वहीं, युवक के शव को जब्त कर पोस्टमार्टम के लिए चाईबासा सदर अस्पताल भेज दिया गया है। फिलहाल, इस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि नूरदा गांव निवासी सोमा चातर उर्फ बाटे रात में अपनी प्रेमिका से मिलने उसके घर पहुंचा था। दोनों कमरे में चोरी-छिपे मिल रहे थे, इसी बीच भनक लगने पर लड़की के परिवार वाले वहां पहुंच गये और अपनी बेटी के साथ सोमा चातर को देखकर आक्रोशित हो उठे।
उसके बाद सोमा को लाठी-डंडे से पीट-पीटकर लहूलुहान कर दिया। इसके बाद जख्मी अवस्था में ही रात को उसे घर से लगभग 300 फीट दूर एक खेत में फेंक दिया।
सोमा चातर रात भर जख्मी हालत में खेत में ही पड़ा रहा। दूसरे दिन बुधवार सुबह शौच के लिए जा रहे ग्रामीणों ने सोमा को जख्मी अवस्था में खेत में पड़ा देखा और उसके परिजनों को इसकी सूचना दी।
सूचना मिलते ही सोमा चातर के मां जेमा चातर खेत पर पहुंची। वहां से अपने बेटे को घर ले आई। घर में लाने के कुछ ही घंटों बाद ही सोमा चातर की मौत हो गई।
परिजनों और ग्रामीणों ने सोमा की मौत की सूचना पुलिस को न देकर मामले को दबाने का प्रयास किया। शव को भी दफनाने की तैयारी कर ली गयी।
इस बीच गुप्त सूचना के बाद हाटगम्हरिया पुलिस गांव पहुंची और सोमा के शव को अपने कब्जे में ले लिया। उसके बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल चाईबासा भेज दिया।
मृतक की मां जेमा चातर ने पुलिस को बताया कि घटना के दिन सोमा चातर के घर से निकलने की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। दूसरे दिन बेटा जख्मी अवस्था में खेत में पड़ा मिला।
थाना प्रभारी बालेश्वर उरांव ने बताया कि मृतक की मां जेमा चातर ने लड़की के परिवार वालों पर शक जताया है।
फिलहाल, संदेह के आधार पर तीन लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया है। इस मामले में अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। थाना प्रभारी ने बताया कि इस मामले की छानबीन चल रही है। आरोपियों को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जायेगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 4 मई । हाल ही में एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के इस्तीफ़े के एलान पर शिवसेना के सामना में संपादकीय छपा है.
मंगलवार को इस्तीफ़े के एलान के फ़ौरन बाद एनसीपी नेता और कार्यकर्ताओं ने शरद पवार से भावुक अपील करते हुए अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए कहा था.
तब शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने कहा था कि शरद पवार अपने फ़ैसले पर दोबारा विचार करने के लिए तैयार हो गए हैं.
हालांकि शरद पवार की घोषणा के फ़ौरन बाद अजित पवार ने कहा था कि शरद पवार एक मई को ही इस्तीफ़ा देने वाले थे, लेकिन महा विकास अघाड़ी की रैली के चलते उन्होंने अपना फ़ैसला टाल दिया था.
अजित पवार ने कहा था कि अगला अध्यक्ष शरद पवार के निर्देश में रहते हुए काम करेगा, लेकिन कुछ ही घंटों के बाद अजित पवार के सुर बदल गए.
अब अजित पवार की भूमिका पर शिवसेना के मुखपत्र सामना में संपादकीय छपा है. इस संपादकीय में अजित पवार पर सवाल उठाए गए हैं.
सामना में क्या कुछ लिखा?
''अजित पवार और उनका गुट अलग भूमिका अपनाने की तैयारी में हैं, क्या उसे रोकने के लिए पवार ने यह क़दम उठाया है?
शरद पवार के इस्तीफ़ा देते ही उनको मनाने की कोशिश शुरू हो गई, यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है. पवार इस्तीफ़ा वापस लें, ऐसी मांग नेता कर रहे हैं, लेकिन अजित पवार ने अलग भूमिका अपनाई.
तब अजित ने कहा था- 'पवार साहब ने इस्तीफ़ा दिया. वे वापस नहीं लेंगे. उनकी सहमति से दूसरा अध्यक्ष चुनेंगे.' यह दूसरा अध्यक्ष कौन?
अजित पवार की राजनीति का अंतिम उद्देश्य महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना है.
शरद पवार ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देकर सभी की पोल खोल दी.
आज जो पैर पर गिरे, वही कल पैर खींचनेवाले होंगे तो उनका मुखौटा खींचकर निकाल दिया.
भले ही ये राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का अंदरूनी मसला हो, फिर भी शरद पवार इस घटनाक्रम के नायक हैं. उनके इस्तीफ़े का फ़ैसला आने तक महाराष्ट्र में हलचलें जारी ही रहेंगी.
पवार राजनीति के भीष्म हैं, लेकिन भीष्म की तरह हम शैय्या पर पड़े नहीं, बल्कि हम सूत्रधार हैं, यह उन्होंने दिखा दिया है.'' (bbc.com)
नई दिल्ली, 4 मई | ट्विटर के बाद अब गूगल ने भी ईमेल भेजने वालों के नाम के साथ ब्लू चेकमार्क लगाने की घोषणा की है ताकि उनकी पहचान सत्यापित की जा सके और धोखाधड़ी से बचा जा सके। कंपनी ने 2021 में पहली बार जीमेल में ब्रांड इंडीकेटर्स फॉर मेसेज आईडेंटीफिकेशन (बीआईएमआई) की शुरुआत की थी। इस फीचर के जरिए ईमेल भेजने वाले का ब्रांड लोगो भी उसके ईमेल के साथ दिखता है।
कंपनी ने एक बयान में कहा, उस फीचर को और बेहतर बनाया गया है। उपभोक्ताओं को बीआईएमआई अपनाने वाले सेंडर के ईमेल में नाम के साथ चेकमार्क दिखेगा। इससे उपभोक्ताओं को पता चल सकेगा कि कौन सा ईमेल सत्यापित सेंडर द्वारा भेजा गया है।
यह फीचर रोलआउट कर दिया गया है और गूगल वर्कस्पेस, जी सूट बेसिक और बिजनेस के सभी ग्राहकों के लिए उपलब्ध है। साथ ही व्यक्तिगत गूगल अकाउंट धारकों को भी यह सुविधा दी जा रही है।
जिन कंपनियों ने बीआईएमआई का फीचर ले रखा हैं उन्हें खुद-ब-खुद चेकमार्क मिल जाएगा।
टेक कंपनी ने कहा, ईमेल का मजबूत सत्यापन उपभोक्ताओं और ईमेल सिक्युरिटी सिस्टम को स्पैम की पहचान करने और उन्हें रोकने में मदद करता है। साथ ही ईमेल भेजने वालों को अपना ब्रांड ट्रस्ट बढ़ाने का मौका देता है।
उसने कहा, यह ईमेल के सोर्स में विश्वास बढ़ाता है और सभी के लिए बेहतर ईमेल पारिस्थितिकी तैयार करता है।
एलोन मस्क की कंपनी ट्विटर द्वारा सभी लिगेसी ब्लू बैज हटाने के बाद गूगल ने ब्लू चेकमार्क जारी किया है।
गूगल की प्रवर्तक कंपनी मेटा इंस्टाग्राम और फेसबुक पर भुगतान आधारित सत्यापन के लिए भी परीक्षण कर रही है। वेब के लिए इसका शुल्क 11.99 डॉलर और मोबाइल के लिए 14.99 डॉलर प्रति माह रखा गया है।
मेटा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग ने मेटा सत्यापित अकाउंट उपयोगकर्ताओं को सत्यापन का बैज देंगे जिससे दोनों प्लेफॉर्मो पर उनकी विजिबिलिटी बढ़ेगी और उन्हें प्राथमिकता के आधार पर कस्टम सपोर्ट दिया जाएगा।
यह फीचर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में फरवरी में शुरू किया गया था और इसे अन्य देशों में जल्द शुरू किया जाएगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 4 मई | जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) से जुड़े टेरर फंडिंग मामले में गुरुवार को जम्मू-कश्मीर में 16 जगहों पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की छापेमारी चल रही है। किश्तवाड़ में पांच और बारामूला में 11 जगहों पर तलाशी जारी है।
एनआईए के एक सूत्र ने कहा, आरोप है कि जेईआई चैरिटी के नाम पर इकट्ठा किए गए धन को लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठनों को कश्मीर में आतंकवादी हमले करने के लिए दे रही है।
केंद्रीय जांच एजेंसी ने कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया है, जिनसे फिलहाल पूछताछ की जा रही है।
सूत्रों ने बताया है कि एनआईए कई संदिग्ध दस्तावेजों की भी जांच कर रही है।
इसी मामले को लेकर बुधवार को जम्मू-कश्मीर में भी छापेमारी की गई थी।
एनआईए ने अब तक इस घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी नहीं की है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 4 मई | दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की प्रमुख स्वाति मालीवाल गुरुवार की सुबह एक बार फिर प्रदर्शनकारी पहलवानों से मिलने के लिए जंतर-मंतर पहुंचीं। मालीवाल के अनुसार, पहलवान विनेश फोगट और साक्षी मलिक ने उन्हें बताया कि उन्हें पुलिस अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित और परेशान किया जा रहा था जो नशे में थे और उनके साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे।
मालीवाल ने पहलवानों की सुरक्षा के लिए चिंता व्यक्त की और सवाल किया कि दिल्ली पुलिस बृजभूषण की सुरक्षा क्यों कर रही है और उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं कर रही है।
मालीवाल ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट कर दावा किया कि पुलिस ने उन्हें पहलवानों से मिलने नहीं दिया।
हालांकि, पुलिस उपायुक्त (नई दिल्ली) प्रणव तायल ने कहा कि डीसीडब्ल्यू अध्यक्ष को एक अधिकारी ने बैरीकेड पर रोक दिया लेकिन फिर तुरंत अनुमति दे दी।
डीसीपी ने कहा, वह वर्तमान में प्रदर्शन स्थल पर हैं। जंतर मंतर में व्यक्तिगत प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
कथित हाथापाई के बाद जब मालीवाल कल रात जंतर-मंतर पहुंचीं थी तो उन्हें दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शन स्थल से जबरदस्ती हटा दिया था। (आईएएनएस)
मुंबई, 4 मई । राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने अपनी किताब में अपने वाहन चालक ‘गामा’ की प्रशंसा की है, जिन्होंने पिछले 43 सालों में पवार को महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों की यात्राएं कराईं।
पवार ने मंगलवार को जारी की गई अपनी अद्यतन आत्मकथा ‘लोक माझे संगति’ में गामा की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने कभी कोई दुर्घटना नहीं की और अपने वाहन में यात्रा के दौरान प्रमुख हस्तियों और राजनीतिक नेताओं के साथ हुई पवार की बातचीत के बारे में कभी कुछ नहीं कहा।
उन्होंने लिखा, “मेरे सफल सार्वजनिक जीवन में मुझे कुछ बेहद करीबी सहयोगी मिले हैं जिनमें मेरे निजी चालक गामा भी शामिल हैं। पिछले 43 वर्षों से मेरे साथ रहे गामा मुझे राज्य के कोने-कोने में ले गए, लेकिन कभी कोई दुर्घटना नहीं हुई। इससे पता चलता है कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को कितनी गंभीरता से लिया है।”
पवार ने कहा कि समय बचाने और इसके बेहतर उपयोग के लिए वह अपनी यात्रा के दौरान वरिष्ठ नेताओं, उद्योगपतियों, प्रतिष्ठित हस्तियों और पार्टी पदाधिकारियों को अपने साथ ले जाते हैं।
उन्होंने कहा, “मैंने उनके साथ कई संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर चर्चा की है, लेकिन गामा ने मेरा विश्वास अर्जित किया है कि एक भी शब्द बाहर नहीं जाएगा।”
राकांपा नेता (82) ने कहा, “गामा कई बार मेरे अभिभावक की भूमिका में भी रहे हैं। वह मेरे कपड़े, यात्रा के सामान, दवाइयां और आहार सहित सभी आवश्यक देखभाल करते हैं। अगर मैं किसी कारणवश अपना भोजन या दवाई समय पर नहीं ले पाता हूं तो उन्होंने अधिकारियों पर नाराजगी भी जाहिर की है।”
उन्होंने कहा कि गामा उन वाहनों की भी देखरेख करते हैं जिनमें पवार यात्रा करते हैं। ‘‘अगर किसी वाहन में कोई दिक्कत है तो वह यात्रा के लिए उसका इस्तेमाल करने से मना कर देते हैं और मैं हमेशा उनकी बात पर ध्यान देता हूं।’’ (भाषा)
विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में आज भी महिलाएं लैंगिक भेदभाव की शिकार हैं. इस क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन चुनौतियां अब भी कम नहीं हुई हैं.
डॉयचे वैले पर कोमिका माथुर का लिखा-
भारत के मिशन मंगलयान से लेकर चंद्रयान-2 तक की सफलता के पीछे कई महिला वैज्ञानिकों का हाथ है. विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में महिलाओं की इस भागीदारी का खूब जश्न भी मनाया गया है. इसके बावजूद आज भी यह क्षेत्र पुरुष प्रधान है. महिला सशक्तिकरण के तमाम दावों और योजनाओं के बावजूद विज्ञान की दुनिया में महिलाएं लगातार पितृसत्ता और लैंगिक भेदभाव से जूझ रही हैं.
पुरुष प्रधान हैं ज्यादातर प्रयोगशालाएं
दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस कॉलेज के फिजिक्स डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर आभा देव हबीब बताती हैं, "मेरी बहन को एक प्रोफेसर ने अपनी लैब में काम नहीं करने दिया. एक-डेढ़ साल तक उसका समय बर्बाद करने के बाद कहा कि वह अपनी लैब में पुरुष स्कॉलर को लेना पसंद करते हैं." हबीब का कहना है कि इस घटना ने उनकी बहन का मनोबल तोड़ कर रख दिया था. आखिरकार उन्हें विदेश जाकर आगे की पढ़ाई करनी पड़ी.
भारत में ना सिर्फ अधिकतर प्रयोगशालाएं, बल्कि फैकल्टी के सदस्य भी पुरुषों के वर्चस्व वाले हैं. माना जाता है कि पढ़ाई की मदद से लैंगिक भेदभाव को कम किया जा सकता है लेकिन साइंस और रिसर्च के क्षेत्र में इसका ठीक उल्टा हो रहा है. इतनी पढ़ाई-लिखाई के बावजूद यहां आज भी महिलाओं को लेकर वही रूढ़िवादी सोच कायम है. आईआईटी दिल्ली के फिजिक्स डिपार्टमेंट से पोस्ट डॉक्टरेट फेलोशिप कर रहीं नयनी बजाज बताती हैं, "इस क्षेत्र में में जितना ऊंचाई पर जाते हैं, लैंगिक असमानता की घटनाएं बढ़ती जाती हैं. ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन लेवल पर फिर भी सब ठीक रहता है, लेकिन असल दिक्कतें उसके बाद पेश आती हैं."
पुरुषों को दी जाती है प्राथमिकता
ग्रेजुएशन और मास्टर्स दिल्ली से करने के बाद फिजिक्स में पीएचडी के लिए नयनी ने जब मुंबई के भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) में दाखिला लिया तो जिस लैब में उनकी रिक्रूटमेंट हुई, वहां वह अकेली लड़की थीं. नयनी बताती हैं, ‘पीएचडी पूरी करने के बाद मैं पोस्ट डॉक्टरेट के लिए बाहर जाना चाहती थी. मैंने अपने प्रोफेसर से रिकमेंडेशन लेटर देने के लिए कहा तो उन्होंने मुझसे कहा, "तुम्हारी उम्र शायद 29 के आसपास होगी. जल्दी ही तुम्हारी शादी हो जाएगी. मेरे खयाल में शादी हो जाने के बाद तुम्हें इस बारे में अपने पति से सलाह-मशविरा करना चाहिए. फिर आगे का कोई फैसला लेना चाहिए"
बजाज कहती हैं, "यह सुनकर मैं हैरान थी. उन्होंने मुझे रिकमेंडेशन लेटर नहीं दिया. मेरी जगह एक पुरुष स्कॉलर को यह मौका दिया गया."
बेंगलुरु के जवाहरलाल नेहरु सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च से एक्सपेरिमेंटल फिजिक्स में पीएचडी कर रही सुधा (बदला हुआ नाम) ने बताया कि एक्सपेरिमेंटल फिजिक्स में पूरी तरह पुरुषों का दबदबा है. यहां प्रयोगशालाओं में भारी-भरकम मशीनों और इंस्ट्रूमेंट्स पर काम करना होता है. महिलाओं को लेकर लंबे समय चली आ रही धारणाओं के आधार पर यह सोच लिया जााता है कि उनमें ऐसी प्रयोगशालाओं में काम करने का ना तो स्टैमिना है और ना ही वह अपने काम को उतना वक्त दे सकती हैं, जितना कि पुरुष. कॉन्फ्रेंसों में भी पुरुषों के विचारों को ज्यादा तरजीह दी जाती है.
बढ़ रही है विज्ञान विषयों में छात्राओं की दिलचस्पी
इस क्षेत्र में लैंगिक असमानता का यह आलम है कि कई महिलाएं कॉन्फ्रेंस में सवाल ही नहीं पूछतीं, ना ही खुल कर अपनी बात कह पाती हैं. सुधा बताती हैं कि ऐसा करने के पीछे सिर्फ एक कारण है और वह यह कि कहीं उनकी किसी बात से प्रोफेसरों या समकक्ष पुरुषों का मेल ईगो आहत हो गया तो उन्हें जो थोड़ा-बहुत मौका दिया जा रहा है, वह भी नहीं दिया जाएगा. आखिर में सुधा हंसते हुए कहती हैं, "मैं भी इसी वजह से नहीं चाहती कि मेरा असली नाम लिखा जाए."
"साइंस के लिए नहीं बनी हैं महिलाएं!"
अपना एक और अनुभव साझा करते हुए नयनी बजाज बताती हैं, "रिसर्च इंस्टीट्यूट में आने के बाद मुझे एहसास हुआ कि यहां फैकल्टी और पुरुष स्कॉलर्स के दिमाग में कहीं पीछे यह सोच हावी रहती है कि महिलाएं साइंस के लिए नहीं बनी हैं. कुछ वक्त पहले अपनी लैब में एक इंस्ट्रूमेंट ठीक करने आए इंजीनियर से मैंने उनकी कंपनी में वेकेंसी के लिए पूछताछ की, तो उन्होंने जवाब दिया कि आपके प्रोफाइल से मैच करती वेकेंसी है पर कंपनी उस पोस्ट के लिए पुरुष कैंडिडेट की तलाश कर रही है."
मिरांडा हाउस में फर्स्ट ईयर के छात्रों को फिजिक्स पढ़ा रहीं प्रोफेसर आभा का कहना है कि पुरुष आज भी यही सोचते हैं कि साइंस और मैथ्स में लड़कियों के नंबर आ जाते हैं बस. नंबर आने में और टेक्निकल चीजें समझने में बहुत फर्क है. पुरुषों को महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है.
‘पविनारी' तोड़ने की कोशिश कर रही है यह छवि
मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की इंडियन फिजिक्स एसोसिएशन का जेंडर इन फिजिक्स वर्किंग ग्रुप (जीआईपीडब्ल्यूजी) इस दिशा में काफी काम कर रहा है. इस ग्रुप का मुख्य उद्देश्य है फिजिक्स के क्षेत्र में लैंगिक समानता लाना, जिसके तहत जीआईपीडब्ल्यूजी ने पविनारी की शुरुआत की है. पविनारी यानी पदार्थ विज्ञान की नारियां. इसके तहत प्रमुख महिला भौतिक वैज्ञानिकों पर एक पब्लिक लेक्चर सीरीज पेश की जाती है. पविनारी का उद्देश्य है प्रमुख महिला वैज्ञानिकों के शानदार काम को संजोना और युवा पीढ़ी को प्रेरित करना.
यूट्यूब पर मौजूद इसी सीरीज के एक लेक्चर में स्कूल ऑफ फिजिक्स, यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद की रिटायर्ड प्रोफेसर बिंदू ए बांबा कहती हैं, "ज्यादातर साइंटिफिक रिसर्च जो मैंने देखी हैं, वे इस आधार से शुरू होती हैं कि महिलाएं पुरुषों जितनी अच्छी नहीं हैं. लेकिन असल में ऐसा है नहीं. महिलाएं इस क्षेत्र में ना सिर्फ पुरुषों के बराबर हैं, बल्कि कई परिस्थितियों में उनसे बेहतर भी हैं. पविनारी का उद्देश्य एक ऐसी दुनिया बनाना नहीं है, जहां महिलाओं को विशेषाधिकार दिए जाएं, बल्कि एक ऐसी दुनिया बनाना है, जहां महिलाएं और पुरुष समान हों."
बांबा के मुताबिक ऐसा देखा गया है कि महिलाएं एमएससी तक बहुत अच्छा स्कोर करती हैं. अपनी क्लास में टॉप करती हैं लेकिन उसके बाद यह ग्राफ नीचे गिरता जाता है. इसकी बड़ी वजह है ब्रेन ड्रेन. देश की आधी आबादी को वैज्ञानिक अवसरों से दूर करने की कोशिश कर जाती है. ऐसा करना एक तरह से देश को असाधारण रचनात्मकता से वंचित करना है.
भौतिक विज्ञान के क्षेत्र से जुड़ी अधिकतर महिलाओं का यह भी मानना है कि इस क्षेत्र में महिलाओं को बराबरी के मौके तभी मिलेंगे, जब फैकल्टी और लैब में लैंगिक संतुलन होगा. ये महिलाएं छात्रों की रोल मॉडल बन सकती हैं और ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं. (dw.com)
पटना, 3 मई (आईएएनएस)| बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पटना आगमन को लेकर सियासी हलकों में भले राजनीति हो रही हो, लेकिन इनके इसके लिए भव्य तैयारी की जा रही है। शास्त्री के पटना के नौबतपुर के तरेत पाली मठ में 13 से 17 मई के बीच होने वाले हनुमत कथा आयोजन को लेकर तैयारी जोर शोर से चल रही है। इस आयोजन में प्रतिदिन तीन लाख से अधिक लोगों के पहुंचने की संभावना है।
मठ प्रांगण पूरे 600 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें हनुमत कथा प्रवचन के लिए तीन लाख वर्ग फीट में पंडाल बन रहा है। भूमि पूजन हो गया है। श्रद्धालुओं की गाड़ियों की पार्किं ग के लिए 15 लाख वर्ग फीट में पार्किं ग स्थल बनाया जा रहा है।
श्रद्धालुओं के रहने और खाने की मुफ्त व्यवस्था की जा रही है। प्रसाद वितरण के लिए 40 से अधिक काउंटर बनाए जाने की उम्मीद है। इस कथा आयोजन में उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल से भी श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है।
बिहार बागेश्वर फाउंडेशन के अधिकारियों द्वारा की जा रही तैयारी में किसी प्रकार की कमी नहीं रहे इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है। कथा शुरू होने के पहले कलश यात्रा निकाली जाएगी। कथा में बड़ी संख्या में महिलाओं के भी पहुंचने की संभावना है।
आचार्य धीरेंद्र शास्त्री के कार्यक्रम को लेकर बिहार में सियासी पारा भी चढ़ा हुआ है। उनके विरोध और समर्थन को लेकर राजनीति शुरू हो गई है।
बिहार के वन और पर्यावरण मंत्री तेज प्रताप यादव ने ट्वीट कर लिखा कि धर्म को टुकड़ों में बांटने वालों को करारा जवाब मिलेगा, तैयारी पूरी है, िहन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में हैं, भाई-भाई।
इसके अलावा राजद के कई नेता धीरेंद्र शास्त्री के विरोध में बयान दे चुके है। इधर, धीरेंद्र शास्त्री के स्वागत में पटना में पोस्टर भी लगे हैं।
रांची, 3 मई (आईएएनएस)| झारखंड के गुमला जिले में एक सड़क हादसे में पांच लोगों की मौत हो गई, जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। हादसा मंगलवार देर रात डुमरी थाना क्षेत्र के जरडा गांव के पास एक पिकअप वैन के पलटने से हुआ। वैन पर तकरीबन 40 लोग सवार थे जो एक वैवाहिक समारोह से लौट रहे थे। घायलों को इलाज के लिए गुमला सदर अस्पताल में दाखिल कराया गया है। बताया जाता है कि डुमरी थाना क्षेत्र के कटारी गांव के लोग एक लड़की की शादी के लिए सांरगडीह नामक गांव गए थे। शादी संपन्न होने के बाद सारे लोग पिकअप वैन से अपने घर लौट रहे थे, तभी यह हादसा हो गया।
जरडा गांव के पास पिकअप वैन अनियंत्रित हो गयी और तीन बार पलट गयी। हादसे में पांच लोगों की मौके पर ही मौत हो गयी। मृतकों में दुल्हन की मां लुंदरी देवी, पिता सुंदर गयार, पुलीकार कुंडो, सविता देवी और आलसु नगेशिया शामिल हैं। घटना की जानकारी मिलने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची और शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। गंभीर रूप से घायल लोगों को बेहतर इलाज के लिए रिम्स रांची लाया जा रहा है।
प्रतापगढ़, 3 मई (आईएएनएस)| गैंगस्टर अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या के आरोपियों में से एक लवलेश तिवारी प्रतापगढ़ जेल में बंद होने के बावजूद सोशल मीडिया पर सक्रिय है। बांदा पुलिस ने पिछले दो हफ्तों में तिवारी के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर पोस्ट का गंभीरता से संज्ञान लिया है।
पुलिस के अनुसार, ये पोस्ट प्रकृति में भड़काऊ और घृणास्पद हैं।
महाराज लवलेश तिवारी चूचू नाम के अकाउंट्स में से एक को बंद कर दिया गया है।
एसपी बांदा अभिनंदन ने कहा कि तिवारी के सोशल मीडिया अकाउंट को संभालने वाले व्यक्ति की तलाश पुलिस कर रही है।
उन्होंने कहा, हमने जांच शुरू कर दी है। यह गंभीर मामला है।
तिवारी उन तीन हत्यारों में से एक है, जिन्होंने 15 अप्रैल को प्रयागराज में पुलिस हिरासत में अतीक और अशरफ की हत्या की थी।
19 अप्रैल को साझा किए गए एक पोस्ट में पूछा गया कि क्या लोग तिवारी का समर्थन करते हैं। पोस्ट को 42 लाइक्स और छह कमेंट्स के साथ 326 वोट मिले।
एक अन्य अकाउंट में, तिवारी की अपने माता-पिता के साथ एक तस्वीर 24 अप्रैल को शेयर की गई थी।
इसी तरह की तस्वीर 19 अप्रैल को एक अन्य प्रोफाइल में पोस्ट की गई थी जो बंद है।
अधिकारियों ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अन्य लोगों के पास तिवारी के अकाउंट का एक्सेस है, जो उसकी ओर से पोस्ट कर रहे हैं।
तिवारी बांदा का रहना वाला है, जहां उसका परिवार रहता है।
नई दिल्ली, 3 मई | भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रही पहलवान विनेश फोगाट ने आरोप लगाया है कि केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने ठोस कार्रवाई करने के बजाय ओवरसाइट पैनल बनाकर मामले को दबाने की कोशिश की। अपने विरोध के दूसरे चरण में पहलवान बृज भूषण की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। बृज भूषण भाजपा सांसद भी हैं।
विनेश ने संवाददाताओं से कहा, हमने केंद्रीय खेल मंत्री (अनुराग ठाकुर) से बात करने के बाद अपना विरोध समाप्त किया और सभी एथलीटों ने उन्हें यौन उत्पीड़न के बारे में बताया। वहां कमेटी बनाकर उन्होंने मामले को दबाने की कोशिश की, उस समय कोई कार्रवाई नहीं की गई।
दिग्गज पहलवान ने कहा कि एक शक्तिशाली व्यक्ति के खिलाफ खड़ा होना कठिन है जो बहुत लंबे समय से अपनी शक्ति और स्थिति का दुरुपयोग कर रहा है।
ओलंपियन ने आगे खुलासा किया कि पहली बार जंतर मंतर पर अपना विरोध शुरू करने से पहले पहलवानों ने एक अधिकारी से मुलाकात की थी। लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं हुई।
विनेश ने कहा, जंतर मंतर पर बैठने से तीन-चार महीने पहले, हम एक अधिकारी से मिले थे, हमने उन्हें सब कुछ बताया था कि कैसे महिला एथलीटों का यौन उत्पीड़न और उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, जब कोई कार्रवाई नहीं की गई, तब हम धरने पर बैठ गए।
इस बीच, बृजभूषण ने कुश्ती संघ से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है, यह कहते हुए कि इसका मतलब यह होगा कि उन्होंने आरोपों को स्वीकार कर लिया है।
उन्होंने कहा, ''अगर मैं इस्तीफा देता हूं तो इसका मतलब है कि मैंने उनके आरोप को स्वीकार कर लिया है, मेरा कार्यकाल खत्म होने वाला है। जब तक नई पार्टी नहीं बनती और सरकार आईओए कमेटी का गठन नहीं करती, तब तक उस कमेटी के तहत चुनाव होते रहेंगे और उसके बाद मेरा कार्यकाल खत्म हो जाएगा।''
पहलवानों का विरोध एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है, कई विपक्षी नेताओं ने एथलीटों के साथ एकजुटता दिखाई है और डब्ल्यूएफआई प्रमुख के इस्तीफे की मांग की है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई | ट्विटर बुधवार को अपने एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) को पेवॉल के पीछे रखने के अपने फैसले से पीछे हट गया और आपातकालीन और परिवहन सेवा प्रदाताओं को अपने एपीआई को मुफ्त में एक्सेस करने की अनुमति देगा। फरवरी में ट्विटर ने अपने एपीआई तक मुफ्त पहुंच की पेशकश बंद करने की घोषणा की थी और इसके बजाय दुनिया भर के डेवलपर्स के लिए एक पेड वर्जन लॉन्च किया था।
विवादास्पद निर्णय के बाद, कई आपातकालीन और परिवहन खातों को प्लेटफॉर्म पर अलर्ट पोस्ट करने में समस्या का सामना करना पड़ा।
यूएस मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्टेशन अथॉरिटी (एमटीए) और बे एरिया रैपिड ट्रांजिट (बीएआरटी) ने भी अपने एपीआई एक्सेस में व्यवधान का अनुभव किया।
अब, एलन मस्क द्वारा संचालित मंच ने कुछ उपयोगकर्ताओं के लिए अपना निर्णय उलट दिया है।
कंपनी ने कहा, "ट्विटर एपीआई के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपयोग मामलों में से एक हमेशा सार्वजनिक उपयोगिता रही है। वेरिफाइड सरकार या सार्वजनिक रूप से स्वामित्व वाली सेवाएं जो मौसम अलर्ट, परिवहन अपडेट और आपातकालीन सूचनाएं ट्वीट करती हैं, इन महत्वपूर्ण उद्देश्यों के लिए, मुफ्त में एपीआई का उपयोग कर सकती हैं।"
प्लेटफॉर्म का 'वेरिफाइड' से क्या मतलब है यह अभी भी स्पष्ट नहीं है।
एनडब्ल्यूएस, युनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिक सर्विस और यूएस फॉरेस्ट सर्विस सहित अन्य प्रभावित सेवाओं ने उपयोगकर्ताओं को रीयल-टाइम अलर्ट प्राप्त करने के अन्य तरीकों के लिए निर्देशित किया था।
ट्विटर के एपीआई के फ्री वर्जन के साथ, उपयोगकर्ता प्रति माह केवल 1,500 स्वचालित ट्वीट पोस्ट कर सकते हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई | भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने खुफिया ब्यूरो (आईबी) की आपत्तियों को खारिज करते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय में जज के पद पर नियुक्ति के लिए एक पारसी वकील के नाम की अनुशंसा की है। आईबी की रिपोर्ट में कहा गया था कि उक्त पारसी वकील एक ऐसे अधिवक्ता का जूनियर था जिसने देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कमी पर चिंता जताते हुए एक लेख लिखा था। इस कॉलेजियम में न्यायमूर्ति के.के. कौल और के.एम. जोसेफ भी शामिल हैं। कॉलेजियम ने कहा कि कंसल्टी-जजों ने कहा है कि फिरदोस फिरोज पूनीवाला पदोन्नति के लिए काबिल है और आईबी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसकी निजी तथा पेशेवर छवि अच्छी है तथा उसकी ईमानदारी के बारे में कुछ भी गलत नहीं है और वह किसी राजनीतिक दल से संबद्ध भी नहीं है।
कॉलेजियम ने मंगलवार को जारी संकल्प में कहा, हालांकि खुफिया विभाग ने कहा है कि पूनीवाला ने पूर्व में एक अधिवक्ता के अंदर काम किया था। यह कहा गया है कि उस अधिवक्ता ने 2020 में एक प्रकाशन में एक लेख लिखा था जिसमें देश में पिछले 5-6 साल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कमी को लेकर चिता जताई गई थी। पूनीवाला के पूर्व सीनियर द्वारा व्यक्त विचारों का उसकी योग्यता या बॉम्बे हाईकोर्ट में जज के रूप में नियुक्ति के लिए साख से कोई लेना-देना नहीं है।
कॉलेजियम ने कहा कि पूनीवाला और उनके पूर्व वरिष्ठ अधिवक्ता के बीच नियोक्ता-कर्मचारी का संबंध नहीं था।
कॉलेजियम ने कहा कि चैंबर से जुड़े होने के बावजूद जूनियर को स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करने की छूट होती है। पदोन्नति के लिए उम्मीदवार की उपयुक्तता को दशार्ते हुए कोई नकारात्मक टिप्पणी फाइल में नहीं की गई है। उसने कहा, उम्मीदवार पारसी पारसी धर्म को मानता है और अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित है।
प्रस्ताव में कहा गया है कि उपरोक्त पहलुओं को ध्यान में रखते हुए और उनकी पदोन्नति के प्रस्ताव के समग्र विचार पर, कॉलेजियम की सुविचारित राय है कि फिरदोस फिरोज पूनीवाला बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए उपयुक्त हैं।
कोलेजियम ने पूनीवाला के अलावा अधिवक्ताओं शैलेश प्रमोद ब्रrो और जितेंद्र शांतिलाल जैन को भी बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की है।
ब्राrो पर, कॉलेजियम ने कहा, कंसल्टी जजों ने उन्हें पदोन्नति के लिए उपयुक्त पाया है। वह एक सक्षम वकील हैं, जिन्हें दीवानी, आपराधिक, संवैधानिक और सेवा कानून के मामलों में लगभग 30 वर्षों के अभ्यास का अनुभव है। न्याय विभाग द्वारा उनकी फाइल कुछ भी गलत सामने नहीं आया है।
जैन पर कॉलेजियम ने कहा कि उन्होंने 25 साल के अपने अभ्यास के दौरान कर मुकदमेबाजी में विशेषज्ञता के साथ काफी अनुभव हासिल किया है और उनकी ईमानदारी के बारे में कुछ भी प्रतिकूल नहीं बताया गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई | दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आप नेता मनीष सिसोदिया ने आबकारी नीति मामले में अंतरिम जमानत के लिए बुधवार को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सिसोदिया ने पत्नी की बीमारी के आधार पर अंतरिम जमानत मांगी है।
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने अपनी नियमित जमानत याचिका के साथ गुरुवार को विचार के लिए याचिका को सूचीबद्ध करते हुए सीबीआई से कहा कि वह उसी दिन मामले में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का प्रयास करे।
पिछले हफ्ते, राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश एम.के. नागपाल ने सिसोदिया की न्यायिक हिरासत 12 मई तक बढ़ा दी थी।
कोर्ट ने सीबीआई को सिसोदिया को पूरक आरोप-पत्र की ई-कॉपी मुहैया कराने का भी निर्देश दिया था।
सिसोदिया के वकील ने दावा किया कि जांच एजेंसी ने मामले में अधूरी जांच रिपोर्ट दायर की है और अदालत से उनके मुवक्किल को डिफॉल्ट जमानत देने का आग्रह किया।
जांच एजेंसी ने 25 अप्रैल को चार्जशीट दायर की थी।
सीबीआई ने 26 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया था कि जिस आबकारी नीति घोटाले की वह जांच कर रही है, वह एक गहरी साजिश है और यह उतना सरल नहीं है जितना दिखाया गया है।
जस्टिस नागपाल ने 29 अप्रैल को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज मामले में सिसोदिया की हिरासत 8 मई तक बढ़ा दी थी।
एक दिन पहले, न्यायाधीश ने सिसोदिया को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया था कि सबूत प्रथम ²ष्टया अपराध में उनकी संलिप्तता के बारे में हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई | सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सजा माफ करने की मांग को इस आधार पर खारिज कर दिया कि केंद्र काफी लंबी अवधि के लिए उसकी दया याचिका पर फैसला करने में विफल रहा। कोर्ट ने केंद्र से दया याचिका पर विचार करने और फैसला लेने के लिए कहा है। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने कहा: सक्षम प्राधिकारी.. समय आने पर फिर से दया याचिका पर विचार कर सकते हैं और निर्णय ले सकते हैं। रिट याचिका का निपटारा उसी के अनुसार किया जाता है।
2 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने राजोआना की उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें उसने मौत की सजा को इस आधार पर माफ करने की मांग की थी कि केंद्र काफी समय से उसकी दया याचिका पर फैसला करने नहीं कर रहा है। राजोआना को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजोआना का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
रोहतगी ने तर्क दिया था कि लंबे समय तक दया याचिका पर बैठे रहने के दौरान राजोआना को मौत की सजा पर रखने से उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि राजोआना ने अपनी दोषसिद्धि या सजा को चुनौती नहीं दी है।
पिछले साल सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने राजोआना की ओर से दायर दया याचिका पर फैसला करने में देरी के लिए केंद्र को फटकार लगाई थी।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित ने कहा था कि वह मामले में स्थगन देने के केंद्र के वकील के अनुरोध पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। शीर्ष अदालत ने केंद्र के वकील से कहा था कि उसके मई 2022 के आदेश के चार महीने बीत चुके हैं, क्योंकि उसने राजोआना की दया याचिका पर निर्णय लेने में देरी पर सवाल उठाया था।
शीर्ष अदालत ने संबंधित विभाग के एक जिम्मेदार अधिकारी को मामले की स्थिति पर एक हलफनामा दायर करने को कहा। (आईएएनएस)|
पटना, 3 मई | बिहार के भोजपुर जिले में जश्न के दौरान फायरिंग में 17 वर्षीय एक लड़के की मौत हो गई। मृतक आर्यन कुमार (17) सीआरपीएफ जवान का बेटा था।
वह एक विवाह समारोह के दौरान आयोजित एक नृत्य कार्यक्रम देख रहे थे, जहां एक करिया यादव ने शराब के नशे में कई राउंड फायरिंग की। एक गोली आर्यन के गले में लगी।
मंगलवार की सुबह करीब तीन बजे सदर अस्पताल आरा लाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
एक चश्मदीद के मुताबिक, कुछ महिला डांसर स्टेज पर परफॉर्म कर रही थीं। करिया यादव मंच पर चढ़ गए और देशी पिस्टल से फायरिंग शुरू कर दी।
चंडी थाने के एसएचओ सौरव कुमार ने कहा, हमने आरोपी की पहचान कर ली है। उस पर हत्या के आरोप में मामला दर्ज किया गया है। उसे पकड़ने के लिए छापेमारी की जा रही है। (आईएएनएस)
शिवमोग्गा (कर्नाटक), 3 मई | कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'अपने भाषणों के दौरान अपनी पार्टी के अन्य नेताओं के नामों का उल्लेख नहीं करने और केवल अपने बारे में बात करने' के लिए निशाना साधा। राहुल ने मंगलवार को यहां एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, "इस दुनिया में केवल नरेंद्र मोदी ही नहीं हैं, और भी लोग हैं।"
उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, "मोदी जी, अपने नेताओं के बारे में भी थोड़ी बात कर लीजिए, कर्नाटक के बारे में बात कीजिए, युवाओं के बारे में बात कीजिए।"
राहुल ने कहा, "मैं जब भी किसी मंच पर जाता हूं तो सबसे पहले, अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के नाम लेता हूं। मगर भाजपा की सभाओं में प्रधानमंत्री किसी और नेता का नाम नहीं लेते। मैं सिद्दारमैया जी, शिवकुमार जी, खड़गे जी का नाम लेता हूं .. मगर मोदी जी कभी अपनी पार्टी के किसी नेता के बारे में बात नहीं करते।"
उन्होंने कहा, "वह येदियुरप्पा जी या बोम्मई जी का नाम नहीं लेते हैं, जैसे कि वे मौजूद नहीं हों। कर्नाटक का हर व्यक्ति पूछ रहा है - मोदी जी कभी भी भाजपा नेताओं का नाम क्यों नहीं लेते।"
राहुल गांधी के इस बयान को महत्व इसलिए मिला, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा शिवमोग्गा जिले के रहने वाले हैं।
कांग्रेस नेता ने कहा, "कांग्रेस की बैठकों में हम कभी भी हिंसा या घृणा के बारे में बात नहीं करते हैं। हमारे कार्यकर्ता 'नफरत के बाजार' में 'प्यार की दुकान' खोलते हैं, वे देश को एकजुट करते हैं, वे जहां भी जाते हैं, भाईचारा फैलाते हैं। हम सभी जातियों, सभी धर्मों, सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं।"
उन्होंने कहा, "यह (शिवमोग्गा) कर्नाटक के गृहमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र है। पुलिस उप-निरीक्षक के लिए भर्ती परीक्षा में भारी भ्रष्टाचार हुआ था। प्रधानमंत्री मोदी कभी भी कर्नाटक के गृहमंत्री का नाम नहीं लेते हैं। वह केवल अपने बारे में बात करते हैं ..। कर्नाटक सरकार ने पिछले तीन साल में क्या किया, उसके बारे में एक शब्द बोलते।"
राहुल ने आगे कहा कि भाजपा ने तीन साल पहले लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाकर कर्नाटक में बनी सरकार को चुरा लिया।
उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखे ठेकेदार संघ के पत्र का भी जिक्र किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि हर ठेके पर करीब 40 फीसदी कमीशन मांगा जाता है।
राहुल ने आगे गोवा, महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच जल विवाद का जिक्र किया और पूछा, "जब बाढ़ आई तो आपने कर्नाटक के लिए क्या किया। बीते तीन साल में आपने कर्नाटक के लिए क्या किया?"
उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री यहां आते हैं, बात करते हैं कि कैसे कांग्रेस ने उन पर 91 बार हमला किया है..सवाल प्रधानमंत्री के बारे में नहीं है, बल्कि कर्नाटक के लोगों के बारे में है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 मई | भोपाल की एक विशेष पीएमएलए अदालत ने खंडवा में वन विभाग के रेंजर हरिशंकर गुर्जर और उसकी पत्नी सीमा गुर्जर को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 3 के तहत किए गए अपराध के लिए तीन साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। एक अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी। अदालत ने उन्हें सजा सुनाते हुए प्रत्येक अपराधी पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
अदालत ने 38.16 लाख रुपये की छह संपत्तियों को भी जब्त करने का आदेश दिया, जिन्हें ईडी ने कुर्क किया था।
इस मामले में लिकुटा पुलिस, मध्य प्रदेश द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
एक अधिकारी ने कहा कि हरिशंकर गुर्जर ने अपने आधिकारिक पद और आपराधिक कदाचार का दुरुपयोग करके अपनी आय के ज्ञात स्रोत से अधिक आय अर्जित की, जिसका वह संतोषजनक हिसाब नहीं दे सके।
इस प्रकार अर्जित आय से अधिक संपत्ति का उपयोग उसके द्वारा अपने/परिवार के सदस्यों के नाम पर संपत्ति अर्जित करने के लिए किया गया है और इसे बेदाग संपत्तियों के रूप में दर्शाया गया था।
कोर्ट ने सुनवाई के बाद उन्हें दोषी करार दिया। (आईएएनएस)
एथेंस, 3 मई | ग्रीस के सुप्रीम कोर्ट ने आगामी 21 मई को होने वाले आम चुनावों में भाग लेने के लिए कुल 36 दलों, गठबंधनों और निर्दलीय उम्मीदवारों को हरी झंडी दे दी है, लेकिन चरम-दक्षिणपंथी नेशनल पार्टी-हेलेन्स (यूनानी) के चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी गई है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने यूनानी राष्ट्रीय समाचार एजेंसी आमना के हवाले से बताया कि जेल में बंद पूर्व सांसद इलियास कासिडियारिस द्वारा स्थापित नेशनल पार्टी-हेलेन्स को हाल में पारित एक कानून के तहत चुनाव लड़ने से रोका गया है। इसके अनुसार, उन पार्टियों की चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी पर प्रतिबंध लगाता है, जिनके शीर्ष नेता को आजीवन कारावास की संभावित सजा वाले अपराधों, जैसे आपराधिक संगठन चलाने, का दोषी ठहराया गया है।
कासिडियारिस को चरम-दक्षिणपंथी गोल्डन डॉन (क्रिसी एवगी) पार्टी के प्रमुख सदस्य के रूप में एक आपराधिक संगठन को निर्देशित करने का दोषी ठहराया गया है।
गोल्डन डॉन के सदस्य 2012-2019 के बीच संसद सदस्य भी रहे थे। फासीवाद-विरोधी संगीतकार की हत्या के बाद 2013 में इसके नेतृत्व और दर्जनों सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था और 2020 में उन्हें दोषी ठहराया गया था। (आईएएनएस)
शंभु नाथ चौधरी
रांची, 2 मई | रांची विश्वविद्यालय के 36 वें दीक्षांत समारोह में मंगलवार को लगभग 29 हजार छात्र-छात्राओं के बीच डिग्रियां बांटी गईं और इनमें से 80 को गोल्ड मेडल से नवाजा गया, लेकिन इनमें से तीन-चार के गोल्ड मेडल की चमक थोड़ी अलग, थोड़ी अनूठी है।
इनमें एक हैं अजय पी, जिन्होंने सड़क-बिल्डिंग-खेत-खलिहान में दिहाड़ी मजदूरी करते हुए पढ़ाई की और आज जब राज्यपाल सी.पी. बालाकृष्णन अपने हाथों उन्हें गोल्ड मेडल पहनाया तो उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे। इसी तरह योगिक साइंस विषय की पीजी टॉपर मीना कुमारी को पढ़ाने के लिए उनकी सासु मां ने खेत-खलिहानों में मेहनत-मजदूरी की। उर्दू की पीजी टॉपर सदफ कायनात आंखों से देख नहीं पातीं, लेकिन जब उन्हें गोल्ड मेडल मिला तो उनके चेहरे पर खुशी की अद्भुत चमक थी।
अजय पी रांची से करीब चालीस किलोमीटर दूर खूंटी के बिरहू गांव के रहने वाले हैं। घर की माली हालत बेहद कमजोर है। वह पिछले कई सालों से इलाके में बनने वाली सड़कों और बिल्डिंगों में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। ईंट-बालू ढोने के काम के बाद जो वक्त निकलता, उसमें पढ़ाई करते। वह किसी तरह वक्त निकालकर यूनिवर्सिटी की कक्षाएं भी करते रहें। उनके गांव-इलाके के कुछ लोग उन्हें कूली का काम करने की वजह से हिकारत की नजर से देखते थे। उनके पिता को लोग कहते थे कि अगर मजदूरी ही करनी है तो कॉलेज-यूनिवर्सिटी में बेटे को क्यों पढ़ा रहे हैं? अजय कहते हैं कि कुछ दिनों पहले जब यूनिवर्सिटी ने गोल्ड मेडलिस्ट की लिस्ट जारी की तो उसमें अपना नाम देखकर वह रो पड़े। आज भी राज्यपाल के हाथों मेडल पाने के बाद वह बेहद भावुक हो उठे। अजय क्षेत्रीय भाषा नागपुरी में एमए टॉपर बने हैं। वह आगे शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं।
पीजी में योगिक साइंस विषय की टॉपर की ख्वाहिश थी कि जब उसे गोल्ड मेडल दिया जाये, तो उसकी सास भी मंच पर मौजूद रहें। संभव हो तो उसका सम्मान उसकी सास को दिया जाये, या सास ही उसे मेडल प्रदान करें। दरअसल यह सपना उन्होंने उस दिन ही देख लिया था, जब उसकी सास ने उसे पढ़ाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी थी। मीना बताती हैं कि उनके पति एक एक्सीडेंट की वजह से कामकाज नहीं कर पाते। उसकी सास ही खेतों में मेहनत मजदूरी कर घर चलाती हैं। इसमें मीना भी उन्हें सहयोग कर देती हैं, पर कभी-कभी। सास ने उनकी पढ़ाई कभी बाधित नहीं होने दी, बल्कि हमेशा उनका हौसला बढ़ाती रहीं। मीना चाहती थीं कि जब वे गोल्ड मेडल लें, तो वहां सास जरूर रहें। जब दीक्षांत समारोह की घोषणा हुई, तभी मीना ने इसके लिए विश्वविद्यालय में आवेदन दे दिया था। विश्वविद्यालय के अधिकारियों से मिलकर इसके लिए आग्रह भी किया था। पर समारोह में सुरक्षा गाडरें और अधिकारियों ने उनकी सास को मंच पर चढ़ने से रोक दिया। मीना ने राज्यपाल से गोल्ड मेडल लिया और नीचे आ गयी। फिर उसने मंच के नीचे मीडिया वालों के बीच वह मेडल अपनी सास को दिया और उनके चरण छुए। फिर कहा-मेरा असली गोल्ड मेडल तो यही है।
गोल्ड मेडलिस्ट की तीसरी प्रेरक कहानी रांची की सदफ कायनात की है। वह डोरंडा हाथीखाना की रहने वाली है। वह स्नातक की पढ़ाई कर रही थीं, तभी बीमारी की वजह से उनकी आंखों से रोशनी पूरी तरह जाती रही। उनकी पढ़ाई छूट गई। उनके तमाम सपने चकनाचूर हो गए थे, लेकिन बाद में उनके माता-पिता ने हौसला दिया। सदफ ने फिर से पढ़ाई शुरू की। उन्होंने फिर से एडमिशन लिया। स्नातक की परीक्षा पास की और इसके बाद उर्दू स्नातकोत्तर में दाखिला लिया। उनकी बहन उन्हें किताबें पढ़कर सुनाती रहीं। उन्होंने स्मरण शक्ति पर भरोसा किया। परीक्षा दी और जब रिजल्ट आया तो उनका नाम गोल्ड मेडलिस्ट की फेहरिस्त में चमक रहा था। उनके पिता अख्तर सईदी कहते हैं कि बेटी ने आज मेरा माथा फक्र से ऊंचा कर दिया है। सदफ आगे पीएचडी करके शिक्षा के क्षेत्र में करियर बनाना चाहती हैं। (आईएएनएस)
रॉक्सी गागडेकर छारा
गुजरात, 2 मई । ऊना के मोटा समधियाला के साठ वर्षीय बालूभाई सरवैया पैदा होने के बाद से ही मरे हुए मवेशियों की खाल उतार कर बेचते थे. उन्हें याद है कि उनके पिता भी मरे हुए मवेशियों को गांव से बाहर घसीटते हुए ले जाते थे, बदबू के बीच खाल निकालते थे और उनसे ऐसा ही करवाते थे.
लेकिन इन्हीं बालूभैया के बेटों वशराम, मुकेश और रमेश और उनके भाई के बेटे को 2016 में कथित गौरक्षकों ने बुरी तरह पीटा था. इन पर ज़िंदा गायों को मारने का आरोप लगाया गया हालांकि बाद में ये दावे ग़लत निकले.
इस घटना की गूंज पूरे देश में फैली. उस घटना के क़रीब दो साल बाद 26 अप्रैल 2018 को परिवार ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया.
गुजरात में हर साल बड़ी संख्या में लोग बौद्ध धर्म अपना रहे हैं. हाल ही में गांधीनगर में एक धर्मांतरण कार्यक्रम आयोजित किया गया था. जिसमें क़रीब 14 हज़ार लोगों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया.
कितना फ़र्क़ आया?
साल 2018 में वशरामभाई के परिवार के साथ हुई घटना को हाल ही में पांच साल हो गए हैं. बीबीसी ने यह पता लगाने की कोशिश की कि उनके परिवार और उनके साथ बौद्ध धर्म ग्रहण करने वाले अन्य दलितों के जीवन में क्या बदलाव आया.
मोटा समधियाला गांव में एक समय था जब सरवैया परिवार सहित अन्य दलितों के साथ किसी न किसी तरह का भेदभाव किया जाता था. जैसे कभी-कभी कोई आंगनबाड़ी बहन बच्चों को अपने केंद्र में लेने नहीं आती थी. सवर्णों के बीच परिवार के लोग नहीं बैठ सकते थे, उन्हें दुकान पर अलग खड़ा होना पड़ता था.
हालांकि अब इन परिवारों का मानना है कि ये सारी चीज़ें बदल गई हैं.
'हम बदले, हमारा गांव बदला'
बीबीसी गुजराती से बात करते हुए वशराम सरवैया कहते हैं, "सबसे पहले तो हमारे परिवार के हर सदस्य की मानसिकता बदली है. अब हम और अधिक तार्किक हैं. हम मंदिर आदि नहीं जाते, हम कोई कर्मकांड आदि नहीं करते, इसलिए हमारे ख़र्चे कम हो जाते हैं."
कभी फटे-पुराने कपड़े पहनने वाले वशरामभाई अब अच्छे कपड़े पहनते हैं और ख़ुद को साफ़ रखते हैं. वे कहते हैं, "2016 में हुई घटना के बाद गांव में भेदभाव कम हुआ था, लेकिन बौद्ध धर्म अपनाने के बाद बहुत फ़र्क़ देखने को मिल रहा है."
उन्होंने यह भी बताया, "मैं जब भी दुकान जाता था तो वे हमारे पैसे पर पानी के छींटे मारकर ही हाथ लगाते थे. हमें दूर से ही किराने का सामान दिया जाता था. अब इसमें बदलाव आया है. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सभी ने इस तरह की प्रथा को छोड़ दिया है, लेकिन अधिकांश लोगों में इस तरह की प्रथा के प्रति बदलाव आया है."
वशरामभाई यह भी कहते हैं कि इन ग्रामीणों के व्यवहार में यह परिवर्तन केवल उनके धर्मांतरण के कारण नहीं है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि 2016 में उनके साथ हुई घटना के बाद आनंदी बेन पटेल, राहुल गांधी, मायावती और शरद पवार जैसे बड़े नेता उनसे मिलने पहुंचे थे और इसका असर गांव के लोगों पर भी पड़ा.
गंगाड़ गांव वशरामभाई के गांव मोटा समधियाला से क़रीब चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
इस गांव के जयंतीभाई राजमिस्त्री हैं. उन्होंने अपनी मां, पत्नी और चार बच्चों के साथ वर्ष 2018 में वशराम के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया था.
जब उनसे पूछा गया कि बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उनके जीवन में क्या बदलाव आया? तो उनके अनुभव वशरामभाई के अनुभवों से बिलकुल अलग निकले.
जयंतीभाई ने बताया, "हम धर्मांतरण करके थोड़े ही बदलेंगे? ग्रामीणों के लिए हम एक समान हैं. आज भी हमें गांव के सवर्ण अपने यहां बैठने नहीं देते. वे हमारे घर भी नहीं आते. यहां तक कि सामाजिक आयोजनों में भी हमें दूसरों से अलग रखा जाता है और हमें लगातार याद दिलाया जाता है कि हम दलित हैं."
जयंत भाई
गुजराती और बौद्ध
2011 की जनगणना के अनुसार गुजरात में लगभग 30 हज़ार बौद्ध रहते हैं. बौद्ध भारत की आबादी का एक प्रतिशत से भी कम हैं.
अंतरराष्ट्रीय संस्था प्यू रिसर्च सेंटर की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में रहने वाले कुल बौद्धों में 89 फ़ीसद अनुसूचित जाति, पांच फ़ीसद अनुसूचित जनजाति, चार फ़ीसदी ओबीसी से हैं, जबकि सिर्फ़ दो फ़ीसद सामान्य वर्ग में आते हैं.
हालांकि, जयंतीभाई का मानना है कि बौद्ध धर्म अपनाने के बाद से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है. 2014 से, वह बाबासाहेब अम्बेडकर के विचारों को फैलाने के लिए वे प्रोजेक्टर पर आम लोगों को फ़िल्में दिखा रहे हैं. 2018 के बाद उन्होंने अपने काम की रफ़्तार और बढ़ा दी है.
वे कहते हैं, "मेरे पास तो कुल चार किताबें हैं, लेकिन मेरी तीन बेटियां अब मेडिकल, पैरा-मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसे कोर्स कर रही हैं. मेरा पूरा परिवार शिक्षा की ओर मुड़ गया है, जिसकी आशा आंबेडकर ने हमसे की थी."
अमरेली ज़िले के धारी नगर में रहने वाले और पुलिस विभाग में काम करने वाले नवलभाई के अनुभव भी जयंतीभाई की तरह ही हैं. नवलभाई ने भी साल 2018 में बौद्ध धर्म अपना लिया था.
वे कहते हैं, ''बौद्ध धर्म अपनाने के बाद भी हमारे प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं आया है. सरकारी नौकरी में भी हमारे साथ जातिवाद होता दिख रहा है. इसलिए, यह मानना सही नहीं है कि बौद्ध धर्म को स्वीकार करना भेदभाव का समाधान है."
मवेशियों को चारा खिलाते बालूभाई सरवैया
'अगर बौद्ध धर्म नहीं अपनाया होता तो शायद यहां तक नहीं पहुंच पाते'
जूनागढ़ के रेकरिया गांव में रहने वाले मनीषभाई परमार ने 2013 में बौद्ध धर्म अपना लिया था. एक दशक बाद अपने जीवन में आए बदलावों के बारे में उन्होंने बताया, "मैं सामाजिक पहलू के बारे में बात नहीं करूंगा, लेकिन अगर मैं अपने परिवार के बारे में बात करता हूं, तो हम जीवन का आनंद ले रहे हैं. लगभग हर महीने त्योहार आते हैं और उन पर ख़र्च नहीं होता है, मेरी कमाई का अधिकांश हिस्सा अब मेरे बच्चों की पढ़ाई में चला जाता है."
मनीषभाई के चार बच्चों में एक बेटे ने एमएससी किया है. एक बेटा राजकोट में डॉक्टर के रूप में प्रैक्टिस कर रहा है, एक बेटे की इंजीनियर के रूप में अच्छी नौकरी है और चौथा बेटा अभी कॉलेज में पढ़ रहा है.
वे कहते हैं, "बौद्ध धर्म अपनाने के बाद हमारे परिवार का सारा ध्यान बच्चों की पढ़ाई और उनके बेहतर भविष्य पर था. बच्चों ने भी शिक्षा के महत्व को समझा, जिसके कारण आज हमने यह परिणाम देखा है."
उनका मानना है कि अगर उन्होंने बौद्ध धर्म नहीं अपनाया होता तो शायद आज वह इस मुक़ाम तक नहीं पहुंच पाते.
मिली नई पहचान
भीमराव आंबेडकर ने कहा था, "अगर जातिवाद को ख़त्म करना है तो दलितों को गांवों से शहरों की ओर जाना होगा. वह पलायन उन्हें एक नई पहचान देगा."
31 मई, 1936 को बाबासाहेब ने 'महार सम्मेलन' में प्रवास पर बोलते हुए कहा था, "यदि केवल नाम के लिए हिंदू धर्म बदल दिया जाए तो दलित की पहचान नहीं बदलेगी. यदि वह अपनी पहचान बदलना चाहता है, तो उसे अपने पुराने उपनाम जैसे महार, चोकमेला आदि को छोड़कर एक नया उपनाम अपनाना होगा. बदलाव तभी आएगा."
सूरत में रहने वाले 40 वर्षीय चंद्रमणि ने बौद्ध इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और वर्तमान में कोचिंग क्लास चलाते हैं. उनके दादाजी ने 1956 में बाबासाहेब आंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षा ली.
बीबीसी गुजराती से बातचीत में वे कहते हैं, "बाबासाहेब ने कहा था पहले धर्मांतरण और फिर पलायन. हमारा परिवार उसी पर अड़ा रहा. मेरे दादा ने धर्म परिवर्तन किया और अपना नाम बदल लिया, परिवार का उपनाम बदल दिया और फिर मेरे दादाजी का परिवार नागपुर से मुंबई आ गया."
उन्होंने बताया, "मेरे पिता रेलवे में गार्ड के रूप में काम करते थे और हम एक रेलवे कॉलोनी में रहते थे. जातिवाद वहां कभी रहा ही नहीं. इसी तरह मेरे पिता का परिवार सूरत में आकर रहने लगा. वर्तमान में मेरे बड़े भाई एक डॉक्टर हैं, मेरी बहन एक वकील है और मैं एक इंजीनियर हूँ. बौद्ध धर्म अपनाने से हमें बहुत लाभ हुआ है."
क्या जातिवाद का जवाब धर्मांतरण है?
बहुत से लोग इस बात से सहमत हैं और मानते हैं कि आंबेडकर के कहे मुताबिक़, धर्मांतरण निश्चित रूप से जातिवाद का जवाब है, लेकिन धर्मांतरण समस्या का समाधान नहीं है.
इस बारे में बात करते हुए दलित एक्टिविस्ट मार्टिन मैकइवान कहते हैं, "बौद्ध धर्म अपनाने के बाद भी कई ऐसे लोग हैं जिन्हें जातिवाद का सामना करना पड़ता है. जो लोग धर्मांतरण के बाद अपने गांव में रहते हैं, उनकी पहचान पहले जैसी ही रहती है. इसलिए आज भी कई लोगों को बौद्ध धर्म अपनाने के बावजूद भेदभाव का सामना करना पड़ता है."
दलित लेखक और कार्यकर्ता चंदूभाई महरिया एक उदाहरण देते हुए बताते हैं, "आंबेडकर ने बौद्ध धर्म को ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं किया था. उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएं लीं. मेरे हिसाब से वह एक राजनीतिक एजेंडा था. हालांकि,आजकल जो धर्मांतरण हो रहा है, वह एक धार्मिक एजेंडा है और वह भी बहुत कम संख्या में लोग बौद्ध धर्म में परिवर्तित होते हैं. इसलिए किसी बड़े बदलाव होने की संभावना नहीं होती है."
महरिया यह भी बताते हैं, "दलित समुदाय के पास अभी भी अपनी जाति व्यवस्था या उप-जाति व्यवस्था है, जिसे अभी तक बौद्ध भी चुनौती नहीं दे पाए हैं. इसलिए बौद्ध धर्म वर्तमान में जातिवाद का जवाब नहीं लगता है."
इसी तरह, दलित नेता प्रीति बहन वाघेला ने बीबीसी गुजराती से कहा, "बौद्ध धर्म कुछ लोगों के बीच एक नए प्रकार का कट्टरवाद ला रहा है, क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं जब कोई भावनात्मक रूप से अपने माता-पिता को उनकी इच्छा के विरुद्ध बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने के लिए मजबूर करता है. कई लोगों के लिए बौद्ध धर्म को अपनाना केवल एक सनक है, मैंने देखा है कि वे इसका पालन नहीं कर सकते."
'धर्म बदलने से वर्ग नहीं बदलता'
बौद्ध आनंद शाक्य बीबीसी गुजराती से कहते हैं, "हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने वालों के लिए सामाजिक संपर्क में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं होता है. लेकिन व्यक्ति या परिवार में बहुत बड़ा अंतर आता है. समय के साथ आने वाली पीढ़ी को लाभ मिलता है."
इस बारे में समाजशास्त्री और लेखक विद्युत जोशी कहते हैं, "जाति व्यवस्था का संबंध धर्म से नहीं, समाज के वर्ग से है, इसलिए धर्म बदलने से वर्ग नहीं बदलता."
जोशी आगे कहते हैं, "अगर हम राजा राममोहन राय की ब्रह्म समाज की क्रांति को याद करें, जाति व्यवस्था से तंग आकर लोगों ने ब्रह्म समाज को स्वीकार किया, तो उन्होंने अपना एक अलग वर्ग बनाया, अब वे भी दलितों के साथ नहीं घुलते. जब तक 'व्यक्तिगत समाज' नहीं बनता और लोग जब तक जन्म से नहीं बल्कि कर्म से पहचाने जाते हैं, बौद्ध धर्म से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा."
वहीं गुजरात बौद्ध अकादमी के महासचिव रमेश बैंकर की राय थोड़ी अलग है. बीबीसी गुजराती से बातचीत में वे कहते हैं, "बौद्ध धर्म अपनाने का मुख्य लक्ष्य ख़ुद को बदलना है, आत्मविश्वास विकसित करना है और यह हो रहा है. दूसरे लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं, इससे उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है." (bbc.com)